Tuesday, 31 December 2019

बिल्ली रानी

बिल्ली के भाग्य से छींका टूटा
बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे
खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे
सौ सौ चूहे खाकर बिल्ली चली हज करने
यह सब मुहावरों की मालिक
यह छोटी सी प्राणी
घर बाहर दोनों में निवास
चीते की सी स्फूर्ति
तभी तो शेर की मौसी
उनकी तरह ही शरीर पर धारियाँ
मांसाहारी भी शाकाहारी भी
अपने प्रयासों से भोजन जुटाना
चूहों के लिए यमराज
दूध - दही छिपाना
इसका जो स्वभाव
कहीं भी हाथ साफ कर लेना
इसके मरने पर महापाप का अभियोग
उसको दूर करने के लिए
न जाने कितने कर्मकांड
इससे किसी को डर नहीं
न यह काटती है न भौकती है
म्याऊं म्याऊं कहते भाग जाती है
कहीं भी छिप जाती है
यह लोकप्रिय तो इतनी नहीं
फिर भी अपना अस्तित्व रखे हैं
यह है उसकी चालाकी
उसका प्रयत्न
उससे कोई इतना परेशान भी नहीं
जीती है अपने दम पर
कौए ,कबूतर ,चिडिया ,चूहा
सबकी जान की दुश्मन
इसे कोई जंजीरो में भी नहीं जकड़ कर रखता
अपने जने बच्चों को अपने ही नर बिलाव से छिपाती
मुख में लेकर इधर-उधर फिरती
मांसाहारी होने पर भी क्या मजाल
एक दांत भी बच्चों को लग जाएं
मां की भावना में लाजवाब
इस पर एक इल्जाम यह भी
अपशकुनी माना जाता है
वह रास्ता काट देती है
तब अपशगुन हो जाता है
काम नहीं बनता
ऐसे प्राणी पर न जाने कितने इल्जाम
कभी उसके सौंदर्य को भी देखा जाय
उसकी कमाल की बिल्लौरी ऑखे
उसकी चपलता
छोटी सी है
पर है बडी सयानी
हमारी बिल्ली रानी
बच्चों की प्यारी
पूसी कैट पूसी कैट

जानेवाला और आनेवाला 19 - 20

जिंदगी जंग है फिर भी पसंद है
जोश और जिंदादिली ही जिंदगी का नाम दूसरा
हर गम को किनारे कर जरा मुस्करा दे
जो दूर हो गए उन्हें जरा पास बुला ले
गर्मजोशी से हाथ तो मिला ले
किसी अंजाने को अपना बना ले
किसी को दिल से माफ कर दे
स्वयं अच्छा करें तब अच्छा महसूस भी होगा
यह तो जश्न है
हर पल इस जश्न को मना ले
आज जो है उसी पल में जी ले
जाने वाले को भी सलाम कहे
आनेवाले को भी
यह तो रीत है
आनेवाला जाएगा उसकी जगह कोई और नया आएगा
पुराने साल को गर्मजोशी से बिदा
नये साल का नए अंदाज में स्वागत
जश्न तो बनता है
जा रहा है तब भी
आ रहा है तब भी
तब जश्न मना ले
उस समय को जी ले
क्योंकि उनके बीच हम खडे हैं
एक जाते जाते  देखता जाएगा
एक आते आते देखता आएगा

अलविदा दोस्तों ,मैं जरूर याद आऊंगा

आज साल का आखिरी दिन
बिदा ले रहा है
बहुत कुछ देकर जा रहा है
बहुत कुछ सिखा कर जा रहा है
कुछ मुस्कान देकर जा रहा है
कुछ चेतावनी देकर जा रहा है
मानो कह रहा हो
जो मेरे बस में था वह दिया मैंने
ऐसा नहीं कि झोली खाली ही रखी
जब जा रहा हूँ
तब कुछ देकर जा रहा हूँ
कुछ सपने पूरे हुए
कुछ सपने दे जा रहा हूँ
जाना तो है ही
कोई चिरस्थायी नहीं यहाँ
पर यादों में जरूर रहूँगा
जब जब कुछ घटना याद आएगी
साथ में मैं भी तो याद आऊंगा
अपने आप जुबां से निकलेगा
फलाने साल यह हुआ था
सालों में ही तो सिमटा जीवन है
हर साल की अपनी एक नयी कहानी
उसी मे बचपन ,यौवन और वृद्धावस्था
हर की अपनी एक कहानी
हर रोज की एक नयी कहानी
हम सब याद करते रहते हैं
तब मैं भी जरूर याद आऊंगा
कुछ खास बात तो मुझमें भी होगी
जो बाद में आपको मुझे याद करने पर मजबूर कर दे

Monday, 30 December 2019

समय साथ न चला

हम तो जहाँ से चले थे
आज तक वहीं खडे हैं
सब बदल गया
समय की रफ्तार चलती रही
जो कल था वह आज नहीं
लोग क्या थे
क्या हो गए
कहाँ से कहाँ पहुँच गए
हमने सबको नीचे से ऊपर की ओर जाते देखा है
पर हमारे लिए तो समय के पास ही समय नहीं है
कभी चलता है
कभी चलते चलते रूक जाता है
चला भी तो बडी धीमी गति से
कुछने कहा
फासला हमने बनाया
यह उनकी सोच
फैसला भाग्य का
वह जो करें
जो कराएं
सब कुछ उसके हाथ में
कब समय बदलेगा
उसकी प्रतीक्षा में हम भी
शायद ऐसा भी हो
हम प्रतीक्षारत ही रहे
तब तक प्रवास का समय आ जाय
यहाँ से प्रस्थान का
उसमें समय देरी नहीं करेंगा
तब तो उसकी गति द्रुत होगी
वह नासमझ नहीं है
पर शायद पार्शियालिटी करता है
पारदर्शिता नहीं है
तभी तो किसी के साथ तेज चलता है
किसी के साथ धीमी चाल से
खैर जो भी हो
हम तो उसके साथ है
वह भले न हो

हम है भारतवासी

यह भी प्यारा
वह भी प्यारा
यह भी दोस्त
वह भी दोस्त
यह भी पडोसी
वह भी पडोसी
यह भी रिश्तेदार
वह भी रिश्तेदार
यह सब अपने
फिर अपना पराया क्यों ?
देश भी मेरा
देशवासी भी मेरे
हर धर्म समभाव
हर भेदभाव के परे
जाति और संप्रदाय से हटकर
सब हमारे
हम उनके
आज का नहीं
बहुत पुराना संबंध है
प्रगाढ़ है
इनको किसी बंधन में नहीं बांधा जा सकता
ये चले आ रहे हैं
वैसे ही चलते रहेंगे
हर कोई स्वतंत्र है
हर किसी के पास अधिकार
क्योंकि सब बातें तो  होती रहेगी
पर उसमें एक खास बात यह है
जो हमको बांधती है
वह है हम भारतवासी

Saturday, 28 December 2019

पाकिस्तान जिंदाबाद क्यों ???

रहते हैं हिंदूस्तान में
बात करते हैं पाकिस्तान की
जयहिन्द की जगह जय पाकिस्तान
यह कैसे चलेगा
कैसे बर्दाश्त होगा
अशफाक और हमीद के हिन्दुस्तान में
पाकिस्तान जिंदाबाद का नारा
जरा तो लिहाज करें वतन का
उस मिट्टी का जहाँ पले बढ़े
जिसका नमक खाया
आज आजाद हो घूम रहे हैं
आजादी का मतलब
यह तो कतई नहीं
आप हिंसा करें
देश की संपत्ति को नुकसान पहुंचाए
तोड़फोड़ और आगजनी करें
पुलिस पर हमला करें
अपनी बात रखें
आवाज उठाएं
किसने मना किया है
पर उपद्रव कर
पाकिस्तान का समर्थक बन
यह तो किसी भी तरह से सही नहीं है
यह क्रिकेट मैच नहीं है
जहाँ खिलाडियों और मैच जीतने पर जश्न मना लिया
किसी के लिए भी
यह देश का सवाल है
देश सुलग रहा है
पाकिस्तान तो खुश हो रहा होगा
तमाशा देख रहा होगा
देश के जिम्मेदार नागरिक हैं
तब जिम्मेदारी भी आपकी भी है
शांति और अमन की

हर रिश्ते की हिफाजत

रिश्ते हैं संपत्ति नहीं
उन्हें तिजोरी में बंद नहीं करना है
बिना वजह खर्च नहीं करना है
खोने भी नहीं देना है
संभालना है
मिलना-जुलना है
बतियाना है
सुख दुःख का भागीदार बनना है
कोई रूठ जाए तो मनाना है
गलती करे तो माफ करना है
अनचाही बातों को नजरअंदाज करना है
समय समय पर प्रेम जताना है
यह माला के वह बहुमूल्य मोती है
जिसमें से एक भी अगर टूट जाए
तब माला बिखर जाएंगी
उसकी शोभा खत्म हो जाएगी
तब हर मोती को जी जान से संभालना है
इनके बिना तो अधूरी है माला
हमारा परिवार ,समाज ,देश
सब इसी माला की कडी है
हर रिश्ते की हिफाजत
हर एक की जिम्मेदारी

उन्नीस को अलविदा ,बीस का स्वागत

हर साल नया होता है
कुछ नया लेकर आता है
पुराना भी कुछ देकर जाता है
बहुत से अनुभव छोड़ जाता है
जो नया साल को बेहतर बना सके
साल आ रहा है
एक नयी आशा लेकर
एक नए सपने लेकर
एक नयी आकांक्षा लेकर
कुछ अधूरा जो रह गया है
उसे पूरा करना है
कुछ कडवाहट आ गई है संबंधों में
उसमें फिर से मिठास भरना है
कुछ पल जो रूक गए
उन्हें फिर जीवित करना हक
कुछ पग जो ठहर गए
उसमें गति भरनी है
पंखों को पुनर्जीवित करना है
फिर उडान भरनी है
हर चिंता और तनाव को मुक्त करना है
खुशियों को महकने का मौका देना है
मौसम रहे न रहे
हर मौसम को महसूस करना है
उसे शानदार बनाना है
हर क्षण का लुत्फ उठाना है
उन्नीस को गर्मजोशी से बिदा करना है
बीस का स्वागत करना है
और यह कामना तथा विश्वास रखना है
उन्नीस पर बीस भारी हो
हर नई पीढ़ी पुरानी पीढ़ी से एक कदम आगे रहती है
वैसे ही हर साल पुराने से बेहतर हो
फर्क भले 19 -20 का हो
पर 20 तो 19 पर हमेशा भारी है
तब सभी को शुभकामनाएं
बीस ही रहना
उन्नीस को अलविदा कहना

Friday, 27 December 2019

हम क्या हैं ???

हम कौन हैं
हमारे माता-पिता कौन हैं
हमारा खानदान कैसा है
हमारा वंश कौन सा है
हमारा गोत्र क्या है
हमारा परिवार कैसा है
हमारा ब्लड ग्रुप कौन सा है
हमारा धर्म कौन सा है
हमारी जाति कौन सी है
हमारी भाषा कौन सी है
हमारा प्रांत कौन सा है
हमारा देश कौन सा है
हम कितने अमीर है
हम कितने नामचीन है
हम कितने शक्तिशाली हैं
हम कितने खूबसूरत है
हम कितने शिक्षित हैं
यह सब को एक तरफ रखकर सोंचे
हम कैसे इंसान हैं
हममें कितनी मानवता है
हममें जीव मात्र के लिए कितना प्रेम हैं
हम कितने दयालु है
हममें कितना भाईचारे की भावना हैं
सब कुछ हो पर अच्छा इंसान नहीं
तब फिर कुछ फायदा नहीं
पहले इंसान बनें

जीवन का नया मेनू कार्ड

नए वर्ष का आगाज
दस्तक दे रहा है
तैयारियां जोर शोर से
क्लब होटल रिसोर्ट सब सज रहें
फैमिली संग गए
आज छुट्टी थी सब सपरिवार जमा
टेबल पर बैठे ही थे
वेटर ने मेनू पेश किया
क्या क्या व्यंजन और उनकी कीमत
कुछ पसंद किए गए सबकी सहमति से
अचानक विचार कौंधा
हम जीवन के मेनू में देखे
अच्छा है जो उसे स्वीकार करें
जो स्वादिष्ट नहीं है
मन को खराब करता है
उन विचारों को अलविदा कह दे
कुछ अच्छी यादें और बातें बार बार दोहराए
उनके स्वाद से जीवन सुस्वादु बन जाएंगा
कडवाहट को कोई स्थान नहीं
सबको पसंद हो
जो रूचिकर हो
जिसका स्वाद मन पर लंबे समय तक रहें
जिस स्वाद ने मन खराब किया
उसे फिर न चखा जाय
कभी-कभी कुछ नया भी ट्राय कर लिया जाय
क्या पता वह मन को भा जाय
अपनी पसंद से जीवन के मेनू का चुनाव करना है
कार्ड हाथ में है
सोच विचार कर निर्णय करना है
कितना मंहगा ,कितना सस्ता
स्वास्थ्यवर्धक ,सुस्वादु
फिर फिर रिपिट करना या छोड़ देना
यह तो हमारे हाथ
तब नये साल के आगाज के साथ ही
चलो बनाए दोस्तों
     जीवन का नया मेनू कार्ड

Thursday, 26 December 2019

तभी तो धर्म आज तक कायम है

आज ग्रहण था
माँ की तैयारी शुरू थी
कुछ खाना पीना नहीं
फिर ग्रहण छूटने पर नहाना धोना
अपने भगवान को नहलाना
मंदिर की साफ सफाई करना
यह सब अनवरत चल रहा था
इतनी श्रद्धा कि आज  हमारे भगवान पर ग्रहण लगा है
उन पर मुसीबत आई है
उनको छुडाने के लिए दान देना
एक बात दिमाग में कौंधी
भगवान ही नहीं
भक्त भी भगवान को मुसीबत से उबारते है
कितनी आस्था
कितना सुन्दर रिश्ता
भक्त और भगवान का
विज्ञान चाहे जो कहता हो
पर भक्त और भगवान का यह रिश्ता
है कितना सुंदर
कितना विश्वास भरा
तभी तो धर्म आज तक कायम है

चुप रहना

कभी कभी चुप रहना पडता है
जान बूझ कर
अंजान बन कर
नजरअंदाज कर
मजबूर होकर
हर बार बोलना सही नहीं होता
उचित समय
उचित स्थान
उचित लोग
यह सब देखना पडता है
कभी अपनों की खातिर
अपनों से ही चुप रहना पडता है
कभी विपरित परिस्थितियों में भी
कभी अनावश्यक बातों में भी
किससे रार ले
कभी प्रेम और संबंध सलामत रहे
इसलिए भी चुप रहना पडता है
चुप रहना कोई गुनाह नहीं
हर बात का उत्तर देना आवश्यक नहीं
चुप अपने आप ही सबसे भारी है

हिन्दू को नागरिकता

हम हिंदू हैं
सहिष्णु हैं
सदियों से दबाए गए
कुचले गए
कभी अपने ही धर्म द्वारा
कभी दूसरों के द्वारा
उपेक्षित और पिछड़े की श्रेणी में
कभी जबरन दूसरा धर्म स्वीकार किया
कभी गरीबी और तंग हालात के चलते
कभी मजबूरी कभी लालच
तब भी हम कायम रहे
हमारे धर्म से अलग हो कुछ महापुरुषों ने
दूसरे धर्म का भी आविष्कार किया
बुराइयाँ अलग की
आज जब हिंदू के और उसके साथी धर्म को अधिकार
देने की बारी आती है उस पर भी विवाद
दूसरे कुछ धर्मावलंबी देश में हमें सताया जाता है
हमें दोयम दर्जे का नागरिक समझा जाता है
हम पर अत्याचार होते हैं
हमारे अधिकारो का हनन होता है
फिर कहने के लिए
हिन्दुओं के लिए एकमात्र हिंदूस्तान
तब बवाल क्यों ??
हम कहाँ जाएंगे
हमें कौन शरण देगा
तब हम तो हिंदूस्तान से ही अपेक्षा करेंगे
कुछ को परेशानी क्यों
जब हिंदू सताया जाता है
तब विरोध की आवाज नहीं उठती
अधिकार देने की बात की जा रही है
तब चहुँ ओर विरोध
यह तो हमारे धर्म पर ही अन्याय है

Wednesday, 25 December 2019

अटल जी को नमन

देश की यादों में अटल
बातों में अटल
कविताओं में अटल
पत्रकारों में अटल
राजनीति में अटल
राजनेता में अटल
विपक्ष में अटल
प्रधानमंत्री में अटल
माँ भारती का लाल
अटल बिहारी वाजपेयी
ऐसी शख्सियत कभी-कभी जन्म लेती है
आज उनकी जयंती है
अटल जी की जयंती पर भूजल योजना
सराहनीय है
प्रधानमंत्री जी को भी धन्यवाद

बिंदी है बंदिश नहीं

बिंदी को माथे की शोभा ही रहने दो
उसे बंदी मत बनाओ
जिसको लगाना है वह लगाए
नहीं लगाना है न लगाए
जिस आकार की लगाना है
जिस रंग की लगाना है
यह सौंदर्य और सौभाग्य का प्रतीक
इससे चेहरा खिल उठता है
नूर आ जाता है
पर जबरदस्ती नहीं
नहीं तो चेहरा उदास
नया जमाना है
नई सोच है
नया पेहरावा है
तब क्यों सख्ती
सोच बदलना होगा
बिंदी के कारण किसी को बंदिनी नहीं बनाना है
उसे बंदिशो में नहीं जकड़ना है
बिंदी है बंदिश नहीं

हमारे बाबूजी जैसा कोई नहीं

आज का दिन कैसे भूलें ,भला हम
यह आपके जाने का दिन
इस दुनिया से अलविदा कहने का दिन
शांति से बिना बोले
हो लिए रूखसत आप
सब छोड़-छाड़ चल दिए अंजाने जहां
जहाँ से लौटकर फिर कोई नहीं आता दुबारा
वह फाइलें जिसे दिन रात देखा करते थे आप
वह तो नहीं रही
पर वह डब्बा जिसमे पीन ,सेलोटेप ,पंच
सब अभी वैसे ही है
जब काम होता है
तब कहा जाता है
वह बाबूजी के डब्बे में हैं
किताबों पर आपका पढकर निशान लगाया हुआ विद्यमान
आपकी फोटो भी है ही
पर यही याद नहीं है
आप तो दिल के हर कोने में
इतना मार्डन ख्यालों वाला पिता
सौभाग्यशाली लोगों को ही नसीब
निस्वार्थ प्रेम
अंहकार रहित
ज्ञान से समृद्ध
बच्चों के बीच बच्चा
ऐसा पिता जिसे बच्चे भी डाट दे
और वह बुरा न माने
दिल को न लगाए
मिलना तो दुर्लभ
ऐसा नहीं कि मजबूरी में
वह था प्रेम में
कभी किसी के ऊपर मोहताज नहीं
फिर भी झुक जाना
वह था बेइंतिहा प्रेम
ऐसा तो बिरले ही होते हैं
ऐसी छत्रछाया में पले बढ़े हैं हम भाग्यवान
   इसलिए
गर्व से कहते हैं
   हमारे बाबूजी जैसा कोई नहीं

Tuesday, 24 December 2019

एक दिन वहीं जाना है

ईश्वर से प्यार तो सब कोई करता है
पर उसके घर जाना कोई नहीं चाहता
जाने का नाम सुन ही घबरा जाता है
न स्वयं जाना चाहता है
न किसी प्रियजन का जाना देखना चाहता है

अपने घर हर कोई जाना चाहता है
वही सुकून मिलता है
काम से छूटते ही सीधे कदम घर की ओर
घर बिना मन नहीं लगता

ईश्वर को हम बुलाते हैं
हर तीज त्यौहार पर
उसके नाम पर जश्न और उत्सव मनाते हैं
घर मे खुशियाँ लाते हैं
मन में जीने का उत्साह भरते हैं

उसके यहाँ से कोई आता है
तब हम दिल खोलकर स्वागत करते हैं
नए जीवन के आगमन का शानदार स्वागत
लेकिन जब कोई जाता है
तब हम दुखी और पीड़ित होते हैं
नम ऑखों से बिदा करते हैं

इसी आने और जाने की प्रक्रिया के बीच
जो रहता है
वह है आयुष्य
हमारी उम्र
कितने दिन
कितने समय
यह तो कोई नहीं जानता
बस इतना जानता है
जहाँ से आए थे
एक दिन वहीं जाना है

Sunday, 22 December 2019

यादों का खजाना

कुछ लोग याद रहते हैं
कुछ बातें याद रहती है
कुछ रिश्ते याद रहते हैं
कुछ लम्हे याद रहते हैं
कुछ दोस्त याद रहते हैं
कुछ अंजाने याद रहते हैं
कुछ दिन याद रहते हैं
कुछ पल याद रहते हैं
कुछ साल याद रहते हैं
कुछ घटनाएं याद रहती हैं
कुछ नोक झोक याद रहती हैं
जीवन तो यादों का खजाना है
खट्टी मीठी यादें मिलकर ही जीवन रसमय बनता है
इन खजानों को जब जब समय मिले
तब तब खोलकर देख लेना है
मन खुश हो जाएगा
यह पल वापस भले न आए
पर एक अनुभुति अवश्य देते हैं
अपने होने का एहसास देते हैं
वह लोग जो आपसे फिर नहीं मिले
पर जेहन में अभी भी है
वह सुनहरा वक्त भले ही गुजर गया हो
पर उसकी छाप अभी भी है
कुछ प्रश्न अनुत्तरित रहते हैं
पर उनका उत्तर हम अभी भी खोजते हैं
वैसे ही यह यादें हैं
साथ साथ चलती है
उनका स्वाद जो लगा
वह अब तक है
वह आती है
तब अकेले नहीं आती
अपने साथ मुस्कान भी लाती हैं

ठंडी

ठंडी ठंडी बतिया
ठंडी ठंडी रतिया
ठंडी में गर्म मूंगफलियां
ठंडी में गर्म रजाईयां
ठंडी में ठंडी आइस्क्रिमियां
अब हो गईल सपनवां
अब न उ ठंडी हय
न उ बतिया है
अब सब बदल गयल
अब हीटर हय
अब तो जब चाहे गर्मी
जब चाहे ठंडी
मौसम का कौनो नहीं ठिकान
जब सब बदल गयल
तब इ बिचारों अब का करिहै
अब ठिठुरत कहीं पडल बा
अपने दिनन को याद करत बा
कहत बा
भैया जमाना बदल गयल बा

अपनी रस्सी तैयार रखिए

संमुदर में तो उतरना ही है
अपनी नाव लेकर
अब डर के किनारे ही रहे
बीच मझधार में चले जाय
यह तो हमको तय करना है
हर नाव को डूबा ही देगा समुंदर
यह कैसे संभव है
हाँ कुछ हिचकोले खाती है
कुछ पलट कर फिर सीधी हो जाती है
हर बार ऐसा नहीं होता
तब संतान को भी संसार के समुंदर में छोड़ देना है
हर संकट का सामना करने देना है
हर चुनौती को स्वीकार करने देना है
हर थपेडों को सहना सिखाना है
आंधी तूफान का सामना करना सिखाना है
गोते लगाने देना है
कब तक डरते रहेंगे
कब तक रक्षा करते रहेगे
कब तक सब छिपाकर रखेंगे
स्वयं ही डूबने उतरने दे
जीवन का भिन्न-भिन्न एहसास लेने दे
इतने बडे संसार सागर में उतरने दे
वह भलीभाँति सब जानेगा
सीखेगा
अनुभव करेंगा
आप बस किनारे पर खडे रहिए
देखते रहिये
अगर डूब रहा है
तब अपनी रस्सी तैयार रखिए
संतान को संसार के समुंदर में छोड़ना है
हर हाल में रहना
हर परिस्थिति का सामना
यह तो उसे सीखना ही है
कब तक अपनी छत्र-छाया में रखेंगे
लहरों में तो उतरना ही है

Saturday, 21 December 2019

वह औरत जो है

हाॅ मुझे मन मारने का शौक है
मैं औरत जो हूँ
न मन हो तब भी खाना बनाना है
घर को संभालना है
कहीं बाहर जाने का मन हो
कैसे जाए
घर पर कौन रहेगा
पिक्चर देखने का मन हो
तब अकेले कैसे जाऊं
कोई क्या कहेगा
होटल में खाना हो
तब भी वही समस्या
वह औरत जो अकेले घर संभाल लेती है
यहाँ वह मन मार लेती है
देर रात तक आना हो
नहीं यह कैसे हो सकता
सब कहेंगे
घर छोड़ अकेली घूम रही है
सबकी परवाह उसको
पर उसकी परवाह किसे नहीं
रात का बचा हुआ भोजन उसके हिस्से
वह सबके लिए गर्म बनाएंगी
स्वयं बासी खाएंगी
सबको परोसेगी
अपने बाद में खाएंगी
वह अन्नपूर्णा जो है
स्वादिष्ट भोजन और परिवार का पेट भरना जिम्मेदारी
घर संभालना भी
वह गृहलक्ष्मी जो है
न जाने कितनी उपाधियो से नवाजी जाती है
पर उसे याद है
वह औरत है
घर की धुरी है
पत्नी है
जननी है
इसी के इर्द-गिर्द उसका जीवन
उसका महत्व कोई समझे या न समझें
पर वह बखूबी समझती है
अपनी इच्छाओं की कुर्बानी देती है
उसके बिना सब तितर बितर
तब सबको सहेजना उसकी जिम्मेदारी
वह औरत जो है
उसी से परिवार
उसी से समाज
उसी से संसार

स्वाद भोजन का

स्वाद भोजन का
लेने का मजा भी
सुबह के नाश्ते से लेकर रात के खाने तक
ताना बाना बुना जाता है
आज क्या बनाना है
एक दिन पहले से ही
सुबह उठते ही ताम झाम शुरू
मुंह का चलना शुरू
पेट का काम शुरू
इन पर कभी विराम नहीं
जो इनको बनाता है
वह है घर की गृहिणी
सारा इंतजाम उसका
कभी उसे भी तो विश्राम दे
कभी पेट को भी तो आराम दे
हर रोज की वही दिनचर्या से आजाद करें
हफ्ते में एक दिन उसके भी मन का ख्याल रखें
हर रोज वह बनाती है
उसके हाथ का स्वाद
कभी दूसरों के हाथों के स्वाद का मजा लेने दे
वह रोज भोजन परोसती है
कभी उसे भी तो कोई भोजन परोसे
घर में न सही
बाहर ही सही
मंहगे होटल में न सही
सस्ते में ही सही
तब देखें
उसकी मुस्कान
और अगले दिन भोजन का स्वाद भी दोगुना

खाकी का सम्मान करें

खाकी से इतना खौफ
यह खाकी ही है
जो रात दिन जागती है
जब हम रात को चैन की नींद सोते हैं
तब ये प्रहरी सज्ज रहते हैं
सुरक्षा के लिए
चौबीस घंटे उसी में रहते हैं
अपने परिवार को छोड़ हमारा ध्यान रखते हैं
जब आपदा आती है
तब सबसे पहले यही याद आते हैं
हम जब त्योहारो का जश्न मनाते हैं
तब यह किसी अनहोनी को रोकने के लिए सज्ज रहते हैं
यह अपनी ड्यूटी निभाते हैं
यह उनका कर्तव्य है
वह भाग नहीं सकते
जब जुलूस निकलते हैं
तब यह साथ चलते हैं
जब भीड़ उपद्रव पर आ जाती है
तब भी उनको संभालने के लिए डटे रहते हैं
अपनी परवाह किए बिना
यह सरकार के नुमाइंदे हैं
उनके आदेश का पालन करते हैं
पर वह हमारे भी कुछ लगते हैं
हमारे रक्षक हैं
तब उन पर प्रहार
उनको दौड़ाकर मारना
तब असामाजिक तत्वों के मन में इनका डर खत्म हो जाएगा
ऐसे ही लोग पुलिस को गाली देते हैं
उनके प्रति गलत धारणा बना रखी है
आप जनता है
ये जनता के सेवक हैं
उनको सैलरी आपकी सुरक्षा के लिए मिलती है
मार खाने और चोटिल होने के लिए
यह हमारी पुलिस है
उसकी खाकी वर्दी का सम्मान सभी का कर्तव्य बनता है
अपने ही रक्षक को मारेगे
तब आप कैसे सुरक्षित रहोंगे
अधिकार चाहिए तब कर्तव्य का भी पालन हो

Friday, 20 December 2019

मानव जीवन

बर्फ गलता जाता है
उसका आकार बिगडता जाता है
अंत में वह पानी बन जाता है
उसी पानी से फिर बर्फ बनाना हो
वह फिर बन जाएंगा
कोई मुश्किल नहीं
पर मनुष्य जीवन एक बार ही
वह पिघलता रहेगा
गलतियाँ और अपराध करता रहेगा
तब वह चाहे कि
फिर पहले जैसा हो जाऊं
यह संभव नहीं
एक ही जनम मिला है
उसका सदुपयोग करना है
दुरूपयोग करना है
यह तो स्वयं उसके हाथों में
न समय वापस आएगा
न जीवन
तब इसी जीवन को जी ले
सार्थक बना ले

भविष्य आपकी मुठ्ठी में

परिस्थितियां हमेशा हमारे अनुकूल हो
यह जरूरी तो नहीं
कभी हम जैसा चाहते हैं
वह होता नहीं
न भाग्य साथ देता है
न कर्म
ईश्वर भी रूठे हुए लगते हैं
हमारे अपने विवश होते हैं
हम निराश होते हैं
यह निराशा निरंतर घर करती जाती है
हमारे तन मन को बीमार कर डालती हैं
उदासी और अवसाद घेर लेते हैं
निराशावादी कभी सफल हो ही नहीं सकता
भले सब विपरित हो
तब भी आशा बनाए रखें
स्वयं पर
ईश्वर पर
भाग्य पर
कर्म पर
हमारा दिन भी आएगा
समय एक सा नहीं रहता
दशा दस साल बाद बदलती है
बारह साल बाद तो घूरे के दिन भी फिरते हैं
तब निराशा के घेरे में क्यों
अंधेरा चाहे लाख घनेरा हो
हर रात की सुबह तो होती ही है
आशा ही जीवन में चेतना का संचार करती है
आस रखिए
धीरज रखिए
धीरे-धीरे ही सही
वक्त तो बदलेगा
बदलना तो उसकी फितरत में है
वह हमेशा एक समान नहीं रहता
तब आशा के साथ प्रतीक्षा करें
भविष्य आपकी मुठ्ठी में होगा

जीवन का चक्कर

अब गुडिया बन गई बुढिया
अब बिटिया बन गई ददिया
अब आ गई चेहरे पर झुर्रिया
अब पोपले मुख से हंसती चुनिंदा दतियां
अब बालों में आ गई सफेदियां
ऑखों में छा गई धुंधलिया
अब बिछडने लगी है हमजोलियां
शरीर में आ गई कमजोरियाँ

जुबान है लडखडाती
पैर हैं कंपकपाते
शरीर है थर्राता
कान हो गया बहरा
जानते हैं
यह सब क्या दर्शाता
कानों के पास आकर कुछ कहता
उसकी बात पर गौर करो
अब छोड़ दो नादानियां
गई जवानी
आया बुढापा
जो कुछ हो रहा
वह चुपचाप देखते रहो
खाओ और पडे रहो

प्रभु का नाम जपो
अब इसी का एक सहारा
किसी को अब नहीं भाएंगी तुम्हारी दखलंदाजियां
सब कुछ नजरअंदाज करों
अब तक बहुत किया
अब तो संन्यास लो
सबसे मोह भंग करों
करना ही है
देना ही है
तो जी भर कर आशीर्वाद दो
कभी जमाना तुम्हारा
आज किसी और का
यही चक्कर है जीवन का