Saturday, 30 November 2019

बेटी का बाप

मैं एक बेटी का बाप हूँ
मैं चाहता हूँ
मेरी बेटी पढे लिखे
ऊंचाई को छुए
अपने साथ मेरा भी नाम रोशन करें
दिन रात मेहनत करता हूँ
उसे किसी चीज की कमी न हो
उसकी हर इच्छा पूरी करने की कोशिश करता हूँ
उसको जरा सी चोट भी लग जाय
वह नहीं सह सकता हूँ
उसके भविष्य को लेकर शंकित भी चिंतित भी
मैं उस समाज का हिस्सा हूँ
जहाँ नारी जाति की कद्र नहीं
उन्हें स्वतंत्रता नहीं
उन पर हर बंदिश
उठने-बैठने से लेकर पहनने - ओढने तक
हर समय उन्हें संदेह की नजरों से
बात भी किससे करना किससे नहीं
कभी भी कोई भी ऊंगली उठा दे
हर कदम सोचना
यह करना है
यह नहीं करना है
लोग क्या कहेंगे
लोग क्या सोचेंगे
यही सोच सोच कर परेशान
कब लोगों की सोच बदलेंगी
सीता और द्रौपदी से लेकर आज की आधुनिक नारी तक
कुछ भी बोल दो
कभी भी बोल दो
जीना मुश्किल कर दो
बेटियों के पैर में बेडियाँ डाल दो
पुरुष वादी मानसिकता
हम ही श्रेष्ठ हैं
भले नाकारा हो
किसी लायक न हो
पर तब भी हम मर्द है
हमें मर्दानगी दिखाने का हक है
ऐसे भेड़िए छद्मवेश में
डर कर रहना है
दब कर रहना है
सर झुका कर रहना है
क्योंकि बेटी का बाप है

डाॅ प्रियंका रेड्डी की मौत सभ्य समाज की मौत

खून से लथपथ
जली हुई
बलात्कार
सडक पर फेंकी हुई
हद है हैवानियत की
शैतानियत की
पाशविकता की
किस तरह से यह इंसान है
एक युवती के साथ इस तरह का दुष्कर्म
यह साधु और संतों का देश
मानसिकता इतनी विकृत
कहाँ जाएँ बेटियां
क्या करें
फिर घूंघट में कैद हो जाए
औरते घर से बाहर न निकले
डरती रहे कि
पता नहीं किस वेष में ये नराधम मिल जाएं
कब कोई उनकी हवस का शिकार हो जाए
कहीं न कहीं तो कमी है संस्कारो में
माता पिता की परवरिश में
समाज की मानसिकता में
औरतों को देखने के दृष्टिकोण में
सोच और विचार में
जब तक इस पर प्रहार नहीं होगा
इनको जड से खत्म नहीं किया जाएगा
तब तक यह होता रहेगा
भारतीय बदलाव नहीं चाहते
बेटा है घर का चिराग है
लडका है पुरूष है
वह कैसा भी है चलेगा
घी के लड्डू टेढे भी भले
नालायक ,आवारा ,शराबी ,नशेडी
फिर भी वह पुरुष है
कहाँ है इन हैवानो के माता-पिता
कहाँ है इनका परिवार
कहाँ है इनका इज्जतदार समाज
बहिष्कृत करें
कानून तो सजा देगा ही
इसके पहले यह दे
हाथों में मोमबत्तियाँ नहीं मशाल होना चाहिए
ताकि वही पर उनको जला दिया जाए
जिस तरह से इन्होंने कैरोसीन डाल एक
होनहार ,निरपराध युवती को जलाया है
उसको मौत दी है वह भी नृशंस
ये पापी तो नरक के भी हकदार नहीं
शर्म आती है
ऐसी सोच और ऐसे लोगों पर
घृणा उत्पन्न होती है
मानव जाति पर कलंक हैं

भारतीय महिलाओं की नियति

सारी शिक्षा विवाह की वेदी पर चढ गई
सारी प्रतिभा घूंघट के ओट तले दफन हो गई
कारण छोटा नहीं
बहुत बडा है
ब्याह करना है
घर बसाना है
बच्चे पैदा करना और परिवार चलाना है
घर की धुरी है वह
वह आगे कैसे जाएंगी
पिता ने पढाया लिखाया
गर्व से कहा
यह मेरी बेटी है
पर जहाँ विवाह की बात आई
वह लाचार हो गए
इतनी भी हिम्मत नहीं थी
समाज से अलग उठकर कदम रखें
इनके साथ ही जीना था
बेटी सौंप दी भाग्य के भरोसे
उन हाथों में
जिनके लिए औरत एक गुडिया हो
जैसा चाहें वैसा नचाए
प्यार के नाम पर छल
बस उसे बांध कर रखना है
रोटी ,कपडा और मकान दिया
नाम दिया ,इज्जत दी
जिंदगी भर के लिए गुलाम
उसकी आशा - आंकाक्षाओ से कोई सरोकार नहीं
वह तो उस बंद तोते की तरह जो सोने के पिंजरे में कैद हो
उसका मनपसंद अमरूद और हरी मिर्च खिलाया जाय
बदले में जो बोले वही बोल वह भी बोले
यही नियति होती है
हम भारतीय महिलाओं की

Friday, 29 November 2019

कब तक निर्भया मरती रहेगी

वह पशुओं की डाक्टर
मूक पशु भले बोल नहीं पाए
पर वह इंसान से बेहतर
वह नहीं जानती थी
इंसान  में इतनी पाशविकता
वह दरिंदा बन जाता है
उसे औरत की अस्मिता की परवाह नहीं
वह वहशीपन पर उतारू
और एक नहीं सामूहिक रूप से
हैदराबाद की पशु चिकित्सक के साथ जो हुआ
वह बेहद शर्मनाक है
कितनी बार निर्भया कांड दोहराया जाएगा
कैसे संस्कार हैं
घर में भी तो औरते होगी
नशाखोरी भी इसका एक कारण
युवती से गैंगरेप फिर केरोसिन डालकर जला डालना
एक काबिल डाँक्टर
जो समाज को कुछ दे सकती थी
पल भर में खत्म कर दिया
डर लगता है
माँ - बाप को
बच्चियों को बाहर भेजने में
सख्त से सख्त कानून
सख्त से सख्त सजा
इन दरिंदो को
नहीं तो ऐसे लोग दरिंदगी करते रहेंगे

रिश्ते सत्ता के

सत्ता के गलियारों में रिश्ते क्या कहते हैं
हर रिश्ते की एक अलग कहानी
हर रिश्ते का अंदाज नया
यही से रिश्ते बनते हैं बिगडते है
नई पहचान बनाते हैं
कुछ टूटते हैं
कुछ जुड़ते हैं
कुछ बिगडते है
कुछ जुगाड़ करते हैं
कुछ जुडाव में रहते हैं
कुछ दिखावा करते हैं
कुछ अभिनय करते हैं
जैसा भी है
हर रिश्ता कुछ बयां करता है
क्योंकि यह सत्ता का खेल है
हर कोई खेलना चाहता है
और जो जीत गया
तब सत्ता उसके सर पर चढ बोलती है

जीवित मानव में जान फूंकने की जरूरत है

हमारा भारत मूर्तिपूजक देश है
हर साल लाखों मुर्तियां बनाई जाती है
कुछ को स्थापित तो कुछ को प्रवाहित
सडक से लेकर दिवार तक
ईश्वर की मुर्तियां तो है ही
महान पुरूषो की भी
बढ चढ कर होड लगी रहती है
निर्जीव मूर्तियों के लिए इतना कुछ
जीवित मुर्तियां निर्जीव सी
उनके लिए कुछ नहीं
न भर पेट खाना न मकान न वस्र
वह बदहाली में जीवनयापन करते हैं
जितना इन मूर्तियों पर खर्च किया जाता है
जीवित व्यक्ति पर खर्च किया जाए
उनमें जान फूंकी जाय
उन्हें इंसान बनाया जाए
शिक्षित किया जाए
मरे हुए लाश की अपेक्षा जीता जागता
हंसता गाता जीवन दिया जाए
मुर्तिया तो अमर है
यह तो नहीं
मृत्यु आने से पहले ही किसी को मार देना
तिल तिल के लिए भटकना
यह तो सभ्य समाज की पहचान नहीं
एक ठाठ करें
दूसरे को सूखी रोटी भी मयस्सर नहीं
ऐसा असंतुलन विकास नहीं कर सकता
इससे अस॔तोष व्याप्त
वह कहाँ तक जाएगा
उसका परिणाम क्या होगा
यह समाज के लिए घातक हो सकता है
जीने का मौलिक अधिकार हर नागरिक का है
तब मुर्तियां बनाने की जगह
जीवित मानव में जान फूंकने की जरूरत है

Thursday, 28 November 2019

लफ्ज

वाह वाह
आह आह
अहा अहा
बहुत छोटे
अहमियत बडी
अपने में ढेर सारी भावनाओं को समेटे
इन शब्दों से खुशी मिल जाएं
आंनदित हो जाय किसी का मन
प्रशंसा की अपनी भाषा
शब्द तो चंद
है मनपसंद
तब मौका न छोड़ें
बिनधास्त बोल डाले
इन लफ्जों में कंजूसी नहीं
दिलदार हो बोले
सामने वाले का मन हो उठे बाग बाग
आपका दिल कह उठे
वाह वाह

प्याज के साथ प्यार

आज भजिया खाने का मन
पर ठेले पर तो पालक ,आलू के पकौड़े
पर मनपसंद प्याज की पकौड़ी नदारद
पूछने पर पता चला
बहन जी इतना मंहगा
कौन बनाएंगा
मन मायूस हो गया
पर जो तलब थी भजिया की
वह बढ ही रही थी
पास में ही एक दोस्त रहती है
अमीर है
नौकर चाकर है
जब जाती हूँ
तब वह नमकीन ,भजिया चाय के साथ खिलाती ही है
वह जानती है भजिया मेरी कमजोरी है
आखिर पैर उस तरफ उठ ही गए
अंदर गई
प्रेम से बैठाया
नौकर को आदेश दिया
पानी लाने का
फिर चाय और नाश्ता बनाने का आदेश दिया
मुझसे कहा
अभी आती हूँ
वह गई ,कुछ देर हो गई
मैंने सोचा देखूं ,कहाँ रह गई
किचन के बाहर तक पहुंची ही थी
आवाज आई खुसपुस
वह पत्ता गोभी है न वह काट
और आधा प्याज मिला कर बना दे
उसे क्या पता चलेगा
चटोरी है खा लेंगी
मै उल्टे पैर आकर सोफे पर बैठ गईं
प्याज तो आपस का प्यार भी खत्म कर रहा था
न जाने कैसे कैसे दिन दिखाएगा

हर पल का साथी मोबाइल

मोबाइल है हाथ में
कुछ न कुछ देखना
कुछ न कुछ पढना
अपने आप स्वाभाविक
ज्ञान तो अर्जित किया जा रहा है
विशाल संसार इसका
विभिन्न विषयों का भंडार
हर जानकारी संकलित
तब ऐसा क्यों लगता है
पढना बंद है
पढ तो अब भी रहे हैं
इतना आसान कि जहाँ चाहे वहाँ
किताब की तरह खरीदने
समय निकालने
साथ लेकर चलना
यह सब इतना आसान नहीं था
आज सब सूचना हाथ में है
बस इसका सही इस्तेमाल की जरूरत है
किताब का महत्व
किताबों की दुनिया विस्तृत
उसको तो नकारा नहीं जा सकता
पर यह हाथ में रहने वाला खिलौना भी
कम नहीं
मुठ्ठी में आसमान समा सकता है यह
हर हाथ में
हर हाल में
साथ निभाने वाला
हमारा प्यारा मोबाइल

फूल गिरते हैं

फूल गिरते हैं
फिर भी दूसरे दिन नया खिलते हैं
न पौधा हार मानता है
न फूल खिलना छोड़ता है
आंधी ,तूफान ,धूप सब सहन करता है
थपेडों और गर्मी सह लेता है
शीत में ठिठुरता है
फिर भी तो खिलता है
क्षण भर की जिंदगानी
यह भी वह जानता है
तब भी खुशबूं देता है
खुशी देता है
यह तो जीवन-चक्र है
यह वह भलीभाँति जानता है
अगर वह काम न आए
तब जीवन ही व्यर्थ उसका
ऐसा जीवन किस काम का
तब क्यों न जीए देते हुए
जाना है
मुरझाना है
टूट कर मिट्टी में मिलना है
तब भी दिलों पर राज करना है
कुछ देकर जाना है
फूल गिरते हैं
फिर भी दूसरे दिन नया खिलते हैं

घास फिर भी खास

पौधे तो बहुत है
नाम और काम के साथ
कोई खूबसूरत
कोई सुगंधित
कोई औषधीय
अपने अपने गुणों से भरपूर
इनको रोपने के लिए लालायित
सौंदर्यबोध होता है
कभी घर में
कभी दफ्तर में
कभी अगवाडे
कभी बगिया में
बस एक घास ही है
वह कहीं भी उग आता है
उसे किसी उर्वरक की जरूरत नहीं
चाहे या अनचाहे
किसी के बीच में
काटा और छाटा जाता है
वह बढना नहीं छोड़ता
अपनी पैठ बनाना नहीं छोड़ता
पहाड़ हो या समतल
इसे नष्ट करना भी इतना आसान नहीं
तभी तो आचार्य चाणक्य के पैर में जब चुभा
तब दही के मठ्ठे को डाल खत्म कर रहे थे
इसकी जड ही मिटा दूंगा

सीधा सादा
हर जगह समायोजित
वह जानता है अपनी कीमत
न रहे तो हरियाली गायब
केवल ठूंठ से पौधे और पेड़
सबकी शोभा का कारण वह
पशुओं का भोजन
गरीब की झोपड़ी
और न जाने क्या क्या
उपेक्षित है पर अपेक्षित  भी
वह घास है
फिर भी खास है

राजनीति पर किसी का एकाधिकार नहीं

पावर ऑफ गेम
पवार ने अपना पावर दिखा दिया
यह भी जता दिया
वे राजनीति के नौसिखिया खिलाडी नहीं है
राजनीति में कभी भी कुछ भी हो सकता है
यही तो प्रजातंत्र की खूबी है
किसी का एकाधिकार नहीं
नहीं तो शासक हिटलर हो जाएँगे
सबको साथ लेकर चलना
सबके साथ चलना
सबकी बात सुनना
सबको तवज्जों देना
किसी को विहिन नहीं
विपरीत में भी कार्यरत रहना
पावर ऑफ बैंलेस जरूरी है
मायूस नहीं फिर उसी पावर के साथ खडे रहना
फिर उम्र अस्सी की हो
या तीस की
कोई फर्क नहीं पड़ता
कल क्या हो
पता नहीं
पर आज का सत्य तो यही है
राज्याभिषेक होने जा रहा है
यह पावर भी पवार के कारण मिला है
राजनीति के छात्रों के सामने यह मिसाल है
कुछ सीखेंगे
समझेंगे
सोचेगे
राजनीति इतनी आसान नहीं
उस पर किसी का एकाधिकार नहीं

बहुत हो चुकी आपाधापी

बहुत हो चुकी आपाधापी
अब तो इस पर विराम चाहिए
कुछ तो आराम चाहिए
भागते रहे ,दौडते रहे
तिनका-तिनका जोड़ते रहे
आशियाना बनाते रहे
ख्वाब बुनते रहे
उसके लिए प्रयास करते रहे
बस अब तो इस पर विराम चाहिए
कुछ तो आराम चाहिए
होश संभाला जबसे
तबसे शुरू हुआ सारा सिलसिला
कभी यह कभी वह
करते करते जोड़ तोड़ करते रहे
हमेशा इच्छाओं के पीछे भागते रहे
स्वयं को उसी में झोकते रहे
कभी झुक गये
कभी समझौता किया
हर हाल में जिंदगी को खुशगंवार बनाने की कोशिश करते रहे
जिंदगी भी कभी धीरे चली
कभी ठुनक ठुनक कर चली
कभी थम थम कर चली
कभी सरपट दौड़ी
अब वह भी कितना साथ निभाएगी
कितना दौड़ लगाएंगी
समय का तकाजा है
बस बहुत हो चुकी आपाधापी
अब तो इस पर विराम चाहिए
बस इतना ही हो
यह सरपट न दौड़े
धीमे धीमे ही चले
बस लडखडाकर गिरे नहीं
स्वयं अपना सहारा बने
अब दूर से हर नजारे को देखे
महसूस करें
शांतचित्त हो जीवन व्यतीत करें
बहुत बोल चुके
बहुत सुन चुके
अब तो चुप रहना है
वाणी पर भी विराम चाहिए
नहीं किसी से दुश्मनी
न किसी से बैर
बस प्रेम चाहिए
बहुत हो चुकी आपाधापी
अब तो इस पर विराम चाहिए

Wednesday, 27 November 2019

स्वयं का साथ निभाना है

होना है वह तो होगा ही
पर तू पीछे न मुडना
धीरज मत छोड़ना
तू स्वयं के साथ रहना
देर भले हो
रात कितनी भी अंधेरी
हर रात की सुबह तो होगी ही
असफलता भले मिले
निराला और अवसाद में गोते लगाने से अच्छा
फिर प्रयत्न
उठने की कोशिश
गिरकर उठना है
फिर पैर जमाकर खडा रहना है
मजबूत बनना है
अपयश ,दुख इसे हमेशा-हमेशा के लिए भूलना है
अपनी राहें स्वयं चुननी है
अपने अनुरूप मोडना है
तेरी झोली हमेशा रिक्त रहे
यह जरूरी तो नहीं
सपने देखना छोड़ना नहीं
देखते ही रहना है
देखते देखते ही उसे अपना बनाना है
इतना बड़ा विशाल आसमान
उसको अपनी मुठ्ठी में समाना है
विश्वास रख
विश्व हमारा है
स्वयं का साथ निभाना है

जीवन भर ता थैया ता थैया

अभी बहुत कुछ बाकी है
कुछ आशा है
कुछ विश्वास है
कुछ सपने है
कुछ इच्छाएं है
उनका इंतजार है
कब आएंगे वह
कब पूरी होगी
उस लम्हे को जीना है
उसे जीने के लिए ही तो जीये जाते हैं
यह न हो तब क्या मजा जीने में
सब पूर्ण हो जाय
तब फिर बचा क्या
यही तो हमें जिंदा रखती हैं
आज नहीं तो कल सही
वह दौर भी आएगा
यह विश्वास है
कर्म पर
भाग्य पर
भगवान पर
जीने की अदम्य जीजिविषा
जकड़े रहते हैं
फिर भी खुश रहते हैं
मुक्त होना नहीं चाहते
महान नहीं मानव है हम
अनंत आशा आंकाक्षा को साथ लेकर
अंत समय तक
कभी जी नहीं भरता
आज यह हुआ
तो कल कोई नया
भावनाओं के  भंवरजाल में पडे  हम
आंनदित हो झूमते है
यह हमें घूमाता है
यह हमें नचाता है
हम इसकी धुन पर ताउम्र
ता थैया ता थैया करते रहते हैं

Tuesday, 26 November 2019

छब्बीस ग्यारह की वह रात

छब्बीस - ग्यारह की वह रात
यह पीढ़ी तो कभी नहीं भूलेगी
मुंबईकर तो कभी नहीं
वह काली स्याह रात
जिसमें हमारे जांबाज जवान ऐसे ही शहीद हो गए
अदने से आंतकवादियों के हाथ
सारी मुंबई भौंचक रह गई थी
अस्पताल से लेकर होटल तक
सब निशाने पर
छुप कर वार था यह
पर लोगों ने सामना किया
हमारे पोलिस ऑफिसर शहीद हो गए
आज उनको याद करना है
यह हमारी पुलिस है
जो दिन-रात मोर्चे पर डटी रहती है
अपनी परवाह किए बिना
गोली खाकर भी आंतकवादी को पकड़ लिया
वह थे पुलिस के सिपाही
तुकाराम ओंबाले
नर्स ,डॉक्टर ,होटल स्टाफ
सब डटे रहे
अपनी जान की परवाह किए बिना
ऐसे लोगों के कारण हम सुरक्षित
तब इनको याद करना भी हमारा फर्ज बनता है
सभी को नमन
हम भूल नहीं पाएंगे इनको

राजनीति के चाणक्य

राजनीति हर किसी के बस की बात नहीं
राजनीति करना ही नहीं
राजनीति समझना भी
यही वह जगह है जहाँ
सब कुछ जायज है
यह सत्ता का खेल है
राजनीति के महारथियों को देखकर लगता है
गजब का जज्बा
हर बात का जवाब
हर जोड़ का तोड़
हर हाल में मैदान पर डटे रहना
हार नहीं मानना
अपने अनुरूप बनाने की हर संभव कोशिश
उम्र को भी मात देना
हौसला रखना है
तब तो इन राजनेताओं से सीखना चाहिए
हारी हुई बाजी को जीत में
जीती हुई बाजी को हार में कैसे बदलना है
रातोरात में क्या गुल खिलाना है
कोई इनकी थाह तक नहीं पा सकता
तभी तो ये राजनीति के चाणक्य है

नेता बिकता है खरिदोगे

नेता बिक रहा बाजार में
बोली लगी है
दोनों तरफ का यही हाल
कोई किसी से कम नहीं
अब कौन क्या दाम लगाता है
किसे मलाईदार विभाग मिलता है
सब इस पर निर्भर
पार्टी की निष्ठा गई भाड में
अपना फायदा जहाँ
हम है वहाँ
कौन है क्या है
बेईमान है भ्रष्टाचारी है
वह कोई मायने नहीं
हमारे साथ आ जाओ
सब धुल जाएंगा
एकदम क्लीन चिट मिल जाएंगा
विचार अलग है तो क्या हुआ
आदर्श अलग है तो क्या हुआ
यह कौन सी बडी बात
सत्ता के सामने सब नगण्य
कल तक भले एक दूसरे को गाली देते थे
आज तो बलगहिया कर रहे हैं
भूलना प्रकृति का नियम है
हम भी चलो चले
सब भूल जाए
बस एक बात न भूले
वह है सत्ता का स्वाद
जो एक बार चढ गई
तब तो सर चढकर बोलती है
सब बिकने को तैयार
खरीदार भी बोली लगाने को तैयार
जिसकी बोली में दम
उसकी तरफ हम

सब वक्त पर छोड़ दे

किसी ने नीचा दिखाया
तो हम छोटे हो गए
किसी ने ताना मारा
तो हम छोटे हो गए
किसी ने गाली दी
तो हम छोटे हो गए
किसी ने अपमान किया
तो हम छोटे हो गए
तब हम बडे ही कहाँ हुए
हमारी तो सोच ही छोटी रह गई
क्यों नहीं उससे ऊपर उठ गए
जिसने भी यह सब किया है
छोटा तो वह है
अपनी आदतों से
अपनी मानसिकता से
अपने विचारो से
अपनी वाणी से
आप क्यों प्रभावित हो रहे हैं
उसके छोटेपन से
संसार में पग पग पर ऐसे लोगों का डेरा है
जिनके छोटेपन ने आपको घेरा है
उनका कर्म उनके साथ ही रहने दे
उनका हिसाब करने वाला ऊपर बैठा है
वह देख रहा है
कहाँ नाइंसाफी हो रही है
आप इन सब में उलझकर वक्त जाया न करें
अपना मन और वाणी खराब न करें
बस कर्म करते रहे
वक्त बदलता रहता है
सब वक्त पर छोड़ दे

Monday, 25 November 2019

भगवान कृष्ण का स्वरूप

क्या सिखाता है भगवान कृष्ण का स्वरूप ?
कभी सोचा है भगवान कृष्ण का स्वरूप हमें क्या सिखाता है। क्यों भगवान जंगल में पेड़ के नीचे खड़े बांसुरी बजा रहे हैं, मोरमुकुट पहने, तन पर पीतांबरी, गले में वैजयंती की माला, साथ में राधा, पीछे गाय। कृष्ण की यह छवि हमें क्या प्रेरणा देती है। क्यों कृष्ण का रूप इतना मनोहर लगता है। दरअसल कृष्ण हमें जीवन जीना सिखाते हैं, उनका यह स्वरूप अगर गहराई से समझा जाए तो इसमें हमें सफल जीवन के कई सूत्र मिलते हैं। विद्वानों का मत है कि भगवान विरोधाभास में दिखता है।
आइए जानते हैं कृष्ण की छवि के क्या मायने हैं।
1. मोर मुकुट - भगवान के मुकुट में मोर का पंख है। यह बताता है कि जीवन में विभिन्न रंग हैं। ये रंग हमारे जीवन के भाव हैं। सुख है तो दुख भी है, सफलता है तो असफलता भी, मिलन है तो बिछोह भी। जीवन इन्हीं रंगों से मिलकर बना है। जीवन से जो मिले उसे माथे लगाकर अंगीकार कर लो। इसलिए मोर मुकुट भगवान के सिर पर है।
2. बांसुरी - भगवान बांसुरी बजा रहे हैं, मतलब जीवन में कैसी भी घडी आए हमें घबराना नहीं चाहिए। भीतर से शांति हो तो संगीत जीवन में उतरता है। ऐसे ही अगर भक्ति पानी है तो अपने भीतर शांति कायम करने का प्रयास करें।
3. वैजयंती माला - भगवान के गले में वैजयंती माला है, यह कमल के बीजों से बनती है। इसके दो मतलब हैं कलम के बीच सख्त होते हैं, कभी टूटते नहीं, सड़ते नहीं, हमेशा चमकदार बने रहते हैं। भगवान कह रहे हैं जब तक जीवन है तब तक ऐसे रहो जिससे तुम्हें देखकर कोई दुखी न हो। दूसरा यह माला बीज की है और बीज ही है जिसकी मंजिल होती है भूमि। भगवान कहते हैं जमीन से जुड़े रहो, कितने भी बड़े क्यों न बन जाओ, हमेशा अपने अस्तित्व की असलियत के नजदीक रहो।
4. पीतांबर - पीला रंग सम्पन्नता का प्रतीक है। भगवान कहते हैं ऐसा पुरुषार्थ करो कि सम्पन्नता खुद आप तक चल कर आए। इससे जीवन में शांति का मार्ग खुलेगा।
5. कमरबंद - भगवान ने पीतांबर को ही कमरबंद बना रखा है। इसका अर्थ है हमेशा चुनौतियों के लिए तैयार रहें। धर्म के पक्ष में जब भी कोई कर्म करना पड़े हमेशा तैयार रहें।
*6. राधा - कृष्ण के साथ राधा भी है। इसका अर्थ है जीवन में स्त्रीयों का महत्व भी है। उन्हें पूर्ण सम्मान दें। वे हमारी बराबरी में रहें, हमसे नीचे नहीं।* —🙏🏼🙏🏼🙌🙏🏼🙏🏼
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आम इंसान

क्यों उदास है
क्यों निराश है
क्यों हारा हुआ है
क्यों ठगा हुआ है
क्यों कमजोर है
क्यों मजबूर है
क्यों विवश है
क्योंकि वह आम इंसान है
यह सब समय समय-समय पर होता है
हर अदना शख्स के साथ
क्योंकि वह ईश्वर नहीं है
उसका भाग्य पर कोई जोर नहीं
वह कर्म तो कर सकता है
करता भी है
पर उचित प्रतिफल नहीं मिलता
भाग्य के आगे धक्का खा जाता है
महसूस करता है
सोचता है
जोर लगाता है
तब भी भाग्य को बदल नहीं पाता
यही वह निराशा के गर्त में चला जाता है
भविष्य के गर्भ में क्या छिपा है
वह थाह नहीं पाता
वह तो वर्तमान में ही उलझ कर रह जाता है
जब रास्ता नजर नहीं आता
तब वह कोशिश करना भी छोड़ देता है
जो होगा देखा जाएगा
जब भाग्य ही साथ नहीं
तब क्यों कुछ करें
जिस हाल में है
ठीक है
जी तो रहे हैं
बस वह यही बैठ जाता है
और ताउम्र बैठा ही रहता है
एक ही जगह

यह कहकहा नहीं

वे कहकहे लगा रहे थे
साथ में बहुत कुछ कह रहे थे
कहना केवल मुख से हो
यह जरूरी तो नहीं
अंदाज भी बहुत कुछ बयां कर जाते हैं
भावनाओं के लिए शब्दों की जरूरत नहीं होती
नजर ही काफी होती है
जो कह नहीं पा रहे थे
वह कहकहा कह रहा था
मन में कुछ तो हलचल थी
जो बाहर इस तरह से आ रही थी
कहकहा लगा जा रहा था
रूकने का नाम नहीं ले रहे थे
कहना पडा
अरे बस भी करो
पेट में दर्द हो जाएगा
रूक गए
देखा तो ऑखों में पानी था
वह शायद जोर से हंसने पर
यह स्वाभाविक है
पर ऑखों में पानी की क्या यही वजह
वह तो वे ही जाने
पर हम जान गए थे
यह कहकहा नहीं था
छटपटाहट थी
मजबूरी और बेबसी थी
जो इस रूप में व्यक्त हो रही थी
सच ही कहा है किसी शायर ने
जो जितना गहरा घाव लिए बैठा  दिल में
      वह आहे भरते उतना ही सकुचाता है

Sunday, 24 November 2019

चलना है जैसे भी

कभी चलते थे ठुनक ठुनक
कोई न कोई पीछे
गिर न जाय
छोटा बच्चा है
किसी को हाथ पकड़कर चलना है

फिर भागने लगे
दौड़ने लगे
सब पकड़ने को भागने लगे
पर किसी के हाथ नहीं लगे
यह जवानी का जोश था

फिर उम्र ढलने लगी
थम थम कर चलने लगे
बाद में वैसे ही ठुमक ठुमक
अब काठी है हाथ में
कोई पकड़ने वाला नहीं
स्वयं ही सहारा ढूंढना है
जैसे आए थे
सालों बाद भी फिर वही हाल
चलना है जैसे भी चलना है

संबंधों में परिवर्तन

परिवर्तन प्रकृति का नियम
जो कल था वह आज नहीं
जो आज है कल नहीं
यह तो हर बात में लागू
संबंधों में भी यही बात
जब कुछ भी स्थायी नहीं
तब संबंध कैसे
वह भी परिवर्तित होते हैं
विचारों से
भावनाओं से
पहले ऐसा था
अब ऐसा नहीं है
बदल गया है
सही है
जो बच्चा था
अब युवा है
जो युवा था
वह अधेड़ है
जो अधेड़ था
वह वृद्ध हो चला है
समय बदल डालता है
परिस्थितियां बदल डालती है
मजबूरी बदल डालती है
जिम्मेदारिया बदल डालती है
रुतबा और ओहदा बदल डालता है
संपत्ति और पैसा बदल डालता है
और उम्र बदल डालती डालती है
व्यक्ति ढलता रहता है
बदलता रहता है
सामंजस्य करता रहता है
विकास करता रहता है
विचार बदल जाता है
तब वह पहले जैसा कैसे रहेगा
संबंधों में भी वह बात कैसे रहेगी
जब स्थायी कुछ नहीं
तब संबंध कैसे ??