Monday, 30 March 2020

Waqt to phir waqt hai

*Waqt to phir waqt hai....*

*Waqt to phir waqt hai, guzar hi jayega,*
*Aaj nahi to kal sab theek ho hi jayega,*
*Kal tak waqt ki kami thi,*
*Zindagi jaane kis raftaar se bhaag rahi thi,*
*Aur hum uske peeche.*
*Ye jo din beet rahe hain, inhein khwaab main dekha tha,*
*Haqeeqat main har kisi ko waqt se kitni shikayat thi,*
*Kahin kuch rahaat ke pal naseeb hon,*
*Kuch waqt mile apnon ke saath guzaarne ka*
*Bachon ke saath baith kar wo bachapan ke khel khelne ka,*
*Ek dusre ka kaam main haath batane ka,*
*Doston se fursat main baat karne ka,*
*aaj Waqt ruka hai,*
*To hum kyun ruk nahi paa rahe,*
*Kyu bechain hain,*
*In palon ko jee nahi pa rahe,*
*Kal kya hoga kon jaanta hai,*
*Jo hoga acha hoga,*
*Ye yaqeen khud par rakhna hai,*
*Apnon ka khayal rakhna hai,*
*Aur zara sa hausla rakhna hai,*
*Waqt to phir waqt hai,*
*Chahe jitna bhi bura ho,*
*Guzar hi jayega....*

Many thanks to the Writer who is unknown to me

लगता है मुंबई ठहर सी गई

बहुत याद आ रही है
वह सब बातें जो अब नहीं हो रही है
वह आपाधापी वह भागम-भाग
वह लोकल ट्रेन वह बेस्ट की बस
वह दौड़ता - भागता आदमी
लगता है मुंबई ठहर सी गई

वह मरीनड्राइव के नजारे
वह चौपाटी की शाम
वह गलियों में क्रिकेट खेलते लोग
वह भेलपुरी और शेवपुरी का ठेला
वह तीखा बडा - पाव
सब अदृश्य हो गए
लगता है मुंबई ठहर सी गई

वह माॅल में भीड़
वह ट्रेफिक का जाम
वह खाऊगली
वह सब्जी वाले की ठेलागाडी
वह धड धड की निर्माण कार्य की आवाज
वह मजदूरों का रेला
वह गुमटी वाले चाय की चुस्कियां
वह कैफे काफी शाप
सब है नदारद
लगता है मुंबई ठहर सी गई

वह काॅलेज के बच्चों की मस्ती
उनकी हा हा हू हू
वह स्कूल जाते
माँओ द्वारा घिसटते बच्चे
वह ईश्वर का दरबार
जहाँ का दर्शन भी अब दुर्लभ
वह नाना - नानी पार्क
लाठी टेकते बुजुर्ग
वह सडकों पर जाॅगिग करते लोग
अब सब है सुन्न
लगता है मुंबई ठहर सी गई

वह देर रात तक काम
घर आने का समय तय नहीं
अब सब है घर पर पडे
देर सुबह तक सोना
वह सब भूल रहा
अब बस सोना है और खाना है
जो मुंबई वासी को रास नहीं आती
यहाँ काम के सिवाय और कुछ न भाता
सब काम पड गए हैं ठप्प
लगता है मुंबई ठहर सी गई

Sunday, 29 March 2020

घरनी को भी थोड़ी छुट्टी दे दो

सभी को छुट्टी है
सब घर पर बैठे हैं
आराम फरमा रहे हैं
टी वी देख रहे हैं
मोबाइल पर लगे हुए हैं
तब भी बोर हो रहे हैं

ऐसे समय में एक वो ही है
जो बहुत बिजी है
सबकी फरमाइश पूरी कर रही है
किसको यह नाश्ता तो किसको वह
किसी को यह सब्जी पसंद तो किसी को वह
कोई पानी मांग रहा है तो कोई चाय
वह कभी यहाँ तो कभी वहाँ डोल रही है
किचन में तो पैर ही जैसे जम गए हैं
पहले तो दोपहर में आराम कर लेती थी
अब वह भी नहीं

सामान है कि नहीं
राशन पानी का हिसाब लगाती बैठ रही
दूध और सब्जी का लेखा जोखा करती
सबकी तबियत का ध्यान रखती
साफ सफाई से लेकर भोजन
सब उसके जिम्मे
अब तो कामवाली बाई भी नहीं आ रही
वह भी है छुट्टी पर

सभी को छुट्टी
बस एक को नहीं
वह है घरनी
जरा उसका हाथ बटा दो
सब मिल बाट कर काम कर लो
अपने साथ उसे भी आराम दे दो
कभी चाय काॅफी ही बना लो
जरा उसके हाथ में भी पकड़ा दो
थोड़ा टी वी उसे भी दिखा दो

अब तक थे सब घर के बाहर
काम की आपाधापी
अब तो है घर पर बैठे
जरा उसकी भी कदर कर लो
जिसको मिलती कभी न छुट्टी
क्या इतवार क्या कर्फ्यू
सब उसके लिए एक समान
घर को घर समझ लो
घरनी को भी थोड़ी छुट्टी दे दो

इनका मत करो तिरस्कार

आज सब कुछ धरा का धरा रह गया
वह दोस्त वह मित्र वह रिश्तेदार
वह सोसायटी वह दोस्ती
जिसकी खातिर हम करते थे
अपनों को नजरअंदाज
वह होटल वह रिसोर्ट
जिसके कारण घर था सराय
वह पिज्जा और बर्गर
जब हम अपनी रोटी को रहे थे भूल
घर का खाना था बेस्वाद
आज कठिन बेला में लगता है सब प्यारा
करोना ने जता दिया
अपने तो अपने ही होते हैं
घर तो घर ही होता है
रोटी तो रोटी ही होती है
यह सब ही है मुसीबत के संगी
इनका मत करो तिरस्कार

जरा दया कर दो

हमारे सुख दुःख के साथी
यह पशु पक्षी
आज उन पर भी बन आई है
सडकों पर भूखे प्यासे
उनका भी ख्याल रखना है
अपने साथ साथ
कुछ उनके लिए भी रख देना है
कुत्ते ,बिल्ली ,गाय
भटक रहे हैं
खाना ढूंढ रहे हैं
हम घर में हैं
कुछ न कुछ इंतजाम कर लिया है
उनके लिए भी थोड़ा सा निकाल लो
भूखों मत मरने दो
यह मूक जानवर है
हमारे सहारे ही है
कुछ रख आओ
उन पर भी दया दिखा दो
कुछ भला कर दो
पुण्य बटोर लो

जरा ठहर जा वो मुसाफिर

अब तो रूक जा
जरा ठहर जा
वो मुसाफिर
यह देश है तेरा
यह जमीन है तेरी
इस पर अधिकार है तेरा
अपना पसीना बहाया है
दिन रात एक किया है
तेरी ही बदौलत है ये सडके
ये आलीशान गगनचुंबी इमारतें
अभी है संकट की बेला
इतना न हो हताश
यह जमी भी तेरी
यह शहर भी तेरा
यह सरकार भी तेरी
जरा सब्र कर
जरा ठहर जा
सब ठहर गए
बस ,ट्रेन और यातायात के साधन
तू कितना चलेगा
तू अकेला नहीं है
सब है फिक्रमंद
बहुत मूल्यवान है तू
अभी तो देश को तुम्हारी जरूरत है
तुम्हारा सहभाग बिना तो कुछ भी नहीं
माना कि मुश्किल घडी है
पर तू भी कहाँ कमजोर है
जहाँ है जैसे है वही रूक जाओ
थोड़ा ठहर जाओ
जरा सुस्ता लो
चलना तो है ताउम्र
गाँव है तुम्हारा
पर यह शहर भी तो नहीं है बेगाना
खून पसीने से सींचा है
आसरा और रोजी-रोटी का है सहारा
तब मत जाओ
अब तो रूक जा
जरा ठहर जा
वो मुसाफिर

Saturday, 28 March 2020

करोना ने बहुत कुछ सिखा दिया

करोना ने बहुत कुछ सिखा दिया
हम भूल गए थे जीना
वर्कोहलिक बन गए थे
काम के सिवाय कुछ न सूझता था
घर को सराय बना दिया था
करोना ने जीना सिखा दिया
घर में बैठ बतियाना भूल गए थे
सब अपने अपने में थे
इसने साथ लाकर खडा कर दिया
एक जगह सबको बिठा दिया
अपनों से अपनों की दूरी मिटा दी
पुराने दिन लौटा दिए

घर का स्वाद जीभ पर न चढता था
होटल के आगे वह फीका लगता था
त्यौहार में घर से अच्छा रिसोर्ट लगता था
घर के लोग से भले बाहर की सोहबत भाती थी
अपना काम करना भारी लगता था
बस दूसरों पर निर्भर रहना था
घर काटता था
कदम रूकते नहीं थे
बाहर जाने को हर वक्त तत्पर रहते थे
आज वो दहलीज पर ही रुक गए हैं
बाहर जाने पर पाबंदी जो है

भगवान के नाम पर
धर्म और जाति के नाम पर
दंगे फसाद जो होते थे
उस पर पूर्ण विराम लग गया है
अब तो सब दहशत में
दहशत फैलाने वाले भी डर कर घर बैठ गए हैं
सबको एक पटरी पर ला खड़ा कर दिया

जहाँ मन किया वहाँ थूका
स्वच्छता का जी भर चीर हरण किया
मल मूत्र का विसर्जन किया
पान की पीको से हर चौराहे को लाल किया
कूडा कचरा तो इस तरह डाला
जैसे कि हर जगह कूड़ेदान हो
जूते चप्पल उतारना भूल गए
नमस्ते करना छोड़ दिया
हाय ,हैलो और हाथ मिलाना
बस यही करते रह गए

गरीब की बीमारी नहीं
यह अमीर से आई है
अपने वतन को तुच्छ लेखते
आज वतन की याद आई है
जब जान पर बन पाई है
डाक्टर और पुलिस को कोसने वाले
उनसे हाथापाई करने वाले
अब उनमें भगवान देखने लगे हैं
नियम को तोडने वाले अब नियम का पालन करने लगे हैं
भीड़ जमा करने में माहिर
अब अकेले रहना पसंद कर रहे हैं
सब जान रहे हैं
यह जानलेवा है
तब जान की कीमत समझ में आ रही है
आवारागर्दी पर लगाम लग रही है

सबको डरा दिया
सबका अहंकार तार तार कर दिया
शक्तिशाली को लाचार कर दिया
करोना ने बहुत कुछ सिखा दिया

Friday, 27 March 2020

जीवन की जंग

हम मजबूर
तुम मजबूर
हर दर पर पहरेदार
सब है परेशान
सब है सतर्क
कोई नहीं बेखबर
भगवान के दर भी है बंद
हर तरफ है बंद
सब तैयार है
क्योंकि सांस न हो जाय बंद
मन में है आस
यह भी समय बीतेगा
जीवन अपनी जंग जीतेगा

Thursday, 26 March 2020

अपने घर में ही रहे

घर में बैठना अच्छा नहीं लग रहा है
बोर हो रहे हैं
अफरा तफरी का मन कर रहा है
सडक पर निकलने का मन कर रहा है
मटरगश्ती करने का मन कर रहा है
सुबह की सैर पर जाने का मन कर रहा है
यह क्या लाॅक डाउन का झमेला
पिंजरे में कैद पंछी की हालात
शुक्र मनाए
उस खुदा का
आपके पास घर तो है
छत है आसरा है
उनका क्या
जो सडक पर ही रहते हैं
वही फुटपाथ से शुरू
वही पर खत्म
खाने को मोहताज
आप की स्थिति तो ऐसी नहीं है
बहुत बेहतर है
घर है
खाना है
मनोरंजन के साधन है
हर सुख सुविधा
तब कुछ समय तो बिताइए घर में
अपने लिए
अपनों के लिए
यह तूफान भी जाएंगा
बादल भी छंटेगे
फिर वही छटा होगी
वही आप होंगे
वही लोग होंगे
वही गुंजार होगा
वही खुशनुमा माहौल होगा
इस अंधेरे की सुबह भी होगी
सुबह होने तक इंतजार करें
अपने घर में ही रहे

Wednesday, 25 March 2020

निर्भया के दोषियों के वकील ए पी सिंह

बहुत समय से चल रहा था निर्भया केस
चर्चित भी रहा
समाचार की सुर्खियाँ बनता रहा
दो लोग इसमें खास थे
एक निर्भया की माँ आशा देवी
दूसरे आरोपियों के  वकील ए पी सिंह
एक सजा दिलाना चाहती थी
दूसरा माफी दिलाना चाहता था
दोनों अपने मैदान में डटे थे
बहुत आलोचना भी हुई ए पी सिंह की
पर वह डटे रहे मैदान
उनका पेशा जो था
अपने मुवक्किल की पैरवी करना
हर संभव कोशिश की
सात साल का समय लगा दिया
सारे दांव पेंच लगाए
संविधान की हर धारा का उपयोग किया
और चाहे जो कोई कुछ कहे
पर काबिल वकील तो अवश्य है
पेशे में पूरी ईमानदारी
न किसी दवाब के आगे झुके
न केस को मंझधार में छोड़ा
जी जान से लडे
अब तो मुजरिमों को फांसी हो गई है
एक माँ जीती
दूसरा वकील साहब भले बचा न सके
उम्र कैद तक न ला सके
पर उन्होंने प्रयास नहीं छोड़ा
क्या सही होता
क्या गलत होता
वह तो खत्म
पर एक बात तो माननी पडेगी
जो अपराधी के लिए इतनी शिद्दत से लड सकता है
वह बेगुनाह को तो सजा होने ही नहीं देगा
आखिर कितने लोग हैं
जो अपने पेशे के प्रति ईमानदार हैं

कब होगा बीमारी से निजात

आज अमीर और गरीब सब एक जैसे
सब घरों में बैठे
सब अपना काम खुद कर रहे
आज न किसी के लिए रविवार
न किसी के लिए सोमवार
आज न कोई मालिक न कोई नौकर
सब बंद
सब घबराएं
हर कोई डरा
छोटा हो या बड़ा
जवान हो या बूढा
मर्द हो या औरत
महलों में हो या झोपड़ी में
हिंदू हो या मुसलमान
देशी हो या विदेशी
महामारी का फैला ऐसा जाल
जिससे हर कोई परेशान
यह खेल प्रकृति का
विज्ञान भी दिख रहा लाचार
कब होगा इससे छुटकारा
सभी को है इंतजार
कब होगा इस बीमारी से निजात

घर में हैं जेल में नहीं

घर में बैठना है
और क्या करना है
अब समझ आएगा
घर में बैठना
इतना आसान नहीं
खाने का काम नहीं
जो रहते तुम्हारी खातिर
हर वक्त तैयार
घर में ही बीतता
उनका सारा वक्त
वे घर संभालते हैं
तब तुम निश्चिंत रहते हो
उनका योगदान बहुत अमूल्य
वे रहते घर में हैं
तुम रहते बाहर हो
हर दारोमदार
खुशी खुशी निभाते हैं
ख्याल रखते हैं
चाय से लेकर भोजन
साफ सफाई से लेकर कपडे
बच्चों से लेकर रिश्तेदार
राशन से लेकर दवाई
दूध - फल से लेकर सब्जी
सब उनके जिम्मे
अब मौका मिला है
साथ निभाओ
घर में रहो
हाथ बटाओ
कुछ सुनो कुछ सुनाओ
कुछ अपनी कुछ उनकी
घर में ही है आप
अपने ही घर में
जेल में नहीं
कुछ दिनों की तो बात है
बाहर निकल उसे मत बिगाडिए
अपनों के साथ रहे
घर में शांतिपूर्वक समय बिताए
बीमारी से दूर
अपनों के संग
यही है इस आपदा के समय
  मूलमंत्र

Tuesday, 24 March 2020

हर नागरिक का कर्तव्य

पुलिस को मारों
डाक्टर को मारों
अब यही तारणहार बने है
मरने से बचा रहे हैं
ईश्वर तो नहीं है
इंसान के रूप में ईश्वर अवश्य है
अपना कर्तव्य बजा रहे हैं
दिन रात एक कर रहे हैं
सबका दारोमदार इन पर है
सेवा में जुटी है
यह हमारी पुलिस है
यह हमारे डाक्टर हैं
हर संभव कोशिश कर रहे हैं
जान बचाने की
अपनी परवाह किए बिना
इनकी जान हमें भी प्यारी होनी चाहिये
इन पर हाथ उठाना
यह शोभा नहीं देता
जो हाथ रक्षा कर रहे हो
उसकी हिफाजत
उसका सम्मान
हर नागरिक का कर्तव्य
इन्हें भगवान मत बनाइये
यह कोशिश करते हैं
जीवन देने की
गारंटी नहीं दे सकते
होगा तो वही जो ऊपर वाला चाहेंगा
अपेक्षा करें उपेक्षा नहीं
देव नहीं पर देव दूत अवश्य है
विश्वास करें
यह हमारे दुश्मन नहीं
हितैषी है

क्या करेंगा करोना

कुछ हो चाहे जाय
पर यह बात तो है
देशवासी अपने प्रधानमंत्री को कितना चाहते हैं
सबने उनकी बात मानी
पर शायद जो सोचा था
वैसा हुआ नहीं
मोदीजी ने भी नहीं सोचा होगा
जनता इस तरह से करेंगी
ढोल ताशे और गरबा करेंगी
यही वोट देनेवाली जनता भी है
वह कब क्या करने वाली है
यह सबकी समझ से बाहर
यह भारत का लोकतंत्र है
किस तरह समझाना
यह भी सीखना होगा
कहा कुछ करा कुछ
कर्फ्यू की ऐसी की तैसी
थाली बजी ताली बजी
जयघोष हुआ
चीन को कोसा
करोना को गो कहा
सबने समझ लिया
करोना सचमुच भागा
करोना भागा
ऐसे नहीं चलेगा
जब लाठी बजेगी
डंडे पडेंगे
तब जाकर कुछ असर होगा
ढम ढमा ढम बिना
कोई उत्सव पूरा नहीं
तब इन पर ढम ढमा ढम हो
तब कुछ बात बने
पुलिस और प्रशासन कठोर बने
बहुत धज्जियां उड़ाई इनकी
अब तो लाठी भांजे
तब जाकर यह मानेगे
डर जरूरी है
नहीं तो फिर
हर कोई यही कहेगा
मेरी मर्जी
मैं यह करू
मैं वह करू
चाहे जो करू
क्या करेंगा करोना
क्या करेंगा और कोई

फिर न मिलेगी दोबारा

बहुत घूम लिए
बहुत काम कर लिए
बहुत मौजमस्ती हो ली
अब तो जीवन पर बन आई है
कुछ तो स्वयं पर नियंत्रण कर लो
यह समय है बडा कठिन
कोरोना ने घेरा है
जीवन लीलने को तत्पर है
तब तो सावधान होना होगा
घर पर ही रहना होगा
न ज्यादा मिलना जुलना
बस दूरी बनाए रखना
वह अपने हो या पराए
विश्व संकट के कगार पर
मानव पर बन आई है
विज्ञान भी लाचार दिख रहा है
यह महामारी कोप बनकर ढा रही है
ईश्वर के द्वार भी बंद
आवागमन के साधन बंद
हर सरकार और शासन प्रयत्नशील
जनता के जीवन का प्रश्न जो है
युद्धस्तर पर तैयारी
सब सज्ज है
पुलिस ,प्रशासन ,अस्पताल
कुछ ज्यादा नहीं करना है
अपना योगदान देना है
घर पर ही रहना है
यह बीमारी चली जाय
फिर मिल लेना एक दूसरे से
घूम फिर लेना
मौज मजा कर लेना
काम कर लेना
पूरी जिंदगी पडी है
यह तो कुछ दिन की बात है
यह भी गुजर जाएंगा
बस सावधान रहना है
जिंदगी बचाना है
बेशकीमती है यह
फिर न मिलेगी दोबारा

Sunday, 22 March 2020

सभी को सलाम

आज थाली बजी
घंटी बजी
शंख बजे
ताली बजी
यह सब उनको अर्पण
जो सेवा में हर दम तत्पर

आज का नाद आज की घनघनाहट
पुलिस वालों के नाम
डाक्टर और नर्स के नाम
सफाई कर्मचारी के नाम
सोसायटी के वाॅचमैन के नाम
बैंक कर्मचारियों के नाम
बिजली विभाग और जलविभाग वालों के नाम
हर उस सरकारी ,गैर-सरकारी के नाम
अत्यावश्यक सुविधा उपलब्ध करा रहे हैं
हम घर में सुरक्षित रहे
वह अपनी ड्यूटी निभा रहे
मीडिया कर्मियों के नाम
जहाँ घर में बैठ पल पल का हाल जान रहे सब
सभी को सलाम
सभी को धन्यवाद
सभी को शुक्रिया
फिक्रमंद प्रधानमंत्री ,मुख्यमंत्री ,स्वास्थ्य मंत्री
और जनता जनार्दन
हर सहयोगी को सलाम
यह नाद दिल से निकली आवाज
सभी भागीदारों को सलाम

करोना से दूर

जान है तो जहान है
यह महामारी है
जानलेवा है
अपने साथ दूसरों की जान भी खतरे में डालना
यह इसका काम है
इसलिए तो सब कुछ छोड़ छाड
घर बैठो भैया
किसी के जान का दुश्मन मत बनो
खुद की रक्षा
दूसरों की रक्षा
सब हाथ तुम्हारे
आज संयम का पालन नहीं
तब न स्वयं को माफ करोगे
न आनेवाली पीढियाँ माफ कर पाएँगी
तब कोशिश करो
घर में बैठ जाओ
न बाहर निकलो
न जीवाणुओं के संपर्क में आओ
समाज के योगदान में अपनी भूमिका निभाओ

लडे इस बीमारी पर सब साथ साथ

यह है हमारी मुंबई
भागती दौड़ती
कभी न रूकती
कभी न थमती
आज शांत है
सन्नाटा पसरा है सडकों पर
प्रधानमंत्री की अपील जो है
उस पर अमल करना है
मुंबईवासी इसके लिए तैयार
रात गुलजार भले न हो
जिंदगी गुलजार रहे
तब स्वयं पर नियंत्रण करें
कुछ समय की बात है
यह करोना आपदा भी जाएंगी
तब तक नाइट लाइफ से दूर रहे
मनोरंजन और चकाचौंध से दूर रहे
घर मे रहे
सादा भोजन करें
जिम को छोड़ घर में व्यायाम करें
जीभ का स्वाद छोड़े
अपना काम स्वयं करें
आज ही नहीं
कुछ दिन और कर्फ्यू लगा ले
बिना जरूरत न निकले
भीड़ न करें न शामिल हो
मुंबई का यह नजारा कभी नहीं दिखा होंगा
आज इस मुंबई जान पर बन आयी है
थोड़ा विश्राम करने दें
आपके साथ साथ शहर को भी एकांतवास दें
सांस लेने दें
ईश्वर से दुआ करें
यह विपदा खत्म हो
मुख्यमंत्री जो हमारा मुखिया है
उनका हर संभव साथ दे
अपनी सहायता करें
करोना को भगाने में अपनी भी साझीदारी दर्ज कराए
यह मुंबई है मेरी जान
हिंदुस्तान की आर्थिक राजधानी
मिनी इंडिया
मिसाल पेश करें
हर वर्ग
हर जात
हर धर्म
हर भाषाभाषी
भारत का हर नागरिक सुरक्षित रहें
विश्व का भी हर नागरिक
वसुधैव कुटुंबकम
लडे इस बीमारी से
सब साथ सब एक

Friday, 20 March 2020

निर्भया को न्याय

इंतजार खत्म
इंसाफ मिला
दोषियों को फांसी
बहुत प्रयत्न हुए
बचाने के
तरह तरह के दलील
कुछ अपराध माफी के काबिल नहीं
जीवन बहुत अमूल्य है
सही भी है
पर न्याय भी तो होना चाहिए
किसी का जीने का अधिकार छिन लेना
उसकी बर्बरता से हत्या करना
बलात्कार ही नहीं
उसके साथ निर्शंस व्यवहार
उनको माफी कैसे मिल सकती थी
यह तो इंसान नहीं
हैवान से भी बदतर
निर्भया की माँ को तो शांति मिली होगी
बेटी तो वापस नहीं आएगी
पर दोषियों को भी नहीं बख्शा
अपनी लडाई लडती रही
आशा नहीं छोड़ी
अपने नाम के अनुरूप
सभी बेटियों के मन में आशा जगी है
न्याय तो मिलेगा
विश्वास मजबूत हुआ है
न्याय व्यवस्था के प्रति
निरपराध को न्याय
अपराधी को दंड
देर लग सकती है
जीवन का सवाल है
सब पहलू पर विचार करना होता है
निर्भय रहे हर नागरिक
न्याय प्रणाली बहुत सशक्त है
न्याय मिलेगा

इम्तिहान तो ताउम्र

बच्चे थे छोटे थे
परीक्षा देते रहते थे
क्लास दर क्लास
डरते रहते थे
पेपर कैसा आएगा
पेपर कैसा जाएगा
घर वालों का डर अलग
कक्षा में क्या प्रभाव रहेगा
रिश्तेदारो में
हमेशा जी जान से लगे रहते थे
सोचते थे कब यह जंजाल खत्म हो
कब जीवन व्यवस्थित हो
पर कहाँ पता था
यह इम्तिहान कभी खत्म नहीं होंगे
स्कूल - कालेज छूट गए
अच्छी नौकरी भी लग गई
शादी ब्याह ,बाल बच्चे भी हो गए
सब कुछ लगा
सुरलित चल रहा है
पर जिंदगी कहाँ छोड़ती है
वह तो ताउम्र इम्तिहान लेती है
बचपन गया
जवानी बीती
इम्तिहान अभी भी जारी है
अब तो लगता है
यही नियति है
कुछ बिना मेहनत के पास हो जाते हैं
कुछ जीवन भर एडिया घिसते रहते हैं
जब पीछे मुड़ कर देखते हैं
तब लगता है
जहाँ से चले थे
वही पर खडे हैं
बदला कुछ भी नहीं
बस समय आगे निकल गया
हम तो वैसे ही है
वहीं संघर्ष
वहीं हालात
शायद पहले से भी कठिन
सही है
बचपन छूट जाता है
इम्तिहान तो ताउम्र

करोना कैसे पीछा छोड़ेगा

प्रकृति से खिलवाड़
उसका है दुष्परिणाम
हर जीव जंतु को रहना है
पर अपने स्वाद की खातिर
इनका बनाता सूप
इन्हें भूनता
इन्हें तलता
इन्हें तडपाता
नमक मिर्च छिडक
स्वाद ले लेकर खाता
सैकड़ों व्यंजन
अलग अलग तरह से पकाकर
टेबल पर परोसा जाता
जीभ से चाटकर
दांतों से काटकर
चबा चबाकर पेट में डाला जाता
अब वह जागृत हो उठा है
आक्रमणकारी हो रहा है
समझ नहीं आ रहा
किस तरह इससे छुटकारा पाया जाय
पता नहीं चल रहा
किससे आ रहा है
फैल रहा है
कैसे रोके
काल बन खडा है
यह करोना है
क्या क्या करें
कौन सा उपाय करें
यह पीछा छोड़े

Thursday, 19 March 2020

वायरस तो वायरस है

वायरस तो वायरस है
उसका तो कोई जात पात न धर्म
उसका एक ही कर्म है
वह बीमार करना
फिर वह चाहे कोई मजहब का हो
जब अपनी गिरफ्त में ले लेता है
तब जानलेवा साबित होता है
इससे दूर रहना है
इसका यह मतलब नहीं
ईश्वर और खुदा से दूर होना
इबादत तो कहीं भी हो सकती है
सब करता ऊपरवाला
पर हमारी भी तो कुछ जिम्मेदारी
कुछ नियम पालने है
कुछ बातें टालनी है
यह ज्यादा दिन नहीं
कुछ दिन का मेहमान
वह भी बिन बुलाये
तब भगाना तो होगा
हर तरकीब लगानी होगी
ऊपरवाले से भी प्रार्थना करनी होगी
यह जल्द से जल्द जाए
हम तुम्हारे दर पर आए

जा करोना जा करोना

करोना आया है
सारी दुनिया में भय समाया है
बडा खूंखार है यह
नहीं इसके पास दया माया
अपनी गिरफ्त में जब लेता है
तब सबसे दूर कर देता है
कुछ दिनों के लिए सब
  काट देता है
पर इसकी काट का अभी तक नहीं इलाज
खौफनाक तो है
जानलेवा भी है
तभी तो कहता है 
हमेशा हाथ अच्छी तरह से धोओ
यहाँ वहाँ मत थूको
नाक मत छिनको
किसी तरह भी मत छीको
गंदगी से दूर रहो
मुँह ढाक कर रखो
हाथ मत मिलाओ
नमस्कार करो
भीड़ भाड़ से दूर रहो
बिना कारण बाहर मत जाओ
इसको तो हराना है
ना करोना कहना है
तब तो यह सब करना है
अब तक बहुत कर लिया खिलवाड़
सेहत पर ध्यान देना है
सडे गले जानवरों के मांस
और किसी भी जीव के मांस को खाने से बचना है
यह जीव ,जानलेवा हो गए
सारी दुनिया को अपने चपेट में ले लिए
कभी इनको मारा
आज हमें मार रहे हैं
शाकाहार अपनाओ
इम्यून सिस्टम मजबूत बनाओ
करोना को कहो
ना आ ना आ
जा करोना जा करोना

Tuesday, 10 March 2020

रंग तो रंग है

रंग तो रंग है
अपने आप में बेमिसाल है
हर रंग की अपनी अहमियत
अकेले हो तो भी आकर्षक
साथ में हो तो फिर क्या कहना
इंद्रधनुष बन जाते हैं
देखने वाले देखते रह जाते हैं

जीवन भी तो रंगों का मेला
कभी साथ तो कभी अकेला
अपनी पहचान बनाता चलता
समय समय पर अपनी छाप छोड़ता जाता
कुछ ऐसे कि कभी न भूलते
तन - मन पर हावी हो जाते

रंग तो बहुत
चुनाव तो हमें करना है
कितना और कौन सा रंग चढने देना है
किससे दूरी बनाए रखना है
इंद्रधनुष सा जीवन बनाना है
आकाश में चमकना है
सबसे अलग हटकर रहना है
तब सावधान भी रहना है
ऐसा रंग चढे कि
सालों साल भी लोग याद रखे

Monday, 9 March 2020

वह नारी है

मैं नारी हूँ
मैं वह राधा हूँ जो जिसने कन्हैया को द्वारिकाधीश बनाया
मैं वह सीता हूँ जिसने राम को आदर्श राजा बनाया
मैं वह उर्मिला हूँ जिसने लक्ष्मण को महान व्रती तपस्वी बनाया
मैं वह यशोधरा हूँ जिसने सिद्धार्थ को भगवान बुद्ध बनाया
मैं वह कुंती हूँ जिसने राजा पांडु को पांच पांडवों का पिता बनाया
मैं वह द्रोपदी हूँ  जिसने पांचों पांडवों को एकसूत्र में बांध कर रखा
इनकी महानता के पीछे त्याग मेरा था
मैं टूटी
मैं बंटी
मैं परित्यक्ता बनी
मैं विरहणी बनी
मैं सिसकती रही
मैं ऑसू पीती गई
मैं समझौता करती गई
मैं त्याग की प्रतिमूर्ति बनती रही
मैं स्वयं बिखरती रही
दूसरों को संभालती रही
दर्द सहा मैंने तब ये महान बने
मर्यादा कभी नहीं लांघी तभी तो मर्यादा पुरुषोत्तम बने
प्यार को भी बांटा
पार्थ ने स्वयंवर में वरण किया
पत्नी बनी पांचों भाईयों की
जुआ खेले धर्मराज
दांव पर लगाया मुझे
आदर्श भाई बने लक्ष्मण
विरहणी बनी मैं
शांति का संदेश दिया बुद्ध ने
अशांत रही मैं
मथुरानरेश बने कृष्ण
प्रेम में पागल बन भटकती रही मैं
मेरा अस्तित्व
मेरी भावना तार तार होती रही
मैं जोड़ती रही
संवारती रही
वह इसलिए कि मैं नारी थी
इनकी शक्ति थी
त्याग करना सबके बस की बात नहीं
वह तो स्त्री ही कर सकती है
धरती है
धीरज है
सबकी धुरी है
वह डगमगाई तो प्रलय निश्चित
वह नारी है