पत्नी मैं पांच पांडवों की
महाबलशाली, महावीरों की
हस्तिनापुर और इन्द्रप्रस्थ की महारानी
राजा दुपद्र की बेटी
फिर भी रही मैं हारी
अगर सखा कृष्ण न होते तब
भरी सभा में निर्वस्त्र करने का प्रयत्न
मेरा क्या दोष था
हमेशा मेरे साथ ही अन्याय क्यों ??
पांच पतियों की पत्नी बना दिया गया
स्वयंवर किसी एक ने जीता
बनी सबकी पत्नी
औरत नहीं मुझे वस्तु समझा गया
तभी तो दांव पर लगाया था धर्मराज युधिष्ठिर ने
तब उनका धर्म कहाँ गया था
चुपचाप सर झुकाएं सुन रहा थे
जब मुझे जंघा पर बिठाने की बात हो रही थी
मुझे वेश्या कहा जा रहा था
ऐसा धर्म पालक पति
क्या पत्नी के प्रति धर्म नहीं था
ऊपर से मुझे कहा जाता है
मैंने भेद किया पतियों में
मैं पत्नी तो थी सबकी
पर मनसा प्रिया हमेशा पार्थ की ही रही
तभी पहाड़ चढते समय सबसे पहले मैं बर्फ में समाई
क्योंकि यह पाप तो मैंने भी किया था
कर्तव्य तो मैंने पत्नी धर्म का निभाया
पर मन पर तो किसी का अधिकार नहीं
मुझे तो कभी समझा ही नहीं गया
न मेरी पीडा को महसूस किया गया
पांच पतियों की पत्नी होने का दंश मैंने सहा है
कभी व्यंग्य कभी अपमान स्वरूप
मेरी स्थिति क्या थी
वन वन भटकना
खाने - पीने और सुख - सुविधा का ख्याल रखना
एक सूत्र में बांधे रखना
यह मैंने बखूबी निभाया
मैं तो शक्ति थी पांडवों की
यह मुझे पता था
इसलिए मुझे लेकर कभी विवाद नहीं हुआ
हाँ मैं हर बार मरी
फिर वह चाहे
जयद्रथ प्रसंग हो
चीर हरण हो
मर तो मन उसी दिन गया था
जब स्वयंवर में मछली की ऑख फोडी गई थी
पांचों भाईयों में बांटी गई थी
दोष मुझे दिया जाता है
महाभारत का कारण मैं थी
न मैं थी न दुर्योधन था
बीज तो तब पडा था
जब देवव्रत भीष्म का अधिकार छीना गया था
माता सत्यवती के कारण
जब काशी नरेश की कन्याओं को जबरन लाया गया था
जब महाराज धृतराष्ट्र का ब्याह माता गांधारी से हुआ था
दुर्योधन तो उसी वृक्ष का फल था
हस्तिनापुर में नारियों का अधिकार छीना गया था
अन्याय हुआ था
वह कहाँ जाता
उसकी एक कडी तो मैं भी बनी
कोई हर कर आया
किसी का चीरहरण
तब महाभारत अवश्यभांवी था ।