उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद को कौन भूल सकता है
भारतीय किसान का जीवंत चित्रण उनसे अच्छा कौन कर सकता है
गोदान के होरी को उन्होंने अमर कर दिया
भारत का गॉव उनकी आत्मा में बसती थी
हर सामाजिक बुराईयों का चित्रण उन्होंने किया है
उन्होंने विधवा विवाह का प्रश्न ही नहीं उठाया पर विधवा शिवरानी देवी से विवाह भी किया
निर्मला में दहेज समस्या को उठाकर हर परिवार की सच्चाई दिखाई
गबन ,सेवासदन ऐसे न जाने कितने
कफन कहानी में जो व्यंग्य किया है जीने पर कपडा - खाना नहीं
मरने पर नया कफन
सवा सेर गेहूँ में ब्राहण व्यवस्था पर जम कर प्रहार
जो हँस नहीं सकता जो रो नहीं सकता
जो गुस्सा नहीं हो सकता
जो गलती नहीं कर सकता
ऐसा मनुष्य इंसान नहीं देवता नहीं हो जाएगा
मनुष्य तो कमजोरियों का पुतला है
यही कमजोरियॉ तो उसे मनुष्य बनाती है
दोषरहित चरित्र तो देवता का हो जाएगा
और हम उसे समझ ही नहीं पाएगे
हिन्दी साहित्य मुंशी जी के बिना अधूरा है
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Sunday, 31 July 2016
मुंशी प्रेमचंद
माटी कहे कुम्हार से
एक कुम्हार था वह एक दिन मिट्टी की चिलम बना रहा था ,चिलम पूर्ण होने के कगार पर थी
अचानक कुम्हार का विचार बदल गया
उसने चिलम को तोडकर घडा बनाना शुरू किया
माटी ने उससे पूछा कि उसने ऐसा क्यों किया
चिलम अच्छी तो बन रही थी
कुम्हार ने उत्तर दिया
ऐन वक्त पर मेरी मति बदल गई
माटी ने उत्तर दिया
आपकी मति बदलने से मेरा जीवन बदल गया
मैं चिलम रहती तो मुझमें तंबाखू डालकर सुलगाया जाता
मैं हमेशा जलती रहती और लोगों को भी जलाती
घडा बनकर पुण्य का काम करूगी
संवयं शीतल रहूगी और लोगों को भी शीतल करूंगी
अगर हम सही निर्णय लेते हैं तो स्वयं तो खुश होगे ही दूसरों को भी खुश कर सकेगे
एक सही निर्णय किसी का जीवन बदल सकता है
गौ - वंश के नाम पर राजनीति
गौ माता हमारी पूजनीय है
देवी - देवताओं का उनमें निवास है
पर जबरदस्ती दूसरों पर उसको थोपे???
ईश्वर की पूजा हमारी इच्छा है करना या न करना
आज लोगों को शक के आधार पर मारा- पीटा जा रहा
चर्मकार जानवरों के चमडे से ही चप्पल बनाता था
दलित भी हिन्दू ही है
हमारा और उनका ईश्वर एक ही है
आज तो ब्रेन डेड होने पर मनुष्य की चमडी ,ऑखें, लिवर ,हार्ट सभी दान कर दिया जा रहा है
पारसी लोग तो मुर्दे शरीर को कुएं पर बनी जाली पर डाल देते हैं
ताकि चील ,कौए ,गीध जैसे पक्षियों का पेट भरे
मरने के बाद भी शरीर का उपयोग हो
जानवर का लोग खाने में उपयोग करते रहे हैं
अलग- अलग घर्म के अलग- अलग.
गौ रक्षा हमारी जिम्मेदारी है
पर मरे हुए जानवरों का क्या??
उठा कर ले जाना ही पडता है
अगर मना कर दिया तो क्या हालत होगी
एक वर्ग और जाति के लोग सदियों से यह कर रहे हैं
यह उनकी रोजी - रोटी से जुडा था
कसाई समाज भी इस व्यवसाय से जुडा है
अगर गाय या बैल बूढे हो जाय तो क्यों उनको बेच दिया जाता है
क्यों नहीं आजीवन उनकी देखभाल की जाय
आज बूढे मॉ - बाप की तो कोई देखभाल नहीं करता
तो ये तो मूक जानवर है
इनको मोहरा बनाकर उन्माद फैलाया जा रहा है
दंगे करवाए जा रहे हैं
जो सरासर गलत है और जो भी इसमें शामिल है उनके लिए कडे से कडे दंड का प्रावधान हो
आज अमेरिका जैसा देश हमारी सहिष्णुता को लेकर चिंतित है
कल दूसरे होंगे
यह सभी का फर्ज बनता है कि ऐसी ताकतों को हावी न होने दे
सहिष्णु हिन्दू धर्म को बदनाम न किया जाय
यह दधिची का देश है जहॉ हड्डियॉ तक दान दे दी थी
समाज कल्याण हेतु
दंगों की आग में हाथ सेकने वालों से सावधान
शहर में चुलबुलाहट और खुसफुसाहट थी
कुछ जगह आग लगी थी
मुहल्लों में द्वेष पनप रहा था
आग लगी हुई थी ,यह दिखाई दे रहा था
पर यह आग इतनी जल्दी मेरे दरवाजे तक पहुँच जाएगी
और झकझोर देगी मुझे और परिवार को
दूर कोसों से आ रही स्फोट की आवाज पास आने लगी
धीरे- धीरे
कानों के परदे फटने लग गए थे
खून डर से जमने लगा था
कुटुंब की चिंता सताने लगी थी
स्फोट हुआ ,जगह- जगह रक्त ही रक्त
विनाश का तॉडव
अब चर्चा होगी
आग किसने लगाई
बारूद- बम कहॉ से आया
किस संगठन का हाथ है
कौन शह दे रहा था
आग के साथ गीले के साथ सूखा भी जलता है
निरपराध लोग मारे जाते है
जिनका कुछ लेना- देना नहीं
दुख तो इस बात का है कि
संपूर्ण जंगल जल कर राख होने पर
हमें अहसास होता है
अगर चिंगारी भडकने के पहले ही बुझा दी होती तो
लोगों का यह हाल नहीं होता
कभी धर्म,कभी जाति ,कभी किसी और कारण
देश सुलग रहा है
आग भडक रही है
यह विकराल रूप न ले ले
इससे पहले ही बुझा दिया जाय
आग में हाथ सेकने वालों से दूर रहा जाय
Saturday, 30 July 2016
हम नश्वर सब कुछ ईश्वर
कभी सुना है अंधेरे ने सुबह न होने दी
बुराई ने अच्छाई को हराया
और असत्य ने सत्य को
देर तो होती है पर फैसला तो वक्त करता ही है
हर रात की सुबह तो होती ही है
सत्य भी पराजित नहीं होता
देर हो सकता है पर अंधेर नहीं
उसकी लाठी का वार सब पर होता है
उसके दरबार में कोई भेदभाव नहीं
वह तो समदर्शी है
राजा और रंक सबके लिए एक समान
घट- घट वासी है वह
उसकी मर्जी के बिना तो पत्ता भी नहीं हिलता
हर जीव में वास है उसका
न्याय तो वह करता है ऊपर बैठकर
हम तो नाचते हैं कठपुतली बनकर
नचाने वाला तो कोई और है
हम गलतफहमी में रहते हैं
जबकि हम ही नश्वर है
और सब कुछ ईश्वर है
साइकिल की सवारी सबसे भारी
मैं साइकिल बचपन की साथी
मुझ पर बैठ बचपन डोला
बडे होने पर विद्यालय पहुँचे
दोस्तों संग मौज - मस्ती की
जब चाहा उठाया और चल पडे
मैं भी हमेशा तुम्हारे साथ चली
कोई खर्चा नहीं ,बस थोडी सी हवा भरवाई
जितना चाहा उतना चलाया ,जहॉ चाहा ,उठाया - रखा
छोटी और संकरी जगह से भी पार करवाया
अच्छा व्यायाम भी करवाया
वातावरण को प्रदूषण मुक्त बनाया
मैं न पेट्रोल भरवाती न धुऑ फुकवाती
हॉ पर फर्राटा तो न भर सकती
मेरी चाल तो हा तेज पर तुम तो उससे भी तेज
चंद सेकंड में आगे पहुँचना ,सबको पीछे छोड जाना
आगे बढना तो ठीक है पर स्वयं को हानि पहुंचाकर
धुऑ- धुऑ होते - होते कहीं सब खत्म न हो जाय
और फिर मेरी याद आ जाय
अमीर- गरीब ,मजदूर से मालिक सबकी साथी
खेतों की पगडंडी से पक्की सडक तक
बचपन से ले बुढापे तक साथ निभाती
न लाइसेंस न उम्र का बंधन
फिर भी तुम मुझे भूला रहे
मैं तो फिर भी हर क्षण साथ दूंगी
बस मुझे मत भूलना
मेरी सवारी सबसे भारी
आया वसंत
बल खाती ,इठलाती ,पतली कमर लचकाती
हिरनी जैसी ऑखें ,लंबी - लंबी ग्रीवा
नागिन जैसे लहराते केश
हँसती - खिलखिलाती आ रही
नैनों को भा रही
वसंत आगमन का संदेश ला रही
सुनहरी स्वर्ण जैसी काया ,उस पर पीला मन भाया
हो गया सोने पर सुहागा
वाणी में मिठास घोलती
ऑखों के कटार से वार करती
सबको घायल करती
अदा पर अदा
नखरे तो है हजार
मदमस्त यौवन और वसंत
क्या संयोग है
खामोशी में भी तरंग है
हरियाली से भरा जग है
कोंपलें फूट रही
अंगडाई ले रही
सपने देख रही
यौवन खुमार पर
हॉ यह वसंत है ,वसंत की बहार है
जुमलों में कोई किसी से कम नहीं
नेताओ में आजकल एक नया शौक निखरकर आ रहा है वह है जुमला
सब एक से बढकर एक
हम किसी से कम नहीं
मॉ - बेटे की सरकार
सूट- बूट की सरकार
हर- हर मोदी
अरहर मोदी
ये तो दो बडे लोगों की बात हुई
दूसरे नेता तो कुछ न कुछ बोलकर विवाद खडा करते रहते हैं और सुर्खियों में छाये रहते हैं
वही खबरे दिन - रात चलती रहती है
काम को छोडकर तमाशा होता है
हर ,दूसरे को पटखनी देने को तैयार
पर यह काम में नहीं बात में
अाप तो इसमें सबसे माहिर
कुछ न कुछ तोहमत लगाते ही रहते हैं
बात किया जाता है या विज्ञापन दिया जाता है
जनता काम चाहती है
बोल बचन नहीं
नेता काम करें और दूसरों के प्रति कठोर शब्दों या अभद्र शब्दों का प्रयोग न कर काम करें
जातिगत और धर्मगत विद्वेष न फैला कर सौहाद्र कायम करें
नारियों के प्रति आदर रखना
यह सब उनकी नैतिक जिम्मेदारी बनती है
ऐसा कुछ न करें कि संसद भवन में प्रवेश करते समय ऑखें भी न मिला सके
व्यक्तिगत आक्षेप से बचे और सब मिलकर जनता की भलाई के लिए काम करें
सबका साथ होगा तभी सबका विकास होगा
विपक्ष है शत्रु नहीं
Tuesday, 26 July 2016
मेरा भैया
मेरा भैया नटखट ,भोलाभाला
देर तक सोता ,दोपहर तक नहाता
एक नंबर का आलसी
एक बार का काम चार बार में करता
दिन भर मोबाईल पर रहता
बारह बजे तक घर से बाहर रहता
दोस्तों संग मौज उडाता
मॉ की नाक में दम कर रखता
दिखने में कमजोर पर घर का असली मर्द है वह
उससे ही घर में रहती रौनक
पूरा दिन खाता
जो भी दे दो
अंडा- पाव है उसका प्यारा भोजन
पैसे - जेबखर्च को लेकर करता रोज लडाई
पर तो भी है सबका प्यारा
भैया न होता तो किसे बॉधती राखी
किससे लडती किससे झगडती
किसकी करती शिकायते
किससे आस लगाती ,किससे स्नेह दिखाती
मेरा भैया प्यारा भैया
हर रोज याद उसकी आती है
दूर गया है पढने जो
कैसे रहता कैसे खाता होगा मेरा नन्हा भैया
कुछ भी हो कभी शिकायत न करता
मॉ- पापा के साथ लडाई में मेरे संग हो जाता
कुछ भी न देता मुझको
ऊपर से ले लेता
और मुँह बनाकर बेचारा बन जाता
कैसा भी हो मेरा भैया
पर सबसे है प्यारा
मिट्टी का मोल न कोई जाना
मिट्टी का कोई मोल न जाना
सोना ,बहुमूल्य पर मिट्टी अनमोल
मिट्टी न होती तो धरती न होती
फसल और पैदावार कहॉ होता
बरसात में उठने वाली सोँधी सुगंध न मिलती
मिट्टी से पानी का घडा और मकान बने
आज भी घडे का सानी कोई नहीं
मिट्टी में ही खेले और बडे हुए
मिट्टी ने ही पेड - पौधों को जड से जकडे रखा
मिट्टी से मूर्ति बनी ,ईश्नर को आकार दिया
मिट्टी को जैसे चाहे इस्तेमाल किया
इसी पर हल चले
रौंदा गया तो ऊपजाउ बनी
जन्मते ही मिट्टी से पहचान
मरने पर भी इसकी ही जरूरत
दो मुठ्ठी मिट्टी से अंतिम बिदाई
अंत में इसी में मिल मिट्टी हो जाना है
माटी का शरिर माटी में
सही ही है ----
माटी कहे कुम्हार से तू क्यों रौंदे मोय
एक दिन ऐसा आएगा ,मैं रौंदूगी तोय
मिट्टी को कम मत आको ,वह अनमोल है
चंदा से भी प्यारा मेरे मामा
सबसे प्यारे ,सबसे अच्छे मेरे मामा
मॉ तो एक ही पर मा मा से बनते मामा
मॉ से दुगुना प्यार दिखाते
हर इच्छा को पूरी करते फिल्म देखने ,घूमाने ले जाते
मेरा हर जन्मदिन मनाते
मॉ से पिटने से बचाते
मेरे लिए टिचर से ले बच्चों तक से करते लडाई
नए- नए व्यंजन खिलाते
मॉ को भी डाट पिलाते
हर संकठ में साथ निभाते
चंदा मामा तो दूर से दिखते
मेरे मामा तो पास ही रहते
स्वयं के बच्चों से भी ज्यादा प्यार लुटाते
मॉ का झगडा हम पर कभी न निकालते
पापा नहीं रहते तो रहता आधार मामा का
पैसे - रूपये की भी परवाह न करते
नहीं मिलते सबको ऐसे मामा
मेरे अच्छे ,प्यारे मामा
नहीं भूलेगी वह २६ जुलाई की शाम
हर साल बारीश होती है
हर जगह पानी - पानी होता है
पर एक बारीश वह भी २६ जुलाई की बारीश
पूरी मुंबई पानी - पानी हो रही थी
हर मंजर खौफनाक था.
शाम से जो शुरू हुई बारीश थमने का नाम नहीं ले रही यह नजारा पहले कभी नहीं दिखा था
शहर समुंदर में तबदील हो गया था
जहॉ देखो पानी ही पानी
सडक ,रेल पटरी ,मैदान यहॉ तक कि दुमंजिले इमारते
जो जहॉ था वही थम गया
बच्चे पाठशाला में ,लोग दफ्तर में
यात्री रेल और बस में
लोग सडकों पर पानी के बहाव में
कहॉ जमीन कहॉ पानी समझ ही नहीं आ रहा था
कुछ बह गये तो कुछ वहीं दम तोड दिए.
हर सीढी ,प्लेटफॉम पर लोग खडे रहे
यहॉ तक कि गाय- भैंसे भी तबेलों में बंधी रह गई
बहुत से लोगों क्या पशु क्या लोग
सब बेहाल ,जाने गवानी पडी
रस्सी के सहारे लोगों को रेल से उतारा गया
गाडी और टेक्सी में कॉच बंद होने के कारण दम घुटने के कारण लोगों की जान चली गई
मुंबई ,पानी में तैर रही थी
आज भी वह मंजर ऑखों के सामने आता है तो रूह कॉप उठती है
देखते- देखते अपने लोग बहाव में बह गए
पानी ने न जाने कितनों को लील लिया
बिजली की रोशनी में चमचमाने वाला शहर अंधकार में घिर गया था
हमेशा चलने वाली मुंबई थम गई थी
आज भी बरसात आती है तो वह खौफनाक मंजर याद आ जाता है
आज फिर बारीश ने कहर ढाया है
मुंबई की गति को रोक दिया है
प्रकृति भेदभाव नहीं करती तो माता - पिता कैसे???
बच्चों में हमेशा मतभेद
मॉ - पिता पर पक्षपात का आरोप
इसको ज्यादा मानना ,मुझे कम मानना
जो संभव ही नहीं
एक ही कोख से जन्म देनेवाले पक्षपात क्यों करेंगे
प्रकृति सब पर एक ही समान मेहरबान होती है
चॉद अपनी चॉदनी सब पर फैलाता है
सूर्य अपना प्रकाश सबको देता है
बरखा अपना जल सब पर छिडकती है
फूल अपनी सुगंध सब को देता है
हवा कभी पक्षपात नहीं करती
सबको एक ही साथ सॉस के लिए प्रणवायु देती है
माली के लिए तो पूरी बगियॉ का हर पौधा बहुमूल्य होता है
जी- जान से उनकी देखभाल करता है और सींचता है
पेड के लिए उसका हर अंग मायने रखता है
जड से लेकर तने और पत्ती तक
सब एक - दूसरे से जुडे हुए
पक्षी तिनका- तिनका जोड कर घोसला बनाते हैं
हर बच्चें के लिए
एक साथ ही चार- पॉच हो तब भी सबके मुँह में अन्न का दाना डालती है
ईश्वर के लिए भी तो सब समान होते हैं
उनको तो समदर्शी ही कहा जाता है
फिर भगवान का ही दूसरा रूप
माता- पिता पक्षपाती कैसे हो सकते हैं
उनका तो प्यार ,आर्शिवाद हर बच्चे पर समान ही होता है
यह हाथ तो सदा देने के लिए होते हैं
पापा जैसा कोई नहीं
पापा शब्द ही मन को निर्भय बना देता है
चेहरे पर मुश्कान आ जाती है
पापा है न मेरे फिर क्यों चिंता
कंधे पर रखकर खिलाना
गोद में उठाकर चलना
उंगली पकडकर बाजार ले जाना
जिद करने पर इच्छा पूरी करना
खुद जी तोड मेहनत करना पर अपने लिए कुछ न करना
बच्चों के भविष्य के लिए स्वयं का जीवन समर्पण
यहॉ - वहॉ नौकरी के कारण भटकना
पर बच्चों को सुव्यवस्थित घर देने की कोशिश
ऊपर से तो धीर- गंभीर पर मन से बच्चों जैसे
एकदम भावुक
गुस्सा तो क्षण भर का
अपने बच्चों को देख कर ही भॉप जाना
हर जगह उनकी सुरक्षा को तत्पर
चौकन्नी ऑखें ,बच्चों पर कुछ ऑच न आए
हर समस्या का निदान ,दुख में ढाढस को तैयार
मॉ पर भी अपना अधिकार जताना
जो काम मॉ न कर सके वह चुटकियों में कर दे पापा
घर का प्रहरी ,पालनकर्ता
वह तो बस हो सकता है पापा
कितने अच्छे कितने प्यारे होते है पापा
मेरी मॉ
मॉ तुमने मुझे जन्म दिया
पालन- पोषण किया
चलना सिखाया
उठते - गिरते पडते हर राह में आगे बढना सिखाया
पढना - लिखना सिखाया
कठिन राहों का सामना करना सिखाया
मेरी सहेली बनकर मेरे संग खेली
घूमना - फिरना ,खाना- पीना मेरे साथ
मेरे लिए दूसरों से लडाई की
हर समय मेरे साथ डट कर खडी रही
मुझे डॉटा भी ,मारा भी,नाराज भी रही
कभी- कभी मुझसे कितने दिनों तक बात नहीं की
कभी - कभी मुझे तुम्हारे व्यवहार से परेशानी भी हुई
तुम्हारी टोका- टोकी मुझे कभी नहीं भाइ
पर एक बात तो है तुमने बिना किसी कंडीशन के मुझसे निस्वार्थ प्रेम किया
मेरे हर निर्णय में मेरे साथ खडी रही
जितना तुम कर सकती थी किया
आभारी हूँ मैं तुम्हारी
ईश्वर ने तुम्हें अमूल्य वरदान के रूप में मुझे दिया
मेरे कारण कभी तुम्हारे ऑखों में ऑसू न आए
स्वर्ग का सिंहासन मिल जाय पर मॉ नहीं तो उससे ज्यादा दीन कोई नहीं
तुम्हारा साथ रहे तो हर कमी पूरी हो जाएगी
लबों पर उसके हमेशा दुआ ही होती है बच्चों के लिए
एक वह ही है जो कभी खफा नहीं होती
बच्चों को खुश देखना ही उसका जीवन
उन्हें देख - देखकर जीना ,उसे और क्या चाहिए
कोई समझे या न समझे पर उसकी संतान तो उसको समझती ही है
मॉ अपनी सामर्थ्य अनुसार सब करती है
उसके हाथ की रोटी का कोई सानी नहीं
आज पचास हजार कमा ले पर मॉ के हाथ का वह पचास पैसा अब भी याद है
घर की रौनक ही है मॉ
मॉ कभी अपने बच्चों को बडा होने ही नहीं देती
बचपन और लडकपन को जिंदा रखने वाली मॉ
मॉ तुम्हें शत- शत प्रणाम
Sunday, 24 July 2016
रंग बदलता मौसम
मौसम आते हैं ,जाते हैं
कुछ न कुछ देकर अपनी याद छोड जाते हैं
कभी मनभावन लगता है ,कभी दुखदायी लगता है
जैसा दर्द वैसा मंजर होता है
मौसम तो इंसान के अंदर होता है
शीत त्रृतु की कंपाती सर्दी
किसी को आनंद तो किसी को मौत दे जाती है
ग्रीष्म में कोई पर्वतीय स्थल की सैर तो कोई काम करते- करते तरबतर हो जाता है
वर्षा की फुहारे किसी को सुहावनी लगती है तो
किसी को बेघर कर जाती है
जिसकी जितनी औकात उतनी मौसम की बिसात
मौसम अपना मोहरा जब चलता है
तब सबकी छुट्टी कर जाता है
बडे- बडे महल खंडहर में तबदील कर जाता है
मौसम जब मिजाज बदलता है तब सुनामी ले आता है
खुश रहता तो हल्की- हल्की फुहारे
तांडव करता है तो प्रलय
जो जीवन देता है ,वही कभी आग बरसाता है
जो सुहावना लगता है वही कोहरा से ढक जाता है
हर मौसम के रंग निराले ,ढंग निराले
मौसम का स्वागत तो करना है
जीना भी तो उसी के साथ है
मेरी गुडियॉ - सबसे न्यारी
गुडियॉ रानी ,बडी सयानी ,सबसे प्यारी
गोरा- गोरा रंग ,काली- काली ऑखें
बाल सुनहरे ऐसे ,सोनपरी हो जैसे
झप- झप झपकाती ऑखें
लगती ऐसे बोल पडेगी मेरी प्यारी गुडियॉ
सुंदर- सुंदर वस्र पहनती ,नित खेल नई रचाती
गुड्डे संग ब्याह रचाती ,पकवान नित नए सजाती
किसी को हाथ न लगाने देती,करती इसकी हमेशा बडाई. मेरी गुडियॉ सबसे न्यारी ंंंंं
छू ले इसको कोई तो फिर होती खूब लडाई
चाहे कोई भी फिर हो
मॉ - पापा या भैया
नित बातें करती मैं इससे
मेरी सबसे अच्छी सखी है गुडियॉ
रूठना- मनाना हर दिन करती
मन भर प्यार भी करती
मेरी गुडियॉ ,प्यारी ंंंंंं
बचपन की है साथी
खेल- खिलौने कितने हो पर गुडियॉ के आगे सब फीके
निर्जिव होकर भी सजीव है यह
बातें तो इससे कर सकती हूँ.
अकेलेपन की साथी मेरी ,दिन- रात साथ निभाने वाली.
इससे बडा सहारा कौन
खाना- पीना ,उठना- बैठना ,सोना- जागना इसके साथ
इससे अच्छा मेरा कौन
गुडियॉ मेरी प्यारी गुडियॉ
Saturday, 23 July 2016
चिट्ठी आई है
चिट्ठी का इंतजार रहता था हमेशा
डाकियाकी डाक आती ,चिट्ठी साथ लाती
सुबह- सबेरे बॉट जोहती रहती
क्या लिखा होगा चिट्ठी में
चिट्ठी तो कागज का टूकडा ही है ,पर लिखी जाती है भावनाएँ ,अंतर्तम की बातें
कागद की पाती नहीं दिल का टूकडा है चिट्ठी
तभी तो सात समंदर पार वाले का भी इंतजार रहता था
डाकिया ,डाकिया नहीं प्रेमदूत होता था
प्रियतम की पाती लाने वाला
चिट्ठी मिलते ही मनमयूर नाच उठता था
लगता उनसे साक्षात भेंट हो गई हो
किसी कोने में ले जाकर बार- बार पढती
हर दिन पढती जब तक कि दूसरी न आ जाती
बिना लिखे ही सब समझ जाती
चिट्ठी का उत्तर देने की तैयारी
मन की भावनाएं स्याही में डूबो - डूबोकर उकेरती
डाक में डाल आती जवाब के इंतजार में
आज सब कुछ है फोन ,मोबाईल
पर जो बात चिट्ठी में थी अब कहॉ
पन्ने पर पन्ने भरते जाते थे पर इच्छाए नहीं भरती थी
चिट्ठी तो आखिर चिट्ठी थी
प्रियतम का संदेश लाती ,मन को हर्षाती ,कभी रूलाती ,कभी हँसाती
सबसे अनोखी ,सबसे निराली अपनी चिट्ठी
आया सावन झूम के
बादल बरसे झम-झम -झम.
मनवा डोले थम- थम -थम
भीगा मन ,भीगा तन
मन में उमंगे उठने लगी
चारों दिशाएं डोलने लगी
धरती झूमी ,अंबर झूमा
झूम उठा घर- संसार
अबके बदरा आयो बहुत तरसायो
दिल में प्रेम की लगन जगायो
पिया मिलन की आस ,तिस पर बरसात
बरसो झूम- झूमकर.
मन डोले पिया संग.
दोनों के आने संग खुशियां आई.
पिया आए सुख संग लाए
बरखा आई मन हर्षाया.
झूम उठा मन झूले में
पडने लगी सावन की बूंदे
बारीश
बारीश की बूंदे गिरती तड- तड
मन मयूर नाचता है झम- झम
उमंगों ने ली है अंगडाई
पेड- पौधे लगे डोलने ,पंछी भागे दुबक घोसले में
सब लगे ढूढने अपने रैन - बसेरे
हवा लगी भागने
बिजली लगी गरजने
बादलों की कडकडाहट- गडगडाहट
जमकर बरसने का करती ईशारा
तन- मन भीगने लगे
धरती पानी- पानी होने लगी
गर्मी की तपन बुझने लगी
शीतलता की फुहारे भिगोने लगी
सब कुछ भीग रहा है
आंनदित हो रहा है
जल बिन जीवन नहीं
रहती है चार महीने ,इंतजार करवाती आठ महीने
हर बूंद अनमोल है इसका अहसास कराती
बेटी बचाओ ,बेटी पढाओ ,बेटी की सुरक्षा का इंतजाम करो
पढने गई बेटी ,काम करने गई बेटी
बस ,रेल या रास्ते में कहीं भी सुरक्षित नहीं
कहॉ जाए बेटियॉ
कदम - कदम पर नराधम
कब क्या हो जाय
घर में रहे तो विकास नहीं
हर दौड में पीछे रह जाएगी
बेटी बचाओ ,बेटी पढाओ पर सुरक्षा??
जान की कीमत पर
पर घर में भी कहॉ महफूज है बेटियॉ
मॉ के गर्भ से ही उन पर खतरा मंडराता
किसी तरह बची
तो समाज के दरिंदों का खतरा.
सुरक्षा नहीं तो विकास नहीं.
बेटे और बेटी की दूरी मिटेगी नहीं
सदियों से यही चला आ रहा
अब तो कुछ संज्ञान ले समाज
इंसान ,इंसान बने ,न बने हैवान
उनको जीना ,उडना और विकास करने दे
रोशन करने दे सबका नाम
यह जिम्मेदारी सबकी
हर व्यक्ति ,समाज और सरकार की
नानी - मॉ की भी मॉ और सब पर भारी
मेरी नानी सबसे प्यारी ,बडी मेहनती और मिलनसार
मॉ नाराज हो तो पिटाई से बचने के लिए जा दुबकते नानी की गोद में
ऑख दिखाती मॉ को भी डॉट बताती
उसके आगे मॉ की कुछ भी नहीं चलती
वह तो मॉ की भी मॉ है
अच्छे - अच्छे पकवान बनाती ,प्रेम से हमें खिलाती
नित नई कहानियॉ सुनाती ,आजादी के दिनों की बात बताती
क्रांतिकारी की बेटी है ,बापू और सुभाष से मिली कैसे
अंग्रेजों का कहर और छावनी की बात बताती
ईश्वर का भजन और प्रवचन सुनाती
हर त्योहार की रौनक नानी
सबकी बाट जोहती रहती हरदम
हर कठिनाई का हल ढूढती
हमारे जीवन को सरल बनाती
अ ब क ड से लेकर a b c d भी सिखाई
फुट्टे पर लिखकर और चित्र लगाकर पहचानना सिखलाया
सुई में धागा डालना ,क्रोशिये से बुनना सिखलाया
इडली -पोहा से लेकर कचौरी - समोसा
हर पकवान बनाने में माहिर.
पडोसियों और परिवार से प्रेम और स्नेह
अन्नपूर्णा है यह, रसोई कभी न रहती खाली
बोलती तो कम ,मौन और ऑसू है इसका अस्र
बिना बोले ही सब जाए हार
बिजली के बिल से बैंक का काम भी कर सकती नानी.
गाने में भी है माहिर
शॉत ,कर्मठ ,सहनशील ,दयालू ,ईश्वर भक्त
हर गुण से परिपूर्ण है मेरी नानी