पांचाली ने कौरवों को कभी माफ नहीं किया
सही किया
अगर वह माफ करती तो हम उसे माफ नहीं करते
रक्त पान किया दुश्शासन के रक्त से
महाभारत का कारण बनी
विनाश हुआ
और वह होना ही था
गिरिधर कब तक इनका बोझ उठाते
भरी सभा में एक औरत को निर्वस्र किया जा रहा हो
वह भी सामान्य नारी नहीं
इन्द्र प्रस्थ की महारानी और दुपद्र राजा की पुत्री
जब उसका यह हाल तो सामान्य नारियों का क्या होगा
बडे बडे महावीर मुक दर्शक बने थे
सर झुकाएं बैठे थे
पांचों महारथी पति भी
कोई जंघा पर बिठा रहा था तो कोई वेश्या की उपाधि से नवाज रहा था
कैसा वह दृश्य होगा सोचकर भी रोंगटे खडे हो जाते हैं
फिर वह महाबली और दानी कर्ण हो
या नीतिज्ञ महात्मा विदुर
अंधे धृतराष्ट्र नहीं थे सब हुए थे मद में
कृष्ण नहीं होते तो ??
सबका विनाश होना था और कोई चारा नहीं था
सब खतम हुए
यहाँ तक कि यादव कुल भी
जब अन्याय की पराकाष्ठा की सीमा पार होती है तो यही होना था
अगर रामायण से महाभारत की तुलना करें तो
उस समय मर्यादा थी
रावण भी सीता जी को अशोक वन में रखा
उसके राज्य में रहकर भी वे सुरक्षित थीं
यहाँ तो कुलवधू ही सुरक्षित नहीं थी
एक युग मर्यादा वाला था दूसरे ने सब मर्यादा तोड़ा
जबकि धर्मराज युधिष्ठिर साथ थे
जो अधर्म का खेल हो रहा था सब खत्म किया
सुदर्शन चक्र ने
जहाँ नारी सुरक्षित न महसूस करें
तब उसका विनाश निश्चित हो
फिर कोई भी युग हो
कोई भी शासक हो
आज भी निर्भया कांड हो रहा है
खबर तो रहती ही है
कब तक यह होगा
दृष्टि कोण बदलेगा
नारी भी दोषी है इसमें
कम से कम मंदोदरी जैसा विचार तो रखें
पहले औरत, औरत की इज्जत करें।