Saturday, 21 December 2024

मत तोड़ ऐसे

मैंने तुमको हर बात बताई 
कुछ नहीं छुपाया
विश्वास किया अपने से ज्यादा
यह भूल गया 
सब समय के अनुसार बदल जाता है
तुम न बदलोगे 
यह यकीन भी था जेहन में
दिल खोलकर रखा था कभी 
आज थोड़ा-बहुत दूरी क्या बनी
तुमने तो उसका तमाशा बना दिया
सबके सामने नुमाइश करते फिर रहे हो 
अरे थोड़ा तो रुक जाते 
सोच लेते 
दूरी फिर नजदीकी में बदल जाती 
लेकिन तुमने तो कोई कसर न छोड़ी 
अब तो दिल क्या 
ऑख भी मिलने से रही 
हाथ क्या पकड़ेंगे 
देखकर पीठ फेर लेंगे
जिस मुख पर कभी मुस्कान आ जाती थी 
तुम्हारा नाम सुन
आज तो वह नाम भी मुख से नहीं निकलता 
सही है 
तोड़ा तो जुड़ता नहीं
जुड़ा तो गांठ पड़ जाना है 

Friday, 20 December 2024

खूबसूरती का पैमाना

खूबसूरती क्या होती है
इसका कोई पैमाना ??
नजरिया है अपना - अपना 
सूर्योदय की किरण खूबसूरत 
सूर्यास्त की लालिमा कहाँ कम
आकाश की नीलिमा मनभावन 
धरती की हरियाली की तो बात ही निराली
हरे - भरे पेड़ खूबसूरत 
ठूंठ भी तो अलग ही दिखते 
मोती जैसे दांत खूबसूरत 
पोपली बिना दांतों के हंसी का कोई तोड़ नहीं
नदी की ममता खूबसूरत 
पहाड़ का कठोर पन भी तो 
खंडहर भी खूबसूरत लगते 
एहसास कराते हैं अपने खूबसूरत दिनों की 
हर उम्र खूबसूरत 
यौवन का मदमाती सौंदर्य हो
बुढ़ापें की बालो की चांदी हो 
भागते हुए कदम हो 
संभलता हुआ एक - एक डग हो 
अनुभव तो कर लो 
एक की तुलना दूसरे से नहीं 
जो है वही है खूबसूरत 
जी लो उस क्षण को 

Thursday, 19 December 2024

हरि हरि हरि

मैं चलता रहा
कभी-कभार कंकड़ भी धंसे 
कांटें भी चुभे
गिर भी पड़ा 
ऑखों में ऑसू भी आए 
चलना नहीं छोड़ा 
हार नहीं मानी 
मायूस नहीं हुआ 
विश्वास जो था 
स्वयं पर 
ऊपर वाले पर
कुछ न कुछ तो करेगा ही
देर हो सकती है 
ऊपर वाला सुनता रहा
अपनी कृपा दृष्टि बरसात रहा 
कभी - कभी कोफ्त भी हुई 
गुस्सा भी आया
उसको कोसा भी 
एक बार नहीं 
अनगिनत बार
आज हंसना आता है 
खैर देर से ही सही
बात समझ तो आई 
देने वाले ने बहुत कुछ दिया
समय- समय पर संभाला 
वैसे मुसीबत तो मिली 
राह भी आसान किया 
अब तो कुछ इच्छा नहीं अपने लिए 
पता है चिंता कर क्या होगा 
उसका ही चिंतन कर लूं 
करेंगा न वह सब कुछ 
कब   तब
जब उस पर हो विश्वास 
छोड़ दो 
भज लो 
हरि हरि हरि 

Wednesday, 18 December 2024

उम्र का फंडा

जैसे - जैसे उम्र बढ़ी 
जीवन का फंडा समझ आता जा रहा
खाली हाथ आए खाली हाथ जाना
न भूत न भविष्य 
न आज न कल 
साथ कोई न चलेगा 
एक शरीर साथ दे तब ही सब
धन - दौलत वह खुशी ना दे सकते 
जो स्वस्थ शरीर दे 
उपेक्षित भी वही रहता है 
ताउम्र साथ देने वाला शरीर जब होता है अशक्त 
तब बड़े - बड़े सूरमाओं की भी बोलती हो जाती बंद 
संभल लो और संभाल लो 
वक्त के पहले ही सचेत हो लो 

बदला क्या ???

मैंने रातों में जगकर देखा है
मैंने भोर में उठकर देखा है
मैंने काम कर देखा है
मैंने चुप रहकर देखा है
मैंने बोलकर भी देखा है
मैंने बर्दाश्त करके भी देखा है 
मैंने धीरज रख कर देखा है 
हर चीज का अनुभव लेकर देखा है
नहीं मायने इन सबका 
अब समझ में आता है 
जब जो होना है 
वह ही होना है 
जैसे होना है 
वैसे ही होना है 
परिस्थिति तुम्हारे हाथ में नहीं
लाख कोशिश कर लो
तुम किसी को बदल नहीं सकते 
सबकी अपनी सोच 
अपना नजरिया 
तब बस एक ही राह
सबको नजरअंदाज 

आया दिसंबर

सब गुजर जाता है
जनवरी भी आती है नयी आशा के साथ 
दिसंबर भी जाता है आने वाले नयी आशा के साथ 
यही चलता आया है
सब अपनी - अपनी छाप छोड़ जाते हैं
जीवन ऐसे ही गुजर जाता है 
वक्त के साथ हम भी चलते रहते हैं
बार - बार पीछे मुड़कर देखते हैं
बार- बार हम आगे की सोचते हैं
करते वही है जो वर्तमान में घटित होता रहता है 
जीते तो वर्तमान को ही 
भूत - भविष्य पीछा नहीं छोड़ते 
कल का पता नहीं
दिसंबर भी आएगा 
जनवरी भी आएगी 
पते की बात तो जीवन है
वह ही रहे सलामत 
ये महीने ये साल 
आते - जाते रहेंगे 

Tuesday, 17 December 2024

वाह रे उस्ताद

अब तबले की थाप नहीं सुनाई पड़ेगी 
एक घुंघराले बालों वाला युवा 
जब तबले की थाप देता था
तब हर दर्शक झूम उठता था 
वाह ताज !!! 
इसने तो चाय को भी मशहूर कर दिया
ठप ठप ठप ठप धप धप धप धप
वह ध्वनि मानो थिरकते थी
उनकी उंगलियों के साथ खेलती थी
शमां बांध देती थी 
वाह रे उस्ताद 
अपने साज को छोड़कर अलविदा कह दी 
आप अलविदा भले कह दे
वह तबले की धुन कायम रहेगी
जब भी सुनेगे 
तब यही निकलेगा मुख से 
वाह रे उस्ताद 

प्रेम क्या होता है

जहाँ होता है विश्वास 
वहीं तो होता है प्रेम का वास
जबरदस्ती तो इसमें होती नहीं
ना ही किया जा सकता
दिखावा हो सकता है
प्रेम में समर्पण होता है
उसमें अच्छाई- बुराई नहीं देखी जाती
माॅ के लिए उसके बच्चे से ज्यादा कुछ नहीं
यहां तो प्रेम की पराकाष्ठा ही नहीं होती
जितना भी हो कम लगता है
यह विश्वास अवश्य हो 
हर हाल में यह मेरा है 
उसकी सुरक्षा उसकी चिंता यह मेरा दायित्व 
प्रेम में मजबूर नहीं मजबूत होता है
मजबूरी तो प्रेम हैं ही नहीं
अपना सर्वस्व लुटाए 
फिर भी कहीं शिकन ना आए 
वह होता है प्रेम 
इसे सब नहीं समझ सकते 
दिल होना चाहिए 
वह भी खूबसूरत 
प्रेम में पाने की अपेक्षा नहीं
वह बनिए की दुकान नहीं है
पैसा दिया सामान लिया
बिना लिए देना
बस एक खुशी के लिए 
वह भी अपनी 
उसे कहते हैं प्रेम 

Monday, 16 December 2024

अब तो बस

कब तक जुल्म करोगे 
कब तक मारोगे 
कभी गर्भ में कभी बाहर
कब तक प्रताड़ित करते रहोगे 
कब तक उसको गुलाम बना कर रखोगे 
कब तक उसकी उन्नति में बाधक बनोगे 
अंदर नहीं तो बाहर 
उसको शांति से जीने नहीं दोगे 
अब तो सुधर जाओ 
अन्यथा कहीं के न रहोगे 
ना धर्म बचेगा
ना तुम्हारा घर-परिवार 
आदर दो 
अधिकार दो 
बराबर का समझो 
उसे संगिनी और साथी समझो 
अकेले न तुम चल सकते हो
न परिवार और संसार
बहुत हो गया
अब तो बस ।।

दिन भर की तैयारी

आज सुबह कुछ यू हुई
नींद खुली और ली अंगड़ाई 
जरा नजर बाहर को डाली 
पसरी थी नीरव शांति 
सब थे प्रतीक्षारत 
कब हो सूर्योदय 
कब हम लगे काम पर
धीरे - धीरे आने लगे 
प्रकाश फैलाने लगे 
होने लगी हलचल 
हवा मदमस्त हो चलने लगी 
पत्तों सरसराने लगे 
चिड़ियों की चीं चीं 
कौओ की कांव-कांव 
कबूतर की गुटरगू 
गाय का रंभाना 
गाड़ी की पौ पौ
रेल की छुकछुक 
दूध और अखबार वालों की भागम-भाग 
मानो कह रहे हो 
छोड़ो आलस 
हटाओ रजाई और चादर
नींद को कहो बाय - बाय 
कमर कसकर कर लो 
आज दिन भर की तैयारी 


साथ चलना

उसने  मुझसे कहा
मैं आपको भलीभांति समझता हूँ 
मेरे मुख पर मुस्कान आ गई 
मुख पर मुस्कान 
मन में द्वंद्व 
उन्हें शायद यह नहीं पता
जो मैं दिखता हूँ वह हूँ नहीं 
जो हूँ वह दिखता नहीं 
न जाने क्या-कुछ दबाऍ बैठा हूँ 
छोटे से मन में बहुत कुछ छिपाए बैठा हूँ 
मन को खोलना मुझे भाता नहीं 
तुमको समझना आता नहीं 
यही तो राज है 
बरसों का साथ 
फिर भी एक - दूसरे से अंजान
तुम अंदाज लगाते रहो 
मैं अंजाम की फिक्र करता रहूं 
समझे कोई या न समझे 
अब उन सबसे ऊपर मेरा स्तर
साथ रहकर भी साथ नहीं 
हमसफर होकर भी सफर के साथी नहीं 
साथ तो फिर भी चलना है 
न चले तो फिर करें क्या 

Sunday, 15 December 2024

हमारा सफर

सफर करते रहें
जिंदगी की गाड़ी चलती रही
समय भी अपनी अबाध गति से भागता रहा
चिंतन - मनन का समय ही न मिला 
सोच रहे हैं
सफर पूरा हुआ या अधूरा रहा
क्या हर कुछ हासिल हुआ 
क्या मंजिल पर पहुँचे 
निश्चय नहीं कर पाए रहें
क्या कुछ नहीं हुआ 
सफर और मंजिल में हम कहाँ खड़े हैं 
अब तक लगता था 
हमने बहुत कुछ किया
बहुत कुछ सहा
लेकिन यह गलत है
हमने तो कुछ किया ही नहीं
समय ने अपना काम किया
उसे जब जो करना था उसने वही किया 
आदमी कुछ करता ही नहीं
अपने आप होता है
सब भ्रमजाल है
हम जकड़े पड़े हैं 
अपनी सफलता अपनी उपलब्धि 
अपनी असफलता अपनी नाकामी 
ऐसा कुछ नहीं
सोचना ही नहीं है
होने दो जो हो रहा है
जितना सफर लिखा होगा
वह तो करना ही है 

प्रकृति का श्रंगार

सर्दियों के दिन शुरु 
कंबल - रजाई- स्वेटर सब बाहर
पहन कर भी ठिठुरतें 
प्रकृति को देख लो जी भर
बर्फ की चादर ओढ़ मुस्का रही है 
ठंड में ठिठुरा रही है 
उसका सौंदर्य भी गजब सा 
बस दूर से देख लो 
हमको भी जी लेने दो 
अगर की छेड़-छाड़ 
तब तो कयामत बरपा दूगी 
बर्फीली वादियों में भ्रमण कर लो 
तुम भी जीओ मुझे भी जीने दो 

Saturday, 14 December 2024

क्या करु

वे  मेरे घर आए थे 
मुझसे उनको सहानुभूति थी 
अच्छी - अच्छी बातें की 
सांत्वना दी 
मैं भी भावुक हो गया 
अपना दिल खोलकर रख दिया 
मन भी हल्का हो गया
सुना था दुख बांटने से कम होता है 
यहाँ उसका उल्टा हो गया 
अगले दिन मेरा दुख खबर बन गया था 
हर जगह चर्चा शुरू 
अब जो मिलता पूछता 
मैं परेशान 
करु तो क्या करु 
ऐसा लगा 
मैं कोई सेलिब्रिटीज हूँ 
साधारण मनुष्य से विशेष 
यह मुझे रास नहीं आ रहा 

Friday, 13 December 2024

मेरी जिम्मेवारी

कल का अनुभव कुछ खास नहीं
अक्सर ही ऐसा होता है 
एक मेरी जन्मदात्री 
एक की मैं जन्मदात्री 
दोनों से मैं मिली 
एक प्रभात की तरफ 
दूसरी की सांध्य बेला 
उसमें मैं कहाँ 
महसूस हुआ 
मैं तीव्र चमचमाती दोपहरी 
सेतु हूँ बीच की 
एक का मैं अंश
एक मेरा अंश
एक का मैं खून 
दूसरा मेरा खून
दोनों ही दिल में समाए 
कर्तव्य भी दोनों के प्रति 
किसके प्रति ज्यादा किसके प्रति कम 
महसूस हुआ 
जिसकी जन्मदात्री मैं हूँ 
एक मां है एक की मां मैं हूँ 
जिनको लाने का कारण मैं हूँ 
तब जिम्मेदारी भी ज्यादा उसी की 

आखिर क्यों ??

मैं उनको बहुत चाहती हूँ 
वे मेरे दिल के पास रहते हैं
मन में रहने वालों से ही मन नहीं मिलता
अक्सर होता यह है कि 
सामने पड़ना ही नहीं चाहते
पड़े तो दिल खोलकर बात नहीं होती
एक संकोच का भाव 
कहीं न कहीं नाराजगी 
अंजान के आगे दिल खोल लेते हैं
मन की बातें खुलकर कह देते हैं
हंसते और खिलखिलाते हैं साथ-- साथ 
कोई संकोच नहीं 
असमंजस में कभी-कभार सोच-विचार कर देखे 
बड़ी दुविधा लगती है
जिनपर प्रेम और विश्वास 
जिनके लिए फिक्र मंद 
उन्हीं के साथ ऐसा
आखिर यह बात अभी तक कुछ समझ न आई 

Wednesday, 11 December 2024

मोक्ष एकादशी

☀ मोक्षदा एकादशी, 11 दिसंबर, 2024 ☀

मोक्षदा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करने से व्यक्ति को हर एक कष्ट से निजात मिल जाती है और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।

हिंदू धर्म के अनुसार, साल में कुल 24 एकादशी पड़ती है। हर महीने के कृष्ण और शुक्ल पक्ष को एकादशी पड़ती है। हर एक एकादशी का विशेष महत्व है। इन्हीं एकादशी में से एक है मोक्षदा एकादशी। यह एकादशी काफी शुभ मानी जाती है, क्योंकि इस दिन ही भगवान श्री कृष्ण ने कुरुक्षेत्र के यु्द्ध में अर्जुन को श्रीमद्भागवत गीता का ज्ञान दिया था। इसी के कारण इस दिन गीता जयंती भी मनाई जाती है।

हिंदू पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी का व्रत रखा जाता है। भगवान विष्णु को समर्पित इस व्रत को रखने से व्यक्ति को हर कष्टों से मुक्ति मिल जाती है और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस व्रत का पालन करके अपने पितरों को मुक्ति और मोक्ष प्रदान किया जा सकता है।
 
मोक्षदा एकादशी तिथि

वैदिक पंचांग के अनुसार, इस बार मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की मोक्षदा एकादशी तिथि का आरंभ 11 दिसंबर 2024 को सुबह 3 बजकर 42 मिनट से हो रहा है, जिसका समापन 12 दिसंबर 2024 को देर रात 1 बजकर 9 मिनट पर होगा। उदायतिथि के आधार पर इस साल मोक्षदा एकादशी का व्रत 11 दिसंबर 2024 को रखा जाएगा।

एकादशी का पारण 

एकादशी व्रत का पारण 12 दिसंबर 2024 को सुबह 7 बजकर 5 मिनट से 9 बजकर 9 मिनट के बीच करना शुभ रहेगा। 11 दिसंबर को भद्रावास, रवि, वरीयान, वणिज और विष्टि योग का दुर्लभ संयोग बन रहा है।

एकादशी का महत्व

शास्त्रों के अनुसार, मोक्षदा एकादशी को बहुत ही महत्वपूर्ण एकादशी में से एक माना जाता है। इसे पितृ दोष से मुक्ति दिलाने के साथ मोक्ष दिलाने वाली मानी जाती है। इसके अलावा इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया था।

इस दिन भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करने से धन-धान्य की बढ़ोतरी होती है। इसके साथ ही संतान की प्राप्ति होती है। जीवन में अपार खुशियां बनी रहती हैं और बैकुंठ धाम के द्वार खुल जाते है।

मोक्षदा एकादशी व्रत कथा

धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवान! मैंने मार्गशीर्ष कृष्ण एकादशी अर्थात उत्पन्ना एकादशी का सविस्तार वर्णन सुना। अब आप कृपा करके मुझे मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के विषय में भी बतलाइये। इस एकादशी का क्या नाम है तथा इसके व्रत का क्या विधान है? इसकी विधि क्या है? इसका व्रत करने से किस फल की प्राप्ति होती है? कृपया यह सब विधानपूर्वक कहिए।भगवान श्रीकृष्ण बोले: मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष मे आने वाली इस एकादशी को मोक्षदा एकादशी कहा जाता है। यह व्रत मोक्ष देने वाला तथा चिंतामणि के समान सब कामनाएँ पूर्ण करने वाला है। जिससे आप अपने पूर्वजो के दुखों को खत्म कर सकते हैं। इसका माहात्म्य मैं तुमसे कहता हूँ, ध्यानपूर्वक सुनो।

गोकुल नाम के नगर में वैखानस नामक राजा राज्य करता था। उसके राज्य में चारों वेदों के ज्ञाता ब्राह्मण रहते थे। वह राजा अपनी प्रजा का पुत्रवत पालन करता था। एक बार रात्रि में राजा ने एक स्वप्न देखा कि उसके पिता नरक में हैं। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ।

प्रात: वह विद्वान ब्राह्मणों के पास गया और अपना स्वप्न सुनाया। कहा- मैंने अपने पिता को नरक में कष्ट उठाते देखा है। उन्होंने मुझसे कहा कि हे पुत्र मैं नरक में पड़ा हूँ। यहाँ से तुम मुझे मुक्त कराओ। जबसे मैंने ये वचन सुने हैं तबसे मैं बहुत बेचैन हूँ। चित्त में बड़ी अशांति हो रही है। मुझे इस राज्य, धन, पुत्र, स्त्री, हाथी, घोड़े आदि में कुछ भी सुख प्रतीत नहीं होता। क्या करूँ?

राजा ने कहा- हे ब्राह्मण देवताओं! इस दु:ख के कारण मेरा सारा शरीर जल रहा है। अब आप कृपा करके कोई तप, दान, व्रत आदि ऐसा उपाय बताइए जिससे मेरे पिता को मुक्ति मिल जाए। उस पुत्र का जीवन व्यर्थ है जो अपने माता-पिता का उद्धार न कर सके। एक उत्तम पुत्र जो अपने माता-पिता तथा पूर्वजों का उद्धार करता है, वह हजार मूर्ख पुत्रों से अच्छा है। जैसे एक चंद्रमा सारे जगत में प्रकाश कर देता है, परंतु हजारों तारे नहीं कर सकते। ब्राह्मणों ने कहा- हे राजन! यहाँ पास ही भूत, भविष्य, वर्तमान के ज्ञाता पर्वत ऋषि का आश्रम है। आपकी समस्या का हल वे जरूर करेंगे।

ऐसा सुनकर राजा मुनि के आश्रम पर गया। उस आश्रम में अनेक शांत चित्त योगी और मुनि तपस्या कर रहे थे। उसी जगह पर्वत मुनि बैठे थे। राजा ने मुनि को साष्टांग दंडवत किया। मुनि ने राजा से सांगोपांग कुशल पूछी। राजा ने कहा कि महाराज आपकी कृपा से मेरे राज्य में सब कुशल हैं, लेकिन अकस्मात मेरे चित्त में अत्यंत अशांति होने लगी है। ऐसा सुनकर पर्वत मुनि ने आँखें बंद की और भूत विचारने लगे। फिर बोले हे राजन! मैंने योग के बल से तुम्हारे पिता के कुकर्मों को जान लिया है। उन्होंने पूर्व जन्म में कामातुर होकर एक पत्नी को रति दी किंतु सौत के कहने पर दूसरे पत्नी को ऋतुदान माँगने पर भी नहीं दिया। उसी पापकर्म के कारण तुम्हारे पिता को नर्क में जाना पड़ा।

तब राजा ने कहा ‍इसका कोई उपाय बताइए। मुनि बोले: हे राजन! आप मार्गशीर्ष एकादशी का उपवास करें और उस उपवास के पुण्य को अपने पिता को संकल्प कर दें। इसके प्रभाव से आपके पिता की अवश्य नर्क से मुक्ति होगी। मुनि के ये वचन सुनकर राजा महल में आया और मुनि के कहने अनुसार कुटुम्ब सहित मोक्षदा एकादशी का व्रत किया। इसके उपवास का पुण्य उसने पिता को अर्पण कर दिया। इसके प्रभाव से उसके पिता को मुक्ति मिल गई और स्वर्ग में जाते हुए वे पुत्र से कहने लगे- हे पुत्र तेरा कल्याण हो। यह कहकर स्वर्ग चले गए।

मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की मोक्षदा एकादशी का जो व्रत करते हैं, उनके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। इस व्रत से बढ़कर मोक्ष देने वाला और कोई व्रत नहीं है। इस दिन गीता जयंती मनाई जाती हैं साथ ही यह धनुर्मास की एकादशी कहलाती हैं, अतः इस एकादशी का महत्व कई गुना और भी बढ़ जाता हैं। इस दिन से गीता-पाठ का अनुष्ठान प्रारंभ करें तथा प्रतिदिन थोडी देर गीता अवश्य पढें।
COPY PASTE