आज कल बुआ फिर चर्चा में है
बुआ पर तरह-तरह के जोक्स- मीम सोशल मीडिया पर
यहाँ भी लिंग भेद साफ नजर आता है
बुआ अपने ही घर में पराई हो जाती है
मामा प्यारा हो जाता है
घर औरत की वजह से है
यह उसके ऊपर है किसको अपना माने या न माने
पुरुष अगर चाहे तो भी नहीं कर सकता है
बुआ भी लाचार हो जाती है
माता - पिता भी उन्हीं घर वालों पर निर्भर है
इस परिवार के लिए उसका योगदान है
उसका अधिकार बराबर का है
फिर भी उसे उपेक्षित किया जाता है
वह हमेशा अपने भाई की मंगलकामना करती है
मामा का अधिकार नहीं फिर भी वह अधिकार पूर्वक रहता है
उसकी गलतियाँ नजरअंदाज कर दी जाती है
मामा - मौसी प्यारे होते हैं बुआ विलेन बना दी जाती है
जबकि मामा तुम्हारी मां का हिस्सा लेकर बैठा है बुआ ने छोड़ा है
बस तीज-त्यौहार पर या मांगलिक अवसर पर दो वह भी खल जाता है
अगर वह अपना हिस्सा मांग ले तो उससे बुरा कोई नहीं
उसमें ढूंढ ढूंढ कर कमियां निकाली जाती है
अपने ही घर में अपने लोगों के बीच उसको डर कर रहना पड़ता है
जिस घर के पैरेंट्स ही उसको इज्जत नहीं देंगे उनके बच्चे क्यों कर देंगे
बुआ अपमानित होकर भी मायके दौड़ी चली आती है क्योंकि उसको अपना लगता है
अपने पति पर घमंड भले न करें भाई पर घमंड करती है
ससुराल की लाख बुराई करें मायके की बड़ाई ही करती है
उसी मायके से अपने खून के रिश्तों में जब खटास देखती है तब उसका मन खट्टा हो जाता है
घर की मालकिन यह भूल जाती है कि वह भी किसी की बेटी है
उसके साथ यह सब हो तो
कहावत है
मायके की मिट्टी भी प्यारी होती है
इतनी भी लाचार नहीं है बुआ
उसने रिश्तों की मर्यादा संभाली है
नहीं बोलती इसका यह मतलब नहीं कि वह कूड़े के ढेर जैसी है
वह प्यार के बंधन में बंधी है जिस दिन वह मुक्त हो जाएगी
भूचाल आ जाएगा
वह तोड़ना नहीं चाहती आप जोड़ना नहीं चाहती
तब ठीक है
बुआ ही केवल दोषी नहीं आप उससे ज्यादा दोषी होगी
जहाँ बेटी का सम्मान नहीं वहाँ खुशियाँ वास नहीं करना चाहती
दुनिया जहान को इकठ्ठा कर लो पर घर की बेटी की बराबरी कोई नहीं कर सकता
बुआ बिना सब धुऑ धुऑ