Wednesday, 30 July 2025

होना है जो

कितना हम डरते हैं 
भविष्य को लेकर चिंतित रहते हैं 
क्या करना है 
क्या नहीं करना है 
किस्मत तो लिखी जा चुकी है 
सब निश्चित है 
हाथ की रेखाएं जन्म के साथ ही आई है 
हम क्या ही कर लेंगे 
कितना हाथ- पांव मार लेंगे 
प्रारब्ध का फल आज 
आज का फल अगले जन्म 
यह सिलसिला जारी रहता है 
बस हम तो कर्म करने आए हैं 
वह तो किए बिना कुछ संभव नहीं 
तदबीर तो हमें बनाना है 
तकदीर बनी हुई मिली है 
तब चिंता क्यों 
जो होना है वह होगा ही 
होइहै वही जो राम रचि राखा 

ईश्वर ने क्या दिया

ईश्वर ने मुझे कुछ नहीं दिया 
मेरी जिंदगी मे ही ऐसा क्यों है 
हमेशा मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है
ऐसी शिकायत गाहे - बगाहे रही है 
आज अचानक मन में आया 
ईश्वर ने मुझे दिया क्या है यह सोचा 
पता चला कि 
उन्होंने मुझे क्या कुछ नहीं दिया है 
सब कुछ तो दिया है 
मैं जिस लायक हूँ उससे कहीं कुछ ज्यादा 
चारों तरफ नजर उठाकर देखा 
चिंतन-मनन किया 
ऐसा लगा मुझसा कोई नहीं 
न जाने कितनी दुर्घटनाओं से बचाया है 
नहीं तो आज मैं जहाँ हूँ 
जैसे हूं रह नहीं पाती 
कर्म,  प्रारब्ध भी तो कुछ है 
वह भी तो साथ चलता है 
मन में प्रश्न आना स्वाभाविक है 
आज तक रोना आता था 
आज अचानक हंसी आ गई 
कितना कुछ दिया 
जिंदगी हर मोड़ पर आसान बनाया 
मुश्किल काम हल हो गए 
शुक्रिया तो बनता है 
हाथ जोड़कर प्रार्थना
ऐसी ही कृपा बनाए रखना 
ऐसा नहीं है कि अब शिकायत नहीं होगी 
ओ तो होता ही रहेगा 
हक बनता है हमारा 
तुम्हीं तो सर्वस्व तो फिर कहना भी तो तुमसे ही 

Tuesday, 29 July 2025

दुनिया का मेला

दुनिया का दस्तूर निराला 
कहीं धूप कहीं छाया
सबमें बसी है माया 
घूमती- घूमाती रहती यह काया
पेट का जंजाल है 
तभी तो सब परेशान हैं
भोर तड़के उठाती 
काम पर लगाती 
दिन - रात खटवाती 
कभी चैन से न बैठती - बैठाती 
आगे निकलने की होड़ मचाती 
चैन से न जीने देती 
सुकून और आराम तो न जाने कहाँ गायब करती 
बस भगाती और भगाती 
सब भाग रहे हैं 
दौड़ रहे हैं 
छलांग लगा रहे हैं 
गिर - पड़ रहे हैं 
यह अपने करतब दिखला रही है 
मकड़ी के जाल सा खुद के बनाए में खुद फंसा 
दुनिया का मेला 
मेले में हर कोई अकेला 

अपने आप से मुलाकात

आज मैने अपने आपसे मुलाकात की 
उससे मैंने बहुत कुछ कहा 
उसने भी बहुत कुछ सुनाया 
मुझे अच्छा नहीं लगा 
वह तो मुझे दोष देती रही 
कहा कि कभी अपना ख्याल नहीं रखा
हमेशा मुझे उलझनों में उलझाये रखा 
न खुद चैन से जीया न मुझे जीने दिया 
कितना मुझे परेशान करोगी 
मैं जोर से खिलखिलाई 
तुम्हें जो चीजें परेशान करती है 
मुझे सुकून देती है 
मेरा जीने का अंदाज यही है 
मुझे स्वतंत्रता प्यारी है 
मन को बांधना मुझे भाता नहीं 
अपनी शर्तों पर जीना 
इससे ज्यादा नहीं कुछ चाहा 

Monday, 28 July 2025

पहुंचो ऊपर

सब कुछ खत्म 
जीवन बाकी है 
उठो फिर 
शुरुआत करो 
अभी सब कुछ खत्म नहीं 
बहुत कुछ बाकी है 
जब तक सांस है 
तब तक आस है 
शून्य से शुरुआत करो
शिखर पर पहुंचो
कितना कुछ करना है 
उंचाई पर पहुँचना है 
गिरना - पड़ना तो चलता रहता है 
पहाड़ तो वहीं है 
तुम भी तो वही हो 
वह तो विचलित नहीं 
तुम क्यों 
फतह करो 
चोटी पर पहुँच परचम फहराओ 

Sunday, 27 July 2025

प्रकृति पर प्यार

जो देती ही देती रहती है 
बिना कुछ बोले 
अपना प्रेम लुटाती रहती है 
इस स्वार्थी दुनिया में क्या यह संभव है ??
हाॅ वह अभी भी वैसी ही है 
हम बदल गए हैं 
उसे तकलीफ दे रहे हैं 
खत्म कर रहे हैं 
वह तो सदियों से साथ निभाती है 
वह न रहें तो हम भी न रहेंगे 
हमारी सांस का आधार भी वह ही है 
उसके बिना हम मर जाएगे 
फिर भी हम उसको मार रहे हैं 
यह नहीं कि उसका संरक्षण करें 
जतन करें प्यार से 
उन्नति कर रहे हैं 
प्रकृति को नष्ट कर रहे 
आभारी होना चाहिए उसका 
सांसों की डोर थामे हैं वह 
उसको भी हम थाम रखे 
यह तो हमारा फर्ज बनता है 
उसका कर्ज है हम पर
उसको तो उतार नहीं सकते 
कर्म तो कर सकते हैं 
उसको सजोने - संवारने का दायित्व ले लो 
उसके प्रति आभार जता लो 



Saturday, 26 July 2025

बाबा जैसी सोच

इक्का - दुक्का घटना होने पर सभी को एक ही जगह खड़ा कर देना 
वह भी एक कथावाचक और महात्मा कहे जाने वाले व्यक्ति द्वारा 
समाज में बदलाव हो रहा है उसे स्वीकार करना ही पड़ेगा 
सती - सावित्री से ऊपर उठना पड़ेगा 
विकास करना है विश्व को साथ लेकर चलना है तो महिलाओं 
के प्रति धारणा बदलना पड़ेगा 
वह दासी नहीं सहचरी है 
हमारे समान व्यक्ति है 
उसमें भी कमजोरियां होगी 
उसमें योग्यता भी है 
उसके योगदान बिना तो समाज ऊपर उठ ही नहीं सकता 
उसको कैरेक्टर का सर्टिफिकेट देने वाले ये तथाकथित चंद लोग कौन होते हैं 
समाज कौन होता है 
सबके घर में बहन - बेटियां हैं 
ऐसी मानसिकता हो तो शिक्षा से वंचित और बालविवाह ही एक विकल्प 
सदियों से सताई और दबाई गई वह
अब जब आगे बढ़ रही है 
सफलता का परचम फहरा रही है 
तब लोगों को रास नहीं आ रहा है 
अब विद्रोहिणी हो रही है 
अपनी मर्जी से जीना चाह रही है 
यह किसी एक बाबा जी की बात नहीं 
समाज के हर कोने में ऐसे बाबा मिल जाएंगे 
कब सोच बदलेगी ???

भगवान भी ताकते रह जाते

ठोकर लगी मेरे पैर में 
वेदना हुई उसे 
आहत हुआ मैं 
तड़पी वह
पेट भरा मेरा 
तृप्त हुई वह
मैं मुस्कराया 
हर्षित हुई वह
मैं सफलता की सीढ़ी चढ़ा 
गर्व से माथा ऊंचा हुआ उनका 
मैं कुर्सी पर बैठा 
वह जमीन पर बैठे ही निहारते 
मैं घर में बैठ खुशियां मनाता 
वे बाहर ढिंढोरा पीटते 
अपने लिए कुछ न मांग 
सब मेरे लिए मांगते 
अपनी भी उम्र मुझ पर न्योछावर करते 
बिना स्वार्थ के अपनी सामर्थ्य से ज्यादा
जो कर जाते 
वे कोई साधारण लोग नहीं 
उन्हें माता - पिता की संज्ञा दी जाती है 
ईश्वर नहीं है 
लेकिन भाग्य लिखने का अधिकार उन्हें जो मिलता 
तब तो वे वह लिखते कि 
भगवान भी ताकते रह जाते 

Friday, 25 July 2025

आदमी

जो न कुछ बोलता है 
जो न कुछ सोचता है 
जिस पर कुछ असर नहीं
कहता है 
मैं अब चुप हूँ 
यह तो फिर सामान्य बात नहीं 
सजीव हैं 
क्रिया की प्रतिक्रिया होती ही है 
तब तो वह मरा हुआ है 
लाश कुछ नहीं करती 
तब क्या वह जिंदा लाश बन चुका है 
सजीव होते हुए भी निर्जीव 

युद्ध क्यो??

युद्ध का बस अंत होता है 
समझौता होता है 
शांति की दरकार होती है 
इस आंरभ और अंत के बीच विनाश होता है 
जीवन की हानि होती है 
जीवन पीछे चला जाता है 
जो बचे उनको फिर से नई शुरुआत करनी पड़ती है 
खोने का दर्द होता है
सामान्य होने में दशकों लग जाता है 
लेकिन फिर भी युद्ध होता है 
हो रहा है , होता रहेगा 
सबसे बड़ी विडंबना 
अपने ही हाथों अपना विनाश 
कुछ जमीन के लिए 
कुछ ईगों के लिए 
कुछ धर्म के लिए 
हमेशा रहना नहीं है पृथ्वी पर
प्रलय का भी ठिकाना नहीं
जीवन तो कब सांस निकले 
यह भी ज्ञात नहीं 
सब जानता - समझता मानव
फिर भी युद्ध करता है 
विनाश का इतिहास है 
फिर भी युद्ध करता है 
अपना विनाश और निर्माण 
उसके स्वयं के हाथ में 
बुद्ध, ईसा ,महावीर और गांधी क्या कर लेंगे 
जब सुदर्शन चक्र धारी भी मजबूर हो गए 
मानव अपना स्वभाव छोड़ना नहीं चाहता 
कोई पहल करना नहीं चाहता 
किसी की बात समझना और सुनना नहीं चाहता 
कहीं न कहीं युद्ध जारी है 
बारुद के ढेर पर खड़ा 
अपने विनाश का संशोधन तैयार कर रहा है 
अरबों - खरबों खर्च कर रहा है
विज्ञान ही ले डूबेगा जिसके बल पर इतराता है 
किसी महामानव की प्रतीक्षा कर रहा है 
बार - बार वे भी अवतरित नहीं होने वाले 
अब भी संभल जाओ 
जीओ और जीने दो 

Thursday, 24 July 2025

नया कुछ करना है

मैं तो चल रहा था अकेले
लोगों की भीड़ देखी
शामिल हो लिया 
अब तो भीड़ का हिस्सा बन चुका था 
कभी आगे तो कभी पीछे तो कभी बीच में 
धक्के भी लगते रहे 
घायल भी हुआ कई बार 
वजूद खत्म होने की कगार पर
सोच लिया निकलना है 
बड़ी मशक्कत करनी पड़ी 
किसी तरह ठेलठाल कर बाहर निकला 
अब नहीं फिर उसमें घुसना है 
अकेले ही सही 
राह तो अपनी होगी 
सोच तो अपनी होगी 
बंधन तो न होगा 
स्वतंत्रता तो होगी 
अब अकेले ही चल पड़ा हूँ 
विश्वास और आशा के साथ 
नया कुछ करने की चाह 

जो है वह है

न शिकवा न शिकायत 
अब मन ही नहीं करता 
जो है जैसा है सब अच्छा 
मन का तो कभी हुआ नहीं 
जो होना है वहीं होना है 
तब होने दो 
कोई क्या कर लेगा 
तुम क्या कर लोगे 
नियति को मान लो 
हंसकर या रोकर 
मन से या बेमन से 
होइहै वही जो राम रचि राखा 

Tuesday, 22 July 2025

हंसी कहीं खो गई

मैं उस शख्स को ढूंढ रही थी 
जो बिना बात पर भी ठठाकर हंसता था 
डांट भी पड़ती थी पर आदत से बाज नहीं आता था 
हंसी का न कोई ओर - छोर होता 
कई बार लोग पागल भी समझते 
अचानक समय ने करवट बदली 
हंसी धीरे - धीरे गायब होने लगी 
समझ में आ गया 
हमेशा हंसना ठीक नहीं 
उसका लोग अलग मतलब निकाल लेते हैं 
परिस्थितियों ने ऐसा बना दिया 
हंसने से पहले सोचना पड़ता है 
सालोंसाल यही सिलसिला चलता रहा 
अब उसकी आदत हो गई है 
तब लोग कहते हैं 
हंसा करों 
खुश रहा करों 
बिना कारण अपने आप हंसो 
आदत छूट गई है 
अब नहीं आती हंसी 
वह भोलापन और मासूमियत कहीं खो गई 
समय के थपेड़ों ने सब हंसी छीन ली 
कभी ठठाने वाला आज मुस्कान भी बड़ी मुश्किल से ले आता 
वह शख्स अब ढूंढे से नहीं मिलता 
हां वह जमाना याद आता है तब मुस्कराकर रह जाते हैं 
वह भी एक दौर था 
अब भी एक दौर है 
गुजरता जा रहा इनमें से जो वहीं तो जीवन है 

चलने का सिलसिला

मैं तो चल पड़ा था अपनी मंजिल की तरफ
हवा भी संग संग चलती रही 
कभी धीमी कभी तेज 
कभी अनुकूल कभी प्रतिकूल
कभी-कभार धीमे से सहलाती 
सुंगध से सराबोर कर देती 
कभी जोरदार थपेड़ा मारती 
मैं थक हार कर बैठ जाता 
कुछ वक्त बाद फिर उठ जाता 
उसके साथ- साथ चल देता 
हार मैंने मानी नहीं 
वह भी रूकी नहीं 
अपनी गति से चलती रही 
हममें होड़ लगी थी मानो 
न मुझे हार माननी थी 
न वह रूकने वाली थी 
आखिर साथ- साथ चलते हम दोनों में दोस्ती हो गई 
वह अपनी धुन में मैं अपनी धुन में 
यह सिलसिला जारी है 


Monday, 21 July 2025

नहीं चाहिए बुआ

आज कल बुआ फिर चर्चा में है 
बुआ पर तरह-तरह के जोक्स- मीम सोशल मीडिया पर
यहाँ भी लिंग भेद साफ नजर आता है 
बुआ अपने ही घर में पराई हो जाती है 
मामा प्यारा हो जाता है 
घर औरत की वजह से है 
यह उसके ऊपर है किसको अपना माने या न माने 
पुरुष अगर चाहे तो भी नहीं कर सकता है 
बुआ भी लाचार हो जाती है 
माता - पिता भी उन्हीं घर वालों पर निर्भर है 
इस परिवार के लिए उसका योगदान है 
उसका अधिकार बराबर का है 
फिर भी उसे उपेक्षित किया जाता है 
वह हमेशा अपने भाई की मंगलकामना करती है 
मामा का अधिकार नहीं फिर भी वह अधिकार पूर्वक रहता है 
उसकी गलतियाँ नजरअंदाज कर दी जाती है 
मामा - मौसी प्यारे होते हैं बुआ विलेन बना दी जाती है 
जबकि मामा तुम्हारी मां का हिस्सा लेकर बैठा है बुआ ने छोड़ा है 
बस तीज-त्यौहार पर या मांगलिक अवसर पर दो वह भी खल जाता है 
अगर वह अपना हिस्सा मांग ले तो उससे बुरा कोई नहीं
उसमें ढूंढ ढूंढ कर कमियां निकाली जाती है 
अपने ही घर में अपने लोगों के बीच उसको डर कर रहना पड़ता है 
जिस घर के पैरेंट्स ही उसको इज्जत नहीं देंगे उनके बच्चे क्यों कर देंगे 
बुआ अपमानित होकर भी मायके दौड़ी चली आती है क्योंकि उसको अपना लगता है 
अपने पति पर घमंड भले न करें भाई पर घमंड करती है 
ससुराल की लाख बुराई करें मायके की बड़ाई ही करती है 
उसी मायके से अपने खून के रिश्तों में जब खटास देखती है तब उसका मन खट्टा हो जाता है 
घर की मालकिन यह भूल जाती है कि वह भी किसी की बेटी है 
उसके साथ यह सब हो तो 
कहावत है 
मायके की मिट्टी भी प्यारी होती है 
इतनी भी लाचार नहीं है बुआ 
उसने रिश्तों की मर्यादा संभाली है 
नहीं बोलती इसका यह मतलब नहीं कि वह कूड़े के ढेर जैसी है 
वह प्यार के बंधन में बंधी है जिस दिन वह मुक्त हो जाएगी 
भूचाल आ जाएगा 
वह तोड़ना नहीं चाहती आप जोड़ना नहीं चाहती 
तब ठीक है 
बुआ ही केवल दोषी नहीं आप उससे ज्यादा दोषी होगी 
जहाँ बेटी का सम्मान नहीं वहाँ खुशियाँ वास नहीं करना चाहती 
दुनिया जहान को इकठ्ठा कर लो पर घर की बेटी की बराबरी कोई नहीं कर सकता 
बुआ बिना सब धुऑ धुऑ  

इतना आसान नहीं

बड़ा शांत सा शमा 
खूब उपद्रव मचाया 
आंधी-तूफान से सब तहस - नहस 
रात भर यह क्रम जारी रहा 
सुबह होते ही सब थमा 
कब तक मचाता 
आखिर थक - हार बैठ गया 
गिरी हुई लता टूटी हुई डालियाँ 
उखड़े हुए पेड़ 
सब तबाही का प्रमाण देते 
अब यह सब सामान्य होने में क्या कुछ लगेगा 
वक्त से सब ठीक हो जाएगा 
परिस्थितियाँ पूर्व वत हो जाएगी 
उसका मूल्य भी तो चुकाना पड़ेगा 
यह सब इतना आसान नहीं होगा 

Sunday, 20 July 2025

लोगों की मानसिकता

मैं हूँ क्या ??
आज तक समझ नहीं आया 
मैं भारतीय हूँ 
मैं हिन्दू हूँ 
मैं क्षत्रिय हूँ 
क्षत्रिय में भी कौन सा गोत्र और ठाकुर 
मेरी भाषा क्या ??
मेरा प्रदेश कौन सा ?
मैं कहाँ रहती हूँ 
शहर में या गांव में 
महानगर या छोटे शहर में 
अमीर हूँ या गरीब 
हमारी समाज में कैसी हैसियत 
न मैं मराठी हूँ क्योंकि वे मुझे अपना नहीं मानते 
मूल निवासी कहीं के हैं भले ही चार पीढ़ी से रहते हो 
उत्तर प्रदेश भी अपना नहीं मानता 
अरे आप तो मुंबई वाले हैं 
मैं मराठी भी अच्छी बोलती हूँ 
हिन्दी की तो बात ही क्या 
भोजपुरी मुझे ज्यादा आती नहीं 
आप यू पी की लगती नहीं हैं क्योंकि मैं बिना भोजपुरी के पुट के हिंदी बोलती हूँ 
साफ उच्चारण 
मराठी इतके छान बोलता फिर भी मैं मराठी नहीं 
न मैं महाराष्ट्र की न उत्तर प्रदेश की 
तब मैं हूँ कौन ??
मेरी पहचान क्या ??
एक अच्छा व्यक्ति नहीं देखते यहाँ 
मापदंडों में तौलते हैं 
मैं और हम सर्वश्रेष्ठ बाकी सब बेकार 
यह मानसिकता लोगों की 
ऐसे देखना और बोलना जैसे कोई जुर्म किया हो 
मैं ही मैं में देखना छोड़कर हम में देखना शुरु हो 
भारत का कण - कण आदरणीय है 
यहाँ की हर भाषा सम्मानीय होनी चाहिए 
हर प्रांत का इतिहास है
हर लोग का योगदान है 
हर संस्कृति और रीति-रिवाज का अपना स्थान 
वेशभूषा और खान पान का भी महत्व
विविधता में एकता 
जो हमारे देश को सुंदर बनाता है 
किसी में कमियां निकालने के पहले अपनी ओर भी देंखे 
तब पता चलेगा कि कौन क्या है 

टा टा बोलो सबको

उजली धूप ने  मन मोहा 
सूरज ने भी डाला डेरा 
रोशनी आने लगी छन - छन कर 
कोयल गीत गाने लगी मन भरकर 
कौआ कहाँ पीछे रहता 
वह कांव-कांव करता रहा 
कान सोचने लगे 
किसकी आवाज सुने 
मीठी बोली या कर्कश स्वर 
तब तक चीं चीं करती चिड़िया आई 
दाना - पानी ले फुर्र से उड़ी 
उसको अपने से ही फुर्सत नहीं 
इस पचड़े में वह क्यों पड़े 
अपने में ही रहना 
न कोई बंधन न कोई टंटा 
सबको बोलो टा टा 

नई कहानी

आज जिंदगी की किताब पढ़ने का मन हुआ 
खोले कुछ पन्नों को 
याद किया उन लम्हों को 
कभी याद आए वो पल तो आ गई मुस्कान 
कभी याद आए वो पल जो दुखद थे 
ऑखों में आँसू भर आए 
हंसी अचानक गायब 
मन भारी हो उठा 
सुख के साथ दुखद स्मृतियां 
यह शायद पीछा नहीं छोड़कर जाने वाली 
समय - असमय पर आ ही जाती जेहन में 
बंद कर दी किताब को 
नहीं पढ़ना है पास्ट को 
जो है पास वही अपना 
इस पल को जी लें 
यादों के सहारे जीवन नहीं कटता 
हर दिन नई कहानी लिखनी होती है 
छोड़ो कल की बातें ,कल की बात पुरानी 
नई डगर पर लिखनी नई कहानी 

Thursday, 17 July 2025

आज का व्यक्ति

तुम बंजर हो जाओगे 
यदि इतने व्यवस्थित ढंग से रहोगे 
यदि इतने सोच-समझकर

बोलोगे चलोगे, 
कभी मन की नहीं कहोगे 
सच को दबाकर 
झूठे प्रेम के गाने गाओगे 
तो मैं तुमसे कहता हूँ 
तुम बंजर हो जाओगे।

~ भवानी प्रसाद मिश्र

वक्त

वक्त ने हमेशा ऑखमिचौली की 
जब चाहा तब साथ रहा नहीं 
अपनी ही चाल चलता रहा
अपना भी वक्त आएंगा 
इसी आस में दिन बीतते गए 
कब वह आया 
यह तो पता ही नहीं चला 
हमसे दूर ही क्यों रहता है 
जब चाहिए था तो वक्त नहीं 
अब वक्त है तो हम भी वह नहीं 

Wednesday, 16 July 2025

राधिका यादव -- दोषी कौन ??

राधिका यादव एक टेनिस खिलाड़ी 
न जाने कितने मेडल अपने नाम किया था 
उसकी इस कामयाबी के पीछे पिता का हाथ होगा जिन्होंने प्रोत्साहित किया होगा 
पैसे खर्च किए होगे 
उसी पिता ने उस बेटी की गोली मारकर जान ले ली 
आखिर कारण क्या ??
बेटियां गर्भ में ही मार डाली जाती है जाती थी अब बच जा रही है तो कभी बलात्कार या फिर समाज के ताने से मर रही है । बेटी अपने पिता के घर भी चैन से नहीं रह सकती है 
अगर अच्छा ससुराल नहीं मिला तो मायके में भी यह समाज चैन से नहीं रहने देता 
आत्मनिर्भर हो लेकिन अनब्याही हो तब भी प्राब्लम 
जिंदा में भी मरने के बाद भी 
चैन से माता - पिता नहीं रह सकते 
समाज का क्या 
किसी को भी तोहमत लगा देना 
ताना मारने में सबसे आगे 
सब मजाक लगता है 
राधिका के पिता से ज्यादा दोषी तो यह समाज है 
बेटी की कमाई खाने का ताना देना 
सबके पास मजबूत दिल नहीं होता 
अभी दोष दे रहे हैं 
जीते जी जीने नहीं दिया मरने पर सहानुभूति
कुछ भी बोलो 
हंसो ताना मारो 
अपनी औकात भले कौड़ी की न हो 
यह केवल कम पढ़े - लिखे की बात नहीं 
पढ़े - लिखे चार कदम आगे 
किसी की दुखती रग को छेड़ने में मजा आता है 
किसी की तरक्की देखी नहीं जाती 
कभी कैरेक्टर पर कीचड़ उछालकर 
कभी मनगढ़ंत कहानी बनाकर 
कहने को सभ्य लेकिन असभ्यता में पशु को भी पीछे छोड़ दें 
घिन आती है लेकिन रहना भी इन्हीं के साथ है 
क्या करें अकेले भी तो रह नहीं सकते 

Tuesday, 15 July 2025

अचार और परिवार

परिवार और अचार
मिलते - जुलते हैं 
सबको साथ लेकर चलना 
सबके साथ होना 
वह होता है परिवार 
अच्छा परिवार 
हर व्यक्ति का महत्व 
सबको अहमियत 
प्यार, अपनापन, भरोसेपन पर टिका 
अचार भी स्वादिष्ट 
बहुत सारे मसालों और तेल के साथ 
भोजन का स्वाद बढ़ाता 
हमेशा जरूरत चाहे कोई सा भी भोजन

कई बार परिवार के चक्कर में 
इंसान बन जाता अचार 
जब चाहे जैसा इस्तेमाल कर लो 
स्वादिष्ट तो लगता है 
न रहे तब भी चलेगा 
जरुरी तो है जरूरत नहीं 
अचार को कोई फर्क नहीं 
इंसान को पड़ता है 
भावनाओ में बंधा प्राणी 
अनदेखा करने पर चोट लगती है 
अचार नहीं है न कि मन नहीं कर रहा तो छोड़ दो 
यहाँ तो वह उपेक्षित महसूस करता है 
अपेक्षा रहती है अपने उस परिवार से 
अचार को साल भर संभाल कर रखना पड़ता है 
नहीं तो खराब हो जाएगा 
परिवार को ताउम्र संभालना पड़ता है 
तभी टिकेगा 
वर्ना छिन्न भिन्न होने में देर नहीं लगती 
परिवार में न अचार बनना है न बनाना है किसी को 
अपने आचार और आचरण को बहुत सोच समझकर रहना है

Monday, 14 July 2025

गुजरने के पहले

कभी नर्म कभी गर्म
ये है शरीर का धर्म 
तुम करो अपना कर्म 
उम्र ने दी है दस्तक 
अब छोड़ दो सब झंझट 
क्या करना है दस्तावेज का 
अब बस अपना ध्यान रखो 
चिंता करने की अब शक्ति नहीं 
चिंता कर चित्त हो जाओगे 
उन्हीं पर बोझ बन जाओगे 
जिसके लिए चिंतित हो 
समय को समेट लो
बस अब अपने लिए 
कुछ समय तो गुजार लो जीवन संग 
हंसकर- बोलकर 
समय के साथ तो सब गुजर जाना है 
गुजरने के पहले हर पल जी लो 

Thursday, 10 July 2025

ऐसा सम्मान????

चरण स्पर्श कर लिया फिर मजाक उड़ाया 
ऐसे सम्मान का क्या फायदा 
जहॉ सम्मान मन से न हो वहॉं से हट जाना ही बेहतर 
रिश्ता अपनी हैसियत वाले लोगों से ही रखना चाहिए बड़े लोगों से रख अपना ही अस्तित्व समाप्त करने जरूरत नहीं है 
लाचार और उपहास का पात्र बनने के अलावा कुछ हासिल नहीं 
समाज में हैसियत देख रिएक्शन होता है 
डार्विन की थ्योरी लागू होती है 
शक्तिशाली बनो स्वयं और आत्मनिर्भर भी 
एहसान का एहसास ताउम्र झेलना आसान नहीं होता 
लोग समय-समय पर दंश चुभाते रहेगे , जताते रहेगे 
अपना याद रहता है आपका याद नहीं रखेंगे 
यह सिलसिला चलता रहेगा कम से कम दो पीढ़ी तक
उनकी औलाद भी यही सोचती रहेंगी 
आपके साथ आपके बच्चों को भी उसकी कीमत चुकानी पड़ेगी 
वहाँ कभी जाना नहीं जो कहने को होते तो है अपने लेकिन रहते हैं अजनबियों सा