Wednesday, 30 November 2022

कहाँ जाएँ बेटियाँ


पैतीस टुकड़े में 
तंदूर में जलाना
एसिड डालना
भरी सडक पर चाकू चलाना
क्लास में घुस केरोसिन डालकर जलाना
मार कर पंखे पर लटका देना
खून से लथपथ
जली हुई
बलात्कार 
सडक पर फेंकी हुई
हद है हैवानियत की
शैतानियत की
पाशविकता की
किस तरह से यह इंसान है
युवतियों  के साथ इस तरह का दुष्कर्म
कभी घर में कभी पडोस में 
कभी पति द्वारा 
कभी प्रेमी द्वारा 
यह साधु और संतों का देश
मानसिकता इतनी विकृत
कहाँ जाएँ बेटियां
क्या करें
फिर घूंघट में कैद हो जाए
औरते घर से बाहर न निकले
डरती रहे कि
पता नहीं किस वेष में ये नराधम मिल जाएं
कब कोई उनकी हवस का शिकार हो जाए
कहीं न कहीं तो कमी है संस्कारो में
माता पिता की परवरिश में
समाज की मानसिकता में
औरतों को देखने के दृष्टिकोण में
सोच और विचार में
जब तक इस पर प्रहार नहीं होगा
इनको जड से खत्म नहीं किया जाएगा
तब तक यह होता रहेगा
भारतीय बदलाव नहीं चाहते
बेटा है घर का चिराग है
लडका है पुरूष है
वह कैसा भी है चलेगा
घी के लड्डू टेढे भी भले
नालायक ,आवारा ,शराबी ,नशेडी
फिर भी वह पुरुष है
कहाँ है इन हैवानो के माता-पिता
कहाँ है इनका परिवार
कहाँ है इनका इज्जतदार समाज
बहिष्कृत करें
कानून तो सजा देगा ही
इसके पहले यह दे
हाथों में मोमबत्तियाँ नहीं मशाल होना चाहिए
ताकि वही पर उनको जला दिया जाए
जिस तरह से इन्होंने कैरोसीन डाल एक 
होनहार ,निरपराध युवती को जलाया है
उसको मौत दी है वह भी नृशंस
ये पापी तो नरक के भी हकदार नहीं
शर्म आती है 
ऐसी सोच और ऐसे लोगों पर
घृणा उत्पन्न होती है
मानव जाति पर कलंक हैं

मर्द को भी दर्द होता है

मैं रोना चाहता था जी भर कर
पर मुझे रोने नहीं दिया गया
सबके समान मैं भी तो बाहर आया था
माँ के गर्भ से रोते हुए
बस उसके बाद तो रोने ही नहीं दिया गया

छोटा बच्चा था
जब गिरता पडता था
तब कहा जाता था
बहादुर बेटा है
क्या लडकियों की तरह ऑसू बहा रहा है

जब थोड़ा बडा हुआ
कभी माँ - बाप की डाट
कभी टीचर की डांट
तब भी दोस्तों से यह सुनना
अरे । लडकी है क्या 
जो ऑसू बहा रहा है

नौकरी की 
बातें सुनी
तब भी नहीं 
ऑसू को पी जाना था
दूसरों को नहीं दिखाना था

ब्याह हुआ
बिदाई वक्त पत्नी फूट फूट कर रो रही थी
उस वक्त भी मैं संजीदा हुआ
तुरंत संभल उसको संभाला
सबको संभालने और ऑसू पोछने की जिम्मेदारी मेरी
वह माँ हो या पत्नी

बेटी की बिदा की बेला
तब भी न रो सका
तैयारियों में व्यस्त
चिंतित और परेशान
सब ठीक-ठाक निपट जाए
चैन की सांस लूं

रोना भी सबके नसीब में नहीं
हमारे नसीब में तो 
हर गम पी जाना
क्योंकि हम मर्द है
धारणा है समाज की
मर्द को दर्द नहीं होता
दर्द  तो हमें भी होता है
ऑसू तो हमारे भी निकलते हैं
पर हम उसे दिखाते नहीं
नहीं तो सुनना पडेगा
मर्द का बच्चा होकर भी
औरत की तरह ऑसू बहा रहा है

Tuesday, 29 November 2022

मैं किसान हूँ

किसान हूँ
किसी का दिया नहीं खाता हूँ
परिश्रम करता हूँ
खेतों में हल और ट्रेक्टर चलाता हूँ
धूप में पसीना बहाता हूँ
ठंडी और गर्मी के थपेडे  सहता हूँ
बारिश के अंधड - तूफान का सामना करता हूँ
प्रकृति के प्रकोप सहता हूँ
बंजर मिट्टी को उपजाऊ बनाता हूँ

मैं अन्नदाता हूँ
अन्न उगाता हूँ
पूरे संसार का पेट भरता हूँ
मैं किसी की दया नहीं
अपना हक चाहता हूँ
मुझे उचित मूल्य मिले मेरी फसल का
उचित मुआवजा मिले

मैं कोई सरकार का नौकर नहीं
वेतन और बोनस नहीं लेता हूँ
मेहनत मैं करता हूँ
लाभ दूसरे उठाते हैं
मुझसे टमाटर दो रूपये किलो 
बाजार में चालीस रूपये
सब दूसरे की जेब में

मैं व्यापारी नहीं हूँ
पर किसान जरूर हूँ
मेरी जरूरत सभी को है
मैं मिट्टी में सोना उगाता हूँ
सोनार नहीं हूँ
तभी तो उस सोने को औने पौने दामों में बेच देता हूँ

अब तक तो मैं अंजान था
अब मुझे अपनी कीमत समझ आ रही है
अब मुझे फंसना नहीं है
ज्यादा नहीं पर 
हक और उचित मूल्य जरूर चाहिए
अब मैं चुप नहीं बैठूगा
मुझे लाचार और कमजोर न लेखा जाए
मेरी काबिलियत का मूल्यांकन होना चाहिए

मैं पुरूष हूँ

मैं पुरूष हूँ
यह बात तो सौ प्रतिशत सत्य
पर मैं और कुछ भी हूँ
एक पुत्र हूँ
एक भाई हूँ
एक पति हूँ
एक पिता हूँ
और न जाने क्या - क्या हूँ
मेरे पास भी दिल है
मैं कठोर पाषाण नहीं
जो टूट नहीं सकता
मैं बार बार टूटता हूँ
बिखरता हूँ
संभलता हूँ
गिरकर फिर उठ खडा होता हूँ
सारी दुनिया की जलालत सहता हूँ
बाॅस की बातें सुनता हूँ
ट्रेन के धक्के खाता हूँ
सुबह से रात तक पीसता रहता हूँ
तब जाकर रोटी का इंतजाम कर पाता हूँ
घर को घर बना पाता हूँ
किसी की ऑखों में ऑसू न आए
इसलिए अपने ऑसू छिपा लेता हूँ
सबके चेहरे पर मुस्कान आए
इसलिए अपनी पीड़ा छुपा लेता हूँ
पल पल टूटता हूँ
पर एहसास नहीं होने देता
मैं ही श्रवण कुमार हूँ
जो अंधे माता पिता को तीर्थयात्रा कराने निकला था
मैं ही राजा दशरथ हूँ
जो पुत्र का विरह नहीं सह सकता
जान दे देता हूँ
माँ ही नहीं पिता भी पुत्र को उतना ही प्यार करता है
मैं राम भी हूँ
जो पत्नी के लिए वन वन भटक रहे थे
पूछ रहे थे पेड और लताओ से
तुम देखी सीता मृगनयनी
मैं रावण भी हूँ 
जो बहन शूपर्णखा के अपमान का बदला लेने के लिए साक्षात नारायण से बैर कर बैठा
मैं कंडव  त्रृषि हूँ जो शकुंतला के लिए गहस्थ बन गया
उसको बिदा करते समय फूट फूट कर रोया था
मेनका छोड़ गई 
मैं माॅ और पिता बन गया
मैं सखा हूँ 
जिसने अपनी सखी की भरे दरबार में चीर देकर लाज बचाई
मैं एक जीता जागता इंसान हूँ
जिसका दिल भी प्रेम के हिलोरे मारता है
द्रवित होता है
पिघलता है
मैं पाषाण नहीं पुरुष हूँ

Monday, 28 November 2022

चमचा की पहुँच हर जगह

चमचा हर युग की जरूरत
चमचा बिना तो सब अधूरा
पतीले में व्यंजन लाजवाब पडे हैं
बिना चमचो तक उन तक पहुंच नहीं
चमचा से हिलाना पडेगा
चमचा से निकालना पडेगा
चमचा से खाना पडेगा
तब जाकर उसका स्वाद समझ में आएगा

कटोरी तो खैर छोटी सी
उसमें तो हाथ डालकर खा सकते हैं
ग्लास से लेकर भगोना
हर गहरे चीज में पहुंचना है
तो आवश्यक है चमचा

बडे बडे काम
बडे बडे अफसर
इन तक पहुंचना इतना आसान नहीं
चमचा तो जरूरी है
बिचौलिया बिना तो डायरेक्ट पहुँच नहीं
यह तो इंसान है
ईश्वर तक पहुंचने के लिए भी
पंडे - पुजारी की शरण

इनके रूप अलग अलग हो सकते हैं
नाम अलग-अलग हो सकते हैं
आकार अलग - अलग हो सकते हैं
हाँ इनकी जरूरत सभी को
साधारण आदमी से लेकर सत्ताधीशो तक
बहुरूपिये से लेकर राज दरबारियों तक
इनकी चमक फीकी नहीं पड रही
समय के साथ मांग भी बढ रही
तोड जोड़ करना हो
बिठाना - गिराना हो
ये माहिर खिलाडी है
इनसे दुश्मनी लेना अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना
अगर सब कुछ सुचारु रूप से हो
हमारा कार्य सिद्ध हो
तब तो चमचा को बार-बार चमकाना पडेगा
कुछ हिस्सा देना पडेगा
नहीं तो आप ताकते रह जाएंगे
चमचा मुंह चिढाता रह जाएंगा

Saturday, 26 November 2022

समझ नहीं आया

हम तो किसी को नहीं भूले
सबने हमको भूला दिया
क्या हुई खता
यह अभी तक समझ न आया
वैसे हम कभी भी किसी को पसंद नहीं थे
फिर भी दिल के हाथों मजबूर थे
प्यार तो सब करते थे
इसीलिए हमसे जुड़ना
या हमारा उनसे जुड़ना मजबूरी थी
मजबूरी में मजबूती नहीं होती 
कर्तव्य निभाना भी उसी का हिस्सा 
वह तो उन्होंने भी निभाया
हमने भी अपनी सामर्थ्य भर निभाया 
हाँ हम कहीं कमजोर थे
इसीलिए तो आज मंजर कुछ और है
लेन - देन होता है
वह पैसे में हो प्यार में। 

कदम से कदम जोड़ो

धूप पर अधिकार सभी का
छाया पर अधिकार सभी का
वायु पर अधिकार सभी का
जल पर अधिकार सभी का
देश पर अधिकार सभी का
हर कण- कण हमारा है
प्रकृति हमारी है
देश हमारा है
तब उनकी रक्षा- सुरक्षा का अधिकार हमारा है
हक से जब हम कहते हैं 
यह हमारा है
उसी हक से यह भी कहना है
इसके प्रति जिम्मेदारी भी हमारी है
उत्तरदायित्व भी हमारा है
सब फले - फूले 
खुशहाल रहें 
हम भी तो यही चाहते हैं 
तब पहल के लिए किसी और की ओर ताकना 
खुद पहल करना है
आगे आना है
एक कदम तो बढाओ यारों 
अपने आप ही कदम से कदम जुड़ जाएंगे  ।

नौकरी ना करी

काम तुम भी करते हो
काम मैं भी करता हूँ 
तुम नौकरी करते हो
बडे अफसर हो
दस लोग सलाम करते हैं 
कुर्सी पर बैठते हो 

मैं ठेले लगाता हूँ 
लोगों को सलाम करता हूँ 
मीठे से बोलता हूँ 
हर कोई मेरे ठेले पर आए 
कोई सुनाता है तो सुन भी लेता हूँ 
पैसे भी कमाता हूँ 
हाँ तुम्हारी तरह ठाठ बांट से कपडे नहीं पहनता
मैं हाथ से काम करता हूँ 
तुम कलम से

सब कुछ भिन्न है
एक बात फिर भी है
मैं किसी का नौकर नहीं 
अपनी मर्जी का मालिक हूँ 
दवाब नहीं है किसका 
तभी तो कहा गया है
नौकरी      ना    करी 

शहरी - ग्रामीण जीवन

शहर की सुबह भी देखी
गांव की सुबह भी देखी
शहर की शाम भी देखी
गाँव की संझा भी देखी
कुछ फर्क भी देखा

एक की सुबह हुई 
मुर्गे की बांग के साथ
सूरज के आगमन के साथ
चिड़ियों की चहचहाहट के साथ
भोर जल्दी हो जाती है
झाडू- बुहारना 
दाना - पानी 
पशुओं को चारा 
कुछ खेत - खलिहान की ओर
सब हो जाता है
तब खटिया पर बैठ आराम से बतियाते हैं 
रस - दाना , चाय - पानी करते हैं 
थोड़ा राजनीति,  थोड़ा गाँव की चर्चा 
दोपहर खाकर आराम किया
संझा को मोटरसाइकिल- साइकिल उठाई
चल दिए बाजार की तरफ
आए खाए - पीए और जल्दी सो गए
यह हैं गाँव का जीवन

अब दूसरे की सुबह हुई 
गाडी- मोटर की पी पी , पो पो
सूरज दादा का भी आगमन 
उनकी तरफ किसी की दृष्टि नहीं 
बस सबका ध्यान घडी की ओर 
लोकल पकडनी है
ओला- उबर बुक करनी है
रिक्शा मिलेगा या नहीं 
ट्रेफिक जाम में फंस तो नहीं  जाएगे 
बाॅस आज फिर तो नहीं  डाटेगा 
जल्दी- जल्दी नाश्ता 
कुछ ठुसा कुछ छोड़ा 
बस खडे खडे चाय पी ली
बैठने की फुर्सत नहीं 
टिफिन भी लेना है
नहीं तो फिर वडा- पाव पर दिन काटना है
ऑफिस में सर खफाते रहें 
घडी देखते रहें 
छूटे और फिर भागे
फिर वही भीड 
वही धक्के 
कैसे बैसे घर पहुँचे 
थक कर चूर 
शाम से ही सुबह की तैयारी 

इतना फर्क है 
शहरी और ग्रामीण जीवन में 

आओ न जरा पास बैठे

आओ न जरा पास बैठे
तुम कुछ अपनी कहो 
कुछ हम अपनी कहें 
मन की गाँठ खोले
जो कबसे पडी है
उन्हें तो तोड़े
आओ मन हल्का करें 
यह भार लेकर क्या करें 
बस कुढते रहें 
भार को हल्का करें 
सब बातों को  सुन - समझ ले 
कुछ गिला - शिकवा तुमको हैं हमसे
कुछ शिकायत हमको भी हैं तुमसे 
उन शिकायतों का पुलिंदा रख क्या होगा
प्यार हमको भी है तुमसे
प्यार तुमको भी है हमसे
फिर इस अहम् का बीच में क्या काम
आओ एहसास दिलाए 
एक - दूसरे को
तुम्हारे बिना जिंदगी बेमानी
जी तो लेते हैं सभी
अपनों के साथ जीने का मजा कुछ और ही 

जो शहीद हुए हैं???

विजय सालस्कर, अशोक काम्टे,  हेमंत करकरे
हमारे तीन जाबांज पुलिस ऑफिसर 
आज ही के दिन आंतकवादियों की भेंट चढ गए
यह भारत पर हमला था
ऐसा छिपा हुआ कायरता पूर्ण
जो पहले नहीं हुआ था
ताज होटल के मैनेजर
कमांडो संदीप उन्नीकृष्णन 
होटल स्टाफ 
अस्पताल के नर्स और डाॅक्टर 
पूरी मुंबई तीन दिन तक बंधक रही
छत्रपति शिवाजी टर्मिनस स्टेशन पर गोलीबारी 
वह पुलिस जो कुर्सी से रोक रहा था
वह एनाउंसर जो अपनी जगह से हिला नहीं जिससे न जाने कितनों की जाने बच गई
तुकाराम ओंबाले  
इन सबको भुलाना आसान नहीं 
हम घर में बैठे यह मंजर देख रहे थे
वह हमारे जाबांज रिपोर्टर और पत्रकारों के कारण 
जो पल पल की खबर दे रहे थे
अपनी जान जोखिम में डाल कर
जब विपदा आती है तब हर देशवासी किस तरह सामना करता है
युद्ध सरहद पर ही नहीं अंदर भी लडी जाती है
सभी का योगदान 
सरकार का
कर्मचारियों का
पुलिस के जवानों का
कंमाडो का
सूचना देने वाले टैक्सी वाले का
अस्पताल के सफाई कर्मचारी का
नर्स और डाॅक्टर का
होटल स्टाफ का 
इन सबके परिवार का
सामान्य जनता का
जो शहीद हुए है उनकी जरा याद करो कुर्बानी

अपना - अपना मन

उनके घर में बच्चे का जन्मदिन था
खूब तैयारी की थी
सजावट भी गुब्बारे से
न जाने कितनी फूल - पत्तियों से घर सजाया था
बडा सा केक आया था
कमला सब काम कर चली गई थी
संझा समय जन्मदिन मना धूमधाम से
केक कटे 
पिज्जा , बर्गर की पार्टी
बच्चा खुश 
उसके दोस्त खुश
बच्चों ने कुछ खाया कुछ छोड़ा
यह फेंकना क्यों ??
प्लेट से निकालकर इकठ्ठा किया
उसको क्या पता चलेगा
अच्छी तरह से प्लास्टिक के डब्बे में रख दिया
कल कमला बाई आएगी तो दे दूंगी
खुश हो जाएंगी
घर ले जाएंगी
कहाँ से उसके बच्चों को इतना मंहगा केक मिलेंगा

आज इतनी देर लगा दी बाई
कहाँ रह गई थी
केक लेने गई थी मेमसाब
कल बाबा का जन्मदिन था
आज मेरे छोटे का भी है
अब हम लोग गरीब 
बडा तो केक ले नहीं सकते
यह छोटा लाई हूँ
उसी बेकरी से जहाँ से आप लाती है
एक अपने लिए 
एक आपके लिए
एकदम फ्रेश है
आप लोग जरूर खाना
मेरे छोटे को आशीर्वाद देना
वह भी पढ लिखकर आप लोग जैसा बडा आदमी बनें

हाथ से केक का डिब्बा लेते हुए मैं सकुचा गई
इस गरीब का दिल
एक मेरा दिल
टेबल पर रखा हुआ 
वह जूठे इकठ्ठे किए  हुए केक का डिब्बा मुझे चिढा रहा था
मेरी औकात बता रहा था

हमारा संविधान

आज संविधान दिवस
हर चीज की आजादी
हर अधिकार प्राप्त
मैं देश का एक नागरिक
मैं स्वतंत्र हूँ
संविधान ने मुझे यह हक दिया है
मैं देश के किसी भी कोने में विचरण करूँ
अभिव्यक्ति की आजादी भी दी है
अधिकार तो मुझे ज्ञात है
कर्तव्य का भी तो पता हो

जब देश हमारा
तो यहाँ की हर चीज हमारी
सडक , बिजली , पानी
तब उसका इस्तेमाल भी कैसे करना है
यह भी जानना बहुत जरूरी है
कचरा कहाँ फेंकना है
पर्यावरण को कैसे बचाना है
वोट किसे देना है
योग्य नेता का चुनाव कैसे करना है
सरकारी कर्मचारियों से काम कैसे करवाना है
रिश्वत देकर या बिना दिए
टैक्स भरना है या चोरी करना है
पुलिस और प्रशासन से सहयोग करना है

न जाने क्या क्या करना है
अधिकार प्राप्त करने के लिए
कर्तव्यो का निर्वाह करना
कानून का पालन करना
स्वेच्छा से
जबरन
यह तो हम पर
यह हमारा संविधान हमसे कहता है

मैं कौन हूँ

मैं कौन हूँ??
मैं सीता हूँ त्याग की प्रतिमूर्ति
मैं काली हूँ राक्षसों का संहार करने वाली
मैं गांधारी हूँ जिसने ऑखों पर पट्टी बांध ली क्योंकि अन्याय का प्रतिकार करने का यही रास्ता दिखा
मैं द्रोपदी हूँ जिसको भरी सभा में निर्रवस्र् करने की कोशिश हुई
मैं भगवान बुद्ध की पत्नी यशोधरा हूँ जिसे अर्धरात्रि में सोता छोड़ चले गए
मैं सावित्री हूँ जो यमराज से पति का जीवन मांग लिया
मैं मनु हूँ जो दत्तक पुत्र को पीठ पीछे बांध अंग्रेजों से लड रही थी
मैं भोलेनाथ की अर्धांगनी सती हूँ जो पति का अपमान होते देख भस्म हो गई
मैं राजपूताने की जौहर वाली हूँ जो अग्निकुंड में कूद जान दे दे
मैं इंदिरा हूँ जिसने दुनिया का नक्शा बदल दिया
ऐसे न जाने कितनी
पद्मावती से लेकर अहिल्याबाई होलकर तक
कस्तूरबा से लेकर मीरा कुमार तक
जिद पर आ जाऊं तो कैकयी बन जाऊं
बेटे को तो राजा बनाकर रहूंगी किसी भी कीमत पर
मैं यह सब तो हूँ
इन सब में मैं हूँ
तब कमजोर तो कदापि नहीं
मुझमें प्रतिकार की शक्ति
इतिहास बदलने की शक्ति
घर हो या बाहर
मेरा ही वर्चस्व
वह भले ही मैं जताऊ नहीं
मैं नारी हूँ 
जननी हूं
सृष्टि की निर्मात्री हूँ
घरनी हूँ
घर ही मुझसे
हर रूप मेरा 
एक अलग कहानी कहता
मुझे समझना इतना आसान नहीं
मैं एक अनसुलझी पहेली हूँ

Friday, 25 November 2022

ये ऑखें

कमलनयनी,  कजरारे नैन
काजल से भरी ऑखें 
नशीली ऑखें 
मृगनयनी 
बडी बडी ऑखें 
पनियाली ऑखें 
बहुत प्रकार है
साहित्य भरा पडा है
ऑखों को तो सबने देखा
उन ऑखों के पानी को नहीं 
उनकी पीड़ा को नहीं 
छलकती ऑखों के अंतरतम में नहीं झाँका 
न जाने कितनी पीडा समेटी हुई है ऑखें 
ऐसे ही नहीं बरसती है असमय 
बोल नहीं पाती है
तब ऑसू बन कर बाहर आती है
उन ऑसूओं का मोल क्या लगाया जा सकता है
नारी रोती ही नहीं 
बहुत कुछ कह जाती है
बिना बोले ही
यह ऑखें प्यार और पीडा 
खुशी और गम व्यक्त कर जाती है 
यह कमबख्त ऑसू ही है
जो कभी खत्म नहीं होते
पलकों के पीछे छिपे ये ऑसू 
बहुत अनमोल है
इनको ऐसा ही सहेज रखें 
यही तो पहचान है 
यही तो संपत्ति है नारी की ।

Thursday, 24 November 2022

वह जामाना

राजा - महाराजाओं के दिन लद गए 
अब तो उनके महल बचे हैं 
उन महलों का रखरखाव होता है
पर्यटक देखने जाते हैं 
वाह-वाह करते हैं 
लौट आते हैं 
महल फिर सूना हो जाता है
यही महल कभी हलचल से भरे होते होंगे 
लोगों की हंसी और किलकारियां गूंजती होगी
पायल की रूनझुन सुनाई देती होगी
शहनाई और गायन होते होंगे 
इन सब की झंकार नहीं है
क्योंकि उसमें कोई रहता नहीं है
अतीत शानदार होगा
इसमें कोई शक नहीं 
यही हाल तो हम व्यक्तियों का है
कभी वे भी जवान होंगे 
उनका भी परचम लहराता होगा
पैर एक जगह ठहरते नहीं होगे
बाजुओ में दम होगा
जिस ओर निकल जाएं 
लोग देखते रह जाएं 
अब तो बस घर में एक स्थान मिला है
जो आते हैं 
वे प्रणाम करते हैं 
आशीर्वाद लेते हैं 
एकाध सेकंड बैठ हाल चाल ले लेते है
और पास से उठ जाते हैं 
कहने को हम बडे हैं 
लेकिन एक महल के खंडहर समान है
वह हमारा जमाना जो नहीं रहा 

सोच कैसे बदले

न किसी से कुछ कहा
न किसी का सुना
हम अपने ही में मस्त रहें 
मेहनत करते रहें 
मुकाम हासिल करने की कोशिश भी करते रहें 
बहुत कुछ हासिल भी किया 
उलट कर जवाब भी नहीं दिया 
तब भी लोग हमारे बारे में न जाने क्या क्या सोच लेते हैं 
अब दुनिया की यह फितरत है
अपने आप बातें गढ लेना 
जो हम नहीं जानते हमारे बारे में 
वह सब भी वे जान जाते हैं 
कोई घमंडी समझता है
कोई कुछ और
अब इनका क्या करें 
इनकी सोच तो बदल नहीं सकते

वो लम्हा

मौसम सदा एक सा नहीं रहता 
बदलता रहता  है
त्रृतु परिवर्तन तो प्रकृति का धर्म है
इंसान भी यही करता है
वह भी बदलता है
समय अनुसार 
परिस्थितियों के कारण 
बदलाव तो अवश्य भावी है
हमेशा दिन एक सा नहीं रहता
इसमें कुछ नया नहीं है
जो समय और साथ जीया है
वह याद कर लो
कुछ बातों से 
कुछ घटनाओं से
अपने आप ही मुस्कान आ जाएंगी 
शिकायत नहीं 
वह पहले जैसा नहीं रहा
वैसी बात नहीं रही
कोई बात नहीं 
वह लम्हा तो साथ है

सच कहना मना है

आज कुछ भी कहना 
यानि दुश्मनी मोल लेना है
अगर सरकार के विरोध में बोलो
आप देशद्रोही है
परिवार में किसी को बोल दो
तब आप नापसंद है
आप पर कुछ न कुछ तोहमत गढ दिया जाएंगा 
अपने बच्चों को बोलो
अपने पति को बोलो
कुछ गलती पर ध्यान खीचो 
तब आपसे बुरा कोई नहीं 
जहाँ विचारों का आदान-प्रदान न हो
सही को दबाया जाएं 
किसी न किसी कारण हावी हो जाएं 
पावर का बोलबाला हो
दब कर रहना
अपनी बात को न रख पाने की मजबूरी 
तब वह देश हो 
परिवार हो
मजबूत हो ही नहीं सकता
जहाँ सच कहना मना है
वह सांस भर रही हो
सिसकियाँ भर रही हो
झूठ का सिक्का ज्यादा नहीं चल सकता
जब घडा भर जाता है तभी पानी उछल कर बाहर आता है ।

माँ की संतुष्टि

किसी ने अपने बच्चे को आटे का घोल पिलाया दूध बताकर
किसी ने अपने बच्चे को चावल का मांड पिलाया
किसी ने रोटी पर नमक और तेल लगाकर दी
किसी ने घुघनी और रस दिया
किसी ने छाछ और रोटी दी
किसी ने घी और शक्कर चुपोड कर दी
किसी ने बडा - पाव दिया
किसी ने शिरा और उपमा दिया
किसी ने इडली - डोसा और पोहा दिया 
किसी ने बिस्किट- दूध दिया
किसी ने चाय - रोटी दी
किसी ने पिज्जा और बर्गर दिया
किसी ने बटर - ब्रेड और फ्रूट दिया
हर किसी ने अपनी- अपनी क्षमता के अनुसार दिया
व्यंजन में विविधता होगी
प्यार में नहीं 
सबको अपने बच्चों का पेट भरना था 
नाश्ता  कराना था
किसी के पास समय का अभाव 
किसी के पास धन का अभाव
किसी का और कोई कारण 
कोई और मजबूरी 
कौन ऐसा है 
जो बच्चों के लिए कुछ न करें 
बच्चे भले तुलना करें 
शिकायत करें 
माँ के लिए तो बच्चे ने खा लिया 
यानि उसका भी पेट भर गया
जो संतुष्टि उसे मिलती है वह तो देखने लायक होती है ।

मैं नारी बेचारी

मैं नारी हूँ
इसीलिए तो बेचारी हूँ
मैं माॅ हूँ
इसीलिए तो शक्तिशाली हूँ
मैं पत्नी हूँ
तभी तो सहनशील हूँ
मैं ममता की मूर्ति
मैं सती - सावित्री
मैं वीरागंना
मैं गृहिणी
मैं तो गृहस्थी की धुरी हूँ

संसार का बोझ लेकर चलती हूँ
फिर भी ऊफ नहीं करती हूँ
मुझे मालूम है
मैं क्या हूँ
मुझे अपनी शक्ति का अंदाजा है
मेरे बिना तो एक घर - परिवार भी व्यवस्थित नहीं चल सकता
संसार की बात ही अलग

मैं सब बर्दाश्त कर लेती हूँ
परिवार के हर व्यक्ति के नखरे उठा लेती हूँ
उनका सारा गुस्सा - खीझ अपने में समा लेती हूँ
जब नौ महीने गर्भ में बोझ उठा सकती हूँ
तब यह सब तो कुछ भी नहीं

मैं बेचारी तो हूँ
पर मेरे बिना घर नहीं चलता
सबकी अपेक्षा मुझसे ही
मैं वह नीलकंठ हूँ
जो विष का घूंट धारण कर गले तक ही रखती हूँ
अपने परिवार पर उसके छींटे भी नहीं पडने देती

मैं बेटी हूँ
मैं बहन हूँ
मैं पत्नी हूँ
मैं बहू हूँ
मैं माॅ हूँ
तभी बेचारी हूँ
व्यक्ति तो बाद में
सबसे पहले इतनी सारी भूमिका निभाना है
तब तो बेचारी ही बनना है
नहीं तो दूसरे बेचारे बन जाएगे
वह मुझे स्वीकार नहीं

Wednesday, 23 November 2022

औरत का हाल

माँ का दिल रोता है
बाप का दिल नहीं पसीजता
वह तो इज्जत की दुहाई देता है
समाज का ख्याल करता है
लोग क्या कहेंगे 
यही सोच डरता है
बेटी को प्यार तो करता है
उसकी बात नहीं मानता 
न वह समझता है
न समझना चाहता है
माँ तो बेचारी लाचार
करें तो क्या करें 
धमकी देता है छोडने की
इसी ऊहापोह में सब रहते हैं 
न खुशी से जीते हैं 
न किसी को जीने देते है
समाज जो किसी काम नहीं आता
हंसने के सिवाय 
उसी के कारण अपनी बेटी की खुशियों का गला घोटता है
यह किसी एक घर की कहानी नहीं 
अमूनन हर घर की कहानी है
विकास की बात केवल किताबों में 
मानसिकता तो वैसी की वैसी है
बदलना नहीं है
इस का परिणाम 
इसका अंजाम 
कभी अच्छा तो कभी बुरा
सहना औरत को ही है
कभी बेटी कभी पत्नी के रूप में 

टेलीविजन

हमने बिना टेलीविजन का युग देखा है 
ब्लैक और व्हाइट का युग देखा है
कलर टेलीविजन तो आज देख ही रहे हैं 
बहुत कुछ बदला है
वैसे न लोग रहें 
न वह मानसिकता रही
न वह वक्त रहा 
वक्त ने बहुत कुछ दिखाया हि
बहुत कुछ सिखाया है
रामायण और महाभारत का दौर भी देखा है
आपकी अदालत और कौन बनेगा करोड़पति भी
इंडियन ऑयडियल और डांस - कॉमेडी भी
न्यूज चैनल का मिजाज भी देखा है
कहाँ से शुरू कहाँ से खतम 
अब टेलीविजन आवश्यकता बन गई है
बिना उसके अब रह नहीं सकते
मोबाइल तो है ही
वह भी कुछ मनोरंजन को बाँट रहा है
फिर भी टेलीविजन तो टेलीविजन ही है
उसकी तो एक स्पेशल जगह है
हर वर्ग के लोगों की पसंद 
बच्चों और बूढो को अपने साथ जोड़ने वाला
यह केवल इडियट बाॅक्स नहीं है
हमारे मनोरंजन का साथी
अकेले पन का साथी
यही वह है टेलीविजन 

जिंदगी से प्यार

खुशी मिले या न मिले
गम ही मिले
इतना भी नहीं 
जिंदगी से भरोसा ही उठ जाएं 
ईश्वर पर ही विश्वास न हो
सारा जग बेकार लगे
अरे कुछ तो हो जीने लायक
नहीं बडा रुतबा- ओहदा 
नहीं बडा मकान - बंगला 
नहीं बेशुमार धन - गहना
बस कहने को कोई हो अपना
भरोसे लायक हो
साथ - साथ चल सके
हर हाल में हाथ पकड़े रहें 
स्वयं से ज्यादा विश्वास हो उस पर
उस वक्त जिंदगी 
अभावों में भी खुश रह लेगी 
रूदन में भी मुस्कान भर लेंगी 
सच्चा हो मन का अच्छा हो
सामान्य ही हो
हाँ इंसान हो
हर नशे से दूर 
प्यार के नशे में चूर हो
सर पर छत हो
खाने को दाल - रोटी हो
इतना ही कर सके जो
ऐसा एक अभिन्न साथी हो
तब तो काँटों में भी फूल खिल जाएंगे 
जिंदगी से सच में प्यार हो जाएंगा। 

पत्रकारिता का धर्म

मैं पत्रकार
पत्रकारिता मेरा धर्म
आजादी मेरी पहली मांग
अभिव्यक्ति की आजादी
जो हो रहा है 
वह बताने की आजादी
समाज के दर्पण में झांकने की आजादी
सत्ता के गलियारों का खेल जानने की आजादी
देश - दुनिया की खबरों को पेश करने की आजादी
हर जगह झांकने की आजादी
स्वतंत्र विचार रखने की आजादी
विचरण करने की आजादी
मुझ पर बंदिश न लगे
मेरे पेशे की पहली मांग
निष्पक्षता और निष्ठा
बंधन से मुक्त
पत्रकार हूँ
व्यापारी नहीं
मुझे खरीदा नहीं जा सकता

हाँ समय बदल रहा है
नजरिया बदल रहा है
यहाँ नाप तौल कर काम हो रहा है
खबर दिखाने  में भी डर
ऊपरवालो का प्रेशर
नौकरी भी करनी है
पेट का सवाल है
मैं क्या चाहता हूँ
यह मायने नहीं
खबर सच हो या न हो
चटखारे वाली
मिर्च मसाले वाली हो
भले उसमें दम न हो
सच से कोसों दूर हो
दरबारी संस्कृति और चाटूकारिता
जिसकी सत्ता उसका बोलबाला

Tuesday, 22 November 2022

यह पेट है

यह पेट है भाई 
है बडा पापी
सारी दुनिया इसी के इर्द-गिर्द 
यह न हो तो शायद कुछ भी नहीं 
जीव - जंतु हो या आदमी
पेट भरने की जरूरत सबकी
कभी यह भूखा रहता है
कभी बेहिसाब खाता है
सस्ते से सस्ता 
महंगे से मंहगा
आदमी तो जानवर बन जाता है 
न जाने क्या-क्या गुल खिलाता है यह पेट
जीवन का हवनकुंड  है यह 
यह कोई खाली डिब्बा नहीं 
जो इसे जब चाहे जैसे चाहो भरो
वही सामग्री पडे जिसकी इसे जरूरत है

फेसबुक तो अच्छा है

फेसबुक तो अच्छा है
ताने तो नहीं देता 
मुस्कराकर किसी न किसी की गुड मार्निग दिखा जाता है
दिन अच्छा बना जाता है
भगवान के भी दर्शन करा जाता है
अपने आप ही मन्नतें मंगवा जाता है
दुख दर्द में सहभागी हो जाता है
अंजाने से भी सहानुभूति के दो बोल बुलवा जाता है
कुछ पता करना हो तो
बिना झिझक किसी न किसी के माध्यम से बता जाता है
इंसानो की तरह मुंह नहीं फुलाता न ही फेरता 
ईष्या और जलन तो नहीं रखता
भोजन भी बनाना सिखा जाता है
जिसको कुछ भी नहीं आता
उसे भी खुशी खुशी सब बता जाता है
औषधि से लेकर व्यायाम तक 
सारी जीने की कला सिखा जाता है
हमारी रचनाओं को
हमारी भावनाओं को भी लोगों तक पहुंचा जाता है
अपरिचित को भी परिचित बना जाता है
प्रकृति का नजारा दिखाता है
नैतिकता का पाठ पढाता है
कभी गुरू कभी दोस्त बनकर हमारे दिल को छू जाता है
सारी दुनिया से परिचय करवाता है
भजन तो सुनाता है
गीता और रामायण भी बताता है
राजनीतिक हलचल से भी अवगत कराता है
जिसको जैसे हो वैसा विचार रखने देता है
राजनीतिक गलियारों की सैर कराता है
नेताओं के कार्यकलाप से अवगत कराता है
समाचार भी सुनाता है
समस्या किसी की भी हो
वह चाहे किसान हो या गरीब 
सभी को दिखाता है
दान और सहायता भी करवाता है
अस्पताल में पडा बीमार या फुटपाथ पर भिखारी 
सबके लिए तत्पर रहता है मदद का हाथ बढवाने में 
भारत हो या अमेरिका या फिर पाकिस्तान 
अंबानी हो या ट्रम्प 
कहीं से कोई छूटता नहीं है
सबका समाचार मिल ही जाता है
सिने जगत और मनोरंजन जगत में क्या हलचल
टेलीविजन की दुनिया की क्या खबर
अमिताभ हो या श्वेता तिवारी 
सबकी हर पल की खबर देता है
अपनी बात पहुंचाने का इससे अच्छा माध्यम क्या
हम यहाँ मुंबई में  बैठे है
उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव में भी हमारी खबर पहुँच ही जाती है
हमारे अपने हमें बधाई और शुभकामना दे देते हैं 
हमारे सुख - दुख को बाँट लेते हैं 
हम कहाँ हैं क्या कर रहे हैं 
यह सब बता देता है
अपनी भावनाओं को 
अपनी खुशियों को व्यक्त करने का इससे अच्छा माध्यम क्या हो सकता है
तभी तो हम कहते हैं कि 
         फेसबुक अच्छा है ।

Monday, 21 November 2022

मेरा देश मेरी भाषा

क्या अच्छी अंग्रेजी बोलता हूँ
सब फिदा 
कहते हैं पूछते हैं
कहाँ से सीखे
एकदम विदेशी लहजा
शायद असलियत यह नहीं
मन तो आज भी हिंदी का कायल
अपनी बोली औ भाषा का
उसमें कोई बनावटीपन नहीं
मन से निकलता है भाई
अंतरात्मा की आवाज होती है
I can  talk  English 
I can  walk  English 
पर रोता हूँ
हंसता हूँ
भावविभोर होता हूँ
वह तो मेरी हिंदी भाषा
मेरी बोली भोजपुरी
कितना आनंद
तोडने और मोडने में भी मजा
बाबु से बबुआ
बबुआ की मिठास अभी भी कायम
लैन्टर्न से ललटेनवा 
ललटेनवा की बात ही निराली
डाॅक्टर से डक्टरवा
ब्रदर से भईया
चाचा ताऊ
चाची ताई
बाबा दादा नाना
आजा आजी नानी
भाभी भौजी , मौसी 
साढू- साला 
न जाने कितने रिश्ते
अंग्रेजी में तो 
बस अंकल ' आंटी
मदर इन ला
फादर इन ला
और न जाने कितने इन लाॅज
यहाँ तो हर रिश्ते की अपनी चमक
अपनी खनक
अपनी महक
गजब का अपनापा
वह भी शब्दों में
तब जहाँ शब्द इतने लाजवाब
उस भाषा पर 
हम क्यों न हो फिदा
जीना और मरना
भी तो अपनी ही भाषा में
यह है मेरा गुमान

Sunday, 20 November 2022

तेरा साथ

तेरे लिए मैंने छोड़ दी दुनिया 
हर कुछ छोड़ा
बस एक तेरा साथ पकड़ा 
यह पकड कितनी मजबूत है
यह तो नहीं जानता
हाँ यह हाथ कभी न छूटेगा 
मेरा तुझसे हैं यह वादा
अब तो साथ - साथ चलना है
गम हो या खुशी
सब साथ - साथ
ऐ मेरे साथिया 
तुझ बिन जीना नहीं 
तुझ बिन मरना नहीं 
तुझसे जो जुड़ा नाता मेरा
बदल गया जीवन सारा 

दुनियादारी

विवादों से मेरा गहरा नाता है
वैसे तो मैं ही सीधा - सादा
बस अपने में मस्त
अपने काम से काम 
नहीं किसी की निन्दा न बुराई
न किसी से लेना न देना
फिर भी यह दुनिया है न
किसी न किसी तरह लपेट ही लेती है
ऐसा जाल बुनती है
मकडी की तरह उसमें फंस ही जाता है
उससे निकलना बडा मुश्किल 
यहाँ शांति से रहा नहीं जा सकता
कोई चाहे या न चाहे 
परिचित हो या अंजान 
सबकी नजर रहती है
सारी खोज खबर 
इसी को शायद 
कहते हैं दुनियादारी 

मशीनी युग

किसी से अलगाव नहीं 
इतना लगाव भी नहीं 
मुख में मिठास तो है
दिल में खटास भी नहीं 
संबंधों में इतना अपनापन नहीं 
लेकिन कुछ दुराव भी तो नहीं 
न नजदीकी है न दूरी है
न कोई अच्छा है 
न कोई बुरा 
न नाराजगी है
न प्यार है
कैसा है यह झमेला 
इतनी तटस्थता 
आज यही हो रहा है
न मन का अपने
न दूसरों के मन का
यही संबंधों की है असलियत 
लगता है 
सब मशीनी है
यांत्रिकी युग में मशीन हो गया है आदमी 

Saturday, 19 November 2022

दिमाग से काम ले

माता- पिता से बडा हितैषी कोई नहीं 
अगर संतान गलती भी करें 
तब भी वह उसके पैतीस टुकड़े तो नहीं करेंगे 
मत भेद हो सकता है
पर दुश्मनी नहीं 
किसी अंजाने पर विश्वास कर लेना 
अपने जन्म दाता पर अविश्वास 
उनसे संबंध तोड़ लेना
वे बोलेगे पर रास्ते पर नहीं छोडेंगे 
अधिकार केवल उन पर ही
डर लग रहा है अब तो
श्रद्धा का अंजाम देखकर 
बेटियों को भावना में न बहकर दिमाग से काम लेना चाहिए 
स्वप्न नहीं  हकीकत  देखें 

जिंदगी का साथ निभाना

खाना खाएं या न खाएं 
गाना गाए या न गाए
रोएं या हंसे
काम करें या न करें 
जीना तो है ही
जिंदगी इतनी जल्दी साथ नहीं छोड़ती 
उसका एक अपना वक्त होता है
वह तो उसी अनुसार चलेगी 
आप चलो या न चलो
वह तो चलती रहेगी 
समझदारी तो इसी में है
उसके साथ-साथ चलना
कदम से कदम मिलाकर चलना
तुम साथ चलो तब देखो 
वह कैसे दौड़  लगाती है
तुमसे एक कदम आगे
तुम जब तक सोचेगे 
तब तक वह चल देगी
चलना ही तो जिंदगी है
रुकना तो मौत है
जीते जी मौत क्यों??
हंसे , खिलखिलाएं,  गाएँ 
जिंदगी का साथ निभाएँ। 

Friday, 18 November 2022

सजन रे झूठ मत बोलो

सजन रे झूठ मत बोलो,  खुदा के पास जाना है
लडकपन खेल में खोया
जवानी नींद भर सोया
बुढ़ापा देख कर रोया 
यही  किस्सा पुराना है
बचपन में विविध भारती पर यह गाना सुनते थे
तब समझ नहीं आया था इस गीत की गहराई 
उम्र के इस पड़ाव पर समझ आ रहा है
समय बहुमूल्य है
इसका बहुत सावधानी से उपयोग करना है
पल पल को जीना है पूरी शिद्दत से
सोच - विचार कर हर काम करना है
लापरवाही की तो गुंजाइश ही नहीं रखनी है
खेल कर सो कर बेकार नहीं करना है
जो हासिल करना है उसके लिए मेहनत 
शुरू के बीस - बाईस साल अगर मेहनत की
तब आगे के साठ साल आराम से
अगर शुरुवाती दौर को गंवा दिया
तब तो बुढापे में  रोना ही है 

समस्या??

रास्ते में बडा पत्थर था
हमने रास्ता बदल लिया
उस पत्थर को हटाने की कोशिश न की
अगर हटाते उसे
हो सकता था
मंजिल कुछ और होती
अंजाम कुछ होता
कुछ नया होता
हमारे बाद भी लोग उस पर चलते
रास्त बदलना आसान है
लेकिन कब तक
कदम कदम पर रोडे है
रूकावट है
चट्टान और पत्थर है
समस्या का हल छोड़ कर नहीं 
डट कर सामना करने में है 

Wednesday, 16 November 2022

मन्नू भंडारी

जमाना था वह
जब मनोरंजन के साधन किताबें थी
चंदा मामा- चंपक पढते पढते कब बडे हो गए 
उपन्यास और कहानियां पढने लगे
साहित्य में रूचि लेने लगे
धर्मवीर भारती की साप्ताहिक हिन्दुस्तान 
नौटियाल जी की ब्लिटज 
टाइम्स ग्रुप की नवभारत टाइम्स 
फिल्मी पत्रिका माधुरी और फेमिना

इसी समय साहित्य कारों से परिचय हुआ 
गुलशन नन्दा के उपन्यास से शुरू हुआ सफर 
मुंशी प्रेमचंद के गोदान पर खत्म हुआ 
बहुत सी लेखिकाओं से परिचय हुआ 
मन्नू भंडारी  ,शिवानी,  कृष्णा सोबती ,उषा प्रियंवदा
आधुनिक विचार रखने वाली लेखिकाएं 
मन को खूब भाती थी उनकी रचनाएँ 
ऐसा लगता था यह हमारी अपनी हो
अस्सी का दशक था
प्रगतिशील विचारधारा का प्रभाव पड रहा था
शिक्षा के द्वार खुल गए थे
नयी नयी कल्पना अपनी उडान भर रही थी
एक तरफ पुरातन सोच दूसरी तरफ नयी
उसमें टकराव हो रहा था
हमारी पीढ़ी उसी की उपज है

अमीन सयानी का रेडियो जयमाला 
विविध भारती के गाने और नाटक
रेडियो पर ही सब सुनना
कपिल के छक्के और चौके
धीरे-धीरे टेलीविजन आया
रामायण और महाभारत का भी दौर चला

आज भी हमारी सोच अत्याधुनिक है
क्योंकि  हमने मन्नू भंडारी और शिवानी को पढा है
आज मन्नू भंडारी जी का निधन बहुत बडी क्षति है
साहित्य जगत के लिए 
उनकी ही रचना पर बनी फिल्म 
अमोल पालेकर और विद्या सिन्हा द्वारा अभिनीत 
      रजनीगन्धा 
भंडारी जी की महक भी रजनीगन्धा जैसे बरकरार रहेंगी

अंधेरे से प्रकाश की ओर

जब माँ के गर्भ में बच्चा होता है
तब वह अंधकार की खोह में होता है
वहाँ से बाहर आने को छटपटाता है
जब तक अंदर तब तक नीरव शांति
जैसे ही प्रकाश में आता है
रोना शुरू कर देता है
बाहर की दुनिया से परिचित होने लगता है
कुछ देर बाद हंसता है 
मुस्कराता है
यह प्रकाश उसको भला लगने लगता है

अब वह अंधकार में नहीं रहना चाहता
तभी तो संझा होते ही दीया बाती किया जाता है
लाइट और बल्ब जलाया जाता है
यह अंधकार से प्रकाश की ओर बढने की एक कडी है
और इसका कोई मौका वह नहीं छोड़ता
तभी तो दीपावली में वह हर एक कोने में दीया जलाता है
उस रोशनी से अपने घर आंगन को प्रज्वलित करता है

वह हमेशा प्रभात की ही प्रतीक्षा करता है
यह प्रभात होते ही वह तरोताजा हो जाता है
प्रकाश को वह प्रणाम करता है
अंधकार को सब दूर भगाना चाहते हैं
घर हो या जीवन
हमेशा रोशन रहे
इसके लिए अनवरत प्रयास
वह ताउम्र करता है
कोशिश यही रहती है
अंधकार का साया तक न रहें

अंधेरा भी तो स्थायी नहीं
हर अंधेरे की सुबह तो होगी ही
दीप तो प्रज्वलित होगे ही
दीपावली भी मनेगी
बस प्रयास जारी रहे
अंधेरे की इतनी भी हिम्मत नहीं
उजाला को  रोक सकें

Tuesday, 15 November 2022

छोटी सी आशा

आशा है छोटी
छोटी सी आशा 
एक है निराशा
निराशा है बडी
आशा हर से अच्छी 
जीवन में आशा है
तब सब कुछ है
जीने का दृष्टिकोण सिखाती 
मन में आस जगाती
आज नहीं तो कल
सब कुछ ठीक होगा
समय का इंतजार 
हर का समय आता है
अपना भी आएगा
इसी एक डोरी के सहारे 
जीवन बदल जाता है
आशा जिंदगी के करीब लाती है
निराशा जिंदगी से दूर 
तब चुनना है 
तब आशा को
आशा है तो जीने का मजा है ।

उजाला हर जगह

हर जगह उजाला
घर में
मंदिर में
द्वार पर खिड़की पर
रसोंईघर
गुसलखाना
पीपल का पेड
बरगद का पेड़
कोई कोना ऐसा नहीं जहाँ दीया न जला हो
दीप न जगमगाएँ हो
रोशनी जब हर जगह
तब दिल भी तो रोशन हो
अंधकार को दूर करों
बरसों से जो संचित है जेहन में
किसी की बातें
किसी का व्यंग
किसी का दुर्व्यवहार
सालती है हर वक्त
उसको निकाल फेंके
अच्छी सोंच को जगह दे
भूल जाए 
क्या हुआ था
क्या नहीं
अंधकार में रहकर क्या फायदा
स्वयं को ही दर्द
जब जीवन स्थायी नहीं
तब सोच क्यों ?? 
उसको अपने साथ थोड़े ले जाना है
न उसको अमर बनाना है
उस कोने से बाहर निकले
रोशन करें
यह हमारे हाथ में है
कहाँ दीया जलाए
कहाँ नहीं
तब मन के हर कोने को साफ कर
वहाँ दीया जलाए
अपने जीवन को अंदर - बाहर दोनों तरफ से रोशन करें

Monday, 14 November 2022

यह मन

यह मन बडा चंचल है
कभी स्थिर नहीं रहता
हमेशा चलायमान 
इस मन में न जाने क्या-क्या समाया 
इसका इलाका भी विस्तृत 
एक या दो दिन नहीं 
महीनों- बरसों की बातें इसमें समाई
अच्छी भी बुरी भी
खुशी वाली भी दुखी वाली भी
कचरा भी भरा है व्यंग्य वाली का
समय चला जाता है
हम उस कूडे कचरे विचार को संजोये रहते हैं 
अच्छी बातें कम याद
अब उसमें प्रकाश फैलाना है
या कचरे वाला अंधेरा 
यह तो व्यक्ति पर निर्भर 
ढोये  या  छोड़े 
कुढता रहें या माफ करें 
मन तो कोमल भी है
कितना सहेगा 
मत तकलीफ दो
अच्छा अच्छा सोचो
फालतू और बेकार का छोडो 
मन को भी खिलने दो 

चलते चलो राहुल

शुरुआत तो करो
न कोई अकेले ही
राहुल गांधी ने शुरुआत की है
भारत जोड़ो यात्रा से
लोग जुड़ रहे हैं 
साथ चल रहे हैं 
विभिन्न राज्यों से उनकी यात्रा निकल रही है
संवाद साध रहे हैं 
सबको समझ रहे हैं समझा भी रहे हैं 
भारत को जोड़ना है
भारत अलग कहाँ है जुड़ा हुआ ही है
जुड़ाव लोगों का करना है
मतभेद खत्म करना है 
एक - दूसरे को समीप लाना है
विभिन्नताएं ही विभिन्नताएं 
ऐसे देश के नेता हैं राहुल गांधी 
अगर उनकी नीयत साफ है तो सफल तो होना ही है
इसमें संदेह भी नहीं 
व्यर्थ की टीका - टिप्पणी 
अगर कार्य सराहनीय है तो सराहना करना तो बनता है
चलते चलो राहुल 
देश तुम्हारे साथ है
आज नहीं तो कल
तुम्हें भी समझेंगे। 

जवाहरलाल नेहरू को शत शत नमन

बैरिस्टर मोतीलाल के घर पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी 
नाम रखा जवाहरलाल 
मोती का बेटा जवाहर 
वही पंडित नेहरू जो बडे बाप के बेटे थे
सारी सुख - सुविधा से लैस 
विदेश से शिक्षा प्राप्त की 
कहा जाता है कि उनका कपडा धोने के लिए पेरिस जाता था
मोहनदास करमचंद गांधी से मुलाकात के बाद आजादी की लडाई लडी 
अपने जीवन के बहुमूल्य वर्ष जेल में काटे 
आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री बने 
आधुनिक भारत के नवनिर्माता कहलाए 
अपना घर तक आनंद भवन देश को समर्पित किया
वे केवल मोतीलाल के जवाहर नहीं थे
भारत माता के वे बहुमूल्य जवाहर थे
कर्तव्य पथ आसान नहीं होता
बहुत कुछ कहा गया 
कुछ बातों के लिए जिम्मेदार ठहराया गया
परिस्थितियों के अनुसार कार्य करना पडता है
फिर वह घर - परिवार हो या देश
प्रजातंत्र और हरित क्रांति
शांति का संदेश 
जिस व्यक्ति ने कहा था
मरने के बाद मेरी अस्थियाँ और राख  गंगा में और खेतों में डाली जाएं 
अपनी मिट्टी से कितना प्यार होगा
रहा सवाल उनके हिन्दू होने का तो जिसके नाम के आगे ही पंडित लगा हो
जिन्हें उनके समय के लोग पंडित जी से ही संबोधित करते हो इससे ज्यादा प्रमाण क्या होगा 
उनके रोमांस पर भी चर्चा होती है
वे चाहते तो विदेश में भी बस सकते थे , जो चाहे वह कर सकते थे
यह उनका व्यक्तिगत मामला है और उस पर टिप्पणी कर उनको छोटा दिखाना
इससे क्या उनका योगदान कम हो जाएंगा 
आज नेहरू को हासिए पर रखा जा रहा है
आप सब कुछ बदल सकते हैं 
इतिहास नहीं बदल सकते
जो है वह तो है
बच्चों के चाचा नेहरू का आज जन्मदिन है 
हम भी मनाते थे अपने छुटपन में 
कोट पहने हुए गुलाब लगाए हुए सर पर गांधी टोपी धारण किए हुए चाचा नेहरू ही याद आते हैं 
आज वह पंक्तियाँ याद आ रही है
   फूलों की सेज छोड़ दौड़े जवाहरलाल  
   साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल 
 शत शत नमन 
       बच्चों के हम सब के चाचा नेहरू को ।

हर फूल अलग-अलग

हर फूल अलग-अलग 
हर फूल का स्वभाव और मिजाज अलग-अलग 
हर फूल का रंग और सुगंध अलग-अलग 
हर फूल के गुण और विशेषता अलग-अलग 
जो भी है सब महत्वपूर्ण है
अपनी - अपनी जगह सबकी अहमियत 
यही तो बात बच्चों पर
सब एक - दूसरे से जुदा- जुदा
 किसी की बगिया के फूल हैं 
उनकी अपनी एक खुशबू है
उनको खिलने दिया जाएँ 
पलने और बढने दिया जाएं 
तभी तो वे निखरेगे 
कमाल करेंगे 
किसी से किसी की तुलना नहीं 
कोई  बंजर धरती में 
कोई बगीचे में 
कोई गमले में 
खिलना तो इनको है
शोभा तो बढाते ही हैं 
उपयोगी भी होते हैं 
कोई ईश्वर के चरणों में 
कोई औषधि में 
कोई गुलदस्ता में 
कोई प्रेमिका के गजरे में 
और न जाने किन - किन रूपों में 
बस उनको खाद - पानी - मिट्टी मिले 
यह उनका हक है
तब देखो 
यह कैसे खिलते हैं 
मुस्कुराते हैं 
खिलखिलाते हैं 

कपडे का भी इतिहास

आज कपड़ों की भरमार
अलमारी भरी पडी है
समझ नहीं आता 
कब क्या और कौन सा पहना जाए
बेटी ने कहा
चलो आपके लिए दीवाली के कपडे लेते हैं
क्या करना है
जो है भी वह भी पहना नहीं जाता
रिटायर भी हो गए हैं

कितना बदलाव ??
एक समय था जब दीवाली में ही कपडे खरीदें जाते थे
दो जोड़ी पर उसका इंतजार रहता था
न बर्थ डे न और कुछ
पैसे भी रिश्तेदारो से त्योहार पर मिलते
कितनी उत्सुकता
कितनी प्रसन्नता

आज भी वह जेहन में झालर वाली फ्राक याद है
रंग भी याद है
काॅलेज का वह पहला बेलबाॅटम और टाॅप
और वह पहली साडी
और भी बहुत कुछ 
आज अलमारी में ही कौन सी साडी 
पता नहीं
न जाने कितने सूट

उस दीवाली और अब की दीवाली में यही फर्क
तब अभाव में भी भावों से भरा मन था
आज भरा हुआ सब कुछ
तब मन खाली खाली
तब जगह की कमी थी
दिल में अपार जगह थी 
जो सबको समा लेता था
आज घर बडा और दिल छोटा
किसी की जरूरत नहीं
बस अपने आप से मतलब
तब फोटों सेशन की जरूरत नहीं थी
अपने लोग दिल में समाए थे
आज भी बिना फोटो के उनकी छवि अंकित है
जो पुरानी होने पर भी धूमिल नहीं
वैसे ही तरोताजा

समाज और उसकी सामाजिकता
हौले हौले खिसक रही है
जो कुछ बचा वह भी दिखावा

यह मुंबई है मेरी जान

यह मुंबई है मेरी जान
यह जमीन से उठाकर आसमान पर पहुंचाती है
पर उसी को
जो यहाँ आकर परीक्षा देता है
कठिन से कठिन 
बडा पाव और फुटपाथ
यह दो माध्यम
एक पेट भरता है
दूसरा आसरा
नीचे जमीन छत पर आसमान
इनके बीच व्यक्ति
मेहनतकश लोगों को आदर
छोटे से छोटे आए
बडे से बडे बने
नाम और पहचान
यह इसी की बदौलत
लहराता सागर 
सारी नदियों को समा लेता है
ऐसी हमारी मुंबई सबको समा लेती है
अनचाहे को सागर भी बाहर कर देता है
मुंबई में रहना होगा 
तब उसकी आन और शान बनाएं रखने की जिम्मेदारी हर नागरिक की
हर मुंबईकर की
यहाँ अनैतिकता नहीं चलेगी
यह वह शहर है जो सबसे सुरक्षित हैं
रात के बारह बजे भी 
पूरी रात भी
मुंबई कभी सोती नहीं है
न  कभी होश खोती है
हमेशा सतर्क
कुछ असामाजिक तत्वों के कारण आज वह कुछ परेशान
ईमानदारी से काम करना
मेहनत करना
तब यह आपकी अपनी हो जाएंगी
यहाँ कोई भूखा नहीं रहता
यह सबका पेट भरती है
तब ऐसी मुंबई को दिल से सलाम
मुंबई हमारी और हम मुंबई के

Saturday, 12 November 2022

चापाकल

यह गाँव है
यहाँ अब भी चापाकल है
जब तक उसे जोर से चलाए नहीं 
पानी नहीं आएगा 
लगता है कुछ कहता है
मैं जिंदगी हूँ साहब
जब तक जोर नहीं लगेगा
प्रयास नहीं होगा
तब तक सफलता हासिल नहीं होगी
आराम से हाथ लगा दो
मैं वह नल नहीं जो पानी दे दूँ 
कहीं नीचे तक गहरा हूँ 
उस गहराई तक पहुंचने के लिए प्रयास तो अवश्य भावी है
अगर जोर नहीं तो मैं वैसे ही खडा रहूंगा
सारे कार्य रूक जाएंगें 
सफल होना है 
तब हाथ - पैर चलाना है
तब देखो 
जीवन के झरने से
कैसे झर झर पानी गिरता है

अधूरा चांद

चांद अधूरा है
फिर भी हमें प्यारा है
पूर्णता की अपेक्षा नहीं 
पूर्ण तो हम भी नहीं 
कोई और कैसे होगा
सिवाय ईश्वर के 
मानव है
कुछ अच्छाई कुछ बुराई
कुछ कमी कुछ कमजोरी 
इन्हीं कमजोरियों के साथ जीते हैं 
कुछ को सुधार करते हैं 
कुछ के साथ चलते हैं 
शायद वह बदलता नहीं 
हम अभिनेता नहीं हैं 
जीवन के रंगमंच पर अभिनय नहीं 
जो हैं उसी के साथ जीना है
हमारा अपना व्यक्तित्व है
हमारा अपना नाम है
हमारा अपना वजूद है
हमारी अपनी खासियत है
ऐसा तो नहीं कि अधूरे चांद का कोई सौंदर्य नहीं होता
वह भी प्यारा ही लगता है
चांदनी और प्रकाश तो वह भी फैलाता है
तारों का समूह उसके साथ भी चलता है
पूर्णिमा का पूरा चांद न सही
कुछ तो हैं 
वह भी कहाँ कम 
उसी में खुश ।

हम जो भी हैं

ऊंचाई पर जाना हर कोई चाहता है
सबकी अपनी-अपनी सीमा
तितली भी उडती है
गौरैया भी उडती है
कौआ भी उडता है
बाज भी उडता है
जो उडान बाज भर सकता है
वह गौरया नहीं 
जो गौरैया भर सकती है
वह तितली नहीं 
अगर अपनी सीमा से ज्यादा प्रयास करेंगी 
तब शायद रह नहीं जाएँगी 
सबकी सीमा अलग 
सबका सामर्थ्य अलग 
किसी की नकल और तुलना उचित नहीं 
आप जो हैं वो हैं 
आप गौरया है तब बाज तो हो नहीं सकते
न उसके जैसा विशाल न उसके जैसी उडान 
आप छोटी है तब भी सबको भाती है
हर घर में आपका स्वागत होता है
छोटा सा घोंसला हर छत और रोशनदान पर 
दाना और पानी रखा जाता है
ची ची करती आओ और खाकर जाओ 
छोटा हो या बड़ा 
सभी की अहमियत 
तभी तो कहा गया है 
जो काम सुई करें 
      वह कहाँ करें तलवार 

हमारा जन्मदिन

हमने भी कभी जन्मदिन मनाया था
हाँ उस समय केक नहीं काटा था
मोमबत्ती नहीं बुझाई  थी
भगवान के मंदिर गए थे
दीए जलाए थे
सुबह-सुबह उठे थे
माता - पिता का आशीर्वाद लिया था
तब ईश्वर के दरबार गए थे
भोर में सूर्य के प्रकाश के साथ दिए जलाकर
अर्धरात्रि या संझा को नहीं 
अंधेरों के साथ नहीं 
प्रकाश के साथ
बुझाने से नहीं जलाने से
उम्र तो बढती रहती है
हर साल एक साल कम होता है
कम होने की खुशी को सेलिब्रेट किया ??
शायद नहीं 
ईश्वर को धन्यवाद 
माता-पिता का शुक्रिया 
जिनकी वजह से हम हैं 
हमारा वजूद है
किसी लायक और काबिल है
तब दीए जला कर 
प्रकाश के साथ
जीवन पथ पर आगे बढ़े ।

Friday, 11 November 2022

हमने देखा है

हम हर चट्टान से टकराए हैं 
हम हर भंवर से निकले हैं 
हमने हर झंझावात का सामना किया है
हमने कडकती बिजलियों को सहा है
हमने भूकंप के धक्के खाएं हैं 
हमने सावन भी देखा है भादों भी देखा है
वसंत भी देखा है पतझड़ भी देखा है
सूखा भी देखा है हरियाली भी देखा है
बंजर भी देखा है उपजाऊ भी देखा है 
झमा झम बरसात भी देखी है
लू से भरी तपती गर्मी भी देखी है
मौसम का हर मिजाज देखा है
तपते सूर्य को और चंद्रमा की शीतलता को अनुभव किया है
हर का रूप अलग 
हर का रंग अलग 
सभी को साथ साथ लेकर चलते देखा है 

जिंदगी का फलसफा

हमारे साथ यह हुआ
हमारे साथ वह हुआ
यह सब हमारे साथ ही क्यों??
कुछ को आसानी से सब
कुछ को बिना संघर्ष 
बडी कोफ्त होती है
कैसा नसीब लिखाया है
लाॅटरी लग जाएं कभी 
यह तो कल्पना भी नहीं कर सकते
फिर भी लगता है
ईश्वर शायद हमारी परीक्षा ले रहा है 
हमारी काबिलियत का एहसास करा रहा है
हममें शायद कुछ खास बात है 
हम हर संघर्ष को झेल सकते हैं 
जीवन के टेढे मेढे रास्ते पर आराम से चल सकते हैं 
उसे अपने अनुसार समतल बना सकते हैं 
भाग्य तो हाथ में नहीं 
कर्म से भी बहुत कुछ हासिल कर सकते हैं 
शायद जिंदगी का फलसफा भी कुछ  कुछ ऐसा ही है  

मेरा देश बदल रहा है

मेरा देश बदल रहा है
अब सफाईकर्मी शान से आता है
अब चायवाला भी अपनी टपरी पर अभिमान करता है
अब रिक्शावाला भी शर्म नहीं करता 
काम करने में क्या शर्म 
कुछ तो यह तक बोलते है
हम इन सफेदपोश बाबू से कम थोडे कमाते हैं 
अब तो पढ - लिखकर स्टार्ट अप  शुरू कर रहे हैं 
बडी आई टी कंपनी की नौकरी छोड़ अपना बिजनेस कर रहे हैं 
अब किसान भी खेती में नए-नए प्रयोग कर रहा है
अब ड्राइवर की ऑफिसर बेटी गर्व से कहती है
ये मेरे पापा हैं
अब ऑफिस में खाने का डिब्बा लेकर आई माँ को सम्मान से देखा जाता है
गरीब और लाचार को हेय नहीं मदद के हाथ बढ रहे हैं 
नजरिया बदल रहा है
सोच बदल रही है
समाज बदल रहा है 
कुछ ओछी मानसिकता अभी भी है वह भी बदलेंगी ही
छोटा - बडा नहीं 
इंसान,  इंसान ही बना रहें 
प्रयास हो रहा है
सफलता भी मिल रही है
यह सब एक दिन में नहीं 
दशकों से शुरू है
तभी यह मुकाम हासिल हुआ है
न जाने कितने लोगों का योगदान 
कुछ जाने कुछ अंजाने 
जो भी हो
मेरा देश बदल रहा है 

हम लडके वाले

जमाना सच में बदला है
बदलाव तो हुआ है
मन उसको स्वीकार नहीं कर पा रहा है
परम्परा जो जड जमा कर रखी है
सत्य तो स्वीकार करना पडेगा
कितनी चोट लगती है
जब अहम् आहत होता है
कभी लडकी वालों से सीधे मुंह बात न करने वाले
आज उनकी राह देख रहे हैं 
गाँव में यह दृश्य देखा
हर घर में एक - दो कुँवारे लडके हैं 
शादी की उम्र हो गई है
कोई नहीं  आ रहा है
राह देखते बैठे हैं 
जो घर का द्वार  कभी तिलकहरू से भरा रहता था
उसका यह हाल
लडकी वाले की भी अब मांग है
लडका ऐसा हो
घर ऐसा हो
छोटी फैमिली हो
काम न करना पडे 
शहर में रहना है
लडकियों के भी नखरे हैं 
दहेज प्रथा तो अभी भी है
नजरिया अवश्य बदला है
अब वही घर भाग्यवान नहीं 
जहाँ लडके हो
अब लडकी वाले भाग्यवान दिख रहे हैं 
बेटों वालों का घर रिक्तता से घिरा
बेटियों वालों का भरा हुआ 
तीज - त्यौहार पर बेटी अपने पति के साथ आकर घर गुलजार करती है
बदलाव तो हो 
होना भी है 
लेकिन समझदारी दोनों को दिखानी  होगी 
तभी सामाजिक ढांचा खड़ा रह पाएंगा 
नहीं तो वह लडखडाता रहेगा 
नैतिकता का ह्रास होता रहेगा ।

अपने

सबसे लडा जा सकता है
बस अपनों से नहीं 
बहुत तकलीफ देह होता है
जब अपने रूठ जाते हैं 
बातचीत बंद कर देते हैं 
तब ऐसा लगता है
बर्दाश्त क्यों नहीं कर लिया
सह क्यों नहीं लिया
क्या जरूरत थी विवाद करने की
किसी का कहा हुआ 
सत्य ही है
 दूसरों का बर्दाश्त कर लिया 
तब अपनों का बर्दाश्त करने में क्या हर्ज है
अपने तो अपने ही होते हैं 

Thursday, 10 November 2022

मैंने जिंदगी को बडे नजदीक से देखा है

मैंने जिंदगी को बडे नजदीक से देखा है
कभी उसे फर्राटे से भागते देखा है
कभी धीमी गति होते देखा है
कभी- कभी सरकते देखा है
कभी तो ट्रैफिक में फंसते देखा है
कभी गढ्ढे में से निकलते देखा है
कभी धंसते भी देखा है
कभी सपाट और स्मूथली भी देखा है
यह तो अनिश्चित है
जाना तो है ही
चलना तो है ही
पहुंचना तो है ही
अब कैसा रास्ता मिले
यह तो स्वयं वह भी नहीं जानती
बस चलना जानती है 

तुम और मैं

तुम और मैं 
लगते जुदा - जुदा
वैसे ही जैसे नदी के दो किनारे 
उसके बीच बहती जलधारा
जो हमको जोडती है
वह है प्रेम और विश्वास की
ऊपर से दो 
अंदर से तो एक ही है
तुम जैसे भी हो
मैं जैसी भी हूँ 
बना रहे साथ हमारा
बहुत कुछ बीत गया 
वक्त भी अपने निशां छोड़ गया
अब जितना भी बाकी है
वही काफी है
बना रहे साथ 
दिल की यही दुआ है

Wednesday, 9 November 2022

असली- नकली

सुंदर- सुंदर फूल लगे थे
शोभा बढा रहे थे ड्राइंग रूम की
कहीं कहीं बेले लटक रही थी
कहीं गुलदानी में फूल सजा था
मनमोहक रंगों में 
लाल , पीले , हरे , गुलाबी
काबू न रख पाई मन को
पास गई निहारने को
सहलाने को उठा हाथ
अरे यह क्या
इसमें तो फूलों जैसी कोमलता नहीं 
कुछ अलग सी नरमी लगी
शायद किसी और चीज का
हाथ खींच लिया
अब वह भावना न रही
बनावट की बू आने लगी
सही भी है
ऊपर से कैसा भी हो
समझ तो नजदीक आने पर ही पता चलती है
खुशबू भी तो असली फूलों से आती है
नकली से नहीं 
नकली तो नकली ही है
असली तो असली ही है
चमकने के कारण पीतल , सोना नहीं बन जाता

Tuesday, 8 November 2022

यह हो नहीं सकता

सब मुझे अच्छा कहें 
कोई मेरी निंदा न करें 
सबसे मैं मिलकर रहूँ 
कोई मेरा दुश्मन न हो
कोई मेरा विरोधी न हो
ऐसा तो हो नहीं सकता
होना भी नहीं चाहिए 
ऐसा हो तब तो
आपका व्यक्तित्व ही कहीं खो जाएंगा 
संसार में  आए हैं 
तब यह सब तो साथ ही चलेगा 
सफलता और विफलता 
अच्छाई और बुराई
अपनत्व और विरोध 
दोस्ती और दुश्मनी 
यही सब तो सिखाते हैं 
व्यक्तित्व को बनाते हैं 

Monday, 7 November 2022

वक्त का बहाना क्यों ??

वक्त नहीं  हमारे पास
वक्त ही नहीं मिला
फोन नहीं कर पाए 
मिलने आ नहीं पाएं 
यह सब तो बहाने हैं 
अगर मन हो तो 
वक्त मिल ही जाता है
सब हो जाता है
फिर यह कोई नहीं 
आज सब व्यस्त है
यह तो सब जानते हैं 
मिलना  - मिलाना
बतियाना - हाल - चाल पूछना 
इनका समय तो निकाल ही लेना चाहिए 
इस बहाने अपनों की कुशल - क्षेम तो जान लेते हैं 
मन को सुकून तो मिल ही जाता है ।

वंशवाद कहाँ नहीं ??

वंशवाद तो हर क्षेत्र में
वह राजनीति हो या बिजनेस
स्वाभाविक है 
जिसने खडा किया है
वह अपनी संतान को देना चाहेगा
मोह तो होता ही है

राम बडे थे
राजा दशरथ का पुत्रप्रेम भी था
जो महारानी कैकयी को रास नहीं आया
अगर राम तो भरत क्यों नहीं
वनवास का रास्ता दिखा दिया
राम ने स्वेच्छा से स्वीकार भी कर लिया

यहाँ राम को अपनी योग्यता सिद्ध करनी थी
वह वन वन घूमे
साधुओं - संन्यासियो को राक्षसों के आतंक से मुक्ति दिलाई
अराजकता का अंत कर रहे थे
साथ में निषादराज और शबरी के प्रति प्रेम भी
पूरी भील जाति को
जनजातियों को अपना बना रहे थे
उपेक्षित और वंचित सुग्रीव को अधिकार दिलाने के लिए
शापित अहिल्या को उसका सम्मान दिलाया
राम वह सब कर रहे थे जो एक राजा को करना था
भरत तो अयोध्या में चरण पादुका संभाल रहे थे
राम जनता के दिल पर राज कर रहे थे
अप्रत्यक्ष रूप से राजा तो वही थे

रावण से भी दुश्मनी सीता के कारण नहीं
बल्कि पूरी नारी जाति का सम्मान वापस दिलाने के लिए
रावण वध का कारण वही था
हनुमान ,जामवंत , नल- नील 
जटायु , संपाती
ये पशु-पक्षी उनके सहायक बनें
उन्होंने किसी को तुच्छ नहीं समझा
यह राम ही थे जिन्होंने ताडका वध और शिव धनुष को तोड़ अपने पराक्रम का परिचय दिया था
माता कैकयी के प्रति नाराजगी का इजहार तक नहीं किया
कोई शिकायत नहीं उस व्यक्ति के प्रति
लोग भी प्रभावित हो रहे थे
उनके स्वभाव 
उनकी वीरता
उनकी धीरता
सराहा जा रहा था
वे केवल अयोध्या वासियों के दिलों में नहीं
पूरे भारतवर्ष में 
उत्तर से दक्षिण तक अपने को सिद्ध करने में लगे थे

राम केवल राजा ही नहीं
एक कुशल राजनीतिज्ञ भी थे
जनता की आवाज सुन कर उस प्राणप्रिया को वन भेज दिया
जिसके लिए उन्होंने महाबलशाली रावण से युद्ध ठाना
सोने की सीता बना अश्वमेध यज्ञ किया
जहाँ बताया कि जानकी अब भी उनकी जान है
बहुपत्नीत्व का परिणाम उन्होंने अपने ही घर में देखा था
पत्नी के प्रति निष्ठा फिर भी प्रजा सर्वोपरि
प्रजा की गलती का एहसास कराया पर दंड देकर नहीं
आज भी राम राज की कल्पना करने का मकसद यही है
राजतंत्र में रहते हुए
राम ने प्रजातंत्र को माना
कदम कदम पर सिद्ध किया
राजा दशरथ का उत्तराधिकारी बन कर नहीं

राजनेताओं के पुत्र राम से सीखे
अपने को काबिल बनाये
बाप की विरासत पर घमंड नहीं
खुद को खडा करें

Sunday, 6 November 2022

एक विदेशी भारतीय

एक ऐसा व्यक्ति 
जिस पर हर कोई अपना अपना दावा ठोक रहा है
दो जानी दुश्मन भी इस पर एक मत
दोनों उस पर अभिमान कर रहे हैं 
अपना बता रहे हैं 
अविभाजित भारत का 
वह और कोई नहीं 
ॠषि सुनक हैं ब्रिटेन के नये प्रधानमंत्री 
इंडियन  और डाग्स नाॅट अलाउड 
यह धारणा पुरानी पड गई 
अब तो वह शासन के सबसे शीर्ष पर पहुंच गए हैं 
कुत्ता वफादारी का प्रतीक 
भारतीय भी कुछ- कुछ ऐसे ही
इनका बायकाट कुछ ठीक नहीं 
ऋषि सुनक भी अपने देश के प्रति वफादार रहेंगे 
जन्म से भारतीय भले न हो
रगो में खून तो भारत का ही दौड़ रहा है

मन की बात

मैंने उसे अपने मन की बात बताई 
उसने दुनिया भर में फैलाई
जिसने जिसने सुना 
सबने अपनी अपनी प्रतिक्रिया दी
किसी ने खिल्ली उडाई
किसी ने सहानुभूति जताई
किसी ने मुंह बिचकाया 
किसी ने कहा ठीक हुआ
किसी ने नजरअंदाज किया
हाँ उसका समाधान किसी ने न बताया
घाव देकर उस पर मरहम लगाना 
यह बखूबी निभाया 
सबने अलग-अलग नजरों से देखा
समझ न पाया
आखिर यह हुआ क्या
अचानक ऐसा रवैया और बदलाव
बिना कुछ बात चीत के 
मस्तिष्क पर जोर दिया
हाँ कुछ दिन पहले अपने एक हितैषी से
मन की बात कही थी
सुना था मन की बात कहने से मन हल्का हो जाता है
यहाँ तो उल्टा हो गया यार
मन और भी भारी हो गया 


जीवन बीत गया

जीवन बीतता जाता है
हम भी बीतते जाते हैं 
एक - एक दिन खत्म होते जाते हैं 
इस बीतने की प्रक्रिया में बरसों लग जाते हैं 
न जाने कितने मोड आते हैं 
कितने घुमाव आते हैं 
हम चलते जाते हैं 
एक - एक मौसम भी हमसे छूटता जाता है
कब वसंत आया 
कब पतझड़ आया
हम समझ पाते 
इससे पहले ही वह चला जाता है
हमें सोचने के लिए छोड़ जाता है
क्या बीता कैसे बीता 
इसका हिसाब किताब लगाते रह जाते हैं 
गुणा - गणित करने लग जाते हैं 
क्योंकि अब ज्यादा कुछ बचा नहीं 
जो बचा है वह बीत जाएंगा
पर कैसे
यह तो सवाल जेहन में रहता ही है
अब तक नहीं सोचा
अब सोचने को बाध्य है
चौथा हिस्सा बीतना बाकी है 
उसका क्या हश्र होगा 
यह तो कोई नहीं जानता 
बस बीत जाएं 
यही बात मन में आती है 
जब तक हमने समझा 
        जीवन क्या है 
              जीवन बीत गया  ।

मैं घर का बडा

मैं घर का बडा
हमेशा बडा ही बना रहा
कभी छोटा हो ही नहीं पाया
बचपन था तब भी बडा
आज उम्र के इस पड़ाव पर भी बडा
अब थक गया हूँ
जिम्मेदारियो का बोझ उठाते उठाते
सबकी अपेक्षाओं पर खरा उतरने की कोशिश करते हुए
अब मैं मुक्त होना चाहता हूँ

छोटा बनना चाहता हूँ
बचपना करना चाहता हूँ
मनमानी करना चाहता हूँ
जी भर कर जीना चाहता हूँ
किसी की परवाह नहीं करना चाहता हूँ
इन सबसे मुझे क्या मिला
बस मैंने हमेशा अपने मन को मारा
छोटो को संभाला
आज सब मस्त है
मैं अभी भी त्रस्त हूँ
कब तक इस बडेपन का बोझ ढोऊ
कंधे बोझिल हो गए हैं

बस अब बहुत हुआ
बडे में सहनशीलता
छोटे में उत्पात
यही है हमारी मानसिकता
अब यह बदलाव करना है
छोटे भी अब छोटे नहीं रहे
वह भी बडे हो गये हैं
जैसे मैं वैसे वह
यही होनी चाहिये 
सबकी सोच

गरीब कौन ???

गरीब कौन ??
यह प्रश्न चिन्ह है
मेरे पास घर है 
गाडी है
टेलीविजन और फ्रीज है
जरूरत की सब चीजें हैं
काम करने को बाई है
तब मैं क्या अमीर हूँ

एक अदद सैलरी आती है
महीने का अंत होते होते उसका भी अंत
बिल भरने से लेकर पेट भरने तक
सबके किश्त चुकाते
घर का सामान से बच्चों की जरूरतें
बचता कुछ नहीं है
दिखता भी करना पडता है
लाइफस्टाइल मेन्टेन करनी पडती है

आज जब ऐसे हालात है
तब डर लगता है
गरीब नहीं हूँ
इसलिए कहीं से कोई मदद भी नहीं
न सरकार से न लोगों से
आत्मसम्मान को ताक पर रख
मांगे तो भी किससे
कौन देगा
सभी की हालत खस्ता
सब बेहाल
क्योंकि वह हमारे ही है दोस्त - यार

अपने को किस कैटिगरी में रखे
यह है समझ के पार
बाहर दिखावा अंदर से कंगाल
ऐसे ही न जाने कितने बेहाल
कुछ उनकी भी पीडा समझी जाए
उन पर भी ध्यान दिया जाए
यह है समाज का मध्यमवर्गीय
वह न गरीब है
वह न अमीर है
इन दोनों के बीच पीसता 
वह गेहूं की भांति  है
जिसका आटा खाता संसार है
फिर भी न कोई इनका कदरदान है
सबसे मारा यही बेचारा

Saturday, 5 November 2022

ऐ चांद

चांद तुम रोज मेरे छत से गुजरते हो
कभी न कभी दिख ही जाते हो
चांदनी रोशनी से नहाए हुए
तारों के साथ चलते हुए
तुम कितने हसीन लगते हो
कभी ग्रहण,  कभी बादल कभी तूफान 
सबका सामना करते हो
झुरमुट से झांक ही लेते हो
कभी पूरे शवाब पर
कभी आधा - अधूरा 
कभी तो केवल एक हिस्सा ही
अमावस की रात भी तो आती है
पूर्णिमा में फिर उसी रूप में 
सफर जारी रहता है
कुछ सीखना हो तो तुमसे सीखे
कोई भी समय हो 
तब भी मुस्कराते ही रहते हो
जितना जगमगा सकते हो जगमगाते रहते हो
शीतल प्रकाश और मधुर चांदनी 
यह हमेशा देते हो
पूरा हो या अधूरा
अपना फर्ज मनोयोग से निभाते हो ।

तब और का क्या भरोसा

दौलत , शोहरत सब बेकार 
स्वस्थ न हो जब यह जीवन मौल्यवान 
सब धरे के धरे रह जाते हैं 
जब बीमारी लग जाती है
तिजोरी भरी है
शरीर खोखला 
तब सारा मामला बिगडा 
बहुत जतन किए 
बहुत मेहनत की
बहुत त्याग और संघर्ष किया
तब जाकर यह मुकाम हासिल किया
इस हासिल करने के पीछे
स्वयं को कहीं निगलेक्ट कर दिया
इस सिलेक्ट और निगलेक्ट के मध्य 
जाने क्या- क्या छूट गया
अब संपत्ति है स्वास्थ्य नहीं 
सोचा था उपभोग करूंगा 
जी भर कर मन माफिक खाऊंगा 
वह बस दाल - रोटी और उबले पर सिमट गया
पर्यटन पर जाऊंगा,  दुनिया की सैर करूंगा 
वह सब व्हील चेयर पर अटक गया
सोचा था न जाने क्या
क्या-क्या ख्वाब बुने थे
सब अधूरे रह गए 
जो शरीर ने साथ निभाया उसका मैं न निभा पाया
अब हालात यह कि
वह भी थक गया
बीमारियों से ग्रस्त 
जब वह ही साथ छोड़ दे
तब और का क्या भरोसा ।

Friday, 4 November 2022

शहर की ओर

गाँव को खींचता है शहर 
हर कोई शहरी बनना चाहता है
शहर के पहनावे - खान पान सब अपनाने को आतुर
अपनी परम्परा छोड़ रहें 
आधुनिकता में ढल रहें 
फैशन की होड लग रही
सब शहर की ओर दौड़ लगा रहें 
गाँव को छोड़ शहर में बस रहें 
झोपड़ी - झुग्गी में रह रहें 
गंदे नालों की बदबू सह रहें 
ट्रेन और बस के धक्के खा रहें 
सुकून और शांति नहीं 
फिर भी शहर भाता है
क्यों हो रहा है ऐसा
अच्छी - खासी जिंदगी छोड शहर की ओर भागना
यहाँ मेहनत करेंगे 
चौकीदारी- दरबानी करेंगे 
सर पर बोझ ढोयेगे 
पर खेती में काम नहीं करेंगे
जितनी मेहनत शहर में उससे आधी भी गाँव में करें 
तब भी जिंदगी अच्छी रहेंगी 
लेकिन नहीं 
एक अदद नौकरी की दरकार
खींच लाती है 
उनको शहर की ओर
उनको अपने मायाजाल में उलझा लेता है यह शहर
यहाँ भीड़ तो बहुत है
आपाधापी भी बहुत है
बिना काम किए भोजन नसीब नहीं 
भीड़ में अकेला होता है आदमी
अपना गाँव अपने लोग छोड़ आता है
सुकून भले न हो 
पैसा तो है 
और पैसा तो बोलता है
सबको गोल - गोल घुमाता है
अनवरत इच्छा और आकांक्षा 
वही साकार करने को पैर बढ पडते है शहर की ओर ।

कोई गिला - शिकवा नहीं

वह उम्र गुजर गयी 
बहुत आगे बढ गई
याद फिर भी उसी उम्र की है
जो इस समय है उसकी नहीं 
गुजरते जमाने की
उसी उम्र के सहारे आज भी मन जिंदा दिल है
वह सुनहरा समय
वह स्वर्णिम वक्त 
साथ - साथ चल रहा है
कभी मन विचलित हुआ
उस समय में झांक लिया
तब लगा 
अभी सब कुछ खत्म नहीं 
बहुत कुछ बाकी है
जिंदगी इतनी भी बुरी नहीं 
बहुत कुछ मिला है
कुछ कमी रह गई 
कोई बात नहीं 
जो हमारे हिस्से में था वह तो भरपूर मिला
ऐसा नहीं कि झोली खाली ही रही
हीरे - मोती भी मिले
सोने - चांदी भी मिले 
पीतल - तांबे भी मिले
लोहे - पत्थर भी मिले
कुछ न कुछ मिला ही है
कोई गिला - शिकवा नहीं 
नसीब अपना - अपना

जिंदगी का गणित

टू प्लस टू  यानि चार
दो गुणा दो यानि चार
जिंदगी का गणित कुछ अलग है
वहाँ हर सवाल का हल नहीं मिलता
कुछ अधूरे रह जाते हैं 
कुछ अधर में लटके रह जाते हैं 
कुछ का जवाब कुछ समय उपरांत 
कुछ का जीवनपर्यन्त नहीं 
यहाँ दो और दो चार नहीं 
कभी-कभी पांच  
कभी-कभी एक 
कभी-कभी तो शून्य 
जीवन वह अंकगणित है जहाँ बडे से बडा धुरंधर भी असफल हो जाता है
कितना भी प्रयत्न करों 
कितना भी हाथ - पैर मारों 
रात - दिन एक कर दो
सर खफा डालो
फिर भी हल नहीं निकलता
यह जीवन है अंकों का खेल नहीं 
इसका गणित तो विधाता की लेखनी के हिसाब से चलता है 
सवाल भी उसका
जवाब भी उसका 

तू ही तू

तू ही है शान मेरी
तू ही है आन मेरी
तू ही है सहारा मेरा
तू ही है प्यार मेरा
तुझसे ही मैं
तुझसे ही मुझे मिला सम्मान
तुझसे ही मैंने स्वयं को जाना
स्वयं का महत्व पहचाना
तेरी नजरों में मैं 
तू ही मेरा खुदा
तुझ पर ही गुरुर मुझे
तुझसे ही खुबसूरती मेरी
मेरी बिंदिया की चमक तुझसे
मेरी चूड़ी की खनक तुझसे
मेरा झुमके की रून झून तुझसे
मेरे पायल की झंकार तुझसे
तू ही है विश्वास मेरा
तू ही है अंदाज मेरा
पता है हर हाल में साथ निभाता यह साथी
दोस्त , सहेली , प्रेमी और पति
सब कुछ तू ही है
तेरे सामने ही दिल खुलता
कोई राज न बचता
तुझसे ही मेरा दिन सुहावना
तेरे ही बदौलत यह मुस्कान
यह खनखनाती बेफिक्री हंसी
चेहरे पर चमक
मेरी हर अदा तेरे लिए
इतना सब कुछ तुझसे
तेरे बिना मेरा अस्तित्व अधूरा
इसलिए यह कामना है 
बना रहे सुहाग मेरा
यही प्रार्थना है हमेशा प्रभु से
बना रहे साथ 
        हमारा - तुम्हारा

Thursday, 3 November 2022

राष्ट्रीय गृहिणी दिवस पर शुभकामनाएं

गृहणी यह शब्द है तो सामान्य 
लेकिन इसमें कुछ बात है खास
पूरा घर जिसका ऋणी हो 
वह है गृहणी
घर की धूरी ही जिसके इर्द-गिर्द घूमती हो
परिवार का हर सदस्य जिस पर अवलंबित हो
बिना छुट्टी के और वह भी चौबीस घंटे 
तैयार और तत्पर 
वह है गृहणी 
हाउस वाइफ कहने को
पर वह ऐसी व्यक्ति है 
जो बिना वेतन के कार्यरत 
ममता , सम्मान के साथ
बच्चों की परवरिश 
बुजुर्गों की देखभाल 
घर को व्यवस्थित रखना
सबकी जरूरतों का ध्यान 
सबके पेट और पसंद का ध्यान 
वंश को बढाने वाली 
भविष्य की अच्छी परवरिश का जिम्मा भी उसी पर
संस्कृति और परम्पराओं का पालन
बेटी , बहन , बहु  , पत्नी , माँ की भूमिका बखूबी निभाने वाली
वह तो सुपर वुमेन हैं 
सभी गृहिणियों को राष्ट्रीय गृहिणी दिवस पर शुभकामनाएं। 

सोना- सोना

सोना सोना सोना
यह कितना मूल्यवान है
सोना मिल जाएं 
तब व्यक्ति मालामाल 
संपत्ति शाली 
अच्छी नींद आ जाएं 
चैन से सो जाएं 
इस भागम-भाग के युग में 
हर समय तनाव ग्रस्त 
अच्छी तरह से सोना
मुश्किल हो गया 
यह सोना या वह सोना
दोनों मिल जाएं 
तब बात बन जाए 
गीत याद आ रहा है
सोना कितना सोना है ।

विभाजन का दंश

विभाजन हुआ था परिवार का
संयुक्त परिवार 
बहुत बडा
हर दिन कोई न कोई झमेला 
छोटी-छोटी बातों पर बखेडा 
शुरुआत अंदर घर की औरतों से
कभी काम को लेकर 
कभी बच्चों को लेकर
आग लग चुकी थी 
उसका धुआं धीरे-धीरे बाहर पुरूषों तक पहुंच गई थी 
फिर अलगाव की प्रक्रिया शुरू हुई 
आखिरकर वह दिन आ ही गया
घर बंट गए 
सबके चूल्हे अलग-अलग 
बीच में  दीवार 
यही तक नहीं रहा 
हम रोज विभाजित होते रहें 
पल पल सब याद आते रहें 
वह साथ में त्यौहार मनाना
हंसना - खिलखिलाना 
खाना - पीना
मौज - मजा करना
लाड - दुलार , नाज - नखरे 
सब छूट गए
यहाँ तक कि आशीर्वाद और प्यार भी
एक द्वेष की लकीर दिलों में 
घर ही नहीं  परिवार ही नहीं 
लोगों के मन भी विभाजित हुआ था
उसकी कसक अभी तक है
ख्याल आता है
साथ सब होते
काश विभाजन नहीं होता ।

Wednesday, 2 November 2022

समय पर छोड़ दें

आप माफी मांगना चाहते हैं 
आप पश्चाताप करना चाहते हैं 
अंतरआत्मा से आवाज आ रही है
यह जिद यह अहम् सब छोड़ दो
आपने छोड़ भी दिया
सामने वाला आपको माफ नहीं करना चाहता है
वह अभी भी क्रोध की अग्नि में जल रहा है
वह उसको लंबा खींचना चाहता है
तब आप क्या करें 
समय दे 
क्योंकि आपका अपने पर वश है
दूसरे पर नहीं 
तब आप उससे निकलिए 
सब समय पर और हालात पर छोड़ दें 

फेकूराम

फेकूराम हर जगह मिल जाते हैं 
इतना फेंकते हैं 
फेंकते ही जाते हैं 
जबकि उनकी असलियत से सब वाकिफ होते हैं 
ऐसा नहीं कि कोई अंजान 
पर कौन मुंह लगें 
बेकार का वाद - विवाद करें 
ऐसे लोग इतने इत्मीनान से फेंकते हैं 
क्या बताएं 
अब उसका कोई उपाय नहीं 
बस सुनते जाएं 
एक दिन ऐसा कर दे
सब फेंकना धरा का धरा रह जाएं 
ऐसे लोग अपने आस-पास 
गली - मुहल्ले  , पडोसी 
यहाँ तक कि परिवार में भी
झूठ को सच करने की कला में माहिर 
वो झूठ फेंके 
उनकी बात को आप भी दूर फेंक दो
सुनो और मुस्कुराओ 
ये लोग भी पृथ्वी के एक नायाब जीव हैं 
जो रहेंगे झोपड़ी में बताएँगे महल
रहेंगे आलसी दिखाएँगे करतबी 
रहेंगे पैसे - पैसे को मोहताज 
दिखावा करेंगे ऐसा जैसे बडा दानदाता हो
चाहे कौडी भर ज्ञान न हो
जताएगे ऐसे उनके जैसा जानकार कोई नहीं 
उनसे उलझना पत्थर पर सर मारना है
क्या करें ऐसे लोग 
फेंकना ही जिनका जमीर है।


अपने - अपने सपने

   कोई  हीरे - मोती - जवाहरात  खरिदना चाहता है
तो कोई सोना
तो कोई चांदी 
कोई पीतल तो कोई तांबा 
कोई सिक्का तो कोई कपडा
कोई बर्तन तो कोई इलेक्ट्रॉनिक उपकरण 
कोई आलिशान घर तो कोई महंगी गाडी 
सबकी अपनी-अपनी ख्वाहिश 
सबके अपने-अपने सपने 
मैं तो खरीदना चाहती हूँ बस सुकून 
अपनों का साथ
प्यार के दो मीठे बोल 
थोड़ा सा सम्मान 
संतोष और समाधान 
नहीं किसी के लिए गिला - शिकवा 
खुशियों से पुष्पित हो घर 
रिश्तों की मिठास हो दिल में 
यह ही वरदान मिले ईश्वर से 
बाकी सब तो थोड़ा- बहुत हो ही जाएंगा 
जीवन शांति और संतोष से कट ही जाएंगा 

इंदिरा जी के साथ ही एक युग का अंत

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Sunday, 1 November 2015
३१ अक्टूबर १९८४ इंदिरा की हत्या
आज के दिन ही भारत की दुर्गा कही जानेवाली इंदिरा की उनके ही अंगरक्षकों ने हत्या कर दी थी
उनके साथ ही एक युग का अंत हो गया
एक बडी राजनयिक की बेटी होने के कारण नही बल्कि स्वंय की काबिलियत पर वह मुकाम हासिल किया था 
लोग उन्हें गुंगी गुडिया कहते थे पर वह जब बोलने लगी तो सारा विश्व देखता रह गया
विश्व के नक्शे को बदलना और एक नया देश बॉगला देश बना डाला
आज लौह पुरूष वल्लभ भाई पटेल की भी जन्म शताब्दी है
लोग आज इनको बॉटने में लगे हैं
सरदार पटेल किसी पार्टी के नहीं पूरे भारत के सरदार थे  राताेरात सारी रियासतों को एक करने का काम वे ही कर सकते थे
भारत की अंखडता के निर्माता है पटेल
आज इन नेताओ को लेकर बहस छिडी रहती है
पटेल हमारे तो इंदिरा तुम्हारी
नेहरू और गॉधी को लेकर भी टीका टिप्पणी की जाती है और ये वे लोग हैं जिनका कोई योगदान नहीं है
भ्रष्टाचार में लिप्त. जबान पर लगाम नहीं 
हिन्दू स्तान और भारतमाता के ये ऐसे अनमोल रत्न है
जिस पर देश को नाज रहेगा

 

वह फिर नहीं आती

बीती जवानी फिर नहीं आती
वह जोश और गुमान 
वह सौंदर्य और ठसक की चाल
वह गाना - गुनगुनाना 
वह अल्हड़पन और हंसी
वह मस्ती वह खुमारी 
फिर नहीं आती
एक बार यौवन बीत गया सो बीत गया
फिर तो समझदारी
लाचारी , बेचारगी , समझौता
यही रह जाता है
वह शरीर ही अपना साथ छोड़ने लगता है
जिस पर हमें कभी गुमान था
वह पैर ही लडखडाते हैं 
जिससे हम कभी मीलों चला करते थे
वह जबान ही खुलकर नहीं बोल पाती 
जब हम बेबाकी से अपनी बात को रखते थे
वह इठलाना,  वह नखराना 
सब भूल जाते हैं 
एक समय की कली मुर्झाया हुआ फूल बन जाती है
रसीले अंगूर जैसा बदन सिकुड़ कर किशमिश बन जाता है
हाथ - पैरों में झुर्रिया 
कोमल और सुंदर चेहरे पर उम्र की रेखाएं 
बहुत कुछ कह जाती है 
कान में कुछ धीरे से कहती है
अब तो बचे - खुचे कुछ दिन बाकी है
जी भर कर जी लो
फिर ऊपर जाने की तैयारी करनी है
न जाने कब बुलावा आ जाएं। 

Happy birthday Sharukh

हैपी बर्थडे बादशाह खान
आज शाहरुख खान  का जन्मदिन है
टेलीविजन के फौजी और सर्कस सीरियल से अपना करियर शुरू
करने वाले शाहरूख ने अपना एक मुकाम बनाया और किंग खान की उपाधि हासिल की
हार कर जीतने वाले को बाजीगर कहते हैं
एक दिल्ली का युवा जिसका कोई पारिवारिक बैकग्राउंड न होने पर भी यहॉ तक पहुँचना उनकी मेहनत और कार्य के प्रति निष्ठा का परिणाम है
हर तरह का रोल उन्होंने निभाया है
उनकी अटक अटक कर बोलने की शैली भी लोगों को बहुत पसन्द आई
सामान्य युवा उसमें अपनी छवि देखने लगा
कभी कभी उन पर अंहकारी होने का भी इल्जाम लगाया जाता रहा है
पर शायद वह अंहकार नहीं स्वाभिमान है 
परिवार के प्रति प्रेम और जिम्मेदारी का भी निर्वाह उन्होंने बखूबी किया है
एक बेटा ,पति ,पिता की भुमिका भी अच्छी तरह से निभाई है
दो दशक से ज्यादा समय तक उन्होंने लोगों के दिलों पर राज किया है और कर रहे हैं
काम करने का जुनून ,किस्मत रंग लाई और आज ये सबके दिलों के बादशाह है
कभी-कभी विवादों में भी घिरे पर बाहर निकल गये
हिन्दू लडकी से शादी और कभी भी धर्म के विवादों में नहीं रहे
एक रोमांटिक हीरों से आम घरेलु व्यक्ति की भूमिका भी बखूबी की
किसी ने शायद यह पंक्ति शाहरुख के लिए ही लिखी
अगर किसी को शिद्दत से चाहो तो सारी कायनात उससे मिलाने को मदद करती है
इस डॉन को अभी पहचानना बाकी हैं 
अभी तो और पारी खेलनी है 
बेस्ट विलेन ,किंग आँफ रोमांस और देवदास की करूणा सब विद्यमान
ब्लाक बस्टर खान जिसने चक दे इंडिया से लेकर रावण जैसी फिल्में भी की
खैर पिक्चर अभी बाकी हैं दोस्तो
किंग खान को और कोई रूप में देखने के लिए