Wednesday, 29 November 2023

मैं पुरूष हूँ

मैं पुरूष हूँ
यह बात तो सौ प्रतिशत सत्य
पर मैं और कुछ भी हूँ
एक पुत्र हूँ
एक भाई हूँ
एक पति हूँ
एक पिता हूँ
और न जाने क्या - क्या हूँ
मेरे पास भी दिल है
मैं कठोर पाषाण नहीं
जो टूट नहीं सकता
मैं बार बार टूटता हूँ
बिखरता हूँ
संभलता हूँ
गिरकर फिर उठ खडा होता हूँ
सारी दुनिया की जलालत सहता हूँ
बाॅस की बातें सुनता हूँ
ट्रेन के धक्के खाता हूँ
सुबह से रात तक पीसता रहता हूँ
तब जाकर रोटी का इंतजाम कर पाता हूँ
घर को घर बना पाता हूँ
किसी की ऑखों में ऑसू न आए
इसलिए अपने ऑसू छिपा लेता हूँ
सबके चेहरे पर मुस्कान आए
इसलिए अपनी पीड़ा छुपा लेता हूँ
पल पल टूटता हूँ
पर एहसास नहीं होने देता
मैं ही श्रवण कुमार हूँ
जो अंधे माता पिता को तीर्थयात्रा कराने निकला था
मैं ही राजा दशरथ हूँ
जो पुत्र का विरह नहीं सह सकता
जान दे देता हूँ
माँ ही नहीं पिता भी पुत्र को उतना ही प्यार करता है
मैं राम भी हूँ
जो पत्नी के लिए वन वन भटक रहे थे
पूछ रहे थे पेड और लताओ से
तुम देखी सीता मृगनयनी
मैं रावण भी हूँ 
जो बहन शूपर्णखा के अपमान का बदला लेने के लिए साक्षात नारायण से बैर कर बैठा
मैं कंडव  त्रृषि हूँ जो शकुंतला के लिए गहस्थ बन गया
उसको बिदा करते समय फूट फूट कर रोया था
मेनका छोड़ गई 
मैं माॅ और पिता बन गया
मैं सखा हूँ 
जिसने अपनी सखी की भरे दरबार में चीर देकर लाज बचाई
मैं एक जीता जागता इंसान हूँ
जिसका दिल भी प्रेम के हिलोरे मारता है
द्रवित होता है
पिघलता है
मैं पाषाण नहीं पुरुष हूँ

मैं किसान हूँ

किसान हूँ
किसी का दिया नहीं खाता हूँ
परिश्रम करता हूँ
खेतों में हल और ट्रेक्टर चलाता हूँ
धूप में पसीना बहाता हूँ
ठंडी और गर्मी के थपेडे  सहता हूँ
बारिश के अंधड - तूफान का सामना करता हूँ
प्रकृति के प्रकोप सहता हूँ
बंजर मिट्टी को उपजाऊ बनाता हूँ

मैं अन्नदाता हूँ
अन्न उगाता हूँ
पूरे संसार का पेट भरता हूँ
मैं किसी की दया नहीं
अपना हक चाहता हूँ
मुझे उचित मूल्य मिले मेरी फसल का
उचित मुआवजा मिले

मैं कोई सरकार का नौकर नहीं
वेतन और बोनस नहीं लेता हूँ
मेहनत मैं करता हूँ
लाभ दूसरे उठाते हैं
मुझसे टमाटर दो रूपये किलो 
बाजार में चालीस रूपये
सब दूसरे की जेब में

मैं व्यापारी नहीं हूँ
पर किसान जरूर हूँ
मेरी जरूरत सभी को है
मैं मिट्टी में सोना उगाता हूँ
सोनार नहीं हूँ
तभी तो उस सोने को औने पौने दामों में बेच देता हूँ

अब तक तो मैं अंजान था
अब मुझे अपनी कीमत समझ आ रही है
अब मुझे फंसना नहीं है
ज्यादा नहीं पर 
हक और उचित मूल्य जरूर चाहिए
अब मैं चुप नहीं बैठूगा
मुझे लाचार और कमजोर न लेखा जाए
मेरी काबिलियत का मूल्यांकन होना चाहिए

Tuesday, 28 November 2023

समय सब भूला देता है


कमोबेश सभी पार्टियों का यही हाल है

एक कहानी सुनी थी अपनी माँ से
एक व्यक्ति था उसकी बेटी विवाह योग्य हो गई थी ।कोई अच्छा वर नहीं मिल रहा था । गरीब की बेटी और ऊपर से सुंदर।  एक दिन वह परेशान हो बेटी को लेकर निकल गया
चलते चलते दूर निकल गए। वहाँ एक मकान दिखाई दिया रात हो ही रही थी सोचा यहाँ आसरा मिल जाएंगा । अंदर गए तो एक कमरे से किसी के कराहने की आवाज आ रही थी । झांक कर देखा तो एक व्यक्ति जिसके पूरे बदन में सुई चुभी थी  व्यक्ति अपनी बेटी को वही छोड़ चला गया
तेरे भाग्य में यही है इसकी सेवा कर और रह ।  
         युवती रोज नहा - धोकर ईश्वर की पूजा कर दो सुइयां निकालती। इसी तरह महीने बीत गए।  अब बस ऑख की सुई निकालनी बाकी थी ।उस घर में एक दासी थी वह यह सब देख रही थी ।उसने क्या किया कि वह भी नहा धोकर , पूजा पाठ कर आखिरी दोनों सुइयां  उससे पहले ही निकाली । इस व्यक्ति ने समझा यही है जिसने मेरी सेवा की है आज से यह मेरी दासी नही रानी है।
यह व्यक्ति एक राजा था जिसे शाप मिल गया था ।कहानी आगे भी है पर उस पर चर्चा नहीं
    कभी-कभी ऐसा भी होता है करता कोई और है ।सालों
की मेहनत और प्रयास।  लाभ किसी और को ।सेहरा किसी और के सिर पर 
राजनीति में तो यह अक्सर देखने को मिलता है ।आपने क्या किया  यह कोई याद नहीं रखता।  आप क्या हैं यह सब याद रखते है। जिसके हाथ में सत्ता उसी का गुणगान।
असली लोग हाशिए पर ।
यह किसी एक पार्टी की बात नहीं है कमोबेश सभी पार्टियों का यही हाल हैं  

राजनीति क्या परिवार में भी यही हाल है । लोग चले जाते हैं समय बदल जाता है ।नयी पीढ़ी आ जाती है ।

तुम्हारा किया - धरा सब भुला दिया जाता है। 

चमचा हर युग की जरूरत

चमचा हर युग की जरूरत
चमचा बिना तो सब अधूरा
पतीले में व्यंजन लाजवाब पडे हैं
बिना चमचो तक उन तक पहुंच नहीं
चमचा से हिलाना पडेगा
चमचा से निकालना पडेगा
चमचा से खाना पडेगा
तब जाकर उसका स्वाद समझ में आएगा

कटोरी तो खैर छोटी सी
उसमें तो हाथ डालकर खा सकते हैं
ग्लास से लेकर भगोना
हर गहरे चीज में पहुंचना है
तो आवश्यक है चमचा

बडे बडे काम
बडे बडे अफसर
इन तक पहुंचना इतना आसान नहीं
चमचा तो जरूरी है
बिचौलिया बिना तो डायरेक्ट पहुँच नहीं
यह तो इंसान है
ईश्वर तक पहुंचने के लिए भी
पंडे - पुजारी की शरण

इनके रूप अलग अलग हो सकते हैं
नाम अलग-अलग हो सकते हैं
आकार अलग - अलग हो सकते हैं
हाँ इनकी जरूरत सभी को
साधारण आदमी से लेकर सत्ताधीशो तक
बहुरूपिये से लेकर राज दरबारियों तक
इनकी चमक फीकी नहीं पड रही
समय के साथ मांग भी बढ रही
तोड जोड़ करना हो
बिठाना - गिराना हो
ये माहिर खिलाडी है
इनसे दुश्मनी लेना अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना
अगर सब कुछ सुचारु रूप से हो
हमारा कार्य सिद्ध हो
तब तो चमचा को बार-बार चमकाना पडेगा
कुछ हिस्सा देना पडेगा
नहीं तो आप ताकते रह जाएंगे
चमचा मुंह चिढाता रह जाएंगा

Sunday, 26 November 2023

मैं कौन हूँ ??

मैं कौन हूँ??
मैं सीता हूँ त्याग की प्रतिमूर्ति
मैं काली हूँ राक्षसों का संहार करने वाली
मैं गांधारी हूँ जिसने ऑखों पर पट्टी बांध ली क्योंकि अन्याय का प्रतिकार करने का यही रास्ता दिखा
मैं द्रोपदी हूँ जिसको भरी सभा में निर्रवस्र् करने की कोशिश हुई
मैं भगवान बुद्ध की पत्नी यशोधरा हूँ जिसे अर्धरात्रि में सोता छोड़ चले गए
मैं सावित्री हूँ जो यमराज से पति का जीवन मांग लिया
मैं मनु हूँ जो दत्तक पुत्र को पीठ पीछे बांध अंग्रेजों से लड रही थी
मैं भोलेनाथ की अर्धांगनी सती हूँ जो पति का अपमान होते देख भस्म हो गई
मैं राजपूताने की जौहर वाली हूँ जो अग्निकुंड में कूद जान दे दे
मैं इंदिरा हूँ जिसने दुनिया का नक्शा बदल दिया
ऐसे न जाने कितनी
पद्मावती से लेकर अहिल्याबाई होलकर तक
कस्तूरबा से लेकर मीरा कुमार तक
जिद पर आ जाऊं तो कैकयी बन जाऊं
बेटे को तो राजा बनाकर रहूंगी किसी भी कीमत पर
मैं यह सब तो हूँ
इन सब में मैं हूँ
तब कमजोर तो कदापि नहीं
मुझमें प्रतिकार की शक्ति
इतिहास बदलने की शक्ति
घर हो या बाहर
मेरा ही वर्चस्व
वह भले ही मैं जताऊ नहीं
मैं नारी हूँ 
जननी हूं
सृष्टि की निर्मात्री हूँ
घरनी हूँ
घर ही मुझसे
हर रूप मेरा 
एक अलग कहानी कहता
मुझे समझना इतना आसान नहीं
मैं एक अनसुलझी पहेली हूँ

संविधान दिवस

आज संविधान दिवस
हर चीज की आजादी
हर अधिकार प्राप्त
मैं देश का एक नागरिक
मैं स्वतंत्र हूँ
संविधान ने मुझे यह हक दिया है
मैं देश के किसी भी कोने में विचरण करूँ
अभिव्यक्ति की आजादी भी दी है
अधिकार तो मुझे ज्ञात है
कर्तव्य का भी तो पता हो

जब देश हमारा
तो यहाँ की हर चीज हमारी
सडक , बिजली , पानी
तब उसका इस्तेमाल भी कैसे करना है
यह भी जानना बहुत जरूरी है
कचरा कहाँ फेंकना है
पर्यावरण को कैसे बचाना है
वोट किसे देना है
योग्य नेता का चुनाव कैसे करना है
सरकारी कर्मचारियों से काम कैसे करवाना है
रिश्वत देकर या बिना दिए
टैक्स भरना है या चोरी करना है
पुलिस और प्रशासन से सहयोग करना है

न जाने क्या क्या करना है
अधिकार प्राप्त करने के लिए
कर्तव्यो का निर्वाह करना
कानून का पालन करना
स्वेच्छा से
जबरन
यह तो हम पर
यह हमारा संविधान हमसे कहता है

कौन अमीर ??

उनके घर में बच्चे का जन्मदिन था
खूब तैयारी की थी
सजावट भी गुब्बारे से
न जाने कितनी फूल - पत्तियों से घर सजाया था
बडा सा केक आया था
कमला सब काम कर चली गई थी
संझा समय जन्मदिन मना धूमधाम से
केक कटे 
पिज्जा , बर्गर की पार्टी
बच्चा खुश 
उसके दोस्त खुश
बच्चों ने कुछ खाया कुछ छोड़ा
यह फेंकना क्यों ??
प्लेट से निकालकर इकठ्ठा किया
उसको क्या पता चलेगा
अच्छी तरह से प्लास्टिक के डब्बे में रख दिया
कल कमला बाई आएगी तो दे दूंगी
खुश हो जाएंगी
घर ले जाएंगी
कहाँ से उसके बच्चों को इतना मंहगा केक मिलेंगा

आज इतनी देर लगा दी बाई
कहाँ रह गई थी
केक लेने गई थी मेमसाब
कल बाबा का जन्मदिन था
आज मेरे छोटे का भी है
अब हम लोग गरीब 
बडा तो केक ले नहीं सकते
यह छोटा लाई हूँ
उसी बेकरी से जहाँ से आप लाती है
एक अपने लिए 
एक आपके लिए
एकदम फ्रेश है
आप लोग जरूर खाना
मेरे छोटे को आशीर्वाद देना
वह भी पढ लिखकर आप लोग जैसा बडा आदमी बनें

हाथ से केक का डिब्बा लेते हुए मैं सकुचा गई
इस गरीब का दिल
एक मेरा दिल
टेबल पर रखा हुआ 
वह जूठे इकठ्ठे किए  हुए केक का डिब्बा मुझे चिढा रहा था
मेरी औकात बता रहा था

Saturday, 25 November 2023

बंदर बनाम आदमी

पहले मदारी आता था 
बंदर नचाता था हम देखते थे
तमाशा देख पैसा देते थे
अब आदमी नाच रहा है
दिन - रात नाच रहा है
उसके एवज में पैसा मिलता है
उसका और उसके परिवार का पेट भरता है
बस नाच ही रहा है
नाचते ही जा रहा है ।

Friday, 24 November 2023

मैं नारी हूँ।

मैं नारी हूँ
इसीलिए तो बेचारी हूँ
मैं माॅ हूँ
इसीलिए तो शक्तिशाली हूँ
मैं पत्नी हूँ
तभी तो सहनशील हूँ
मैं ममता की मूर्ति
मैं सती - सावित्री
मैं वीरागंना
मैं गृहिणी
मैं तो गृहस्थी की धुरी हूँ

संसार का बोझ लेकर चलती हूँ
फिर भी ऊफ नहीं करती हूँ
मुझे मालूम है
मैं क्या हूँ
मुझे अपनी शक्ति का अंदाजा है
मेरे बिना तो एक घर - परिवार भी व्यवस्थित नहीं चल सकता
संसार की बात ही अलग

मैं सब बर्दाश्त कर लेती हूँ
परिवार के हर व्यक्ति के नखरे उठा लेती हूँ
उनका सारा गुस्सा - खीझ अपने में समा लेती हूँ
जब नौ महीने गर्भ में बोझ उठा सकती हूँ
तब यह सब तो कुछ भी नहीं

मैं बेचारी तो हूँ
पर मेरे बिना घर नहीं चलता
सबकी अपेक्षा मुझसे ही
मैं वह नीलकंठ हूँ
जो विष का घूंट धारण कर गले तक ही रखती हूँ
अपने परिवार पर उसके छींटे भी नहीं पडने देती

मैं बेटी हूँ
मैं बहन हूँ
मैं पत्नी हूँ
मैं बहू हूँ
मैं माॅ हूँ
तभी बेचारी हूँ
व्यक्ति तो बाद में
सबसे पहले इतनी सारी भूमिका निभाना है
तब तो बेचारी ही बनना है
नहीं तो दूसरे बेचारे बन जाएगे
वह मुझे स्वीकार नहीं

Saturday, 18 November 2023

छठ केवल पर्व नहीं जीवन संदेश है

उगते हुए सूरज को तो सब प्रणाम करते हैं 
डुबते हुए को नहीं 
यही जिंदगी का फलसफा है
सूर्य तो सुबह भी प्रकाश बिखेरते हैं संध्या को भी जाते - जाते
मानों हमें कह रहे हो
जो बूढे हो गए हैं वे बेकार और बेकाम नहीं हो गए हैं 
कुछ नहीं तो आपके बच्चों के लिए वे ज्ञान का भंडार हैं 
आपके ऊपर आपके घर पर छत्रछाया हैं 
थोड़ा सा प्रेम और अपनापन से उन्हें रीचार्ज करते रहिए 
उनमें उत्साह का संचार होगा
छठ पर्व ही एक ऐसा पर्व है जहाँ उगते हुए सूर्य को ही नहीं डुबते हुए सूर्य को भी अर्घ्य दिया जाता है
जितने उत्साह और उमंग से आगमन 
उतने ही उत्साह और उमंग से बिदाई 
जीवन की भी उदय बेला और संध्या बेला का सम्मान होना चाहिए 
वे लोग जिनके कारण आप इस पृथ्वी पर आए हैं 
जिन्होंने जी भर कर प्यार लुटाया है
त्याग और बलिदान किया है इच्छाओं का
अब आपका फर्ज है
यही लोग है जो छठी मैया से आपके लिए कभी दुआ मांगी होगी
व्रत-उपवास किए होंगे 
कभी उनकी बारी थी आज आपकी बारी है
माता भी आप पर प्रसन्न होंगी 
आपके बच्चों पर कृपा करेंगी 
छठ केवल पर्व नहीं है जीवन संदेश हैं। 

बच्चे मन के सच्चे

छोटे-छोटे हाथ 
छोटे-छोटे पांव 
छोटी-छोटी ऑखे
मुख पर निर्मल हंसी 
न जात न पात
न धर्म न पंथ
जिससे प्यार मिला उसी को अपना मान लिया 
न दिखावा न बनावट
जब मन आया रो लिया
जब मन आया हंस लिया
लडे - झगड़े 
थोडी देर में फिर एक
दौड़ते दौड़ते गिर पडे
फिर तुरंत उठ खडे हुए 
भोलापन
मासूमियत 
निश्छल 
यही तो है बचपन
भेदभाव से परे
न किसी से डर
न किसी बात की शर्म 
जो है जैसा है
वह हैं 
जो मन में आया वह बोल दो
ईष्या- द्वेष से कोसों दूर 
हर जगह एक समान 
कुत्ता,  बिल्ली , चिडियाँ,  पोपट सबसे प्यार 
दोस्ती में वफादार
अमीरी-गरीबी का अंतर इन्हें नहीं पता 
भोलाभाला और प्यारा होता है बचपन
तभी तो बच्चे कहलाते है
ईश्वर का स्वरूप

Sunday, 12 November 2023

आई दीवाली आई

दीपावली आई
दीयों की बारात लाई
जगमग जगमग करते आई
घर - आंगन - रोशनदान सजे
द्वार पर रंग-बिरंगी रंगोली सजी
फूल - रंग- लाइट की भरमार हुई 
रोशनी से घर सजे
पकवानों से किचन महका
नए-नए वस्त्र परिधान किए
पुरूष- औरतें- बच्चे डोल रहें 
बाजार पटे पटाखों और मिठाईयों से
सफाई अभियान खत्म हुआ
रोशनी अभियान शुरू
अंधकार पर प्रकाश की विजय
जगमग जगमग करते आई 
आई दीवाली आई 

Thursday, 9 November 2023

अंधेरे की औकात नहीं

दीवाली आई है
खुशियों की सौगात लाई है
घर के पुराने सामान निकाले जा रहे हैं 
कूडे  - कचरे के साथ फेंके जा रहे हैं 
जो तुम्हारे लिए कूडा कचरा
किसी और की जरूरत है
वे बीन रहे हैं 
छांट रहे हैं 
अपने काम का सामान ले रहे हैं 
एक -दो बच्चों के साथ कुछ औरते उनमें कुछ ढूँढ रही है
टटोल रही हैं 
उनके हाथ जल्दी जल्दी चल रहे हैं 
किसको कितना खजाना मिल जाएं 
फेंके हुए कबाड भी किसी के खजाने से कम नहीं 
सबके घर रौनक होंगे 
कुछ के नए से
कुछ के पुराने से
भर जाएंगा सामानों से
हर घर जगमगाएँगा
कुछ दीयों से कुछ लडियों से
अंधेरे पर प्रकाश हावी होगा
यही तो एक पर्व है 
जहाँ अंधेरे को दूर भगाया जाता है
साबित होता है
अंधेरा कितना भी घना क्यों न हो
आखिर उसको जाना है 
अंधेरे की औकात कहाँ 
कि वह प्रकाश को रोक सकें। 

जीवन तो जीवन है

जीवन तो जीवन है
इसे खाकर जीओ
इसे पीकर जीओ
इसे खेल कूद कर जीओ
इसे हंस कर जीओ
इसे घूम कर जीओ
इसे बतियां कर जीओ
इसे स्वतंत्रता से जीओ
इसे अपनी इच्छा नुसार जीओ
इसे गाकर - नाच कर जीओ
इसे सर उठाकर जीओ
न दबना है न सहना है
अतीत को दफन कर देना है
वर्तमान में जीना है
भूत तो गया 
भविष्य अनिश्चित 
वर्तमान ही साथ 
तब जो साथ है उसके साथ जीना है
जीवन की डोर को कितना भी पकड़ रखों 
वह कभी न कभी कटने ही वाली है
सब छूटने वाला ही है
तब जाने से पहले ही जी भर जी लेना है ।

Wednesday, 8 November 2023

तुम खुदा नहीं

कुछ लोग इस दुनिया में खुद को खुदा मान बैठते है
वे अपने आप को इतना परफेक्ट समझते हैं 
कि हर शख्स में उन्हें कमियां ही नजर आती है
वे हर वक्त हमें तौलते हैं 
मापते हैं 
गल्तियां निकालते हैं 
कौन समझाए कि तुम खुदा नहीं 
तुम भी इंसान हो
यही तो तुम्हारी सबसे बडी खामी
तुम इंसान होकर भी अपने को इंसान नहीं समझते हो
ईश्वर का दर्जा ले नहीं सकते
क्योंकि तुम वह हो नहीं 
हो भी नहीं सकते
बस एक बात समझ लो
जिस दिन तुम सत्य स्वीकार कर लोगे 
हो सकता है खुदा के करीब हो जाओ 

माया मोह

आज एक शख्स चला गया
दुनिया से रूखसत कर गया
बहुत कमाए पैसे - रूपये
गाडी - बंगला भी बनाया
जमीन - जायदाद भी है
बेटे - बेटी , नाती - पोतों से भरा परिवार 
सब यही छोड़ गए 
कुछ साथ न ले गए 
रोते रोते आए होगे
रूलाते हुए चले गए 
कुछ दिन याद रहेंगे
फिर सब भूल जाएंगे
अपने - अपने में व्यस्त हो जाएंगे 
श्राद्ध वगैरह पर याद कर लेंगे 
माया मोह में बंधा रहता आजीवन
सब यही छोड़ जाता है
यह बात तो सबको पता है
तब भी वह इन जंजीरों में जकड़ा रहता है
वह दूसरों के लिए जीता है
यह भ्रम है
अपने लिए जीता है
अपनी खुशी के लिए जीता है
उसे पता है 
वह जाएंगा तो अपना अंश यही छोड़ जाएंगा
उसकी वंश बेल जब फूले - फलेगी 
वह उसमें अपने को ही पाएंगा 
सच है ना
मरने के बाद भी मोह नहीं छूटता ।

कृष्ण - सुदामा

कृष्ण मित्रता की मिसाल है
तो सुदामा जैसा दोस्त भी बिरले ही
वह शख्स जिसका मित्र त्रिभुवन का स्वामी हो
वह स्वयं दरिद्रता से घिरा हो
फिर भी मित्र से कोई अपेक्षा नहीं 
पत्नी के बार - बार कहने पर मिलने जाना
घर में कुछ नहीं फिर भी खाली हाथ कैसे जाएं 
भूने हुए तंदुल सौगात में ले जाना
शर्म महसूस करना कि द्वारिकाधीश को ये कैसे दूं
कांख में पोटली छुपाना
बार - बार आग्रह करने पर भी न देना
अपने बाल सखा को जो बचपन से पहचानता हो
खींचकर लेना और दो मुठ्ठी फांककर दो लोक दे देना
यह बात तो सुदामा को भी नहीं पता 
उनका दोस्त क्या कर रहा है
वापस लौटते समय खाली हाथ लौटना 
फिर भी दोस्त के प्रति कोई दुर्भावना नहीं 
ईर्ष्या नहीं शिकायत नहीं 
मांगा नहीं 
दर दर भिक्षा याटन करने वाला अपने मित्र से कुछ नहीं मांगा 
क्योंकि मित्रता में तो सब बराबर होते हैं 
छोटा - बडा या अमीर - गरीब नहीं 
न सुदामा ने अपने को छोटा समझा
न कन्हैया ने उनको छोटा महसूस कराया
बिना बताये दे दिया 
जिसका मित्र जगत का स्वामी 
वह हो दर - दर का भिखारी
एक कृष्ण दूजे सुदामा 
दोनों की दोस्ती न्यारी 

अमरता का वरदान तो किसी को नहीं

मैंने सूरज को उगते भी देखा है
मैंने सूरज को ढलते भी देखा है
उनके उदय की प्रतीक्षा करते भी देखा है
उनको प्रणाम करते भी देखा है सबको
संझा को उनके जाने की प्रतीक्षा करते भी देखा है
क्योंकि यह कर्म से जुड़े हुए हैं 
जैसे ही उगते हैं 
सब काम पर लग जाते हैं 
जैसे ही अस्त होते है
सब विश्राम की सोच लेते हैं 
पंछी अपने घोंसलों की तरफ
पशु अपने घर की तरफ 
मनुष्य का भी यही हाल
क्या सब स्वार्थ से जुड़े हैं 
जिसके आने की प्रतीक्षा उसके जाने की भी प्रतीक्षा 
शायद नहीं 
प्रकृति का नियम है
जो आया है उसको तो जाना ही है
जन्म और मृत्यु दोनों का उत्सव 
एक समय जो आपकी तूती बोलती थी
आज कोई देखने और सुनने वाला नहीं 
उदयाचल के सूर्य को सांझ को अस्तांचल का रास्ता दिखा दिया जाता है
भगवान भास्कर फिर आते हैं उदित होकर
आत्मा भी तो यही करती है
आज इस शरीर में तो कल किसी और जगह 
अमरता का वरदान तो किसी को नहीं 

Tuesday, 7 November 2023

बचपना कायम रहता है

व्यक्ति की उम्र ढल जाती है
वह बडा हो जाता है
वह बूढा हो जाता है
सोचता है बचपन चला गया
देखा जाएं तो 
बचपन कभी जाता ही नहीं है
वह तो हमेशा साथ ही रहता है
मन के कोने में कहीं वह बैठा रहता है
बाहर निकलने की कोशिश करता रहता है
जब वह दोस्तों के साथ बतियाता है
जब वह लोगों के साथ हंसता - खिलखिलाता है
जब वह खाने के लिए ललचाता है
जब वह जिद पर आ जाता है
जब वह किसी की बात नहीं सुनता है
जब वह घुमने को बेताब रहता है
जब उसका घर पर आने को मन नहीं करता
जब वह टेलीविजन के सामने आ खडा हो जाता है
वह भेल पुरी  - सेव पुरी चटखारे लेकर खाना चाहता है
घर में कुछ लाए तो उसे भी चाहिए 
मिठाई- पकवान का आनंद लेना चाहता है
उसे जीभ पर कंट्रोल करने को कहा जाता है
उम्र की दुहाई दी जाती है
 जब वह बच्चों के साथ बच्चा बन जाता है
वह यह भूल जाता है 
कि वह बूढ़ा हो गया है
लोग याद दिलाते रहते हैं 
उसको उसकी उम्र का 
वह सब छोड़ने की कोशिश करता है
छोड़ जो नहीं पाता
बचपन में जो आदत डाली गई है
वह कैसे छूट सकती है
वह दबायी जाती है
खत्म नहीं होती 
हर व्यक्ति मन से बच्चा ही होता है 
बचपन भले चला जाए 
बचपना कायम रहता है
सही भी है 
मन तो बच्चा है जी ।

वंशवाद

वंशवाद तो हर क्षेत्र में
वह राजनीति हो या बिजनेस
स्वाभाविक है 
जिसने खडा किया है
वह अपनी संतान को देना चाहेगा
मोह तो होता ही है

राम बडे थे
राजा दशरथ का पुत्रप्रेम भी था
जो महारानी कैकयी को रास नहीं आया
अगर राम तो भरत क्यों नहीं
वनवास का रास्ता दिखा दिया
राम ने स्वेच्छा से स्वीकार भी कर लिया

यहाँ राम को अपनी योग्यता सिद्ध करनी थी
वह वन वन घूमे
साधुओं - संन्यासियो को राक्षसों के आतंक से मुक्ति दिलाई
अराजकता का अंत कर रहे थे
साथ में निषादराज और शबरी के प्रति प्रेम भी
पूरी भील जाति को
जनजातियों को अपना बना रहे थे
उपेक्षित और वंचित सुग्रीव को अधिकार दिलाने के लिए
शापित अहिल्या को उसका सम्मान दिलाया
राम वह सब कर रहे थे जो एक राजा को करना था
भरत तो अयोध्या में चरण पादुका संभाल रहे थे
राम जनता के दिल पर राज कर रहे थे
अप्रत्यक्ष रूप से राजा तो वही थे

रावण से भी दुश्मनी सीता के कारण नहीं
बल्कि पूरी नारी जाति का सम्मान वापस दिलाने के लिए
रावण वध का कारण वही था
हनुमान ,जामवंत , नल- नील 
जटायु , संपाती
ये पशु-पक्षी उनके सहायक बनें
उन्होंने किसी को तुच्छ नहीं समझा
यह राम ही थे जिन्होंने ताडका वध और शिव धनुष को तोड़ अपने पराक्रम का परिचय दिया था
माता कैकयी के प्रति नाराजगी का इजहार तक नहीं किया
कोई शिकायत नहीं उस व्यक्ति के प्रति
लोग भी प्रभावित हो रहे थे
उनके स्वभाव 
उनकी वीरता
उनकी धीरता
सराहा जा रहा था
वे केवल अयोध्या वासियों के दिलों में नहीं
पूरे भारतवर्ष में 
उत्तर से दक्षिण तक अपने को सिद्ध करने में लगे थे

राम केवल राजा ही नहीं
एक कुशल राजनीतिज्ञ भी थे
जनता की आवाज सुन कर उस प्राणप्रिया को वन भेज दिया
जिसके लिए उन्होंने महाबलशाली रावण से युद्ध ठाना
सोने की सीता बना अश्वमेध यज्ञ किया
जहाँ बताया कि जानकी अब भी उनकी जान है
बहुपत्नीत्व का परिणाम उन्होंने अपने ही घर में देखा था
पत्नी के प्रति निष्ठा फिर भी प्रजा सर्वोपरि
प्रजा की गलती का एहसास कराया पर दंड देकर नहीं
आज भी राम राज की कल्पना करने का मकसद यही है
राजतंत्र में रहते हुए
राम ने प्रजातंत्र को माना
कदम कदम पर सिद्ध किया
राजा दशरथ का उत्तराधिकारी बन कर नहीं

राजनेताओं के पुत्र राम से सीखे
अपने को काबिल बनाये
बाप की विरासत पर घमंड नहीं
खुद को खडा करें

Monday, 6 November 2023

अपना हाथों की खुशबू

किसी का इंतजार क्यों करें 
कोई हमें फूलों का गुलदस्ता दें
क्यों ना हम अपने ही बगीचे या गमले में फूल उगाएं 
उसमें खाद - पानी डाले और सींचे 
उस मिट्टी को ही सजाए- संवारें और पौधा लगाएं 
समय आएगा और फूल भी खिलेगे 
उस फूल की महक हमें आनंद से भर देंगी 
उसकी सुंदरता से हम मंत्रमुग्ध हो उठेगे 
उसमें हमारा प्रयत्न होगा
किसी का दिया हुआ नहीं 
उसकी बात ही कुछ और होगी
अपनापन का एहसास होगा
मेहनत का प्रतिफल होगा
उसके फूल मंहगे गुलदस्ते के सामने अनमोल होगे 
वह हमारे हाथों की खुशबू से सराबोर होगे ।

जिंदगी की सीख

जिंदगी कितनी उलझी है
सब उल्टी-सीधी है
समझ न आता 
कब कौन सी चाल चलती है
जो लगते अपने वो भी शायद अपने नहीं 
बेगाने तो बेगाने ही है
जिससे कुछ आशा नहीं  वह कभी सही होता है
जो सोचा नहीं वह हो जाता है
जो सोचा वह होता नहीं 
कब कौन सी करवट ले
यहाँ निश्चित कुछ नहीं 
होने कुछ जा रहा था 
होता कुछ है 
क्या अनुमान लगाए
क्या अनुभव से सीखे
नित नये रंग बदलती है
आज कुछ तो कल कुछ और सीखा जाती है ।

गरीब कौन??

गरीब कौन ??
यह प्रश्न चिन्ह है
मेरे पास घर है 
गाडी है
टेलीविजन और फ्रीज है
जरूरत की सब चीजें हैं
काम करने को बाई है
तब मैं क्या अमीर हूँ

एक अदद सैलरी आती है
महीने का अंत होते होते उसका भी अंत
बिल भरने से लेकर पेट भरने तक
सबके किश्त चुकाते
घर का सामान से बच्चों की जरूरतें
बचता कुछ नहीं है
दिखता भी करना पडता है
लाइफस्टाइल मेन्टेन करनी पडती है

आज जब ऐसे हालात है
तब डर लगता है
गरीब नहीं हूँ
इसलिए कहीं से कोई मदद भी नहीं
न सरकार से न लोगों से
आत्मसम्मान को ताक पर रख
मांगे तो भी किससे
कौन देगा
सभी की हालत खस्ता
सब बेहाल
क्योंकि वह हमारे ही है दोस्त - यार

अपने को किस कैटिगरी में रखे
यह है समझ के पार
बाहर दिखावा अंदर से कंगाल
ऐसे ही न जाने कितने बेहाल
कुछ उनकी भी पीडा समझी जाए
उन पर भी ध्यान दिया जाए
यह है समाज का मध्यमवर्गीय
वह न गरीब है
वह न अमीर है
इन दोनों के बीच पीसता 
वह गेहूं की बाल है
जिसका आटा खाता संसार है
फिर भी न कोई इनका कदरदान है
सबसे मारा यही बेचारा

गरीब कौन??

गरीब कौन ??
यह प्रश्न चिन्ह है
मेरे पास घर है 
गाडी है
टेलीविजन और फ्रीज है
जरूरत की सब चीजें हैं
काम करने को बाई है
तब मैं क्या अमीर हूँ

एक अदद सैलरी आती है
महीने का अंत होते होते उसका भी अंत
बिल भरने से लेकर पेट भरने तक
सबके किश्त चुकाते
घर का सामान से बच्चों की जरूरतें
बचता कुछ नहीं है
दिखता भी करना पडता है
लाइफस्टाइल मेन्टेन करनी पडती है

आज जब ऐसे हालात है
तब डर लगता है
गरीब नहीं हूँ
इसलिए कहीं से कोई मदद भी नहीं
न सरकार से न लोगों से
आत्मसम्मान को ताक पर रख
मांगे तो भी किससे
कौन देगा
सभी की हालत खस्ता
सब बेहाल
क्योंकि वह हमारे ही है दोस्त - यार

अपने को किस कैटिगरी में रखे
यह है समझ के पार
बाहर दिखावा अंदर से कंगाल
ऐसे ही न जाने कितने बेहाल
कुछ उनकी भी पीडा समझी जाए
उन पर भी ध्यान दिया जाए
यह है समाज का मध्यमवर्गीय
वह न गरीब है
वह न अमीर है
इन दोनों के बीच पीसता 
वह गेहूं की बाल है
जिसका आटा खाता संसार है
फिर भी न कोई इनका कदरदान है
सबसे मारा यही बेचारा

मैं घर का बडा

मैं घर का बडा
हमेशा बडा ही बना रहा
कभी छोटा हो ही नहीं पाया
बचपन था तब भी बडा
आज उम्र के इस पड़ाव पर भी बडा
अब थक गया हूँ
जिम्मेदारियो का बोझ उठाते उठाते
सबकी अपेक्षाओं पर खरा उतरने की कोशिश करते हुए
अब मैं मुक्त होना चाहता हूँ

छोटा बनना चाहता हूँ
बचपना करना चाहता हूँ
मनमानी करना चाहता हूँ
जी भर कर जीना चाहता हूँ
किसी की परवाह नहीं करना चाहता हूँ
इन सबसे मुझे क्या मिला
बस मैंने हमेशा अपने मन को मारा
छोटो को संभाला
आज सब मस्त है
मैं अभी भी त्रस्त हूँ
कब तक इस बडेपन का बोझ ढोऊ
कंधे बोझिल हो गए हैं

बस अब बहुत हुआ
बडे में सहनशीलता
छोटे में उत्पात
यही है हमारी मानसिकता
अब यह बदलाव करना है
छोटे भी अब छोटे नहीं रहे
वह भी बडे हो गये हैं
जैसे मैं वैसे वह
यही होनी चाहिये 
सबकी सोच

Sunday, 5 November 2023

बी एच यू की शर्मसार करने वाली घटना

बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी की घटना बेहद शर्मनाक है
कब मानसिकता बदलेंगी 
बहन - बेटियां सुरक्षित नहीं है
अभिभावक डरे हुए हैं 
छात्रा के साथ छेड़छाड़ और निर्वस्र करना तीन लडको द्वारा 
उसको कैम्पस में प्रोफेसर के घर छुपना पडा 
बंदूक की नोक पर इतना दुस्साहस
इन मनचलों को तो छोड़ना नहीं चाहिए 
योगी राज की दुहाई दी जाती है कि अपराधी को छोड़ा नहीं जाएंगा
सुन अच्छा लग रहा था
उत्तर प्रदेश बदल रहा है अपराध कम हो रहा है
लेकिन यह सुन विश्वास कम हो रहा है
डर लग रहा है 
कुछ लोग कह रहे हैं कि रात को क्यों निकली थी अपने दोस्त के साथ 
यह तो कोई बात नहीं हुई 
तब हमारी नर्स , डाँक्टर, पुलिस , मीडिया कर्मी जैसे न जाने कितने पेशे हैं जिनकी ड्यूटी रात को होती है
इमरजेन्सी भी किसी के घर हो सकती है 
पति अपनी पत्नी के साथ निकल सकता है
दोष कब तक महिलाओं को दिया जाएंगा 
समाज का दृष्टिकोण और खासकर पुरूष मानसिकता कब बदलेंगी 
योगी राज में ऐसा अपराध सोचा नहीं था
शैक्षणिक संस्थानों में ऐसा 
        ? ?  ? ?

 

Friday, 3 November 2023

जिंदगी की सीख

जिंदगी कितनी उलझी है
सब उल्टी-सीधी है
समझ न आता 
कब कौन सी चाल चलती है
जो लगते अपने वो भी शायद अपने नहीं 
बेगाने तो बेगाने ही है
जिससे कुछ आशा नहीं  वह कभी सही होता है
जो सोचा नहीं वह हो जाता है
जो सोचा वह होता नहीं 
कब कौन सी करवट ले
यहाँ निश्चित कुछ नहीं 
होने कुछ जा रहा था 
होता कुछ है 
क्या अनुमान लगाए
क्या अनुभव से सीखे
नित नये रंग बदलती है
आज कुछ तो कल कुछ और सीखा जाती है ।

अपना हाथों की खुशबू

किसी का इंतजार क्यों करें 
कोई हमें फूलों का गुलदस्ता दें
क्यों ना हम अपने ही बगीचे या गमले में फूल उगाएं 
उसमें खाद - पानी डाले और सींचे 
उस मिट्टी को ही सजाए- संवारें और पौधा लगाएं 
समय आएगा और फूल भी खिलेगे 
उस फूल की महक हमें आनंद से भर देंगी 
उसकी सुंदरता से हम मंत्रमुग्ध हो उठेगे 
उसमें हमारा प्रयत्न होगा
किसी का दिया हुआ नहीं 
उसकी बात ही कुछ और होगी
अपनापन का एहसास होगा
मेहनत का प्रतिफल होगा
उसके फूल मंहगे गुलदस्ते के सामने अनमोल होगे 
वह हमारे हाथों की खुशबू से सराबोर होगे ।

जाने वाले लोग

लोग चले जाते हैं दुनिया छोड़ 
कुछ लेकर नहीं जाते हैं 
जाते अकेले ही हैं 
बस अपनी यादें छोड़ जाते हैं 
क्या सच यही है 
नहीं  इससे परे कुछ और ही है
वास्तविकता तो यह है 
वे अकेले नहीं जाते
हमारी खुशी हमारा सुख चैन भी उनके साथ ही जाता है
वे बस शरीर से जाते हैं 
फोटो में टंग जाते हैं 
माला - फूल चढता है
जो उस फोटों को रोज रोज देखता है
उनके मन से पूछो
उनके बैठने के स्थान से पूछो
उनके लाए सामान से पूछो 
उनकी हर बार टोकने की आदत से पूछो
उनके टी वी के सामने खडे होने की आदत से पूछो
उनकी हर हरकत याद आती है
लगता है 
मुस्करा कर पूछ रहे हो
क्यों हम तो नहीं 
अब कैसा लगता है
अब कोई शिकवा शिकायत नहीं ना
यही तो बात है
है ना बहुत है ।


Thursday, 2 November 2023

चांद तो वही है

चाॅद तो वही है
जो अपनी चांदनी फैलाता है
कभी घटता कभी बढता है
पूर्णिमा की रात को पूर्ण शबाब में निखरता है
अमावस की रात अंधेरे से ढक जाता है
कभी-कभी उस पर ग्रहण भी लग जाता है
चाॅद की चाल बदलती रहती है
एक दिन की यह बात नहीं 
हर वक्त का साथ है
कभी तुम चाॅद जैसा मत बन जाना

चाॅद तो वही है
पर आज का कुछ खास है
दाग तो उस पर भी है
हाँ अपने को दागदार मत होने देना 
वह चाँद तो सबका है
तुम चाँद तो मेरे हो
छलनी से निहारती 
हर हरकत पर नजर हमारी
तुम बस चांदनी सा उजाला फैलाना 
नहीं बहुत तेज शुभ्र और शीतल 
बस जीवन कट जाएंगा 
इस पर कभी अमावस ना आए
हमेशा चमकता रहें 
मेरी मांग का सितारा 
हर सुहागन की होती है यही कामना 

मेहंदी का संदेश

मेंदही स्वयं को मिटाती है
सबके हाथ में रचती है
अपनी लाली छोड़ती है
तभी सबको प्यारी लगती है
पत्थर पर पीसी जाती है
रगड रगड कर बारीक की जाती है
हाथों पर रचने लायक बनाई जाती है
अपनी हरियाली छोड दूसरों के सुहाग की भागीदार बनती है
बिना उसके श्रृंगार अधूरा 
कहती है सबसे
जब तक घीसोगे नहीं 
जब तक अपने को रगडोगे नहीं 
मेहनत का रंग और निखार लाओगे 
तभी एक सफल व्यक्ति कहलाओगे  ।

Wednesday, 1 November 2023

एहसास

हमने निभाया तो वह हमारा फर्ज था
तुमने निभाया तो वह तुम्हारा एहसान था
इस जहां में हर एक चीज की कीमत होती है
वह तो अदा करना ही पडता है
लेना- देना यह तो प्रकृति का नियम 
न फर्ज न एहसान 
बस एहसास चाहिए 
हम एक - दूसरे के बिना नहीं  ।

Thank you तो कह दो

वह खाना बनाती है
बनाते समय कभी हाथ कभी कोहनी जल जाती है
वह सब्जी काटती है
सब्जी काटते समय कभी उंगली तो कभी हथेली कट जाती है
वह जलने के चटके 
कटने की पीड़ा को
नजरअंदाज कर अपना काम करती है
मसाले की तीव्र महक
मिर्ची की झांक 
सब सह लेती है
जब परिवार भोजन करता है
वह परोसती है उनको अच्छा 
बचा - खुचा , बासा , जला 
वह स्वयं खाती है
तत्पश्चात बर्तन की बारी
साफ सफाई किचन की
हाथ रूक्ष्ण हो जाते हैं 
सब निपटा कर बैठती है
दोनों हाथों की तरफ देखती है
तेल या क्रीम मलती है
चेहरे पर एक सुकून 
सबका पेट भर गया 
यह सोच निश्चिंत 
अपने बारे में न सोच
सबके बारे में सोचने वाली
यह हमारी गृहिणी 
हमारी अन्नपूर्णा 
इनके प्रति कृतज्ञता तो बनती है
बस एक छोटी सी प्रशंसा 
उसको Thank you कह दो ।

खुश रहें- मस्त रहें

अक्सर हमें  जिंदगी से शिकायत रहती है
हमारे साथ यह हुआ 
हमारे साथ वह हुआ
फलां ने धोखा दिया 
फलां ने बेईमानी की
फलां ने विश्वास घात किया 
हाँ यह सब तो हुआ 
सच यह भी तो बहुत ऐसे भी मिले
जो थे तो अंजान
जिनसे कोई हमारा रिश्ता नहीं 
न जान - पहचान 
फिर भी उन्होंने मदद की
साथ दिया
मुसीबत के वक्त खडे रहें 
यह एहसास दिलाया 
यहाँ उतने भी बुरे लोग नहीं हैं 
जितना हम समझते हैं 
अगर होते तब तो यहाँ से विश्वास उठ जाता
दुनिया बुरी लगती
ऐसा भी तो नहीं है
हम जीना चाहते हैं 
जिंदगी का लुत्फ उठाना चाहते हैं 
अगर अच्छे लोग हैं 
तब यह धारणा बदलना होगा
क्योंकि अच्छे को भी उसी श्रेणी में शामिल कर लेंगे 
तो यह तो एक तरह से शर्मिदंगी की बात होगी 
उनके साथ अन्याय होगा
कुछ के कारण सारे बुरे नहीं हो जाते 
अच्छों के साथ रहें 
खुश रहें मस्त रहें