Monday, 28 February 2022

वाह ! चांद


चांद भी कितना खूबसूरत
बादलों के बीच अपनी खूबसूरती बिखेरते
दुधिया रोशनी में नहाई हुई प्रकृति का कण - कण
चांद की उपमा ऐसे ही नहीं दी है 
कुछ शानदार बात तो है जो देखें और देखता ही रहें
अनायास ही कह उठे -- वाह चांद

रशिया और युक्रेन का युद्ध

युद्ध शुरू 
युद्ध का परिणाम 
यह कोई नहीं जानता
सैनिक मर रहे हैं 
जान - मिल की हानि हो रही हैं 
बर्बादी के सिवा कुछ नहीं 
बाद में दोनों पक्ष के लोग मिलेंगे 
समझौता करेंगे
यह तो बाद में होगा ही
तब तक बहुत कुछ नष्ट-भ्रष्ट 
सारी दुनिया टकटकी लगाएं बैठी है
दो राष्ट्रध्यक्षो के  ऊपर सारा दारोमदार 
दोनों की अपनी अकड 
अपना ईगो 
जब तक हाथ मिलाएगे 
तब तक क्या कुछ नहीं घट गया होगा
उसकी भरपाई कौन करेंगा 
इसका प्रभाव न जाने कितनी पीढियाँ भुगतेगी 
हिरोशिमा और नागासाकी का उदाहरण सामने हैं 
और इसका परिणाम जो देश लड रहे हैं 
वे ही नहीं 
सारा संसार भुगतेंगे
सब एक दूसरे से किसी न किसी रूप में जुड़े हैं 
पडोस में आग लगी हो 
तो आंच उसके आस-पास को भी आएगी 
युद्ध कितना भी शक्तिशाली हो
शांति की जगह नहीं ले सकता
वह विनाश कर सकता है विकास नहीं 

ऐसे समय में गुप्त जी की पंक्तियाँ याद आ रही है 
     टुकड़े  टुकड़े हो बिखर चुकी मर्यादा 
उसको दोनों ही पक्षों ने तोड़ा है
    पांडव ने कुछ कम 
    कौरव ने कुछ ज्यादा 

परछाई

परछाई , परछाई रहती है
उसका अपना कोई वजूद नहीं
जिंदगी में किसी की परछाई न बने
किसी के भरोसे नहीं
अपने बल पर रहें
परछाई तो मिट जाएंगी
वह कुछ समय के लिए
परछाईयां मिट जाती है रह जाती निशानी है
अपने कदमों का
अपने कार्यों का निशान छोड़े जो कभी मिटे नहीं

Thursday, 24 February 2022

जो गुजर गया वह गुजर गया

जो गुजर गया वह गुजर गया
उस गुजरे हुए को क्या याद करना
अच्छी यादें तो होगी
साथ में  दुखदायी यादें भी होगी
वह फिर याद आ जाएंगी 
मन अतीत में चला जाएंग 
यादों के बीच हिचकोले खाएगा 
तब उसे वैसे ही छोड़ दो
वक्त वह भी था
वक्त आज भी है
वक्त कल भी होगा
न अतीत आएगा
न भविष्य आएगा
रहना और साथ निभाना वर्तमान के साथ 
तब यादों में मत उलझो
बस यह कह कर खुश हो लो
   गुजरा हुआ जमाना आता नहीं दोबारा 
         हाफिज खुदा तुम्हारा 

Wednesday, 23 February 2022

आईना झूठ नहीं बोलता

आईना झूठ नहीं बोलता
जो जैसा है वैसा ही दिखाता है
सबसे छुपा लो अपना चेहरा
अपनी असलियत 
आईने से नहीं बच सकते
कितना भी मेकअप कर लो
कोई भी मुखौटा ओढ लो
उसके सामने सब सच 
यही तो है
जो किसी से डरता नहीं 
फूटे आईना में देखना अपशकुन माना जाता है
उसे घर में नहीं रखना चाहिए 
सही भी तो है
जब अपना असली रूप देखना है
तब पूरा देखो
टुकडे टुकड़े  में नहीं 
वैसे तो न जाने कितना समय आईने के सामने गुजारा जाता है
कभी फुरसत में हो तो
उसके सामने बैठ जाए
कुछ समय दे 
आराम से जल्दबाजी में नहीं 
सोचे अपने बारे में 
सबका उत्तर मिल जाएगा 
क्योंकि आईना कभी झूठ नहीं बोलता 

Monday, 21 February 2022

ऊपर वाले का कैमरा

कोई देखें या न देखें 
वह सब देखता है
उसका सी सी टी वी सीमित नहीं 
किसी एक घर
किसी एक ऑफिस 
किसी एक सडक नहीं 
बल्कि अनंत  आकाश है
उसकी दो ऑखें नहीं 
गिनती करना असंभव है
जरिए उससे
कर्मों का हिसाब देता ही है
तब यह मत सोचो
हम कुछ भी करें 
कौन देखता है
चुपके से या सामने से
जान बूझ कर या अंजाने में 
तब अगली बार 
कुछ  करने से पहले सोचना जरूर

मुसाफिर

हम  तो मुसाफिर हैं 
यात्रा ही करना है
लेकिन हर किसी की यात्रा एक जैसी नहीं होती
किसी की दौड़ती हुई 
किसी की गतिशील 
किसी की धीमी
किसी की रूक - रूक कर
किसी की एक ही जगह स्थिर
सबकी सवारी अलग-अलग 
सबका गंतव्य  अलग
कुछ की उबड  - खाबड़ 
कुछ की समतल
कुछ की चमकदार
कुछ की चढान
कुछ  एक ही जगह बैठे
यह तो भाग्य तय करता है
आप तय करते हैं 
आपकी यात्रा कैसी हो
मंगलमय हो
कांटो भरी हो
हाँ यात्रा करना ही है
करो तब भी न करो तब भी




Saturday, 19 February 2022

तब क्या करूँ

मैं दिन - रात ईश्वर की उपासना नहीं करती
ज्यादा व्रत - उपवास नहीं करती
ज्यादा प्रथा और परम्परा का पालन नहीं करती 
कभी-कभी लगता है
मैं नास्तिक हूँ क्या
पर ऐसा भी नहीं है
मुझे ईश्वर के ऊपर ही विश्वास है
मैं हर मुश्किल घडी में उसे ही याद करती हूँ 
तब मैं क्या स्वार्थी हूँ 
केवल काम के लिए भगवान को याद करती हूँ 
मैं भगवान की बडी भक्त भी नहीं स्वयं को बता सकती
तब क्या करूँ 

कल का चांद

कल रात का चांद अपने पूर्ण शबाब पर था
घुप्प  अंधेरा 
कालिमा से घिरा आसमान 
उसमें भी अपना असतित्व बनाए रखना
अपनी चमक को बरकरार रखना
कभी घटना कभी बढना
कभी ग्रहण का साया 
हार नहीं मानना
जिद्द पर अडे रहना
कितना भी घना अंधेरा हो
मुझे कोई फर्क नहीं पडता
चरैवति चरैवति 
यह स्वभाव है मेरा
अपनी चांदनी का प्रकाश फैलाना
अंधेरे में भी राह बनाना 
मैं जब तक रात है
तब तक तो रहूंगा ही
कल की बात कल सुबह 
आज की रात्रि मेरी है
मैं अपना धर्म और कर्म कर रहा हूँ 
यहाँ तक कि अकेले नहीं 
छोटे-छोटे तारों को भी साथ लेकर चल रहा हूँ 
सूरज जैसा प्रकाश तो नहीं 
मधुर और शीतल चांदनी है
वही सबको देने का प्रयास 
यही मेरा छोटा सा जीवन 
एक रात का
जब तक रात तब तक मैं भी चलायमान 

Monday, 14 February 2022

Happy Valentine day

रूप को सौंदर्य का उपहार आलिंगन नहीं तो और क्या है
रूप को सौंदर्य का उपहार चुंबन नहीं तो और क्या है
   दिनकर जी की उर्वशी में पढी थी तब हंसी आई थी 
थोड़ा लाज भी 
आज उम्र के इस पड़ाव पर  महसूस होता है 
क्या हर्ज है इसमें 
प्रेम का इजहार होना ही चाहिए 
हाॅ वह भद्दे और अश्लील न हो
शुद्ध प्रेम की भावना हो
वासना का निवास न हो
हमारे यहाँ इसको दबाया गया 
छिपाया गया
जबकि पाश्चात्य संस्कृति में ऐसा नहीं है
और वह हमें अश्लील भी नहीं लगते
बद्दी गालियां, बेढंगा मजाक
दो अर्थी संवाद 
अश्लीलता की हद पार करने वाले गाने
अश्लील  नाच
यह सब हमारे यहाँ चलता है
होली तो इसका सबसे बडा उदाहरण 
गाँव और कस्बों से गुजर जाइए 
ऐसे ऐसे गाने बजते रहते हैं कि शर्म आती है
यह सब छोड़ दें तो ठीक रहेगा
अगर पवित्र मन से आलिंगन और चुंबन कर लिया
तो कुछ बुराई तो नहीं है
प्रेमी जोड़े हैं 
नयी उमर है
मनाने दीजिए उनको वेलेंटाइन डे
सभी प्रेमियों को 
      Happy Valentine day 


Friday, 11 February 2022

इसकी क्या जरुरत

हिजाब या किताब
इसका हिसाब??
करोना काल में सब बंद
अब जब खुले
तब ऐसे मसले
इसका न सिर न पैर
पहले भी सब पढते थे
यह सब तो अंडे न आया
स्कूल ड्रेस सबके लिए समान
एक यूनिफार्म होता है
कल तब कोई घूंघट निकालेगा
कोई कोई केसरिया फेटा लपेटेगा 
लोग आधुनिकता की तरफ जा रहे हैं 
परदा को छोड़ रहे हैं 
फिर उसी तरफ मुडना 
यह सब बेवजह का मामला है
एक - दो लोग को छोड़ कौन ऐसा चाहेगा
आज तो लडकियाॅ जीन्स और टाप पहनना चाहती है
मार्डन से मार्डन कपडे 
फिल्म और टेलीविजन में काम कर रही है
फिर क्यों विवाद 
धर्म और कपडे का क्या संबंध 

Thursday, 10 February 2022

एक थी लता

कितनी ही आंधी आई
कितने ही तूफान आए
यह लता कभी न डिगी
बस मंजिल की ओर बढती गई 
गिरती - पडती 
फिर उठ कर खडी होती रही
उस मुकाम पर पहुंच गई 
जहाँ पहुँचना नामुमकिन 
इतनी ऊंचाई 
देश - दुनिया में नाम 
हर कोई स्तब्ध
जैसे कोई ईश्वर का चमत्कार हो
स्वर की जादूगरनी 
हर कोई का शीश जिसकी कला के आगे झुक जाता हो
यह सब ऐसे ही हासिल नहीं 
तपस्या है जीवन की 
हाॅ मृत्यु ले गई अपने साथ
वह तो निर्मम ही होती है
फिर भी उसने उनको एक लंबा जीवन दिया
92 वसंत देखना जीवन के
हर किसी के नसीब नहीं 
इस लता ने देखा और जीया
लोग गीतों पर मंत्रमुग्ध होते रहे
एक - दो पीढी नहीं 
पांच पांच पीढियों के दिलों पर राज किया
इस स्वर सामाग्री ने
और आगे भी यह सिलसिला जारी ही रहेंगा 
इसमें कोई संदेह नहीं 
दीनानाथ मंगेशकर पर दीनो के नाथ ने कृपा की
जो उनके घर कन्या रूप में साक्षात सरस्वती को भेज दिया
यह लता वह अमर बेल हैं 
जो बिरले ही जन्म लेते हैं 
अलविदा दीदी
तुमने तो प्रस्थान किया इहलोक को
इस लोक के लोग तुम्हारी मधुर गीतों में हमेशा तुमको अपने साथ ही पाएंगे

Monday, 7 February 2022

नहीं रही स्वर कोकिला

स्वर कोकिला के निधन से शब्द ही निशब्द  हो गए हैं 
क्या कहा जाएं 
समझ ही नहीं  आता
एक ऐसी लता जो हमेशा ऊपर की ही ओर जाती रही
ऊंचाईयों को छूती रही
भारत की शान बढाती रही
उन्होने गीतों को अमर कर दिया
आज ऑखों में हर किसी के ऑसू हैं 
मुख पर उनके गीत हैं 
हर कोई उनके साथ साथ अपने मनपसंद गीतों को गुनगुना रहा है
सुरों की मलिका अब हमारे बीच नहीं रही
हाॅ उनके गाने अमर है
कई पीढ़ियों पर राज करते आए हैं 
आगे भी करते रहेंगे 
हर तरह का गाना 
वह भी लाजवाब 
यह गुण हर किसी में नहीं हो सकते
भारतीयों के साथ-साथ विदेशियों के दिलों पर भी राज किया
फिल्म इंडस्ट्री की जान
भारत की आन - बान - शान
अब दूसरे लोक को प्रस्थान कर गयी

यह जीवन है 
इस जीवन का यही है 
यही है 
रंग- रूप

Saturday, 5 February 2022

अकेलापन

अकेले चलो रे
अकेले भी जीया जा सकता है
किसी की क्या जरुरत है
हम अकेले ही सब पर भारी हैं 
यह अकेलापन कहने को तो ठीक है
है बहुत खतरनाक 
मानवों के इस जंगल में 
हम तरह-तरह के लोगों के साथ रहते हैं 
काम करते हैं 
जीवनव्यापन करते हैं 
सोच लो वह न हो तब 
हमारी भावनाएं 
हमारा प्यार
हमारी स्नेह ममता
हमारी करूणा - दया
हमारी शिक्षा 
यह सब अकेले तो नहीं हो सकती
जो सबके साथ चलने में मजा है
वह अकेले में कहाँ 

ये बेटियां

बेटी तो हर किसी को प्यारी
वह अमीर हो या गरीब 
बहनें भी सबको प्यारी 
वह अमीर हो या गरीब 
कहने के लिए हैं 
बेटी पराया है
यह तो गलत है
यह वह पराया धन है
जो बडी महफूजियत से संभाली जाती है
उसे अपने घर की इज्जत समझा जाता है
उसकी शादी के लिए पिता के पैर के जूते घिस जाते हैं 
जवान भाई अपने शौक को दरकिनार रख काम करता है
ताकि दहेज जुटाता जा सके
जमीन जायदाद बेची जाती है
कभी-कभी अपना घर भी बेचा जाता है
ताकि बेटी सुखी रहें 
गाहे - बगाहे उसके द्वार पर हाजिरी लगाते हैं 
तीज - त्यौहार पर उपहार देते हैं 
ताकि ससुराल में उनका मान - सम्मान बना रहें 
दामाद को सर ऑखों पर बिठाते हैं 
शादी के वक्त भी उसका पैर पूजते हैं 
समानता का जमाना है ना
आज भी अगर बेटी घर में रहें 
काम न करें तब कोई बात नहीं 
वहीं बेटे को घर में बिठाया भारी
उस पर रोज तानो और उलाहनो की बरसात 
देखा जाएं 
तो बेटी सब पर भारी है
बडे से बडा भी अपनी बेटी के लिए किसी के आगे सर झुका लेता है
पहले लोग अपनी पगड़ी उतार कर रख देते थे
अब यह बात दिगर है
स्त्री और पुरुष में बेलेंस बनाये रखने के लिए कुछ नियम है
अगर अपवाद छोड़ दिया जाएँ 
तो जितना सुनने को मिलता है
उतना भी उपेक्षित नहीं है
 ये बेटियां। 

Friday, 4 February 2022

मैं दुर्योधन हूँ

मैं दुर्योधन हूँ 
सबकी नजरों में अधर्मी हूँ  
मुझे धर्म का ज्ञान नहीं 
इसी काका विदुर के धर्म सिद्धांत ने 
मेरे पिता से छीना था उनका राजमुकुट 
पांडु बन गए महाराज
मेरे पिता का अधिकार छीन गया
अंधे होने के कारण 
फिर छीना गया
जन्म हुआ भ्राता युधिष्ठिर का मुझसे पहले
इतिहास फिर दोहराया गया
मैं तो नेत्रहीन नहीं था न
कुछ विशेष प्यार बरसता था सबका
पांडु पुत्रों पर
पिता नहीं थे न
मेरे तो थे पर देख ही नहीं सकते थे
मामा शकुनि ने अपनी उंगली पकड़ाई
बहन का बदला लेने का जरिया मुझे बनाया 
जी भर कर प्रेम बरसाया 
अपने प्रिय भांजे पर
मैं बडा था 
निन्यानबे भाईयों का आधार
मैं अपना अधिकार नहीं छोड़ सकता था
जुए का खेल रचा गया
पांसे मामा शकुनि के थे
खेलने बैठै थे धर्मराज 
द्रौपदी को दांव लगाया 
तब उनका धर्म कहाँ गया था
जुआ खेलना भी धर्म था क्या
मैं महान नहीं था
अंधे का पुत्र होने का ताना मारा था द्रोपदी ने
मैं वह भूला नहीं था
बदला लिया 
अब देखें नेत्र वाले
गलत था 
यह मैं भी जानता था
मेरे साथ तो अन्याय ही हुआ 
हर पल हर जगह
लड रहे  लोग मेरी तरफ से थे
मन से पांडवो के साथ
कोई अपनी मृत्यु का रहस्य बता रहा था
तो कोई बेटे की मृत्यु की खबर सुनकर मौत को गले लगा रहा था
मेरा अपना परम मित्र कर्ण 
वह भी मेरा न रहा
माता को दिया हुआ वचन याद आ गया
अब तक का उपेक्षित राधेय 
कौन्तेय बन चुका था
उस पर पांडवो के पथप्रदर्शक भगवान कृष्ण उनके साथ थे
मैं अंत तक हारा नहीं 
योद्धा था
वहाँ भी छल हुआ 
मेरी मृत्यु भी तो छल से हुई
मैं वीर गदाधारी था
बलराम का शिष्य था
अंत तक मैंने अपने क्षत्रिय धर्म का पालन किया
आधा क्या पांच गाँव भी दान में पांडवो को नहीं दिया
युद्ध करते हुए मरा
झुका नहीं 
हर रणनीति और कूटनीति का उपयोग किया
एक कमी रह गई थी
मेरे पास कृष्ण नहीं थे
अगर कृष्ण न होते तब 
परिणाम कुछ और होता 

Thursday, 3 February 2022

मतदान यानि महादान

मतदान यानि महादान
इसको सोच समझ कर दें
किसी के बहकावे में  न आएं 
न किसी लालच में 
रूपया - शराब
मुफ्त राशन
मुफ्त गैस 
मुफ्त बिजली
मुफ्त में पैसे
मुफ्तखोर बनना है क्या 
आने वाली पीढ़ी को क्या बनना है
अपने पूर्वजों को देखों 
कितनी मेहनत - मशक्कत 
उस पर सादा और मितव्ययी जीवन
आज तो हाल यह है
ठन ठन गोपाल
हाथ में मोबाईल
ब्रांडेड कपडे
मोटरसाइकिल की रफ्तार 
अगर इसी रफ्तार से जिंदगी चली
तो बस भीख और  दया पर गुजारा
यह विकास नहीं विनाश है
कर्म का 
प्रतिभा का
मेहनत का
किसको वोट दे रहे हैं 
उसका बैकग्राउंड क्या है
उसकी छवि कैसी है
दलबदलू है 
लालची है
जमाखोर है 
जांच लें
परख लें
तब इ वी एम का बटन दबाए
मतदान यानि महादान 
देश की दशा और दिशा
आपके हाथ में 
उंगली सही जगह पर दबे
अभी से सचेत
बाद में पछताना ना पडे 

मेरी कलम

बडी प्यारी है 
मुझे मेरी कलम
जबसे इसे पकडा
तब से यह छूटी नहीं
हाॅ अपना रूप बदलती रही
पहले सरपत और बांस की 
फिर स्याही  और दावात की
फिर बालपेन  
कभी समय मिला 
कभी नहीं मिला
हाँ लेकिन हाथ से कभी छूटी नहीं 
यह हमेशा मेरे पास रहती है
इसके बिना तो मैं बेचैन हो जाती हूँ 
यह मेरे वजूद की पहचान है
हस्ताक्षर से लेकर मन की भावना उकेरने तक
दिखने में तो छोटी ही है
पर इसका कोई सानी नहीं 
बडे बडे काम इसी के बल पर
आज हाथ कांपने लगे हैं 
डर लगता है
कहीं यह न छूट जाएं 
मैं इसे छोड़ना नहीं चाहता हूँ 
सब भले छूट जाएं 
इसका साथ कभी न छूटे
यह हाथों में  सजती रहें 
कुछ लिखती रहें 
बडी प्यारी है
मुझे मेरी कलम 

रमेश देव

नहीं रहे फिल्म आनंद के डाॅ रमेश देव
चेहरे पर स्मित हास्य
अभिनय का खिलाड़ी 
हिन्दी और मराठी फिल्मो का अभिनेता
रमेश देव और उनकी पत्नी सीमा देव की जोड़ी
दर्शको को पसंद आती थी
जिंदगी है एक पहेली
कभी तो हंसाए कभी तो रुलाए
बाबू मोशाय के साथ-साथ 
इस डाँक्टर दंपति को भी मशहूर कर गया
आनंद की जब बात आएगी
तब रमेश देव भी याद आएंगे 

आनंद मरा नहीं करते 
अमर हो जाते हैं 

मत तराजू में तौलो

तुम तो बडे शातिर निकले
मेरी भावनाओं को तराजू में तौलने लगे
नफा - नुकसान का हिसाब लगाने लगें 
कितना भी तौल लो
मेरी तरफ का पलडा भारी ही रहेगा 
मैंने सौदा नहीं किया है
दिल दिया है
दिलोजान से चाहा है
उसकी कीमत ही नहीं


माँ सबसे बडी पाठशाला

माँ अनपढ़ है या पढी - लिखी
उससे कोई फर्क नहीं पडता
वह अपनी संतान की सबसे अच्छी शिक्षक होती है
वह ऐसी विशाल पाठशाला है
जिसकी पढाई कभी खत्म नहीं होती 
इसका समय भी नहीं होता
दिन- रात चलती है
हर समय नजर रखती है
शरीर से मन से भावना से
यहाँ कोई फीस नहीं चुकानी पडती
बिल्कुल मुफ्त 
उसकी शिक्षा के आगे बडे बडे इंटरनेशनल स्कूल भी फूल
वह ऐसी ओपन यूनिवर्सिटी है
जहाँ कभी भी परीक्षा देनी पड सकती है
उससे हर रोज डिग्री और सर्टिफिकेट लेना पडता है
वह सीमेन्ट और ईटों की बनी पाठशाला नहीं है
वह हाड - मांस से बनी माता है
उसकी बराबरी कोई नहीं कर सकता 

आना और जाना

जोरों की चमाचम बारिश
घनघोर अंधेरा
कडकडाती   - फडफडफडाती  बिजली
हवा अपने तूफानी वेग में 
सब लोग कहीं न कहीं दुबका
सबके मन में भय समाया
साथ ही यह आशा भी है
एहसास भी है
यह तूफानी बरसात हमेशा नहीं  रहने वाली
कुछ समय के लिए है
फिर सब कुछ सामान्य 
हाँ जाते जाते 
तहस- नहस कर जाएंगी
वह तो फिर से निर्माण हो जाएंग 
सूरज तो निकलेगा ही
वह तो हमेशा का है
ये तूफान तो कभी-कभी 
आएंगे और जाएंगे 

Wednesday, 2 February 2022

सर्व शक्तिमान

हमने बहुत बार तारों को टूटते देखा है
सुना है विश पूरी होती है
तब हमने भी ऐसा किया
न जाने कितनी बार
भगवान ऊपर रहते है न
तारे उनके करीब होंगे 
वे शायद हमारी बात उन तक पहुंचा देंगे 
तभी तो हमने उनका सहारा लिया
यह जानते हुए भी
यह मात्र एक खगोलीय घटना है
विज्ञान के युग में रहते हैं 
तब भी ऐसी बातों पर विश्वास करते हैं 
कभी बाबा का कभी महात्मा का
कभी साधु का कभी ज्योतिष का
हम सहारा लेते रहते हैं 
अगर ईश्वर को हम मानते हैं 
तब डायरेक्ट क्यों नहीं  अपनी बात उन तक पहुंचाते
अपनी भक्ति और श्रद्धा पर भरोसा नहीं 
या फिर अपने ईश्वर पर
इन सबकी जरूरत नहीं है
सीधे संवाद कीजिये 
आपकी बात वह सुन ही रहा है
अब क्या और  कैसे करना है
यह उस पर छोड़ दें 
सीधे उसी से संवाद करें 
बिना बोले भी वह जान जाता है
वह तो मन को भाप लेता है
तभी तो सर्व शक्ति मान है 

हम और हमारे बाबूजी

आपको याद करना तो एक बहाना है
आपको भूलना हमको कहाँ गंवारा है
आपकी सबमें बसने वाली जान
वह कैसे दूर चले जाना है
पितृपक्ष क्या हर वक्त हमारे साथ रहना है
ईश्वर के साथ आपका आशीर्वाद
बस यही है हम सबकी दरकार
सारी दुनिया एक तरफ
आपका प्यार एक तरफ
वह तो सब पर भारी

आप गए ही कहाँ
सबमें तो थोड़ा थोड़ा समाए
आशा की सादगी और गुस्से में
अशोक की व्यवहारिकता  और सहनशीलता में
संजय की ईमानदारी और अनुशासन में
अनुभा की कर्मठता और जुझारूपन में
ऋषभ की धीरता  और शांत स्वभाव में
अलख के बुद्धिमानी  और सीधापन में
वेदांत की च॔चलता और बेफिक्री में
आस्था का तर्क वितर्क और अपनापन में

मनु  का ऑख बंद कर मुस्कराने के भोलेपन में 

खाना खाते समय
सर छिलाया रूप
किसी की खिलखिलाती हंसी
नानवेज खाते
मन ही मन मुस्कराते
जमीन और चटाई पर लेटते
खाना खिलाते
हर क्षण में किसी न किसी रूप में समाए बाबूजी
ज्यादा न सही थोडा ही सही
कभी किसी रूप में कभी किसी रूप में समाए
किसी की ऑखों में
किसी की चंचलता में
किसी के माथे पर
किसी की हंसी में
किसी के थीरज में
किसी की मेहनत में
किसी की बातों में
किसी की हार न मानने वाले जीवटता में

किसी की नींद में 

संसार जिसका अपने बच्चों के इर्द-गिर्द हो
बिना किसी की परवाह
अपने काम से काम
बच्चों में बसती हो जिसकी जान
उसका साथ छूटना तो मुमकिन नहीं
जिंदगी के साथ भी
जिंदगी के बाद भी
बाबूजी है हमेशा हमारे साथ

आज की नारी

नारी और पुरुष समान
कहने को तो ठीक है
यह इतना नहीं आसान
पुरुष का पौरूष 
इस बात को आसानी से स्वीकार नहीं करता 
वह डरता है 
उसकी प्रतिभा से
उसकी उच्च आकांक्षाओं  से
उसे तो बस ऐसी चाहिए 
जो उसका घर और बच्चे तथा परिवार संभाले
उसकी बात का जवाब न दे
आजकल घर में उसकी आर्थिक भागीदारी भी
बाहर कुछ भी हो
घर में गृहणी बन कर रहें 
उसका अहम् 
उसका स्वाभिमान 
उसकी इज्जत और मान - सम्मान 
सबका दारोमदार उसी पर
कहीं न कहीं एक काम्प्लैक्स  होता है उसके मन में 
कभी वह दिखाई देता है कभी नहीं 
हाँ उसकी जीवनसंगिनी को 
यह हर पल अनुभव होता रहता है
सदियों से राज किया है इस वर्ग ने
औरत के तन और मन पर
वह इतनी जल्दी खत्म होने वाला नहीं 
इस द्वंद्व  में पीसती रहती है वह औरत
घर और बाहर दोनों जगह तालमेल बिठाने में 
ऊपर से इस पति रूपी जीव को संभालने में 
प्यार की बडी कीमत चुकानी पडती है उसे
इसे हर कोई समझ नहीं सकता
जिस पर बीतती है
वही जानता है 

बेटा या बेटी

मेरे घर में आया एक नन्हा मेहमान 
सबकी प्रश्नों की लग गई झडी 
क्या हुआ है ???
बेटा या बेटी
हमें तो कोई फर्क नहीं 
जो भी हो
जच्चा-बच्चा स्वस्थ रहें 
भगवान की नियामत बरसे
उसका धन्यवाद 
उसने माँ की झोली तो भरी
नजर न लगे नन्हीं जान को
नजरिया सकरात्मक हो
एक हंसी और रूदन से 
सबका मन हर्षित हो
वह संतान तो प्यारी ही है
खानदान की वारिस है

Tuesday, 1 February 2022

उर्मिला


भगवान राम को १४ वर्ष का वनवास हुआ तो उनकी पत्नी सीता ने भी सहर्ष वनवास स्वीकार कर लिया । परंतु बचपन से ही बडे भाई की सेवा में रहनेवाले लक्ष्मण कैसे रामजी से दूर हो जाते ! माता सुमित्रा से तो उन्होंने आज्ञा ले ली थी, वन जाने की….. परंतु पत्नी उर्मिला के कक्ष की ओर बढते हुए दुविधा में थे । सोच रहे थे कि मां ने तो आज्ञा दे दी, परंतु उर्मिला को कैसे समझाऊंगा ! क्या कहूंगा !

यहीं सोच-विचार करते हुए जब अपने कक्ष में पहुंचे तो देखा कि #उर्मिला आरती का थाल लेकर खडी थीं । वे बोलीं, “आप मेरी चिंता छोड, प्रभु की सेवा में वन जाओ । मैं आपको नहीं रोकूंगी । मेरे कारण आपकी सेवा में कोई बाधा न आए, इसलिए साथ जाने की जिद्द भी नहीं करूंगी ।”

लक्ष्मणजी को कहने में संकोच हो रहा था । परंतु उनके कुछ कहने से पहले ही उर्मिला ने उन्हें संकोच से बाहर निकाल दिया । वास्तव में यही पत्नी-धर्म है । पति संकोच में पडे, उससे पहले ही पत्नी उसके मन की बात जानकर उसे संकोच से निकाल दे !

#लक्ष्मणजी चले गये परंतु १४ वर्ष तक उर्मिला ने एक तपस्विनी की भांति कठोर तप किया । वन में भैया-भाभी की सेवा में लक्ष्मण जी कभी सोये नहीं, परंतु उर्मिला ने भी अपने महल के द्वार कभी बंद नहीं किए और सारी रात जाग-जागकर उस दीपक की लौ को बुझने नहीं दिया ।
मेघनाथ से युद्ध करते हुए जब लक्ष्मण को शक्ति लग जाती है और हनुमान जी उनके लिये संजीवनी बूटी सहित द्रोणगिरी पर्वत लेकर लौट रहे थे, तब मार्ग में अयोध्या पडी और नंदिग्राम में भरत ने उन्हें राक्षस समझकर बाण मार दिया । हनुमान गिर जाते हैं । तब हनुमान संपूर्ण वृत्तांत सुनाते हैं कि सीताजी को रावण ले गया और लक्ष्मण मूर्छित हैं ।

यह सुनते ही #कौशल्या_जी कहती हैं कि राम को कहना कि लक्ष्मण के बिना अयोध्या में पैर भी मत रखना । राम वन में ही रहे । #माता_सुमित्रा कहती हैं कि राम से कहना कि कोई बात नहीं । अभी शत्रुघ्न है । मैं उसे भेज दूंगी । मेरे दोनों पुत्र राम सेवा के लिए ही तो जन्मे हैं । माताओं का प्रेम देखकर हनुमान की आखों से अश्रुधारा बह रही थी । उन्होंने उर्मिला की ओर देखा, तो सोचने लगे कि यह इतनी शांत और प्रसन्न कैसे हैं ? क्या इन्हें अपनी पति के प्राणों की कोई चिंता नहीं?

#हनुमान_जी पूछते हैं – देवी ! आपकी प्रसन्नता का कारण क्या है ? आपके पति के प्राण संकट में हैं । सूर्य उदित होते ही सूर्य कुल का दीपक बुझ जाएगा । इस पर उर्मिला का उत्तर सुनकर तीनों लोकों का कोई भी प्राणी उनकी वंदना किए बिना नहीं रह पाएगा । वे बोलीं -“मेरा दीपक संकट में नहीं है, वह बुझ ही नहीं सकता । रही सूर्योदय की बात तो आप चाहें तो कुछ दिन अयोध्या में विश्राम कर लीजिए, कारण आपके वहां पहुंचे बिना सूर्य उदित हो ही नहीं सकता । आपने कहा कि #प्रभु_श्रीराम मेरे पति को अपनी गोद में लेकर बैठे हैं । जो योगेश्‍वर राम की गोद में लेटा हो, काल उसे छू भी नहीं सकता । यह तो वे दोनों लीला कर रहे हैं । मेरे पति जब से वनवास गए, तब से सोये नहीं हैं । उन्होंने न सोने का पण लिया था । इसलिए वे थोडी देर विश्राम कर रहे हैं, और जब भगवान् की गोद मिल गई है तो थोडा अधिक विश्राम हो गया । वे उठ जाएंगे और शक्ति मेरे पति को लगी ही नहीं है । शक्ति तो रामजी को लगी है । मेरे पति की हर श्‍वास में राम हैं, हर धडकन में राम, उनके रोम-रोम में राम हैं, उनके लहु की बूंद-बूंद में राम हैं, और जब उनके शरीर और आत्मा में केवल राम ही हैं, तो शक्ति रामजी को ही लगी, वेदना रामजी को हो रही है । इसलिए हे हनुमान, आप निश्‍चिंत होकर जाएं । सूर्य उदित नहीं होगा ।”

रामराज्य की नींव #जनक_की_बेटियां ही थीं… कभी सीता तो कभी उर्मिला । भगवान् राम ने तो केवल रामराज्य का कलश स्थापित किया, परंतु वास्तव में रामराज्य इन सबके प्रेम, त्याग, समर्पण और बलिदान से ही आया ।
#जय_श्री_राम 🙏COPY PASTE 

आंगन का पौधा

मैं किसी के आँगन का पौधा हूँ 
अपनी हद में रहना जानता हूँ 
बडे नाजो से लगाया
समय - समय पर खाद - पानी देते रहें 
मेरी अच्छी तरह से देखभाल की
गरमी , बरखा और ठंड में ध्यान रखा
जब - जब जरूरत  पडी
मुझे काटा - छाटा 
मुझे आकार दिया
कभी धूप में तो कभी छाया में रखा
आज मैं  जब बडा हो गया हूँ 
फल - फूल रहा हूँ 
तब वे भी बडे गुरूर से देखते हैं 
देख देख मुस्कराते हैं 
मन ही मन खुश होते हैं 
मैं उनको जानता हूँ 
उनके मन की बात समझता हूँ 
आखिर उनकी ही देख रेख में  पला - बढा
अगर वे नहीं होते तब
पता नहीं  किस चिडिया के पेट में जाता
किस पशु का चारा बनता
किसकी कुल्हाडी चलती
हर तरफ से सुरक्षा की
मुझे अपने आंगन में जगह दी
यह तो उनका एहसान है
इसका मुझे भी एहसास है
उनका यह कर्ज चुकाना तो संभव नहीं 
हाँ अपनी छाँव देकर जरूर थोडा सुकून दे सकता हूँ 
अपने फल - फूल से उनकी मदद करू
उनके चेहरे पर थोड़ा सा सुकून देखूं 
यही चाहता हूँ 

ऐ मन तू क्यों घबराएं

ऐ मन तू 
क्यों घबराएं 
जो यहाँ तक लाया है
आगे भी ले जाएंगा
तूने क्या सोचा 
होता रहा क्या
फिर भी जो हुआ 
उसमें भी उसका ही एहसान 
कितनों को तो वह भी नहीं 
हर मुश्किल घडी में साथ रहा
बुरा समय भी निकलता रहा
यह भी वक्त गुजर जाएंगा
किसी का सोचा हुआ 
न हुआ है न होगा
कौन जाने 
आगे जीवन में क्या लिखा है
यह भी तो लिखने वाला ही जानता है
पल भर में क्या से क्या हो जाता है
यह जीवन है
इसकी डोर भी विधाता के हाथ में 
विधि के विधान पर भरोसा रख
जो यहाँ तक लाया है
आगे भी ले जाएंगा 

खुदा बचाये ऐसे मेहमानों से

वे मेरे घर आए
मेहमान बनकर
हमने भी खूब मेहमान नवाजी की 
मेजबान बनकर
खातिरदारी में कोई कसर न छोड़ी 
जो हमको नसीब नहीं था
वह भी उपलब्ध कराया
अच्छे बिस्तर , अच्छा खाना
सब उपलब्ध कराया
पास नहीं था 
तो उधार लेकर काम चलाया
जाते समय भी उनको कपडे - लत्ते दिए
कोई कसर न छोड़ी 
वह आए तो थे घूमने 
हमारा घर उन्हें सरायघर लगा
बिना खर्च किए आराम से
कोई बात नहीं 
आज वे हमारे मेहमान 
तो कभी हम भी उनके मेहमान 
जाते - जाते वे हमारे घर का बारीकी से निरीक्षण कर गए 
हमारे घर की तमाम बातें चटखारे ले लेकर सुनाया
न्यूज रिपोर्टर का काम कर गए
हम तो उनको अपना समझे थे
वे तो दगाबाज  निकल गये 

कुल्हड़ सी जिंदगी

खाली कुल्हड़ सी लगती है 
अब तो यह जिंदगी 
कभी थी भरी - भरी
उफान मारती 
गरम गरम 
मसालेदार 
खुशबूदार 
सौंधी सौंधी महक 
धीरे - धीरे सब खाली होता गया
अब तो बच गई है
नीचे तली में  
कुछ ठंडी सी
जिसे पीने का मन नहीं करता 
अब यह भी फेंक दी जाएंगी
कुल्हड़ समेत
वह कचरे के ढेर में 
या फिर टूट कर कोने में