Saturday, 30 April 2022

जीवन का संगीत

जीवन का भी एक अपना ही संगीत है
वह म्युजिक प्लेयर तो नहीं जहाँ आप मन पसंद गाने सुने
कभी रोमांस के कभी सुख के कभी दुख के
कभी भक्ति के कभी वेदना के 
सदाबहार भी कुछ गाने हैं 

जीवन का संगीत हमेशा सुमधुर नहीं होता
न वह हमारी इच्छा से संचालित होता है
कैसेट बदलने की जरूरत नहीं 
कब गम , खुशी में बदल जाएं 
कब मिलन , विरह बन जाए 
कब आनंद का क्षण उदासी में 
कब आशा , निराशा में 

इसका स्विच हमारे हाथ में नहीं 
हम ऑफ या ऑन नहीं कर सकते
आगे या पीछे नहीं कर सकते
कम या ज्यादा नहीं कर सकते
मन माफिक हो यह भी नहीं 
हाँ यह बजता हमेशा है
जब तक प्राण है तब तक

Friday, 29 April 2022

शिकायत

आज की पीढ़ी को कितनी शिकायत 
यह नहीं तो वह नहीं 
जितना मिला वही बहुत था
किसी को वह भी नसीब नहीं 
टाट पर बैठकर पढाई की
जमीन पर गद्दे बिछाकर सोये
घर का खाना खाया
रोटी बासी हो या ताजी
कभी फर्क नहीं पडत
मीलों पैदल चले
कभी थके नहीं 
न बढिया खिलौने मिले न कोई गेम 
तब भी कोई शिकायत नहीं 
सबकी डांट खाई 
सबकी मार खाई
तब भी हंसते रहें 
कुछ नहीं बुरा लगा
शिक्षक से या फिर घर से
अपनी गलती छुपाकर रखी
ऐसा कुछ नहीं कि पैरेन्टस को तकलीफ हो
उनकी परेशानी समझते थे
उनकी सीमा समझते थे
उनकी हैसियत से ज्यादा कुछ मांगा नहीं 
अपने जन्म दाता  का मन से आदर किया
उनकी हर परेशानी अपनी परेशानी 
यही हमारा जीवन रहा
कभी उससे कोई शिकायत नहीं 

अपना मूल्यांकन

मैं हार गया
मैं हार गयी
हारने वाले को कोई याद नहीं रखता 
जीतने वाले को सब
जीवन है तो हार- जीत भी लगी रहेगी 
निराश होने से तो कुछ भी हासिल नहीं 
बैठ रहने से कुछ नहीं होता
काम करते रहें 
अपने लिए भी और दूसरों के लिए भी
आपको ऐसा लगता है
आप बेकार है
आपकी कोई वैल्यू नहीं है
स्वयं को ऐसा मत समझे
अपना मूल्यांकन स्वयं करें 
तब महसूस होगा
आपमें भी कुछ बात है
आप साधारण नहीं 
विशेष हैं 

Thursday, 28 April 2022

स्वतंत्रता

छोडो मेरा हाथ
मैं करूंगा छप छप
पानी बोलेगा छम छम
बकेट में  मत रखों 
मुझे बंधन पसंद नहीं 
वैसे इसे भी बंधन पसंद नहीं 
यह बहता रहता है 
तभी उछाल मारता है
मैं खेलता रहता हूँ 
तभी खुश रहता हूँ 
पानी की कहो
बच्चे की कहो
सबको स्वतंत्रता प्यारी है
उससे यह हक मत छीनो 

Wednesday, 27 April 2022

अपना तो अपना ही होता है

प्रेम तो प्रेम ही होता है
वह अपनों से होता है
कितना भी दूर चले जाओ
रूठ जाओ
क्रोधित हो जाओ
बातचीत बंद कर दो
फिर भी वह मन में हिलोरे मारता रहता है
अपनों की सलामती के लिए दुआ करता रहता है
ऊपर से नाराजगी लेकिन दिल की बात न पूछो
दिल तो दिल ही होता है
उसमें अपनों की जगह निश्चित होती है

परायों से कितना भी प्रेम कर लो
बात कर लो मिठास के साथ
अपना सर्वस्व न्योछावर कर दो
फिर भी पराया तो पराया ही होता है
वह अपना तो कभी हो ही नहीं सकता
यह डर हमेशा रहता है
यह न जाने किस बात पर दूर चला जाए
इसी वजह से हम प्यार और अपनत्व दिखाते रहते हैं 
वह अपनों की जगह कभी नहीं ले सकता 
वह पास होकर भी दूर
अपना दूर होकर भी करीब
यही तो बात है
अपनों और परायों में 
एक ईश्वर का बनाया हुआ
एक स्वयं की निर्मिति 
फर्क तो है ही
अपना तो अपना ही होता है ।

माँ तो माँ होती है

न पिता न पति
न सास न ससुर
न भाई न भाभी
न बेटा न बेटी
न बहू न दामाद
न दोस्त न नाते रिश्तेदार
न पडोसी न सहकर्मी
ये चाहे कितने भी अजीज क्यों न हो
माँ   तुम्हारी जगह तो कोई ले ही नहीं सकता
हर रिश्ते की हिफाजत करें
तभी वह टिकता है
पर तुम्हारे रिश्ते में ऐसा नहीं
हम कैसे भी हो
पर माँ तो माँ होती है
तुम्हीं से तो जीवन शुरू
नाल काटकर अलग कर दिया जाता है
पर तुम्हारा रिश्ता चट्टान से भी मजबूत
एक बार ईश्वर पर से विश्वास उठ सकता है
वह मदद करेगा या नहीं
पर माँ तुम पर से नहीं
पता है मेरी माँ हर मुश्किल घडी में साथ खडी रहेंगी
कितनी भी नाराज हो
कितनी भी क्रोधित हो
कितना भी हमारे द्वारा अपमानित हो
फिर भी
हर कीमत पर
वह जन्मदात्री है
जब तक माँ होती है
तब तक कितना भी वयस्कर क्यों न हो जाय 
वह तो बच्चा ही रहता है
बहुत बडी नियामत है माँ
कहते हैं कि
ईश्वर नहीं आ सकता पृथ्वी पर
तो उसने माँ को भेज दिया
एक प्रसिद्ध रचनाकार का कहना
स्वामी तीन जगाचा
    आई विना भिकारी
यानि तीन जग भी मिल जाय
पर माँ बिना तो वह भिखारी ही है

एक तिनका

कितना जतन किया जा रहा है
कोई  तोड़  न ले कोई  उखाड़  न ले
कोई  पत्तियां कुनक  न ले
बच्चों से , पशु- पक्षियों  से
हर वक्त  पहरा तब भी ईंटों के  घेरे में 
खाद - पानी दिया जा रहा है 
अभी पल्लवित  हो रहा है
फिर पुष्पित होगा
फलदार वृक्ष  बनेंगा
लहलहाएंगा , छाह देगा
वह तभी जब उसकी उचित  देखभाल  किया जाए 
हर अंधड - तूफान  से बचाया जाएं 
यही तो बात बच्चों  पर भी
उनका जतन किया जाए उचित  
पालन - पोषण  , शिक्षा , संगत
हर गतिविधि  पर नजर
बडा होने दें तब तक आपकी जिम्मेदारी 
कौन जाने आपका नौनिहाल विशाल वृक्ष  बन जाए 
शेक्सपियर  का एक वाक्य 
आप जमीन  पर उगने वाले हर तिनके को नमन कीजिये
कौन जाने कौन सा तिनका कब विशाल वृक्ष  बन जाए

मैं पुरूष हूँ

मैं पुरूष हूँ
यह बात तो सौ प्रतिशत सत्य
पर मैं और कुछ भी हूँ
एक पुत्र हूँ
एक भाई हूँ
एक पति हूँ
एक पिता हूँ
और न जाने क्या - क्या हूँ
मेरे पास भी दिल है
मैं कठोर पाषाण नहीं
जो टूट नहीं सकता
मैं बार बार टूटता हूँ
बिखरता हूँ
संभलता हूँ
गिरकर फिर उठ खडा होता हूँ
सारी दुनिया की जलालत सहता हूँ
बाॅस की बातें सुनता हूँ
ट्रेन के धक्के खाता हूँ
सुबह से रात तक पीसता रहता हूँ
तब जाकर रोटी का इंतजाम कर पाता हूँ
घर को घर बना पाता हूँ
किसी की ऑखों में ऑसू न आए
इसलिए अपने ऑसू छिपा लेता हूँ
सबके चेहरे पर मुस्कान आए
इसलिए अपनी पीड़ा छुपा लेता हूँ
पल पल टूटता हूँ
पर एहसास नहीं होने देता
मैं ही श्रवण कुमार हूँ
जो अंधे माता पिता को तीर्थयात्रा कराने निकला था
मैं ही राजा दशरथ हूँ
जो पुत्र का विरह नहीं सह सकता
जान दे देता हूँ
माँ ही नहीं पिता भी पुत्र को उतना ही प्यार करता है
मैं राम भी हूँ
जो पत्नी के लिए वन वन भटक रहे थे
पूछ रहे थे पेड और लताओ से
तुम देखी सीता मृगनयनी
मैं रावण भी हूँ 
जो बहन शूपर्णखा के अपमान का बदला लेने के लिए साक्षात नारायण से बैर कर बैठा
मैं कंडव  त्रृषि हूँ जो शकुंतला के लिए गहस्थ बन गया
उसको बिदा करते समय फूट फूट कर रोया था
मेनका छोड़ गई 
मैं माॅ और पिता बन गया
मैं सखा हूँ 
जिसने अपनी सखी की भरे दरबार में चीर देकर लाज बचाई
मैं एक जीता जागता इंसान हूँ
जिसका दिल भी प्रेम के हिलोरे मारता है
द्रवित होता है
पिघलता है
मैं पाषाण नहीं पुरुष हूँ

Tuesday, 26 April 2022

खाकी तुझे सलाम

कभी खाकी कभी सफेद
यह रक्षा करने में रहते हर वक्त तत्पर
सुकून से जीते हम
पता है हमको
मुसीबत की घडी में साथ देंगे ये
जीवन रक्षक हैं हमारे
निश्चिंत रहते हम 
ये ईश्वर तो नहीं है
पर उनसे कम भी नहीं है
जीवन की आस बंधी रहती इनसे
आशा और विश्वास रहता इन पर
कठिन परिस्थिति से ये तो हमें उबार ही लेंगे
निर्भिक रहते हैं हम
ये वैसे तो हमारे कुछ लगते नहीं है
पर कुछ खास रिश्ता होता है इनसे
तभी तो मुसीबत की घडी में ये ही याद आते हैं
ये रहे सलामत
तब हम भी रहेंगे सलामत
इनकी सलामती की दुआ हर देशवासी के मन में
सलामत रहे
हमारे सफेद और खाकी
यह इनकी पहचान
इनका करना  हमेशा सम्मान

हंसते रहें

हंसो खूब हंसो
मुस्कुराओ जम कर मुस्कुराओ
खिलखिलाओ इतना कि दूर तक खनके 
यह सब इतना आसान नहीं 
लेकिन मुश्किल भी तो नहीं 
असंभव तो बिल्कुल नहीं 
कुछ लगता भी नहीं 
न पैसा न समय
हाँ इससे बहुत कुछ लाभ
एक हल्की सी मुस्कान 
सामने वाले का दिल जीत लेती है
एक हंसी रगों में खून का संचार कर देती है
एक खिलखिलाहट बोझिल वातावरण को हल्का बना देती है
हंसी की सुमधुर लहरे सबको तरंगित कर जाती है
किसी अजनबी को भी अपना बना सकती है
दुश्मन से भी दोस्ती करवा सकती है
जब इतना सब गुण इसमें 
तब क्यों न हंसें जी भर कर 
हंसते रहें 
मुस्कराते रहें 
खिलखिलाते रहें 
जीवन का लुत्फ उठाते रहें 
आई रे आई हंसी  
      आई रे
सबके मन को भायी रे

खामोशी

कभी-कभी मन करता है
कुछ न बोलो
कुछ भी न बोलो
बस खामोश रहो
न किसी से सवाल
न किसी से जवाब
न किसी से उलझना
न किसी से तर्क वितर्क
बस सबसे दूर
अपने आप में मशगूल
तब कितनी शांति
न झिकझिक
न टिक टिक
न कोई झंझट
न कोई तकरार
न इकरार
न इसरार
तब कितनी शांति
यह शांति शायद किसी को रास आती 
किसी को नहीं
लेकिन फिर भी कुछ बात तो है
खामोशी भी लाजवाब है
कभी-कभी मन करता है
कुछ न बोलो
कुछ भी न बोलो

Saturday, 23 April 2022

पुस्तक मेरी साथी

पुस्तकों से नाता कब जुड़ा 
तब इसका जवाब होगा 
बचपन में पाठशाला में 
यह सही भी है
पर असली समझ और रूचि विकसित हुई 
कक्षा पांच के बाद
तब चंदा मामा और चंपक जैसी बाल पत्रिका आती थी
अब तक कहानी पढ रही थी
चुटकुले और कार्टून से परिचय हो रहा था
थोड़ा बडा हुए 
तब नवभारत टाइम्स पढना शुरू किया
वह भी केवल रोचक खबरें
नन्दकिशोर नौटियाल का ब्लिटज आता था हफ्ते में एक बार
धीरे-धीरे रूचि बढी
तब सडक किनारे बिकने वाले गुलशन नन्दा का उपन्यास भाया 
तब तक समय बदला 
काॅलेज पहुँच चुके थे
तब साहित्यकारों से परिचय हुआ 
यही पर शरदचंद्र चट्टोपाध्याय की देवदास पढी
चंद्रधर शर्मा की हिन्दी की पहला कहानी
उसने कहा था पढी
प्रेम क्या होता है बिना बोले और छुए भी 
पंत जी का छायावाद की कविताएं पढी
गुप्त जी की साकेत और प्रसाद की कामायनी से परिचय हुआ 
रामचन्द्र शुक्ल और कामताप्रसाद गुरु जैसे व्याकरण कर्ताओ  को पढा
महादेवी जी की 
मैं नीर भरी दुख की बदरी  से पीडा का परिचय हुआ
चित्रसेन शास्त्री,  धर्मवीर भारती ,अज्ञेय  ,शिवानी 
मृणाल पांडे,  मन्नू भंडारी के साहित्य पढे
राहुल संस्कृयान के यायावरी घुमक्कड़ी लेख पढे
नेहरू ,गांधी और टैगोर को 
इस तरह पुस्तक और पुस्तकालय से नाता जुड़ा 
जो आज तक बरकरार है
पुस्तक से अच्छा कोई साथी नहीं 
यह हमारे साथ रोती है हंसती है उदास होती है
समझाती है
पुस्तकों से जिसने प्रेम कर लिया
वह फिर कभी अकेला नहीं होता

विश्व पुस्तक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

हे पुस्तक तेरा आभार 
माता सरस्वती की कृपा 
तभी तो तू गिर जाए 
तब हम उठा कर माफी मांग लेते हैं 
प्रणाम कर लेते हैं 
तू नहीं होती तो हमारा जीवन से परिचय कैसे होता
हमें जीवन जीना तूने ही सिखाया 
गणित के सवाल हल करना 
ज्यामितीय  के भुजा और त्रिकोण 
भूगोल से सारे संसार का परिचय 
इतिहास से हमारे पूर्वजों का संचित ज्ञान 
विज्ञान से जीवन को आसान बनाना 

साहित्य तो हमारी रग - रग में 
भाषा और व्याकरण से परिचय 
गीता से कर्म का महत्व 
रामायण से चरित्र की महत्ता 
ग्रंथों से सनातन धर्म का परिचय
औषधीय ज्ञान  से भरा 

हम तो तुम्हारे आभारी
तुम न होती तब प्रेमचंद का गोदान
शेक्सपियर का लेडी मैकबेथ
वर्ड्स वर्थस की कविताएं 
पंत - प्रसाद का छायावाद 
बच्चन का हालावाद
टैगोर और नेहरू के अनुभव
स्वतंत्रता का इतिहास 
और न जाने क्या-क्या 
कहानी , उपन्यास,  लेख , कविता 
प्रबंध काव्य,  गद्य काव्य
लेनिन और कार्ल मार्क्स 
समाजवाद,  प्रजातंत्र  , क्युनिजम 
सब तुम्हीं में समाएं 
तभी तो हजार तलवारों की ताकत 
तुम्हारे तीन साधारण से कहें जाने वाले समाचार पत्र में 

तुम तो संसकृति और संस्कारो की जननी 
चरित्र निर्मात्री 
पथ प्रदर्शक 
समाज को बदलने की शक्ति 
कोटि कोटि आभार 
तुम न होती तो 
आज मानव पशु ही होता

Tuesday, 19 April 2022

पडोसी

हम शांति प्रिय 
सीनियर सीटिजन 
किसी से लडना नहीं चाहते
पर दब कर भी तो रह नहीं सकते
अन्याय सहना भी तो कायरता 
अब पडोसी परेशान करें 
लाउड आवाज में म्यूजिक सुने
देर रात तक हुडदंग करें 
बाहर पैसे में कचरे का भंडार रखें 
अपेक्षा रखें 
सबको अपने पडोसी से प्रेम करना चाहिए 
भारत भी तो शांति चाहता है 
पडोसी रहने नहीं देता
हार मान कर हथियार उठाना पडता है
वैसे ही हालात घर के हैं 
यह छोटे स्तर पर
देश का मसला बडे स्तर पर 
बात तो वही है
तब झगड़ा करना
पुलिस को कम्पलेन करना 
यह तो स्वाभाविक है
एक पक्ष प्रेम नहीं कर सकता

रशिया और युक्रेन

तीसरे विश्व युद्ध की आहट
सबको डर लग रहा है
लड रहे हैं 
यूक्रेन और रशिया
परिणाम पूरे संसार पर
दोनों अपनी जिद पर
न पुतिन पीछे हटने को तैयार
न जेलेस्की अपनी जिद छोड़ने 
मरना और मारना
हर युद्ध का उद्देश्य 
मानवता की हत्या हो रही है
जान माल का नुकसान 
एक घर बनाने में  सालो लग जाते हैं 
यहाँ एक क्षण में सब तबाह
कभी तो सुलह होगी
जब तक होगी
तब तक न जाने कितनी तबाही
उठ खडे होने में युक्रेन को सदियाँ लग जाएंगी
बर्बादी का मंजर हर दिन टेलीविजन पर

गुप्तजी ने कहा है
टुकड़े टुकड़े हो बिखर चुकी मर्यादा 
उसको दोनों ही पक्षों ने तोड़ा है 
पांडव ने कुछ कम कौरव ने कुछ ज्यादा 

सही तो कोई नहीं है
अभी भी संभल जाएं 
मानव जाति को बचा लिया जाएं 

गुरू द्रोणाचार्य

विष का परिणाम विष ही
मन जहरीला हो
ईष्या और द्वेष से भरा हो
तब उसका कार्य सही कैसे होगा
साफ मन ही नहीं है तब 
अगर भोजन भी सही मन से नहीं बना होगा 
तब वह खाने वाले पर भी वैसा ही प्रभाव डालेगा
यह मनोवैज्ञानिक तथ्य है

तब द्रोणाचार्य के शिष्य इससे क्यों नहीं प्रभावित होते
जिस आदमी का उद्देश्य  ही बदला लेना हो
अपने शिष्यों  से गुरू दक्षिणा के रूप में बदला मांगा 
अपने मित्र राजा दुपद्र द्वारा किए अपमान को वे भूले नहीं थे
उन्हें बंदी बनाने का आदेश दिया
बदला भी लिया 
दुपद्र भी यह भूले नहीं 
उसी का परिणाम याज्ञसैनी द्रौपदी थी
कहा जाता है
द्रोणाचार्य एक बडी नाव में छोटे से छिद्र के समान थे
जो सागर में पूरी नाव को ही ले डुबता  है
कौरव - पांडव की उन्हीं  के द्वारा शिक्षा  दीक्षा हुई थी
एकलव्य से भी उसका अंगूठा मांग लिया
उनकी शिक्षा बंधक थी कौरव साम्राज्य में 
किसी और को शिक्षा नहीं दे सकते थे 
गुलामी और ईष्या से भरा व्यक्ति 
अपने शिष्यों से क्या अपेक्षा करता
महाभारत होने का एक कारण ये भी थे 

रिस्क जिंदगी में

रिस्क तो लेना ही पडता है
जोखिम तो उठाना ही पडता है
जिंदगी तो जुए का खेल है
दांव तो लगाना ही पडता है
यह सही है तो बल्ले बल्ले 
जीत हो गई तो क्या कहना
दांव गलत चल दिए तब तो मुश्किल 
कभी-कभी सब कुछ खो भी दिया जाता है
सच्चा जुआरी कभी हिचकता नहीं है
उसे लगता है
आज हारा तो क्या
कल जीतेगा भी वही
कितना भरेगा व्यक्ति 
या तो जुआ खेलना छोड़ दे
रिस्क लेने से तौबा कर ले
जो है उसी में संतुष्ट 
ऐसा होता नहीं है
यहाँ तो पग पग पर दांव चलना पडता है
सबसे बडा तो शादी जो व्यक्ति की जिंदगी का महत्व पूर्ण पडाव
वहाँ भी तो यही बात है
जो जीता वो जीता 
जो हारा वह हारा
तब मत घबरा ऐ नादान
चल जा दांव 
जो होगा वह देखा जाएगा

Monday, 18 April 2022

मेरी पहचान

मेरी पहचान क्या है
समझ नहीं आता
किसी की बेटी
किसी की बहन 
किसी की पत्नी 
किसी की माँ 
तब क्या  करूँ 
मेरा अपन वजूद 
मेरा अपना नाम 
वह तो कब का खो गया
बचपन में  पाठशाला में नाम से पुकारी जाती थी
टीचर और सहेलियों के बीच 
तब लगता था
मैं भी कुछ हूँ 
जब कक्षा में  अव्वल आती थी
स्टेज पर अभिनय के लिए तालियाँ बजती थी
तब मैं भी इतराती चलती थी
आज उसी पहचान की मोहताज हो गई 
किसी की पत्नी किसी की माँ में 
सिमट कर रह गई 

Sunday, 17 April 2022

खुश रहो

रहे जोड़ी सलामत तुम्हारी
जुग जुग जीओ मेरे बच्चों 
प्राणों से प्रिय 
तुम सबमें बसती है जान हमारी
तुम खुश तो हम खुश 
तुम्हारा ही ध्यान रहता है हमेशा
हर पल उठते - बैठते
जहाँ रहो 
खुशहाल रहो
जीओ जी भर कर
खुशियाँ मनाओ मन भर
खा - पीकर मस्त रहो
स्वयं भी हंसो सबको हंसाओ
खुशियाँ बाँटो 
हर वर्ष यह दिन इसी तरह आए
सबका आशीर्वाद और प्यार से 
तुम्हारे जीवन में आनंद की तरंगें लहराए 

Saturday, 16 April 2022

एहसास यह भी हो

एक आदमी कमाता है
पूरा परिवार खाता है
यह सही है
पर किसके भाग्य से कौन खाता है
यह नहीं पता
सब अपना भाग्य अपने जन्म से ही साथ लेकर आते हैं 
जो है जैसा है
उसमें उसका भी हिस्सा है
हो सकता है
कोई एक बहुत भाग्यशाली हो
सब साथ रहने के कारण पता न चले
इसलिए सोचने या परेशान होने की जरूरत नहीं है
न किसी का किसी पर एहसान 
यह सबको हो एहसास 

Friday, 15 April 2022

लोगों की फिक्र

वह ये कहता है
ये वह कहते हैं 
लोग ऐसा कहते हैं 
लोग वैसा कहते हैं 
है इतनी हिम्मत 
सबका मुंह बंद करने की
इस दुनिया में हर तरह के प्राणी 
सबका अपना अपना विचार 
सबका अपना अपना  नजरिया
सबकी अपनी-अपनी सोच
सबका अपना अपना अनुभव 
इसमें आपका स्थान कहाँ? 
क्यों  तवज्जों इनको
आज कुछ  तो कल कुछ 
कुछ तो कहना है
कहेगे जरूर कहेंगे
बिना कहें बाज नहीं आएंगे 
भले आपका उनसे कोई ताल्लुकात न हो
तब क्यों इनकी फिक्र 

Thursday, 14 April 2022

जिंदगी की पटरी

अगर आप अपने पापा की राजकुमारी है
तब आपका पति भी किसी माता - पिता का राजकुमार है
अगर आप घर की रानी है
तब आपका पति भी घर का राजा है
दोनों की अहमियत 
किसी एक को कमतर आंकना 
ज्यादा अपेक्षा 
यही से तो विवाद शुरू 
एक - दूसरे का करें सम्मान 
तभी जीवन बनेगा खुशहाल 
गाडी के दोनों पहिए
बराबर है
एक भी डैमेज हो
तब तो गाडी का आगे चलना मुश्किल 
तब चुस्त रहें 
दुरूस्त रहें 
प्रेमल रहें 
दया ,करूणा , सम्मान को 
अपने हदय में वास करने दे
जिंदगी पटरी पर चलती रहेंगी 

Tuesday, 12 April 2022

यही सत्य

आज का  दिन खास
सुबह सुबह लगता है
शाम होते होते वीरान
कुछ नया नहीं 
सब पूर्ववत 
ऐसा हर रोज होता है
सुबह होती है
शाम होती है
सुबह का प्रकाश 
धीरे-धीरे अंधेरे में  परिवर्तित 
समय गुजरता जाता है
जीवन की सुबह संध्या की तरफ
बस प्रतीक्षा रहती है
रात के अंधेरे घबराने की
अंधेरे में सब विलिन
यही सत्य 
यही सार 

Monday, 11 April 2022

क्या लेकर जाएंगे

हम आए हैं खाली हाथ
जाना भी है खाली हाथ 
बीच का जो समय हैं 
उसमें हम लेन देन 
छीनना झपटना 
इकठ्ठा  संचित करना
धोखा बेईमानी 
सच झूठ 
गलत सही
सबका सहारा लेते  हैं 
धन संचित
संपत्ति अर्जित 
यह सब पता होते हुए भी 
सब यही रह जाना है 
साथ कुछ नहीं जाना है
खाली हाथ आए
खाली हाथ जाना
यही जीवन का असली फसाना 
न कुछ साथ जाएंगा
सब यही रह जाएंग। 

Sunday, 10 April 2022

जय श्री राम

*सुंदरकांड में एक प्रसंग अवश्य पढ़ें !*
*“मैं न होता, तो क्या होता?”*
“अशोक वाटिका" में *जिस समय रावण क्रोध में भरकर, तलवार लेकर, सीता माँ को मारने के लिए दौड़ पड़ा*
तब हनुमान जी को लगा कि इसकी तलवार छीन कर, इसका सिर काट लेना चाहिये!
किन्तु, अगले ही क्षण, उन्होंने देखा 
*"मंदोदरी" ने रावण का हाथ पकड़ लिया !*
यह देखकर वे गदगद हो गये! वे सोचने लगे, यदि मैं आगे बढ़ता तो मुझे भ्रम हो जाता कि
 *यदि मैं न होता, तो सीता जी को कौन बचाता?*
बहुधा हमको ऐसा ही भ्रम हो जाता है, *मैं न होता तो क्या होता* ? 
परन्तु ये क्या हुआ?
सीताजी को बचाने का कार्य प्रभु ने रावण की पत्नी को ही सौंप दिया! तब हनुमान जी समझ गये,
 *कि प्रभु जिससे जो कार्य लेना चाहते हैं, वह उसी से लेते हैं!*
आगे चलकर जब "त्रिजटा" ने कहा कि "लंका में बंदर आया हुआ है, और वह लंका जलायेगा!" 
*तो हनुमान जी बड़ी चिंता मे पड़ गये, कि प्रभु ने तो लंका जलाने के लिए कहा ही नहीं है*
और त्रिजटा कह रही है कि उन्होंने स्वप्न में देखा है, 
*एक वानर ने लंका जलाई है! अब उन्हें क्या करना चाहिए? जो प्रभु इच्छा!*
जब रावण के सैनिक तलवार लेकर हनुमान जी को मारने के लिये दौड़े, 
*तो हनुमान ने अपने को बचाने के लिए तनिक भी चेष्टा नहीं की* 
और जब "विभीषण" ने आकर कहा कि दूत को मारना अनीति है, तो
 *हनुमान जी समझ गये कि मुझे बचाने के लिये प्रभु ने यह उपाय कर दिया है!*
आश्चर्य की पराकाष्ठा तो तब हुई, जब रावण ने कहा कि 
*बंदर को मारा नहीं जायेगा, पर पूंछ में कपड़ा लपेट कर, घी डालकर, आग लगाई जाये* 
तो हनुमान जी सोचने लगे कि लंका वाली त्रिजटा की बात सच थी, 
*वरना लंका को जलाने के लिए मैं कहां से घी, तेल, कपड़ा लाता, और कहां आग ढूंढता?* 
पर वह प्रबन्ध भी आपने रावण से करा दिया! जब आप रावण से भी अपना काम करा लेते हैं, तो
 *मुझसे करा लेने में आश्चर्य की क्या बात है !*
इसलिये *सदैव याद रखें,* कि *संसार में जो हो रहा है, वह सब ईश्वरीय विधान* है! 
हम और आप तो केवल निमित्त मात्र हैं! 
इसीलिये *कभी भी ये भ्रम न पालें* कि...
*मैं न होता, तो क्या होता ?*

ना मैं श्रेष्ठ हूँ,
*ना ही मैं ख़ास हूँ,*

मैं तो बस छोटा सा,
*भगवान का दास हूँ॥*

🚩👏जय सियाराम🚩👏
COPY PASTE 

Saturday, 9 April 2022

जिंदगी तुझे क्या कहूँ

जिंदगी तुझे क्या कहूँ 
न तू एकदम अच्छी है
न तू एकदम बुरी है
वक्त आने पर अपने जलवे दिखाती रहती है
कभी खुशी के कभी गम के
एक पल रूलाती है 
दूसरे ही पल हंसाती भी है
कभी ऐसा लगता है
सब कुछ खत्म 
तब ऐसा कुछ कर जाती है
फिर जीने का जज्बा सिखा जाती है
मौसम की तरह तू भी बदलती रहती है
मौसम का तो कुछ वक्त भी होता है
तेरा तो कोई नहीं 
कभी तूफान - बरसात 
कडकती बिजली 
सब कुछ ध्वस्त 
सारे सपने खाक
तब अचानक गुलाबी धूप खिला देती है
तू कब तक साथ देंगी 
कब बीच मंझधार में ही छोड़ चल देगी
यह भी तो अनिश्चित है
इसी अनिश्चितता के मध्य 
हम डोलते रहते हैं 
तू मजे लेकर देखती रहती है दूर से
तुझे तो  सब पता होता है 
तब भी अंजान बनी रहती है
तेरे दांव पेंच का खेल कोई नहीं जान पाता 
कब किस को
राजा , रंक , वजीर  बना दे
अपनी चाल चलती रहती है 
ताउम्र हमें नचाती है

माँ

धूप में छाया
तूफान में किनारा 
बारिश में आधार
ठंड में गर्माहट 
नीला आकाश सी छत्रछाया
धरती सी धीरता
सब मिलता है 
माँ  के आँचल में 
धरती और आकाश के मध्य 
भाग्य और कर्म के मध्य 
ढाल बनती है वह
कहीं कोई हिचकिचाहट नहीं 
कहीं कोई परमीशन नहीं 
बस आंचल में छुप जाओ
वह सारे दुख दर्द भूल गले लगा लेगी 
ऊपर परमात्मा 
नीचे माँ 
यह दोनों का साथ
जब हो तब
क्या हो गम

Thursday, 7 April 2022

आज का भारत

कब तक मुफ्त 
उसकी भी एक सीमा
हर कोई बाँट रहा है
बिजली मुफ्त 
गैस मुफ्त 
राशन मुफ्त 
बैठे - बैठाए कुछ निधि
पेंशन के रूप में 
किसान की सहायता निधि 
न जाने कितनी तरह की पेंशन 
यहाँ तक कि लोन भी कुछ समय बाद माफ
मस्त घूम रहे हैं 
जेब में मोबाईल 
मोटरसाइकिल की सवारी
बदल बदल कर कपडे
यह आज के ग्रामीण भाग की तस्वीर 
चुनाव के समय न जाने करोडों रूपये पानी की तरह बहाना
भीड और रैली जुटाना
बिरियानी और शराब 
यही आज का भारत 
कल की तस्वीर क्या होगी ??

शांति आखिर कैसी ??

कल तक जमकर लडाई होती थी जिनमें 
आज सब शांत है
कहीं कोई संसार नहीं 
तोहमत नहीं 
दोष नहीं 
अब यह अच्छा है कि 
वह अच्छा था
तब तो आधा घंटा बीतते-बीतते झगड़ा निश्चित था
फिर थोड़े ही समय में सब खतम 
साथ में मिलकर खाना - पीना
हंसना - खिलखिलाना 
जाते जाते बाय - बाय , टा - टा  करन 
मत भेद तो था 
मन भेद नहीं था
आज सब खतम 
तुम अपने में रहो
हम अपने में 
कभी-कभी कुछ चीजें हद से ज्यादा हो जाती है
तब वह प्यार हो या झगड़ा 
अगर संभला नहीं  तो 
छोटा सा घाव नासूर बन जाता है
उसको जड से काटना ही पडेगा
यही बात रिश्तों में है
संभाल कर रखें 
शांति या कलह 
लेकिन दोनों ही घातक है

Friday, 1 April 2022

नव वर्ष की शुभकामनाएं

नव वर्ष की शुभकामनाएं 
सभी नियर और डियर को
मार्च बिदा ले रहा है
भगवान भास्कर पूर्ण रूप से ताप दे रहे हैं 
उर्जा और स्फूर्ति के साथ 
भोर - सुबह की शुरुआत 
उठना ही है 
गर्मी आपको बिस्तर में नहीं  रहने देगी
साफ - सुथरा हो दिन की शुरुआत करें 
कोई आलस नहीं 
जैसे भास्कर अपनी पूरी उर्जा दे रहे हैं जग को
वैसे आप भी पूरी उर्जा से खडे हो
काम - काज में लग जाएं 
जो सोया वह खोया 
     जो जागा वह पाया
इसी मूलमंत्र के साथ नये साल का आगाज है
फलों के राजा आम का आगमन भी हो चुका है
हर आम और खास आदमी 
सभी के लिए विशेष 
हैपी न्यू ईयर 

मृत्यु से डर

डर लगता है
मृत्यु से 
बिलकुल सही
इससे तो हमेशा डर लगता है
एक यही सत्य जीवन का
और सब तो अनिश्चित
आज हर शख्स डरा है
क्या होगा 
कहना मुश्किल
स्वयं को बचा रहा
जीवन ठहर सा गया
कब तक यह ठहराव
राम जाने

कितना बेबस और लाचार है 
कहने को तो शक्तिशाली
पर उसके हाथ में कुछ नहीं
कुछ भी तो नहीं
भाग्य पर निर्भर
प्रकृति का किस रूप में कहर
इसका तो अंदाजा भी नहीं
सब जीवों में बुद्धिमान
आज उसकी बुद्धि काम नहीं कर रही
एक वायरस के प्रकोप से
मन में समा गया है खौफ

कल कल और आज आज
करते-करते न जाने पहुंच जाए किस हाल
दया आ रही है
अपनी ही लाचारी पर
अपनी ही बेबसी पर
सबसे हो रहा है मोहभंग
क्या यही है हमारी औकात
कभी परिस्थितियों का मारा
कभी दुर्भाग्य से बनता बेचारा
कभी सुनामी कभी भूकंप
कभी दुर्घटना कभी करोना
हर हाल में है रोना

भविष्य की चिंता में रत
हमारा वर्तमान भी तो 
रहता है हमेशा अधर में
क्या ख्वाब क्या कल्पना
क्या आशा क्या आंकाक्षा
सब रह जाते हैं यही धरे
डर लगता है मृत्यु से
बिलकुल सही