Tuesday, 31 October 2023

नेता - अभिनेता

नेता और अभिनेता 
कोई खास फर्क नहीं 
अभिनेता परदे पर अभिनय करता
नेता जनता के सामने अभिनय करता 
शिक्षा और डिग्री की नहीं किसी को दरकार
नवी और दसवीं पास बन सकता है दोनों 
परचम भी फहराता है
ऐसा नहीं कि पढे लिखों की कमी 
वे भी आते हैं राजनीति और अभिनय में 
होता यह है कि 
उनके पास विरासत नहीं 
आगे आने का तो प्रश्न नहीं 
चलते हैं पीछे पीछे
चमचे औ पिछलग्गू बन रह जाते हैं 
जो नहीं करते 
वे हो जाते हैं बाहर
अभिनेता भी अब नेता बन रहा है
नेता तो चुनाव के समय अभिनय करते हैं 
ये तो हर वक्त 
फिल्म नहीं चली तो राजनीति में नाम चमका लिया
दोनों जगह तो कमोबेश यही करना है
जनता को रिझाना है
अपनी जेब भरना है 

गुनाहगार

किस गलती की सजा मिली
यह तो हमें ज्ञात नहीं 
हाँ यह आभास जरूर है
जिस पर हमें गुरूर था कभी
उन्हीं ने गुनाहगार साबित कर दिया हमें 
खैर छोड़ो कोई बात नहीं 
गैर होते तो कभी ताकते नहीं 
अपने हैं तो भूलते नहीं 
गुनाह हमारा ऐसा भी कुछ न था
बस बेहिसाब प्यार करते थे
तभी तो समझ न पाए
उलझते ही रहें रिश्तों में 

Monday, 30 October 2023

नया- पुराना

दीपावली आ रही है 
साफ सफाई और रंग रोगन हो रहे हैं 
घर का पुराना सामान निकाला जा रहा है 
कबाडी को औने पौने दामों में बेचा जा रहा है
पुराने कपडे पुराने बरतन पुराने फर्नीचर और न जाने क्या 
कुछ लोग शौक से नयापन के लिए 
तो कुछ जरूरत के लिए 
आपके लिए जो उपयोगी नहीं रह गया है वह दूसरों के लिए शायद बहुत जरूरत का हो
उसको देकर देखिए 
उसके चेहरे की खुशी को देखिए 
मत मोल भाव करें 
आपका पुराना - धुराना उसके परिवार में नयापन भर देगा
नया दे सके तो अवश्य दें 
न दें सको तो पुराना ही सही 

हमारी पीढ़ी

हम उस पीढी के लोग है
जिनको अपना जन्मदिन ठीक से पता नहीं
शहर वालों की बात तो ठीक है
गाँव वाले तो इससे अनभिज्ञ
पाठशाला में अंदाज से लिखवा दिया
कभी छोटा कर
कभी बडा कर
जन्म प्रमाणपत्र तो दूर की बात
पंडित के पास दर्ज 
सब कुछ अंदाज से
तब जन्मदिन नहीं मनाया जाता था
आज तो जन्मदिन का प्रचलन है
होड लगी रहती है
किसका कैसे मना
किसका कब है यह भी याद रखना है
नहीं तो लोग रूठ जाएंगे
उस समय तो बस दो ही जन्मदिन ज्ञात थे
भगवान राम  और भगवान कृष्ण
वह भी बहुत धूमधाम से 
आज जो कुछ भी हो
हर व्यक्ति को तवज्जों दिया जाता है
कम से कम उसका जन्मदिन विश कर
उसे शुभकामना देकर
उसके महत्व का एहसास कराकर
कितना अच्छा और सुखद लगता है
जब कोई आपको जन्मदिन की शुभकामना देता है
तब आप भी इससे वंचित न रहे
अपनों से जुड़े रहिए
वर्ष में एक बार 
उसे विशेष महसूस कराए

दीपावली आई है

दीपावली आ रही है
दस्तक दे चुकी है
तैयारी शुरू 
रंग रोगन , साफ सफाई 
खरिदारी  इत्यादि 
केवल हमारे घर ही दीप जले
हमारे घर ही खुशी हो
नहीं 
सबका मुंह मीठा हो
फुलझड़िया और अनार जले
तोरण - बंदनवार लगे
कंदिल जगमगाएँ 
सही है न 
हम तभी खुश होंगे 
जब सब खुश होंगे 
हमारे अडोसी - पडोसी 
हर देशवासी 
तब स्वदेशी अपनाए
अपने देश का दीया
अपने देश का सामान
अपने देश की लाईट की लडी
जो जगमगाएँ तब लगे देश जगमगाएँ 
विदेशी सामान के लोभ में 
थोडा सा सस्ता होने के कारण
यह सोचे 
यह सस्ता कितना मंहगा पड रहा है
हमारी अर्थव्यवस्था को बढाना है
अपने लोगों को रोजगार उपलब्ध कराना है
तब सबकी भागीदारी हो
आप भी दे 
अपने घर में ही नहीं सबके घर दीया जले
जश्न  मने 
दीवाली एक की नहीं सबकी है 
सबका योगदान जरूरी है

माँ ही तो समझती है

बिन माँ का बच्चा
होता कितना अभागा 
जो सबसे बडा आशीर्वाद 
जो ईश्वर का प्रतिरूप 
जब वह न हो साथ
उसकी दुनिया कैसे हो आबाद 
पलने को तो पल जाते हैं सब
जीने को भी जी जाते हैं 
घर  में हो या अनाथालय में 
वह बात नहीं होती
पेट भर जाता है
दुध भी बोतल से पिला दिया जाता है
माँ के ऑचल में अठखेलियां करने का भाग्य नहीं 
माँ बिना तो दुनिया वीरान 
कहने को तो बहुत से रिश्ते 
नाल का रिश्ता तो बस एक से ही
कहते हैं न 
स्वामी अगर तीनों लोक का भी हो
माता बिना तो वह भिखारी 
माँ के साये में कभी कोई बडा नहीं होता
माँ न हो तो उम्र के पहले ही बडे हो जाते हैं 
समझदार हो जाते हैं 
जिद किससे करें 
मनाएगा कौन
नाज - नखरे कौन उठाएगा 
ऑखों के ऑसू कौन पोछेगा 
मन की भाषा को कौन पडेगा
बस एक ही तो होती है
जो सब समझती है .

Saturday, 28 October 2023

हासिल क्या

जी रहे थे हम औरों के हिसाब से
जीया नहीं अपने हिसाब से
जब तक समझ आया 
न जाने कितना कुछ बीत गया था
मन के अंदर कुछ दरक गया था
उसको भरना इतना आसान नहीं था
बैठे सबका  हिसाब लगाने लगे
क्या कुछ खोया क्या कुछ पाया
गुणा - गणित किया 
जोड़ा - घटाया 
अचानक लगा 
यह माथापच्ची क्यों 
सही किया या गलत किया
जो भी किया अपनी मर्जी से किया 
कोई दवाब नहीं था 
वह सब सोच कर क्या 
जब सोचना था तब तो न सोचा
तब नहीं तो अब क्यों
इससे हासिल क्या ??

शराब

तू है मेरी जान
तेरे बिना मैं बेहाल
मेरे रातों की नींद तू
मेरे दिल का चैन तू
मेरी हमसफर
मेरे अकेलेपन की साथी
मैं और तू 
उसमें नहीं किसी और का काम
तुझसे बिछुडना नहीं गंवारा
कोई नाराज हो या खुश
उसकी नहीं कोई परवाह
तू ही खुदा मेरी
तुझमे सारा जग दिखता
मेरी दुनिया तुझमे समाई
एक बार जब थाम लिया
तब सब स्वर्ग का आंनद मिल गया
घूंट घूंट उतरती तब दिल को ठंडक मिलती
अमृत की बूंदों की तरह छलकती
गले को तर करती
कुछ न साथ बस हो तेरा साथ
तब क्या गम
मेरा सब गम तू हर लेती
सब दुख दर्द भूला देती
जब एक घूंट अंदर जाती
तब सब कुछ हो जाता हवा हवा
मदहोशी का आलम
साकी और प्याला
इससे दूजा न कोई प्यारा
तू ही मेरी जान
तू ही मेरा जहान
तुझ बिन लागे सब अधूरा
तू है मेरी प्यारी शराब

Friday, 27 October 2023

संघर्ष की राह

वह फूल क्या जिसमें कांटे न हो
वह डगर क्या जो पथरीली न हो
वह नदी क्या जिसमें भंवर न हो
वह मौसम क्या जिसमें झंझावात न हो
वह बिजली क्या जिसमें कडकडाहट न हो
वह सपने क्या जिसमें उडान न हो
वह मंजिल क्या जो कठिन न हो
वह जीवन क्या जिसमें संघर्ष न हो

कंकरीली पथरीली राहों पर चलना है
हर राह को आसान बनाना है
कितनी भी मुश्किल हो डगर
कितना भी ऊंचा हो पहाड़
चढना तो तब भी है
नीचे बैठ दृश्य नहीं देखना है
तैरना न आए कोई बात नहीं
नदी में उतर जाइए 
हाथ पैर मार कर तो देखो
क्या पता किनारा मिल ही जाए
जो डरा वह कुछ नहीं कर पाया

Wednesday, 25 October 2023

मुफ्त मुफ्त मुफ्त

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Thursday, 24 October 2019
सब कुछ मुफ्त में मिल रहा है भाई
सब कुछ मुफ्त में
बिजली ,पानी ,फोन
शिक्षा ,यातायात 
गैस ,घर ,भोजन
दवाई ,इलाज
फिर काम करने की जरूरत क्या है
मुफ्तखोरो की फौज तैयार
अनधिकृत कालोनिया बनती रहेंगी
बिजली पानी चोरी होती रहेगी
कर्ज माफ होता रहेगा
काम की जरूरत क्या है
पांच रूपये में थाली
एक दिन करेंगे ,हफ्ते भर खाएंगे
खेत में मेहनत क्यों करें ??
बैठे रहेंगे निठल्ले
आवारागर्दी करते रहेंगे
नौकरीपेशा टैक्स भरते रहेंगे और मरते रहेंगे
वोट के लुभावने लालच दे रही है पार्टियां
देश का क्या 
हमें तो भाई वोट से मतलब है
सत्ता चाहिए
किसी भी कीमत पर
साम ,दाम ,दंड ,भेद
हर कुछ का प्रयोग करें
धर्म और जाति के नाम पर अशांति फैला 
मुफ्तखोरो की फौज तैयार करने की अपेक्षा काम दे
बेरोजगारो के लिए रोजगार निर्माण करें
काम करें और जीवनयापन करें
कुछ काम कर कर मरे जा रहे हैं
कुछ चैन से बैठे सारी सुविधा ले रहे हैं
ऐश कर रहे हैं
आलसी बन रहे हैं
न स्वयं का विकास न देश का विकास
बैंक में सरकार पैसा डाल रही है
शराब पीएगे
मोबाइल भराएगे
मोटरसाइकिल चलाएगे
एक रूपये में गेहूँ
एक रूपये में चावल
झंझट क्यों पाले काम का
ऐश करेंगे 
अंधेर नगरी  की कहावत चरितार्थ
टका सेर खाजा टंका सेर भाजी
काम करने वाला भी
न करने वाला भी
सबका पेट भरेगा
सही है
अजगर करें न चाकरी ,पंछी करें न काम
दास मलूका कह गए ,सबके दाता राम

Asha Singh at 09:09
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रावण और विभिषण

रामलीला समाप्त हुई 
लंकापति रावण का दहन हुआ
बहुत कुछ बातें सीखी
पहली तो कभी भी किसी को अपना राज नहीं बताना
चाहे वह कोई भी कितना ही नजदीकी क्यों न हो
रावण को मारने के प्रयास असफल हो रहे थे
राम भक्त विभिषण को यह नहीं देखा गया
भाई की मृत्यु का वह राज जो मंदोदरी को भी नहीं पता वह उनको पता थी
लंकेश ने उन्हें बताया था 
दूसरी बात कि 
रावण से तो सावधान रहा जा सकता है 
विभिषण से नहीं 
दूसरा कितना भी ज्ञानी क्यों न हो अगर वह व्यभिचारी हो जाएं तो उसका पतन निश्चित है 

Happy Dashara

बुराई पर अच्छाई की विजय
असत्य पर सत्य की विजय
शक्ति की पूजा का पर्व
सबको माॅ भगवती का आशीर्वाद मिले
जीवन नई उमंगो और प्रेरणा से भरे
नई उम्मीद नये अवसर प्राप्त हो
जीवन में सुख समृद्धि का वास हो
   यही शुभकामना है दशहरा मंगलकारी हो

नव रात्र का संदेश

नव दुर्गा की उपासना
शक्ति की पूजा
यह है हमारी समृद्ध भारतीय संस्कृति
जहाँ नारी को नर से ऊपर का दर्जा दिया गया है
वह चाहे संपत्ति की देवी लक्ष्मी हो
विद्या की देवी सरस्वती हो
आसुरी शक्तियों का नाश करने वाली काली हो
भगवान भोलेनाथ की अर्धांगनी माता पार्वती हो
कहीं भी दोयम दर्जा नहीं है
फिर हमारे समाज की ऐसी सोच कैसे हो गई
औरत को हीन कैसे समझा जाने लगा
शास्त्रों में तो कहीं ऐसा उल्लेख नहीं है
एक से एक विदुषी नारियां हुई है
जानकी , द्रोपदी से लेकर लक्ष्मी बाई तक
ये विद्रोहणी नारियां भी हुई है
जिन्होने लीक से हटकर कदम उठाया

शायद पुरूषवादी मानसिकता को यह स्वीकार नहीं हुआ
तभी उसने दबाना शुरू किया
उसके अस्तित्व को नकारने लगा
जो कुछ है वह है
वह जैसे चाहेंगा वह होगा
धीरे-धीरे प्रक्रिया बढने लगी
और वह जो चाहता था वैसा होने लगा
औरत पैर की जूती बना दी गई 

आज फिर परिवर्तन हो रहा है
वह अधिकांश को पच नहीं रहा है
उनके अहम को ठेस लग रही है
वह दबाने की भरपूर कोशिश कर रहा है
सफल नहीं हो पा रहा है
तब अनर्गल तरीके अपना रहा है
सडी हुई मानसिकता से उबर नहीं पा रहा है
इसलिए समाज का संतुलन बिगड़ रहा है
जब तक वह शक्ति की शक्ति को पहचानेगा नहीं
उसकी अहमियत को स्वीकार नहीं करेंगा
तब उसका परिणाम भी उसे ही भोगना होगा
अंतः शक्ति की शक्ति को पहचाने
यही तो नवरात्र का संदेश है

Tuesday, 24 October 2023

जिंदगी इम्तिहान लेती है

जिंदगी इम्तिहान लेती है
पर कभी-कभी थका देती है
कितनी परीक्षा
परीक्षा पर परीक्षा
साल पर साल
बस अब बस भी कर
अब तो सुकून से जीने दे
कब तक परेशान करेंगी
कब तक रूलाएगी
तेरी भी तो कुछ सीमा होगी
यह तो ज्यादती है
हम परीक्षा पर परीक्षा देते जाएं
तू कुछ न कुछ निकालती जा
तू तो नहीं थकती
परीक्षा देनेवाला अलबत्ता जरूर थक जाता है
मायूस हो जाता है
जीते जी मरणासन्न हो जाता है
तू भेदभाव बहुत करती है
किसी को आसानी से पास कर देती है
किसी को अक्सर नापास करती रहती है
इतना कठिन पेपर निकालती है
कि वह बेचारा बन जाता है
कोशिश करता है सुलझाने की
कुछ सुलझाता है
कुछ छोड़ देता है
कब तक ऐसा खेल खिलाएंगी
कभी तो रहमत कर

आस्तिक और नास्तिक

यह नास्तिक है
ईश्वर को नहीं मानता
वह आस्तिक है
दिन रात ईश्वर की उपासना में मग्न
व्यक्ति को इसी हिसाब से ऑका जाता है
भगवान सब देख रहा है
सही है भाई 
वह सर्वशक्तिमान है
उसकी दृष्टि से कोई बच नहीं सकता
कर्मफल तो भोगना ही है
लाख उपासना कर लो
भजन कर लो
मालाफूल चढा लो
दान बाॅटो
फिर भी हिसाब तो होगा ही
आज नहीं अगले जन्म में
ईश्वर की सत्ता तो है 
नास्तिक भी हो तो क्या ?
प्रकृति को तो नकारा नहीं जा सकता 
यह तो प्रमाण है
कोई शक्ति है जो संचालन करती है
भाग्य , ज्योतिष , राशि
सब इसके ही भाग है
कल से तो सब अंजान
कल क्या पल में क्या हो
यह भी तो किसी को नहीं पता
तब यह सब चक्कर छोड़
वास्तविक बनने की कोशिश करें
जो सत्य है वह है
जैसे हैं वैसे हैं
स्वीकार करें
अपनी खामियों को
अपनी गलतियों को
जो हुआ सो हुआ
अब वास्तव के धरातल पर उतर आए
जितनी जल्दी हो सके उतना ही अच्छा

Monday, 23 October 2023

हमने देखा है

हमने देखा है
पहाडों को झुकते हुए
हमने देखा है
चट्टानों को टूटते हुए
हमने देखा है
बरसात को रोते हुए
हमने देखा है
विशालकाय वृक्ष को ढहते हुए 
हमने देखा है
हरे - भरे जंगलों में आग लगते हुए 
हमने देखा है
सूर्य को अस्त होते हुए 
हमने देखा है 
चांद को बादलों में घिरते हुए 
हमने देखा है
तारों को टूटते हुए 
हमने देखा है
पपीहे को दो बूँद पानी के लिए तडपते
हमने देखा है
नदियों को सूखते हुए
हमने देखा है
उपजाऊ को बंजर होते
हमने देखा है
उडान भरते हुए धडाम से नीचे गिरना
हमने देखा है
शेर को सियार बनते
हमने देखा है
राजा को रंक बनते
हमने देखा है
करोड़पति को रोडपति बनते
हमने देखा है
शिक्षा को अपमानित होते
हमने देखा है
काबिलियत को तलवे चाटते 
हमने देखा है
हुनर और योग्यता को दरकिनार होते
हमने देखा है
भ्रष्टाचारी को ऊँचे सिंहासन पर विराजमान  होते
हमने देखा है
अच्छे - अच्छों को हाथ जोड़ते हुए 
हमने देखा है
जिंदगी को मजबूर होते
हमने देखा है
जीवन को बेरंग होते
हमने देखा है
असतित्व खत्म होते
बहुत कुछ दिखाती है यह जिंदगी 
बहुत कुछ सिखाती है यह जिंदगी

Sunday, 22 October 2023

आओ शब्दों से खेले

शब्द अपने आप में विस्तृत है
यह अर्थ है
यह कलह है
यह सांत्वना है
यह आज्ञा है
यह वजनी है
यह अक्षय है
यह निशब्द है
यह निराला है
इसमें तोड़ने और मोडने की शक्ति है
दूर और पास लाने की शक्ति है
यह वह जादूगर है
जो किसी को भी अपना बना सकता है
युद्ध करा सकता है
अलगाव करा सकता है
इसकी महिमा न्यारी
जिसने इसकी महत्ता समझ ली
वह कभी नहीं हार सकता
जब वाणी का जादू चलता है
तब बडे बडे भी वश में हो जाते हैं
यह सबसे बडा वरदान प्राप्त
वह भी केवल मानव को
हाँ उसको इससे खेलना आना चाहिए
तब तो उसकी जीत निश्चित है
आओ शब्दों से खेले
अंजानो को भी अपना बनाए

बेचारी प्रजा

किस्मत बंद हुई चुनाव के पिटारे में
साम ,दाम ,दंड ,भेद सारे नुस्ख़े आजमाए गए
अब पिटारा खुलने का इंतजार
जैसे ही पिटारा खुला
किस्मत चमकी
रातोरात ऐश्वर्य और संपत्ति का डेरा
जनता का क्या
हाथ जोड़ लिया
दो पेग पिला दिया
कुछ पैसे बांट दिया
कुछ रोटी का टुकड़ा फेंक दिया
कुछ बात बना दी
कुछ लंबी चौड़ी हांक दी
कुछ झूठ बोल दिया
कुछ झूठे वादे कर दिया
वह पिघल गई
झांसे में आ गई
वह जहाँ थी वही है
हम उसके बल पर बन बैठे शहंशाह
पहले हमने हाथ जोड़ा
अब वह जोड़ेंगे 
पहले हम घूमे गली कूचे
अब वह घूमेगी हमारे आस-पास
हमारे दर्शन भी दुर्लभ
हम रहेंगे सुरक्षा के घेरे में
वह रहेगी ताकती दूर से हमें
उसकी परवाह किसे
हमने तो अपना क्या अपने पूरे खानदान का वर्तमान एवं भविष्य दोनों को संवार दिया
जमीन से उठाकर आसमान पर बिठा दिया
चुनाव तो हो चुके 
जनता की ऐसी की तैसी
अब पांच साल जम कर राज करेंगे
अगले चुनाव तक फिर कोई चारा फेंक देगे
शगूफा छोड़ देंगे
फिर अपनी बातों में ले लेंगे
ऐसे ही हम राजा बने रहेंगे
और वह बेचारी हमारी मायूस - लाचार प्रजा

Saturday, 21 October 2023

ये ऑसू भी अजीब है ??

यह ऑसू भी अजीब है
कभी भी निकल पडते हैं
खुशी हो तब भी
दुख हो तब भी
परेशानी हो तब भी
अकेलापन हो तब भी
यह हमेशा साथ रहते हैं
जब शब्द असमर्थ हो जाते हैं
तब ऑसू काम आते हैं
सबके सामने भी
अकेले में भी
दिन में भी
सुनसान रात में भी
यह दोनों ऑख से बहते हैं
बराबर ही 
यह न हो तो तब क्या होता
यह जब बहते हैं
तब कुछ सुकून तो मिलता ही है
कुछ ही पल के लिए
इनको रोकना नहीं
रोना शर्म की बात नहीं
आपकी भावना को दर्शाता है
आपके पास एक दिल है
अपने ऑसू को मरने मत दीजिए
नहीं तो आप पत्थर हो जाएंगे
छूट दे भरपूर
जब दिल भर आए
रो ले जी भर कर
यही तो है
आपके सुख दुःख के साझीदार
ऑसू मत रोके बह जाने दे

प्राइवेसी का सवाल है ??

सूचना देकर जाना किसी के घर
नहीं तो उनकी प्राइवेसी खंडित हो जाएंगी
यह एक नया कांसेप्ट आया है समाज में
एक समय था कि हमारे घर के दरवाजे हमेशा खुले रहते
सोचना नहीं पडता था
जो भी आता उसका दिल से स्वागत किया जाता
आवभगत की जाती
पकवान न सही चाय ही सही पानी ही सही
वह प्रेम से पिलाया जाता
किसी की स्वतंत्रता का हनन नहीं होता
अरे यहाँ से गुजर रहे थे आ गए
जवाब मिलता था
आपका अपना ही घर है जब चाहे आ जाओ
अब तो अपनों को भी इत्तला देने का जमाना है
जज्बा तो कहीं पीछे छूट गया है
अब तो देखना पडता है
सुबह  । दोपहर ।शाम
कौन सा वक्त सही रहेंगा
ताकि उन लोगों को परेशानी न हो
माना कि हर व्यक्ति व्यस्त है फिर भी 
घर आया मेहमान आज भगवान नहीं बोझ समान है
लोग कन्नी  काट रहे हैं
रिसोर्ट में समय बिता लेंगे अंजानो के साथ
पर अपनों के साथ नहीं
सब कुछ दिखावटी और औपचारिक
यहाँ तक कि रिश्ते भी
निभाना मजबूरी है नहीं तो कौन पूछता
तब घर भरा रहता था आगंतुकों से
और कोई न सही पडोसी ही सही
पर आज वह भी नहीं झांकता
शायद वह भी डरता है
हिचकता है
रिश्तेदार  की तो बात छोड़िए
जब कोई आपको पहले से इत्तला दे 
उस दिन शायद वह न आ सके
आपकी तैयारी और समय दोनों व्यर्थ
तब आप उसको ही कोसेंगे
ऐसी जहमत कौन पाले
आप अपने घर हम अपने घर
मिल लिया ओकेजन पर
औपचारिकता निभा ली
ऐसे में दिल नहीं मिलता है
वह भी यंत्रचलित सा हो जाता है
इतनी पाबंदियां तब रिश्तों में मिठास कहाँ से

Thursday, 19 October 2023

घाव का नासूर

एक कील उभर आई थी चेहरे पर
जब हाथ लगाती तब हाथ उसी पर जाता
टोच रही थी
चुभ रही थी
पीली पीली हो गई थी
मवाद भर गया था
न जाने कितने दिनों से परेशान कर रही थी
अब तक फोडा नहीं कि दाग पड जाएंगा
आज अचानक हिम्मत कर उसे दबा दिया
फूट कर बह गई
अब थोड़ा निशान तो रह ही जाएंगा
कोई बात नहीं 
उस टुचन से तो छुटकारा मिला

यही बात रिश्ते में भी होती है
कभी-कभी वह तकलीफ देने लगता है
आपकी कदर कम होने लगती है
जब तक संभाल सको तब तक संभाल लो
नहीं तो छोड़ दो
अपने जीवन का फोडा मत बनने दो
जबरदस्ती बेमन से निभाना
यह तो जीवन को परेशान कर देंगे
निकल जाइए तभी ठीक होगा
समय रहते घाव को नहीं फोडा
तब वह नासूर बन जाएंगा

रंग रूप पर मत जाए

घी का लड्डू गोल न हो टेढा ही सही
बेटा कैसा भी हो
काला नाटा मोटा
तब भी बेटा ही है
अनमोल है
तब बेटी क्यों नहीं ??
इन सबसे ज्यादा गुण मायने रखता है
रंग और बनावट नहीं
खूबसूरती को देखने का नजरिया होना चाहिए
बेटे के लिए तो कहा जाता है
राम और कृष्ण भी सांवले थे
बेटी से फिर वह अपेक्षा क्यों ??
वह नकुसा क्यों 
अनवान्टेड क्यों 
संतान तो संतान होती है
जैसी भी हो प्यारी होती है
उसको दोयम दर्जा क्यों ??
उसे एहसास होना चाहिए
वह अपने परिवार के लिए अनमोल है
उसका अस्तित्व महत्त्वपूर्ण है
लोगों की सोच कुछ भी हो
माता-पिता की सोच ऐसी न हो
उसे हेय न समझा जाए
अपने जिगर के टुकड़े को हीरा समझे 
कोयला नहीं
उसको चमकने का मौका दें
सांवले और कालापन के सोच की आग में जलने न दे
आत्मविश्वास से भरपूर ऐसा सशक्त व्यक्ति बनाएं
कि सारी खूबसूरती उसके सामने पानी भरे
दूर से देख ईर्ष्या करें
उसके जैसे बनने की कोशिश करें

Sunday, 15 October 2023

युद्ध तो युद्ध होता है

युद्ध, युद्ध होता है
उसका परिणाम घातक ही होता है
एक का जीतना एक का हारना 
यह तो तय होता है
सब अपनी अपनी शक्ति आजमाने में लगे रहते हैं 
जब तक कि बहुत कुछ खत्म न हो जाएं 
युद्ध की विनिषका बहुत घातक है
यह न जाने क्या-क्या नष्ट-भ्रष्ट कर डालती है
मानवता तो आहत होती ही है
भीषण नरसंहार भी होता है
हर विनाशकारी अस्त्र और शस्त्र का प्रयोग किया जाता है
सभ्यता और संस्कृति का नाश होता है
एक पीढी नहीं कई पीढ़ियों को यह भुगतना पडता है
वह चाहे कोई भी युद्ध हो
प्रथम- द्वितीय, हिरोशिमा पर बम
इराक - इरान का या रूस - यूक्रेन का
अमेरिका  का अन्य देश या भारत- पाकिस्तान या और कोई 
जब नाश हो जाता है तब समझौता किया जाता है
शांति की कोशिश की जाती है
मानव जीव को खिलौना समझ लिया जाता है
जब - तब लडो और खत्म करों तथा खत्म हो जाओ
एक - एक पैसा जोड़ने वाला मनुष्य का घर 
ध्वस्त हो जाता है
यह कोई प्राकृतिक आपदा नहीं 
यह दो लोगों का अहम् होता है
लडेंगे - मिटेगे पर हार नहीं मानेंगे 
इनको तो झुका कर ही रहेंगे 
इन दो वाक्यों के बीच 
तमाम जिंदगियां झूलती  रहती है
न जाने कितनों के जान 
कितने अनाथ 
कितने बेघरबार 
हो जाते हैं 
उसके बाद इतिहास के पन्नों पर सब दर्ज हो जाता है
उनके दर्द का क्या 
जिसने युद्ध की विभिषिका को झेला है
अपनों को खोया है
वह वापस मिलेगा ??

वाचन प्रेरणा दिवस

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Thursday, 15 October 2015
अब्दूल कलाम जयंती ---वाचन प्रेरणा दिवस
सिकंदर ने पौरूष से की थी लडाई तो हम क्या करे 
                   तो हम क्या करें       ---यह गाना तो सबने सुना ही होगा , पर यह तो मजाक में कहा गया 
पर पुस्तक क्यों पढना चाहिए??
यह प्रश्नचिन्ह है आज की नयी पीढी के समक्ष
मोबाइल और इंटरनेट ने इसे सरल बना दिया है
एक बटन दबाने की जरूरत है सब हाजिर
पर हमारी मानसिक खुराक का क्या
पुस्तकें हमें जीवन ,जीना सिखाती है
जिंदगी से साक्षात्कार कराती है
भूत , वर्तमान और भविष्य से परिचित कराती है
शब्दों और वाक्यों से खेलना सिखाती है
एक हम ही है सब प्राणियों में जिसे भाषा मिली है
फिर उसकी उपेक्षा  क्यों?
मन में उमडते घुमडते विचारों को व्यक्त करने का माध्यम है यें
अगर पुस्तकें न होती तो जीवन नीरस हो जाता
मोबाईल और कम्पूयटर एकबारगी धोखा दे सकते हैं पर पुस्तकें कभी नहीं
अगर पुस्तकें न होती तो कुराण ,बाईबल और गीता -रामायण कहॉ होती
संस्कृति और सभ्यता कहॉ होती
स्वतंत्रता की लडाई कैसे होती?
तिलक की केसरी और टैगोर का जन गण मन कहॉ होता
ना भूगोल होता और न ईतिहास होता.
विग्यान और गणित के प्रयोग और खेल न होते
एक पीढी से दूसरी पीढी को ग्यान कैसे हस्तांतरित होता 
पंत जी और बच्चन जी की कविता कहॉ होती
कालीदास का शाकुंतलम ,प्रेमचन्द की गोदान और शेक्सपियर के नाटक कहॉ होते
सच कहा जाय तो जीवन नहीं होता
पुस्तकों से अच्छी कोई साथी नहीं
इसलिए पुस्तकों से दोस्ती करिए
जीवन को सार्थक और सरस बनाइए
कलाम साहब के सपनों को और ऊँची उडान दीजिए
 
Asha Singh at 17:07
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पढना सीख लो

पढना सीख लो
किताब से नाता जोड़ लो
यह वे नायाब साथी जिनका कोई नहीं सानी
बडे बडो को झुकना सिखा देती है यह
जिंदगी जीना सीखा देती है यह
बहूमूल्य होती है यह
सारे संसार को अपने में समेटती है यह
भूत ,भविष्य ,वर्तमान से अवगत कराती है यह
यह लेती नहीं देती है
ज्ञान बांटती है
लोगों को अमर कर देती है
सब कुछ अपने पन्नों में छिपा लेती है
दुख - दर्द ,भावना - संवेदना
यह सभ्यता और संस्कृति को जीवित रखती है
यह ईश्वर की नहीं मानव की अमूल्य रचना है
लेखक ,कवि और इतिहासकारों की देन हैं
वेद ,दर्शन ,धर्म से विभूषित
जिंदगी जीना सिखाने वाली
इस अमूल्य सौगात को गले लगा लो
पढना सीख लो
किताबो से नाता जोड़ लो
तुमको यह फर्श से अर्श तक पहुंचा देगी
समाज में क्रांति लाने का दम रखती है
बडे बडे को पानी पिला सकती है
यह दिखती छोटी है
पर काम बडे बडे करती है
यह किताब है
यह जीवन है
यह विश्व है
आज इससे नाता जोड़ लो
कल यह तुमको सबसे जुडवा देगी
जीवन जीना सीखा देगी
तुम्हारी दुनिया बदल देगी
पढना सीख लो
किताब से नाता जोड़ लो

दल - बदल का खेल

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Saturday, 4 November 2017
दल - बदल का खेल
जब तक विरोधी पार्टी में थे
विरोध का स्वर गूंजता रहा
आज दूसरी पार्टी में शामिल हो लिए
महान बन गए
उनकी खूबियॉ गिनाई जाने लगी
जिसका पलडा भारी
जिसके हाथ में सत्ता
उसकी तरफ हो जाओ
काम एक पार्टी में रहकर किया
परिणाम फल दूसरी पार्टी को मिला
आजकल यह आम बात हो गई है
नेताओं में निष्ठा और विश्वास का अभाव
अब बमुश्किल अटल जैसे नेता मिलेगे
दो सीट पर भी पार्टी के निष्ठावान बने रहे
समष्टिवाद से व्यक्ति वाद हो गया है
पहले पार्टी के नाम पर वोट मिलते थे
आज पार्टियॉ ही अपना असतित्व बचाने मे असमर्थ है
तमाम छोटी - छोटी पार्टियॉ बन गई है
कांग्रेस मुक्त भारत का सपना घातक भी है
विपक्ष ही नहीं रहा तो प्रजातंत्र कैसे रहेगा?!
शासक निरकुंश हो जाएगे
सत्ता का नशा सर चढकर बोलेगा
विवादित बयान दिया जाएगा
मजाक उडाया जाएगा
नीचा दिखाया जाएगा
सत्ता और पैसों का लालच 
गिरगिट की तरह रंग बदलना
सुर बदल जाना 
यही तो हो रहा है
कब कौन पार्टी छोडे
सत्ता धारी पार्टी में शामिल हो
कहा नहीं जा सकता
पल भर में पहचान ही बदल गई
यह तो राजनीति का सबसे बडा खेल है
पर यह गेम खतरनाक भी है
ऐसा न हो कि कहीं का न रहे
अतीत इसका गवाह है
पार्टी में लोकतंत्र हो पर नियम भी हो
कठोर और अनुशासन वाला
दूसरी पार्टी भी शामिल करने में हिचकिचाए
सत्ता के लालच में नेता दलबदलू न बने
जो अपनी पार्टी और लोगों का न हुआ
वह जनता का क्या होगा ???
उसे तो केवल सत्ता चाहिए
चाहे कुछ भी करना पडे.

 
Asha Singh at 10:09
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Friday, 13 October 2023

बचपन की यादें

आज बहुत अरसे बाद इस जगह पर आई थी
गाडी जब ट्रेफिक में रूकी
यहाँ- वहाँ नजर डाली 
बचपन की यादें ताजा हो गईं 
यह केवल एक निर्जीव सडक नहीं है
जीवन इससे जुड़ा हुआ है 

यह जगह हैं वालकेश्वर 
जहाँ की सडके कभी पानी से धोयी जाती थी
चौपाटी से शुरू होता हुआ 
बाणगंगा पर खत्म होता
बाबुलनाथ मंदिर से लेकर हैंगिन गार्डन तक
वह बुढिया का जूता वह हरे - भरे घास से बने जानवर

इसी रास्ते में व्हाइट हाऊस
गवर्नर गेट और तीन बत्ती
सारे नेताओं की गाडियाँ यही से गुजरती थी
मुख्यमंत्री निवास वर्षा भी इसी रूट पर
इंदिरा जी को देखने के लिए सडक पर खडे रहते थे
वे खुली गाडी में खडी होकर हाथ हिलाते हुए जाती थी
आज तो नेताओं को देख ही नहीं सकते ऐसे
इतनी सुरक्षा कवच के घेरे में 
इसी सडक पर चांद पर पहुँचने वाले नील आर्मस्ट्रॉन्ग और उनके साथियों को देखा था
श्राद्ध के अंतिम दिन बाल छिलाए हुए लोगों का रेला बाणगंगा से स्टेशन की तरफ जाते देखा था

फिल्मी हस्तियां भी इसमें शामिल थी
जैकी श्राफ  से लेकर अंजू मंहेद्रू तक
चंदूलाल मिठाईवाला को कौन नहीं जानता
कांउसलेट के बंगले से अंदर का जंगल का रास्ता जो राज भवन पर निकलता है
स्कूल जाते  समय न जाने कितने बंदर बैठे रहते थे
सांप की केंचुली पडी होती तो
लहराते समुंदर के साथ अनगिनत घटनाएं 
हाजी मस्तान से लेकर सट्टा किंग तक
नाना पालखीवाला जैसे जज और पटेल - त्रिवेदी जैसे नेता
स्मगलिंग से लेकर सुसाइट तक
सब साक्षी रहे हैं 
डबल डेकर की बस
बस में हो हल्ला करना
कंडक्टर और यात्रियों की डांट खाना
सबसे बडी स्ट्राइक के समय लिफ्ट मांगना
बांगला देश की लडाई के समय ब्लैक आउट और बम छूटते हुए दिखना
सुबह उन खाली कारतूस का मिलना

म्युनिसिपल स्कूल में पढना भी साधारण बात थी
कुछेक प्राइवेट और अंग्रेजी माध्यम थे
आज भी उस स्कूल के अध्यापक याद आते हैं 
कांच की बोतल में दूध मिलना
उसको कोई गपागट घटक जाता तो कोई छूता भी नहीं 
फिर मुंह पर लगी मलाई काटना
पैदल ही खाकी बस्ता टांग झुंड के साथ निकल पडना

यह सडक बहुत कुछ कहती है
बचपन इसने गढा है
इन्हीं सडकों पर उत्सवों पर परदे बांध दोनों तरफ से बैठ पिक्चर देखा है
रामलीला देखने के लिए चौपाटी तक दौड़ लगाई है
बिना पास के बांस को फांदते  फांदते राम खंड तक पहुँच जाते थे
गोविन्दा के समय भटकी फोडते हुए और अंग्रेजों को फोटो लेते हुए देखा है
क्योंकि एक समय की सात और दस मंजिला ऊंची इमारतें यही थी
भूलेश्वर , नल बाजार पैदल ही जाते थे
पीठ पर सामान लादकर माँ के साथ लाते थे
ग्रांट रोड और चर्नी रोड से चलकर आते थे

तब आज का बान्द्रा और शांताक्रुज  गाँव माना जाता था
हम सबसे पाॅश इलाके में रहते हैं 
इसका गुमान था
सिग्नल खुल चुका था
गाडी रफ्तार में जा रही थी
उससे भी तेज रफ्तार यादों की थी ।

Wednesday, 11 October 2023

विजयादशमी

Happy विजयदशमी

राम-रावण युद्ध नवरात्रों में हुआ था। रावण की मृत्यु अष्टमी-नवमी के संधिकाल में हुई थी और उसका दाह संस्कार दशमी तिथि को हुआ। जिसका उत्सव दशमी दिन मनाया, इसीलिये इस त्यौहार को विजयदशमी के नाम भी से जाना जाता है।
आज के दिन ही महा ज्ञानी रावण का दाहसंस्कार हुआ था
मरते वक्त रावण ने लक्ष्मन को तीन सीख दी। जिसको अपनाना चाहिए 
1.  शुभ कार्य को जितनी जल्दी हो सके कर लेना चाहिए और अशुभ कार्य को जितना हो सके टालते रहना चाहिए।
2. शत्रु को कभी छोटा ना समझे,  उसने कहा, अपने प्रतिद्वंद्वी, अपने शत्रु को कभी अपने से छोटा नहीं समझना चाहिए, वह आपसे भी अधिक बलशालि हो सकता है। मैंने श्रीराम को तुच्छ मनुष्य और भालू-वानर की सेना को छोटा समझा। मुझे लगा कि उन्हें हराना मेरे लिए काफी आसान होगा, लेकिन यही मेरी सबसे बड़े भूल थी
3. अपना राज किसी को मत बताओ
अपने जीवन का कोई भी राज किसी को नहीं बताना चाहिए, विभीषण मेरी मृत्यु का राज जानता था इसीलिए मेरी ये हालात हुई। ये मेरी सबसे बड़ी गलती थी।

रावण ने तांडव स्तोत्र, अंक प्रकाश, इंद्रजाल, कुमारतंत्र, प्राकृत कामधेनु, प्राकृत लंकेश्वर, ऋग्वेद भाष्य, रावणीयम, नाड़ी परीक्षा आदि पुस्तकों की रचना की थी। पौराणिक ग्रंथों में वर्णन भी है कि रावण को कई भाषाओं का ज्ञान भी था।रावण बहुत बड़ा और अच्छा राजा था, उसकी सोने की लंका में उसके राज्यवाले बहुत ज्यादा खुश रहते थे।  रावण बहुत बड़ा शिवभक्त था। आयुर्वेद, तंत्र और ज्योतिष का ज्ञाता रावण वैज्ञानिक भी था। इंद्रजाल जैसी अथर्ववेदमूलक विद्या का रावण ने ही अनुसंधान किया।

हमारे ही देश में कुछ स्थान ऐसे भी हैं, जहां रावण का दहन नहीं बल्कि उसका पूजन किया जाता है। 
कनार्टक कर्नाटक के मंडया जिले के मालवल्ली तालुका नामक स्थान पर रावण का मंदिर 
उत्तर प्रदेश उत्तर प्रदेश के जसवंतनगर में रावण की पूजा होती है। 
आंध्रप्रदेश आंध्रप्रदेश के काकिनाड नामक स्थान पर भी रावण का मंदिर बना हुआ है। 
बिसरख यूपी के बिसरख नामक गांव में भी रावण का मंदिर है ऐसा कहा जाता है यह रावण का ननिहल था।
उज्जैन उज्जैन जिले के चिखली गांव में रावण की पूजा होती है। मं
दसौर मध्यप्रदेश के मंदसौर में रावण को पूजा जाता है। कहते हैं यह शहर रावण की धर्मपत्नी मंदोदरी का मायका था।
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International girls child day

आज इन्टरनेशनल गर्ल्स चाइल्ड डे
बेटियां हमारी सबसे प्यारी
सबसे उपेक्षित
आज भी भेदभाव
बेटा और बेटी में
समय बदल रहा है
सोच भी बदल रही है
पर वह कितनी ???
सरकार योजनाओं की घोषणा कर रही है
ताकि बेटी बोझ न लगे
उनको गर्भ में न मारा जाय
वहाँ से बची तो उपेक्षा न हो
वहाँ से बढी तो आगे दहेज की बलि वेदी पर न चढे
वहाँ से बची तो
सारी उम्र घुटते सहते न बीते
बेटी को आने दे
पढाई लिखाई करने दे
उसको बोझ न समझे
वह भी घर का चिराग है
बेटा और बेटी में भेदभाव न करै
वह तो घर की रौनक है
बेटी ,बहन ,पत्नी ,माँ ,बहू के रूप में
वह अहम हिस्सा है समाज का
उसको पंख फैलाने दे
उसकी योग्यता की कदर करें
आप उसे प्यार और सम्मान दे
वह आपकी जिंदगी को बदल देगी
उसके बिना तो समाज की कल्पना भी नहीं
वह बोझ नहीं अति महत्वपूर्ण है
जरा सोचिये
अगर बेटी ही न रही
तब तो कोई नहीं रहेगा
जननी है वह 
उसका सम्मान करेंगे
तभी समाज जिन्दा भी रहेगा
मजबूत और शक्तिशाली भी

Sunday, 8 October 2023

मेरी मुंबई

कहते हैं मुंबई माया नगरी है
होगी पर मुझे तो मुंबई से ही माया है
इसके बिना कहीं मेरा दिल लगता नहीँ 
यह मुझे अपनी लगती है
मेरे दिल के करीब है
यहाँ की सडके लगता है साथी है मेरी
स्वतंत्र महसूस करती हूँ यहाँ 
यहाँ का कण-कण अपना 
यहाँ की भीड़ में मुझे घबराहट नहीं होती
कहने को तो यह व्यस्त शहर है
कोई फर्क नहीं पडता
व्यस्तता है तभी तो फालतूगिरी नहीं है
सब काम में लगे हुए हैं 
भागदौड़ कर रहे हैं 
सबके जीवन का कोई न कोई लक्ष्य 
यह नगरी सपने नहीं दिखाती पूरा भी कराती है
निठल्लों के लिए यहाँ कोई जगह नहीं 
हर चीज यहाँ बिकती है
सस्ते से सस्ता और महंगे से महंगा
सबका पेट भरती है
मुफ्त में कुछ नहीं मिलता
कर्म का संदेश देती नगरी 
इससे जिसको एक बार माया मोह जो हुआ 
तो वह कभी नहीं छूटा 

सोच और सोचना

सोचते  रहे सोचते रहे
सोचते- सोचते जिंदगी का आधा से ज्यादा हिस्सा गुजर गया 
जो सोचा वह तो हुआ नहीं 
जो सोच रहे हैं उसका भी पता नहीं 
सोचने लगी जब होना ही नहीं तब सोचना क्यों??
यही सोचते सोचते कब ऑख लग गई
चिड़ियों की चहचहाहट से पता चला सुबह हो गई 
जल्दी जल्दी उठ बैठी
सोचने लगी पहले क्या करूँ 
कौन सा काम यह कि वह
सोचा खाना बनाना है
चाय - नाश्ता तैयार करना है
सोचने लगी महरी आएंगी तो क्या काम करवाना है
कौन से मार्केट से सब्जी लेनी है
जहाँ सस्ता मिलता हो
कुछ पैसे बच जाएं तो एक रिश्तेदार की शादी में जाना है
यही सोच रही थी घंटी बजी
दरवाजा की ओर बढी यह सोचते
इस समय कौन आया होगा ।

Saturday, 7 October 2023

जब औरत के हाथ में रहता मोबाइल

जब उसके हाथ में झाडू रहता है
तब नहीं जाती किसी की दृष्टि

जब उसके हाथ आटे से सने होते हैं
जब आटा गूंथ रही होतीहै
तब नहीं जाती किसी की दृष्टि

जब दहकती गर्मी में रसोईघर में
पसीने में लथपथ खाना बना रही होती 
हाथ में चिमटा और कलछी 
तब नहीं जाती किसी की दृष्टि

जब कडकती ठंडी में 
जूठे बर्तन और ओटला साफ करती
तब नहीं जाती किसी की दृष्टि

जब बच्चों के पीछे रात रात भर जागती
उनके सर पर पानी की पट्टी रखती
तब किसी को उसकी नींद की फिक्र नहीं होती

सुबह सुबह सबके नाश्ते की तैयारी
स्कूल छोड़ना 
कभी-कभी होमवर्क भी करवाना
तब नहीं जाती किसी की दृष्टि

दोनों हाथों में सामान की थैली
ढोते हुए जब आती है
तब नहीं जाती किसी की दृष्टि

यह सब वह करें तब तो ठीक
लेकिन इन्हीं हाथों में जब पकड़ती है मोबाइल 
तब सबकी दृष्टि बदल जाती है
जैसे कोई अपराध कर रही हो

हमेशा हाथ में मोबाइल
नहीं कोई परवाह
जब देखो उस पर लगी रहती हो
यह सुनना हर औरत की नियति

मानव नामक जीव

नीचे पृथ्वी पर जाति पाति के रंग में रंगे हुए
ऊपर गए तो सब एक रंग में ढल गए 
चलो चले पृथ्वी पर
अपनी औलादो को देखें 
एक ही रंग काला वह भी कौए के रूप में 
अच्छा है वहाँ कोई भेदभाव नहीं 
तभी तो उसे स्वर्ग कहा जाता है
पृथ्वी तो पटक पडी है
जाति- पाति     धर्म- समुदाय 
कहने को तो इंसान पर इंसानियत बहुत कम दिखती 
मानव जन्म बडी मुश्किल से मिलता है उसको गंवाना नहीं यू ही
यह पढा तो है पर अमल कौन करता है
अपने स्वार्थ के लिए यह मानव नामक जीव न जाने क्या-क्या करता है  

एक जन्म ही काफी है

पति शराबी हो 
उसको शराबी न बोला जाएं, छुपा कर रखा जाएं 
वह नशेडी हो गंजेडी हो लेकिन उसकी गंध नहीं खराब लगनी चाहिए 
पति गरीब हो लेकिन उसको यह एहसास न कराया जाएं 
क्योंकि उसके अहम् को चोट लगती है
भले आप फटेहाल जिंदगी जीए 
वह कुछ भी करें लेकिन उसका विरोध न करें 
नहीं तो आप झगड़ालु औरत मानी जाएंगी 
उसके संबंधी कुछ भी कहें लेकिन आपको बुरा नहीं मानना है
एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देना है क्योंकि आप समझदार है
वह चार लोग के बीच तमाशा करें लेकिन आप हंसती रहें 
आप जवाब न दे नहीं तो उसकी तौहीन हो जाएंगी
अगर आप पर हाथ उठाता है तो क्या हुआ
यह तो उसका अधिकार है
वह बात बात पर चीखे - चिल्लाए और मुंह फुलाए 
लेकिन आप नहीं 
आप जोर आवाज में बात भी न करें 
उसको कुछ पूछना मतलब टोकना वह न करें 
आपके पैसों का हिसाब नहीं लेकिन वह आप पर पैसा देकर एहसान कर रहा है
वह आपके रिश्तेदारों को तवज्जों न दे लेकिन आप उसके रिशतेदारों के लिए पलक - पावडे बिछाकर तैयार रहें 
आपकी पसंद- नापसंद कोई मायने नहीं 
उसको क्या अच्छा लगता है यह देखना है
बच्चों की जिम्मेदारी आपकी है उसकी नहीं 
वह नहीं सही करेंगा तो उसके पीछे कारण आप है
सही हुआ तो उसका श्रेय वह लेगा
वह कहता है बहुत प्यार करता है
प्यार के नाम पर गुलाम बना कर रखता है
कहीं आना नहीं जाना नहीं अपनी मर्जी से
बस उसके साथ रहना
दुनिया को दिखाना कि 
हम साथ-साथ है 
हमारा खुशहाल परिवार है
भले लोगों की ऑखों में ऑसू हो
उसे उससे कोई फर्क नहीं पडता 
न जाने कितनी ऐसी खूबियों से भरा यह पति रूपी जीव
पत्नी बनना यानि सब कुछ सहना 
उसकी गलतियों पर पर्दा डालना हालांकि वह उनको गलतियाँ नहीं समझता है
आपसे उसने शादी की है मतलब आप पर और आपके परिवार पर एहसान किया है
कमोबेश हमारे यहाँ की सभी पत्नियों की यही स्थिति  
उसके बाद भी सात जन्मों की बात की जाती है
एक जन्म ही काफी है ।

न जाने क्यों ??

ना जाने क्यों हर शख्स यहाँ हमसे रूठ जाता हैं 
जब तक उन्हें अपना समझू वह पराया हो जाता है 
क्या खता हुई हमसे यह जाने बिना दगा दे जाता है
हम दुनिया दारी निभाते इससे पहले ही वह छोड़ जाता है 
हम गलत या वह सही इससे भी तो अंजान है 

तुम क्या हो ??

तब भी मजबूरी में चुप थी
आज भी मजबूरी में चुप हूँ 
तब माता - पिता का ख्याल था
आज बच्चों का ख्याल है
अपने लिए नहीं कभी-कभी दूसरों के लिए सहना पडता है
उनके लिए जिनकी हम जान है 
उनके लिए जो हमारे जिगर के टुकड़े हैं 
पत्थर दिल और स्वार्थी इंसान क्या समझेगा 
वह तो अहम् में जीता है
मेरे जैसा कोई नहीं 
सही है तुम्हारे जैसा कोई नहीं 
सबके जैसा बनकर देखा होता तब ना
जो मैं मैं करता रहा 
कहने को इंसान तो है इंसानियत तो नाम मात्र की नहीं है
अपने अच्छा बनने के लिए दूसरों को बुरा साबित करना 
मैं सर्वश्रेष्ठ इसी भाव के साथ जीते रहो
यह भी मालूम नहीं कि 
श्रेष्ठ कर्म से बनता है घमंड से नहीं 
कुएँ का मेंढक समझता है कि सारा संसार इसी में है
वही हाल तुम्हारा है
अपना तो हाल किया ही है दूसरों का भी हाल बना कर रखा है
किसी की मजबूरी का फायदा कैसे उठाना 
दूसरों को कब और कैसे झुकाना 
कब बवंडर खडा करना 
यह तुमसे ज्यादा अच्छा कोई नहीं जानता
जब अपनी बारी आती है तब तो बडी बडी अपेक्षा
यह दोहरा चरित्र और मापदंड तुम्हारे पास ही रहे 
कितना अच्छे हो यह तो वही जानता है
जिसका पाला तुमसे पडा हो ।

Thursday, 5 October 2023

सूर्य और दीपक

एक बार सूर्य ने कहा कि मैं कुछ दिन के लिए विश्राम करना चाहता हूँ 
उनको पता था कि मेरे बिना अंधकार छा जाएगा 
कौन है जो मेरी जगह ले ले
सब एक दूसरे का मुख देखने लगे
वहाँ नदी  , पर्वत  , हवा इत्यादि सभी थे 
सब कहने लगे कि अब तो अंधकार छा जाएंगा 
तभी एक दीपक जो माटी का था बोल उठा
आपके जितना तो नहीं लेकिन अंधकार को तो भगा सकता हूँ जब तक मुझमें बाती और तेल रहें 
आप जब प्रस्थान करते हैं अस्ताचल की तरफ 
तब मैं ही तो जलता हूँ 
हाँ आप जैसा विशाल तो नहीं जो पूरे जग को प्रकाशित करें 
अपने आस-पास को जरूर प्रज्वलित करता हूँ  
यह सुन सूर्य को भान हो गया कि केवल मुझ पर ही सब आधारित नहीं है ।

पति - पत्नी की बात

अरे कितना अच्छा है हमारा जीवन
हम लोगों में कभी लडाई- झगड़े और तू तू मैं मैं 
न कोई वाद - विवाद न कोई शिकवा - शिकायत 
पति ने बडे आनंदित हो कहा पत्नी से 
पत्नी ने एक बार  कनखियों से देखा
चेहरे पर एक व्यंग भरी मुस्कान आई
कहना तो चाहा पर कह न पाई
कौन इस पत्थर पर अपना सर मारे
हदयहीन आदमी से कौन बहस करें 
मन में कहने लगी
लडाई झगड़ा तो उनमें होता है जिनमें प्यार होता है
नोक झोंक तकरार तो वहाँ होती है जहाँ मन को आजादी मिलती हो
यहाँ तो जब देखो 
त्योरियां चढत ही रहती है
बस सब अच्छा है यही सुनना है
कुछ बोलो तो मन आहत हो जाता है
कुछ सुनना नहीं है 
न अच्छा न बुरा
न सही न गलत
बस मैं ही सबसे अच्छा 
मेरे जैसा कोई नहीं 
इसी गफलत में जिंदगी गुजार दी
क्या रूठेगा वह जहाँ कोई मनुहार करने वाला नहीं 
क्या जिद करेगा वह जहाँ जिद की कोई जगह नहीं 
कौन सी बात क्या बखेडा खडा कर ले 
इस बात से डर 
मुख पर मुस्कान बिखेरतो रहो
अपनी इच्छाओं का गला घोटते रहो 
सब कुछ छिपाते रहो 
हर हाल में दुनिया को अच्छा दिखाते रहो
कुछ विरोध किया तो यह सुनो
मार खाने लायक काम ही किया है
कुछ कहना नहीं है 
बात भी नहीं करना है
उस पर भी प्रॉब्लम 
हमसे बोला क्यों 
हमको टोका क्यों 
मुर्ति बन कर रहो
जैसे मुर्ति के चेहरे पर मुस्कान पर दिल बेजान 
बस पत्नी ने यह सोचते सोचते एक नजर डाली
पति ने सोचा 
मैं कितना अच्छा, मेरे जैसे दूसरा कोई नहीं 

Wednesday, 4 October 2023

जाति का गणित

आजकल कभी ब्राह्मण कभी ठाकुर
इन्हीं की चर्चा चहुँओर 
हर जगह अच्छाई और बुराई है
ठाकुरों के बलिदान से इतिहास भरा पडा है
यह जाति नेतृत्व करने वाली थी
वीरता और साहस इनमें कुट कुट कर भरी थी 
देशभक्ति में इनकी मिसाल नहीं 
रही बात ब्राह्मणों की
ब्राह्मण का ताल्लुक शिक्षा से रहा है
ज्ञान दान और पूजा - पाठ 
यही इनका कर्म और धर्म रहा है
वीरता और ज्ञान  यानि ठाकुर और ब्राह्मण 
अति भी हुई है इससे इन्कार नहीं किया जा सकता
समय बदला तो बदलाव भी हुए 
ये लोग भी बदले 
अब वह पहले जैसा रौब और रूतबा उनका भी नहीं रहा
वे भी इस सत्य से वाकिफ है
पहले इनके लोगों ने हमारे साथ अन्याय किया था
अब उसका बदला लेना है
यह भी तो न्यायोचित नहीं है
उनका योगदान भी तो है
वह कहाँ कम है
ऐसा नहीं कि ठाकुर और ब्राह्मण को आनेवाली पीढी घृणा की दृष्टि से देखें 
हर जाति को अपने पर गर्व होना चाहिए 
उनके योगदान को सराहा जाना चाहिए 
सब मिलकर एक धर्म बना है वह है हिन्दू धर्म 
सबके अपने-अपने कर्म थे वे बंटे हुए थे
समाज की संरचना ऐसी ही थी
छूत- अछूत तो थे ही नहीं 
यह सब बाद में हुआ 
गलती थी और गलत भी हुआ 
लेकिन अब दूसरा उसी कारण गलती करें 
यह भी तो अनुचित है
संविधान में अधिकार सबको बराबर के हैं 
अपने अधिकारों का उपयोग करें 
जीओ और जीने दो पर अमल करें। 

धुआं धुआं

सब जगह धुआं धुआं 
वह चाहे जिंदगी हो
आसपास का वातावरण हो
कैसे निकले इससे 
यह समझ नहीं पाते
इसी धुएं में गोल - गोल घूमते जा रहे हैं
अपने ही बुने जाल में फंसते चले जा रहे हैं 
कभी रिश्तों का जाल
कभी मशीनों का जाल
कब यह बंद पड जाएं 
कब टूटने की कगार पर आ जाएं 
कहा नहीं जा सकता
सब जगह धुआं धुआं 
धुंधलका से घिरे हम 
कुछ साफ नजर आता नहीं 
इनके बीच घिरे हम कहीं  ।

श्रद्धा से श्राद्ध

प्रेमचंद जी के कफन का वाक्य याद आता है 
जीते जी पेट भर खाना मयस्सर नहीं नया कपडा नहीं और मरने पर नया कफन 
यही तो विडम्बना है हमारी
हम अपने पितरों को याद करते हैं अच्छी बात है
पर श्राद्ध के नाम पर कंगाल हो जाना
कर्ज लेकर खिलाना - पिलाना 
दान - दक्षिणा देना 
यह तो उचित नहीं है
जो पास में है उसी से श्रद्धा पूर्वक श्राद्ध करें 
पितर तो जल से ही प्रसन्न हो जाते हैं बस भावना रहें 
आप उनको याद करें 
आप भरे - पूरे रहेंगे और कर्ज से मुक्त रहेंगे 
आप को खुश देखकर आपके पितृ भी प्रसन्न होगे ।

बेटी , बेटी होती है

बेटी , बेटी होती है
वह दलित या उच्च जाति की हो
क्या फर्क पडता है
फर्क पडता है
सोच से
संस्कार से
नजरिया से
बेटी किसी की भी हो
उसके मान और सम्मान की जिम्मेदारी सबकी बनती है
हमारी बेटी हो
तुम्हारी बेटी हो
पडोसी की बेटी हो
अपनी सोच का दायरा बढाया जाय
उसे इंसान समझा जाए
बराबरी का दर्जा दिया जाए
अपराधी कोई भी हो
हेय नजर से नारी ही देखी जाती है
वह किसी की माँ
किसी की बहन 
किसी की पत्नी तो है ही
एक नागरिक भी है
सभ्य सोसायटी में अपनी तरह रह सकें
जी सकें
उन्नति कर सकें
अपनों के और अपने सपने साकार कर सकें
वह तब होगा
जब बेटी सुरक्षित रहेंगी
उसे खिलौना न समझा जाए
उस पर राजनीति न की जाए
न्याय मिलें
सब प्रयत्नशील होंगे तभी यह संभव है
नारी पर अत्याचार
उसका परिणाम रामायण और महाभारत
राजघरानों की जब यह हालत
तब सामान्य नारी की क्या बिसात
यह परंपरा चली आ रही है
उसे ध्वस्त करना होगा
बेटी , बेटी होती है
वह दलित हो
वह ब्राह्मण हो
वह हिन्दू हो 
वह मुस्लिम हो
वह गरीब हो
वह अमीर हो
है तो वह व्यक्ति ही
सम्मान से जीने का हक उसको भी है

Tuesday, 3 October 2023

अगडी- पिछडी का गणित

कौन सी जाति के हो भाई 
हम अगड़ी जाति के है
तुम कौन से जाति के हो भाई 
हम तो पिछडी जाति के हैं 

लेकिन पिछड़े तो ये दिख रहे हैं 
न इनके पास नौकरी है न कोई सुविधा मिल रही है 
ये रिक्शा चला रहे हैं, वाॅचमैन का काम कर रहे हैं 
गाडी धो रहे हैं  , जूते की दुकान पर जूता पहना रहे हैं 
माॅल में टायलेट धो रहे हैं 
आप अगड़ी कैसे हो गए 

आपके पास तो सरकारी नौकरी है
एक ही घर के सब लोगों के पास 
इतना बडा मकान और गाडी में घूम रहे हैं 
सब लोग सलाम ठोक रहे हैं 
किसी भी तरह पिछड़े नजर नहीं आ रहे हैं 

अरे भाई सरकार ने हमको पिछडा घोषित किया है
आरक्षण हैं  हमारे लिए 
पिछडा  , अति पिछडा  , अनुसूचित और न जाने कितने 
मजे हैं हमारे 
ये जो अगडे हैं ना 
इनकी हालत तो बहुत बेकार है
कहने को हम पिछड़े पर हम बहुत आगे हैं 
हमारे बच्चों को सब सुविधा 
इनके बच्चे तो अच्छे नंबर लाकर एडमीशन नहीं ले पाते 
हम हर बैनिफिट्स लेते हैं 
सरकार हमारी है क्योंकि हमारी संख्या ज्यादा है
हमारे वोट से ही तो सरकार बनती है
तभी तो हर पार्टी को हमारा ही ख्याल 

आपका जीवन अमूल्य है

आपकी जान कितनी कीमती है 
यह बात शायद आप नहीं जानते होंगे 
आपका परिवार भलीभाँति जानता है
कभी जीवन में परिस्थितियां आपके अनुकूल न हो तो घबराना मत 
सब आपका साथ छोड़ दे लेकिन आपका परिवार नहीं 
वे बहुत प्यार करते हैं आपके साथ 
आप उनके लिए अमूल्य है
आप पर उनका अधिकार आपसे ज्यादा है
यह जीवन उनका दिया हुआ है तो उनसे छीनने का आपको कोई हक नहीं 
कुछ लोगों की खातिर 
कुछ कमजोर क्षणों में 
जब आप विचलित हो तब आप जीवन देने से पहले जीवनदाता और पालक के बारे में सोच लेना
जिनकी दुनिया ही आप हैं 
आप अकेले दुनिया से नहीं जाएंगे उनकी दुनिया ले जाएंगे 
आप अकेले नहीं मरेंगे उनको मरते छोड़ जाएंगे 
आप स्वर्ग में जाएं चाहे नहीं उनकी जिंदगी को नर्क बना जाएंगे 
आपको इस संसार में लाने का परिणाम यह भुगतना पडे तो वह कहीं के न रह जाएंगे 
सारी आशा - आंकाक्षा- अपेक्षा आपके साथ ही दफन हो जाएंगी 
मत जीओ अपने लिए कम से कम उनके लिए तो जीओ
वह अपराध जो उन्होंने किया ही नहीं है उसका दंड उन्हें तो मत दो 
मौत से क्या मिलेगा छुटकारा 
बहुत मुश्किल से मानव जीवन मिला है उसे यूँ ही न गवाएं 
जीए तो जीए अपने लिए वह क्या जीए
जीओ तो औरों के लिए 
बेकार मरने से बेहतर है कुछ सार्थक करना ।

Monday, 2 October 2023

हमारी चाची

पितृपक्ष हो और चाची की याद न आए
चाची तो चाची ही थीं सबसे आगे
तेज तर्रार और फैशन में भी 
उनको अच्छा रहना और दिखना पसंद था 
काम में भी फुर्तीली 
हाजिरजवाबी में तो कोई टिक ही नहीं सकता
चाची रहती थी तो कोई चिंता ही नहीं 
सब काम संभाल लेंगी 
उन पर सौंप दो
ज्यादा पढी - लिखी नहीं पर सबको मात दे सकती
सबको प्रेम से बैठाना , खिलाना - पिलाना 
उतना अपनत्व कि माँ के बराबर ही 
उन पर हक जता सकते थे 
गुस्सा कर सकते थे 
परिवार को साथ लेकर चलने वाली
बडों को सम्मान और छोटों को प्यार देने वाली
अन्याय को न सहने वाली 
मुश्किलों में हार न मानने वाली 
इतने बडे एक्सीडेंट को मात कर दिया पर मौत को नहीं 
 ऐसा नहीं कि किसी के जाने के बाद काम रूकता नहीं 
दुनिया चलती रहती है
पर वो जो व्यक्ति है वह वापस नहीं आता
न उसकी जगह कोई ले सकता है
चाची का नाम तारा था वह तारा ही बन ऊपर चली गई 
जाने को तो सब जाते हैं पर असमय समय
अभी तो जीना था कुछ वर्ष 
विधि का विधान अटल है
मेरे जीवन में उनकी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रही है वह तो कोई भर ही नहीं सकता 
आज अगर वे पृथ्वी पर आई है तो सादर नमन और अपना आशीर्वाद बनाएं रखना हम पर 
यही कहते हैं चाची आपसे ।

हमारी आजी

आज पितृपक्ष है
मैंने सोचा अपने पितरों को याद करूँ 
इस कडी में एक नाम आया वह हमारी आजी तलुका देवी
छोटी सी गोल - मटोल नाटे कद की 
बिना ब्लाउज के एक साडी लपेटे रहती 
हंसती तो खिलखिलाकर 
रात को कहानी सुनाती 
कौआ हकनी और सारंगी - सदावृक्ष की 
अपने साथ गाँव में जिसके घर जाती तो ले जाती 
एक बार क्या हुआ 
हमारी फुआ है गायत्री फुआ 
उनका देवर मिलने आया था जहानागंज बाजार में 
हम तीनों लोग गए इक्का पर बैठकर 
अब फुआ तो अपने देवर को एक जगह ले जाकर बात करने में मशगूल 
आजी बोली 
जाये दा ओके बतियावे दा 
हमहन पकौड़ी लेके खाइब 
आजी ने पकौडी लिया और मुझे खिलाया  
उसके बाद हम लोग खूब हंसे 
फुआ के लिए रखा ही नहीं 
पकौड़ी तो बहुत खाई पर आजी की दिलाई हुई वह पकौड़ी कभी नहीं भूलती ।

ईन्दू

वह मेरी प्यारी थी
मुझसे छोटी थी
करतब मे बडी थी
थोड़ी नकचढी थी
जिद्दी थी
आ जाती जिद पर तो जो ठान लेती
वह करके ही छोड़ती
दिन - रात किताबों में रहती
अव्वल न॔बर लाती
हर चीज करीने से रखना
हर चीज करके ही रहना
जमाने से दो कदम आगे रहना
यह उसकी फितरत थी
सुन्दर लंबे लंबे घनियारे केश
इस्तरी हुआ कपडा
भले उसके लिए कितनी भी मेहनत
अपने को कभी कम नहीं आंकती थी
तभी तो उसकी सखी बंगलों वाली थी
आत्मसम्मान की प्रतिमूर्ति
नहीं किसी से डरना न झिझकना
हर काम अव्वल दर्जे का
भोजन हो या सिलाई - कढाई
मैं तो उसको कभी समझ न पाई
थोड़ी ईर्ष्या थी मैं उसके जैसे क्यों न बन पाई
मन का प्रेम कभी प्रकट न कर पाई
स्वाभाविक था झगड़ा - लडाई
बडा होने का रौब - धौंस
बहने थी जाई
अहमियत उसकी उसके जाने के बाद समझ आई

वह होती तो मैं इस तरह अकेले न होती
उससे अच्छा कौन समझता
कौन साथ निभाता
हर अवसर पर अकेला महसूस करती हूँ
तुम्हारी कमी हमेशा खलती है
भेंट चढ गई
तुम विवाह की बलिवेदी पर
समाज की कुरीतियों पर
हम खुल कर नाम भी न ले सकें
बचते रहें समाज के तानों से
इतनी कमजोर कैसे पड गई मेरी बहना
क्यों नहीं विरोध कर डाला
फिर वह होता कोई कितना प्यारा
इतनी विद्रोही
इतनी जुझारू
जीवन से हार मान गई
हम सबको रोता - बिलखता छोड चली गई
इंदु तो चंद्रमा का भी एक नाम है
वह ऑखों से ओझल होता है फिर आ जाता है
काले काले बादलों से
गहरे अंधेरे से बाहर निकल आता है
पर तुम ऐसा न कर पाई
हमें गहरे अंधेरे में छोड़ गई
न शिकवा न शिकायत
हमें कटघरे में खड़ा कर गई
पल पल सोचने पर मजबूर
कहीं इसका कारण हम तो नहीं
होनी को जो मंजूर वह स्वीकार
पर यहाँ होनी नहीं कारण हम
क्या हुआ था तुम्हारे स्वभाव को
अर्पण नहीं किया होता स्वयं को आग में
जिद पर उतर आई होती
सक्षम थी कुछ भी कर सकती थी
फिर यह रास्ता क्यों चुना
क्यों कमजोर पड गई
सपनों की आहुति दे दी
स्वयं चली गई
हमारे सामने प्रश्न चिन्ह छोड़ गई
आज होती तब हालात कुछ और ही होते

दिल मे कसक होती है
काश । तुम होती
अपनी चमक बिखेरती
पर तुम तो बादलों में इस तरह समाई
फिर कभी नजर न आई
हमें अकेला कर गई
स्वयं तो चली गई
हमें जीते जी मार गई
सिसकियाँ हमारी दब कर रह गई
आज भी वह सालती है
जब जब याद तुम्हारी आती है
खोया है हमने अपने को
यह दर्द बेगाना कैसे जानेगा
मिल बाट कर खाया था
अब वह बांटने वाला ही नहीं रहा
सब अकेले मुझे दे गया
ईश्वर की भी पूजा करना छोड़ा था
शादी बारात को फिर नहीं देखना चाहा था
तुम्हारे जाने के बाद मन को न जाने कितनी बार संभाला
बार-बार समझाया था
तब जाकर यह घाव कुछ भरा था
पर क्या सचमुच यह भरा क्या ??
अगर भरा होता तो बार-बार हरा क्यों हो जाता

स्वप्न में तुम आई थी
मैं आ रही हूँ
मेरे साथ ही एक और शख्स को एक ही दिन

      वह था    अजीत पांडे 

ठीक नौ महीने बाद ही जन्म हुआ था मेरे बेटे का
मन को सुकून मिला था
अपने ही घर लौट आई है
अब आत्मा नहीं भटकेगी
अपने ही लोगों के बीच रहेंगी
जब जब बेटे को देखती हूँ
तुम्हारी याद आती है
वह भी जिद्दी , कमजोर पर निराश न होनेवाला
जो न सोचा वह भी कर डालता है
आश्चर्य में डाल देता है
अब पुनर्जन्म की बात सच है या नहीं
पर उस दिन के बाद तुम कभी नहीं आई
सच हो तब भी
पर तुम होती तो बात कुछ और होती
मैं घमंड में रहती
क्योंकि तुम मुझे कभी अकेला नहीं महसूस होने देती
न कोई की हिम्मत होती मेरा मजाक उड़ाने की
तुम तो मुझे आदर्श मानती थी
तुम्हारा आखिरी खत
कि आपकी चिंता रहती है हमेशा
तब क्यों छोड़ गई
ईश्वर ने तो नहीं बुलाया था
तुम नाराज हो गई थी
वक्त सबसे बडा मरहम
पर कुछ घाव कभी नहीं भरते
समय समय पर टीस देते रहते हैं
यह वैसा ही घाव है
जो तुम हम सबको दे गई
भूल जाओ
भूलना इतना आसान तो नहीं होता
एक जिंदगी में तो यह संभव नहीं ..।।

मेरे बाबा

बरसात जब - जब होती है तब- तब बाबा याद आते हैं 
स्कूल में पढ रही थी 
हम लोग वालकेश्वर रहते थे और स्कूल ऑपेरा हाउस में था 
बेस्ट की बस से जाते थे 
एक बार बारिश हो रही थी और मैं छाता घर पर भूल गई थी 
बाबा मुझे लेने के लिए पहुंचे पहले रेनकोट खरिदा प्रार्थना समाज से उसके बाद स्कूल के गेट पर खडे रहें 
तब तक तो मैं घर आ चुकी थी
फोन और मोबाइल का जमाना तो था नहीं 
बहुत देर बाद बाबा आए तो वह गुलाबी रंग का प्रिन्टेड रेनकोट
उस रेनकोट को मैं आज तक भूली नहीं 
जब बरसात होती है या किसी को रेनकोट पहनते देखती हूँ तो अपने बाबा की याद ताजा हो जाती है
यादें तो बहुत हैं 
इस पितृपक्ष में यह याद अपने बाबा को समर्पित करती हूँ  ।

हमारे पितर

पितर पक्ष चल रहा है अपनों को याद करने का समय 
क्या अपने भुलाएँ जा सकते हैं 
अपने तो हर रोज याद आते हैं और हर मौके पर
अरे बाबा ने यह किया था
अरे बाबूजी ने वह किया था 
अरे मेरी बहन ऐसी थी आज वह होती तो 
ऑखों में ऑसू आ जाते हैं याद कर
कभी-कभी मुस्कान भी आ जाती है
जरूरत पडने पर लगता है वे लोग होते तो कैसा होता
उनको याद क्या करें जिनको हम कभी भूले ही नहीं 
वे हमारी जिंदगी से जुड़े हुए हैं 
उनका योगदान है वह साथ ही रहेगा 
वे हैं या नहीं  
यह दिगर बात है 
बाबूजी कहा करते थे कि तू चाहती है कि मैं जिंदा रहूँ 
अपने फायदे के लिए और हंसते थे
वे बुद्ध से प्रभावित थे 
सही है यह दुनिया तो स्वार्थ पर ही टिकी है
हम सब चाहते हैं अपने लोग को जीवित देखना 
अपने आस-पास रहना हमारे काम आना
स्वार्थ वश ही सही
क्योंकि हमें पता है कि इनकी वजह से हमारा जीवन आसान हो गया है
जी तो सब ही लेते हैं पर जीना अलग-अलग होता है
उस बच्चे से पुछिए जिसके माता या पिता असमय छूट गये हो 
माँ- बाप का साया 
दादा - दादी का प्यार 
बहन - भाई का स्नेह 
और भी न जाने कितने रिश्ते 
चाचा - मामा - बुआ इत्यादि 
उनकी जगह कोई ले सकता है
व्यक्ति अकेला कुछ नहीं  होता
ये सब लोग उसमें समाएं हुए हैं 
पितृ को हम याद करते हैं  पितृ भी हमको कहाँ भूलने वाले 
जिंदगी के साथ भी जिंदगी के बाद भी ।

Sunday, 1 October 2023

अंतर्राष्ट्रीय वृद्ध दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

आओ मरने से पहले थोडा जीना सीख ले 
इन लडखडाते कदमों से थोड़ा चलना सीख ले 
इन कंपकंपाते हाथों में हाथ डाले कुछ घडियां गुजार ले
इन धुंधलाती ऑखों से दुनिया को जी भर निहार ले
इन बहुमूल्य पलों को यू ही न गंवा दे
कुछ हंस ले कुछ बतिया ले 
बूढा से बच्चा बन जाएं 
आज हैं तो जो करना है कर ले
शायद कल हो या न हो ।

सृष्टि का नियम

किसी ने पेड लगाया 
हमने उसका लाभ उठाया 
किसी ने फूल लगाया
खुशबू उसकी हमने ली
किसी ने घर बनाया
उसका आनंद हमने लिया
किसी ने गुलामी की जंजीरों को कांटा 
आजादी की हवा में सांस हमने ली
किसी ने किया तो वह हमको मिला
हम करेंगे तो किसी और को
यही तो नियम है सृष्टि का
सृजन कोई और उपभोग कोई और 
कर्म करना है बिना यह सोचे 
उसका फल हमको मिलेगा या नहीं  

हमारी प्रकृति

आज तो प्रकृति भी झूम रही है
नाच रही है
गा रही है
झूला झूल रही है
मदमस्त हो रही है
इधर-उधर डोल रही है
सूरज की खिली खिली धूप में मुस्करा रही है
प्रकाश के साथ सबको जगा रही है
सबमें चैतन्य और उर्जा भर रही है
फूलों में खुशबू बन महक रही है
रून झून रून झून गा रही है
कोयल की कूक में बोल रही है
मोर के पंख में समा नाच रही है
हवा के साथ झकझोरे ले रही है
ओस की बूंदों को मोती बन पी रही है
पक्षी के घोसलो से ची ची कर रही है
मौसम को सुहावना बना रही है
सबको प्रसन्न कर रही है
दिल खोलकर दे रही है
जिसको लेना हो ले
जिसको खुशी समेटना हो समेटे
जिसको आनंदित होना है वह हो ले
सब उसके लिए समान
कोई भेदभाव नहीं
हर जीव में वह
यह कोई एक दिन का कार्य नहीं
सदियों से कार्यरत है
नियमित रूप से
बिना किसी स्वार्थ के
सबको करती दिल से दान
ऐसी है हमारी प्रकृति जान