Friday, 31 January 2025

उधार मैं रखता नहीं

तुम मेरे सामने से गएं 
आमने - सामने पड़े 
मैं कतरा कर निकल गया
नहीं इच्छा हुई ठहरने की
रुक कर हाल - चाल पूछने की
तुम्हें अच्छा नहीं लगा न
तुमने शिकायत की 
जायज भी है
कोई जान - पहचान वाला मिले 
नजरअंदाज कर दें 
तव्वजो भी न दें
अच्छा तो नहीं  मुझे भी लगा था
जब तुमने ऐसा किया था
बिना किसी वजह से 
आज वही किया 
जो मुझे तुमने दिया था 
वह व्यवहार मैंने लौटाया है
उधार मैं रखता नहीं 

आदमी एक खिलौना है

आदमी एक खिलौना है
आना और जाना है 
नहीं यहाँ ठहरना है 
जब तक हवा भरी है
तब तक फूला है
बाद में फुस्स हो जाना है 
नहीं रह जाता कुछ भी 
न साथ कुछ जाता
अकेले आया था
अकेले ही जाना है
यह वह जानता है
तब भी भीड़ का हिस्सा रहता है
जकड़ा रहता उलझनों में
ताउम्र सुलझाता रहता है
सुलझते सुलझते उलझ जाते हैं
फिर वही सब दोहराता है
एक दिन सब छोड़ चला जाता है 

Wednesday, 29 January 2025

फर्क पड़ता है

हवा सर्द थी
बहुत बेरहम थी
ठिठुरा रही थी
कंपकंपी बढ़ा रही थी 
हम उससे अपने को बचाने की कोशिश कर रहे थे
शाँल लपेट रहे थे 
स्वेटर भी पहन रखी थी
मोजे - दस्ताने भी पहन रखे थे 
वह अपनी गति से 
हम सोचते रहें
जल्दी जाए 
वह कहाँ मानने वाली
हवा है 
स्वतंत्र है
उसकी अपनी मर्जी
हम उसकी तरह क्यों नहीं 
अपनी मर्जी नहीं चला सकते
सबका ध्यान रखना पड़ता है
किसको अच्छा लगता है 
नहीं लगता है
हवा को फर्क नहीं
हमको पड़ता है
हम मनुष्य है
हमारे पास दिल है 
जिसको फर्क नहीं उसे इंसान की संज्ञा नहीं दी जा सकती 

Tuesday, 28 January 2025

जो जाने वह जाने जमाना नहीं

मन हमारा भी था
छांव में बैठने का 
कुनकुनी धूप का मजा लेने का
बारिश की बूंदों को चाय की  चुस्की से निहारने का 
मन ही मन खुले आसमां के तले गुनगुनाने का 
समंदर किनारे बैठ लहरों की आवाज सुनने का 
यहाँ- वहाँ मटरगश्ती करने का 
लेकिन यह सब हो न सका
हमारे हिस्से में कड़कड़ाती धूप आई
छांव तले सुस्ताना नहीं चलना लिखा था 
हम चलते गए 
कभी धीरे चले 
कभी दौड़े  
कभी गिरें और फिर अपने आप उठ भी गए 
किसी ने कहा हमसे 
आप बहुत मजबूत हैं 
कैसे कहें उनको 
हम मजबूर हैं 
हम तो अपनी इच्छानुसार चल भी न सकें 
जो करना चाहा वह कर भी न सकें 
आज भी वही मजबूरी है
जो दिखता है वह होता नहीं
होने और दिखने में बड़ा फर्क होता है
हम जो दिखते हैं वैसे तो असल में हम हैं ही नहीं
जो लोग हमारे बारे में बोलते हैं 
वह भी सही नहीं 
ऐसा नहीं कि सबकी हमारे प्रति यही धारणा है
कुछ ऐसे भी हैं 
जो मुझे सच में जानते हैं
बखूबी पहचानते हैं 
हम क्या हैं 
हमें भी पता है 
ऊपर वाले को भी पता है 
तभी तो निराश नहीं करता
मुश्किल को आसान बना देता है
देर से ही सही देता तो है 
देने वाले ने बहुत दिया 
जिसके काबिल हम थे भी नहीं
लोगों का क्या 
उसका बस हाथ रहें
उसका बस साथ रहें
जो जाने वह जाने 
जमाना नहीं 

माचिस की तीली बनना पसंद नहीं

मैं माचिस की तीली बनना नहीं पसंद करुंगा 
मैं वह छोटा सा दीप बनना चाहूंगा भले मुझे जलना पड़े 
बाद में घूरे में फेंक दिया जाऊ 
इतना संतोष तो रहेगा 
जब तक जीया रोशन करता रहा 
मैं जी भर जला मन भर मरा
मैं माचिस की तीली बनना पसंद नहीं करुंगा 
मैं मोमबत्ती बनना चाहूंगा 
कम से कम अंधेरे को भगाऊंगा 
अपना प्रकाश फैलाऊंगा 
मैं अगरबत्ती- कपूर बनना चाहूंगा
जब तक जलूंगा 
सुगंध तो फैलाऊंगा 
अपने भले मिट जाऊंगा 
खत्म होने के बाद भी कुछ समय सुगंध बनी रहेंगी 
मैं माचिस की तीली बनना पसंद नहीं करुंगा
किसी को जलाना 
मेरे जीवन का उद्देश्य नहीं 
जल जाऊंगा,  मर जाऊंगा , मिट जाऊंगा 
जिद और हठ फिर भी न छोड़ूगा 

Monday, 27 January 2025

हमसे अच्छा कोई नहीं

तुमने मोहब्बत तो बहुत की 
शायद करते भी हो 
यह तुम्हारी सोच
यह तुम्हारा अंदाज
दूसरे से तुम्हें कोई फर्क नहीं
उसको क्या महसूस होता है
क्या महसूस कराया 
क्या महसूस कराते हो 
कभी तुम्हारी नजर में उसके लिए इज्जत रही 
शायद कभी नहीं 
अधिकार हमेशा रहा 
समय-समय पर उसका उपयोग भी तुमने किया 
जलील करने का पल कभी न गंवाया 
तुम अपने को अच्छे साबित करने के चक्कर में
तोहमत लगाते रहें
हम हंसकर सहते रहे 
विरोध करने का साहस नहीं हुआ 
अपनों की मजबूरी आड़े आते रही 
तुम मनमानी करते रहें
जी भर कर मजबूरी का फायदा उठाते रहें
हम मुस्कराते रहें 
तुम प्यार नहीं कर्तव्य पालन कर रहे थे 
हम भी वही कर रहे थे 
जहाँ इज्जत और सम्मान नहीं 
उस दिल में मोहब्बत का वास नहीं होता 
प्यार करने वाला इज्जत देता है मन से 
दिखावा नहीं करता
अब भी तुम्हारी सोच वही 
हमसे अच्छा कोई नहीं 

बन जाओ शिव शंकर

बन जाओ शिव शंकर
पी लो विष हलाहल 
नहीं करो किसी से शिकवा - शिकायत 
क्या गिला औरों से जब अपने ही न हुए हमारे 
बन जाओ भोले बाबा 
जो प्रसन्न होता है वह प्रसन्न रहें 
न रहे कोई बात नहीं
तीसरा नेत्र अपने पास अवश्य रखो 
कोई आँख न दिखा सके
अपने को शक्तिशाली बनाओ 
कमजोर की यहाँ कोई पूछ नहीं
डार्विन को याद रखो
Survival of the fittest 
शक्तिशाली को ही जीवित रहने का अधिकार 
हर बड़ी मछली छोटी को निगलने को तैयार 
दुनिया के समंदर में बखूबी तैरना आना चाहिए 
जहर और अमृत दोनों को धारण करने की क्षमता रखो 

Sunday, 26 January 2025

विजयी विश्व तिरंगा प्यारा

तीन रंगों से रंगा
सबसे प्यारा सबसे न्यारा
यह तिरंगा हमारा
आन - बान - शान से खड़ा 
फख्र से लहराता
है गुरुर अपने गौरवशाली इतिहास का 
जहाँ जन्मी है झांसी वाली रानी 
वीर शिवाजी का मराठा बोला था
राणा प्रताप का चेतक डोला था
राम- कृष्ण की भूमि 
जहां ईश्वर को भी अवतरित होना था 
राजमहल को ठुकराया 
अमन - शांति का संदेश फैलाया 
बुद्ध की तपोस्थली है 
एक नंगा फकीर भी जिसने स्वतंत्रता का नारा लगवाया था
भगतसिंह सा नौजवान जो फांसी के फंदे पर चढ़ मुस्कराया 
नहीं आजाद सा दिखा कोई मरने पर भी पुलिस पास जाने पर घबराई थी 
आनंद भवन के आनंद को छोड़कर जेल स्वीकारा था
वह जो बच्चों का चाचा नेहरू था
बिना खून के आजादी नहीं ऐसा सुभाष ने बोला था 
छोटे से कद के लाल जिसके वह लाल बहादुर ने परचम फहराया था 
हुई एक इंदिरा जिसने दुनिया के नक्शे को बदला था 
थे अटल वह जिनकी कविता सुन संसद भी झूमा था
हुए मनमोहन जो बिन बोले ही अर्थ व्यवस्था को व्यवस्थित चलाया था 
न जाने कितने हुए गुदड़ी के लाल
आज एक चायवाला देश को चला रहा है
दुनियाभर में परचम फहरा रहा है 
प्रयागराज में डुबकी लगाने दुनियाभर के लोग आए हैं
मां गंगा का आशीर्वाद की अभिलाषा है 
आज फिर गणतंत्र दिवस आया है
संविधान को याद कर लें 
वीरों के बलिदान को भूले कैसे 
यह देश हमारा है यह स्मरण सबको रहें 
अधिकार हमारा है तो कर्तव्य भी हमारा है 
चाहे जो भी हो जैसा भी हो 
यह देश तो हमारा है 
आओ सब प्रेम से बोले 
धरती से आसमान तक गूंजे 
झंडा ऊंचा रहे हमारा 
      विजयी विश्व तिरंगा प्यारा 

Saturday, 25 January 2025

कौन चित्रकार

जिंदगी आपकी
कहानी आपकी 
लेखन आपका 
हस्तक्षेप दूसरों का
हरगिज न होने दें
नायक आप ही हो
जैसी लिखना हो लिखे 
जैसा मोड़ना हो मोड़े 
जैसे सजाना हो सजाएं
जैसी मर्जी हो वह रुप दें 
अपनी कहानी से जी भर प्यार करें 
जो अच्छा नहीं लग रहा उसे हटा दें 
जिस बात से परेशान हो रहे हो 
वह बात छोड़ दें
हमें किस बात से खुशी मिलती है
उसके पन्ने को उससे सजाएं- संवारें 
मनभावन रंग भरें 
सुंदर चित्र कारी करें 
ऐसी रचना करें
कहने वाले भी कहें
यह कौन चित्र कार है जिसकी रचना इतनी लाजवाब है 

मतलबी

अपना कौन पराया कौन
अपना - अपना मत करो
अपना भी पहले देखे अपना
सोचे अपना
इस अपने के चक्कर में उलझ रह जाते लोग
अपना - अपना करते न जाने कब हो जाता पराया
न कोई यहाँ अपना 
सब देखते अपना फायदा 
नहीं होता तो तोड़ देते नाता 
हर कोई रहें सचेत
यह दुनिया है स्वार्थी 
नहीं यहाँ कोई किसी का
सब है मतलब के साथी 

Friday, 24 January 2025

बाद का चक्कर

मैं करता रहा बाद  - बाद
कहता रहा बाद में
क्या है कर लेंगे बाद में
हो जाएगा बाद में
टालता गया हर मौके को
बहुत कुछ कर सकता था
नहीं कर पाया इस बाद के चक्कर में
इतनी जल्दी क्या है 
कहाँ भागे जा रहे हैं
घूम - फिर लेंगे बाद में
मौज - मजा कर लेंगे बाद में
पहन - ओढ़ लेंगे बाद मे
कभी मजबूरी में
कभी अनिच्छा में 
कभी आलस में
यह नहीं सोच पाया
हम तो नहीं भागे 
समय भाग गया 
वह आगे बढ़ गया 
हमें पीछे छोड़ गया 
उम्र खिसक गई 
हंसकर बोली
मैं नहीं बाद में आने वाली
मैं पीछे मुड़कर नहीं देखती
आगे बढ़ना है मुझे 
तुम्हारें बाद के चक्कर में 
मैं भी उलझ कर रह गई 
जो सोचा वह भी न हुआ 
अब बैठो और अफसोस करो 



Happy birthday to Myself

हमने आज सांस ली
जीवन की आस बंधी
यह भी क्या कम है 
यह हो तो क्या गम है
सांसें चलती रहें
हम भी चलते रहे
कर्म करते रहें
हर दिन खुदा की नियामत समझते रहे 
चांद- तारों को निहारते रहे
सूरज की रोशनी में नहाते रहे
कलियों -- फूलों संग मुस्कराते रहे 
नदी की तरह इठलाते रहे
समुंदर सा लहराते रहे
पर्वत सा मजबूती से खड़े रहे
हवा संग झूमते रहे 
डालियां - पत्तियों संग डोलते रहे
दोस्तों के साथ गपशप करते रहे
कविता- कहानी कहते और लिखते रहे
परिवार संग मिलते रहे
अपनों पर प्यार बरसाते रहे
अपने बच्चों को देख दिल में हिलोरे मारते रहे
नाचते - गाते - झूमते - बतियाते 
इसी तरह जिंदगी कटती रहे
आज के दिन ही हम इस दुनिया में आए थे
इसलिए अपने आप को 
Happy birthday कहते रहे
जब तक जीए 
माता - पिता का शुक्रिया मानते रहे
हमारी जिंदगी केवल हमारी नहीं
सब है इसमें भागीदार 
मानते हैं उन सब का एहसान 
जिंदगी में जो भी साथ चला 
हमें उसका भी है एहसास
कभी न भूले हर उस शख्स को 
जिसने मुश्किल घड़ी में दिया साथ 
फिर एक बार 
Happy birthday to Myself 

Thursday, 23 January 2025

शून्य

मैं शून्य हूँ 
मेरी कीमत क्या है 
सोचता हूँ
अपने आप में कुछ भी नहीं 
अपने लिए कुछ महत्व नहीं
ऐसा लगता है 
मेरा जीवन बेकार है
मेरा क्या अस्तित्व 
नजर डाली एक बार 
सोचा अपने बारे में
इतना भी बुरा नहीं मैं 
जिसके साथ जुड़ा
उसका मूल्य बढ़ा 
मेरा मूल्यांकन तब हुआ 
अपनी नजर में भले ही शून्य 
लेकिन औरों की नजर में नहीं
वो तो अपने साथ मुझे जोड़ना चाहते हैं
भले ही स्वार्थ वश 
औरों का मूल्य बढ़ जाए मेरी संगति से 
इतना ही काफी है मेरी शून्यता के लिए 

Wednesday, 22 January 2025

खुशी ???

हम वह नहीं रहें 
जो हम होते थे कभी
बदलते रहे स्वयं को 
कभी दूसरों की खातिर 
कभी मजबूरी में 
कभी परिस्थितिवश 
इस बदलने की प्रक्रिया में कितना कुछ बदल गया
हमें एहसास ही नहीं हुआ 
आज सोचा तो लगा
हम वही तो नहीं 
गुरुर तो जाने कहाँ गायब
करते तो किस पर
स्वाभिमान के तो परख्च्चे उड़ते रहें
हम मन मसोस कर देखते रह गए 
सबको खुश करने के चक्कर में
न खुद खुश रह पाए 
न कोई और रह पाया
अब बदलना भी नहीं है 
न बदला लेना है 
हम जैसे हैं वैसे हैं
जिसको हमसे है गिला
न रखें हमसे कोई वास्ता
इसके सिवा कहने को हमारे पास कुछ नहीं
तुम खुश रहो यही दुआ है
हम भी खुश हो जाएगे 
सबको देखकर दूर से ही मुस्कराएंगे 

चलायमान

मैंने चलना सीखा धीरे धीरे 
गिरता रहा 
उठता रहा
बैठा नहीं बस चलता रहा
कुछ कदम ही सही
कभी इच्छा से 
कभी मजबूरी में
धीरे धीरे आगे बढ़ा
बेशक कुछ मुझसे बहुत आगे निकल गये
कुछ थक हार बैठ गए 
मैं नहीं रुका
चलने के सिवा कुछ था भी नहीं
आज भी चल ही रहा हूँ 
फर्क इतना सा
तब मजबूत आज कमजोर 
पैरों में शिथिलता 
हां एक बात अवश्य 
चलना नहीं छोड़ा मैंने 
विश्वास है 
जब तक जान 
तब तक चलायमान 

Tuesday, 21 January 2025

जब - जब गिरा

जब - जब गिरा 
नहीं उठाने आया कोई 
धक्का अवश्य देने की कोशिश रही
जब - जब उठा 
जब - जब उड़ा 
लोगों ने तब भी खींचा नीचे 
गिराने में मजा है शायद 
तभी तो ऐसा होता रहा
मन इतना बड़ा नहीं बना
दूसरों की तरक्की देख खुश हो 
आ जाते हैं खबर लेने
क्या चलता है 
दूसरों की जिंदगी में
अपने पर तो जोर नहीं
दूसरों में दखलअंदाजी 
यही है उनकी जीवनी 

Monday, 20 January 2025

दिल पर मत लो

दिल पर मत ले यार
कोई किसी का नहीं है
सब है मतलब के ठेकेदार 
जब तक मतलब तब तक तुम सा कोई नहीं
मतलब निकल गया तो पहचानते नहीं
इस रंग बदलती दुनिया में
कब रंग बदले भनक ही नहीं
सीने से लगा पीठ पर छुरा भोकने वालों की कमी नहीं
मुख पर मीठा - मीठा
पीठ पीछे बुराई का पिटारा 
चाहे कितना भी भला कर लो 
अपनी फितरत नहीं छोड़ेंगे 
मौका मिला तो डसने से नहीं चुकेगे 
इन आस्तीन के सांपों से बचकर रहना
कब जिंदगी में जहर घोल दें
कब कहर बन टूट पड़े 
इन्हें पहचान लो
दूरी बना लो 
सामने पड़े तो राम - राम कह लो 
बिना रुके अपने रास्ते निकल लो 

कुंभ नगरी में मोनालिसा

एक अप्सरा सी भी आई है
कुंभ गली में
नीली - नीली सी ऑखें
सावलां- सलोना रंग
निश्छल सा सौंदर्य 
सबको है लुभाती
पड़े है लोग उसके पीछे
मीडिया तो जी - जान से 
ऐसा लगता है 
पहली बार सौंदर्य के दर्शन 
सुन रहे हैं 
वह भाग रही है 
अपने को छुपा रही है
माला बेचने आई थी
रोजी - रोटी का सवाल 
वह भी हो गया मुश्किल 
सौंदर्य ही बाधा 
यह एक मोनालिसा नहीं
न जाने अनगिनत है
जिन्हें छुपाया जाता है
समाज की नजरों से बचाया जाता है
समाज की नजरों में सौंदर्य नहीं
वासना की झलक होती है 
वह औरत को शांति से जीने नहीं देता 
वह भी गरीब हो तो और भी 
डर लगता है 
वह मोनालिसा की हंसी छीन न ले 
ऑंखों में खौफ न भर दे 
निडर- निर्भीक को कमजोर न कर दें
यही नहीं हर मोनालिसा  सुरक्षित हो 
सरकार, समाज, परिवार सबको सुनिश्चित करना है 
सौंदर्य को सराहा जाए 
उसको खिलवाड़ न बनाया जाएं 

Sunday, 19 January 2025

पल दो पल

पल दो पल की जिंदगी
कुछ पल अपने लिए भी निकाल लो 
ऐसा न हो कि ये पल निकल जाए 
तुम ताकते रह जाओ 
फिर न आने वाला 
नहीं लौटता है पल
गुजर गया तो पीछे मुड़कर नहीं देखता 
हर पल मूल्यवान 
यह है उसको पता
तुमको भी यह बात हो अच्छी तरह पता 
मत करो देर 
लपक लो 
जी लो जी भर 
कल का क्या पता 
आज तो जी लो 

Saturday, 18 January 2025

हरदम याद रहे

पानी पत्थर पर निशान छोड़ गया
बरखा की कुछ मिट्टी को अंदर तक भिगा गई
उसका सीना चीर उसमें से हरियाली निकाल लाई 
बंजर और शुष्क धरती भी ऊपजाऊ हो लहलहा उठी
उर्जावान- उर्वरक हो गई 
लगी बांटने पूर्ण मन से 
कठोरता को कोमलता पीछे छोड़ गई 
उससे बाजी मार ले गई 
पत्थर ने पानी पर निशान न छोड़ा 
पानी ने ऐसा छोड़ा 
हरदम याद रहे ऐसा

Friday, 17 January 2025

मेरे चाचा

कभी-कभार लगता है यह होना भी ठीक है । मैं अपने परिचित के घर गई थी । दो दिन उनके यहां ठहरी थी कुछ काम के सिलसिले में । वे रिश्ते में चाचा लगते हैं बड़े खुशमिजाज और शानदार व्यक्तित्व के मालिक । किसी का भी स्वागत दिल खोलकर । मिलनसारिता के अद्भुत मिसाल 
मार्डन विचारधारा और शिक्षित 
मैं जब छोटी थी तो इतनी समझ नहीं थी । चाची को कहती थी ये तो मेरे चाचा के लायक नहीं है क्योंकि चाची सांवली भी थी ।वे बुरा नहीं मानती थी हंसकर कहती थी 
हां बछिया हमके घुरे में फेंक आवा
अब हंसी आती है कि रंग भेद से कितना ग्रसित है हम ।
गोवा रंग सर्व गुण संपन्नता का प्रमाण तो नहीं
खैर वह तो बचपन की बात रही
चाचा की विगत कुछ सालों से सुनने की शक्ति क्षीण हो गई है
हम कुछ कहना चाहते हैं वे सुन नहीं पाते 
आदमी जब सुनने में असमर्थ हो जाए तो बातचीत और विचार का आदान-प्रदान भी मुश्किल 
कई बार लाचारी से कहते हैं 
क्या करु मजबूर हो गया हूँ 
दुख होता है देखकर 
इस बार बात चल रही थी 
औरतों को आदत होती पुराने बीती को कहने की
चाची ने कुछ गुस्से में उनपर पिछली बातों का ताना मारा
वे कहकर अंदर चली गईं 
चाचा हंसकर बोलते हैं 
अच्छा है सुनाई नहीं पड़ रहा न समझ आया
कैसी विडंबना है कि 
अब इसको भी स्वीकार कर लेना 
सही है जब व्यक्ति कुछ नहीं कर पाता तब कहता है 
जो भी है अच्छा है 

भूल जाओ

कभी-कभार लगता है
सब भूल जाऊ 
अपने आप को खो जाऊ 
कुछ याद न रहें
न याद न उसकी टीस
तब वैसा भी क्या जीना 
यादें अच्छी भी तो हैं
उनको कैसे भूले 
उनसे ही जीवन में आशा और जोश
संख्या में भी वह भारी और ज्यादा
एक गलत को सौ अच्छे पर भारी कैसे होने दें
चलता रह रहा है
हिलोरे मार रहा है 
वह बातें वह यादें वह साथ
वह तो साथ ही है 
कुछ-एक को छोड़ दो 
जो पीड़ा देता हो 
फोड़ा होने पर पूरे शरीर को तो नहीं काट सकते 
उसको हटा दो 
मधुर यादों से लहलहाओ 
उनके साथ मुस्काओ 
बोझ नहीं ढोना है जीना है 
खुशी को अपनाओ 

90 घंटे काम तो फिर जीकर क्या ??

सुबह ने ली अंगड़ाई 
रात अपने घर गई 
प्रकृति जी भर खिलखिलाई 
चिड़िया भी मन भर चहचहाई 
मुर्गे ने भी जोर की बाग लगाई
सूरज ने अपना डेरा डाला
प्रकाश से जग जगमगाया 
अंधेरे को दूर भगाया
सब उठे करने लगे भागम-भाग 
हर कोई लगा काम पर
सुबह हंसी और बोली
मैं इसलिए तो रोज समय पर आती हूँ 
तुमको जगाती हूँ 
शाम होते ही चली जाती हूँ 
विश्राम करने को छोड़ जाती हूँ 
काम तो जरुरी है
साथ में आराम भी जरुरी है 
70 -90 घंटे काम करोगे 
तो क्या घंटा जीओगे 
जीने के लिए काम करना है
काम करने के लिए जीना नहीं
आखिर सब यही छोड़कर चल देना है
फुर्सत के पल निकाल लेना है
बच्चों संग मस्ती कर लेना है
दोस्तों संग ठहाके लगा लेना है
पैरेन्टस के साथ बतियाना है
पत्नी को जी भर प्रेम से निहार लेना है 
हर पल का लुत्फ उठाना है 

Thursday, 16 January 2025

कुंभ मेला

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, कुंभ मेला 12 वर्षों के दौरान चार बार मनाया जाता है. कुंभ मेले का आयोजन 4 तीर्थ स्थलों में होता है. ये स्थान हैं: उत्तराखंड में गंगा नदी पर हरिद्वार, मध्य प्रदेश में शिप्रा नदी पर उज्जैन, महाराष्ट्र में, गोदावरी नदी पर नासिक और उत्तर प्रदेश में गंगा, यमुना और सरस्वती तीन नदियों के संगम पर प्रयागराज. इस वर्ष कुंभ मेला 13 जनवरी, 2025 को प्रयागराज में शुरू हुआ है और यह 26 फरवरी 2025 तक चलेगा.

ऐसा कहा जाता है कि महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण जब इंद्र और देवता कमजोर पड़ गए, तब राक्षस ने देवताओं पर आक्रमण करके उन्हें परास्त कर दिया था. ऐसे में सब देवता मिलकर विष्णु भगवान के पास गए और सारा व्रतांत सुनाया. तब भगवान ने देवताओं को दैत्यों के साथ मिलकर समुद्र यानी क्षीर सागर में मंथन करके अमृत निकालने को कहा. ये दूधसागर ब्रह्मांड के आकाशीय क्षेत्र में स्थित है. सारे देवता भगवान विष्णु जी के कहने पर दैत्यों से संधि करके अमृत निकालने के प्रयास में लग गए. जैसे ही समुद्र मंथन से अमृत निकला देवताओं के इशारे पर इंद्र का पुत्र जयंत अमृत कलश लेकर उड़ गया. इस पर गुरु शंकराचार्य के कहने पर दैत्यों ने जयंत का पीछा किया और काफी परिश्रम करने के बाद दैत्यों ने जयंत को पकड़ लिया और अमृत कलश पर अधिकार जमाने के लिए देव और राक्षसों में 12 दिन तक भयानक युद्ध चला रहा. ऐसा कहा जाता है कि इस युद्ध के दौरान प्रथ्वी के चार स्थानों पर अमृत कलश की कुछ बूंदे गिरी थी. जिनमें से पहली बूंद प्रयाग में, दूसरी हरिद्वार में, तीसरी बूंद उज्जैन और चौथी नासिक में गिरी थी. इसीलिए इन्हीं चार जगहों पर कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है. यहीं आपको बता दें की देवताओं के 12 दिन, पृथ्वी पर 12 वर्ष के बराबर होते हैं. इसलिए हर 12 वर्ष में महाकुम्भ का आयोजन किया जाता है.

प्यारा है यह जग

यह दुनिया अच्छी लगती है
यह संसार प्यारा लगता है
हम इसे जी भर कर जीना चाहते हैं
डरता है इंसान मरने से 
चाहे लाख बुराई हो तब भी
आपदा कितनी भी हो
परिस्थिति कैसी भी हो 
हर बाधा को पार करता है
हर अभाव को सह जाता है
अगर उसे किसी से प्यार हो
जी जान लगा देता है
उसके न  होने से किसी को फर्क पड़ता है 
यह वह जानता है 
अपने लिए नहीं अपनो के लिए जीना चाहता है
यही तो माया है 
जिसमें फंसा जग सारा है 
नहीं चाहिए स्वर्ग का सुख 
पृथ्वी पर चाहिए अपनों का साथ 
महादेवी वर्मा जी की 
रहने दो हे देव मेरा मिटने का अधिकार 

Wednesday, 15 January 2025

ऊपर वाला मदारी

किसको दिखाए दिल अपना
किसको सुनाए अपने दिल का हाल 
हर हाल में जीना भी है
मुस्कराना भी है
शक्कर हर घर में भले न हो
नमक तो हर घर में 
छिड़कने वाले तैयार 
कब घाव लगे कब डाले
ऊपर से जिंदगी के तमाशे अलग
कभी फ्लॉप तो कभी हिट
कभी शून्य पर आऊट तो कभी छक्का 
इस पर कोई विश्वास नहीं
कब चढ़ाएं कब गिराएं 
अब समझ आ गई है इसकी आदत
बड़ा संभल कर चलना है
 फूंक-फूंक कर कदम उठाना है
वैसे पता तो यह भी है
हमारे हाथ में कुछ नहीं 
ऊपर वाला मदारी जो बैठा है
जैसे नचाएं वैसे नाचो 

वक्त वक्त की बात

वक्त वक्त की बात है
कभी हम सब कुछ थे
हमारी भी कुछ महत्ता थी
वक्त ने जो पलटा खाया
हम सब कुछ थे से शून्य पर आ गए 
अब तो हमारी उपस्थिति भी खलने लगी 
हमारा बोलना भी नागवार 
हम इन सबसे बेखबर 
समझ आया बहुत देर में 
अब भी वे हैं दिलों में
उनसे दूरी कैसे होगी
जिनके कांटा लगने पर भी चुभता हमें
वे भले न समझे हमें
हम तो उनको समझते रहे हैं अपना 
समझते रहे हैं और समझते रहेगे 

Tuesday, 14 January 2025

मकर संक्रान्ति की याद

वाकया बहुत पुराना है याद अभी भी ताजा है जब मैंने भी बनाए थे तील के लड्डू।सबको देखकर मैंने भी सोचा चलो बनाते है ।एक बड़े डेगची भर पानी चढ़ाया स्टोव पर फिर गुड़ डाला ।अब पानी तो खत्म होने का नाम नहीं ले रहा था ।कुछेक पांच किलो गुड़ धीरे धीरे डाल दिया जो गाँव से आया था ।मुंगफली -तील भी डाल दिया । जला जला कर थक गई तो पतिदेव को पता न चले तो डेगची को छिपा दिया । अगले दिन जब देखा तो वह तो पत्थर जैसे बन गया था । डेगची फेक नहीं सकती थी तो पड़ोस की चाची को बताया तो उन्होंने उसको थोड़ा गर्म किया तो छूटा उसके बाद सबने उसको तोड़ तोड़ कर खाया कहा कि यह तो पट्टी बन गया है स्वादिष्ट है । सामग्री तो पड़ी ही थी । अब भी वह पट्टी याद आती है जब तील के लड्डू देखती हूँ।

हमारे त्योहार

हर त्योहार हमसे कानाफूसी कर जाता है की उसकी आमद कैसे हुई!उसे हमारे पुरखे क्यों मनाते थे!उनका हमारे जीवन में कितने मायने हैं!आज खिचड़ी जो मौजूदा पीढ़ियों का महज एक तिल के लड्डूओं और खिचड़ी खाने का पर्व है! बस ऐसे ही आज का दिन हमें बरास्ते अतीत की पगडंडियों में लेकर चला गया यानी टोटल फ्लैशबैक!
उसी अतीत के न भूलने वाले पल!न भूलने वाला शब्द का इस्तेमाल इसलिए कि लगभग छः दशक गुजरने के बाद भी वो सभी वाक़्यात हूबहू आँखों मे तैर जाते हैं! तो आप सभी आत्मनों और मित्रों से मुखातिब है मेरी अतीत की खिचड़ी!
हमारे पूर्वांचल के खित्ते में मनाई जाने खिचड़ी का स्वरूप अखिल भारतीय  है।उत्तर में जम्मू में उतरैंन या माघी संगराद कहते हैं तो कश्मीरी इसे  शिशुर संक्रांत,हिमांचली इसे माघी,पंजाब व हरियाणा के लोगों की लोहड़ी,दक्षिण में आंध्र के निवासी इसे पेद्दा पंडुगा ,तमिलनाडु में इसे पोंगल, केरल में इसे मकर संक्रांति,कर्नाटक में इसे मकर संक्रमण ,पश्चिम में इसे उत्तरायण तो पूरब में झारखंड के लोगो का टुसू पर्व, बंगालियों की पौष संक्रांति,पूर्वोत्तर भारत इसे माघ बिहू के रूप में मानता है। हिंदुस्तान के पड़ोसी देश यथा नेपालियों की खिचड़ी संक्रांति,बंगलादेश मे पौष संक्राति,थाईलैंड का सौंगकरब व म्यानमार का थिंयान के नाम से इस पर्व को जानते हैं।लब्बोलुआब ये की खिचड़ी यानी मकर संक्रांति पूर्णरूप से एक वैज्ञानिक,भौगोलिक तथ्यों,ज्योतिषीय  गणनाओ की सटीक होने गवाही देता हुआ पौराणिक आख्यानों से लदा फदा एक आध्यात्मिक त्योहार जिसमें बहनों बेटियों और बुआ के मायके के रिश्तों की गांठ को एक अदद साड़ी और कुछ तिल की बनी मिठाइयों की मिठास से और मजबूत करता हुआ सम्भवतःएक मात्र त्योहार जहां पोप ग्रेगरी का कलेंडर  और हमारे पञ्चाङ्ग एकस्वर,एकलय में बोलते हैं; 14 जनवरी मतलब मकर संक्रांति! 
खिचड़ी! सबसे पहले तो याद दिलाती एक दम सबेरे उठते ही नहाना,उसके बाद कौड़े पर बैठ कर अपने हमजोली भाई बहनों के साथ लाई,चूरा,गट्टाऔर ढूंढा के ब्रेकफास्ट का मजा! हम लोगो जिस पीढ़ी के नुमाइंदे हैं उसकी दो ख़ासियत थी ,संयुक्त परिवार का कठोर अनुशासन और त्योहारों पर स्नेह और परवाह की बेशुमार फुहार,उसी फुहार से झरता बड़का बाबू का हुक्म की "काल्ह खिचड़ी ह,सबेरे कुल जाना ट्यूबेल पर नहा लिहा लोग,ओहिजे चाउर व तिल रही ओके छू के ही कुछ मुँह में डलिहा लोग।"
इस आदेश का सभी अक्षरशः पालन करते हुए उस दिन का मजा अब कोई पिकनिक नहीं दे सकती है।उसके बाद आना शुरू होता रिश्तदारों का हमारे सभी चाची,ककियों के मायके से चूड़ा,ढूंढा, दही के साथ साथ उनकी समझ मे जो भी कोई अच्छा, महीन और गमकौआ चावल होता वो भी हमारे ममेरे भाई,साले,ससुर या पत्नी के बाबा लोग भी आते थे।वो दिन पूरा रिश्तों की महक और कहकहों से भरा हुआ रहता।रिश्तदारों के अलावां खिचड़ी पर जो भी दुआर पर आता उसे नया चावल चूरा दान या यूं कहिये की जो भी नए अन्न के रूप में प्राप्त हुआ उसे हम बांट कर खाएं की भावना खिचड़ी के साथ जुड़ी थी।हमारी बेटियों, बहन,या फुआ लोगों के यहां कहार बहंगी में खिचड़ी यानी जो भी ज़ुरा जुटा वो सब मिलाकर और पहनने के कपड़े;ये सब उस रयायत या उस सोच का हिस्सा थे कि तुम्हारे खाने पहनने और कुशलता की परवाह से हम विमुख नहीं है और हर आने वाले साल की खिचड़ी इस दायित्वबोध को और गझिन करती जाती थी।इस बात की एकदम पक्की गारंटी थी कि खिचड़ी में तो बेटियों का हाल,चाल तो जाकर ही लिया जाता है वो भी हमारे यहां एक कहावत है कि बेटियों के घर कभी छूंछे(खाली हाथ) नहीं जाते हैं,इसको भी बदस्तूर निभाया जाता था। अब मोबाइल और डिजिटल बैंकिंग ने इस उत्तरायण की ऊष्मा को ही लील लिया।
 अब पकड़ते हैं खिचड़ी का वैज्ञानिक और पौराणिक छोर! हमारे सूर्य देवता प्रत्येक राशि मे भ्रमण करते हैं तो खिचड़ी के दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं।मकर राशि का स्वामी शनि महाराज हैं और वो सूर्य के पुत्र भी हैं तो मकर संक्रांति पिता पुत्र के मिलन वेला का पर्व भी है।इसी दिन प्रयागराज में माघ मेला या कुम्भ जिसकी चर्चा हम कभी अलग से कर लेंगे पर बाबा तुलसीदास की एक चौपाई यहां मौजू है#माघ मकर गति रवि जब होई, तीरथ पतिहिं आव सब कोई।
देव दनुज किन्नर नर श्रेनी।सादर मज्जहिं सकल त्रिवेनी।# 
इस खिचड़ी पर्व का बहुत गहरा नाता माँ गंगा से भी जुड़ा है आज ही के दिन गंगा जी कपिल मुनि के आश्रम में भगीरथ के पुरखों को तारते हुए सागर से मिली थी।तभी से काकद्वीप के पास गंगासागर में एक विशाल मेला हमे विष्णु जी के चरण, ब्रह्मा जी का कमण्डल, शिव जी की जटा,भगीरथ जी का भगीरथ प्रयास; 2525 किलोमीटर की पद यात्रा जो गंगोत्री से गंगासागर तक हुई थी उसकी स्मृति को हर साल और प्रगाढ़ करता है।कभी गंगासागर जाना बहुत दुर्गम था,एक कहावत थी #सारे तीरथ बार बार ,गंगासागर एक बार# पर अब आधुनिक स्टीमरों ने इस यात्रा को आम आदमी की हद में ला दिया है।वो मेला मुझे गंगा माई के साथ अपनी माई की भी याद दिला देता है,उसके चेहरे पर छाई अप्रतिम खुशी!मेरे लिए आज भी  एक अनमोल थाती है।
 आज ही के दिन को गंगापुत्र भीष्म ने अपनी मृत्यु का दिन चुना था।एक कथा के अनुसार संक्रान्ति नामक देवी ने शनकाशूर नामक एक असुर का वध किया था।एक कथा के अनुसार इसी दिन भगवान विष्णु ने असुरों का नाश किया था,इसी लिए मकर संक्रांति को विष्णु भगवान के विजय के रूप में भी मनाते हैं।
अंत  में रिश्तों की ऊष्मा,भरोसे व परवाह का प्रतीक ये पर्व आप सभी के दिलों में सम्बन्धों को और गाढ़ा करे इसी कामना के साथ आप सभी को हैप्पी खिचड़ी!💐
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Monday, 13 January 2025

मेरी जिंदगी से वार्तालाप

मैं रोती रही 
जिंदगी को बोझ मान जीती रही
सबके सामने गम का इजहार करती रही
कहती रही जिंदगी रुठी है मुझसे 
अचानक जिंदगी सामने आई
कहने लगी 
रुठी हो तो मनाओ मुझे
मैं तुम्हारी हूँ तो मनाना भी तुम्हें ही है
कोई बेगाना न आएगा 
अब तो मैं चली रुठ कर
मैंने पकड़ा उसको कस कर
नहीं मैं तुमको ऐसे नहीं जाने दूंगी 
वह मुस्कराई धीमे से 
मैं भी हंसी खिलखिला कर
कही कान में धीरे से 
ऐसे ही हंसती रहो जी भर कर
अच्छी लगती हो 
वादा करो मुझसे 
प्यार करो जी भर कर 
छोड़ो सब बेकार की बातें 
अपनी जिंदगी जीओ 
प्रपंच में क्यों पड़ना 
हर हाल में खुश रहना 

Sunday, 12 January 2025

हम धरती वाले

यह दौर अलग है
वह दौर भी ऐसा न था
जिंदगी तब दौड़ती न थी
कभी - कभी सुस्ताती भी थी
कुछ बातें कर लेती थी
कुछ कहकहे लगा लेती थी
दिल से भी काम लेती थी
भावनाओं को हिलोरे लेने देती थी
अपने मन का भी कर लेती थी
दूसरों का भी सुन लेती थी
सब मिल - बांट लेते थे
हर सुख- दुख - चिंता 
इस दौर में दिमाग,  दिल पर हावी है
बस मतलब से ही रिश्ता 
बोलने में औपचारिकता 
बोलना तो दूर हंसना भी सोच - समझकर 
हम कहाँ से चले 
कहाँ आ पहुंचे 
सही भी है 
जब चांद और मंगल पर पहुँच रहा है
फिर धरती वालों की कदर कैसे ??

कर भला तो हो भला

बात बचपन की है 
लड़कपन बुद्धि 
मां का स्वभाव था 
लोगों की सहायता करना
भले कोई माने या न माने
मैं उसको गुस्सा करती रहती थी कि क्या समाज सेवा करती है कोई एहसान भी नहीं मानता
वह हंसकर कहती 
अरे वह न समझे तो क्या
कोई दूसरा मेरे बच्चों की मदद करेंगा 
यह बात सही भी साबित हुई 
न जाने कितने अंजान लोगों ने मदद की है 
सही है 
कर भला तो हो भला 

Friday, 10 January 2025

जरा सा खुद को

जरा खुद को शीशे में निहार लूं
चेहरे को सजा लूं
चांदी वाले केशों को संवार लूं
रंगों से प्यार कर लूं
चटक रंगों को अपना लूं
सुंदर वस्त्र धारण कर लूं
स्वयं पर इतरा लूं
अपने सौंदर्य को देख झूम लूं
अपनी आवाज का जादू बिखेर दूं
जरा रुक कर
अपनी बढ़ती उम्र का सम्मान कर लूं 
हर पल को जी भर जी लूं 

Thursday, 9 January 2025

अपना देखना

उसने यह किया
उसने वह किया
उसके पास यह है 
उसके पास वह है 
उसने ऐसा कहा 
क्यों कहा 
उसने वैसा कहा
इसने - उसने के चक्कर छोड़ो 
इनसे बाहर निकल स्वयं को देखो
अपने को निखारो
हमने क्या किया
हम क्या कर रहे हैं
हमें क्या करना है
यह सोच आगे बढ़ो 
छोटी सोच नहीं बड़ी सोच रखो
बड़ा बनना है
बड़ा काम करना है
इधर उधर के झमेले में नहीं फंसना है

Wednesday, 8 January 2025

वह मंजर

आशियाना जल रहा था 
कुछ लोग सांत्वना दे रहे थे
कुछ लोग चिल्ला रहे थे 
कुछ पानी डालने की कोशिश कर रहे थे 
कुछ हाथ - पैर मार रहे थे कि कैसे बचाया जाए 
कुछ वीडियों शूट कर रहे थे 
कुछ खड़े हो तमाशा देख रहे थे 
कुछ देखते - देखते आगे बढ़ रहे थे 
शामिल और उपस्थित तो सभी थे 
जब सब ठंडा हो जाएगा
इसमें से कुछ याद रहेगे 
कुछ भूला दिए जाएगे
लेकिन मुश्किल घड़ी से निकल जाने के बाद
हमारा भी नजरिया वैसा नहीं रहेगा 
सामने आने पर सब मंजर घूम जाएगा 
कि कौन , कौन सी भूमिका निभा रहा था 

Tuesday, 7 January 2025

शायद यही संसार है

मैंने कुछ कहा
उन्होंने कुछ समझा
कोई  समझने को तैयार नहीं 
आखिर हार मान स्वयं चुप हो गई 
सब समय पर छोड़ दिया
ऐसी भी स्थिति आती है
कभी-कभार निर्दोष भी दंड भुगतते हैं
वह गलती तुमने की ही नहीं फिर भी गलत ठहरना
क्या करें 
बड़ी असमंजस की स्थिति
दूसरों से लड़ भी लें 
अपनों का मुकाबला कैसे करें 
बोल कर नाता तोड़े 
मुख पर लगाम लगा कर रहें 
मूकदर्शक बने रहें 
शायद यही संसार है 

Monday, 6 January 2025

उम्र के साथ चल पड़े

बालों पर सफेदी आ रही है 
आने दो 
चेहरे पर झुर्रिया पड़ रही है 
पड़ने दो 
दांत टूट रहे हैं
टूटने दो 
हाथ- पैर लड़खड़ा रहे हैं 
होने दो 
खाना अब पहले जैसा पचता नहीं
कोई बात नहीं
नींद अब कम आती है 
आने दो 
उम्र का पड़ाव है यह तो
आप अब बच्चें नहीं सीनियर सिटिजन की श्रेणी में आते हैं
बहुत से फायदे भी हैं
थोड़ा रंग - रोगन कर ले शरीर पर
सुंदर दिखने के लिए 
न करें तो कोई बात नहीं
जो है उसे स्वीकार कर लें
उम्र के साथ चल पड़े 

Sunday, 5 January 2025

उजाले का इंतजार

सिंदूरी आभा ने मन मोह लिया
सुबह- सुबह ही मन खिल गया
क्या लालिमा लेकर निखरा है
रात भर जो अंधकार में रहा है 
अंधेरा हमेशा रहता नहीं
उसकी सुबह भी होती है
कोहरा कितना भी घना हो 
छूटता जरूर है
बस इंतजार करना है 
घड़ी की सुई का 
कब आगे बढ़ती है 
एक जगह स्थिर नहीं रहेंगी
गोल - गोल घूमती 
साथ में सबको घुमाती 
चल सको  तो चलो 
मेरे साथ हो लो 
उजाला भी तुम्हारें द्वार पर दस्तक देगा 

अब भली खामोशी ही

खामोश रहना सीख लिया 
अब बात बढ़ाव का मन नहीं
जब कोई न मुझे 
उलझाव ठीक नहीं 
बात बताते - बताते थक गए 
हार कर आखिर चुप हो गए 
मान लिया तुम ही सही 
लेकिन पूरे गलत तो हम भी नहीं
हुई होगी गलतियां
उसका हमें भी है गिला 
उसकी सजा भी मिली ही 
नहीं तो हम वह शख्स नहीं 
जो किसी के आगे झुके 
स्वाभिमान से परिपूर्ण 
जो डोलता ही रह गया 
हर किसी के सामने 
हम बिना गलत के भी साबित होते रहें गलत
उसको भी स्वीकार कर लिया 
प्यार से भरे जो थे 
वह हिलोरे मार रहा था
हम हिचकोले खा रहे थे
हम मझधार में फंसे थे
हाथ- पैर मार रहे थे
जीवन नैया जो किनारा ढूंढ रही थी
साथ ही साथ आईना भी दिखा रही थी
बहुत कुछ देखा
बहुत कुछ समझा
अब भली खामोशी ही 

Saturday, 4 January 2025

जिंदगी फिर न मिलेगी दुबारा

कब तक कोमल बने रहोगे 
कब तक पीड़ा पीते रहोगे
कब तक चुप रहोगे 
कब तक अपमान सहोगे 
कब तक दिखावा करते रहोगे 
कब तक ढोल पीटते रहोगे 
कब तक एकतरफा रिश्ता निभाते रहोगे 
कब तक गलत का समर्थन करोगे 
कब तक क्रोध को दबाकर रखोगे
कब तक शालीनता का कवच धारण करते रहोगे 
कब तक सबको खुश रखने की कोशिश करते रहोगे 
आखिर कब तक ??
कहीं ऐसा न हो 
एक दिन यह मन का गुबार फूट पड़े
सब ढह जाए 
इससे पहले ही संभल जाओ 
जीवन तुम्हारा 
जीने का हक है ना
बस दूसरों का जीवन जीते रहो
अपना कब जीओगे 
अपने लिए भी जी लो 
खुल कर मनमौजी - मनमर्जी कर लो 
जिंदगी फिर न मिलेगी दुबारा 

Thursday, 2 January 2025

एक जिंदगी से मुलाकात

कल एक जिंदगी से सामना हुआ 
वह गाड़ी चला रहा था साथ ही अपनी गाथा सुना रहा था
बातचीत तो यू ही समय काटने को शुरु हुई थी
पर यहाँ तो जिंदगी का फसाना बया हो रहा था
नौजवान कोई बीस वर्ष का जिम्मेदार जैसे पचास का
पिता नहीं रहें 
मां और तीन छोटे भाई- बहन 
गांव से आया शहर कमाने 
मां की हालत देखी नहीं जाती थी 
उसको सुख जो देना था तो कुछ कुर्बानी तो देनी थी 
पढ़ाई छोड़कर राह पकड़ ली काम की 
खाना नहीं खाया लेकिन मां को कहना कि पेट भर खाया 
ऑंखों में आंसू पर मुख पर हंसी लाकर बात करना 
बड़ी ईमारत के सामने खड़े हो कहना
मैं यहां काम करता हूँ 
मां ठहरी अंजान 
शहर में बेटे के मजे हैं
यह नहीं पता यह किसी सजा से कम नहीं
सर पर छत नहीं 
रोटी का ठिकान नहीं
काम की तो कमी नहीं
रहने को फुटपाथ 
कहीं न कहीं तो इंतजाम हो ही जाएगा 
पैसे कमाकर भेजेगा तो सबका जीवन सुधर जाएगा 
मेहनत करने का दम रखता 
आखिर बात खत्म 
गंतव्य जो आ गया था
गाड़ी से उतरते सोच रहे थी 
इसने मुझे तो पहुंच दिया
यह अपनी मंजिल पर पहुंचेगा या नहीं 

Wednesday, 1 January 2025

यही होता है

उम्र की दीवार की एक ईट और गिर पड़ी
एक साल और आगे बढ़ गया
साल दर साल यही हो रहा
उम्र की दहलीज पर हम खड़े देखते रहें
जश्न मनाते रहे 
किसी के जाने का 
किसी के आने का 
वक्त न थमा न थमेगा 
जब तक हमारे साथ 
तब तक यह जारी रहेगा 

कहानी भगवान- मनुष्य की

#भक्ति_कथा 
                   🍀 भगवान की दुविधा 🍀

एक बार भगवान दुविधा में पड़ गए! कि कोई भी मनुष्य जब मुसीबत में पड़ता है, तब मेरे पास भागा-भागा आता है और मुझे सिर्फ अपनी परेशानियां बताने लगता है,मेरे पास आकर कभी भी अपने सुख या अपनी संतुष्टि की बात नहीं करता मेरे से कुछ न कुछ मांगने लगता है!

अंतत:  भगवान ने इस समस्या के निराकरण के लिए देवताओं की बैठक बुलाई और बोले- कि हे देवो, मैं मनुष्य की रचना करके कष्ट में पड़ गया हूं। कोई न कोई मनुष्य हर समय शिकायत ही करता रहता हैं, जबकी मै उन्हे उसके कर्मानुसार सब कुछ दे रहा हूँ। फिर भी थोड़े से कष्ट मे ही मेरे पास आ जाता हैं। जिससे न तो मैं कहीं शांति पूर्वक रह सकता हूं, न ही  शास्वत स्वरूप में रह कर साधना  कर सकता हूं। आप लोग मुझे कृपया ऐसा स्थान बताएं, जहां मनुष्य नाम का प्राणी कदापि न पहुंच सके।

प्रभु के विचारों का आदर करते हुए देवताओं ने अपने-अपने विचार प्रकट करने शुरू किए। गणेश जी बोले- आप हिमालय पर्वत की चोटी पर चले जाएं। भगवान ने कहा- यह स्थान तो मनुष्य की पहुंच में हैं। उसे वहां पहुंचने में अधिक समय नहीं लगेगा। इंद्रदेव ने सलाह दी- कि  आप किसी महासागर में चले जाएं। वरुण देव बोले- आप अंतरिक्ष में चले जाइए।

भगवान ने कहा- एक दिन मनुष्य वहां भी अवश्य पहुंच जाएगा। भगवान निराश होने लगे थे। वह मन ही मन सोचने लगे- “क्या मेरे लिए कोई भी ऐसा गुप्त स्थान नहीं हैं, जहां मैं शांतिपूर्वक रह सकूं"।

अंत में सूर्य देव बोले- प्रभु! आप ऐसा करें कि मनुष्य के हृदय में बैठ जाएं! मनुष्य अनेक स्थान पर आपको ढूंढने में सदा उलझा रहेगा, क्योंकि मनुष्य बाहर की प्रकृति की तरफ को देखता है दूसरों की तरफ को देखता है खुद के हृदय के अंदर कभी झांक कर नहीं देखता इसलिए वह यहाँ आपको कदापि तलाश नहीं करेगा। 

करोड़ों में कोई एक जो आपको अपने ह्रदय में  तलाश करेगा  वह आपसे शिकायत करने लायक नहीं रहेगा  क्योंकि उसकी बाहरी इच्छा शक्ति खत्म हो चुकी होगी ईश्वर को सूर्य देव की बात पसंद आ गई। उन्होंने ऐसा ही किया और भगवान हमेशा के लिए मनुष्य के हृदय में जाकर बैठ गए।

उस दिन से मनुष्य अपना दुख व्यक्त करने के लिए ईश्वर को मन्दिर, पर्वत पहाड़ कंदरा गुफा ऊपर, नीचे, आकाश, पाताल में ढूंढ रहा है पर वह मिल नहीं रहें हैं।
परंतु मनुष्य कभी भी अपने भीतर ईश्वर को ढूंढने की कोशिश नहीं करता है  
इसलिए मनुष्य "हृदय रूपी मन्दिर" में बैठे हुए ईश्वर को नहीं देख पाता और ईश्वर को पाने के चक्कर में दर-दर घूमता है पर अपने  ह्रदय के दरवाजे को खोल कर नहीं देख पाता..!!

*कहानी से सीखः-*
“हृदय रूपी मंदिर” में बैठे हुए ईश्वर को देखने के लिए “मन रूपी द्वार” का बंद होना अति आवश्यक है, क्योंकि “मन रूपी द्वार” संसार की तरफ़ खुला हुआ है और “हृदय रूपी मंदिर” की ओर बंद है।

वक्त की नियामत

वक्त आता है
वक्त जाता है
हमें बहुत कुछ सिखाता है
हर बार कुछ नया कर जाता है
हर बार कुछ सरप्राइज दे जाता है
हम सोचते कुछ होता कुछ 
हम एक समय उसको कोसते 
बाद में उसी के लिए अच्छा भी कहते 
वक्त हमारी कहाँ सुनता
वह तो अपनी ही करता जाता 
वक्त हमारे अनुसार नहीं चलता
वह अपनी इच्छानुसार हमें चलाता 
जो करता है अच्छा ही करता
हम नहीं जानते हमारा भला किसमें
वक्त को भलीभाँति पता 
वक्त कभी न रुकता न ठहरता 
उसका पहिया चलता ही रहता 
उसके साथ चल दो 
न चल सके तो वह आगे चल ही देगा 
वक्त नहीं किसी का सगा 
जिसने उसका किया सम्मान 
उसको ही उसने अपनी नियामत बख्शा

HAPPY NEW YEAR

कुछ ख्वाब कुछ ख्वाहिश कुछ उम्मीद 
लेकर साथ आए हो तुम 
नववर्ष में नया कुछ हो
मन प्रफुल्लित और उल्लसित हो 
प्रभात की किरण से कण - कण प्रकाशित हो 
संबंधों में मधुरता , दिल में विश्वास हो 
हमारे साथ- साथ चलना 
हम पर आशिर्वाद बनाए रखना 
अपनों के संग हंसे - खिलखिलाएं 
जीवन का सुमधुर संगीत सुनाए 
ज्यादा नहीं बस मन की खुशी मिले 
बदलाव तो अवश्य भांवि है
जीवन का यही तो मर्म है 
अपने न बदले 
उनका स्नेह कायम रहे
ईश्वर का आशिर्वाद रहें 
जिंदगी गुजरती जाएंगी 
तुम तो आओगे और जाओगे 
अपनी यादें छोड़ जाओगे 
हमारी झोली में भी कुछ खुशियां भर जाओगे 
हम जब तक रहेगें
तब तक तुम्हें याद करेंगे 
हर वर्ष की अपनी देन अपनी विशिष्टता 
तुम क्या दोगे 
हम भी देखेंगे 
अभी तो नव आशा संचार कर रही 
अपने नववर्ष का मन से स्वागत कर रही 
दिल है कि मानता नहीं
झूम - झूम कह रहा 
      HAPPY NEW YEAR