हर त्योहार हमसे कानाफूसी कर जाता है की उसकी आमद कैसे हुई!उसे हमारे पुरखे क्यों मनाते थे!उनका हमारे जीवन में कितने मायने हैं!आज खिचड़ी जो मौजूदा पीढ़ियों का महज एक तिल के लड्डूओं और खिचड़ी खाने का पर्व है! बस ऐसे ही आज का दिन हमें बरास्ते अतीत की पगडंडियों में लेकर चला गया यानी टोटल फ्लैशबैक!
उसी अतीत के न भूलने वाले पल!न भूलने वाला शब्द का इस्तेमाल इसलिए कि लगभग छः दशक गुजरने के बाद भी वो सभी वाक़्यात हूबहू आँखों मे तैर जाते हैं! तो आप सभी आत्मनों और मित्रों से मुखातिब है मेरी अतीत की खिचड़ी!
हमारे पूर्वांचल के खित्ते में मनाई जाने खिचड़ी का स्वरूप अखिल भारतीय है।उत्तर में जम्मू में उतरैंन या माघी संगराद कहते हैं तो कश्मीरी इसे शिशुर संक्रांत,हिमांचली इसे माघी,पंजाब व हरियाणा के लोगों की लोहड़ी,दक्षिण में आंध्र के निवासी इसे पेद्दा पंडुगा ,तमिलनाडु में इसे पोंगल, केरल में इसे मकर संक्रांति,कर्नाटक में इसे मकर संक्रमण ,पश्चिम में इसे उत्तरायण तो पूरब में झारखंड के लोगो का टुसू पर्व, बंगालियों की पौष संक्रांति,पूर्वोत्तर भारत इसे माघ बिहू के रूप में मानता है। हिंदुस्तान के पड़ोसी देश यथा नेपालियों की खिचड़ी संक्रांति,बंगलादेश मे पौष संक्राति,थाईलैंड का सौंगकरब व म्यानमार का थिंयान के नाम से इस पर्व को जानते हैं।लब्बोलुआब ये की खिचड़ी यानी मकर संक्रांति पूर्णरूप से एक वैज्ञानिक,भौगोलिक तथ्यों,ज्योतिषीय गणनाओ की सटीक होने गवाही देता हुआ पौराणिक आख्यानों से लदा फदा एक आध्यात्मिक त्योहार जिसमें बहनों बेटियों और बुआ के मायके के रिश्तों की गांठ को एक अदद साड़ी और कुछ तिल की बनी मिठाइयों की मिठास से और मजबूत करता हुआ सम्भवतःएक मात्र त्योहार जहां पोप ग्रेगरी का कलेंडर और हमारे पञ्चाङ्ग एकस्वर,एकलय में बोलते हैं; 14 जनवरी मतलब मकर संक्रांति!
खिचड़ी! सबसे पहले तो याद दिलाती एक दम सबेरे उठते ही नहाना,उसके बाद कौड़े पर बैठ कर अपने हमजोली भाई बहनों के साथ लाई,चूरा,गट्टाऔर ढूंढा के ब्रेकफास्ट का मजा! हम लोगो जिस पीढ़ी के नुमाइंदे हैं उसकी दो ख़ासियत थी ,संयुक्त परिवार का कठोर अनुशासन और त्योहारों पर स्नेह और परवाह की बेशुमार फुहार,उसी फुहार से झरता बड़का बाबू का हुक्म की "काल्ह खिचड़ी ह,सबेरे कुल जाना ट्यूबेल पर नहा लिहा लोग,ओहिजे चाउर व तिल रही ओके छू के ही कुछ मुँह में डलिहा लोग।"
इस आदेश का सभी अक्षरशः पालन करते हुए उस दिन का मजा अब कोई पिकनिक नहीं दे सकती है।उसके बाद आना शुरू होता रिश्तदारों का हमारे सभी चाची,ककियों के मायके से चूड़ा,ढूंढा, दही के साथ साथ उनकी समझ मे जो भी कोई अच्छा, महीन और गमकौआ चावल होता वो भी हमारे ममेरे भाई,साले,ससुर या पत्नी के बाबा लोग भी आते थे।वो दिन पूरा रिश्तों की महक और कहकहों से भरा हुआ रहता।रिश्तदारों के अलावां खिचड़ी पर जो भी दुआर पर आता उसे नया चावल चूरा दान या यूं कहिये की जो भी नए अन्न के रूप में प्राप्त हुआ उसे हम बांट कर खाएं की भावना खिचड़ी के साथ जुड़ी थी।हमारी बेटियों, बहन,या फुआ लोगों के यहां कहार बहंगी में खिचड़ी यानी जो भी ज़ुरा जुटा वो सब मिलाकर और पहनने के कपड़े;ये सब उस रयायत या उस सोच का हिस्सा थे कि तुम्हारे खाने पहनने और कुशलता की परवाह से हम विमुख नहीं है और हर आने वाले साल की खिचड़ी इस दायित्वबोध को और गझिन करती जाती थी।इस बात की एकदम पक्की गारंटी थी कि खिचड़ी में तो बेटियों का हाल,चाल तो जाकर ही लिया जाता है वो भी हमारे यहां एक कहावत है कि बेटियों के घर कभी छूंछे(खाली हाथ) नहीं जाते हैं,इसको भी बदस्तूर निभाया जाता था। अब मोबाइल और डिजिटल बैंकिंग ने इस उत्तरायण की ऊष्मा को ही लील लिया।
अब पकड़ते हैं खिचड़ी का वैज्ञानिक और पौराणिक छोर! हमारे सूर्य देवता प्रत्येक राशि मे भ्रमण करते हैं तो खिचड़ी के दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं।मकर राशि का स्वामी शनि महाराज हैं और वो सूर्य के पुत्र भी हैं तो मकर संक्रांति पिता पुत्र के मिलन वेला का पर्व भी है।इसी दिन प्रयागराज में माघ मेला या कुम्भ जिसकी चर्चा हम कभी अलग से कर लेंगे पर बाबा तुलसीदास की एक चौपाई यहां मौजू है#माघ मकर गति रवि जब होई, तीरथ पतिहिं आव सब कोई।
देव दनुज किन्नर नर श्रेनी।सादर मज्जहिं सकल त्रिवेनी।#
इस खिचड़ी पर्व का बहुत गहरा नाता माँ गंगा से भी जुड़ा है आज ही के दिन गंगा जी कपिल मुनि के आश्रम में भगीरथ के पुरखों को तारते हुए सागर से मिली थी।तभी से काकद्वीप के पास गंगासागर में एक विशाल मेला हमे विष्णु जी के चरण, ब्रह्मा जी का कमण्डल, शिव जी की जटा,भगीरथ जी का भगीरथ प्रयास; 2525 किलोमीटर की पद यात्रा जो गंगोत्री से गंगासागर तक हुई थी उसकी स्मृति को हर साल और प्रगाढ़ करता है।कभी गंगासागर जाना बहुत दुर्गम था,एक कहावत थी #सारे तीरथ बार बार ,गंगासागर एक बार# पर अब आधुनिक स्टीमरों ने इस यात्रा को आम आदमी की हद में ला दिया है।वो मेला मुझे गंगा माई के साथ अपनी माई की भी याद दिला देता है,उसके चेहरे पर छाई अप्रतिम खुशी!मेरे लिए आज भी एक अनमोल थाती है।
आज ही के दिन को गंगापुत्र भीष्म ने अपनी मृत्यु का दिन चुना था।एक कथा के अनुसार संक्रान्ति नामक देवी ने शनकाशूर नामक एक असुर का वध किया था।एक कथा के अनुसार इसी दिन भगवान विष्णु ने असुरों का नाश किया था,इसी लिए मकर संक्रांति को विष्णु भगवान के विजय के रूप में भी मनाते हैं।
अंत में रिश्तों की ऊष्मा,भरोसे व परवाह का प्रतीक ये पर्व आप सभी के दिलों में सम्बन्धों को और गाढ़ा करे इसी कामना के साथ आप सभी को हैप्पी खिचड़ी!💐
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