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Monday, 31 January 2022
मेरी मुठ्ठी में जो समाएं
महात्मा गांधी
पैसा ओ पैसा
बापू को बख्श दो
Sunday, 30 January 2022
महात्मा गाँधी
अपना
भूलना
Saturday, 29 January 2022
स्वभाव का रंग
पानी पेट का सवाल है भाई
मेहमान ही समझो
रिश्तों की अहमियत
Friday, 28 January 2022
ऐ सडक
ये मेरी प्यारी ऑखें
Thursday, 27 January 2022
सलाह
Wednesday, 26 January 2022
constitution of india
हमारा तिरंगा
परमानंद का आनंद
Happy Republic day
मगरमच्छ के ऑसू
ऑसू की एक अपनी अहमियत होती है
बहुत संवेदनशील होता है यह ऑसू
जहाँ शब्द असमर्थ हो जाता है
वहाँ यह काम कर जाता है
भावनाओं की अभिव्यक्ति का सबसे अच्छा उदाहरण
खुशी हो या गम
यह हमेशा साथ निभाते हैं
सब कोई साथ छोड़ दे
पर यह नहीं छोड़ता
आजीवन साथ निभाता है
मन हल्का कर जाता है
सच्चाई छिपी होती है इसमें
हाँ यह दिगर बात है
लोगों ने इसको भी नहीं छोड़ा
इसका भी अवमूल्यन किया
इसका सहारा लेकर लोगों की भावनाओं से खेला
उनको धोखा देकर अपना उल्लू सीधा किया
स्वार्थ के लिए
झूठमूठ का अपनापन जताने के लिए इसका सहारा
लोग इनके झांसे में आ जाते हैं
तब ऐसे मगरमच्छों के ऑसू को देख मत भावनाओं में बह जाएं
पहचाने
कौन असली और कौन नकली
बडा पवित्र है ऑसू
यही तो हमारा अपना है
हर किसी के सामने इसे न बहाए
बहुत अनमोल है संभाल कर रखें
इंसान के रूप में जो मगरमच्छों का बोलबाला है
उनसे दूर रहिए
सच्चाई को पहचानिए
बहुत जरूरी है
ऑसू की परख करना
जो लोग मगरमच्छ के ऑसू बहाते हैं
उनसे सतर्कता बरते
दूरी बना कर रखें।
Tuesday, 25 January 2022
बेटी तुम जहाँ रहो खुश रहो
मेरी आवाज ही मेरी पहचान है
जिंदगी की अनिश्चितता
Monday, 24 January 2022
सतीश तुझमें कुछ अजीब बात थी
गिरगाॅव की आर्यन पाठशाला से देनावाडी की चाल में कुछ खास बात थी ।
तू वहाँ से जहाँ तक पहुंचा यह कोई साधारण नहीं शानदार बात थी ।
माटुंगा का कट्टा , पोद्दार काॅलेज का अड्डा , ए बी वी पी का
एंजेडा
स्टूडेंट पॉलिटिक्स मे तेरी ठाठ थी
सतीश तुझमें कुछ अजीब बात थी ।
जीवन बीमा को ज्वाइन करना
916 में तेरा आना
सब सीनियर के बीच अपनी एक अलग राह बनाना
ए बी एम बनने की ख्वाहिश जताना , एक अलग बात थी
सतीश तुझमें कुछ अजीब बात थी ।
जवानी में ही सफेदी सर पर लहराना
उम्र तीस की और पैंतालीस की परिपक्वता दिखाना
सबके दिल में धीरे-धीरे उतर जाना
हर एक को अपना बनाना
हर काम को प्यार से करवाना
हर क्लोंजिग में अल्पोहार खिलवाने की सौगात थी
सतीश तुझमें कुछ अजीब बात थी ।
एक हाथ में सिगरेट
एक हाथ में कलम
कोरे कागज पर श्री लिखकर
प्यार से अपने मुद्दों को समझाने की स्टाइल कमाल थी
सतीश तुझमें कुछ अजीब बात थी ।
अपनी बात बहुत समझाने पर एजेन्ट न समझे
तो हरिवंशराय बच्चन जी का तरीका अपनाना
मधुशाला को कार्यशाला बनाकर हर एक से अपने मन की बात उगलवाना
धीरे-धीरे हर घूंट के साथ उसे उसका मकसद समझाना
जीवन और जीवन बीमा के व्यापार की बारीकियों को समझा कर सही राह दिखाना
तेरा ये मोटीवेशन का तरीका लाजवाब था
एक बनिये गिरी की जगह बिजनेस में पढाई का महत्व बतलाना
उस पर अमल कर एसोसिएट बन जाना
हर ज्ञान का उपयोग कर सफलता के राह पर पहुंचने की नई रीति की शुरुआत थी
सतीश तुझमें कुछ अजीब बात थी ।
चुन - चुनकर एंजेट बनाना
हर एक के साथ अलग से समय बिताना
उसे जिंदगी का फलसफा समझाना
एक बेहतर भविष्य की कल्पना करवाना
क्वांटिटी ऑफ एजेन्ट से क्वालिटी ऑफ एजेन्ट बनाने की शुरुआत थी
भोर में पक्षियों की चहचाहट के साथ दिन का एंजेडा बनाना
जब तक लोग जागे तब तक आगे का कार्य कर जाना
ब्रांच में समय पर आकर लोकसत्ता पढते हुए आराम से बिजनेस करता हुआ दिखना
यह भी था लोगों के लिए अचंभे की बात
सतीश तुझमें कुछ अजीब बात थी ।
ट्रेनर से ट्रेनिग लेने की
एजेन्ट को प्रोफेसनल बनाने की नई शुरुआत
एक ट्रेनर का गलियों के बीच उद्देश्य समझाना
म ब ल च की गलियों के साथ कडाई से अपनी बात मनवाना
दूसरी तरफ मुरली की धुन पर सरस्वती आराधना के साथ प्यार से रिश्तों की अहमियत बताना
अपनों के लिए काम करने की प्रेरणा जगाना
दो विरोधाभास में समन्वय बनाकर अपने उद्देश्य की सफलता पा लेना
यह बहुत बडी बात थी
सतीश तुझमें कुछ अजीब बात थी ।
कम बोलना , विवादों से बचना
शांति और गंभीरता से सोचना
हर समस्या का समाधान ढूंढना
हर कार्य में तल्लीनता से जुड़ना
हर काम को चुपचाप करवा लेने की प्रथा में महारथ हासिल था
पेपरों की ट्रैफिक में एक अपनी स्पेशल लेन
बिना स्पीच देकर कम्पलीशन की गाडी समूल चलाने की नई रीति कमाल की थी
सतीश तुझमें कुछ अजीब बात थी ।
तेरे चरित्र में समय की पाबंदी
आयोजन - प्रयोजन की जिम्मेदारी (916की पूजा)
न किसी की परनिन्दा न बुराई न तकरार न बेसिर-पैर की बातें
हर किसी का आदर- सत्कार
सभी की बातों को ध्यान से सुनना
सही समय पर हास्य भरा जोक सुनाना
दोस्तों के बीच बिना अहम दोस्त बन जाना
बडे - बडे सूरमाओं में अपनी अलग पहचान बनाना
इज्जत और शोहरत की बुलंदियों पर पहुंच जाना
तेरे चरित्र की खास बात थी
सतीश तुझमें कुछ अजीब बात थी ।
सतीश तू लगता बडा सिंपल था
तेरा कार्य बडा आसान दिखता था
हर कोई तेरी नकल करना चाहता था
तेरी तरह टाॅप हीरों बनना चाहता था
तेरी सिम्पलीसिटी के पीछे की
मेहनत - लगन , गहराई - निष्ठा न जान पाए
तेरे रूप पर सब हैरान थे
सतीश तुझमें कुछ अजीब बात थी ।
तुझे समझने की थोड़ी कला मैंने भी पाई थी
तेरे नजदीक होते हुए भी अपनी एक अलग पहचान बनाई
तू नार्थ पोल तो मैं साउथ पोल
पर तेरी परछाई में ही मैंने मैग्नेटिक शक्ति पाई थी
अब मैं तुझ जैसा बन जाऊं
मन में यही चाहत बनाई है
तेरा इस तरह से जाना भी इत्तिफाक था
जाते - जाते ऐसा आलम बना गया
सबके दिलों पर छा गया
तुझमें महान होने वाली हर बात थी
सतीश तुझमें कुछ अजीब बात थी ।
ऐ दोस्त अब क्या लिखूं तेरी तारीफ में
बडा खास है तू मेरी जिंदगी में
जिंदगी के साथ भी
जिंदगी के बाद भी ।
मार्मिक कहानी
💡 *फ्यूज बल्ब* 🪝
हाउसिंग सोसायटी में एक बड़े अफसर रहने के लिए आए, जो हाल ही में सेवानिवृत्त (retired) हुए थे। ये बड़े वाले रिटायर्ड अफसर, हैरान परेशान से, रोज शाम को सोसायटी के पार्क में टहलते हुए, अन्य लोगों को तिरस्कार भरी नज़रों से देखते और किसी से भी बात नहीं करते थे।
एक दिन एक बुज़ुर्ग के पास शाम को गुफ़्तगू के लिये बैठे और फिर लगातार बैठने लगे। उनकी वार्ता का विषय एक ही होता था - मैं इतना बड़ा अफ़सर था कि पूछो मत, यहाँ तो मैं मजबूरी में आ गया हूँ, इत्यादि इत्यादि।
और वह बुजुर्ग शांतिपूर्वक उनकी बातें सुना करते थे।
एक दिन जब सेवानिवृत्त अफसर की आँखों में कुछ प्रश्न , कुछ जिज्ञासा दिखी, तो बुजुर्ग ने ज्ञान दे ही डाला।
उन्होंने समझाया - आपने कभी फूज बल्ब देखे हैं ? बल्ब के फ्यूज हो जाने के बाद क्या कोई देखता है कि कौन बल्ब किस कम्पनी का बना हुआ था, कितने वाट का था, उससे कितनी रोशनी या जगमगाहट होती थी ? बल्ब के फ्यूज़ होने के बाद इनमें से कोई भी बात बिलकुल ही मायने नहीं रखती। लोग ऐसे बल्ब को कबाड़ में डाल देते हैं । है कि नहीं ?
जब उस रिटायर्ड अधिकारी महोदय ने सहमति में सिर हिलाया तो बुजुर्ग बोले - रिटायरमेन्ट के बाद हम सब की स्थिति भी फ्यूज बल्ब जैसी हो जाती है। हम कहां काम करते थे, कितने बड़े/छोटे पद पर थे, हमारा क्या रूतबा था यह सब कुछ भी कोई मायने नहीं रखता ।
कुछ देर की शांति के बाद अपनी बात जारी रखते हुए फिर वो बुजुर्ग बोले कि मै सोसाइटी में पिछले 5 वर्ष से रहता हूं और आज तक किसी को यह नहीं बताया कि मै दो बार संसद सदस्य रह चुका हूं। वे जो वर्मा जी हैं, रेलवे के महाप्रबंधक थे। वे सिंह साहब सेना में ब्रिगेडियर थे। वो मेहरा जी इसरो में चीफ थे। ये बात भी उन्होंने किसी को नहीं बतायी है, मुझे भी नहीं, पर मैं जानता हूँ ।
सारे फ्यूज़ बल्ब करीब - करीब एक जैसे ही हो जाते हैं, चाहे जीरो वाट का हो 40, 60, 100 वाट, हेलोजन या फ्लड-लाइट का हो, कोई रोशनी नहीं, कोई उपयोगिता नहीं; यह बात आप जिस दिन समझ लेंगे, आप शांतिपूर्ण तरीके से समाज में रह सकेंगे।
उगते सूर्य को जल चढा कर सभी पूजा करते हैं पर डूबते सूरज की कोई पूजा नहीं करता। यह बात जितनी जल्दी समझ में आ जाएगी, उतनी जल्दी जिन्दगी आसान हो जाएगी।
कुछ लोग अपने पद को लेकर इतने वहम में होते हैं कि रिटायरमेन्ट के बाद भी उनसे अपने अच्छे दिन भुलाये नहीं भूलते। वे अपने घर के आगे नेम प्लेट लगाते हैं - .......
सक्सेना/गुर्जर/मीणा/गुप्ता/मेघवाल/चौधरी, रिटायर्ड आइ.ए.एस....... सिंह ...... रिटायर्ड जज आदि - आदि।
ये रिटायर्ड IAS/RAS/sdm/तहसीलदार/पटवारी/बाबू/प्रोफेसर/प्रिंसिपल/अध्यापक अब कौन सा पद है भाई ? माना कि आप बहुत बड़े आफिसर थे, बहुत काबिल भी थे, पूरे महकमे में आपकी तूती बोलती थी पर अब क्या?
अब तो आप फ्यूज बल्ब ही तो हैं।
यह बात कोई मायने नहीं रखती कि आप किस विभाग में थे, कितने बड़े पद पर थे, कितने मेडल आपने जीते हैं
अगर कोई बात मायने रखती है तो वह यह है कि
आप इंसान कैसे है?
आपने कितनी जिन्दगी को छुआ है ?
आपने आम लोगों को कितनी तवज्जो दी
पद पर रहते हुए कितनी मदद की
समाज को क्या दिया?
ज़रूरतमंद व अपने समाज के गरीब लोगों से कैसे रिश्ता/व्यवहार रखा?
लोग आपसे डरते थे कि आपका सम्मान करते थे ?
अगर लोग आपसे डरते थे तो आपके पद से हटते ही उनका वह डर हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा।
पर अगर लोग आप का सम्मान करते हैं तो
यह सम्मान आपके पद विहीन होने पर भी कायम रहेगा। आप मरने के बाद भी उनकी यादों में, उनके दिलों में जिन्दा रह सकते हैं।
हमेशा याद रखिए
बड़ा अधिकारी/कर्मचारी बनना बड़ी बात नहीं, बड़ा इंसान बनना बड़ी बात जरूर है।
बड़ा दिल रखिए। सदा उदार बनिए । किसी की मदद का कोई मौका मत चूकिए। कोई भेदभाव नहीं ।सब अपने ही है। इंसान बड़ा बनता है अपने कर्मो से न कि पैसे रुतबे से। यह विचारणीय है। .
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हरियाली अम्मा
हरियाली अम्मा -- मेरी लिखी कहानी संग्रह की पहली कहानी
कृष्णा बाई उनका नाम है पर लोग उन्हें जानते हैं हरियाली अम्मा के नाम से । सांवली सलोनी कृष्णा का हरियाली से ऐसा नाता जुड़ा कि वह उनकी पहचान बन गया
बहुत लंबी कहानी है इस नाम के पीछे। चलिए अतीत की सैर करते हैं और वास्तविकता जानने की कोशिश करते हैं छोटी उम्र में ही कृष्णा का ब्याह हो गया था यौवन की दहलीज पर अभी कदम रखा ही था कि घर वालों ने ब्याह की रट लगा दी तब बाल विवाह होते थे भले ही बाल मन को समझ में न आता हो कि विवाह का मतलब क्या होता है एक अच्छे मध्यम वर्ग में खानदान और खेती बाड़ी तथा लड़के के पिता का रसूख देख उनकी शादी कर दी गई ।शादी के 5 साल बाद उन्हें गवना करा कर ससुराल वाले ले गए ।बड़ा परिवार और खाता पीता मध्यमवर्गीय ।
कृष्णा बड़ी बहू थी उस पर दुलारी।घर की दुल्हन बन डोलती रहती सब प्यार लुटाते थे उसका पति कैलाश तो उसका मुख देखे ही बैठा रहता कोठरी से बाहर ही नहीं निकलता
जब बाहर से दादी आवाज देती
राधा जी के महलियाॅ का किवार कब खुली अव श्याम जी कब दर्शन दिहै ।
तब चुपके से सर पर गमछा लपेटे कोठी से बाहर निकल खेतों की ओर निकल जाता दरवाजे पर गाय बैल बांधे रहते थे चारा भूसी करना , अनाज पीसना - कूटना यह सब काम रहता और सब मिलकर करते। सुबह होते ही वह बुहारना - लीपना और रसोई की तैयारी ।मर्द खेत का और बाहर का काम औरतें घर के भीतर का काम करती संयुक्त परिवार होते थे सबका गुजारा हो जाता था आलसी और निकम्मो का भी । विधवा - बूढो का भी । सबका बराबर का हक रहता था मालिक की तो हालत सबसे बेचारे की होती थी वह अपनापा नहीं कर सकता था पहले सब परिवार को देखना फिर अपना परिवार। शादी ब्याह जन्म मरण सब ऐसे ही निपटते थे ।
शिक्षा प्रवेश कर रही थी उसके साथ व्यक्तिवाद भी पनपने लगा था चचिया ससुर का बेटा फौज में भर्ती हो गया था कमाई आ रही थी उसके साथ अलगाव की भावना भी आ रही थी आखिर झगड़े टंटे के कारण परिवार अलग हो गया दोनों ससुर अलग अलग हो गए। खेती-बाड़ी बंट गई ।कृष्णा का पति कैलाश तो मनमौजी ही था पिता और छोटा भाई मेहनत करते थे फसल होती थी पर कितनी ??
और तो और खाने भर का साल भर का अनाज इकट्ठा करना होता है घर चलाने के लिए दूसरी तो कोई आमदनी नहीं उपर से प्रकृति का प्रकोप हुआ तब तो और भी मुसीबत ।बीड़ी तंबाकू कपड़े का प्रबंध उसी में से करना पड़ता है फिर भी बीमारी हारी भी तो देखा जाए तो कहने को खेती और अन्नदाता पर सारी जिंदगी परेशानी रहता है जुगाड़ करता रहता है।
कृष्णा की शादी को 5 साल बीत गए थे विवाह का नशा अब गायब हो चुका था बच्चा नहीं हुआ था अब तो लोग ताना देने लगे थे कैलाश पर तो दूसरी शादी के लिए जोर डालने लगे थे आखिरकार बाद में चचेरी बहन से शादी के लिए हां करवाई गई ।छोटी बहन है आदर सम्मान भी देगी उसके जो बच्चे होंगे उनकी तो मौसी भी रहेगी और बड़ी माॅ भी । औरत सब सह सकती है पर सौतन को स्वीकार करना इतना आसान नहीं होता ।कृष्णा ने छाती पर पत्थर रख और विधि का विधान मानकर सब स्वीकार कर लिया रिश्ते की छोटी बहन शादी कराई थी अब उससे भी क्या गिला शिकवा ।कुछ दिन तो ठीक चला फिर उसके भी तेवर बदलने लगे कैलाश ने तो मुंह फेर लिया था छोटी मां बनने वाली थी उसका बहुत ख्याल रखती थी जैसे वही बच्चा जानने वाली हो इतना खुश रहती जैसे वहीं माँ हो।पहलौठा बेटा हुआ ।साल भर भी नहीं बीता था जच्चा बच्चा का जतन करना है उसके तेल मालिश खाना पीना सब का ख्याल रखती ।अब छोटी झगड़ा भी करने लगी थी कभी कैलाश से कहने की कोशिश करती
तो कहता दुधारू गाय की चार लात भली। और चला जाता
बच्चा चलने लगा था उसको हाथ भी नहीं लगाने देती थी एक बार बच्चा खेलते खेलते गिर गया उठा रही थी कि ऑगन में आकर छोटी चिल्लाने लगी अब तो बच्चे पर निकालती है गुस्सा। ढकेल दिया होगा ।
कृष्णा के उठाते हाथ वहीं रूक गए ।आंखों में आंसू आ गए। ऐसा हर दिन हो रहा था उसकी हैसियत नौकरानी से भी बदतर हो गई थी समझ नहीं आता कि क्या करें एक शाम को ही दूर के रिश्ते के देवर आए ।मजाक तो चलता ही रहता है इस रिश्ते में । भौजाई को देख कर बोले 'भौजी तो क्या गजब की लग रही है तू ऐसे क्यों उखड़ा रहता है उनसे। तब कैलाश ने उत्तर दिया था वह सुन उनका कलेजा चीर गया था ।
कौन फायदा ऐसे हुस्न का पेड़ हरा भरा रहे और फल न दे तो उसका क्या करेंगे ।वह तो ठूंठ ही है ना ।
यह कटाक्ष कृष्णा पर था ।रात भर सोई नहीं भोर होते ही निकल गई ।बगीचे की से तरफ घास फूस और बांस लेकर आई ।कोठी के बाहर ही मडैया डाल दी और रहने लगी। प्रण ले लिया था अब घर में कदम नहीं रखेगी भाई पटीदार आए मनाने परवाह नहीं मानी । एक चूल्हा और दो चार बर्तन यही उनकी जमा पूंजी ।खाने का इंतजाम तो हो ही जाता किसी का कुछ कर देती है काम या फिर फसल काटी। या फिर ज्यादा सब्जी हो गई वह तो कोई समस्या नहीं ।एक जीव कितना खाएं । फिर गांव में एक के घर लौकी नेनुआ हुआ तो तो आस-पड़ोस के सब खाते हैं। भैस बिआई तो दूध माठा भी मिल ही जाता है।
गांव के पास तालाब था निर्जन वहां कोई नहाने वगैरा नहीं जाता था हां सुबह शाम नित्यक्रम से निर्मित होने के लिए किनारे पर जाते थे या गाय भैंस को नहलाने के लिए। आसपास काफी जमीन थी उसका कोई उपयोग नहीं करता था मौसम में आम जामुन कटहल बेल महुआ आदि के फल होते थे लोग फल खाकर बीज यहाँ - वहाँ या घूरे पर फेंक देते। कृष्णा उन बीजों को इकट्ठा करती और तालाब के पास वाली जमीन पर जाकर लगाती ।उनमें तालाब से घड़ा भर कर पानी से सींचती ।
बरगद पीपल पाकड जो अपने आप ही कहीं भी उग आते हैं उनको भी ले जाती पशुओं से बचाती । पहले तो सब हंसते थे पर अब उनको बीज वगैरह भी किसी को मिलते तो देख कर आते। तालाब के किनारे और आसपास पेड ही पेड़ ।हरे भरे पेड़ झूमते रहते थे समय के साथ वह बड़े हुए ।
फलने फूलने पर लगे निर्जन जगह अब गुंजायमान हो रही थी बच्चे खेलने और फल खाने के लिए जाने लगे बड़े-बड़े विश्राम करने के लिए।
बात चलती है तो हंस कर कहते हैं अरे हमारे गांव की हरियाली अम्मा है ना सब उनकी बदौलत है कृष्णा बाई से इस तरह की अम्मा बन गई पता ही नहीं चला ।सरकार मुहिम छेड़ रही थी ।बहुगुणा जी का चिपको आंदोलन अखबारों की सुर्खियां बन रहा था। लोग जागरूक हो रहे थे जंगल नहीं रहा तो हम कैसे ??
यह बात सब अभी समझ रहे थे हरियाली मां को सभा पंचायतों में बुलाया जाने लगा उनके कार्य की प्रशंसा गांव से निकलकर आस-पास के गांव तक पहुंची थी उनके गांव का दौरा पर्यावरण मंत्री करने वाले थे स्वागत की तैयारी चल रही थी ।उन्हें सम्मानित करने वाले थे।
वह अपनी झोपड़ी में बैठी हुई थी सोच रही थी जिस पेड के माध्यम से उन्हें ताना मारा गया था आज वही पेड़ ने उन्हें इस मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया है संतान न सही ।पेड़ो को ही अपनी संतान समझकर उन्हे रोपने वाली सींचने वाली कृष्णा की वे पहचान बन गए ।बच्चे के नाम से उसकी अम्मा भले ना कहलवाई पर पेड़ जैसी संतान ने उन्हें हरियाली अम्मा बना दिया वह किसी एक या दो कि नहीं सैकड़ों की अम्मा बन गई ।उनके संतान धोखा भी नहीं देने वाली बल्कि सबको निस्वार्थ कुछ ना कुछ देगी ही वह भले ही संसार में ना रहे उनके बेटे बाद भी रहेंगे ।
अचानक बाहर शोर-गुल सुनाई पड़ा ।
हरियाली अम्मा हरियाली अम्मा की गुहार लोक लगा रहे थे
झोपड़ी से बाहर आई तो गांव के लोगों का हुजूम खड़ा था मंत्री हाथ में माला लेकर खड़े थे प्रधान जी उनका परिचय करा रहे थे।मंत्रीजी ने फूलों की माला उनके गले में डाली और चरण स्पर्श को झुक गए।
कह रहे थे कि जनता और समाज की सेवा करना हमारा कर्तव्य है पर आपने जो निस्वार्थ सेवा की है और पेड़ों के साथ-साथ एक गांव के लोगों को जो नया जीवन दिया है उसे तो यह लोग कभी नहीं भूलेंगे कभी नहीं भूलेंगे। हरियाली अम्मा जिंदाबाद जिंदाबाद के नारे लग रहे थे।
उनकी दृष्टि भीड़ में सबसे आगे खडे कैलाश और छोटी पर गई ।
हाथ जोड़कर खड़े थे मानो कह रहे थे
कि संतान न हो इसका मतलब औरत का जीवन बेकार है उसमें मानवता नहीं है ममता नहीं है।
यह सोचना संपूर्ण नारी जाति का अपमान है हमें माफ कर दो।उन्होंने देखा मुस्कुरा दिया
मानो कह रही थी आभारी हूं जो मुझे इस मुकाम पर पहुंचाया है
मत्री जी शाल ओढा रहे थे और वह अपने कांपते हाथों से संभाल रही थी । तालियां बज रही थी रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी
हरियाली अम्मा
हरियाली अम्मा की गूंज
जिंदाबाद जिंदाबाद
लेखिका -- आशा सिंह
खुशबू
खुशबू की खुशबू
सुष्मिता का स्मित हास्य
यह सदा कायम रहें
अपार खुशियाँ मिलें
हंसती - खिलखिलाती यह जोड़ी संतोष से रहें
सुख - शांति और समृद्धि का वास रहें
सालोसाल यह साथ रहें
हंसते - मुस्कराने
लडते- झगड़ने
रूठते - मनाने का यह सिलसिला चलता रहें
हर मौसम सदाबहार हो
बरखा , ठंडी , गर्मी सब लाजवाब हो
हर साल कुछ नया हो
हर दिन कुछ खास हो
शादी की हर सालगिरह शानदार हो
बहुत- बहुत शुभकामना
तहे दिल से
बच्चे
बच्चे तो बच्चे ही होते हैं
वे क्या जाने अपना अच्छा - बुरा
उनको क्यों हो भविष्य की चिंता
पढने से क्या मिलने वाला
यह बात आज समाज न आने वाली
जब उनके भी बच्चे हो जाएंगे
वे पापा बन जाएंगे
तब ही पता चलेगा
तब समय पर छोड़ दो
अपना काम करों
शीतल
एक दुबली पतली लडकी
चश्मा लगाए हुए
साधारण सी
ऐसी कुछ खास बात तो नहीं
पर जाने क्यों अपनापन लगता है
सालों से परिचय
पर देखा जाए तो यह साधारण नहीं
आज चश्मा हट गया है
और निखार आ गया है
जिम्मेदारियो का भार खत्म हो गया है
उम्र से पहले बडी हो गई
माँ जो चली गई असमय
भाई बहनों की जिम्मेदारी
ननद देवर की जिम्मेदारी
सास श्वसुर की जिम्मेदारी
अकेलेपन को झेल रहे पिता की जिम्मेदारी
बखूबी निभाया
कभी शिकन न आने दी
न शिकन न शिकायत
उस शख्स का नाम है शीतल
आज स्वयं को देख कर लगता है
हमें तो इससे सीखना चाहिए
हम तो घबरा जाते हैं
उम्र में भले बडे हो गए हो
पर कभी-कभी छोटे बाजी मार ले जाते हैं
धीरता और समझदारी
अंजाने को भी अपना बनाना
इसमें शायद योगदान संजय जैसे जीवनसाथी का भी हो
मजबूत बनता है इंसान तब
जब उसके साथ सुरक्षा कवच हो
तब शीतलता भी कायम रहती है
और आत्मविश्वास भी
तभी तो सभी के लिए शीतल है अनमोल
ह्रदय स्पर्शी शब्द
●|| ह्रदयस्पर्शी शब्द ||●
~~~~~~~~~
जब तक चलेगी जिंदगी की सांसे,
कहीं प्यार कहीं टकराव मिलेगा ।
कहीं बनेंगे संबंध अंतर्मन से तो,
कहीं आत्मीयता का अभाव मिलेगा
कहीं मिलेगी जिंदगी में प्रशंसा तो,
कहीं नाराजगियों का बहाव मिलेगा
कहीं मिलेगी सच्चे मन से दुआ तो,
कहीं भावनाओं में दुर्भाव मिलेगा ।
कहीं बनेंगे पराए रिश्तें भी अपने तो
कहीं अपनों से ही खिंचाव मिलेगा ।
कहीं होगी खुशामदें चेहरे पर तो,
कहीं पीठ पे बुराई का घाव मिलेगा।
तू चलाचल राही अपने कर्मपथ पे,
जैसा तेरा भाव वैसा प्रभाव मिलेगा।
रख स्वभाव में शुद्धता का 'स्पर्श' तू,
अवश्य जिंदगी का पड़ाव मिलेगा । 🌹🌹🌹
Copy paste
स्कूल की यादे
आज बैठे हुए सोच रही थी
पच्चीस वर्ष बीत गए
कैसे और किस तरह
मन हल्का हो रहा है
जिम्मेदारी से मुक्त
पर कहीं कसक भी
यह लोग फिर नहीं मिलेंगे
यह अपनापन ,आदर कौन देगा?
विद्यालय मे कदम रखते ही
गुड मार्निंग शुरू
राजकुमार का सलाम ठोकना
श्याम का प्यारी मुस्कान के साथ नमस्ते
कुछ काम है क्या ,मैं कर दूंगा
लीना का चिल्ला कर बुलाना
क्या है सिंग देखती नहीं
नीलिमा का प्यार से पूछना
कैसे है आप ,आओ बैठो
विजया का हंस कर सुप्रभात बोलना
जुमाना का आकर बैग ले लेना
मुग्धा का बोलना
हाथी चला गया ,पूंछ बाकी है
प्रियम का स्कूटर पर बिठाना
कुरेशी का अरे मिस कहना
वासुदेव का टेक्सी से छोड़ना
प्राजक्ता का हर रोज गुड मार्निग
रीना का आ पास खड़े हो पूछना
सुप्रिया का आप
आराम से बैठो कहना
राँबिन का हँसकर बोलना
सेलीना का दिया आदर
मेरे पानी की बोतल भर कर रखना
टेरेसा तो मेरी आवाज बनी
नीलिमा का पास आकर गुड मॉर्निंग
क्रांति को बेझिझक काम बताना
श्वेता की सांत्वना
सब पोग्राम ठीक होगा
मदुरा को कहना-ठीक से पेपर देखना
सीमा से सलाह लेना
संगीता से हर चीज बेझिझक मांगना
आरवा का मुस्कराना
अनघा का मुझे छोड़ दो कहना
रेणुका से अपनत्व
कलिका का मन की बात बताना
शुंभागी का अल्हड़पन
काय ह्यांना समझव
सोनिया से अपनी समस्या शेयर करना
प्रतीक्षा का मेरा सब्जी का थैला लेना
शीतल तो मेरी सांस की साथी
अंजू मेरी दोस्त ,नोकझोंक उससे
हेमांगी की सलाह ध्यान रखिए
और सबसे बड़ी बात
मिसेज़ केदारी का सर्पोट
प्रेम से डाटना
क्यों चिंता करते हैं आप
अकेले नहीं जाना है
गाडी से नहीं तो किसी को भेजती हूँ ,सब अच्छा चल रहा है
यह तो अभी के साथी
पर कुछ साथ नहीं है
चारू ,जठार ,मिसेज़ जोग ,मिस वैगणकर ,जाधव बाई ,मिसेज़ शिराली ,मिसेज तांबावाला
मैडम त्रिभुवन ,एंड्र्यूज,मसीह ,परेरा
इन सबकी आभारी
पमीता ,डेंगरा ,नम्रता का भी
जिन्होंने काम को आसान किया
इन सबकी कहीं न कहीं कर्जदार हूँ
प्रेम की अपने पन की ,सम्मान की
मुश्किल घडी मे साथ की
तभी तो यह पच्चीस वर्ष हल्का लग रहा है जाते समय
पर भारी प्रेम मैं
यह फिर कभी और कहीं नहीं मिलेगा
शुक्रिया सभी दोस्तों का
तुम कहीं भी रहो
हम कहीं भी रहे
हम न भूलेंगे तुमको
यादोँ में रहोगे
जब जब मुश्किल आएगी
सोचूंगी
काश ! मेरे साथी मेरे साथ होते
यह तो थोड़े मे लिखा इशारा है
बाकी सब आपको समझना है
ज्यादा नहीं थोड़ा ही सही
आप मुझ पर भारी है
लोगों का ईशारा है इन चुनावों मे
सत्ता का रणसंग्राम है
लोगों का ईशारा है
चुनाव तो एक बहाना है
हार - जीत तो इसका खेल हैं
यह राजनीति का अभिन्न अंग है
जनता चेता रही
बस विकास चाहिए
और कुछ नहीं
जाति -धर्म के बंधनों से मुक्त हो आगे बढ़ना है
बेरोजगारी को दूर कर
रोजगार लाना है
रोजी रोटी की जरूरत
सुरक्षा की दरकार
भाषण और जुमला नहीं
यह जनतंत्र है
किसी की बपौती नहीं
अन्नदाता का सम्मान हो
जमीन से जुड़े रहना है
विदेश में भटकने से पहले
देश को मजबूत बनाना है
किसी को खत्म नहीं करना है
सबके साथ चलना है
किसी पार्टी से मुक्त नहीं
बल्कि सब पार्टियों को साथ लेकर चलना है
बोल अच्छे बोलना है
कडवा बोल और किसी को कोसना
यह जनता को पसंद नहीं
जनता काम चाहती है
बड़बोलापन नहीं
वह किसी एक की नहीं
आज इसकी तो कल उसकी
उस पर आँख मूंद कर भरोसा नहीं
वह कब किसको रवाना कर दे
सत्ता से बेदखल कर दे
इसकी घोषणा तो कोई नहीं कर सकता
रंग बिना जीवन नहीं
रंग जीवन मे न हो तो
जिंदगी बदरंग
रंग ही जिंदगी को रंगीन बनाता
रंग तो भिन्न भिन्न
अलग अलग प्रकार के
लाल ,पीला ,नीला ,गुलाबी
सब मिल जाय तो
फिर क्या कहना
हर रंग का अपना महत्व
उसकी अपनी अहमियत
उस पर प्यार का रंग हो तो
जीवन आराम से गुजर जाता है
रंगों से घर सजता है
प्यार से व्यक्ति की दूनिया ही
सज संवर जाती है
वह सबसे सौभाग्यशाली बन जाता है
प्यार के भिन्न भिन्न रूप
हर रूप लाजवाब
तभी तो जीने का असली आंनद पता चलता है
त्याग करने मे भी सुख है
अपनो के लिए जीना
अपनों के साथ जीना
रंग भरा संसार
वह तो अमूल्य निधि
जीवन मे रंग भरने के लिए न जाने क्या क्या उपाय
फिर वह त्योहार हो या और कुछ
आंनद के रंग मे सराबोर होने के लिए
बहाना ढूंढा जाता है
बहार भरना है जिंदगी मे
तब रंगों से लबरेज़ रहे
लबालब प्यार के रंग मे डूबे रहे
संग है तो रंग है
रंग है तो जीवन है
रंगों से जीवन मे खुशी बिखेरते रहे
सबको खुशियों के रंग रंगतें रहे
जीवन खुशहाल बनाते रहे
तब जिंदगी भी मुस्कराएगी
प्यार के रंग बिखेरेंगी
ईश्वर की कृपा
ईश्वर की कृपा जीवन में कब कब बरसी
इसका हिसाब किताब लगाया
तब कृपा भारी पडी
बहुत कुछ दिया है
जिस लायक हम नहीं थे वह भी
शुक्रिया तो कर नहीं सकते
बस नमन है
ऐसी ही कृपा बरसती रहे ।
लगता है अजनबीपन
सब कुछ था वहाँ
मन का सुकून नहीं था
एक घुटन सी होती थी
अंदर ही अंदर मन मसोसकर रह जाती
क्यों खुशी नहीं मिलती
हर वक्त उदासी का छाना
तब ऐसा लगा
अब यहाँ से हट जाना
क्यों होता है ऐसा
जब कुछ लगता है पराया
नहीं लगता है अपना
जबकि सब अपने ही
सब अजीज हैं
मुझे जान से प्यारे हैं
उनकी हर चोट लगती मेरी चोट
उनका दुख - दर्द
लगता मेरा अपना
हर वक्त उनकी सलामती की दुआ
यही मांगती हूँ मैं हमेशा
तब इस मन का क्या करें
क्यों विचलित होता है
कहीं न कहीं कोई तो कमी है
संबंधों में कुछ तो दुरावट है
ऊपर से कुछ
अंदर से कुछ
जो है वह दिखता नहीं
जो नहीं है वह दिखता है
क्यों नजदीकीयां बस रही है दिखावे की
जबकि मन से पास - पास
एक का कांटा लगा
दूसरे को चुभता है
फिर भी वह गर्माहट नहीं
तभी होता है
लगता है अजनबीपन
हरि बोल ,मन के ताले खोल
आज जन्मदिन है कन्हैया का
माता यशोदा के लल्ला का
सुदर्शन चक्र धारी का
मुरलीधर और कालिया नाग नथैया का
गोपियों के कान्हा और राधा के मोहन का
महाभारत मे अर्जुन को गीता का उपदेश देने वाले योगेश्वर कृष्ण का
विराटरूप धारी भगवान वासुदेव का
द्रौपदी की लाज बचाने वाले सखा का
भीषण की प्रतिज्ञा का मान रखने वाले भगवान का
विदुर घर साग खाने वाले कृष्ण का
ग्वाल बालों संग गैया चराने वाले गोपाल का
बहन सुभद्रा और बलराम के भाई का
देवकी और वासुदेव के पुत्र
मथुरा के राजा का कृष्ण का
पांडवों के सखा और कुंती के भतीजे का
गिरिराज पर्वत को धारण करनेवाले गिरिधर का
और हर हिन्दू के मन मे बसने वाले श्याम सुंदर का
राधा के संग विराजते श्याम की
श्यामा संग रास रचाते
मनमोहिनी छवि के स्वामी हमारे पालनहार का
खुशियों की बरसात है
जन्माष्टमी का त्योहार है
झूम रहा है जग
राधा मोहन संग
हो जाये सब कृष्ण भक्त मे सराबोर
गाए नाचे आंनद मनाए
बोलते रहे
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
...हरि बोल हरि हरि बोल
जख्म
जख्म बहुत गहरा था
उपचार करते कितना समय बीत गया
अच्छा भी हो चला था
पर फिर उसको कुरेद देती
सूखता हुआ घाव फिर हरा हो जाता
पर क्या करती
आदत से मजबूर
थोड़ी भी कुलबुलाहट सहन नहीं
यह भी डर कि कही गेंग्रीन न हो जाय
यह तो छोटा सा शारीरक घाव है
पता नहीं मन कितना घायल है
हम उस घाव को लेकर बरसों ढोते रहते हैं
समय समय पर याद करते रहते हैं
जीवन की मुस्कान गायब कर डालते हैं
यही सोचकर
हमारे साथ ऐसा हुआ
फलाने ने ऐसा किया या कहा
फलाना ढिमाके को तो कुछ याद नहीं
वह तो बोलकर भूल गया
पर हम नहीं भूले
अपनी जिंदगी झंड बना रखी
ऐसे जीवन मे हर वक्त होता है
कभी कभी जखमों को ढोते
मानसिक रोगी बन जाते हैं
जबकि जख्म देने वाले को भूल जाना चाहिए
चाहे वह अपने हो या बेगाने
हमारी जिंदगी हमारी है
सोच भी हमारी है
उस पर किसी को हावी नहीं होने देना है
Saturday, 22 January 2022
परिणाम की मत सोचे
Friday, 21 January 2022
जाति और चुनाव
अनमोल
मैं बुद्ध नहीं होना चाहता
Thursday, 20 January 2022
पौ पौ पौ
समस्या क्या ???
Wednesday, 19 January 2022
जिंदगी चाय सी होनी चाहिए
संतान
वैधव्य
Tuesday, 18 January 2022
दिखावा
Monday, 17 January 2022
सोच रही सुभद्रा
महाभारत का एक कारण तुम भी थी गांधारी
अपनी कश्ती के खेवैया तुम ही हो
Sunday, 16 January 2022
मत लो जीवन
मेरा धर्म
Saturday, 15 January 2022
कमाल खान
Friday, 14 January 2022
मकरसंक्रांति की हार्दिक शुभेच्छा
मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामना
Wednesday, 12 January 2022
काॅपी करना
किसी की काॅपी करें
नकल करें
उसके पेपर की
उसकी रचनाओं की
हो सकता है
आपका नाम हो
आपकी प्रशंसा हो
वाह-वाही मिले तालियाँ बजे
लोग तो सत्य नहीं जानते
हाॅ आपकी आत्मा अवश्य जानती है
क्या सच में खुशी मिली
मन कहीं न कहीं कचोटता होगा
तालियाँ बजती होगी
तब लगेगा
दिमाग पर हथोड़े पड रहे हैं
पढते समय या बोलते समय
वह भावना आ पाएँगी क्या
नहीं ना
फिर क्यों यह काम
नकल तो नकल ही होती है
वह रचना की हो
व्यक्तित्व की हो
या कोई और
बचपन में जिस प्रश्न का उत्तर काॅपी किया था
उसमें अंक भले आते
मन यह कहता
यह तो काॅपी करने के कारण
अपनी मेहनत का आनंद तो कुछ और ही
कमल
फूल कोमल है
पानी कोमल है
पानी में ही फूल का जन्म
जब तक पानी में है
खिला है
जब तक जडो से जुड़ा है
मजबूत है
जिस दिन पानी से अलग
वह मुरझा जाएगा
जिंदा भी रहा
ज्यादा दिन नहीं
पानी भले कीचड़ भरा हो
वह पोषण तो करता है
तब जन्मदाता है
वह कैसा भी हो
आपके लिए तो वरदान है
उसकी वजह से आप खडे हैं
भले ही लहलहाए
पर उसे मत भूलिए
कीचड़ में भी इतना सुन्दर रूप
इतना मौल्यवान
इतना आकर्षक
उस दाता की वजह से
कीचड़ का दाग लगने नहीं देता
अपने में डुबोता नहीं
मारता नहीं जिलाता है
ऊपर उठा कर रखता है
खिलने का मौका देता है
स्वयं बदबू करता है
आपको सुगंधित करता है
तब उस कीच भरे पानी की महत्ता है
तभी तो आपकी है
इतनी सुन्दर उपमा है
Tuesday, 11 January 2022
शादी क्यों है जरूरी
शादी है जरूरी
शादी है तो सम्मान है
ऐसा सोचना
भारत की बात है
यही है मानसिकता
एक शादी का ठप्पा लग गया
मानो सब कुछ सही हो गया
जिंदगी भर रोते रहे
लडते - झगड़ते रहें
सामंजस्य बनाते रहें
त्याग करते रहें
अपनी जिंदगी छोड सबकी जिंदगी जीते रहें
तब जाकर वह सफल कहलाता है
एक बार शादी का लाइसेंस मिल गया
फिर जो चाहे मन मर्जी करो
कैसे भी कपडे पहनो
कहीं भी घूमने जाओ
किसी से भी बात करो
कितनी भी रात को आओ
कोई शक नहीं करेंगा
अविवाहित को
वह औरत हो या मर्द
अजीब दृष्टि से देखा जाता है
कहीं न कहीं कुछ गडबड है
वह सबसे बेचारा प्राणी
न शांति से जी सकता है
न रह सकता है
न अकेलेपन को इंजाय कर सकता है
सृष्टि का सत्य
आज सुबह का नजारा
सूर्य देव का धीरे-धीरे आगमन
साथ ही सभी का रोजी - रोटी की तलाश में निकल पडना
रोड पर भरी हुई बस
ऐसा लगता है कि
अभी तो सात ही बजे हैं फिर भी
ठंड की सुबह है
पक्षी दाना चुगने के लिए उडान भर रहे
कौआ पास ही गैलरी में बैठ कांव कांव की ध्वनि
वह भी भोजन की तलाश में
इतने में एक चील आकर बैठती है
उसके पंजों में चूहा है
वह खाने की शुरुआत करने जा रही है
देख मन विचलित हो गया
तत्क्षण ध्यान आ गया
यह अपना काम कर रही है
भोजन मिला है उसे
ऐसे न जाने कितने जीव - जंतुओं को जाने - अंजाने में हम मारते हैं
खटमल, काक्रोच, चूहा यह भी तो जीव ही हैं
यहाँ तक कि जब जान पर बन आए तब पूजें जाने वाले सर्प को भी नहीं छोड़ते
अपनी रक्षा का अधिकार सबको
फिर अहिंसा क्या हुई
मन दार्शनिक बन गया
चौरासी लाख योनि में जन्म लेना ही पडेगा
हम तो हर दिन कोई न कोई जीव हत्या करते ही हैं
तब उसका परिणाम
पर कर्म किए बिना भी तो नहीं रह सकते
यही सत्य है सृष्टि का ।
Monday, 10 January 2022
विश्व हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
वह दिन अब लद गए
जब हिंदी को चिंदी समझा जाता था
अब यह चिंदी अपना परचम फहरा रही है
हिंदी बोलना अब शर्म नहीं गर्व बन गया है
सर उठाकर चल रही है
विदेशों में भी अपनी पैठ बना रही है
सोशल मीडिया पर छा रही हैं
अब गूगल और फेसबुक भी इसके कायल
सबको अपना महत्व समझा रही है
इतना बडा जनाधार इसका
एक सौ तीस करोड़ की लोगों की जनभाषा
इसके बिना किसी का काम नहीं चलता
दिल में घर करना है तब यह है सबसे बडी जरूरत
नेता तो इसके कायल
अपनी बात सब तक पहुँचाना
आखिरी व्यक्ति तक
तब बिना हिंदी के कैसे संभव
बिजनेस का जमाना है
कारपोरेट जगत में भी इसका बोलबाला है
बैंक से लेकर माॅल तक
ग्राहकों तक पहुँचना है
तब तो इसे अपनाना है
सबको लेकर चलती
सबके साथ घुल-मिल जाती
हर भाषा है प्यारी
पर हिंदी हमारी सबसे न्यारी
अब हाय नहीं नमस्ते कहना
हिंदी को टा टा बाय बाय नहीं
अब गले लगाना है
विश्व पटल पर छा रही है
अपनी पहचान बना रही है
हिन्दुस्तान से परिचित करवा रही है
अब सब जगह झंडा गाड रही है
अब वह बेचारी नहीं
शक्तिशाली बन रही है
वह दिन लद गए
जब हिंदी को चिंदी समझा जाता था
सभी हिंदी बोलने और जानने वालों को शुभकामना
बाप हैं तो जहान है
ऑखों में ऑसू भर आए
उनकी याद में जो चले गए
कभी ऊंगली पकड़ चलना सिखाया था
कभी झूले पर बैठा झूला झुलाया था
कभी बस्ता टांग पाठशाला पहुंचाया था
कभी होटल में बडा पाव और मिसल पाव खिलाया था
कभी थियेटर में सिनेमा दिखाया था
कभी नाराज और गुस्सा भी हुए थे
कभी हंसकर बातों को टाल दिया
कभी दिल पर लेकर बैठ गए
रूठने- मनाने का सिलसिला तब तक चला
तब तक तुम थे
आकाश से मुझे मतलब नहीं था
एक बडे से आकाश की छत्रछाया थी
जो बादल घिरने ही नहीं देता था
बिजली कडक कर ढाए
उससे पहले ही संभाल लेता था
बहुतों को खोया
कुछ अपने कहे जाने वाले कुछ पराए
कुछ बेहद अजीज
यह ऑख जल्दी भरती नहीं
बहुत कठोर है दिल
लेकिन जहाँ आपकी बात आती है
पानी ही पानी भर आता है
जैसे समुंदर समाया है
रोकने की कोशिश करों
तब भी बह ही जाते हैं
समझ गए न
मैं किसकी बात कर रही हूँ
आपकी बाबूजी
जिनको संक्षेप में बावजी- बाजी कहती थी
अब छुपके से ऑखों के ऑसू पहचानने वाले
तुम तो रहे नहीं
ऑसूओं के पीछे की व्यथा बाप ही जान सकता है
बाप हैं तो जहान है ।