Monday, 18 November 2024

बस वोट कर

लोकतंत्र का पर्व है तब हमारा भी कुछ कर्तव्य है 
चल वहाँ जहाँ हो रहा है फैसला देश के कर्णधार का 
न सकुचा न डर बस उठा उंगली दबा बटन मनचाहे चिन्ह पर
न रह जाए कोई मलाल दिल में वोट कर दिमाग से
न पछतावा न शिकवा - शिकायत 
मिला है अधिकार हमको 
नहीं भूलना इसको किसी भी कीमत पर
बस वोट कर बस वोट कर 

Wednesday, 13 November 2024

अपनी क्षमता पहचाने


                      🍁अपनी क्षमता पहचानें 🍁

किसी जंगल में एक बहुत बड़ा तालाब था । तालाब के  पास एक बगीचा था, जिसमे अनेक प्रकार के पेड़ पौधे लगे थे दूर- दूर से लोग वहाँ आते और बगीचे की तारीफ करते।

गुलाब के पौधे पर  लगा पत्ता हर रोज लोगों को आते-जाते और फूलों की तारीफ करते देखता, उसे लगता की हो सकता है एक दिन कोई उसकी भी तारीफ करे. पर जब काफी दिन बीत जाने के बाद भी किसी ने उसकी तारीफ नहीं की तो वो काफी हीन महसूस करने लगा उसके अन्दर तरह-तरह के विचार आने लगे— सभी लोग गुलाब और अन्य फूलों की तारीफ करते नहीं थकते पर मुझे कोई देखता तक नहीं, शायद मेरा जीवन किसी काम का नहीं …कहाँ ये खूबसूरत फूल और कहाँ मैं… और ऐसे विचार सोच कर वो पत्ता काफी उदास रहने लगा।

दिन यूँ ही बीत रहे थे कि एक दिन जंगल में बड़ी जोर-जोर से हवा चलने लगी और देखते-देखते उसने आंधी का रूप ले लिया. बगीचे के पेड़-पौधे तहस-नहस होने लगे, देखते-देखते सभी फूल ज़मीन पर गिर कर निढाल हो गए, पत्ता भी अपनी शाखा से अलग हो गया और उड़ते-उड़ते तालाब में जा गिरा।

पत्ते ने देखा कि उससे कुछ ही दूर पर कहीं से एक चींटी हवा के झोंको की वजह से तालाब में आ गिरी थी और अपनी जान बचाने के लिए संघर्ष कर रही थी।

चींटी प्रयास करते-करते काफी थक चुकी थी और उसे अपनी मृत्यु तय लग रही थी कि तभी पत्ते ने उसे आवाज़ दी, घबराओ नहीं, आओ, मैं तुम्हारी मदद कर देता हूँ। और ऐसा कहते हुए अपनी उपर बैठा लिया। आंधी रुकते-रुकते पत्ता तालाब के एक छोर पर पहुँच गया; चींटी किनारे पर पहुँच कर बहुत खुश हो गयी और बोली,  आपने आज मेरी जान बचा कर बहुत बड़ा उपकार किया है, सचमुच आप महान हैं, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद!

यह सुनकर पत्ता भावुक हो गया और बोला, धन्यवाद तो मुझे करना चाहिए, क्योंकि तुम्हारी वजह से आज पहली बार मेरा सामना मेरी काबिलियत से हुआ, जिससे मैं आज तक अनजान था. आज पहली बार मैंने अपने जीवन के मकसद और अपनी ताकत को पहचान पाया हूँ…

मित्रों, ईश्वर ने हम सभी को अनोखी शक्तियां दी हैं; कई बार हम खुद अपनी काबिलियत से अनजान होते हैं और समय आने पर हमें इसका पता चलता है, हमें इस बात को समझना चाहिए कि किसी एक काम में असफल होने का मतलब हमेशा के लिए अयोग्य होना नही है. खुद की काबिलियत को पहचान कर आप वह काम  कर सकते हैं, जो आज तक किसी ने नही किया है!

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 ((((((( जय जय श्री राधे )))))))  Copy paste 
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Tuesday, 12 November 2024

सत्य की खोज

#श्रील_प्रभुपाद अक्सर एक सरल किन्तु गहन #कहानी साझा करते थे, जिससे यह स्पष्ट होता था कि किस प्रकार लोग, चाहे उनकी स्थिति या बुद्धि कुछ भी हो, आम जनमत द्वारा आसानी से गुमराह हो सकते हैं।

एक बार एक आदमी चल रहा था और उसने देखा कि एक आदमी अपने सिर के बाल मुंडवाकर रो रहा है। चिंतित होकर उसने पूछा, "तुमने अपना सिर क्यों मुंडवा लिया है? तुम क्यों रो रहे हो?" दुखी आदमी ने दुख से अभिभूत होकर जवाब दिया, "तुमने सुना नहीं? तुम्हें नहीं पता? सरवल सिंह मर चुका है!"

पहला आदमी, हालांकि उसे नहीं पता था कि सरवल सिंह कौन है, अपनी अज्ञानता को स्वीकार करने में बहुत शर्मिंदा महसूस कर रहा था। यह मानते हुए कि सरवल सिंह कोई महत्वपूर्ण व्यक्ति रहा होगा, वह भी रोने लगा और शोक के प्रतीक के रूप में अपना सिर मुंडवा लिया। फिर वह अपने गाँव लौट आया, जहाँ गाँव वालों ने उसकी दुःख भरी हालत देखी और पूछा, “क्या हुआ? तुम क्यों रो रहे हो?” उस आदमी ने जवाब दिया, “तुमने सुना नहीं? सरवल सिंह मर चुका है!” हैरान, गाँव वालों ने भी अपने सिर मुंडवा लिए और सरवल सिंह की मौत पर शोक मनाना शुरू कर दिया, हालाँकि उन्हें नहीं पता था कि वह कौन था।

जैसे ही यह खबर फैली, पास से मार्च कर रही एक सैन्य टुकड़ी गांव से गुजरी और उसने देखा कि सभी लोग सिर मुंडाए हुए रो रहे हैं। उत्सुकतावश उन्होंने पूछा, “गांव में सभी लोग शोक क्यों मना रहे हैं?” गांव वालों ने जवाब दिया, “तुम्हें नहीं पता? सरवल सिंह मर चुका है!” इसे एक बड़ी क्षति मानते हुए सैनिकों ने भी अपने सिर मुंडाए और शोक में शामिल हो गए।

जब सेना राजा के सामने आई, तो उसने देखा कि उसके सभी सैनिकों के सिर मुंडे हुए थे और वे रो रहे थे। राजा ने हैरान होकर पूछा, “तुम सबके सिर मुंडे हुए क्यों हैं? तुम क्यों रो रहे हो?” पूरी सेना ने एक स्वर में चिल्लाते हुए कहा, “राजा, तुमने सुना नहीं? सरवल सिंह मर चुका है!” राजा ने यह मानकर कि सरवल सिंह कोई बहुत बड़ा व्यक्ति होगा, अपने मंत्री की ओर मुड़ा और कहा, “हमें भी अपने सिर मुंडे लेने चाहिए, क्योंकि सरवल सिंह मर चुका है।”

हालाँकि, मंत्री एक बुद्धिमान व्यक्ति था और उसने राजा से पूछा, “सरवल सिंह कौन है?” राजा ने उत्तर दिया, “आप नहीं जानते? सरवल सिंह मर चुका है!” मंत्री ने अपनी पूछताछ में दृढ़ता दिखाते हुए स्वीकार किया, “नहीं, मैं नहीं जानता कि सरवल सिंह कौन है।” राजा को अब एहसास हुआ कि वह भी नहीं जानता कि सरवल सिंह कौन है, उसने कहा, “शायद हमें पता लगाना चाहिए।”

मंत्री ने सैनिकों से पूछकर अपनी जांच शुरू की, “सरवल सिंह कौन है?” उन्होंने जवाब दिया, “हमें नहीं पता। हमने गांववालों से सुना है।” फिर मंत्री गांव गए और गांववालों से पूछा, “सरवल सिंह कौन है?” गांववाले भी उतने ही अनभिज्ञ थे, उन्होंने कहा, “हमें नहीं पता। हमने सिर्फ इतना सुना है कि सरवल सिंह मर चुका है।”

अंत में, मंत्री ने कहानी को उस असली आदमी तक पहुँचाया जो मुंडा हुआ सिर लेकर रो रहा था। मंत्री ने पूछा, “तुम क्यों रो रहे हो?” उस आदमी ने जवाब दिया, “तुमने सुना नहीं? सरवल सिंह मर चुका है!” मामले की तह तक पहुँचने के लिए दृढ़ निश्चयी मंत्री ने पूछा, “सरवल सिंह कौन है?”

उस आदमी ने अभी भी दुखी होकर बताया, "मैं एक धोबी हूँ और अपने ग्राहकों के कपड़े ढोने के लिए मैं अपने वफादार गधे पर निर्भर रहता हूँ। उस गधे ने कई सालों तक मेरी वफादारी से सेवा की, लेकिन अब वह मर चुका है। उसका नाम सरवल सिंह था।" (हँसी)

जब सभी को पता चला कि सरवल सिंह तो सिर्फ एक गधा था, तो वे सभी बहुत शर्मिंदा हुए क्योंकि उन्हें इतनी आसानी से गुमराह किया जा सकता था।

पाठ:
"सरवल सिंह की मौत" की कहानी इस बात की एक शक्तिशाली याद दिलाती है कि सच्चाई की पुष्टि किए बिना समाज कितनी आसानी से जनमत से प्रभावित हो सकता है। यह आलोचनात्मक सोच, विनम्रता और भीड़ का आँख मूंदकर अनुसरण करने के बजाय आम धारणाओं पर सवाल उठाने की इच्छा के महत्व पर प्रकाश डालता है।

प्रार्थना:
"हे प्रभु, मुझे सत्य की खोज करने की बुद्धि, प्रश्न करने का साहस और जब मैं नहीं जानता तो उसे स्वीकार करने की विनम्रता प्रदान करें। मुझे जनता की राय से गुमराह होने से बचने और हमेशा स्पष्टता और समझ के लिए प्रयास करने में मदद करें।"Copy paste 

बस जैसे हैं वैसे हैं

सोचा था बहुत टूटकर चाहेंगे तुम्हें
वह हमने किया भी 
टूटते रहें , बिखरते रहें 
जोड़ते रहे 
हल कुछ नहीं 
टूटे हम ही 
जोड़ कुछ न पाए 
तुमको बदल न पाए 
हम ही अपने को बदलते रहे 
समझते रहे 
हमको समझने की कोशिश किसी ने नहीं की
उनकी नजर में भी बुरे बने
जिनका बुरा तो कभी भी न चाहा
न तब न अब न कभी 
जाने क्यों 
कोई हमें समझ ही न पाया 
अब न समझना है 
न समझदार होना है 
बस जैसे हैं वैसे ही ठीक है