Sunday 23 February 2020

कर्म करें

कुत्तों से डर लगता है
वह वफादार होता है
रक्षक होता है
चौंकन्ना होता है
चौकीदार होता है
दूम हिलाता है आगे पीछे
स्वामीभक्त होता है
तब भी डर लगता है
क्योंकि वह खूंखार है
कब आक्रमण करें
यह कोई नहीं जानता

गाय से डर नहीं लगता
वह सीधी है
वह भोली है
वह दाता है
सबसे बड़ी बात
वह माता है
हानि पहुंचाना उसकी फितरत नहीं
शांत है
भौंकना उसका स्वभाव नहीं
पता है इसके पास अंजान भी जा सकता है
बडा हो या बच्चा
यह डराती नहीं

यही बात का मर्म है
स्वभाव बदले
तब ही पास आएंगा कोई
अन्यथा दूर से ही डर जाएगा
आपकी आवाज़ सुन
पास लाना है
सबके साथ होना है
तब कुत्ता नहीं गौ माता बने
डरावना नहीं स्नेहल बने
क्रूर नहीं कोमल बने
निरीह होकर भी दानदाता बने
सर्वगुण संपन्न होकर भी नम्र बने
दूम नहीं हिलाना है
पूजा करवाना है
कर्म करें भौं भौं नहीं

Saturday 22 February 2020

वह हीरा थी

वह हीरा थी
मैने उसे साधारण पत्थर समझा
उसको तराश रही थी
जिसकी जरूरत नहीं थी
वह तो स्वयं ही चमकदार थी
आभासंपन्न थी
पर मैं भांप नहीं पाई
जबरन सब थोपती रही
अपने विचार लादती रही
उसको तुच्छ लेखती रही
वह सब करती रही
प्यार के नाम पर जबरदस्ती करती रही
वह सब सहती गई
यह नहीं कि डरती थी
बल्कि मुझसे बहुत प्रेम करती थी
इसलिए मेरी गलतियों को नजरअंदाज करती रही
जब सब्र का बांध टूट गया
वह छोड़ कर चली गयी
मैं उसकी याद में बिसुरती रही
हीरे को पत्थर समझा
उस भूल की सजा भुगतती रही
उसकी अहमियत न समझी
ऐसी नादानी कैसे हुई
अब स्वयं पत्थर की मूरत बन बैठी हूँ
सब कुछ वह ले गई
मेरे अंतर्मन को रीता कर गई
मुझे छोड़ कर चली गई
मैं विवश हो देखती रह गई

Friday 21 February 2020

हैप्पी महाशिवरात्रि

आज महाशिवरात्रि है
देवो के देव महादेव का दिन है
बाबा भोलेनाथ की कृपा प्राप्त करने का दिन है
शिव पार्वती की उपासना का दिन है
डमरू वाले और जटाधारी का दिन है
भस्म मले धुनी रमाए बाबा का दिन है
अधखुली ऑखों से सारे संसार को देखने वाले बाबा विश्वनाथ का दिन है
गले में विषधर नाग और सर पर शीतल चंद्रमा धारण करने वाले योगी का दिन है
जटा में गंगा मैया को समेट कर रखने वाले का दिन है
सब छोड़ कैलाश पर्वत पर वास करने वाले का दिन है
औघड़ साधुओं और भूतो के नाथ का दिन है
भोले तो है पर संसार को भस्म करने वाले त्रिनेत्र का दिनहै
अपने भक्तों पर असीम कृपा बरसाने वाले
भांग धतूरे से प्रसन्न होने वाले
नंदी के स्वामी का दिन है
गणेश और कार्तिकेय के पिता पार्वती पति का दिन है
तब आइए बाबा भोलेनाथ की भक्ति में रम जाय
आज के दिन उनकी शरण में आ जाय
अपने जीवन का कल्याण कर ले
उनकी कृपा और आशीर्वाद प्राप्त कर ले
सभी को महाशिवरात्रि की शुभकामना

रफू कर लें

कपडा फट गया
सी लिया
रफू कर लिया
फिर पहनने लायक बना लिया
जिंदगी में भी चीर लग जाती है
हम उसे भी सिलने का प्रयास करते हैं
जीने का रास्ता निकालते हैं
जब तक चले
कोशिश जारी
कपड़े को भी फेंकते नहीं
क्योंकि अभी तो नया है ,खरिदा है
मेहनत की कमाई से
कुछ समय तो इस्तेमाल कर ले
तब जिंदगी भी तो कुछ ही समय की
अभी-अभी तो मिली है
बहुतों की मेहनत और त्याग है
स्वयं की भी भागीदारी कम तो नहीं
न जाने यहाँ तक पहुंचने के लिए क्या क्या किया गया
कितना जतन
कितना पैसा
इसका तो कोई हिसाब-किताब नहीं
अभी-अभी तो जिम्मेदारियो से पाला पडा है
अडचने भी आएगी ही
तब क्या करें
जीना छोड़ दे
नहीं
तब??
रफू करें ,बखिया करें ,तुरपाई करें हाथ से या
मशीन चलाए
पर उसको छोड़ दे
यह हरगिज न करें
फटे रहने दे
संवार दे
यह तो हमारे हाथ में
तब कमाल कर दे
ऐसा रफू करें
किसी को दिखाई न दे

पारखी निगाह

बाजार गई थी ,घर में पहनने वाली मेक्सी पुरानी हो गई थी
फटी नहीं थी पर मन ऊब गया था
सोचा एक नई ले लू
रंग-बिरंगी टंगी हुई थी
एक पसंद आई रंग और डिजाइन में
ले लिया और उसको पानी में खंगाल भी लिया
अगले दिन जब पहनी तो उसमें चीरा था
कहाँ और कैसे ??
कपडा भी मजबूत और नया
पता भी न चला
न मैंने ध्यान से देखा
क्योंकि कोई बहुत मंहगी भी नहीं थी
पर वह मेरी नजरअंदाजी खल गई
जीवन में भी कई बार ऐसा होता है
हम लोगों पर विश्वास कर लेते हैं
छोटी बात को ज्यादा तवज्जों नहीं देते हैं
कभी टाल देते हैं
कभी-कभी नजरअंदाज कर देते हैं
पर वह भारी पड जाता है
यहाँ तक कि ताउम्र हम स्वयं को कोसते रह जाते हैं
झल्लाते है
यह भी नहीं कि हम नासमझ थे
अंजाने में गलती हुई
तब इसका क्या ??
हर बात को पारखी निगाहों से परखना
वह छोटी हो या बड़ी
हर पल सावधान
यही हो जिंदगी का फलसफा

Friday 7 February 2020

उन्हें संजोकर रखना है

जिंदगी गुजरती जा रही है
बहुत कुछ ख्याल आता है
ऐसा होता तो ??
ऐसा क्यों हुआ ??
मेरे साथ ही ??
फिर नजर डाली पूरी जिंदगी पर
बहुत कुछ खास है
कितने लोग अपने है
कैसा परिवार है
कैसा माहौल है
तब लगा
इतनी बुरी भी नहीं
बहुत कुछ तो पाया है
अपनों का प्यार साथ रहा है
लाजवाब लोग मिले हैं
अच्छे लम्हों की कतार है
गुजरना नहीं
इसे जीना कहते हैं
भरपूर जी भी रहे हैं
कभी-कभी अमावस की रात भी आती है
पर वह हमेशा तो नहीं रहती
छट ही जाती है
पुर्णिमा भी तो आती है
जब भरपूर प्रकाश होता है
टूटे  सपने ही नहीं
यादगार लम्हे भी तो साथ है
उनका तो भरपूर आनंद ले ले
जो नहीं मिला
उसकी अपेक्षा जो मिला
वह भी तो वरदान है
कितनों को तो वह भी नसीब नहीं
जिंदगी गुजारना नहीं जीना है
हर लम्हों को कैद करना है
सुनहरे पलों को याद करना है
उन्हें संजोकर रखना है

Thursday 6 February 2020

जाने तब बात क्या हुई

ना तुम गलत
न मैं सही
जाने तब बात क्या हुई
नजदीकिया क्यों दूरियों में तबदील हुई
सपने भी एक
अरमान भी एक
प्रयास भी भरपूर
फिर अचानक यह क्या हो गया
जिंदगी ने नया मोड़ ले लिया
छोटी सी अनबन ने बडा रूप धर लिया
नौबत अलगाव तक आ गई
अब समय आ गया
अलविदा कहने का
एक - दूसरे से जुदा होने का
इतना आसान तो नहीं है यह
पर चारा भी तो नहीं है कुछ
कुछ बचा ही नहीं
तुम भी चुप
मैं भी चुप
तब कैसे निकले हल
रास्ता सुझता नहीं
तुम्हारे कदम बढते नहीं
बस फासला बढ रहा
क्या कोई उपाय नहीं इसका
कुछ तुम बोलो
कुछ मैं बोलूं
कुछ अपनी कमियों को देखो
कुछ मेरी कमियों को नजरअंदाज करों
संपूर्ण तो कोई नहीं इस जहां में
तब मैं और तुम भी तो इसी जहां का हिस्सा
तब यह अभिमान छोड़ो
मन की भावनाओं को अभिव्यक्ती दो
ज्यादा समय नहीं है
ऐसा न हो दे हो जाय
हम - तुम हमेशा के लिए जुदा हो जाय
न तुम गलत
न मैं सही
जाने तब बात क्या हुई

जीवन जीना तो कोई उससे सीखे

पेड़ से पत्ते गिरते हैं
फूल गिरते हैं
फल गिरते हैं
वह विचलित नहीं होता
अपना काम करता रहता है
नव निर्माण  जारी रहता है
वह न उदास होता है
न बिसुरता है
आंधी - तूफान सब सहता है
जडो को कस कर पकड़े रहता है
कोई उसे हिलाता है
कोई पत्थर मारता है
कोई डाली तोडता है
पर वह है कि
हमेशा कार्यरत रहता है
बहुत कुछ खोता है
पर खोने का दुख नहीं करता
फूल गिर गए
नया आएगा
यह प्रक्रिया अनवरत चलती रहती है
पतझड़ भी आता है
वसंत भी आता है
वह ,वहीं का वहीं
अपने में मगन
दाता भी है
देने में कोई कसर नहीं छोड़ता
हर कोई उसका अपना
कोई भेदभाव नहीं
छांव तो वह सबको देता है
अमीर हो या गरीब
सबका है वह
प्राण वायु देता है
भले उसको काटा जाय
पर वह अपना कण-कण
समर्पित करता है
जीता है तब भी
मरता है तब भी
हर हाल में देता है
जीवन जीना तो कोई उससे सीखे

Wednesday 5 February 2020

यह घर अपना है ???

एक घर हो अपना
यह हर इंसान का सपना
जहाँ अपना हो राज
नहीं किसी का दखलंदाज
अपनी मर्जी के मालिक हम
नहीं कोई दवाब
जैसा चाहे वैसा रहना
जैसा चाहे वैसा रखना
जहाँ चाहे वहाँ विचरण
सारी दुनिया से अलहदा
ऐसा हो अपना आशियाना
खूबसूरत हो
आकर्षक हो
हवादार हो
प्रकाशमय हो
फैलाव हो
आरामदायक हो
शांत परिसर में हो
सब कुछ हो जिसकी जरूरत हो
यही सपना संजोता है हर कोई
उस सपने को हकीकत में बदलने की कोशिश
सारी जिंदगी जुगाड़ करता है
पाई पाई जोड़ता है
बचत करता है
एक सपने को पूरा करने की खातिर
बहुत सारे सपनों को मारता है
तब जाकर एक अदद घर तैयार होता है
जब रहने की बारी आती है
तब तक उसका वारिस तैयार हो जाता है
अब तक तो थे घर में
अब बरामदे में वास
ताकते हुए
निहारते हुए
सोचते हुए
यह घर अपना है
हमारा है
बेगाना है
सपना है

ऐसा सोचा तो न था

हम तो शांत थे
बेखबर थे
अंजान थे
इतना बडा भूचाल
इतना बड़ा तूफान
जीवन को बदल देगा
सारी कल्पना हवा कर देगा
सारे सपने तहस-नहस कर देगा
ऐसा सोचा तो न था
कभी कुछ गंभीरता से नहीं लिया
जिंदगी अपने ढर्रे पर चलती रही
हम भी खुशी खुशी उसके साथ चलते रहे
न कोई अपेक्षा
न कोई ताम झाम
जो मिला उसी में संतुष्ट हो लिए
तेरे साथ चलते रहे
आगे बढते रहे
सब कुछ ठीक ही चल रहा था
अचानक ऐसा धक्का दिया
न हम संभल पाए
न उबर पाए
बस मायूस हो सोचते रह गए
मजबूर हो ताकते रह गए
तब महसूस हुआ
हमारे हाथ में कुछ नहीं
सब किस्मत का लेख
प्रयास लाख सही
होगा तो वही
जो रेखा कहेंगी
लकीरें कहेंगी
जो खिंची जा चुकी है
तब हमारे सोचने से क्या
यह बात दिगर है
हम सोचते थे
हमारी मुट्ठी में हमारी तकदीर
पर शायद नहीं
ऐसा होगा
यह दिन भी देखना पडेगा
ऐसा सोचा तो न था

अब तो बस कर

बहुत गम दे दिए
बहुत रूला दिया
बहुत सता दिया
तू जुल्म करती रही
हम सहते रहे
अब तो बस कर
ज्यादा समय नहीं है
कब तेरा साथ छूट जाएं
वैसे भी तेरा क्या भरोसा
कब दगा दे जाए
कुछ वक्त तो खुशी से गुजारने दे
हंसने और मुस्कराने दे
सुकून से जीने दे
कितना सताएगी
कितना रूलाएगी
अभी भी जी नहीं भरा
अब तो बस कर

Tuesday 4 February 2020

करें तो क्या करें

कुछ चले गए
साथ छोड़ गए
यादों में कैद हो गए
फिर कभी नहीं मिले
याद है पर उसका क्या
कभी खुशी कभी गम
कभी मुस्कान
कभी ऑसू
दिल तडप जाता है
क्यों रोक न पाए हम
पर वह हमारे हाथ में कहाँ ??
हम विधाता नहीं है न
जो साथ थे
आज तस्वीर में है
हर पल देखते हैं
उनका स्नेह
उनका प्यार
हमारे अपने हमें क्यों छोड़ गए
उनकी छत्रछाया से क्यों मरहूम कर गए
वे जानते थे
हम अकेले रह जाएंगे
तब भी
समझ नहीं आता
क्यों बिछुड़ना पडता है अपनों से
वे तो गए
हम तो जीकर भी मर गए
हर पल पीडा
यह तो वही जान सकता है
जिसने अपनों को खोया हो
जिंदगी चलती रही अपनी रफ्तार से
हमारा समय तो वही ठहर गया
जहाँ साथ छूट गया
इस घाव का मरहम भी तो नहीं है
टीसता है
रीसता है
पर ठीक नहीं होता
वैसे का वैसा
इतने सालों बाद भी
महसूस होता है
जैसे कल की ही बात हो
न पुरानी पडती है
न भूलती है
न जीने देती है
करें तो क्या करें

साथ मत छोड़ो

आज की हवा कुछ सर्द है
खामोश है
चल रही है हौले हौले
पर वह बात नहीं है
तब क्या बात हो गई
तुम बेगानी सी क्यों होने लगी
वह चंचलता
वह अक्खड़पन
वह डोलना
वह सरसराहट
कुछ भी तो नहीं
मुस्कान भी गायब
उदास हो
क्यों कुछ ऐसी हो
किसने कुछ कहा
कुछ कहा सुनी हुई
यह सब तो होता है
जब साथ है
तब तक ही तो पास है
दूर जाने पर कौन किसका ?
यह उदासी छोड़ो
झूमो ,नाचो ,गाओ
क्या रखा है
सब यही रह जाना है
बस याद ही बाकी रहना है
बतिया लो जी खोलकर
कह सुन लो जी भर कर
बस उदास मत हो
साथ मत छोडो

Monday 3 February 2020

Who hurts you

*Who hurts you!!*

_When Abraham Lincoln became the president of America, his father was a shoemaker.  And, naturally, egoistic people were very much offended that a shoemaker’s son should become the president.   On the first day, as Abraham Lincoln entered to give his inaugural address, just in the middle, one man stood up.  He was a very rich aristocrat.  He said, “Mr. Lincoln, you should not forget that your father used to make shoes for my family.”  And the whole Senate laughed; they thought that they had made a fool of Abraham Lincoln._

_But certain people are made of a totally different mettle. Lincoln looked at the man directly in the eye and said, *“Sir, I know that my father used to make shoes for your family, and there will be many others here because he made shoes the way nobody else can”. He was a creator. His shoes were not just shoes; he poured his whole soul into them. I want to ask you, have you any complaint? Because I know how to make shoes myself. If you have any complaint I can make you another pair of shoes. But as far as I know, nobody has ever complained about my father’s shoes. He was a genius, a great creator and I am proud of my father”.*_

_The whole Senate was struck dumb. They could not understand what kind of man Abraham Lincoln was. He was proud because his father did his job so well, with so much enthusiasm, such a passion, and perfection._

*_It does not matter what you do. What matters is how you do it of your own accord, with your own vision, with your own love.  Then whatever you touch becomes gold._*

*Moral*

_No one can hurt you without your consent. It is not what happens to us that hurts us. It is our response that hurts us._

*“Ships don’t sink because of the water around them; ships sink because of the water that gets in them. Don’t let what’s happening around you get inside you and weigh you down”*

*WONDERFUL PIECE FOR THE VERY MATURE MIND*.
Copy paste

तत्वनिष्ठ कहानी

        *तत्त्वनिष्ठ*
"अजी सुनते हो? राहूल को कम्पनी में जाकर टिफ़िन दे आते हो क्या?"
"क्यों आज राहूल टिफ़िन लेकर नहीं गया।?"
शरदराव ने पुछा।
आज राहूल की कम्पनी के चेयरमैन आ रहे हैं, इसलिये राहूल सुबह सात बजे ही निकल गया और इतनी सुबह खाना नहीं बन पाया था।"
" ठीक हैं। दे आता हूँ मैं।"
शरदराव ने हाथ का पेपर रख दिया और वो कपडे बदलने के लिये कमरे में चले गये।"
पुष्पाबाई ने एक उच्छ्वास छोडकर राहत की साँस ली।
शरदराव तैयार हुए मतलब उसके और राहूल के बीच हुआ विवाद उन्होंने नहीं सुना था। विवाद भी कैसा ? हमेशा की तरह राहूल का अपने पिताजी पर दोषारोपण करना और पुष्पाबाई का अपनी पति के पक्ष में बोलना।
विषय भी वही! हमारे पिताजी ने हमारे लिये क्या किया? मेरे लिये क्या किया हैं मेरे बाप ने ?  ऐसा गैरसमज उसके मन में समाया हुआ था।
  "माँ! मेरे मित्र के पिताजी भी शिक्षक थे, पर देखो उन्होंने कितना बडा बंगला बना लिया। नहीं तो एक ये हमारे नाना (पिताजी) । अभी भी हम किराये के मकान में ही रह रहे हैं।"
"राहूल, तुझे मालूम हैं कि तुम्हारे नाना घर में बडे हैं। और दो बहनों और दो भाईयों की शादी का खर्चा भी उन्होंने उठाया था। सिवाय इसके तुम्हारी बहन की शादी का भी खर्चा उन्होंने ने ही किया था। अपने गांव की जमीन की कोर्ट कचेरी भी लगी ही रही। ये सारी जवाबदारियाँ किसने उठाई? "
" क्या उपयोग हुआ उसका? उनके भाई - बहन बंगलों में रहते हैं। कभी भी उन्होंने सोचा कि हमारे लिये जिस भाई ने इतने कष्ट उठाये उसने एक छोटा सा मकान भी नहीं बनाया, तो हम ही उन्हें एक मकान बना कर दे दें ? "
एक क्षण के लिए पुष्पाबाई की आँखें भर आईं। क्या बतायें अपने जन्म दिये पुत्र को  *"बाप ने क्या किया मेरे लिये"*  पुछ रहा हैं? फिर बोली  ....
" तुम्हारे नाना ने अपना कर्तव्य निभाया। भाई-बहनों से कभी कोई आशा नहीं रखी। "
राहूल मूर्खों जैसी बात करते हुए बोला — "अच्छा वो ठीक हैं। उन्होंने हजारों बच्चों की ट्यूशन्स ली। यदि उनसे फीस ले लेते तो आज पैसो में खेल रहे होते। आजकल के क्लासेस वालों को देखो। इंपोर्टेड गाड़ियों में घुमते हैं। "
" यह तुम सच बोल रहे हो। परन्तु, तुम्हारे नाना( पिताजी) का तत्व था, *ज्ञानदान का पैसा नहीं लेना।* उनके इन्हीं तत्वों के कारण उनकी कितनी प्रसिद्धि हुई। और कितने पुरस्कार मिलें। उसकी कल्पना हैं तुझे। "
ये सुनते ही राहूल एकदम नाराज हो गया।
" क्या चाटना हैं उन पुरस्कारों को? उन पुरस्कारों से घर थोडे ही बनाते आयेगा। पडे ही धूल खाते हुए। कोई नहीं पुछता उनको।"
इतने में दरवाजे पर दस्तक सुनाई दी। राहूल ने दरवाजा खोला तो शरदराव खडे थे। नाना ने अपना बोलना तो नहीं सुना इस डर से राहूल का चेहरा उतर गया। परन्तु, शरदराव बिना कुछ बोले अन्दर चले गये। और वह वाद वहीं खत्म हो गया।
ये था पुष्पाबाई और राहूल का कल का झगड़ा, पर आज ....

शरदरावने टिफ़िन साईकिल को  अटकाया और तपती धूप में औद्योगिक क्षेत्र की राहूल की कम्पनी के लिये निकल पडे। सात किलोमीटर दूर कंपनी तक पहूचते - 2 उनका दम फूल गया था। कम्पनी के गेट पर सिक्युरिटी गार्ड ने उन्हें रोक दिया।
"राहूल पाटील साहब का टिफ़िन देना हैं। अन्दर जाँऊ क्या?"
"अभी नहीं देते आयेगा।" गार्ड बोला।
"चेयरमैन साहब आये हुए हैं। उनके साथ मिटिंग चल रही हैं। किसी भी क्षण वो मिटिंग खत्म कर आ सकते हैं। तुम बाजू में ही रहिये। चेयरमैन साहब को आप दिखना नहीं चाहिये।"
शरदराव थोडी दूरी पर धूप में ही खडे रहे। आसपास कहीं भी छांव नहीं थी।
थोडी देर बोलते बोलते एक घंटा निकल गया। पांवों में दर्द उठने लगा था। इसलिये शरदराव वहीं एक तप्त पत्थर पर बैठने लगे, तभी गेट की आवाज आई। शायद मिटिंग खत्म हो गई होगी।
  चेयरमैन साहेब के पीछे पीछे अधिकारी
और उनके साथ राहूल भी बाहर आया।
उसने अपने पिताजी को वहाँ खडे देखा तो मन ही मन नाराज हो गया।
   चेयरमैन साहब कार का दरवाजा खोलकर बैठने ही वाले थे तो उनकी नजर शरदराव की ओर उठ गई। कार में न बैठते हुए वो वैसे ही बाहर खडे रहे।
  "वो सामने कौन खडा हैं?" उन्होंने सिक्युरिटी गार्ड से पुछा।
"अपने राहूल सर के पिताजी हैं। उनके लिये खाने का टिफ़िन लेकर आये हैं।" गार्ड ने कंपकंपाती आवाज में कहा।
"बुलवाइये उनको। "
  जो नहीं होना था वह हुआ। राहूल के तन से पसीने की धाराऐं बहने लगी। क्रोध और डर से उसका दिमाग सुन्न हुआ जान पडने लगा।
गार्ड के आवाज देने पर शरदराव पास आये।
चेयरमैन साहब आगे बढे और उनके समीप गये।
" आप पाटील सर हैं ना? डी. एन. हायस्कूल में शिक्षक थे। "
" हाँ। आप कैसे पहचानते हो मुझे?"
कुछ समझने के पहले ही चेयरमैन साहब ने शरदराव के चरण छूये। सभी अधिकारी और राहूल वो दृश्य देखकर अचंभित रह गये।
"सर, मैं अतिश अग्रवाल। तुम्हारा विद्यार्थी । आप मुझे घर पर पढ़ाने आते थे। "
" हाँ.. हाँ.. याद आया। बाप रे बहुत बडे व्यक्ति बन गये आप तो ..."
चेयरमैन हँस दिये। फिर बोले, "सर आप यहाँ धूप में क्या कर रहे हैं। आईये अंदर चलते हैं। बहुत बातें करनी हैं आपसे।
सिक्युरिटी तुमने इन्हें अन्दर क्यों नहीं बिठाया? "
गार्ड ने शर्म से सिर नीचे झुका लिया।
वो देखकर शरदराव ही बोले —" उनकी कोई गलती नहीं हैं। आपकी मिटिंग चल रही थी। आपको तकलीफ न हो, इसलिये मैं ही बाहर रूक गया। "
"ओके... ओके...!"
चेयरमैन साहब ने शरदराव का हाथ  अपने हाथ में लिया और उनको अपने आलीशन चेम्बर में ले गये।
"बैठिये सर। अपनी कुर्सी की ओर इंगित करते हुए बोले।
" नहीं। नहीं। वो कुर्सी आपकी हैं।" शरदराव सकपकाते हुए बोले।
"सर, आपके कारण वो कुर्सी मुझे मिली हैं। तब पहला हक आपका हैं। "
चेयरमैन साहब ने जबरदस्ती से उन्हें अपनी कुर्सी पर बिठाया।
" आपको मालूम नहीं होगा पवार सर.."
जनरल मैनेजर की ओर देखते हुए बोले,
"पाटिल सर नहीं होते तो आज ये कम्पनी नहीं होती और मैं मेरे पिताजी की अनाज की दुकान संभालता रहता। "
राहूल और जी. एम. दोनों आश्चर्य से उनकी ओर देखते ही रहे।
"स्कूल समय में मैं बहुत ही डब्बू विद्यार्थी था। जैसे तैसे मुझे नवीं कक्षा तक पहूँचाया गया। शहर की सबसे अच्छी क्लासेस में मुझे एडमिशन दिलाया गया। परन्तु मेरा ध्यान कभी पढाई में नहीं लगा। उस पर अमीर बाप की औलाद। दिन भर स्कूल में मौज मस्ती और मारपीट करना। शाम की क्लासेस से बंक मार कर मुवी देखना यही मेरा शगल था। माँ को वो सहन नहीं होता। उस समय पाटिल सर कडे अनुशासन और उत्कृष्ट शिक्षक के रूप में प्रसिद्ध थे। माँ ने उनके पास मुझे पढ़ाने की विनती की। परन्तु सर के छोटे से घर में बैठने के लिए जगह ही नहीं थी। इसलिये सर ने पढ़ाने में असमर्थता दर्शाई। माँ ने उनसे बहुत विनती की। और हमारे घर आकर पढ़ाने के लिये मुँह मांगी फीस का बोला। सर ने फीस के लिये तो मना कर दिया। परन्तु अनेक प्रकार की विनती करने पर घर आकर पढ़ाने को तैयार हो गये। पहिले दिन सर आये। हमेशा की तरह मैं शैतानी करने लगा। सर ने मेरी अच्छी तरह से धुनाई कर दी। उस धुनाई का असर ऐसा हुआ कि मैं चुपचाप बैठने लगा। तुम्हें कहता हूँ राहूल, पहले हफ्ते में ही मुझे पढ़ने में रूचि जागृत हो गई। तत्पश्चात मुझे पढ़ाई के अतिरिक्त कुछ भी सुझाई नहीं देता था। सर इतना अच्छा पढ़ाते थे, अंग्रेजी, गणित, विज्ञान जैसे विषय जो मुझे कठिन लगते थे वो अब सरल लगने लगे थे। सर कभी आते नहीं थे तो मैं व्यग्र हो जाता था। नवीं कक्षा में मैं दुसरे नम्बर पर आया। माँ-पिताजी को खुब खुशी हुई। मैं तो, जैसे हवा में उडने लगा था। दसवीं में मैंने सारी क्लासेस छोड दी और सिर्फ पाटिल सर से ही पढ़ने लगा था। और दसवीं में मेरीट में आकर मैंने  सबको चौंका दिया था।"
" माय गुडनेस...! पर सर फिर भी आपने सर को फीस नहीं दी? "
  जनरल मैनेजर ने पुछा।          
" मेरे माँ - पिताजी के साथ मैं सर के घर पेढे लेकर गया। पिताजी ने सर को एक लाख रूपये का चेक दिया। सर ने वो नहीं लिया। उस समय सर क्या बोले वो मुझे आज भी याद हैं। सर बोले — "मैंने कुछ भी नहीं किया। आपका लडका ही बुद्धिमान हैं। मैंने सिर्फ़ उसे रास्ता बताया। और मैं ज्ञान नहीं बेचता। मैं वो दान देता हूँ। बाद में मैं सर के मार्गदर्शन में ही बारहवीं मे पुनः मेरीट में आया। बाद में बी. ई. करने के बाद अमेरिका जाकर एम. एस. किया। और अपने शहर में ही यह कम्पनी शुरु की। एक पत्थर को तराशकर सर ने हीरा बना दिया। और मैं ही नहीं तो सर ने ऐसे अनेक असंख्य हिरें बनाये हैं। सर आपको कोटी कोटी प्रणाम...!!"
चेयरमैन साहब ने अपनी आँखों में आये अश्रु रूमाल से पोंछे।
" परन्तु यह बात तो अदभूत ही हैं कि, बाहर शिक्षा का और ज्ञानदान का  बाजार भरा पडा होकर भी सर ने एक रूपया भी न लेते हुए हजारों विद्यार्थियों को पढ़ाया, न केवल पढ़ाये पर उनमें पढ़ने की रूचि भी जगाई। वाह सर मान गये आपको और आपके आदर्श को।"
शरदराव की ओर देखकर जी. एम ने कहा।
" अरे सर! ये व्यक्ति तत्त्वनिष्ठ हैं। पैसों, और मान सम्मान के भूखे भी नहीं हैं। विद्यार्थी का भला हो यही एक मात्र उद्देश्य था। "चेयरमैन बोले।
" मेरे पिताजी भी उन्हीं मे से एक। एक समय भूखे रह लेंगे, पर अनाज में मिलावट करके बेचेंगे नहीं।" ये उनके तत्व थे। जिन्दगी भर उसका पालन किया। ईमानदारी से व्यापार किया। उसका फायदा आज मेरे भाईयों को हो रहा हैं।"
बहुत देर तक कोई कुछ भी नहीं बोला  । फिर चेयरमैन ने शरदराव से पुछा, - "सर आपने मकान बदल लिया या उसी मकान में हैं रहते हैं। "
"उसी पुराने मकान में रहते हैं सर! "
शरदराव के बदले में राहूल ने ही उत्तर दिया।
    उस उत्तर में पिताजी के प्रति छिपी नाराजगी तत्पर चेयरमैन साहब की समझ में आ गई ।
‌"तय रहा फिर। सर आज मैं आपको गुरू दक्षिणा दे रहा हूँ। इसी शहर में मैंने कुछ फ्लैट्स ले रखे हैं। उसमें का एक थ्री बी. एच. के. का मकान आपके नाम कर रहा हूँ....."
"क्या.?"
शरदराव और राहूल दोनों आश्चर्य चकित रूप से बोलें। "नहीं नहीं इतनी बडी गुरू दक्षिणा नहीं चाहिये मुझे।"शरदराव आग्रहपूर्वक बोले।
चेयरमैन साहब ने शरदराव के हाथ को अपने हाथ में लिया।  " सर, प्लीज....  ना मत करिये और मुझे माफ करें। काम की अधिकता में आपकी गुरू दक्षिणा देने में पहले ही बहुत देर हो चुकी हैं।"
फिर राहूल की ओर देखते हुए उन्होंने पुछ लिया, राहूल तुम्हारी शादी हो गई क्या? "
‌" नहीं सर, जम गई हैं। और जब तक रहने को अच्छा घर नहीं मिल जाता तब तक शादी नहीं हो सकती। ऐसी शर्त मेरे ससुरजी ने रखी होने से अभी तक शादी की डेट फिक्स नहीं की। तो फिर हाॅल भी बुक नहीं किया। "
चेयरमैन ने फोन उठाया और किसी से बात करने लगे।समाधान कारक चेहरे से फोन रखकर, धीरे से बोले" अब चिंता की कोई बात नहीं। तुम्हारे मेरीज गार्डन का काम हो गया। *"सागर लान्स"* तो मालूम ही होगा! "
" सर वह तो बहूत महंगा हैं... "
" अरे तुझे कहाँ पैसे चुकाने हैं। सर के सारे विद्यार्थी सर के लिये कुछ भी कर
‌ ‌सकते हैं। सर के बस एक आवाज देने की बात हैं। परन्तु सर तत्वनिष्ठ हैं, वैसा करेंगे भी नहीं। इस लान्स का मालिक भी सर का ही विद्यार्थी हैं। उसे मैंने सिर्फ बताया। सिर्फ हाॅल ही नहीं तो भोजन सहित संपूर्ण शादी का खर्चा भी उठाने की जिम्मेदारियाँ ली हैं उसने... वह भी स्वखुशी से। तुम केवल तारिख बताओ और सामान लेकर जाओ।
"बहूत बहूत धन्यवाद सर।" राहूल अत्यधिक खुशी से हाथ जोडकर बोला। "धन्यवाद मुझे नहीं, तुम्हारे पिताश्री को दो राहूल! ये उनकी पुण्याई हैं। और मुझे एक वचन दो राहूल! सर के अंतिम सांस तक तुम उन्हें अलग नहीं करोगे और उन्हें
कोई दुख भी नहीं होने दोगे। मुझे जब भी मालूम चला कि, तुम उन्हें दुख दे रहे होतो, न केवल इस कम्पनी से  लात मारकर भगा दुंगा परन्तु पुरे महाराष्ट्र भर के किसी भी स्थान पर नौकरी करने लायक नहीं छोडूंगा। ऐसी व्यवस्था कर दूंगा।"
चेयरमैन साहब कठोर शब्दों में बोले।
" नहीं सर। मैं वचन देता हूँ, वैसा कुछ भी नहीं होगा। "राहूल हाथ जोडकर बोला।
   शाम को जब राहूल घर आया तब, शरदराव किताब पढ रहे थे। पुष्पाबाई पास ही सब्जी काट रही थी। राहूल ने बॅग रखी और शरदराव के पाँव पकडकर बोला —" नाना, मुझसे गलती हो गई। मैं आपको आजतक गलत समझता रहा। मुझे पता नहीं था नाना आप इतने बडे व्यक्तित्व लिये हो।"
‌ शरदराव ने उसे उठाकर अपने सीने से लगा लिया।
अपना लडका क्यों रो रहा हैं, पुष्पाबाई की समझ में नहीं आ रहा था। परन्तु कुछ अच्छा घटित हुआ हैं। इसलिये पिता-पुत्र में प्यार उमड रहा हैं। ये देखकर उनके नयनों से भी कुछ बुन्दे गाल पर लुढक आई।
.....................................
*एक विनती*
  ☝ *उपरोक्त कथा पढने के उपरान्त आपकी आँखों से 1 भी बुन्द बाहर आ गई हो तो ही यह पोस्ट अपने स्नेहीजन तक भेजियेगा जरूर ! ✍✍✍✍✍✍ * और कृपया अपने पिताजी से कभी यह न कहे कि "आपने मेरे लिये किया ही क्या हैं? क्या कमाकर रखा मेरे लिये? जो भी कमाना हो वो स्वयम् अर्जित करें। जो शिक्षा और संस्कार उन्होंने तुम्हें दिये हैं वही तुम्हें कमाने के लिए पथप्रदर्शक रहेंगे*
✍ श्री अनिल मांडगेजी की पोस्ट का हिन्दी अनुवाद। ✍
अनुवादक
भारतेन्द्र लाम्भाते Copy paste