Friday 29 July 2022

कहानी

समुद्र के किनारे जब एक तेज़ लहर आयी तो एक बच्चे का चप्पल ही अपने साथ बहा ले गयी.. 

बच्चा रेत पर अंगुली से लिखता है... "समुद्र चोर है"

उसी समुद्र के दूसरे किनारे पर एक मछुवारा बहुत सारी मछलियाँ पकड़ लेता है....

वह उसी रेत पर लिखता है..."समुद्र मेरा पालनहार है"

एक युवक समुद्र में डूब कर मर जाता है....

उसकी मां रेत पर लिखती है... "समुद्र हत्यारा है"

एक दूसरे किनारे एक गरीब बूढ़ा टेढ़ी कमर लिए रेत पर टहल रहा था...उसे एक बड़े सीप में एक अनमोल मोती मिल गया, 

वह रेत पर लिखता है... "समुद्र बहुत दानी है"

....अचानक एक बड़ी लहर आती है और सारे लिखा मिटा कर चली जाती है ।

मतलब समंदर को कहीं कोई फर्क नहीं पड़ता कि लोगों की उसके बारे में क्या राय हैं ,वो हमेशा अपनी लहरों के संग मस्त रहता है.. 

अगर विशाल समुद्र बनना है तो जीवन में क़भी भी फ़िजूल की बातों पर ध्यान ना दें....अपने उफान , उत्साह , शौर्य ,पराक्रम और शांति समुंदर की भाँती अपने हिसाब से तय करें ।

लोगों का क्या है .... उनकी राय परिस्थितियों के हिसाब से बदलती रहती है । अगर मक्खी चाय में गिरे तो चाय फेंक देते हैं और शुद्ध देशी घी मे गिरे तो मक्खी फेंक देते हैं । 

स्वस्थ रहें , मस्त रहें , हमेशा हँसते रहें, खिलखिलाते रहें औऱ अपना बहुत ख़याल रखें....
🙏जय श्री संकट मोचन हनुमान जी की🙏Copy Paste 

तमाशबीन

सांसद मुद्दों पर भटके
ईगो में अटके 
हाथ जोड़ने वाले अब हाथापाई पर
मीठी जबान का तो दर्शन नहीं 
कडवी इतनी कि नीम भी फेल 
फूल नहीं अंगारे बरस रहें 
मन में द्वेष की ज्वाला 
तब कैसे हो पब्लिक का भला
हम- तुम का चक्कर चल रहा
जनता खडी देख रही 
हर तमाशा 
वह बनी है तमाशबीन

मंहगाई मंहगाई मंहगाई

मंहगाई मंहगाई मंहगाई 
मंहगाई डायन मार गई
यह तो सब भूल गए 
वह तो अभी भी मार रही है 
उस पर तो चर्चा होने से रही
मुद्दा तो दूसरे बन गए
किसने किसको क्या बोला
किसका अपमान किया गया
क्या बोला गया
एक की गलती को सुधारने के लिए वही गलती करना
बडे - छोटे का लिहाज न करना
संसद को अखाड़ बना देना
जनता की समस्याओं का समाधान करने की अपेक्षा 
व्यक्ति गत बातों को प्रधानता
  वाणी को वीणा बनाए बाण नहीं 
  अन्यथा महाभारत तो होती रहेगी
चिल्लाहट - झल्लाहट तो सब खेल उलट 
क्या बात रखोगे क्या सुनेंगे 
जब स्वयं पर काबू नहीं
जबान ही नहीं 
हाथ - पैर सब चल रहे हैं 
मीडिया दिखाए या न दिखाए
समझाए या न समझाए
जनता सब समझ रही है
लोकतंत्र दुनिया का किस तरफ जा रहा है
यह भी महसूस कर रही है
क्योंकि कहीं न कहीं कुसूरवार तो वह भी है
नोटों का भंडार लगा है
इसी जनता के पैसे से
चुनाव के समय थोड़ा लालच दे बहला - फुसला लिया जाता है
उसी को बेवकूफ बना नेतागण उसी के पैसे पर राज कर रहे हैं 
मंहगाई तो सर उठाकर चली आ रही है
उस पर रोक टोक नहीं 
हाँ उसका समाधान का रास्ता नहीं 
जब आपस में लडना ही है तब यह सब तो बेमानी है 

Thursday 28 July 2022

धन्यवाद सोशल मीडिया

सोशल मीडिया है तो हम हैं 
यह आज की सबसे बड़ी जरूरत है
पहले परिवार साथ रहते थे
आसपास रहते थे
ग्रामीण संस्कृति थी
एक - दूसरे के सुख दुख में भागीदार
आज अपना घर औ गाँव छोड़ना पड रहा है
दूसरे शहर दूसरे देश जाना पड रहा है
रोजगार की तलाश में 
विकास के लिए 
तब अपनों से दूर 
बहुत मुश्किल है यह 
लेकिन शुक्रिया सोशल मीडिया का
उनका समाचार
उनसे बातचीत 
हो ही जाती है
दूर सुदूर में बैठे व्यक्ति के बारे में जान लेते हैं 
मन को खुशी और संतुष्टि मिलती है
अगर बात न भी हो
किसी न किसी तरह उनकी जानकारी मिल ही जाती है
मन कांप उठता है 
उस समय की बात सोचकर 
जब लोग केवल चिठ्ठी के माध्यम से खोज - खबर ले सकते थे
महीनों इंतजार करना पडता था
अपनों की सलामती की दुआ करते रहते थे
कोई पति से दूर
कोई बच्चों से दूर
कोई परिवार से दूर
गाँव- घर से दूर
इतना आसान नहीं था
जितना आज है
फेसबुक  , वट्सअप 
यह तो किसी वरदान से कम नहीं 
पहले कहते थे
दिल में है तस्वीर आपकी 
       जब जरा गर्दन झुकाई देख ली
अब तो
जब भी याद आए तुम्हारी 
फेसबुक और वट्सअप देख लो
मैसेज का आदान-प्रदान कर दो

संबध और रिश्ते

रफू कर लो टूटे हुए रिश्तों पर
फिर वह पहले जैसे हो जाएं 
हटा दो मन पर जमी काई
ताकि फिर साफ सुथरा अक्स देख सको
जला दो सब कड़वाहट को
ताकि ज्वाला में  सब भस्म हो जाएं 
होली - दीपावली का इंतजार क्यों 
हर दिन बुराई की होलिका जला दे
हर दिन प्रेम का दीपक जलाएं 
त्यौहार में ही मिठास क्यों 
हर दिन संबंधों की मिठास को महसूस करें 
ज्यादा दिन हो जाए 
तो मकडी भी जाला बना लेती है
हर दिन उस जाले को हटाए 
संबंधों पर उसे न फैलने दे
संबंधों पर नींबू नहीं 
शहद का छिड़काव करें 
मधुरता औ मिठास से सराबोर करें 
कुछ अपनी कहें कुछ उनकी सुने 
कुछ नजरअंदाज करें 
अपना नजरिया बदले
खट्टी मीठी  तकरार,  बरकरार रखें 
जहाँ प्यार वहाँ तकरार 
मौन तो सब मौन कर देगा
संवाद होता रहें 
तभी संबंध भी कायम 
नहीं तो तुम कौन हम कौन
औपचारिकता नहीं दिखावा नहीं 
मन से अनौपचारिक रहें 
तभी तो संबंधों की गरिमा भी ।

Wednesday 27 July 2022

चक्रव्यूह

हर किसी को अपनी लडाई लडनी पडती है 
हाँ उसका स्वरूप अलग हो सकता है
कभी-कभी हमें ऐसा लगता है
हमें ही इतनी बाधाएं आई
जीवन में समस्याएं आई
न जाने क्या-क्या देखना पडा
पिछली जर्नी  को देखें 
तब ऐसा लगता है 
क्या वास्तव में यह सब हमने ही किया है
याद कुछ रहता है कुछ भूल जाता है
यह शक्ति कहाँ से आई
हम तो ऐसे नहीं कर सकते थे
हमने किया 
यह हमारी उपलब्धि है 
देखा जाएं तो
सीधे - सरल राह पर चलना उतना कठिन नहीं 
जितना टेढे मेढे और उबड खाबड़ राह पर चलना
सरल राह भी तो कंकरीली- पथरीली हो सकती है
तब यह कहना कि
हमारे जैसी जिंदगी मिलती तब पता चलता
तुम्हें क्या पता
यह तो माया है
किसी को कुछ मिला
किसी को कुछ 
संपूर्णता तो किसी को नहीं 
तब यह देखना है
तुम उसे कैसे लेते हो
कोसते हुए ईश्वर को
रोते हुए 
उदासी ओढे हुए 
दूसरों को दोष देते हुए 
अपनी जिंदगी के हर पल के भागीदार आप स्वयं हो
आपका अपना कर्म
आपका अपना भाग्य 
इस पर किसी को हस्तक्षेप का अधिकार नहीं 
न कोई भाग्य विधाता है
न जीवनदाता 
यह सब तो चक्रव्यूह है
जिसमें फंसा हर व्यक्ति है ।

पानी का खेल

पानी रे पानी
हर तरफ पानी
इतना खौफनाक मंजर
जीवनदायिनि,  जीवन लीलने लगी
हर तरफ हाहाकार
तबाही का मंजर
जम कर जल प्रहार
सैलाब थमने का नाम नहीं ले रहा
जो आ रहा सामने
सबको हटा रहा
अपने में समा रहा 
नदिया उफान पर
समुदर भी उछल रहा
सबको अपने में समा रहा
मानो तांडव कर रहे हो
कब तक यह विनाश लीला होगी
रेगिस्तानी इलाकों में भी बाढ
प्रकृति भी बदल रही
अपना कहर ढा रही
बेबस सब देख रहें 
सब अकल हो गई फेल 
जब पानी ने खेला अपना खेल 

किससे कहे

हर सीप में मोती नहीं होता
हर दिल में भावना नहीं होती
अगर होती तब तो
इतना अत्याचार और अनाचार न होता
किसी की खुशियों को रौंदा नहीं जाता
किसी को धोखा देकर अपने सपनों का महल न तैयार करते 
किसी के शव पर जश्न नहीं मनाया जाता
किसी बेजुबान की हत्या नहीं होती
चोरी ,डकैती और कत्ल न होते
डंके की चोट पर भ्रष्टाचार न होता
चोर ही सीना जोरी नहीं करता
कमजोर को दबाया न जाता
नैतिकता और ईमानदारी सर उठाकर चलती
अफसोस ऐसा नहीं है
वही सुखी है जो इन सब में लिप्त है
बदमाशों का सर गर्व से ऊंचा 
न्याय की आशा करना व्यर्थ 
कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाते जिंदगी खत्म 
मन मारकर रहना
मुंह बंद कर रहना
सब कुछ देख कर भी बर्दाश्त करना
यह सब होता है 
भावना विहीन के कारण 
तभी तो कहा है
हर सीप में मोती नहीं होता 
हर दिल में भावना नहीं होती 
अगर होती तब 
इस दुनिया में जीना इतना मुश्किल नहीं होता
कदम कदम पर धोखे
कदम कदम पर छल कपट
कदम कदम पर डर
कदम कदम पर खतरा 
भविष्य अंजान 
मौत के साये में जीती जिंदगी 
कहाँ जाएं 
कहाँ पनाह ले
किससे कहें 



Tuesday 26 July 2022

हम भारत की नारी है

हम भारत की नारी है
नहीं किसी से हारी है 
सब पर भारी है
सब्जी काटने के चाकू से लेकर तलवार 
चलाना आता है
हम ही सीता हम ही लक्ष्मी बाई 
पति संग सब छोड़ चली वन को
पति विरासत की रक्षा करने बांध लिया पीठ पर पुत्र 
तलवार चला बनी मर्दानी 
अंग्रेजों ने भी जिसके आगे भरा पानी
जग जननी है
जग माता है
गृहिणी है ऐसा नहीं 
हम तो इंदिरा भी है 
द्रौपदी मुर्मू  भी हमी है
हम में तो महान प्रतिभा छिपी है
मौका तो दे कोई 
तब वह कर दिखाए 
असंभव को भी संभव बना दे 
न मिले तो 
अब अपना हक लेना हम जानती है
सहना ही नहीं छिनना  भी हमें आता है
हम ममता की मूरत है
पत्थर की नहीं 
हमें देवी मत बनाओ
हमारी क्षमता को मत दबाओ
हम तो कदम से कदम मिलाकर चलने वाली है
क्या घर क्या बाहर
अपना परचम फहराने वाली है
हम भारत की नारी है
नहीं किसी से हारी है 

तुलसी मैया

तुलसी मैया सबसे प्यारी सबसे न्यारी 
हर घर की शोभा है 
हर द्वार की शान है
छोटी सी है महिमा इसकी अपरंपार 
जिस आंगन में यह खिले
वह आँगन गुलजार 
ईश्वर की है प्यारी 
चरणामृत और प्रसाद भी इसके बिना अधूरा
किसी डाँक्टर से कम नहीं 
सर्दी , कफ की है रामबाण औषधि 
नहीं  चाहिए बडी जगह
एक छोटे से गमले में भी जगह दे दो
प्रसन्न हो जाए माता
सुबह - शाम दिए लगाने से मिलती है दुआ
घर हो जाता है सकरात्मक उर्जा से सराबोर 
वातावरण साफ और स्वच्छ 
दूषित हवा भागती दुम दबाकर
तब कोई कैसे रह सकता है तुमसे दूर 

Sunday 24 July 2022

पिता का घर

एक घर पिता का होता है
जहाँ अपनापन और अधिकार होता है
एक घर भाई का होता है
जहाँ हम मेहमान सरीखे होते हैं 
कुछ भी छूने से डर लगता है

एक घर पिता का होता है
जहाँ हम जिद करते हैं 
अपनी बात मनवा कर ही छोड़ते हैं 
खाने में ना - नुकुर करते हैं 
एक घर भाई का होता है
जहाँ हम समझदार हो जाते हैं 
जो मिला वह खा लेते हैं 
ना - नुकुर की कौन कहे 
रसोई में जाने पर भी डर लगता है

एक घर पिता का होता है
जहाँ हम जब चाहे आ - जा सकते हैं 
विचरण कर सकते हैं 
परमीशन की जरूरत नहीं 
एक घर भाई का होता है
जहाँ सोचना पडता है 
मौका और वक्त  देखना पडता है

एक घर पिता का होता है
जहाँ हम राजकुमारी होते है
राजदुलारी  होते हैं 
एक घर भाई का होता है
जहाँ हम सिर्फ उस घर की बेटी होते हैं 
नाज - नखरे नहीं कर सकते
उसे उठाने वाला कोई नहीं 
हर भाई पिता समान नहीं हो सकता

पिता तो पिता ही होता है
उसकी जगह कोई नहीं ले सकता 
न किसी का दिल इतना बडा होता है
अपना सर्वस्व लुटाकर भी हमारे चेहरे पर मुस्कान हो 
यह तो पिता ही कर सकता है।

Friday 15 July 2022

गुरू कैसा हो

गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णुः गुरूर्देवो महेश्वरः । गुरूर्साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ।। अर्थ : गुरू ही ब्रह्मा हैं, गुरू ही विष्णु हैं । ... अर्थ : जो सारे ब्रह्माण्ड में जड़ और चेतन सबमें व्याप्त हैं, उन परम पिता के श्री चरणों को देखकर मैं उनको नमस्कार करता हूँ ।
यह तो रही गुरू के प्रति भावना
अब तो यह बात भी है
गुरू कैसा होना चाहिए 
गुरू भी तो ज्ञान का सागर होना चाहिए 
तभी तो वह दे सकेगा 
शिष्य ले सकेंगे 
सीमित औ किताबों में ही 
उसके अलावा और कुछ नहीं 
आज जो अंक आधारित शिक्षा है ये गुरु भी तो उनमें से ही निकल रहे हैं 
जब और कुछ नहीं तब टीचर बन जाओ
स्वेच्छा से इसे स्वीकार करना , कुछ लोग हैं 
सरकारी नौकरी , छुट्टियाँ  , आराम सब दिखाई देता है
यह पेशा खुशी से चुने 
त्याग और समर्पण हो
नहीं तो गुरू भी द्रोणाचार्य जैसा ही होगा
जहाँ मजबूरी वश केवल पांडवो और कौरवों का गुरू बनना पडा
एकलव्य और कर्ण के गुरु नहीं बन सके
गुरू तो निर्माता होता है
निर्माण और विनाश दोनों उसी की गोदी में खेलते हैं 
अर्जुन और दुर्योधन के गुरू एक ही थे
द्रोणाचार्य ने गुरू दक्षिणा भी मांगी तो विद्वेष से भरा
बदले की भावना से
अपने बचपन के मित्र और राजा दुपद्र द्वारा किए अपमान का बदला लेने के लिए 
कारण तो वे भी थे
वे एक ऐसा छिद्र थे हस्तिनापुर की नाव के
जो पूरी नाव को ही डुबा दे
स्वयं का पुत्र अश्वस्थामा  को नैतिकता की शिक्षा न दे सके
आशय यही कि
शिष्य और गुरु दोनों ही योग्य हो
लेने वाला भी देने वाला भी। 

किस्मत

किस्मत का लिखा कोई नहीं टाल सकता
किस्मत कभी साथ चलती है कभी नहीं 
कभी उतार कभी चढाव
कभी नरम कभी गरम
इसमें पता नहीं क्या - क्या लिखा है
हाथों की लकीरों से
माथे की बनावट से
ग्रहों की चाल से
अंदाजा लगाया जाता है
सब कुछ तो जन्म से निश्चित है
जो होना है वह होगा ही
फिर भी ज्योतिषियों के चक्कर में पडे रहते हैं 
उसके बताए कर्मकांड करते रहते हैं 
जब जो होना है वह होगा ही
तब हम जानना क्या चाहते हैं 
भाग्यरेखा को बदल तो नहीं सकते
तभी तो हीरा कीचड़ में पडा रहता है
पीतल से मुकुट सजता  है
गुणों की कदर नहीं 
भाग्य चाहे तो ऊपर आसीन कर दें 
न चाहे तो भीख भी न मिले 
कर्म है हमारे हाथ में 
पर वह भी तभी साथ देता है
जब भाग्य हो
किस्मत का लिखा कोई नहीं टाल सकता 

कविता करना कोई खेल नहीं

कविता करना कोई खेल नहीं 
भावनाओं से रूबरू होना पडता है
तब कविता  का जन्म होता है
पीड़ा और दुख - दर्द को महसूस करना पडता है
तब कविता का जन्म होता है
अंजाने के  एहसास को अपना बनाना पडता है
उसे शब्दों में उकेरना पडता है
तब कविता का जन्म होता है 
प्रसव- पीडा से बस माँ ही गुजरती है
उस माँ की पीड़ा जब समझी जाती है
तब कविता का जन्म होता है 
विरह की वेदना तो प्रेमी और प्रेमिका सहते हैं 
उस अनुभव को जब लडियो में पिरोया जाएं 
तब कविता का जन्म होता है 
वेदना , हास्य  , रूदन की अनुभूति को समझना पडता है 
तब कविता का जन्म होता है
कविता कोई खिलौना नहीं 
भावनाओं का पिटारा होता है
न जाने कितने जख्म लगते हैं 
तब कविता का जन्म होता है 
न जाने कब किसके मन में प्यार प्रस्फुटित होता है
तब कविता का जन्म होता है
मन की कोमल भावनाएं 
जब अंगडाइया लेती है
तब कविता का जन्म होता है 
किसी का हास्य
किसी की वेदना
जब ऑखों से  बाहर छलकते हैं 
तब कविता का जन्म होता है 
कविता करना कोई खेल नहीं।

Thursday 14 July 2022

जल है तो जीव है

देखते - देखते लोग बह गए
कोई कुछ न कर पाया
कितना दर्द नाक दृश्य 
मन आहत हो उठता है
कोई जाता ही है क्यों वहाँ 
पानी का बहाव और धबधबा  देखने
मौज - मस्ती करने
स्वभाव है मनुष्य का
वह मृत्यु से डरता तो है
पर कभी-कभी उसके करीब चला जाता है
स्वयं ही
उसे यह अंदाजा नहीं होता
जल प्रलय आता है
तब नदी पूरे शबाब पर होती है
वह किसी को नहीं छोड़ती
न जाने क्या क्या लील जाती है
अपने विकराल मुख से
काल के गाल में समा जाते हैं 
घर - द्वार उजड जाते हैं 
असहाय बन लोग देखते रहते हैं 
जल और जीवन देनेवाली  
सब खत्म कर डालती है
फिर भी
जल से सदियों का नाता है
जल बिना तो जीवन नहीं 
जल नहीं तो जीव नहीं 
यह भी तो सत्य है 

ऐसा हमारा देश हो

जब कलम पर ही हो बंदी
जब विचारों पर हो अंकुश
जब प्रतिक्रिया पर हो पाबंदी
न हो कहने - सुनने की आजादी 
जब इतना प्रतिबंध हो
तब वहाँ कैसे प्रजातंत्र हो

जब विचारों का हो आदान- प्रदान
कुछ अपनी कहो कुछ उनकी सुनो
नहीं हो कोई प्रतिरोध 
विरोध  भले हो दुश्मनी न हो
सबका अधिकार एक समान हो
जहाँ मजहब - धर्म न आडे आता हो
वहीं तो प्रजा तंत्र का परचम फहराता है

जहाँ जन प्रतिनिधि जनता के सेवक हो
शासक सबका एक हो
जनता देव समान हो
चुनी हुई सरकार हो
नहीं कोई भेदभाव हो
अपने देश से बस प्यार हो
एक सुर में मातृभूमि की  जय जयकार हो
ऐसा हमारा देश हो

जीवन की किताब

अपनी किताब बंद मत करें 
हो सकता है कुछ पन्ने पसंद न आएं 
तो आगे बढे 
अगले पन्नों को पलटें 
कुछ तो पसंद आ ही जाएंगे
न जाने कितने चैप्टर हो
हर चैप्टर पसंद हो यह जरूरी नहीं 
समझ भी आए यह भी जरूरी नहीं 
उन चैप्टर को छोड़ आगे बढ़ें 
जो पसंद आए उन्हें पढें 
प्रथम और अंतिम को मत छोड़े
खत्म तो करें ही
आखिर तक आते-आते सब समझ आ जाएंगा 
इतना गुणा- गणित की जरूरत नहीं है 
सब कुछ पढना
सब कुछ समझना
यह तो मुश्किल है
मुमकिन बनाइए 
आसान बनाइए 
अपनी पसंद को साथ रखें 
उसे मत छोड़े 
जितना जरूरी है उतना करें 
हो सकता है जो चैप्टर या पन्ना समझ में  आया है 
प्रश्न पत्र में प्रश्न उन्हीं से हो
जिसका उत्तर आप आसानी से दे सकते हो
तब यह तो करना ही है
अपनी किताब बंद नहीं करना है
फिर वह चाहे 
जिंदगी की हो
पाठ्यक्रम की हो ।

Wednesday 13 July 2022

मन के करीब नहीं

मैं सबसे बात करती हूँ 
बस कुछ मेरे खास अपनों को छोड़कर 
मन तो करता है
प्रेम भी उमडता है
उनकी याद भी आती है
ईश्वर से उनकी सलामती की दुआ भी करती हूँ 
पर बातचीत नहीं होती 
मन नहीं खुलता
ईगो आ जाता है
कुछ नाराजगी है
कुछ गलतफहमियां है
कुछ बातें हैं 
कुछ अनसुलझी है
अब समझ नहीं आता
क्या करू
मन करने पर भी काॅल नहीं होता
न यहाँ से न वहाँ से
उनका भी यही हाल होगा
कोई अपनों के बारे में बुरा कैसे सोच सकता है
कोई पहल नहीं 
रास्ता निकल सकता है
एक- दूसरे की मजबूरी हो सकती है
गलतियाँ भी हो सकती है
सारी दुनिया से बात करो
फेसबुक और वट्सअप पर मैसेज करों 
अपनों बिना तो मजा नहीं 
वह तो एक महज औपचारिकता है
मन के करीब नहीं 

जब ब्याह हुआ

जब ब्याह हुआ
तब घर तो छूटा
माँ- पापा , भाई- बहन तो छुटे
मोहल्ला- दोस्त- पडोसी भी छूटे
यह तो विदित ही है
लेकिन बचपन और लडकपन भी छूट गया
अचानक बडी हो गई 
समझदार हो गई
जिद छूट गया
एडजस्टमेंट करना आ गया
अनचाहे - अंजाने को स्वीकार किया
सहनशीलता आ गई 
दिल में जो बातें लगती थी उन पर ध्यान देना छोड़ दिया
स्वतंत्रता कहीं लुप्त हो गई 
अब अपना नहीं दूसरों  के निर्णय मानना था
गलत को गलत नहीं कहना था
बडो  को जवाब न देना था
वह बेटी जो माँ- बाप के मुंह लगी थी
मुँह बंद कर रखना था
खाना जो मिले चुपचाप खा लेना था
अपन इच्छाओं की तिलांजली देना था
कहने को तो अपना
लेकिन न अपना घर न था
हम बस एक जीते - जागते वैसे इंसान थे
जिसमें अपना कहने को कुछ नहीं था

इंसान

जिंदगी बनती नहीं 
बनाई जाती है
मिल तो जाती है
अनगढ़ और अव्यवस्थित 
उसको गढा  जाता है
सुधारा जाता है
जीने लायक बनाया जाता है
प्रयास रत रहना पडता है निरंतर 
इसमें किसी एक का योगदान नहीं 
न जाने कितनों का
माता पिता , गुरू , पाठशाला, किताबें 
दोस्त - रिश्तेदार  , पडोसी 
पल - पल का अनुभव 
दूसरों से सीख 
मिट्टी का घडा तो एक कुम्हार ही गढता है
यहाँ न जाने कितने
क्योंकि उनको मनुष्य बनाना है
सबसे बुद्धिमान  जीव
वह मिट्टी का घडा नहीं 
हाड मांस का इंसान है
एक मन है एक दिमाग है
उसे चलाना आसान नहीं 
संभल संभल कर कदम रखना पडता है
फैसला करना पडता है
तब जाकर एक इंसान खडा होता है 

श्रद्धा मन से हो

सर तो झुक गया
सांष्टांग दंडवत भी कर ली
चरण स्पर्श भी कर लिया
अच्छी बात है
मन झुका क्या ?? 
आत्मा से श्रद्धा निकली क्या ??
झुकने के लिए तो 
हम झुक जाते हैं 
कभी परम्परा के वजह से
कभी दवाब की वजह से
कभी दिखावे की वजह से
इन सब का क्या फायदा?? 
श्रद्धा से नतमस्तक हो
प्रेम और अपने पन से हो
मन से आदर निकला हो
यह नहीं कि मन में कडवाहट भरी हो
अंतरआत्मा कोस रही हो
मन से अनवांछित शब्द निकल रहे हो
झुके तो मन से
तब तो आशीर्वाद भी फलेगा
यह बात तो दोनों पर लागू होगा
दुआ देनेवाला भी मन से दे
मन में द्वेष और ज्वाला भर कर नहीं 
अगर ऐसा न कर सको
तब तो न झुको 
न किसी को झुकाओ 

हर एक गुरू को नमन

अपने हर उस गुरु को नमन 
जिसने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सिखाया 
किसी ने प्रेम से किसी ने आलोचना से
किसी ने समझा कर 
किसी ने डांट फटकार कर
सीखा तो हमने उन्हीं से
वे नहीं होते तो शायद जीवन के इस मुकाम पर हम पहुँचते ही नहीं 
अंजान ही रहते
पग - पग पर गुरू मिले
सभी से हमने कुछ न कुछ सीखा
शिक्षा केवल पाठशाला में नहीं 
और केवल किताबों में नहीं 
किताबों के अलावा विस्तृत दुनिया है
वह बिल्कुल भिन्न है
पाठशाला में हम पढते हैं 
फिर परीक्षा देते हैं 
जिंदगी की पाठशाला तो पहले ही परीक्षा ले लेती है
बाद में हम सबक लेते हैं और सीखते हैं 
किसी का नाम स्मरण 
किसी का नहीं 
लेकिन गुरु तो सब रहे हैं 
गुरू पूर्णिमा के पावन अवसर पर 
अपने हर एक गुरू को नमन
आभार और नमस्कार 

सबको स्पेस मिले

तीन दोस्त मिले 
दिल भी खिले
एक ही पौधा 
तीनों लहलहा रहे
एक ही मिट्टी में सब बडे
एक ही माँ के जाये 
सबको खिलने का हक
सबको स्पेस मिले तो कोई क्यों न फले - फूले
ऐसा होता नहीं न
एक - दूसरे को पीछे करने की होड में 
कमतर आकने में 
मीनमेख निकालने में 
उम्र बीत जाती है
बाद में सोचते रह जाते हैं 
ऐसा होता तो
वैसा होता तो
वह हुआ नहीं न

कितने प्यारे संबोधन

आंटी और अंकल के चक्कर में 
उलझ गए हैं  हम
सारे रिश्ते गुम 
बस सबका एक ही रिश्ता 
चाची , काकी ,मामी, बुआ 
चाचा , मामा , फूफा , मौसा 
सिमट कर रह गए हैं 
आंटी और अंकल के मायाजाल में 
अंग्रेजी बोलने के चक्कर में 
रिश्तों के नाम की बलि चढा दी हमने 

कितनी मिठास 
कितना प्यार 
झलकता था
पापा का भाई चाचा
माँ का भाई मामा
फूफा और मौसा भी अपने
अपनापन और प्यार 
हक से अधिकार से

अब तो सब अंकल और आंटी 
भईया - भाभी
दादा - दादी 
काका - काकी
का भी संबोधन हुआ लुप्त 
अब तो छोटा हो या बडा
सब है अंकल - आंटी 
कभी-कभी नागवार भी गुजरता है
जब अपने से उम्र दराज व्यक्ति आंटी और अंकल कहता है
हम उम्र  को भी संबोधते हैं
तब खीझ और गुस्सा आ जाता है

अब किसको रोके
किसको टोके 
किसको समझाए 
जब अंकल - आंटी का है बोलबाला
सुनते रहिए
पसंद आए या न आए 
बस सुन कर अनदेखा करिए
या फिर निगलते रहिए
टोकमटाकी कर क्या हासिल 
जब जमाना ही है अंकल - आंटी का पक्षधर

हरि बोल

क्यों चिंता करता है बंदे
जो करता है वह करता 
वह ही जग का दाता
वही हैं हमारा भाग्य-विधाता 
हम तो है बेजान खिलौने
प्राणदाता तो वह है
जब तक चाहें वह
तब तक हैं हम
कब क्या करें 
वह तो वही जानता
उसके खेल निराले 
पाथर में भी फूल खिलाता 
उसके करतब से नहीं कोई अंजान 
एक पत्ता भी बिन उसकी मर्जी से नहीं हिलता 
संसार का कर्णधार 
वही सबका आधार
सब छोड़ उस पर 
निश्चिंत हो करतब देख उसके 
जो करेंगा वह ठीक करेंगा
इतना तो विश्वास रख
वह ईश्वर है
संसार के माता पिता हैं 
वे अपनी संतान को दुखी कैसे देख सकते हैं 
बस विश्वास तो रख
भगवान जो करेंगे वह ठीक ही करेंगे
हमारी भलाई के लिए ही करेंगे
उसकी मर्जी पर किसका बस
तब छोड़ दे सब उस पर
शांत हो बैठ
प्रार्थना में रम
बोल हर वक्त 
हरि बोल हरि बोल

वह पेड़ जो है

नन्हा - मुन्ना हमारा
आम खाकर गुठली जमा कर रहा 
कहता है इसे लगाऊँगा 
इस पर आम आएंगे तो जी भर खाऊंगा
मुस्करा उठी मैं 
कहा उससे 
तेरे साथ तो यह आम भी बडा होगा
अंकुर निकलेगा 
देखभाल करना होगा
खाद - पानी डालना होगा
तब जाकर यह बडा होगा
लहलहाएगा 
फलेगा फूलेगा 
तब तक सबसे रक्षा करना पडेगा
चिडियाँ- चुरूंग से

वह बोला क्या मेरे जैसे
मेरी भी तो तुम देखभाल करती हो
तब जब बडा हो जाऊंगा
पढूंगा - लिखूंगा
खूब पैसा कमाऊगा 
यह आम फल देगा
मैं पैसे दूंगा 
फिर तुम खुशी-खुशी रहना

बातें सुन अच्छी लगी उसकी
मन भर आया 
गले से लगा लिया 
कल की कौन जाने
आज तो आश्वस्त कर रहा है
साथ ही यह भी ख्याल आया 
यह क्या करेंगा 
यह तो भविष्य के गर्भ में 
हाँ आम का पेड़ जरूर दिल खोल लुटाएगा 
फर्क है न 
वह पेड़ जो है इंसान नहीं।

Tuesday 12 July 2022

विश्वास

मैंने तुम पर विश्वास किया
उतना तो जितना 
स्वयं पर नहीं 
इस विश्वास को मत खोना
इसे बरकरार रखना
बहुत मुश्किल होता है
किसी पर विश्वास रखना
वह कितना नीच होता है
जो किसी का विश्वास तोडता है
हमने तो तुम्हारे लिए 
जग छोड़ दिया
यह तुम पर है
तुम इसे कायम रखने के लिए 
क्या-क्या छोड़ सकते हो 

बदलाव

लोग कहते हैं इंसान बदल गया
इंसान का स्वभाव बदल गया
अब वह पहले जैसा नहीं रहा
वाकई ऐसा हैं 
शायद नहीं 
इंसान तो वही रहता है
परिस्थितियां बदल जाती है
जीवन के मायने बदल जाते हैं 
हालात बदल जाते हैं 
तब तो बदलना लाजिमी है 
गरीबी से अमीरी की ओर बढते 
शिक्षा और सफलता 
ओहदे और पद की बढोतरी 
मकान और संपत्ति 
और न जाने क्या-क्या 
साला मैं तो साहब बन गया
    साहब बन के कितना तन गया 
हाँ इतना सब होने के बाद भी कुछ लोगों में गर्व और घमंड नहीं आता
बस इंसान न बदले 
नीचे से ऊपर जाना तो सबका हक है 
क्यों कोई इससे वंचित रहें। 

Sunday 10 July 2022

सोना कितना सोना है

सोना , सोना ,सोना
पूरे शरीर पर ही सोना
औरतों को तो यह शौक विरासत में और स्वभाव में 
आजकल गोल्ड मैन दिख जा रहे हैं 
पूरे शरीर पर सोना ही सोना
सोना तो धारण 
पर क्या चैन की नींद आती होगी
डर नहीं लगता रहा होगा 
कब कहाँ से किसकी नियत डोल जाएं 
संपत्ति दिखावे की वस्तु नहीं है
कदम कदम पर धोखाधड़ी 
चालबाजी- ठगबाजी 
तुच्छ सी बात के लिए किसी की भी जान ले लेना
तब जरा सोचें 
ऐसा सोना किस काम का
जहाँ सोना ही न हो आराम से
दिल धक धक करें 
रातों की नींद हराम हो
सही पंक्तियाँ हैं 
  कनक ,कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय 
       या खाएं बौराए जग 
           वा पाएं बौराए 

करें कोई भरे कोई

यह कैसा नियम है
करें कोई भरे कोई 
यह बात घर में हो
परिवार में हो
समाज में हो
ऑफिस और कार्यस्थल पर हो
आप ईमानदारी से काम कर रहे हो
समय पर आ रहे हो
सबका ध्यान रख रहे हो
अपनी इच्छाओं को बाजू में रख
अपना कर्तव्य पालन कर रहे हो
तब सब ठीक है
न करने वाले को तो सौ बहाने
आराम से सब करेंगे
अगर आपत्ति करें 
तो मुंह फुल जाएंगा 
बुरा लग जाएगा 
ऐसे लगेगा 
आपने ही कुछ गलत कर दिया है
ऑफिस में लेट - लतीफ वाले आराम से आते हैं 
और हंसते हुए प्रवेश करते हैं 
खुदा न खास्ता 
एक दिन आप किसी कारण वश लेट हो जाएं 
तब सबकी नजर आप पर
आप भी हडबडी में 
लगता कोई क्राइम कर दिया हो
जब ऐसे लोग लेट हो जाएं 
तब मिटिंग निश्चित है
फिर वही सिलसिला 
यह असर दो - चार दिन बस
फिर वही ढाक के पात
इन्हीं लोगों के कारण 
ऐसे लोग आराम से रहते हैं 
मनमानी करते हैं 
निर्लज्ज बने रहते हैं 
किसी की ईमानदारी पर दूसरों की बेईमानी फलती फूलती है

Friday 8 July 2022

वह बात

हम आए नए घर में 
सब कुछ पहले से बेहतर
पुराने घर की यादें भी तो साथ थी
वह कहाँ भूलने वाली थी
यहाँ की साज - सज्जा सब कुछ अच्छा 
वहाँ ऐसा कुछ भी न था
लेकिन वहाँ सबका साथ था
सर पर बडो का हाथ था
निश्चित थे
कहीं भी बैठो 
कहीं भी सोओ 
कोई औपचारिकता नहीं थी
तब तो जमीन पर बिछी चटाई भी प्यारी लगती थी
आराम की नींद आती थी
तब दीवार न थी
एक ही कमरा
पैर फैलाकर सोने मिल जाएं 
वही काफी था
फिर भी कभी कमतरता नहीं भासी 
अडोस पडोस का भी यही हाल था
दिखावट नहीं था
आज सब है
पर फिर भी वह बात नहीं है

आफत की बारिश

बारिश आती है
वैसे तो यह सबको भाती
किसी के लिए गम
किसी के लिए खुशी 
लाती है
यह जब विकराल रूप धारण करती है
लोगों के घर उजाड़ जाती है
उनकी दुनिया बर्बाद कर जाती है
सब तहस नहस कर जाती है
किसी के जान को लील जाती है
कोई गटर में तो कोई नदी में बह जाता है
घर का छप्पर भी उडा ले जाती है
बिजली तो गिराती है
तांडव भी मचा जाती है
ऐसे में जब बारिश आती है
तब गमगीनी छा जाती है
मन कांप उठता है
मुक्त भोगी इसे कैसे भूल सकता है
उसके लिए तो बारिश आफत की लगती है

Thursday 7 July 2022

पोते के मुंडन पर

आज बाबू टकला हो गया
टकला होकर हल्का हो गया
सोच रहा है क्या बात है
कुछ तो खास है
धीमे - धीमे मुस्करा रहा है
खुश हो रहा है
समझ न पा रहा है
कौन उसके बाल ले गया
शीशे में निहार रहा है
यह अंजाना कौन है
महसूस करता है
मैं ही तो हूँ 
यह जानकर खुश
काला टीका शोभ रहा ललाट पर
नजर न लगे 
मेरे घर के चिराग पर 

उच्चभ्रू सोसायटी

ख्वाब हैं महलों के
मन है भिखारी सा 
मुफ्त का रहना 
सब सुविधाओं का लाभ उठाना
मेन्टेन्स देने में आनाकानी 
बातें बडी बडी
नहीं है वह व्यवहार में लागू
कामवाली को समय से पैसे न देना
सब्जी वाले से झिक झिक करना 
बेचारे किसी गरीब का पैसा मारना 
काम करवा कर कुछ टिका देना
ज्यादा बोले तो रौब जमाना 
वाॅचमैन को अपने घर का नौकर समझना
अपना व्यक्ति गत कार्य करवाना
स्वीपर को भी धौस जमाना
यह आजकल सभी कमोबेश सोसायटी का दृश्य 
कुछ सदस्य ऐसे हर जगह
दूसरों के घर की बातों में रस लेना
टोका टोकी करना
कहने को शिक्षित और सोफेस्टिक 
पर वह तो सबसे गए - गुजरे
अब इनसे कैसे निपटा जाए
कहने को तो मिलेनियर 
उसी तरह जैसे Slumdog millionaire 
हरकतें बद से बदतर 

Wednesday 6 July 2022

कैसा रिश्ता ??

दिल से दिल को मिलने दो
दिल को एक - दूसरे के नजदीक आने दो
दिल खोलकर बात करो
बिना हिचक और पाबंदी के
सारी औपचारिकता को छोड़ दो
तब तो दिल से दिल मिलेगा

वह अपने ही क्या
जहाँ बोलने से पहले सोचना पडे
जहाँ दिल खुले ही नहीं 
जब तक साथ रहे 
मसोसता  रहें 
डरता रहें 
हमारी कोई बात बुरी न लग जाएं 
आपकी खामियां ढूंढी जाएं 
आपका उपहास उडाया जाएं 
जान बूझ कर चुभती बात बोला जाएं 
जहाँ बात - बात पर एहसान जताया जाएं 
एहसास कराया जाएं 
नीचा दिखाया जाएं 
मजबूरी का मजाक उडाया जाएं 
तब तो मजबूती कैसे रहेंगी

आपकी गलती को चटखारे ले - लेकर बताया जाएं 
मेहमानों की तरह दिखावा हो
तब दिल से दिल कैसे मिलता
दूरियां तो बढती जाती है
दिखाने के लिए सब साथ साथ
असलियत में अजनबी से भी ज्यादा अजनबियत 
क्या करना 
ऐसे दिखावटी और बनावटी रिश्ते से क्या फायदा 

रिश्ता तो वैसा हो
जहाँ मन से मन और दिल से दिल मिले
जो जैसा है उसी रूप में स्वीकृत 
जहाँ बोलने से पहले सोचना न पडे 
जहाँ दिल लगाने वाली बात नहीं 
दिल मिलने वाली बात हो
कृत्रिमता  और दिखावट से दूर 
अपनेपन से भरपूर हो
तब वह रिश्ता , रिश्ता कहलाता है 

मैं बेचारा

मैं पुरूष हूँ 
शक्तिशाली और बलशाली हूँ 
मैं कमजोर नहीं हो सकता
मैं रो नहीं सकता
मैं हार नहीं मान सकता
मैं गलती नहीं कर सकता
मैं बेकार और बेकाम नहीं रह सकता
सारा दारोमदार मुझ पर
हर चीज का जिम्मेदार मैं 
हर चीज का कुसूरवार मैं 
कुछ भी अंवाछित घटित हो
दोषी मैं ही
मेरी हर हरकत पर सबकी नजर
सारी अपेक्षा मुझी से
इस पर खरा उतरने के लिए न जाने क्या क्या करना पडता
कहने को तो मैं घर का मुखिया 
वास्तव में मुझसे बेचारा कोई नहीं 
घर से मारा
ऑफिस से मारा
यहाँ- वहाँ भटका
तब भी मेरी गिनती 
कहीं नहीं 
दोषों से भरा
मैं बेचारा 

जीवन भर की साथी

एक वह भी दिन था
जब चारों ओर पानी ही पानी
पूरा शहर पानी में तैर रहा था
हम भी फंस गए थे
सडक तो गायब ही लगती थी
लगता था 
अब वापस घर नहीं पहुंच पाएंगे 
चमत्कार करने वाला तो ऊपर वाला
पानी का सैलाब हो या ज्वाला का तांडव 
निकाल तो वही  सकता है
तभी तो एक कंकड़ लगने पर भी खत्म 
खाई में गिरने पर भी जीवित 
जब तक वहां से बुलावा नहीं 
तब तक कोई बाल बाँका नहीं कर सकता 
मृत्यु से क्या डरना
कितना भी जतन किया
तब भी जब उसे आना था 
वह आई 
बडे बडे डाँक्टर 
बडी बडी बादशाहत
उसे कोई डिगा न पाया
यह तो साये की तरह साथ चलती है
जिंदगी के साथ चलती है
जब यह साथ छोड़ देती है
तब यह जहां भी छूट जाता है 

Tuesday 5 July 2022

अपनी सभी छात्राओं के लिए

अपनी सभी छात्राओं के लिए
शिष्य और गुरु का नाता
नहीं कुछ इनके जैसा
डांट है फटकार है
फिर भी प्यार है
कडा अनुशासन है
फिर भी सम्मान है
नहीं है खून का रिश्ता
न कोई रिश्तेदारी 
फिर भी अभिन्न है
पता है छोड़कर जाना है
फिर भी संबंध अटूट है
सब याद भूल जाते
पर बचपन कभी नहीं
उसमें गुरु जो रहता
वह पास नहीं
पर उसकी शिक्षा 
चलती साथ साथ है
उन्नति के पथ पर चलते देख सब ईर्ष्यालु
पर गुरु ही है जिसका सीना गर्व से चौडा
शिष्य की सफलता
उसकी सफलता
वह तो गुरु है
जहाँ है वहीं रहेगा
पर चाहता
उसका शिष्य अपार सफलता हासिल करें
माता-पिता के बाद अगर कोई है
जो आपको ऊपर उठता देख इतराए
गर्व से कहें
यह मेरा स्टूडेंट है
आप कितने भी बडे हो जाओ
पर एक व्यक्ति हैं
जिसके सामने आप हमेशा छोटे हो
आपके सामने सब झुके
पर आप उसके सामने झुके
वह तो आपका गुरु ही है

विधवा

विधवा ??
विधवा यह शब्द चुभता है
असहायता का प्रतीक  लगता है
विधवा शब्द सुनते ही
एक मुर्ति  जेहन में उभरती है
रंगहीन जीवन का
सफेद साडी में लिपटी 
न हाथ में चूडियां 
न माथे पर बिंदी 
न गले में मंगल सूत्र 
न मांग में सिंदूर 
न शरीर पर गहना
रंगों  से टूटा नाता
रंगहीन जीवन 
यही था विधवा का रूप
पति ही परमेश्वर 
वह नहीं तो सब सून
इसलिए सती हो जाओ
आग में जल जाओ
मरना आसान था जीना मुश्किल 

आज समय बदला 
अब वह हालात वह विचार न रहें 
अब उसको भी जीवन जीने का  हक
पहनने - ओढने  
खाने - पीने
घूमने- फिरने की आजादी 
वह अब सक्षम है 
उसका जीवन पति के साथ खत्म नहीं हुआ है
वह विधवा है इसलिए दया का पात्र है
यह न समझा जाएं 
जमाना बदला है
तब नजरिया भी बदला जाएं 

विधवा शब्द को ही भूला दिया जाएं 
विधवा है
परित्यक्ता  है
इन शब्दों की जरूरत ही क्या है
बस व्यक्ति ही रहने दिया जाएं 
लाचारी और विवशता तथा सहानुभूति 
इसकी कोई आवश्यकता नहीं 
वह पैरों पर खड़ी हो
आत्मनिर्भर हो
केवल ब्याह - शादी के मापदंड पर न मापा जाएं।

वह बारिश का पानी

बरखा रानी आई है
खुशी का सौगात लाई है
वैसे ही जैसे बिटिया रानी
आती है कुछ दिनों के लिए 
घर को खुशनुमा कर जाती है
चहल पहल बढ जाती है
मन पसंद व्यंजन बनते हैं 
उसके बहाने सब सुस्वादु भोजन का स्वाद लेते हैं 
आस पडोस में घूमती है
बतियाती है , खिलखिलाती है
उसके जाने के बाद 
घर सूना - सूना
अब कब आएगी 
शायद अगले तीज - त्यौहार पर
तब तक सब प्रतीक्षा रत 

वैसे ही यह बारिश भी तो है
इसकी प्रतीक्षा हमेशा रहती है
यह आती है कुछ समय के लिए 
फिर चली जाती है 
हमको छोड़ कर
अगली बार आने का वादा कर

तब तो इससे न घबराना है न डरना
मन सोक्त पानी में भीगना है
छाता लेकर बाहर निकलना है
मजा लेना है
समन्दर किनारे उफनती लहरों को देखना है
कपडे भीग जाएंगे
 सर्दी हो जाएगी
यह चिंता छोड़ देना है
घुटनों तक भरे पानी में छप छप कर
बचपन की यादें ताजा करनी है
स्वयं भी खिलखिलाना है
बूंदो को भी चेहरे पर खिलखिलाने देना है
गाना भी गुनगुनाना है
वह बारिश का पानी
     वह कागज की कश्ती 

Monday 4 July 2022

कौन सही हैं

मैंने जीया है अपनों के लिए 
ताउम्र जूझती रहीं 
कुछ न कुछ समस्याएं आती रही
वह बाधाएं भी पार होती गयी
लेकिन उन बाधाओं में
मैं बंध कर रह गयी
कभी सोचने का मौका ही न मिला अपने लिए 
कभी यह कभी वह 
उन सब में उलझ कर रह गयी 
कहाँ से शुरू कहाँ खतम 
यह पता ही नहीं 
यह सिलसिला अनवरत जारी है
अब महसूस होता है
यह मेरी सोच है दूसरों की नहीं 
फिर भी यह समझ नहीं आया अब तक
मैं सही हूँ या वे सही हैं 

Saturday 2 July 2022

मुंबई की बारिश

तुम तो आभास भी नहीं देती
कभी धूप कभी छाया
उसके बीच में अकस्मात तुम्हारा आगमन
चलो अच्छी धूप निकली है
बाहर चलते हैं 
निकलते ही झम झमा झम
आसमान में घना अंधेरा 
जोरो की हवा 
आज तो मौसम खराब है
अचानक क्या देखते हैं 
बादल छट गए
आसमान साफ
सूर्य भगवान फिर चमकने लगे
क्या करें क्या न करें 
आज का मौसम कैसा ??
मौसम विभाग की भविष्यवाणी भी गलत
सबसे ज्यादा यह अनिश्चितता 
कहाँ रहती है ?? 
वह मुंबई नगरी में 
जैसे यह नगरी भागती रहती है
वैसे ही यहाँ बरखा भी रंग बदलती है
सुबह घनघोर 
कुछ समय बाद गायब
ऑफिस जाएं या न जाएं 
निकल गए तब भी 
कुछ कहा नहीं जा सकता
इसलिए तो इस नगरी में 
मौसम का इतना असर नहीं 
न समय बदलता है स्कूल का
न किसी और का
यहाँ जून की जबरदस्त गर्मी 
ठंड का घनघोर कोहरा
अनिश्चित बारिश 
सबमें सब एक समान 
भागना - दौड़ना लगा ही रहता है
लाइफ लाइन भी तभी बंद होती है
जब तक पानी प्लेटफॉर्म से ऊपर न बहने लगे 
घुटनों भर पानी में मुंबई कर भी चलते हैं 
बेस्ट की बस और टैक्सी भी
वह भी तब तक 
जब तक 26  जुलाई वाला मंजर न हो जाएं 
और समय तो हम तुम्हारे साथ ही दौड़ लगाते हैं 
तुम ऊपर से यहाँ- वहाँ दौड़ लगाती हो
हम सडक पर ।

Friday 1 July 2022

नरम - गरम

इतना नर्म मत बनिए
जरा गर्म भी रहिए 
मिर्ची सा तीखापन रखिए
ज्यादा मिठास अच्छी नहीं होती
चीटियां जुटकर  चट कर जाएगी
मिर्ची किसी को ठीक नहीं लगती
बस थोडे से तडके में 
ज्यादा लगी तो सी सी करते रह जाओगे 
खैर नहीं 
मिर्ची वाली हाथ भी जहाँ लगी
वहाँ वहाँ जलन होगी
ऐसा स्वभाव जरुरी है
मिर्ची हर किसी को नहीं भाती 
क्यों कि  उसकी तासीर ही गरम है
तब इतना तो बनता है 
गरम और नरम का मेल हो 

पुरी का जगन्नाथ मंदिर

पुरी के राजा स्वयं अपने हाथों से झाडू़ लगाते हैं,और वो 
सोने की झाड़ू से होती है सफाई...!
आज भी हर साल जगन्नाथ यात्रा के उपलक्ष्य में सोने की झाड़ू से पुरी के राजा खुद झाड़ू लगाने आते है..तस्वीर में आप इसे साफ साफ देख सकते हैं। 

महाप्रभु जगन्नाथ को कलियुग का भगवान भी कहते है..। पुरी में जगन्नाथ महाप्रभु अपनी बहन सुभद्रा और दाऊ बलराम के साथ निवास करते है मगर रहस्य ऐसे है कि आजतक कोई न जान पाया..!

हर 12 साल में महाप्रभु की मूर्ती को बदला जाता है,उस समय पूरे पुरी शहर में ब्लैकआउट किया जाता है यानी पूरे शहर की लाइट बंद की जाती है। लाइट बंद होने के बाद मंदिर परिसर को CRPF की सेना चारो तरफ से घेर लेती है...उस समय कोई भी मंदिर में नही जा सकता।मंदिर के अंदर घना अंधेरा रहता है...पुजारी की आँखों मे पट्टी बंधी होती है...पुजारी के हाथ मे दस्ताने होते है..वो पुरानी मूर्ती से "ब्रह्म पदार्थ" निकालते है और नई मूर्ती में डाल देते है...ये ब्रह्म पदार्थ क्या है आजतक किसी को नही पता...इसे आजतक किसी ने नही देखा. ..हज़ारो सालो से ये एक मूर्ती से दूसरी मूर्ती में ट्रांसफर किया जा रहा है...
ये एक अलौकिक पदार्थ है जिसको छूने मात्र से किसी इंसान के जिस्म के चिथड़े उड़ जाए। इस ब्रह्म पदार्थ का संबंध भगवान श्री कृष्ण से है...मगर ये क्या है, कोई नही जानता...ये पूरी प्रक्रिया हर 12 साल में एक बार होती है उस समय सुरक्षा बहुत ज्यादा होती है...मगर आजतक कोई भी पुजारी ये नही बता पाया की महाप्रभु जगन्नाथ की मूर्ती में आखिर ऐसा क्या है...?? 

कुछ पुजारियों का कहना है कि जब हमने उसे हाथ में लिया तो खरगोश जैसा उछल रहा था...आंखों में पट्टी थी...हाथ मे दस्ताने थे तो हम सिर्फ महसूस कर पाए...

भगवान जगन्नाथ मंदिर के सिंहद्वार से पहला कदम अंदर रखते ही समुद्र की लहरों की आवाज अंदर सुनाई नहीं देती, जबकि आश्चर्य में डाल देने वाली बात यह है कि जैसे ही आप मंदिर से एक कदम बाहर रखेंगे, वैसे ही समुद्र की आवाज सुनाई देंगी

आपने ज्यादातर मंदिरों के शिखर पर पक्षी बैठे-उड़ते देखे होंगे, लेकिन जगन्नाथ मंदिर के ऊपर से कोई पक्षी नहीं गुजरता। 

झंडा हमेशा हवा की उल्टी दिशामे लहराता है

दिन में किसी भी समय भगवान जगन्नाथ मंदिर के मुख्य शिखर की परछाई नहीं बनती।

भगवान जगन्नाथ मंदिर के 45 मंजिला शिखर पर स्थित झंडे को रोज बदला जाता है, ऐसी मान्यता है कि अगर एक दिन भी झंडा नहीं बदला गया तो मंदिर 18 सालों के लिए बंद हो जाएगा

इसी तरह भगवान जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर एक सुदर्शन चक्र भी है, जो हर दिशा से देखने पर आपके मुंह आपकी तरफ दीखता है।

भगवान जगन्नाथ मंदिर की रसोई में प्रसाद पकाने के लिए मिट्टी के 7 बर्तन एक-दूसरे के ऊपर रखे जाते हैं, जिसे लकड़ी की आग से ही पकाया जाता है, इस दौरान सबसे ऊपर रखे बर्तन का पकवान पहले पकता है।

भगवान जगन्नाथ मंदिर में हर दिन बनने वाला प्रसाद भक्तों के लिए कभी कम नहीं पड़ता, लेकिन हैरान करने वाली बात ये है कि जैसे ही मंदिर के पट बंद होते हैं वैसे ही प्रसाद भी खत्म हो जाता है।

आप पर और आपके परिवार पर श्री जगन्नाथ महाप्रभु की कृपा सदा बनी रहे.. 🙏🙏💖💞
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हम भी कभी जवान थे

अरे । तुम क्या जानो
तुम क्या मानो
हम भी कभी जवान थे
हमने भी फैसनेबल कपडे पहने थे
स्लीवलेस ब्लाउज और कुर्ती 
बेलबाटम और चूडीदार 
हिल वाली सैंडल 
ब्वाय कट और साधना कट बाल
नेलपालिश नखो पर
वन पीस , टू पीस ,गाउन 
इससे हम अंजान नहीं 

काॅलेज बंक कर फिल्म देखना
घंटों दोस्तों के साथ यूनिवर्सिटी ग्राउंड में समय बिताना
लाइब्रेरी  में नोट्स बनाना
रेडियो पर गाने सुनना
विविध भारती और जयमाला 
गुलशन नन्दा के उपन्यास और फिल्मी पत्रिका पढना
 सी फेस और गार्डन में घूमना 
दो मंजिला बस में धडधडाते चढना
भागते हुए ट्रेन पकडना

हमने सब कुछ देखा है
जब नई पीढ़ी कहती है
आपको यह सब क्या पता
आपका तो कोई और जमाना था
अब जमाना बदल गया है
तब होठों पर मुस्कान आ जाती है 

कम्प्यूटर और मोबाइल नहीं था
टेलीविजन और टेलीफोन तो थे ही 
वह भी जमाना तो हमने देखा है 

Happy Dactors day

तुम इंसान हो भगवान नहीं
यह तो हम सब जानते हैं
ईश्वर की याद तो हमें हर मुश्किल घडी में आती है
पर जब बीमारी आती है
तब सबसे पहले तुम्हारी याद आती है
आशा रहती है
तुम ठीक कर दोगे
जीवन का प्रश्न जहाँ तुम वहाँ
मंदिर में नहीं जाते
तुम्हारे यहाँ आते हैं
ईश्वर तो दिख जाते हैं
पर तुम्हारा तो इंतजार करते हैं
हमको तो तुममें ही खुदा दिखता है
यह तो हुई  हमारी बात

अब आप अपनी बताओं
क्या तुमको भी मरीज में भगवान दिखता है
कहते हैं कि ईश्वर तो हर रूप में है
हर जगह है
इंसानियत और मानवता ही धर्म है
मानव सेवा ही ईश्वर भक्ति है
जीवन दाता हो आप
तब तो आपका भी कर्तव्य है
निस्वार्थ सेवा
हर भेदभाव से परे

ईश्वर के दरबार में
अमीर गरीब सब बराबर 
उनकी दृष्टि तो समदर्शी होती है
संसार सागर में आकर उन्होंने भी अपना कर्म किया
आपको भी तो वह करना है
आप डाँक्टर ही इसलिए बने हो
कि हर समय मरीजों के लिए हाजिर हो
आपके लिए आपकी मर्जी से ज्यादा तवज्जों मरीज की

आप ईमानदारी से अपना कर्तव्य निभाए
सबकी दुआ ले
दिन दूनी रात तरक्की करें
बीमारी के तारणहार बने
दूसरों को जीवन देनेवाले
आपका जीवन खूब लम्बा हो
यही है सबकी शुभकामना
    Happy  Doctors  Day

हर डाँक्टर यह पढे

हर डाँक्टर यह पढें
अपनी ही किसी किताब में यह कहानी पढी थी
कहानी तो बडी है उसको मैं संक्षेप में ही बता रही हूँ

एक साधारण ग्रामीण खेत खलिहानों में मजदूरी कर गुजारा करने वाला
एक बार बेटे को बुखार आया । तप रहा था ।तबीयत बिगड़ती जा रही थी ।किसी ने सलाह दी
शहर के बडे डाँक्टर है उनके पास ले जाओ
वही ठीक कर सकते हैं
रात का समय था वह बेटे को कंधे पर लादकर पहुंचा
डाँक्टर साहब ने मिलने से मना कर दिया
रात हो गई है हमारा सोने का समय है
द्वारपाल को गेट बंद करने का आदेश दे अंदर चले गए
बेचारे गरीब के बेटे ने दम तोड़ दिया

समय बीता
कुछ बरसों बाद डाँक्टर साहब के बेटे को जहरीला सांप ने काट लिया
कोई औषधि काम नहीं कर रही थीं
किसी ने कहा कि फलां गांव में एक व्यक्ति है जो जहरीले से जहरीले सांप का जहर मंत्र द्वारा निकाल सकता है
डाँक्टर साहब को इन सब बातों पर विश्वास नहीं था
पर एकलौता जवान बेटे का प्रश्न था
उन्होंने आदमी भेजे पर आने को मना कर दिया
रात गहरा रही थी पर इस गरीब का मन नहीं माना
लाठी ठेगते पहुंच गए
आवाज दी
डाँक्टर साहब पैरों पर गिर पड़े
बचा लो मेरे बेटे को
जो मांगोगे वह दूंगा
अब इन्होंने अपने मंत्र विद्या के बल पर विष निकाल दिया
लडका ऑखे मलता हुआ उठ बैठा
डाँक्टर साहब ने खुश होकर कहा
क्या चाहिए
कुछ नहीं
याद कीजिए मैं वही हूँ जो अपने बेटे के इलाज के लिए आपके पास आया था
आपने वापस लौटा दिया
मेरा बेटा मर गया

पर मैं आप जैसा नहीं बन सका
मन तो हुआ 
मर जाने दो
पर ईश्वर ने मुझे यह हुनर दिया है जहर उतारने का
जान बचाने का
मैंने अपना कर्तव्य किया
आप भूल गये थे
आइंदा किसी मरीज को बिना देखे मत लौटाना ।
कहते हुए लाठी टेक गेट से बाहर निकल गए ।

धैर्य बनाए रखना

जीवन में धैर्य बनाए रखना
जब बीच मंझधार में फंस जाएं नैया
तब भी यह आस रखना
किनारा तो मिल ही जाएंगा

जब अंधड- तूफानों  का जोर हो
जब जोरो की बरसात हो
जब बिजली कडके कड- कड
छाए घनघोर अंधेरा 
तब भी मन के दीप जलाएं रखना
यह तूफान भी जाएंगे
बादल भी छट जाएंगे
फिर से सूरज निकलेगा

जब भी विपत्ति आए
विपरीत परिस्थिति छाए 
कुछ न सूझता हो
न कोई राह दिखता हो
तब भी यह विश्वास रखना
स्थायी यहाँ कुछ भी नहीं 
यह दिन भी बीतेगे 
विपदा भी भागेगी 

जब छा जाएं दुख के बादल
उसमें भी सुख की किरण ढूंढ लेना
आशा रखना
विश्वास रखना
धैर्य न खोना
हर रात की सुबह जरूर होती है
हर अंधकार का प्रकाश भी अवश्यभांवी है
बस धैर्य बनाए रखना।

खुदी को कर बुलंद इतना

यह नहीं मिला 
वह नहीं मिला
मेरे साथ ऐसा हुआ 
मेरे साथ वैसा हुआ 
बहुत अन्याय हुआ 
घर - बाहर कहीं भी न्याय न मिला
बार - बार मेरे स्वाभिमान को ठेस पहुंची
मुझे नीचा दिखाने का प्रयास किया गया
दस लोगों के बीच मुझे अपमानित किया गया 
मुझे कोई  तवज्जों नहीं दी गई 
मेरे लिए किसी ने कुछ नहीं  किया
किसी का प्रेम और अपनापन नहीं मिला 
मेरी बात को सुना नहीं गया
मेरा तो भाग्य ही खराब है
मेरा कोई नहीं सुनता
बस मुझी पर दोषारोपण किया जाता है
कटघरे में खड़ा किया जाता है
अपनी गलती छुपाने के लिए मेरे कंधे पर रखकर बंदूक चलाई जाती है
ऐसा अमूमन किसी न किसी  शख्स से सुनने को मिलता है
हमारे मन में भी यह सब चलता रहता है

अरे जनाब  / मैडम 
छोड़िए इन बातों  को 
अपने को इतना नीचे मत गिराओ 
आप भिखारी नहीं है
जो आपको प्रेम और सम्मान भीख में मिले
भाग्य को दोष मत दो
अपना भाग्य खुद बनाओ
किसी के बनाने और बिगाड़ने से आपका कुछ नहीं होगा
न किसी के दोषारोपण करने से
यह तो लोग है कहेंगे ही
मुंह देखी बात करने की आदत होती है 
पर सत्य तो सत्य ही होता है 
कब तक छुपेगा 
उजागर होना ही है

सब छोड़कर अपना कर्म करें 
भीख में मांगी वस्तु नहीं टिकती है
लोगों को एहसास कराए
अपना महत्व बताएं 

खुदी को कर बुलंद इतना कि खुदा बंदे को बनाने से पहले खुद पूछें 
बता तेरी रजा क्या है ।