Monday 31 October 2022

भगवान भास्कर की पूजा का पर्व

उगते हुए सूरज को तो सब प्रणाम करते हैं 
डुबते हुए सूरज को नहीं 
छठ पर्व ऐसा है
जहाँ उगते हुए सूर्य के साथ डूबते हुए सूर्य को भी अर्घ्य दिया जाता है
प्रकृति से सानिध्य का पर्व 
सर्व साधारण का पर्व 
जहाँ नदी या पोखर किनारे पूजा की जाती है
जल में खडे रहते हैं व्रती 
चार दिन चलने वाला पर्व 
स्वच्छता का पूरा ख्याल 
गलती से भी गलती नहीं होनी चाहिए 
प्रसाद में भी गन्ना , गुड से बने पदार्थ,  नारियल,  और फल जिससे जो भी जुड़े 
छठी मैया की पूजा की जाती है
वरदान मांगा जाता है
अपने परिवार की मंगल कामना की जाती है
सूर्य , जल का महत्व 
यह गाँव से जुड़ा त्योहार अब विदेश में भी परिचय का मोहताज नहीं 
अपनी संस्कृति से जोड़ने का पर्व 
फसलों के महत्त्व का पर्व 
व्यक्ति से व्यक्ति को जोड़ने का पर्व 
क्या अमीर क्या गरीब सबको एक कतार में ला रखने का पर्व 
नहीं बडे मंदिर में न कहीं और
तालाब और नदी के किनारे 
छठ मैया की कृपा सब पर बरसे 
भगवान भास्कर सब को अपना आशीर्वाद दे
सूर्य के बिना तो जीवन ही नहीं 
उन्हीं भगवान भास्कर की पूजा का पर्व 

छठ का पर्व

महाभारत काल में कुन्ती द्वारा सूर्य की आराधना व पुत्र कर्ण के जन्म के समय से इस पर्व को बिहार व पूर्बी उत्तर प्रदेश में दिवाली के छठे दिन मनाया जाता है मान्यता है कि छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं और आज यह पर्व बिहार ही नहीं पूरे विश्व में बड़े धूम -धाम से मनाया जाता है । जीवन के महत्वपूर्ण अवयवों में सूर्य व जल की महत्ता को मानते हुये इन्हे साक्षी मान कर भगवान सूर्य की आराधना तथा उनका धन्यवाद करते हुये मां गंगा - यमुना या किसी भी पवित्र नदी या पोखर ( तालाब ) के किनारे मनाया जाता था । यह पर्व पहले बिहार और उत्तर प्रदेश में गंगा के किनारे मनाया जाता था लेकिन आज इस प्रान्त के लोग विश्व में जहां भी रहते हैं वहां इस पर्व को उसी श्रद्वा और भक्ति से मनाते हैं । 

छठ पूजा का पर्व कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है. पहला दिन नहाय खायदूसरा दिन  खरना  तीसरा दिन अर्घ्य और चौथा दिन उषा अर्घ्य मनाया जाता है .इस पर्व की विशेषता है कि इसे घर का कोई भी सदस्य रख सकता है तथा इसे किसी मन्दिर या धर्म स्थान में न मना कर अपने घर में देवकरी ( पूजास्थल) व प्राकृतिक जलराशि के समक्ष मनाया जाता है । तीन दिन तक चलने वाले इस पर्व के लिये महिलाये कई दिनों से तैयारी करती हैं इस अवसर पर घर के सभी सदस्य स्वच्छता का बहुत ध्यान रखते हैं जहां पूजा स्थल होता है वहां नहा धो कर ही जाते हैं यही नही तीन दिन तक घर के सभी सदस्य देवकरी के सामने जमीन पर ही सोते हैं । 

पर्व के पहले दिन पूजा में चढ़ाने के लिये सामान तैयार किया जाता है जिसमें सभी प्रकार के मौसमी फल, केले की पूरी गौर ,इस पर्व पर खासतौर पर बनाया जाने वाला पकवान ठेकुआ ( बिहार में इसे खजूर कहते हैं जिसमें मोयन डाल कर बनाते हैं ), नारियल, मूली, सुथनी, अखरोट, बादाम, नारियल , इस पर चढ़ाने के लिये लाल/ पीला रंग का कपड़ा एक बड़ा घड़ा जिस पर बारह दीपक लगे हो गन्ने के बारह पेड़ आदि । पहले दिन महिलायें अपने बाल धो कर चावल , लौकी और चने की दाल खायेंगी और देवकरी में पूजा का सारा सामान रख कर दूसरे दिन आने वाले व्रत की तैयारी करेंगीं ।

छठ पर्व पर दूसरे दिन पूरे दिन व्रत ( उपवास ) रखा जाता है और शाम को गन्ने के रस की बखीर बनायेंगें और देवकरी में पांच जगह कोशा ( मिटटी के बर्तन ) में बखीर रखेगें बखीर से ही हवन करेंगें तथा बाद में प्रसाद के रूप में बखीर खायेंगें व सगे सम्बन्धियों में बाटेंगें ।

तीसरे यानि छठ के दिन 24 घंटे का व्रत रखेगें जिसमें पानी भी नहीं पीयेंगें सारे दिन पूजा की तैयारी करेंगें और पूजा के लिये एक बांस की बनी हुई बड़ी टोकरी जिसे दौरी कहते हैं में पूजा का सभी सामान डाल कर देवकरी में रखेंगें । देवकरी में गन्ने के पेड़ से एक कैनोपी बनायेंगें और उसके नीचे एक मिटटी का बड़ा बर्तन , दीपक , तथा मिटटी के हाथी बना कर रखा जायेगा और उसमें पूजा का सामान भर दिया जाता है । वहां पूजा अर्चना करने के बाद शाम को एक सूप में नारियल कपड़े से लपेट कर पांच प्रकार के फल पूजा का अन्य सामान ले कर दौरी में रख कर घर का पुरूष इसे अपने हाथों से उठा कर नदी पर ले जाता है  इसे किसी द्वारा अपवित्र न कर दिया जाय इसलिये इसे सिर के उपर की तरफ रखते हैं । पुरूष , महिलायें , बच्चों की टोली एक सैलाब की तरह दिन ढ़लने से पहले नदी के किनारे सोहर गाते हुये जाते हैं :-

काचि ही बांस कै बहिगीं लचकत जाय,भरिहवा जै होउं कवनरम ,भार घाटे पंहुचायI 

बाटै जै पूछेले बटोहिया ई भार केकरै घरै जाय  ,आंख तोरे फूटै रे बटोहियां जंगरा लागै तोरे घूम ,छठ मईया बड़ी पुण्यात्मा ई भार छठी घाटे जायI

नदी किनारे जा कर नदी से मिटटी निकाल कर छठ माता का चौरा बनाते हैं वहीं पर पूजा का सारा सामान रख कर नारियल चढ़ाते हैं और दीप जलाते हैं । उसके बाद टखने भर पानी में जा कर खड़े होते हैं और सूर्य देव की पूजा के लिये सूप में सारा सामान ले कर पानी से अर्ध देते हैं और पांच बार परिक्रमा करते हैं । सूर्यास्त होने के बाद सारा सामान ले कर सोहर गाते हुये घर आ जाते हें और देवकरी में रख देते हैं । रात को पूजा करते हैं । कृष्ण पक्ष की रात जब कुछ भी दिखाई नहीं देता श्रद्वालु अलसुबह सूर्योदय से दो घंटे पहले सारा नया पूजा का सामान ले कर नदी किनारे जाते हैं । पूजा का सामान फिर उसी प्रकार नदी से मिटटी निकाल कर चौक बना कर उस पर रखा जाता है और पूजन शुरू होता है सूर्य देव की इन्तजार में महिलायें हाथ में सामान से भरा सूप ले कर सूर्य देव की आराधना व पूजा नदी में खड़े हो कर करते हैं । जैसे ही सूर्य की पहली किरण दिखाई देती है सब लोंगों के चेहरे पर एक खुशी दिखाई देती है और महिलायें अर्घ देना शुरू कर देती हैं शाम को पानी से अर्घ देते हैं लेकिन सुबह दूध से अर्घ दिया जाता है । इस समय सभी नदी में नहाते हैं तथा गीत गाते हुये पूजा का सामान ले कर घर आ जाते हैं । घर पंहुच कर देवकरी में पूजा का सामान रख दिया जाता है और महिलायें प्रसाद ले कर अपना व्रत खोलती हैं तथा प्रसाद परिवार व सभी परिजनों में बांटा जाता है । 

छठ पूजा में कोशी भरने की मान्यता है अगर कोई अपने किसी अभीष्ट के लिये छठ मां से मनौती करता है तो वह पूरी करने के लिये कोशी भरी जाती है इसके लिये छठ पूजन के साथ -साथ गन्ने के बारह पेड़ से एक समूह बना कर उसके नीचे एक मिटटी का बड़ा घड़ा जिस पर छः दिये होते हैं देवकरी में रखे जाते हैं और बाद में इसी प्रक्रिया से नदी किनारे पूजा की जाती है नदी किनारे गन्ने का एक समूह बना कर छत्र बनाया जाता है उसके नीचे पूजा का सारा सामान रखा जाता हैI कोशी की इस अवसर पर काफी मान्यता है उसके बारे में एक गीत गाया जाता है जिसमें बताया गया है कि कि छठ मां को कोशी कितनी प्यारी है ।

रात छठिया मईया गवनै अईली आज छठिया मईया कहवा बिलम्बली 

बिलम्बली - बिलम्बली कवन राम के अंगना 

जोड़ा कोशियवा भरत रहे जहवां जोड़ा नारियल धईल रहे जहंवा उंखिया के खम्बवा गड़ल रहे तहवां 

छठ पूजा का आयोजन आज बिहार व पूर्वी उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त देश के हर कोने में किया जाता है दिल्ली, कलकत्ता, मुम्बइव चेन्न्ई जैसे महानगरों में समुद्र किनारे जन सैलाब दिख्खई देता है पिछले कई वर्षों से प्रशासन को इसके आयोजन के लिये विशेष प्रबन्ध करने पड़ते हैं । इस पर्व की महत्ता इतनी है कि अगर घर का कोई सदस्य बाहर है तो इस दिन घर पंहुचने का पूरा प्रयास करेगा । देश के साथ-साथ अब विदेशों में रहने वाले लोग अपने -अपने स्थान पर इस पर्व को धूम धाम से मनाते हैं । पटना में अब कई लोगों ने नये प्रयोग किये जिसमें अपने छत पर छोटे स्वीमिंग पूल में खड़े हो कर यह पूजा की उनका कहना था कि गंगा घाट पर इतनी भीड़ होती है कि आने जाने में कठिनाई होती है और सुचिता का पूरा ध्यान नहीं रखा जा सकता । लोगों का मानना है कि अपने घर में सफाई का ध्यान रख कर इस पर्व को मनाया जा सकता है ।

कोरोना के कारण पिछले दो वर्ष बहुत तनावपूर्ण रहे लेकिन इस वर्ष सभी लोग बहुत हर्षौल्लास के साथ इसे मन रहे हैं. आप सभी को छठ पर्व की हार्दिक बधाई व शुभकामनायें. 

केरवा जय फरेलर घावद से - ओपर सुग्गा मड़राय 

मारै लै कवन राम - ढेला से सुग्गा गिरे मुरझाय 

सुगिया जै रोवे लै बियोग से जन तुही सुग्गा मारा हमार 

गरज गरज के बरसै ओरियां ओरियां मधु चूवैं

ताहि ओरियां भिजै लै कौन राम कौन देवी के अचरन भीजै

गोदिया भिजै लै कौन  बाबू इसे हवै छठी मईया कै पूजवा 

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Sunday 30 October 2022

जन्मदिन मनाएं

हम उस पीढी के लोग है
जिनको अपना जन्मदिन ठीक से पता नहीं
शहर वालों की बात तो ठीक है
गाँव वाले तो इससे अनभिज्ञ
पाठशाला में अंदाज से लिखवा दिया
कभी छोटा कर
कभी बडा कर
जन्म प्रमाणपत्र तो दूर की बात
पंडित के पास दर्ज 
सब कुछ अंदाज से
तब जन्मदिन नहीं मनाया जाता था
आज तो जन्मदिन का प्रचलन है
होड लगी रहती है
किसका कैसे मना
किसका कब है यह भी याद रखना है
नहीं तो लोग रूठ जाएंगे
उस समय तो बस दो ही जन्मदिन ज्ञात थे
भगवान राम  और भगवान कृष्ण
वह भी बहुत धूमधाम से 
आज जो कुछ भी हो
हर व्यक्ति को तवज्जों दिया जाता है
कम से कम उसका जन्मदिन विश कर
उसे शुभकामना देकर
उसके महत्व का एहसास कराकर
कितना अच्छा और सुखद लगता है
जब कोई आपको जन्मदिन की शुभकामना देता है
तब आप भी इससे वंचित न रहे
अपनों से जुड़े रहिए
वर्ष में एक बार 
उसे विशेष महसूस कराए

Friday 28 October 2022

सब हुआ पराया

पिता से पीहर
माँ से मायका
यह हो तो बदल जाता जीवन का जायका 
इनके बिना तो सब गडबडाता 
बस सब यादों में समाता
अब तो बस याद ही बसी है
वो रूठना - मनाना 
वो झगड़ना - चिल्लाना 
वो हंसना - खिलखिलाना 
वो मौज- मस्ती और शरारते 
सब है याद बहुत आते 
वे क्या गए 
अपने साथ वह प्यारा सा जहां भी ले गए 
बस नाम छोड़ गए 
घर छोड़ गए
उनके बिना तो घरौंदा भी सूना 
जहाँ वे नहीं वहाँ नहीं मन लगता
कितना भी अपनापन हो तब भी लगता पराया 
घर भले हो पर अपना है
यह बात हमारा मन नहीं मानता। 

मेरे अकेलेपन की साथी शराब

तू है मेरी जान
तेरे बिना मैं बेहाल
मेरे रातों की नींद तू
मेरे दिल का चैन तू
मेरी हमसफर
मेरे अकेलेपन की साथी
मैं और तू 
उसमें नहीं किसी और का काम
तुझसे बिछुडना नहीं गंवारा
कोई नाराज हो या खुश
उसकी नहीं कोई परवाह
तू ही खुदा मेरी
तुझमे सारा जग दिखता
मेरी दुनिया तुझमे समाई
एक बार जब थाम लिया
तब सब स्वर्ग का आंनद मिल गया
घूंट घूंट उतरती तब दिल को ठंडक मिलती
अमृत की बूंदों की तरह छलकती
गले को तर करती
कुछ न साथ बस हो तेरा साथ
तब क्या गम
मेरा सब गम तू हर लेती
सब दुख दर्द भूला देती
जब एक घूंट अंदर जाती
तब सब कुछ हो जाता हवा हवा
मदहोशी का आलम
साकी और प्याला
इससे दूजा न कोई प्यारा
तू ही मेरी जान
तू ही मेरा जहान
तुझ बिन लागे सब अधूरा
तू है मेरी प्यारी शराब

Thursday 27 October 2022

हम भार हो गए

बच्चों की जिंदगी संवारने में 
उनकी आरजू पूरी करने में सब कुछ लगा दिया
सबसे प्यारी जिंदगी को भी दांव पर 
न अपनी इच्छा न आकाक्षा 
न शौक न पर्यटन 
तब भी खुश रहें 
लगा कुछ सार्थक कर रहें 
पर वह एक धारणा थी जो सर्वथा गलत थी
जन्मते ही हर बच्चा अपना भाग्य लेकर आता है
हमने क्या किया 
क्या हिसाब किताब करें 
जिनकी आरजू पूरी करते रहें 
आज उन्होंने ही हमें लावारिस कर दिया
जिनके लिए घर बनाया
उन्होंने आज हमें घर से बेदखल कर दिया
हमें वृद्धाआश्रम में लाकर छोड़ दिया
जिनके खान - पान की हमने परवाह की
उन्हें हमें पेट भर खाना भी देना भारी लगा
हमने कभी मंहगाई की परवाह न की
अपनी सामर्थ्य के अनुसार हर कुछ दिया
उन्हें ही हम महंगे लगने लगे
हमारी साधारण जरूरते भी भारी लगने लगी
जिनको गोद में लेकर भी हमें वह कभी भारी न लगें 
उन्हीं के लिए हम भार हो गए ।

सोनपापडी हमारी

दीवाली का त्यौहार 
मिठाईयाँ बेशुमार 
लड्डू , पेडे,  बरफी 
सब हैं इतराते
बस एक सोनपापडी राह देख रही 
न जाने क्यों यह आज रेस से बाहर
सस्ती और टिकाऊ 
मुख में झट से घुलने वाली
सोंधी सोंधी मिठास से भरी
आज देखी जा रही हिकारत से
जोक्स और मीम्स बन रहें 
लेने वाले सकुचा रहे
देने वाले शर्मा रहें 
कहीं कुछ साजिश की बू आ रही
क्यों बदनाम किया गया इसे
बहुराष्ट्रीय कंपनियों के उत्पादकों का प्रचार प्रसार 
कैडबरी  , अलग-अलग तरह के चॉकलेट 
यह किसी मायने में कम नहीं  
हमारी भारतीयता का स्वाद लिए हुए 
और सोने जैसा गुण 
किसी की जेब पर नहीं पडती भारी
ऐसी है सोनपापडी हमारी 

जो डरा वह गया

वह फूल क्या जिसमें कांटे न हो
वह डगर क्या जो पथरीली न हो
वह नदी क्या जिसमें भंवर न हो
वह मौसम क्या जिसमें झंझावात न हो
वह बिजली क्या जिसमें कडकडाहट न हो
वह सपने क्या जिसमें उडान न हो
वह मंजिल क्या जो कठिन न हो
वह जीवन क्या जिसमें संघर्ष न हो

कंकरीली पथरीली राहों पर चलना है
हर राह को आसान बनाना है
कितनी भी मुश्किल हो डगर
कितना भी ऊंचा हो पहाड़
चढना तो तब भी है
नीचे बैठ दृश्य नहीं देखना है
तैरना न आए कोई बात नहीं
नदी में उतर जाइए 
हाथ पैर मार कर तो देखो
क्या पता किनारा मिल ही जाए
जो डरा वह कुछ नहीं कर पाया

Wednesday 26 October 2022

जीवन डोर

मैंने सुबह भी देखा है
मैंने सांझ भी देखा है
मैंने रात भी देखा है 
मैंने दिन भी देखा है
मैंने उजाला भी देखा है
मैंने अंधेरा भी देखा है
मैंने कोहरा भी देखा है
मैंने काले बादल भी देखे हैं 
मैंने कडकडाती बिजली भी देखी है
मैंने नीरव शीतल चांदनी भी देखी है
मैंने सूरज भी देखा है
मैंने चाँद भी देखा है
उन पर लगे ग्रहण को देखा है
उनको काले बादलों से ढकते देखा है
मैंने भोर की लालिमा भी देखी है
उजली और चमकती रात्रि का भी दीदार किया है
मैंने सूखापन भी देखा है
मैंने हरियाली का नजारा भी लिया है
मैंने पतझड़ भी देखा है 
मैंने वसंत भी देखा है
मैंने जीवन भी देखा है
सांसों की डोर को संभालते संभालते नित नया बहुत कुछ देखा है
कस कर पकड़ कर रखा कहीं कुछ छूट न जाएं 
कहीं कुछ बिखर न जाएं 
बहुत मूल्यवान देन है खुदा की
यह ऐसे न जाया हो
अपने लिए भी और अपनों के लिए भी
मजबूती से थामे रखा है यह जीवन डोर 

कर्म तो करना है

अर्जुन को वासुदेव कृष्ण कहते हैं 
कर्म तो सबको करना ही है
तुम लडने के लिए शस्त्र उठाओगे तब भी
न उठाओगे तब भी
दोनों ही कर्म है

जो इस संसार में आया है उसको तो कर्म करना ही है
आग लगी है 
तुम चुपचाप देख रहे हो 
उसे बुझाने का प्रयास न करना यह भी कर्म 
तब क्यों न आग को बुझाने का प्रयास 
हमारे भाग्य में शिक्षा लिखी है पर वह अपने आप तो नहीं मिल जाएंगी 
उस भाग्य को सार्थक करने के लिए कर्म करना ही है
कर्म का फल ऊपर वाला देगा 
वह भी सोचने को बाध्य होगा
तुमने कुछ किया ही नहीं 
हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे साल भर
उठ कर परीक्षा हाॅल में चल दिए तब चमत्कार तो होगा ही नहीं 
तब निष्काम कर्म कर जीवन सार्थक करें। 

परिवार अब इतिहास की किताबों में

परिवार किसे कहते हैं 
उसकी परिभाषा क्या
पति - पत्नी 
पति - पत्नी और उनके बच्चे 
पति - पत्नी  , दादा - दादी और बच्चे 
पति-पत्नी,  दादा- दादी , चाचा - चाची , बुआ
देवर ,ननद,  सास ससुर  , जेठ , जेठानी , भैया - भाभी 
काका , मामा , फूफा , ताऊ बहनोई 
औ न जाने कितने रिश्ते 
शायद कुछ वर्ष बाद यह भी न रहें 
नया शख्स जान भी न पाए 
ऐसे भी कुछ जीव थे
आज हम दो या हमारे दो
कभी कभी तो हम दो हमारा एक
विडम्बना तो तब और भी
मैं और हमारा एक
ज्यादा हुआ तो केवल मैं 
संयुक्त परिवार की तो बात ही छोड़ दे 
आज तो पति- पत्नी भी विभक्त 
उस पीढ़ी में जन्मे बच्चे यह सब कैसे जानेंगे 
वसुधैव कुटुंबकम की परिभाषा 
जब स्वयं का ही परिवार नहीं 
तब पूरी वसुधा को कैसे परिवार मान लिया जाएंगा 
वह त्याग की भावना कहाँ से आएगी
राम,  लक्ष्मण,  भरत , शत्रुघ्न को कैसे समझ पाएंगे
परिवार अब इतिहास की किताबों में रहेंगा

ग्रहण जब लगता है

कल ग्रहण लगा था भगवान भास्कर पर
सब मंदिर के कपाट बंद
अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार सबने ग्रहण का पालन किया
जो परंपरा चली आ रही है
क्या करना है क्या नहीं करना है
क्या सावधानी बरतनी है
समय जरूर बदला है
जब हम छोटे थे तब अम्मा कहती थी आज हमारे भगवान पर ग्रहण लगा है
इसलिए जल्दी वे उससे मुक्त हो यह प्रार्थना करनी है
लोग भजन कीर्तन करते थे
खाना - पीना सब बंद रहता था
दूध वगैरह के ऊपर ढकने पर तुलसी की पत्ती या गोबर का कंडा रखते थे
गर्भवती औरत को तो हर चीज की सख्त मनाही थी
यहाँ तक कि सोना भी नहीं 
छुरी- कांटे- कैंची से दूर 
एक लडका था हमारे पडोस में 
उसके एक हाथ में केवल एक अंगूठा था तो कहते थे उस दिन उनके घर में झगड़ा हुआ था
माँ ने गुस्से में ध्यान नहीं रखा और अपना नख काट लिया 
इसी से ऐसा हुआ है
यह सब धारणाए थी पर कितना वैज्ञानिक दृष्टिकोण था
बच्चा माँ के गर्भ में पानी की थैली में रहता है
जल पर वनस्पति पर प्रभाव होता ही है
तभी तो ग्रहण में खाना न खाना होता था न रखना 
ग्रहण छूटने के बाद पूरे सदस्य नहाते थे
दे दान छूटे ग्रहण    
वालों की आवाज आती थी
कोई कपड़े तो कोई अनाज दान दिया जाता था
ईश्वर हमको हर विपत्ति से बचाते हैं तब उन पर विपत्ति आई है तो हमारा भी फर्ज है उनको मुक्त कराना राहु और केतु से
भक्त और भगवान का यह रिश्ता हमारे हिंदू धर्म में 
इसे क्या नाम दे 

कर्म तो करना है

हम तब भी वही थे
आज भी वही है
हम तो नहीं बदले हैं 
देखने वालों का नजरिया बदल गया है
आज हर कोई परेशान है
ऊपर से तो दिखता सब ठीक-ठाक 
अंदर ही अंदर कुछ अजीब सी हलचल 
स्वयं को दूर रखना चाहता है झमेलो से
यह तो संभव नहीं 
कीचड़ में घुसेगे तो कीचड़ लगना ही है
आग में हाथ डालोगे तो हाथ जलना ही है
भले ही वह किसी को बचाना हो
उद्देश्य अच्छा हो
फिर भी कर्म फल तो मिलना ही है
कर्म किए बिना रह भी तो नहीं सकते 

Tuesday 25 October 2022

ऋषि सुनक को बहुत-बहुत बधाई

ऋषि सुनक ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बने हैं 
सारा भारत आनंदित है
क्योंकि वे भारतीय मूल के हैं 
जबकि उनका परिवार दशकों पहले भारत छोड़ चुका था
अविभाजित भारत से उनके पूर्वजों का संबंध है
फिर भी हमें गर्व है 
और क्यों न हो 
जडे तो भारत की ही है
एक और बडी बात 
इन्फोसिस के चेयरपर्सन नारायण मूर्ति और सुधा मुर्ति के वे दामाद हैं 
उनकी बिटिया फर्स्ट लेडी से सुशोभित होगी
 ऐसे बहुत से हैं 
लेकिन सोचने की बात है कि
हमारा दिल इतना बडा है क्या??
हम सोनिया गाँधी को प्रधानमंत्री पद पर स्वीकार कर सकते हैं 
प्रधानमंत्री क्या उनके विदेशी होने पर आज भी टीका - टिप्पणी की जाती है 
जिसके जीवन का तीन हिस्सा भारत में बीता 
जिसने अपने पति को देश के लिए खोया
उनके लिए सम्मान तो दूर की बात उन्हें भारतीय भी नहीं समझा जाता
यहाँ तो एक राज्य को दूसरे राज्य वाले व्यक्ति स्वीकार नहीं कर पाते
उनको सम्मानित निगाह से नहीं देखते 
दुनिया गोल है और बहुत छोटी भी है
जैसे हम भारतीयों की उपलब्धि पर गौरवान्वित होते हैं वैसा ही दृष्टि कोण सबके प्रति हो
ऋषि सुनक हो या कमला हैरिस हो या कल्पना चावला हो
ये भारतीय नागरिक नहीं थे
उनकी जडे भारत में थी
तब भी अपनापन लगता है 
ऋषि सुनक को बहुत बहुत बधाई 
आशा है वे अपने देश के लिए बेहतर काम करेंगें 
तब भारतीयों का सर भी गर्व से ऊंचा होगा ।

दीपावली आई

करो स्वागत नववर्ष का
करो स्वागत माता लक्ष्मी का
दीपावली आई 
अपने साथ तमाम खुशियाँ लाई
दीपोत्सव  मना
सब जगह जगमग जगमग
दीप से दीप जले
मन से मन मिले 
सब बैर भाव भूलकर लोग एक-दूसरे से मिले
मिठाई बांटी 
फटाके फोडे 
नए-नए वस्त्र पहने 
ईश्वर के दरबार में हाजिरी  दी
दीवाली की रात्रि तो जगमग
दीवाली की सुबह भी सुहावनी 
सब नयी आशा और विश्वास के साथ
वर्ष भर के लिए तैयार 
दीपावली इसीलिए तो आती है
ताकि सब मिलकर प्रेम बांटे 
हर गरीब- अमीर के घर रोशनाई हो
फिर एक बार नई क्षितिज 
नई आशा , नया स्वप्न हो 
सबके चेहरे पर मुस्कान हो 


नवरात्र का संदेश

नव दुर्गा की उपासना
शक्ति की पूजा
यह है हमारी समृद्ध भारतीय संस्कृति
जहाँ नारी को नर से ऊपर का दर्जा दिया गया है
वह चाहे संपत्ति की देवी लक्ष्मी हो
विद्या की देवी सरस्वती हो
आसुरी शक्तियों का नाश करने वाली काली हो
भगवान भोलेनाथ की अर्धांगनी माता पार्वती हो
कहीं भी दोयम दर्जा नहीं है
फिर हमारे समाज की ऐसी सोच कैसे हो गई
औरत को हीन कैसे समझा जाने लगा
शास्त्रों में तो कहीं ऐसा उल्लेख नहीं है
एक से एक विदुषी नारियां हुई है
जानकी , द्रोपदी से लेकर लक्ष्मी बाई तक
ये विद्रोहणी नारियां भी हुई है
जिन्होने लीक से हटकर कदम उठाया

शायद पुरूषवादी मानसिकता को यह स्वीकार नहीं हुआ
तभी उसने दबाना शुरू किया
उसके अस्तित्व को नकारने लगा
जो कुछ है वह है
वह जैसे चाहेंगा वह होगा
धीरे-धीरे प्रक्रिया बढने लगी
और वह जो चाहता था वैसा होने लगा
औरत पैर की जूती बना दी गई 

आज फिर परिवर्तन हो रहा है
वह अधिकांश को पच नहीं रहा है
उनके अहम को ठेस लग रही है
वह दबाने की भरपूर कोशिश कर रहा है
सफल नहीं हो पा रहा है
तब अनर्गल तरीके अपना रहा है
सडी हुई मानसिकता से उबर नहीं पा रहा है
इसलिए समाज का संतुलन बिगड़ रहा है
जब तक वह शक्ति की शक्ति को पहचानेगा नहीं
उसकी अहमियत को स्वीकार नहीं करेंगा
तब उसका परिणाम भी उसे ही भोगना होगा
अंतः शक्ति की शक्ति को पहचाने
यही तो नवरात्र का संदेश है

धनतेरस


धनतेरस की सभी को शुभकामना
धनतेरस ,धन का ही नहीं स्वास्थ्य का भी त्योहार है
भगवान धनवंतरी की कृपा सब पर बनी रहे
नए- नए बर्तन लाए और रसोई में  खाना बना कर सबको स्वस्थ करें
स्वास्थ्य ही असली धन है
अगर शरीर ही स्वस्थ नहीं तो फिर जीवन ही नीरस है
मॉ लक्षमी की कृपा सब पर बनी रहे
धन- धान्य से पूर्ण घर हो ,तभी उन्नति संभव है
अगर पेट भरा होगा तो ही विकास का मार्ग दिखाई देगा
इसलिए धन के साथ- साथ स्वास्थ्य भी बना रहे
अपनों का साथ बना रहे
असली धन तो वही हैं
मॉ- बाप ,बेटा - बेटी ,भाई- बहन ,पति - पत्नी  यह सब रिश्ते तो धन से कम नहीं
अत: हर रिश्ते को आदर दे
उनकी आवभगत करें
सम्मान दे
इन असली धन को संभाले

Monday 24 October 2022

शुभ दीपावली

🪔 *ll शुभ दीपावलीll*  🪔

सभी दोस्तों,  शुभचिंतकों और उनके परिवार को  दीपावली की हार्दिक शुभकामनाओ के साथ "प्रकाश व प्रसन्नता के पर्व दीपावली पर बहुत बहुत मंगलकामनाएँ। 

धन, वैभव, यश, ऐश्वर्य के साथ दीपावली पर माँ महालक्ष्मी आपकी सुख सम्पन्नता स्वास्थ्य व हर्षोल्लास में वृद्धि करें, इन्हीं शुभेच्छाओं के साथ।"
  🪔 *ll शुभ दीपावलीll*🪔

Happy Dipawali

दीप से दीप जले
मन से मन मिले 
पृथ्वी का कण - कण प्रकाशित हो
चारों दिशाए उजायमान हो
घर घर खुशी की लहर हो
हर कोने में दीप प्रज्वलित हो
हर जाति भेद - धर्म से परे हो
अमीर- गरीब सब घर में प्रकाश हो
फुलझड़ी और अनार की तडतड हो
हर मुख में मिठास हो
ताकि सब मिलकर प्रेम से कहे 
Happy Dipawali 

ऐ जिंदगी आखिर कब तक ??

जिंदगी इम्तिहान लेती है
पर कभी-कभी थका देती है
कितनी परीक्षा
परीक्षा पर परीक्षा
साल पर साल
बस अब बस भी कर
अब तो सुकून से जीने दे
कब तक परेशान करेंगी
कब तक रूलाएगी
तेरी भी तो कुछ सीमा होगी
यह तो ज्यादती है
हम परीक्षा पर परीक्षा देते जाएं
तू कुछ न कुछ निकालती जा
तू तो नहीं थकती
परीक्षा देनेवाला अलबत्ता जरूर थक जाता है
मायूस हो जाता है
जीते जी मरणासन्न हो जाता है
तू भेदभाव बहुत करती है
किसी को आसानी से पास कर देती है
किसी को अक्सर नापास करती रहती है
इतना कठिन पेपर निकालती है
कि वह बेचारा बन जाता है
कोशिश करता है सुलझाने की
कुछ सुलझाता है
कुछ छोड़ देता है
कब तक ऐसा खेल खिलाएंगी
कभी तो रहमत कर

ईश्वर का अस्तित्व

यह नास्तिक है
ईश्वर को नहीं मानता
वह आस्तिक है
दिन रात ईश्वर की उपासना में मग्न
व्यक्ति को इसी हिसाब से ऑका जाता है
भगवान सब देख रहा है
सही है भाई 
वह सर्वशक्तिमान है
उसकी दृष्टि से कोई बच नहीं सकता
कर्मफल तो भोगना ही है
लाख उपासना कर लो
भजन कर लो
मालाफूल चढा लो
दान बाॅटो
फिर भी हिसाब तो होगा ही
आज नहीं अगले जन्म में
ईश्वर की सत्ता तो है 
नास्तिक भी हो तो क्या ?
प्रकृति को तो नकारा नहीं जा सकता 
यह तो प्रमाण है
कोई शक्ति है जो संचालन करती है
भाग्य , ज्योतिष , राशि
सब इसके ही भाग है
कल से तो सब अंजान
कल क्या पल में क्या हो
यह भी तो किसी को नहीं पता
तब यह सब चक्कर छोड़
वास्तविक बनने की कोशिश करें
जो सत्य है वह है
जैसे हैं वैसे हैं
स्वीकार करें
अपनी खामियों को
अपनी गलतियों को
जो हुआ सो हुआ
अब वास्तव के धरातल पर उतर आए
जितनी जल्दी हो सके उतना ही अच्छा

Sunday 23 October 2022

नमो नमो

राम की नगरी सजी है
सरयू भी फूले नहीं समा रही है
अयोध्या की तो बात ही न्यारी 
वह तो इठला रही है
दीपोत्सव की तैयारी चल रही है
आज हिंदू कुछ गर्वित महसूस कर रहा है
उनके अराध्य का इस तरह स्वागत 
इतना तो शायद राम युग में भी नहीं हुआ होगा
त्रेता युग के बाद मोदी युग 
हर घाट सजा है
हर नाव फूलों से लदी है
राम पथ पर चल निकले हैं 
यह योगी - मोदी की जोड़ी 
राम नाम बिना गति नहीं 
पूरा विश्व अयोध्या को देख रहा है
अयोध्या तो जगमगा रही है
अवधवासियों  के साथ-साथ भारत वासियों की भी यह अद्भुत दीवाली 
राम काज किन्हें बिन मोहे कहाँ विश्राम 
ठान लिया है
राम के नाम पर ही आने वाले 
राम में ही रमने वाले 
नमो नमो नमो का शुक्रिया 

यही तो है दीपावली

दीवाली आई है
जी भर कर खुशियाँ लाई है
दिल से दिल मिले
वही है असली दीवाली 
दीप जलेंगे 
वंदनवार सजेगे 
लडिया झिलमिलाएगी 
रंगोली रंग बिखेरेगी 
फूलों के तोरण द्वार पर लटकेगे 
मिष्ठान्न और पकवान से घर महकेगे 
दुकानें सामानों से पटी 
रास्तों पर चहल-पहल 
सब जगह जगमग- जगमग 
दिल में भी खुशियों के दीप
अपनों से मिलने की खुशी
यही तो है दीपावली 

समय चक्र

मैं बिजी हूँ 
बाद में बात करता हूँ 
वह बाद कब आता है पता नहीं 
इंतजार करता रहता है
कभी-कभी बाद आ जाता है कभी नहीं 
कितनी बिजी हो गई है जिंदगी 
इसमें दोष तो किसी का नहीं 
फुर्सत के क्षण मिलना आसान नहीं 
हर बात काम की हो गई है
यहाँ तक कि घूमना - फिरना भी
सबका शैड्यूल बना रहता है
सब टाइम टेबल के हिसाब से चलता है
व्यक्ति काम का गुलाम हो गया है 
स्वतंत्रता कहीं लुप्त हो गई है
हमेशा दिमाग उलझा रहता है
घडी की सुइयों के अनुसार 
वह जमाना गया
जब एक - दूसरे से घंटों बतियाते थे
बिना सूचना दिए किसी के घर चले जाते थे
आज एक अतिथि आ जाएँ 
तब सब गडबडा जाता है
सब समय का चक्र है।

आज तो जी लूँ

क्या शुभ्रता 
क्या रंगत
मन मोहक
सबको आकर्षित करता
आज खिला है
मुस्कान भर  रहा है
बिना यह सोचे 
जिस डाली पर है
वहीं उसे एक दिन गिरा देगा
एक नई कली नए पुष्प का जन्म होगा 
वह उसको गोद में ले दुलराएगा 
हवा भी प्यार लुटाएगी 
जिस तरह यह आज झूम रहा है
वह कल उपेक्षित हो जाएगा 
नियति उसकी यही है
फिर भी मुस्कान से भरा है
आज तो अपना है कल को किसने देखा है
प्रेमी के गजरे की शोभा
भगवान के चरणों में अर्पित 
या मिट्टी में 
जो हो सो हो
आज तो जी लूँ।

हमने देखा है

हमने देखा है
पहाडों को झुकते हुए
हमने देखा है
चट्टानों को टूटते हुए
हमने देखा है
बरसात को रोते हुए
हमने देखा है
विशालकाय वृक्ष को ढहते हुए 
हमने देखा है
हरे - भरे जंगलों में आग लगते हुए 
हमने देखा है
सूर्य को अस्त होते हुए 
हमने देखा है 
चांद को बादलों में घिरते हुए 
हमने देखा है
तारों को टूटते हुए 
हमने देखा है
पपीहे को दो बूँद पानी के लिए तडपते
हमने देखा है
नदियों को सूखते हुए
हमने देखा है
उपजाऊ को बंजर होते
हमने देखा है
उडान भरते हुए धडाम से नीचे गिरना
हमने देखा है
शेर को सियार बनते
हमने देखा है
राजा को रंक बनते
हमने देखा है
करोड़पति को रोडपति बनते
हमने देखा है
शिक्षा को अपमानित होते
हमने देखा है
काबिलियत को तलवे चाटते 
हमने देखा है
हुनर और योग्यता को दरकिनार होते
हमने देखा है
भ्रष्टाचारी को ऊँचे सिंहासन पर विराजमान  होते
हमने देखा है
अच्छे - अच्छों को हाथ जोड़ते हुए 
हमने देखा है
जिंदगी को मजबूर होते
हमने देखा है
जीवन को बेरंग होते
हमने देखा है
असतित्व खत्म होते
बहुत कुछ दिखाती है यह जिंदगी 
बहुत कुछ सिखाती है यह जिंदगी

Saturday 22 October 2022

नम्र और गर्म

गरम रहोगे तो पिघल जाओगे 
कोई कुछ भी कह सकता है
झूठ मूठ का आरोप लगा सकता है
शांत रहें और ठंडे 
तब विचार भी आएंगे 
लोहा को जब गरम करते हैं 
पीटते हैं 
तब उसे किसी भी आकार में ढाल सकते हैं 
आप को बदलना नहीं है
न उत्तेजित होना है
मजबूती से अपना काम करना है
निश्चय पर अडिग रहना है
उकसाने वाले बहुतेरे 
आपका अपना वजूद है
आप धातु नहीं है
कि किसी भी आकार में ढल जाएं
नम्र रहें पर गर्म नहीं  ।

नेता और जनता

किस्मत बंद हुई चुनाव के पिटारे में
साम ,दाम ,दंड ,भेद सारे नुस्ख़े आजमाए गए
अब पिटारा खुलने का इंतजार
जैसे ही पिटारा खुला
किस्मत चमकी
रातोरात ऐश्वर्य और संपत्ति का डेरा
जनता का क्या
हाथ जोड़ लिया
दो पेग पिला दिया
कुछ पैसे बांट दिया
कुछ रोटी का टुकड़ा फेंक दिया
कुछ बात बना दी
कुछ लंबी चौड़ी हांक दी
कुछ झूठ बोल दिया
कुछ झूठे वादे कर दिया
वह पिघल गई
झांसे में आ गई
वह जहाँ थी वही है
हम उसके बल पर बन बैठे शहंशाह
पहले हमने हाथ जोड़ा
अब वह जोड़ेंगे 
पहले हम घूमे गली कूचे
अब वह घूमेगी हमारे आस-पास
हमारे दर्शन भी दुर्लभ
हम रहेंगे सुरक्षा के घेरे में
वह रहेगी ताकती दूर से हमें
उसकी परवाह किसे
हमने तो अपना क्या अपने पूरे खानदान का वर्तमान एवं भविष्य दोनों को संवार दिया
जमीन से उठाकर आसमान पर बिठा दिया
चुनाव तो हो चुके 
जनता की ऐसी की तैसी
अब पांच साल जम कर राज करेंगे
अगले चुनाव तक फिर कोई चारा फेंक देगे
शगूफा छोड़ देंगे
फिर अपनी बातों में ले लेंगे
ऐसे ही हम राजा बने रहेंगे
और वह बेचारी हमारी मायूस - लाचार प्रजा

शब्दों का खेल

शब्द अपने आप में विस्तृत है
यह अर्थ है
यह कलह है
यह सांत्वना है
यह आज्ञा है
यह वजनी है
यह अक्षय है
यह निशब्द है
यह निराला है
इसमें तोड़ने और मोडने की शक्ति है
दूर और पास लाने की शक्ति है
यह वह जादूगर है
जो किसी को भी अपना बना सकता है
युद्ध करा सकता है
अलगाव करा सकता है
इसकी महिमा न्यारी
जिसने इसकी महत्ता समझ ली
वह कभी नहीं हार सकता
जब वाणी का जादू चलता है
तब बडे बडे भी वश में हो जाते हैं
यह सबसे बडा वरदान प्राप्त
वह भी केवल मानव को
हाँ उसको इससे खेलना आना चाहिए
तब तो उसकी जीत निश्चित है
आओ शब्दों से खेले
अंजानो को भी अपना बनाए

Friday 21 October 2022

वह और मैं

उस पर मैं गुस्सा होती हूँ 
उसको मैं झिडकती हूँ 
उसको गाहे - बगाहे डांटती हूँ 
बाहर का सारा डिप्रेशन उस पर निकालती हूँ 
हमेशा नाज- नखरे करती हूँ 
कभी खाने को लेकर तो कभी कुछ 
इतना सब होते हुए भी मैं उसे बहुत प्यार करती हूँ 
वह भी मुझसे बहुत करती है
उसकी तो जान मुझमें बसती है
पर न जाने क्या हो जाता है
कभी-कभी सारा गणित डगमगा जाता है
तीखापन,  रूखापन  ,कर्कशता आ जाती है संबंधों में 
वह जो भी है जैसी भी है
सबसे ज्यादा वही है मेरे लिए 
फिर ऐसा क्यों होता है
न मैं उसका बुरा सोच सकती हूँ 
न वह मेरे लिए कुछ ऐसा वैसा
फिर भी यह मुख है
उसमें से जो शब्द निकलते हैं 
वह सब गडबड कर डालते हैं 
मन का तो दिखता नहीं 
शब्द अपना खेल , खेल जाते हैं 
आपस में कडवाहट घोल जाते हैं 
हम मायूस हो रह जाते हैं। 

प्राइवेसी का सवाल

सूचना देकर जाना किसी के घर
नहीं तो उनकी प्राइवेसी खंडित हो जाएंगी
यह एक नया कांसेप्ट आया है समाज में
एक समय था कि हमारे घर के दरवाजे हमेशा खुले रहते
सोचना नहीं पडता था
जो भी आता उसका दिल से स्वागत किया जाता
आवभगत की जाती
पकवान न सही चाय ही सही पानी ही सही
वह प्रेम से पिलाया जाता
किसी की स्वतंत्रता का हनन नहीं होता
अरे यहाँ से गुजर रहे थे आ गए
जवाब मिलता था
आपका अपना ही घर है जब चाहे आ जाओ
अब तो अपनों को भी इत्तला देने का जमाना है
जज्बा तो कहीं पीछे छूट गया है
अब तो देखना पडता है
सुबह  । दोपहर ।शाम
कौन सा वक्त सही रहेंगा
ताकि उन लोगों को परेशानी न हो
माना कि हर व्यक्ति व्यस्त है फिर भी 
घर आया मेहमान आज भगवान नहीं बोझ समान है
लोग कन्नी  काट रहे हैं
रिसोर्ट में समय बिता लेंगे अंजानो के साथ
पर अपनों के साथ नहीं
सब कुछ दिखावटी और औपचारिक
यहाँ तक कि रिश्ते भी
निभाना मजबूरी है नहीं तो कौन पूछता
तब घर भरा रहता था आगंतुकों से
और कोई न सही पडोसी ही सही
पर आज वह भी नहीं झांकता
शायद वह भी डरता है
हिचकता है
रिश्तेदार  की तो बात छोड़िए
जब कोई आपको पहले से इत्तला दे 
उस दिन शायद वह न आ सके
आपकी तैयारी और समय दोनों व्यर्थ
तब आप उसको ही कोसेंगे
ऐसी जहमत कौन पाले
आप अपने घर हम अपने घर
मिल लिया ओकेजन पर
औपचारिकता निभा ली
ऐसे में दिल नहीं मिलता है
वह भी यंत्रचलित सा हो जाता है
इतनी पाबंदियां तब रिश्तों में मिठास कहाँ से

यह ऑसू भी अजीब है

यह ऑसू भी अजीब है
कभी भी निकल पडते हैं
खुशी हो तब भी
दुख हो तब भी
परेशानी हो तब भी
अकेलापन हो तब भी
यह हमेशा साथ रहते हैं
जब शब्द असमर्थ हो जाते हैं
तब ऑसू काम आते हैं
सबके सामने भी
अकेले में भी
दिन में भी
सुनसान रात में भी
यह दोनों ऑख से बहते हैं
बराबर ही 
यह न हो तो तब क्या होता
यह जब बहते हैं
तब कुछ सुकून तो मिलता ही है
कुछ ही पल के लिए
इनको रोकना नहीं
रोना शर्म की बात नहीं
आपकी भावना को दर्शाता है
आपके पास एक दिल है
अपने ऑसू को मरने मत दीजिए
नहीं तो आप पत्थर हो जाएंगे
छूट दे भरपूर
जब दिल भर आए
रो ले जी भर कर
यही तो है
आपके सुख दुःख के साझीदार
ऑसू मत रोके बह जाने दे

Thursday 20 October 2022

कृष्ण --22

अथवा बहुनैतेन कि ज्ञातेन तवार्जुन  ।
विष्टभ्याहमिदं  कृत्स्न्नमेकांशेन स्थितो जगत्  ।।

किंतु हे अर्जुन! 
इस सारे विशद ज्ञान की आवश्यकता क्या है ?
मैं तो अपने एक अंश मात्र से संपूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त होकर इसको धारण करता हूँ  ।

Wednesday 19 October 2022

दीया जलाना मिट्टी के

दीया जलाना मिट्टी के
वह हो देश के नाम
उन गरीब कुम्हारों के नाम
जिनकी दीवाली ही दीए से उजाली होती है
रंग - बिरंगी , चाइनीज- विदेशी 
दीए तो मिल जाएंगे बाजारों में 
खुशबू तो अपनी मिट्टी की
माटी के दीए से ही आएंगी 
उन गरीब बच्चों के चेहरे पर खुशियाँ 
वह कांपते हाथों से पैसे गिनना
वह गोद में बच्चा लिए माँ 
ऐसे न जाने कितने ही दृश्य दिख जाएंगे 
फूलों का तोरण बनाते हुए और बेचते हुए 
रंगोली का रंग बेचते हुए 
कंदिल बेचते हुए 
सजावट की वस्तु बेचते हुए 
यह सब आपको माॅल में भी मिल जाएंगे 
ऑन लाइन घर पर ही 
फिर भी फुटपाथ पर इनको सामान लगाकर बेचते
कभी ठेले पर कभी कोने में खडे हो
कभी घुम घुमकर आवाज देते हुए 
यह लोग आशा में रहते हैं 
साल भर में एक बार दीवाली आती है
उसी बहाने उनकी रोजी रोटी चलती है
कुछ पैसे एक्स्ट्रा भी 
वे भी अपने बच्चों और परिवार के साथ मना सके 
दीवाली अमीर या गरीब को नहीं देखती 
वह सबकी होती है
सब अपनी-अपनी सामर्थ्य के अनुसार मनाते हैं 
उजाला करते हैं 
हर रोशनी में उनकी भागीदारी 
तो आप की भी है कुछ उनके प्रति जिम्मेदारी  ।

विश्वास

विश्वास जिस पर किया जाता है
उस पर ऑख मूंद कर 
जब वही शख्स विश्वास घात करता है
तब यकीन नहीं होता
परन्तु करना पडता है 
जब सच पता चलता है
तब तो वह बहुत तकलीफ दायक 
हो सकता है
वह माफी मांग ले
भविष्य में वह सब फिर से न दोहराए 
यह मन है जो एक बार उतर गया सो उतर गया
लाख कोशिश हो फिर भी वह पहले जैसी बात नहीं 
माफ किया जा सकता है
विश्वास नहीं 
यह बार बार नहीं होता
दिल का मामला है
जिसके साथ विश्वासघात हुआ है
उसे शायद ज्यादा फर्क न पडे
जिसने किया है 
उसको जरूर फर्क पडता है
वह एक अनमोल चीज जिसका नाम विश्वास 
वह खो चुका होता है
भरोसेमंद नहीं  होता 
एक पतली सी लकीर बीच में आ जाती है
जो मिटाएं नहीं मिटती ।

नासूर मत बनने दो

एक कील उभर आई थी चेहरे पर
जब हाथ लगाती तब हाथ उसी पर जाता
टोच रही थी
चुभ रही थी
पीली पीली हो गई थी
मवाद भर गया था
न जाने कितने दिनों से परेशान कर रही थी
अब तक फोडा नहीं कि दाग पड जाएंगा
आज अचानक हिम्मत कर उसे दबा दिया
फूट कर बह गई
अब थोड़ा निशान तो रह ही जाएंगा
कोई बात नहीं 
उस टुचन से तो छुटकारा मिला

यही बात रिश्ते में भी होती है
कभी-कभी वह तकलीफ देने लगता है
आपकी कदर कम होने लगती है
जब तक संभाल सको तब तक संभाल लो
नहीं तो छोड़ दो
अपने जीवन का फोडा मत बनने दो
जबरदस्ती बेमन से निभाना
यह तो जीवन को परेशान कर देंगे
निकल जाइए तभी ठीक होगा
समय रहते घाव को नहीं फोडा
तब वह नासूर बन जाएंगा

रंग भेद क्यों

घी का लड्डू गोल न हो टेढा ही सही
बेटा कैसा भी हो
काला नाटा मोटा
तब भी बेटा ही है
अनमोल है
तब बेटी क्यों नहीं ??
इन सबसे ज्यादा गुण मायने रखता है
रंग और बनावट नहीं
खूबसूरती को देखने का नजरिया होना चाहिए
बेटे के लिए तो कहा जाता है
राम और कृष्ण भी सांवले थे
बेटी से फिर वह अपेक्षा क्यों ??
वह नकुसा क्यों 
अनवान्टेड क्यों 
संतान तो संतान होती है
जैसी भी हो प्यारी होती है
उसको दोयम दर्जा क्यों ??
उसे एहसास होना चाहिए
वह अपने परिवार के लिए अनमोल है
उसका अस्तित्व महत्त्वपूर्ण है
लोगों की सोच कुछ भी हो
माता-पिता की सोच ऐसी न हो
उसे हेय न समझा जाए
अपने जिगर के टुकड़े को हीरा समझे 
कोयला नहीं
उसको चमकने का मौका दें
सांवले और कालापन के सोच की आग में जलने न दे
आत्मविश्वास से भरपूर ऐसा सशक्त व्यक्ति बनाएं
कि सारी खूबसूरती उसके सामने पानी भरे
दूर से देख ईर्ष्या करें
उसके जैसे बनने की कोशिश करें

कृष्ण 21

यधाद्विभूतिमत्सत्तवं श्रीमदूर्जितमेव  वा ।
तत्तदेवावगच्छ त्वं मम तेजोशसम्भवम्  ।।

तुम जान लो कि सारा ऐश्वर्य,  सौन्दर्य  तथा तेजस्वी सृष्टियाॅ 
मेरे तेज के एक स्फुलिंग मात्र से उद्भूत हैं। 

Tuesday 18 October 2022

कृष्ण 20

यधव्दिभूतिमत्सत्तवं श्रीमदूर्जितमेव   वा ।
तत्तदेवावगच्छ त्वं मम  तेजोशसम्भवम्  ।।


तुम जान लो कि सारा ऐश्वर्य 
सौन्दर्य तथा तेजस्वी सृष्टियाॅ 
मेरे तेज के एक स्फुलिंग मात्र से उद्भूत हैं। 

चलो उठो अब भोर हुई

चिडिया चहकी
भोर महकी
सूरज चमका
प्रभात पसरा
फूल खिले
ताजगी छाई
हवा डोली
पत्ते सरसराए
लोग उठे
जागृत हुए
शुरू हुआ
नया सिलसिला
सब चलायमान 
कोई आकाश में उडान भरते
कोई खेतों की तरफ जाते
कोई जीविका के लिए 
कोई रसोईघर में पेट के लिए
सब जगह चहल-पहल
यह है भोर का कमाल
अंधेरे को चीरती यह आती
अपना पैर पसारती
संदेश देती
उठो सोने वालों
तत्पर हो लग जाओ काम में
आलस छोड़ो
आगे बढो
जिंदगी बैठना नहीं चलना है
चलते रहो चलते रहो
अन्यथा यह चल देगी
सब आगे निकल जाएँगे
तुम पीछे रह जाओगे

किस्मत का खेल निराला

ग्रहण सूरज पर लगता है
चांद पर लगता है
तब हम प्रार्थना करते हैं
ईश्वर के लिए भी
जल्दी ग्रहण छूटे 
मुक्त हो
समाप्त होने पर दान दिया जाता है
जब तक नहीं छूटता
हम सब प्रतीक्षा करते हैं

जीवन पर भी बीच बीच में ग्रहण लगता रहता है
कभी-कभी हम अंधेरे में घिर जाते हैं
घनघोर निराशा छा जाती है
हम कोशिश करते हैं 
उससे मुक्त होने की
प्रयास जारी रहता है
जब उस अंधेरे से बाहर निकल जाते हैं
जिंदगी की गतिविधि चल पडती है
कभी छाया कभी उजाला
किस्मत  का खेल निराला

Monday 17 October 2022

कृष्ण 19

नान्तोस्ति मम दिव्यानां विभूतिनां परन्तप। 
एष तूद्देशतः प्रोक्तों विभूतेर्विस्तरों मया  ।।


हे परन्तप! मेरी दैवी विभूतियों का अंत नहीं है ।
मैंने तुमसे जो कुछ कहा ,
वह तो मेरी अनंत विभूतियों का संकेत मात्र है ।

Sunday 16 October 2022

कृष्ण 18

यच्च्पि सर्व भूतानां बीजं  तदहमर्जुन  ।
न तदस्ति  विना यत्यस्नान्मया  भूतं  चराचरम्। ।


यही नहीं,  हे अर्जुन! 
मैं समस्त सृष्टि का जनक बीज हूँ 
ऐसा चर तथा अचर कोई भी प्राणी नहीं है
जो मेरे बिना रह सके ।

सब गुमनामी में

सबने राम को याद किया
रावण को याद किया
लंका विजय के भागीदार रहें 
उस युद्ध के सहयोगी  बंदर और भालू
वह कहीं गुम हो गए 
विभिषण,  कुम्भकर्ण,  मेघनाथ भी याद आए

यही तो होता है
सेहरा जीत का किसी एक के सर पर
और दूसरे गुमनामी में 
गांधी राष्ट्र पिता बनें 
उस स्वतन्त्रता की लडाई में 
न जाने कितने गुमनाम 
जिनका योगदान इतना कि
आजादी मिलती ही नहीं 
अगर वे न होते

सब भूल जाते हैं 
भूला दिए जाते हैं 
समाज हो
परिवार हो
राष्ट्र हो
कौन याद रखता है
इन नींव की ईटों को 
जिनके ऊपर यह बुलंद इमारत खडी है

रावण दहन

रावण जलता है हर साल
इस साल भी जला
आतिशबाजी भी हुई 
लोगों ने मजा लिया
तालियाँ बजाई
रावण का दहन हुआ 
बुराई पर अच्छाई की विजय 
अधर्म पर धर्म की विजय 
अन्याय पर न्याय की विजय
विजयादशमी संपन्न हुई 

यह भी ध्यान रहें 
रावण साधारण मानव नहीं था
त्रृषि पुलत्स्य का नाती
कुबेर का भाई
वेदों का ज्ञाता
अंकाड विद्वान पंडित
महान शिव भक्त 
उसका अंत इस तरह 
कारण जब पाप ने घेरा
घमंड ने कब्जा कर लिया
पराई स्त्री पर कुदृष्टि 
यह सब उसके अंत का कारण 

यही तो सीख है
हम साधारण जीवन जीए
व्यभिचार से दूर रहें 
ईमानदारी से रहें 
सत्य की राह पर चलें 
नम्र रहें 
आखिर अंत में सबको इस संसार से रूखसत ही होना है
क्यों सदियों तक हमें जाना जाएं 
हम क्या थे
कर्म करें 
ऊपर वाला सब देख रहा है
छोड़ दीजिए सब उस पर

Saturday 15 October 2022

किताब से नाता जोड़ लो

पढना सीख लो
किताब से नाता जोड़ लो
यह वे नायाब साथी जिनका कोई नहीं सानी
बडे बडो को झुकना सिखा देती है यह
जिंदगी जीना सीखा देती है यह
बहूमूल्य होती है यह
सारे संसार को अपने में समेटती है यह
भूत ,भविष्य ,वर्तमान से अवगत कराती है यह
यह लेती नहीं देती है
ज्ञान बांटती है
लोगों को अमर कर देती है
सब कुछ अपने पन्नों में छिपा लेती है
दुख - दर्द ,भावना - संवेदना
यह सभ्यता और संस्कृति को जीवित रखती है
यह ईश्वर की नहीं मानव की अमूल्य रचना है
लेखक ,कवि और इतिहासकारों की देन हैं
वेद ,दर्शन ,धर्म से विभूषित
जिंदगी जीना सिखाने वाली
इस अमूल्य सौगात को गले लगा लो
पढना सीख लो
किताबो से नाता जोड़ लो
तुमको यह फर्श से अर्श तक पहुंचा देगी
समाज में क्रांति लाने का दम रखती है
बडे बडे को पानी पिला सकती है
यह दिखती छोटी है
पर काम बडे बडे करती है
यह किताब है
यह जीवन है
यह विश्व है
आज इससे नाता जोड़ लो
कल यह तुमको सबसे जुडवा देगी
जीवन जीना सीखा देगी
तुम्हारी दुनिया बदल देगी
पढना सीख लो
किताब से नाता जोड़ लो

बैंक पर ताला

रक्षक ही जब भक्षक बन जाए
तब क्या करे आम इंसान
जोड जोड कर पाई पाई
बैंक में जमा किया अपनी जीवन भर की पूँजी
जहाँ पैसा सुरक्षित रहेगा
समय पर मिल जाएगा
घर में रख नहीं सकते
चोरी चकारी का डर
नोटबंदी के फरमान का भय
तब निवेश किया 
भरोसेमंद बैंक में
क्या पता था
यहाँ डाका पड जाएंगा
पैसे डकार लिए जाएगे
यह बडे बडे लोग
आम आदमी की गाढी कमाई हडप जाएंगी
सरकार भी पल्ला झाड़ लेगी
तब तो हार्ट अटेक आना ही था
पहले नौकरी गई
उसके बाद जमा पूंजी गई
तब क्या होगा
परिवार का
बच्चों का
स्वयं का
यह सोच और चिंता स्वाभाविक है
एक के बाद दूसरी मौत
आगे कौन जाने
लोग रो रहे हैं
बिलख रहे हैं
किसी का बच्चा बीमार
किसी की बेटी की शादी
किसी की दैनदिन खर्चा
अपनी पेंशन  ,प्रोविडेंड फंड
वृद्धावस्था का सहारा
यह आजाद भारत के लाचार जनमानस है
जो भ्रष्टाचार की बलि चढ रहा है
इतना मायूस
यह एक संजय गुलाटी नहीं
हजारों की व्यथा है
कौन सुध लेगा
सडक पर पीडित गुहार लगा रहे हैं
उनकी आवाज सुनने वाला कौन ??

कृष्ण -- 17

दण्डों  दमयतामस्मि  नीतिरस्मि जिगीषताम्  ।
मौनं चैवास्मि गुह्नानां  ज्ञानं ज्ञानवतामहम् ।।


अराजकता को दमन करने वाले समस्त साधनों में से मैं दण्ड हूँ ।
जो विजय के आकांक्षी हैं,  उनकी मैं नीति हूँ ।
रहस्यों में मैं मौन हूँ ।
और बुद्धिमानों में ज्ञान हूँ  ।

Friday 14 October 2022

भारत जोड़ो सब भेद-भाव छोड़ो

भारत जोड़ो 
सब भेद-भाव छोड़ों 
जाति - धर्म 
अमीर - गरीब 
ऊंच- नीच
सब भूल कर एक हो
रार - झगड़ा कर क्या मिला
बस दुख और अलगाव 
अलगाववादी विचारधारा से देश का विकास 
संभव नहीं है
सब एक - दूसरे से जुड़े हुए किसी न किसी रूप में 
व्यवसाय और व्यापार से
पडोस और घर से
भाषा और बोली से
एक धर्म का चूडियां बनाता है
तो दूसरे धर्म की सुहागिने उसे धारण करती है
केक , पेस्ट्री,  ब्रेड , पावरोटी 
का कोई धर्म नहीं 
सब चाव से खाते हैं 
कौन देखता है 
यह किस भट्टी में बना है
एक मांस बेचता है
दूसरा उसे खरीदता है
सबकी रोजी रोटी सहयोग से चलती है
किसान का अन्न और सब्जी 
आम और अमरूद की कोई जाति - धर्म नहीं 
मलीहाबादी आम या देवगढ़ का हापुस
सब चाव से खाते हैं 
प्रकृति कभी भेदभाव नहीं करती 
तब मनुष्य क्यों??
भारत जोड़ो 
सब भेद-भाव छोड़ो। 

भारतीय कौन ???

समझ नहीं आता
किस नाम से जाना जाऊं 
भारतीय को छोड़ और कौन सी पहचान बताऊँ 
जन्म कहीं हुआ
पालन - पोषण कहीं और
नौकरी भी किसी एक जगह नहीं 
आज यहाँ तो कल वहाँ 
उत्तर से दक्षिण 
पूरब से पश्चिम 
सब मुझमें समाएं 
हर किसी का योगदान 
फिर भी पूछा जाता है
किस प्रदेश से हो
अब क्या बताऊँ 
जाति- धर्म से पहचान
भाषा - बोली से पहचान 
प्रांत- राज्य से पहचान 
तब भारत किसमें हैं 
सब तो भारत के ही अंग
तब हमारी एक ही पहचान 
भारतीय 
जब विदेश जाते हैं 
तब तो इंडियन ही
तब अपने देश में क्यों नहीं??
देखने में तो यह साधारण बात
पर इतनी साधारण नहीं 
इसका खामियाजा भुगतना पडता है
मैं पंजाबी तू बंगाली 
यह गुजराती वह मराठी
यह राजस्थानी वह बिहारी
तब भाई
भारतीय कौन ??

कृष्ण --16

वृष्णीनां वासुदेवों स्मि पांडवानां धनंजयः ।
मुनीनामप्यहं व्यासः  कवीनामुशना कविः  ।।


मैं वृष्णिवंसियों में वासुदेव
पांडवों में अर्जुन हूँ
मैं समस्त मुनियों में व्यास
तथा महान विचारकों में उशना हूँ। 

करवा चौथ का व्रत क्या हुआ

करवा चौथ का व्रत क्या हुआ 
नाज नखरों का दौर शुरू हुआ
सुबह से ही मनुहार 
सरगी के साथ जो शुरू हुआ 
पूरा दिन उसी में लगा रहा
तैयारियां तो हफ्ते भर से
मैं श्रीमती जी के पीछे-पीछे 
बस दाम की बात होती
तब श्रीमती जी देखती और इशारे करती
मैं भुगतान कर देता
यह तो भुगतना ही है जो लंबी आयु जीना है
गिफ्ट भी देनी है 
उसका भी बजट बनाना है
कुछ ऐसे वैसा दे नहीं सकते
अनमोल जीवन के बदले मूल्यवान उपहार 
वह भी हो गया
अब आई संझा की बारी
चांद देखना है
मैं सब काम - धाम छोड़ फिर पीछे हो लिया
अब इंतजार है चांद का
वो चांद देखे जा रही मैं उनको देखे जा रहा
वाकई गजब की है यह रात
आखिर जल ग्रहण किया उन्होंने 
तब मेरी जान में जान आई
सुबह से आफत में फंसी जान
अब छुटकारा मिला
उम्र लंबी हुई या नहीं 
पर यह दिन बहुत लंबा हो गया 

Thursday 13 October 2022

मशाल जलाया है

मशाल लेकर चले थे
सोचा था सबको जोड़ते चलेंगे 
एक से दूसरे को हाथ पकड़ाते चलेंगे 
काफिला निकल चुका है
रोशनी बिखरी हुई है
अंधेरा घना छाया हुआ है
पर निराश नहीं हूँ 
प्रकाश को रोकना संभव नहीं 
निराश नहीं हूँ 
मन में पूर्ण उत्साह है
जब रास्ता चुन ही लिया है
तब मंजिल भी दूर नहीं  

कुछ न कुछ छूट ही जाता है

अपनों को खुश करने की कोशिश में 
कुछ न कुछ छूट ही जाता है
कभी यह नहीं कभी वह नहीं 
कभी ऐसा नहीं कभी वैसा नहीं 
यह हिसाब अधूरा ही रह जाता है
गिले- शिकायतें खत्म होने का नाम ही नहीं लाती
आरोप - प्रत्यारोप का दौर चलता ही रहता है
सबको खुश करने के चक्कर में रहते हैं 
फिर भी बात बिगड़ ही जाती है
सोचते हैं अब ठीक होगा
तब ठीक होगा
इसी उधेडबुन में समय गुजर जाता है
कुछ और नया जुड़ जाता है
किसी को खुश नहीं कर सकते
बस दुखी हो जाते हैं 
अपनों को खुश करने की कोशिश में 
कुछ न कुछ छूट ही जाता है। 

आज का चांद कुछ खास है

आज करवा चौथ है
सुहागिनों का दिन है
आज सोलह श्रृंगार करेंगी
अपने पति के लिए निर्जला व्रत रखेगी 
आज तो हर कोई अपने रूप पर इतराएगा 
ऐसा मौका तो साल भर में  एक बार 
इसी बहाने सजने संवरने का मौका
पति के हाथ से जल ग्रहण करना
उससे आशीर्वाद लेना
छलनी में से चांद के साथ-साथ अपने चांद को भी देखना
चांद की प्रतीक्षा 
तब चाँद भला क्यों न इतराए
वह भी देरी करेगा
रूक रूक कर 
धीरे धीरे निकलेगा 
रोज तो सूरज के उगने की प्रतीक्षा 
आज उसका भी इंतजार 
छत पर खडी
न जाने कितनी ऑखें प्रतीक्षा रत
वह भी सोलह कलाओं वाला
सुहागिने भी सोलह श्रृंगार किए हुए 
यह दृश्य भी तो सुहावना और मनभावन 
कोई धरती पर कोई आकाश पर
एक - दूसरे को निहारते 
तब ऐसी शमा जो सबको बांध ले
हर कोई अपने अपने चांद का दीदार करें 
और खुशी खुशी करवा चौथ मनाए ।

उसके भरोसे

जंगल में एक गर्भवती हिरनी बच्चे को जन्म देने को थी। वो एकांत जगह की तलाश में घुम रही थी, कि उसे नदी किनारे ऊँची और घनी घास दिखी। उसे वो उपयुक्त स्थान लगा शिशु को जन्म देने के लिये।

वहां पहुँचते ही उसे प्रसव पीडा शुरू हो गयी।
उसी समय आसमान में घनघोर बादल वर्षा को आतुर हो उठे और बिजली कडकने लगी।

उसने दाये देखा, तो एक शिकारी तीर का निशाना, उस की तरफ साध रहा था। घबराकर वह दाहिने मुडी, तो वहां एक भूखा शेर, झपटने को तैयार बैठा था। सामने सूखी घास आग पकड चुकी थी और पीछे मुडी, तो नदी में जल बहुत था।

मादा हिरनी क्या करती ? वह प्रसव पीडा से व्याकुल थी। अब क्या होगा ? क्या हिरनी जीवित बचेगी ? क्या वो अपने शावक को जन्म दे पायेगी ? क्या शावक जीवित रहेगा ? 

क्या जंगल की आग सब कुछ जला देगी ? क्या मादा हिरनी शिकारी के तीर से बच पायेगी ?क्या मादा हिरनी भूखे शेर का भोजन बनेगी ?
वो एक तरफ आग से घिरी है और पीछे नदी है। क्या करेगी वो ?

हिरनी अपने आप को शून्य में छोड, अपने बच्चे को जन्म देने में लग गयी। कुदरत का कारिष्मा देखिये। बिजली चमकी और तीर छोडते हुए, शिकारी की आँखे चौंधिया गयी। उसका तीर हिरनी के पास से गुजरते, शेर की आँख में जा लगा,शेर दहाडता हुआ इधर उधर भागने लगा।और शिकारी, शेर को घायल ज़ानकर भाग गया। घनघोर बारिश शुरू हो गयी और जंगल की आग बुझ गयी। हिरनी ने शावक को जन्म दिया।

हमारे जीवन में भी कभी कभी कुछ क्षण ऐसे आते है, जब हम पूर्ण पुरुषार्थ के बावजूद चारो तरफ से समस्याओं से घिरे होते हैं और कोई निर्णय नहीं ले पाते। तब सब कुछ नियति के हाथों सौंपकर अपने उत्तरदायित्व व प्राथमिकता पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए।अन्तत: यश, अपयश ,हार ,जीत, जीवन,मृत्यु का अन्तिम निर्णय ईश्वर करता है।हमें उस पर विश्वास कर उसके निर्णय का सम्मान करना चाहिए।

साधु के वेश में ठग

रावण से एक बार उनकी पत्नी महारानी मंदोदरी ने पूछा
आप साधु वेश में सीता का हरण किए
राम के वेश में क्यों नहीं  , आसानी होती
रावण ने कहा 
हाॅ मैंने भी सोचा तो था पर राम के वेश धारण करने का विचार किया 
तब तो हर जगह पवित्रता ही नजर आई
साधुओं पर ज्यादा विश्वास किया जाता है
उसी विश्वास का फायदा उठाकर धोखा भी दिया जाता है
जगत को पता चले कि
साधु के वेश में भी कपट - छल छिपा होता है
आज के संदर्भ में यह देखा जाएं 
कितना खरा सत्य है
जगह-जगह पर ढोंगी और भोगी बाबा
लोगों के विश्वास से खिलवाड़ करते हैं 
नारी की अस्मिता से खेलते हैं 
सैकड़ों उदाहरण भरे पडे हैं 
बडे बडे संत - महात्मा कहे जाने वाले भी इससे अछूते नहीं रहें 
सीता ने लक्ष्मण रेखा तोड़ कर साधु को भिक्षा दी थी
उसका परिणाम अपहरण हुआ 
आज भी भोली - भाली इनके चंगुल में फंस जा रही है
कभी संतान की कामना तो कभी खुशहाल घर - वर की कामना
इनका इतना बडा साम्राज्य होता है वह किसके बल पर होता है
यह वस्तुस्थिति छिपी नहीं है किसी से
संन्यासी तो माया - मोह से परे होता है
यह तो माया को ही लेकर बैठे हैं,  उपभोग कर रहे हैं 
सबको मूर्ख बना रहे हैं 
साधु के वेश में ठग ।

कृष्ण --15

धूतं छलयतास्मि  तेजस्तेजस्विनाहम्  ।
जयो  स्मि  व्यवसायों स्मि सत्वं सत्ववतामहम्। ।



मैं छलियों में जुआ हूँ 
तेजस्वियों में तेज हूँ 
मैं विजय हूँ साहस हूँ 
और बलवानों का बल हूँ। 

यादों के झरोखे से

आज बहुत अरसे बाद इस जगह पर आई थी
गाडी जब ट्रेफिक में रूकी
यहाँ- वहाँ नजर डाली 
बचपन की यादें ताजा हो गईं 
यह केवल एक निर्जीव सडक नहीं है
जीवन इससे जुड़ा हुआ है 

यह जगह हैं वालकेश्वर 
जहाँ की सडके कभी पानी से धोयी जाती थी
चौपाटी से शुरू होता हुआ 
बाणगंगा पर खत्म होता
बाबुलनाथ मंदिर से लेकर हैंगिन गार्डन तक
वह बुढिया का जूता वह हरे - भरे घास से बने जानवर

इसी रास्ते में व्हाइट हाऊस
गवर्नर गेट और तीन बत्ती
सारे नेताओं की गाडियाँ यही से गुजरती थी
मुख्यमंत्री निवास वर्षा भी इसी रूट पर
इंदिरा जी को देखने के लिए सडक पर खडे रहते थे
वे खुली गाडी में खडी होकर हाथ हिलाते हुए जाती थी
आज तो नेताओं को देख ही नहीं सकते ऐसे
इतनी सुरक्षा कवच के घेरे में 
इसी सडक पर चांद पर पहुँचने वाले नील आर्मस्ट्रॉन्ग और उनके साथियों को देखा था
श्राद्ध के अंतिम दिन बाल छिलाए हुए लोगों का रेला बाणगंगा से स्टेशन की तरफ जाते देखा था

फिल्मी हस्तियां भी इसमें शामिल थी
जैकी श्राफ  से लेकर अंजू मंहेद्रू तक
चंदूलाल मिठाईवाला को कौन नहीं जानता
कांउसलेट के बंगले से अंदर का जंगल का रास्ता जो राज भवन पर निकलता है
स्कूल जाते  समय न जाने कितने बंदर बैठे रहते थे
सांप की केंचुली पडी होती तो
लहराते समुंदर के साथ अनगिनत घटनाएं 
हाजी मस्तान से लेकर सट्टा किंग तक
नाना पालखीवाला जैसे जज और पटेल - त्रिवेदी जैसे नेता
स्मगलिंग से लेकर सुसाइट तक
सब साक्षी रहे हैं 
डबल डेकर की बस
बस में हो हल्ला करना
कंडक्टर और यात्रियों की डांट खाना
सबसे बडी स्ट्राइक के समय लिफ्ट मांगना
बांगला देश की लडाई के समय ब्लैक आउट और बम छूटते हुए दिखना
सुबह उन खाली कारतूस का मिलना

म्युनिसिपल स्कूल में पढना भी साधारण बात थी
कुछेक प्राइवेट और अंग्रेजी माध्यम थे
आज भी उस स्कूल के अध्यापक याद आते हैं 
कांच की बोतल में दूध मिलना
उसको कोई गपागट घटक जाता तो कोई छूता भी नहीं 
फिर मुंह पर लगी मलाई काटना
पैदल ही खाकी बस्ता टांग झुंड के साथ निकल पडना

यह सडक बहुत कुछ कहती है
बचपन इसने गढा है
इन्हीं सडकों पर उत्सवों पर परदे बांध दोनों तरफ से बैठ पिक्चर देखा है
रामलीला देखने के लिए चौपाटी तक दौड़ लगाई है
बिना पास के बांस को फांदते  फांदते राम खंड तक पहुँच जाते थे
गोविन्दा के समय भटकी फोडते हुए और अंग्रेजों को फोटो लेते हुए देखा है
क्योंकि एक समय की सात और दस मंजिला ऊंची इमारतें यही थी
भूलेश्वर , नल बाजार पैदल ही जाते थे
पीठ पर सामान लादकर माँ के साथ लाते थे
ग्रांट रोड और चर्नी रोड से चलकर आते थे

तब आज का बान्द्रा और शांताक्रुज  गाँव माना जाता था
हम सबसे पाॅश इलाके में रहते हैं 
इसका गुमान था
सिग्नल खुल चुका था
गाडी रफ्तार में जा रही थी
उससे भी तेज रफ्तार यादों की थी ।

Wednesday 12 October 2022

दीपावली आई है

दीपावली आई है 
साथ में कुछ बीती यादें भी लाई है
चकली  - करंजी 
सेव - चिवडा 
शक्करपारे - लड्डू 
जो बनते थे हर घर में 
पकवानों की खुशबू उठती थी आस - पडोस में 
आदान-प्रदान होता था 
हर घर का अपना स्वाद
बच्चे इंतजार में रहते थे
कब हमको मिलेगा खाने को 
एक उत्सुकता रहती थी
निगाहें ललचाई रहती थी 
दीपावली की सुबह ही नहा - धोकर नए कपड़े पहनते
सबका आशीर्वाद लेते तब जाकर मिलता
कुछ दिन आनन्द के रहते
सुबह- शाम नाश्ते में वही सब
पडोसियों के घर भी साल - मुबारक करने जाते
वहाँ भी यही सब
प्रेम से बिठाते और हम ताव मारते मिष्ठान्न पर
अब तो वह जमाना न रहा
न किसी के पास समय है बनाने का
न रूचि है खाने की
बाजार तो अटे पडे हैं 
जो चाहों वह खरीद लो
घरगुती स्वाद के नाम पर
पर वह स्वाद तो नहीं 
जो घर में बने पकवानों का होता था
वह प्यार की चाशनी से पगे रहते थे
ममता का नमकीन मिला होता था
अब तो बस
 त्योहार के नाम पर खानापूरी करनी है
अब तो पिज्जा और बर्गर का जमाना है
मैगी और पास्ता से प्यार है
तब साल भर में एक बार दीपावली को कपडे 
अब तो कपडों की भरमार है
त्यौहार की उसमें नहीं कोई जरूरत 
लोगों से मिलना - जुलना क्यों 
मन बहलाने को रिसोर्ट है
अब दरवाजे खुले रख कोई इंतजार नहीं करता
अब तो दरवाजों के साथ दिल का दरवाजा भी बंद
बिना बताए जाना नहीं 
उस पर भी प्रतिबंध 
डर लगता है 
समझ नहीं आता 
कौन अपना कौन पराया 
त्यौहार भी अब दिखावा है
उस समय की दीपावली की ज्योत आज भी हदय में झिलमिला रही है
पकवानों का स्वाद अभी भी जीभ पर कायम है
माँ की झिडकी और चुपचाप डब्बे से गुझिया चुराना
कटोरा भर कर सेव और चकली खाना
सबको अपने नए कपड़े दिखाना
उसे पहन इतराना
उन सबकी यादें अभी भी ताजा है
दीपावली आई है 
साथ में कुछ बीती यादें भी लाई है। 

बात बडी - बडी

बात बडी बडी
औकात है कौडी की
लगेगा साहबजादे हैं कहीं के
नवाब हैं कहीं के
इतनी नफासत और दिखावा
वह भी दूसरों के यहाँ 
अपने यहाँ तो ठन ठन गोपाला
तब बस बात ही रहेंगी नवाबजादों की
दूसरे के यहाँ तो अधिकार से 
हर मांग रखेंगे 
अपने यहाँ तो सिकुड़ जाएंगे 
जैसे कुछ जानते ही नहीं 
भोले हैं इतने
ऐसे लोगों को जब परख लो
तब उनसे दूरी बना लो
यह तो बस अपना काम निकलवाना जानते हैं 
दूसरों के समय इनकी बोली बंद हो जाती है 
संपत्ति और पैसे से यह भले हो
दिल से तो क्षुद्र ही रहते हैं ।

आदर और चादर

चादर और आदर
यह सबको नहीं देना चाहिए 
आदर का अधिकार उसी का
जो स्वयं भी आदर करना जाने
चादर भी उसी को
जो उसकी कदर करें 
यह नहीं कि तुम्हारी ही चादर में छेद कर दे 
ऐसे बहुरूपिये बैठे हैं 
जो दिखते तो कुछ 
होते कुछ हैं 
मुखौटा ओढे रहते हैं दिखावे का
अंदर से बिल्कुल खोखले
सोच समझ कर
आदर भी दे
चादर भी दे
नहीं तो पछतावा होगा ।

यह दिन भी गुजर जाएंगे

यह दिन भी गुजर जाएंगे
हंसी फिर खिलखिलाएंगी
होठों पर मुस्कान भी आएंगी 
ऑखों का पानी भी गम का नहीं खुशी का होगा 
अपने फिर वापस आएंगे 
घर फिर चहचहाएगा 
कुछ समय की तो बात है
सबर तो कर ले
आज गम है तो कल खुशी भी तो होगी
यह तो वक्त का पहिया है
किसके रोकने से रूका है
वह तो वक्त है
बदलता रहता है
रात के बाद दिन 
पतझड़ के बाद वसंत 
अंधेरे के बाद प्रकाश 
विनाश के बाद निर्माण 
यह तो चक्र है जो चलता रहता है
मत हो निराश
मत हो गमगीन 
यह दिन भी गुजर जाएंगे ।

कृष्ण --14

बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम्  ।
मासानां  मार्गशीर्षो हमृतूनां कुसुमाकरः ।।


मैं  सामवेद के गीतों में  बृहत्साम हूँ 
छन्दों में गायत्री हूँ 
समस्त महीनों में मैं मार्गशीर्ष 
तथा समस्त  त्रृतुओं में  फूल खिलाने वाली वसन्त त्रृतु  हूँ  ।।

Tuesday 11 October 2022

कृष्ण--13

मृत्युः सर्वहरश्चाहमुद्धवश्च भविष्यताम्। 
कीर्तिः श्रीर्वाक्च नारीणां  स्मृतिमेर्धा धृतिः क्षमा ।।


मैं सर्वभक्षी मृत्यु हूँ 
और मैं ही आगे होने वालों को उत्पन्न करनवाला हूँ 
स्त्रियों में मैं कीर्ति 
श्री  वाक् , स्मृति  ,मेघा , धृति तथा क्षमा हूँ। 

Monday 10 October 2022

Forget it

कब तक लोगों की सुनते रहोगे 
कब तक परेशान होते रहोगे 
कब तक उनके अनुसार चलोगे 
कुछ तो अपने मन की कर लो
कुछ तो मन की सुन लो
क्यों परेशान करना है उस दिल को
वह तो नाजुक है कोमल है
ऐसा न हो टूट जाएं 
बिखर जाएं 
तब फिर जुड़ना मुश्किल है
टूटे हुए मन के साथ
रहना आसान नहीं 
मुस्कराना भी मुश्किल है
तब मन की सुने
कुछ मन मौजी हो जाएं 
खिलखिला कर हंसे
जम कर ठहाके लगाए
सब कुछ छोड़ छाड बस दिल के साथ
Forget it 

कृष्ण --12

अक्षराणामकारो स्मि द्वन्दः सामासिकस्य च ।
अहमेवाक्ष्यः  कालों धाताहं  विश्वतोमुखः । ।

अक्षरों में मैं अकार हूँ 
समासों में द्वंद्व समास हूँ 
मैं शाश्वत काल भी हूँ 
और स्रष्टाओं में  ब्रह्मा हूँ  ।

Sunday 9 October 2022

अपना घर

माँ- बाप के घर में बच्चे मेहमान नहीं होते 
यह उनका घर है यह वे जानते हैं 
अपना हक होता है उस पर 
जो मर्जी आए सो करें 
कहीं भी उठे कहीं भी बैठे
जब वे बडे हो जाते हैं 
जब उनका घर हो जाता है
तब वो बच्चों के घर में मेहमान हो जाते हैं 
उसे अपना कहने में हिचकिचाते हैं 
एक तरह से घर में दुबक कर रह जाते हैं 
उस गर्व से नहीं बोलते 
एक तरह से निर्भर हो जाते हैं 
डर डर कर रहते हैं 
बस यही सोचते हैं 
जिंदगी किसी तरह कट जाएं 
हाथ - पैर चलते रहें 
किसी पर बोझ न बने
पता है अब उम्र ढल चुकी है
बूढी हड्डियों में वह ताकत नहीं बची है
अब तो जो दिन शांति से गुजर जाएं अपनों के बीच
वही बहुत है ।

जीने की आस

बाज पक्षी,  पक्षियों का राजा
सबसे ज्यादा लंबी उम्र वाला
सत्तर वर्ष इनकी आयु
बचपन से ही संघर्ष 
जब बच्चा होता है
तब उसको कुछ समय के बाद ऊपर ले जाता है 
और वही से छोड़ देता है
यह उसका उडना सिखाना है
नीचे आते आते वह बच्चा अपना पंख खोल उडान भरने लगता है
आसमान की ऊंचाई मापता है
वही जब चालीस की उम्र तक पहुंचता है
तब अपने पंखों के बोझ से दब लगता है
उसके चोंच नुकीले और बढ जाते हैं 
पैरों के नख भी जो उसी को तकलीफ देते हैं 
अब उसके सामने दो ही विकल्प 
एक आत्महत्या या फिर नये सिरे से शुरूवात
वह सबसे ऊपर पहाड़ पर जाता है
अपने नखो  को चट्टान पर मार मारकर तोड़ डालता है
अपने एक - एक पंखों को नोच डालता है
चोंच को रगड डालता है
इसमें उसे तकलीफ तो होती है
लेकिन फिर सब कुछ नया मिल जाता है
इनके साथ ही आगे के तीस साल वह अच्छी तरह से जी लेता है
बचपन से वृद्ध होने तक 
वह कभी हार नहीं मानता 
तब उम्र बढने से सब कुछ खत्म हो जाता है ऐसा नहीं है
मन में जीने की ललक और उत्साह हो
तब बहुत कुछ आसान   

डिस्टर्बेन्स नहीं चाहिए

अब पक्षी नहीं आते खिड़की पर 
गैलरी और मुंडेर पर 
चिडियाँ ची ची नहीं करती
अब वह भी समझ रहे हैं 
जो खुद पिंजरे में कैद है
वह हमें क्या आसरा देगा 
क्या खाना पीना देगा 
खिड़कियों पर लोहे की ग्रिल और जाली
जहाँ देखों वहाँ ही जालिया 
अब यह जरूरत बन गई है
जगह की कमी है
तो खिड़की में ही थोडी जगह बना ले
कुछ सामान रखने के काम आएगा 
गमले इत्यादि रखेंगे 
फिर कबूतर  , कौआ यहाँ तक कि चूहा भी
कोई नहीं आ पाएगा 
अब डर रहे हैं लोग
गंदगी होगी 
कौन साफ करेंगा 
यह सब तो पहले भी थे
तब जाली नहीं लगती थी
जैसे आदमी ने अपने को फ्लैट में रख लिया है
वैसे ही जाली से भी ढक लिया है
किसी का भी डिस्टर्ब नहीं चाहिए 
न आदमी का न पशु-पक्षियों का 

अभी भी कुछ बाकी है

जिंदगी अभी खतम नहीं हुई है
पचास के बाद भी जिंदा तो रहना ही है न
तब जीते जी मरी हुई बेमानी जिंदगी क्यों जीए 
पूर्ण उत्साह और खुशी के साथ क्यों नहीं 
पचास तक आते आते कमोबेश सारी जिम्मेदारी पूरी 
अब बच्चों को माॅ की जरूरत नहीं 
घर खाली खाली सा लगता है
पहले जैसी बात नहीं रहती
इतना निराश क्यों  
अभी से थक जाना
क्यों नहीं नई जिंदगी शुरू करना
जिंदगी के नए ताने बाने बुनना 
करने को तो बहुत है
घर की चहारदीवारी से बाहर निकल कर देखें 
अपने शौक और इच्छाओं के बारे में सोचे
अभी तो मौका मिला है
अब तो फ्री है
पंखों की उडान अभी बाकी है
जिंदगी अभी कहाँ खतम हुई है यार
अब तक अपनों के लिए 
अब अपने लिए जीना सीखना है
अभी भी बहुत कुछ बाकी है
उठने की कोशिश करें 
जोश और उत्साह से
असंभव को संभव कर दिखाएं 
लोग कहें कि
यह तो पचास बरस की यौवना है 
मुठ्ठी में आसमान समाना है
उम्र को धता  बताना है ।

कृष्ण--11

सर्गाणामादिरन्तश्च मध्यं चैवाहमर्जुन। 
अध्यातविधा विधानां वादः प्रवदतामहम्। ।


हे अर्जुन  ! मैं समस्त सृष्टियों का आदि , मध्य तथा अन्त हूँ। 
मैं समस्त विधाओं में अध्यात्म विधा हूँ 
और तर्कशास्त्रियो में मैं निर्णायक सत्य हूँ  ।

वक्त

वक्त का क्या है
किसी का समय कट जाता है
कोई समय को जी जाता है
इस कटने और जीने में बहुत फर्क है
यह वक्त का पहिया है 
कब किस करवट बदले 
कभी-कभी ताउम्र जिंदगी गुजर जाती है इसे बदलने में 
पर वह नहीं बदलता
जब यह बदलता है
तब फर्श से अर्श पर और अर्श से फर्श पर पहुंचा देता है
वक्त की मार तो दिग्गजों को भी नहीं छोड़ती 
कब अपना भी वक्त आएगा 
कभी-कभी यही सोचते रह जाते हैं 
और वह टस से मस नहीं होता ।

Saturday 8 October 2022

गाँव से शहर की ओर चले

गाँव से शहर की ओर चले
तलाश में 
एक अदद नौकरी 
अपना एक फ्लैट 
ऐशो-आराम
बच्चों की अच्छी शिक्षा 
तलाश तो पूरी हुई 
सब कुछ मिला
पर कहीं पीछे कुछ छूट गया
यहाँ अकेले रह गए 
फ्लैट की चहारदीवारी में उलझ कर
मशीन जैसी जिंदगी 
आधी जिंदगी तो सफर में 
सुबह निकले तो रात को पहुँचे 
अब सब जिम्मेदारी खत्म हो गई है 
तब सोचते हैं 
चलो चला जाएं फिर वहीं 
गाँव की पगडंडियों पर
सुकून से दुआर पर बैठा जाएं 
मिल जुलकर बतियाया जाएं 
पर क्या वह गांव रह गया है
जो बरसों छोड़ आए थे
वहाँ की आबो-हवा में भी तो शहरीपन आ गया है
अब वहां चौपाले नहीं सजती 
ऐसा न हो कि 
वापस लौटने पर फिर पछतावा हो
मकडजाल में उलझा हुआ आदमी 
उलझता ही जाता है
विकास की आंधी सबको ध्वस्त कर देती है
गाँव क्या बहुत कुछ छूट जाता है
रोजी रोटी के चक्कर में 
बैठे तो भोजन कहीं नहीं मिलने वाला
वह गांव हो या शहर
तो भैया 
जहाँ है वहीं ठीक हैं 
चार दिन की जिंदगी 
इतनी उठा पटक की क्या जरूरत। 

नवरात्रि का महात्म्य

कहा जाता है नवरात्रि अधर्म पर धर्म की असत्य पर जीत का प्रतीक है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इन्हीं नौ दिनों में मां दुर्गा धरती पर आती है और धरती को उनका मायका कहा जाता है. उनके आने की खुशी में इन नौ दिनों में नव दुर्गा की आराधना की जाती है ।शक्ति स्वरूपा माँ के अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है ।
             हमारी परम्परा में नारी को पूजनीय माना गया है।
शक्ति स्वरूपा है ।हिमालय राज की पुत्री तो शिवशंकर की अर्धांगनी के साथ-साथ महिषासुर मर्दिनी  भी है । संसार ही उनके बिना अधूरा है तभी तो नवरात्र में कन्याओ की पूजा की जाती है ।उन्हें खिलाया जाता है ।सम्मान दिया जाता है ।ये प्रतीक है माता की ।
           नवरात्रि का पर्व मनाने की सबकी अपने - अपने ढंग है ।गुजरात में गरबा तो बंगाल में काली । लेकिन हर हिन्दू माँ की आराधना करता ही है । मंदिरों में और शक्ति पीठों पर भीड़ रहती है फिर वह चाहे वैष्णो देवी हो ,मैहर देवी हो ,नैना देवी हो ,विधंयाचल देवी हो ,महालक्ष्मी हो या फिर मुंबई की मुम्बा देवी ।भक्त माता के दर्शन के लिए आतुर ही रहते हैं। 
       नवरात्रि का पर्व बहुत कुछ सिखा जाता है । बिना माँ के आशीर्वाद के सब अधूरा है ।आज भ्रूण हत्या हो रही है ।गर्भ में ही कन्या को मारा जा रहा है ।सृष्टि की जन्मदात्री नहीं रहेंगी तो यह सृष्टि कैसे चलेगी । 
               हम जननी का अपमान कर रहे हैं  ।पुत्री का नाश कर रहे हैं  ।धरती को खतम कर रहे हैं तब हम कैसे बचेंगे । 
           नवरात्रि में माँ  दुर्गा का आशीर्वाद ले ।हर बुराई से दूर रहे । माँ सभी पर कृपा बनाए रखें। हर बरस आए साथ में ढेरों खुशियाँ लाएं  । हमारे यहाँ उत्तर भारत में भोर अंधेरे ही उठ कर पूजा की जाती है और भोग लगाया जाता है ताकि माँ किसी और के यहाँ पहले न चले जाए हमारा दरवाजा बंद देखकर ।

कृष्ण --10

पुनः पवतामस्मि गमः शस्रभृतामहम् ।
झषाणां मकरश्चस्मि स्रोतसामस्मि जाह्नवी ।।

समस पवित्र करने वालों में मैं  वायु हूँ 
शस्त्र धारियों में राम
मछलियों में मगर
तथा नदियों में गंगा हूँ  ।

Friday 7 October 2022

सजा

सजा कोर्ट-कचहरी ही नहीं देता
बेगाने ही नहीं देते
ईश्वर ही नहीं देते
कभी-कभी अपने भी देते हैं 
उपरोक्त सजा उतनी यातना नहीं देती 
जितने अपनों के सबंध तोड़ने पर मिलती है
और सजा तो साथ मिलकर काट लेंगे 
पर अकेले सजा काटना 
बहुत दुखदायी 
अपने न रूठे 
मतभेद हो मनभेद न हो
बातचीत बंद न हो
अंतर्मन में प्रेम भावना हिलोरे लेती रहें 
वह किसी भी कारण सूखे नहीं 
तब बडी से बडी सजा भी फीकी 

बर्तनों का संगीत

संगीत केवल वीणा और बांसुरी से ही नहीं 
घर के बर्तनों से भी सुनाई देती है
वह उतनी सुमधुर भले न हो
सबको प्यारी जरूर होती है
उसका नाता पेट और भूख से होता है
सुबह से ही जो उठा पटक होती है
तब जान पडता है
कुछ मिलने वाला है
बर्तनों की शांति अच्छी नहीं लगती
सुबह से यह ध्वनि जो शुरू होती है
देर रात तक
कभी कलछी बोलती है कभी सडसी 
कभी पतीला तो कभी कडाही 
तवे और चिमटे की अपनी धुन
ऊपर से कुकर की सीटी सचेत करती हुई 
इनकी खटर पटर से ही रसोईघर में जीवंतता 
गृहणी खुश है या नाराज
गुस्से में है 
इसका पता भी चलता है
हर बर्तन की अपनी विशिष्टता 
एक के बिना दूसरे का काम नहीं चलता
चकला - बेलन , छुरी - कांटा 
पतीला - ढकना , थाली- परात
कटोरी - ग्लास , कप - बसी
कुकर- मिक्सर , सील - बट्टा 
भगोना- देगची इत्यादि 
हर चीज की जरूरत 
तभी खाना बनता है
वह पेट भरता है
स्वादिष्ट होता है
घर भर को एक टेबल पर बैठाता है
प्रेम और बातों का आदान-प्रदान होता है
बर्तनों का अपना एक संसार 
अपनी एक ध्वनी 
वह कभी कर्कश नहीं होता
संगीत केवल वीणा और बांसुरी से ही नहीं 
घर के बर्तनों से भी सुनाई देती है 

कृष्ण--9

प्रह्लाद श्चास्मि दैत्यानां कालः कलयतामहम् ।
मृगाणां  च मृगेन्द्रो हं वैनतेयश्च पक्षिणाम् ।।

दैत्यों में मैं भक्त राज प्रह्लाद हूँ 
दमन करने वालों में काल हूँ 
पशुओं में सिंह हूँ 
तथा पक्षियों में गरूण हूँ  ।

वह घरनी है

जब उसके हाथ में झाडू रहता है
तब नहीं जाती किसी की दृष्टि

जब उसके हाथ आटे से सने होते हैं
जब आटा गूंथ रही होतीहै
तब नहीं जाती किसी की दृष्टि

जब दहकती गर्मी में रसोईघर में
पसीने में लथपथ खाना बना रही होती 
हाथ में चिमटा और कलछी 
तब नहीं जाती किसी की दृष्टि

जब कडकती ठंडी में 
जूठे बर्तन और ओटला साफ करती
तब नहीं जाती किसी की दृष्टि

जब बच्चों के पीछे रात रात भर जागती
उनके सर पर पानी की पट्टी रखती
तब किसी को उसकी नींद की फिक्र नहीं होती

सुबह सुबह सबके नाश्ते की तैयारी
स्कूल छोड़ना 
कभी-कभी होमवर्क भी करवाना
तब नहीं जाती किसी की दृष्टि

दोनों हाथों में सामान की थैली
ढोते हुए जब आती है
तब नहीं जाती किसी की दृष्टि

यह सब वह करें तब तो ठीक
लेकिन इन्हीं हाथों में जब पकड़ती है मोबाइल 
तब सबकी दृष्टि बदल जाती है
जैसे कोई अपराध कर रही हो

हमेशा हाथ में मोबाइल
नहीं कोई परवाह
जब देखो उस पर लगी रहती हो
यह सुनना हर औरत की नियति

Thursday 6 October 2022

मैं तो खेलूगा

मैं तो स्टूल से खेलूगा 
मजा आ रहा है उठा पटक कर 
मम्मी डांट रही
पापा हंस रहें 
दादा - दादी ठहाके लगा रहे
आ मा बा पा
ज्यादा मत बोलो 
मैं जो करूँ 
मेरी मर्जी 
मैं तो छोटा बच्चा 
मत डाटों 

बलात्कार पीडिता का दर्द

बलात्कार पीडिता की आत्महत्या 
आए दिन गैंगरेप की खबरें 
या तो वे ही मार डालते हैं 
या फिर आत्महत्या 
क्या करें पीडिता 
वह तो जीते जी मार डाली जाती है
समाज की नजरों में वह कहीं की नहीं रहती
यद्यपि उसका दोष नहीं 
पर हमारे समाज की सोच ही ऐसी है
वह तो उसका घर से बाहर निकलना दूभर कर देंगे 
जिसको न भी बोलना हो
जो उसके बारे में न जानता हो
ऐसे चटखारे लेकर बताएँगे 
सहानुभूति के नाम पर कि पूछो मत
कहाँ भाग कर जाएं 
वैसे नाम उजागर नहीं करना है
तब भी यह बात कहाँ छुपी रहती है
बलात्कारी  आराम से रहते हैं 
कभी-कभी यह राजनीतिक रूप भी धर लेता है
किसी नेता को इन पर दया आ जाती है
उनकी नजर में वे बच्चे हैं जिनसे गलतियाँ हो जाती है
यह कैसी गलती 
जिससे किसी का पूरा जीवन तबाह
उसका परिवार दागदार 
एक - दो पीढी तक यह कथा चलेगी 
इनके यहाँ ऐसा हुआ था
तभी तो डर के मारे चुप रह जाती है लडकियाॅ 
उसके बेबस घर वाले 
प्रार्थना करनी पडती है
इस मुद्दे को ज्यादा न घसीटो 
पत्रकारों का जमावड़ा 
न जाने कैसे कैसे सवाल 
एक तो यह दर्द और पीड़ा 
उस पर ऐसा माहौल 
मरे न तो करें क्या 

मेरी फितरत

मेरे पास आलीशान घर है
अच्छा फर्नीचर है
जरूरत की सब चीजें 
फ्रीज,  टेलीविजन,  वाशिंग मशीन
मंहगा मोबाइल,  लैपटॉप इत्यादि 
अच्छी गाडी है
तुम्हारे पास क्या है
मेरे पास सुकून है
मैं किसी का कर्जदार नहीं हूँ 
लोन लेना मुझे पसंद नहीं 
मैं हर महीने की किश्त भरने की झंझट में नहीं पडा
जो है उसी में संतोष 
जितनी चादर उतना ही पैर फैलाना
यह मेरे जीवन का फंडा
गाडी की जरूरत नहीं 
बस और ट्रेन का सफर ही रास आता
दो पैर हैं चलने के लिए 
न मेन्टेन्स की झंझट न पेट्रोल भराना 
आगे बढना , प्रगति  करना
अच्छी जीवनशैली अपनाना 
इसमें तो कोई बुराई नहीं 
लेकिन दूसरों को देखकर
लोन लेकर 
यह सब ताम झाम 
यह मेरी फितरत में नहीं। 

सजा

सजा तो कर्मों की मिलेगी ही
आज नहीं तो कल
इस जन्म में नहीं तो अगले जन्म में 
कोई अछूता नहीं रहता
ईश्वर के दरबार में सब बराबर है
वह सबके साथ न्याय करता है
कब और कैसे 
यह तो वो ही जाने
पर न्याय होगा अवश्य 
भरोसा रखिए 
ऊपर वाले की लाठी में आवाज नहीं होती
जब वह अपना डंडा चलाता है
तब क्या  से क्या न हो जाएं। 

कृष्ण--8

अनन्तश्चस्मि नागानां वरूणो यादसामहम्। 
पितृणामर्यमा चास्मि यमः संयमतामहम् 


अनेक फणो वाले नागों में मैं अनन्त हूँ 
जलचरों में वरूण देव हूँ 
पितरों में अर्यमा हूँ 
तथा नियमों के निर्वाहकों में मैं मृत्यु राज यम हूँ। 

Wednesday 5 October 2022

मैं किन्नर हूँ

किन्नर हूँ 
न नर हूँ न नारी हूँ 
तब भी सबसे भारी हूँ 
दुवाओ का खजाना है मेरे पास
हर शुभ कार्य में हाजिर रहती हूँ 
सभी चाहते मुझसे दुआएं लेना
अपने नवजात बच्चों को गोद में देकर 
विनंती  करते हैं 
उनके शिशु को दुआ दे 
इसके बदले में वह न जाने क्या-क्या उपहार देते हैं 
मुझे देखना शुभ
मुझसे आशीर्वाद लेना अच्छा 
तब मैं बदनसीब कैसे
माँ न बनू पर बलैया लेती हूँ शिशु की
ब्याहता न बनू 
पर नवजात जोड़े को आशीर्वाद देती हूँ 
सब मुझसे डरते हैं 
कहीं मैं नाराज न हो जाऊं 
शाप न दे दूँ 
नाच - गाकर , आशीर्वाद देकर खुश रहती हूँ 
लोग हंसी उडाते हैं मेरी 
मुझसे किनारा करते हैं 
जन्मदाताओ ने त्यागा 
समाज और परिवार ने ठुकराया 
फिर भी मैंने हार नहीं मानी 
न मैंने दुनिया छोड़ी
इसी दुनिया में  रहती हूँ 
सर उठाकर और अपने बल पर 
मैं ही तो शिखंडी हूँ 
किन्नर हूँ 
न नर हूँ न नारी हूँ 
तब भी सबसे भारी हूँ। 

आज का रावण

आज के रावण की नाभि में अमृत कुंड नहीं 
समाज के द्वारा स्वीकृति है
आज यह राज केवल विभिषण को ही नहीं 
सभी को पता है
सब ऑख - मुख बंद कर बैठे हैं 
किसी में प्रतिकार की शक्ति नहीं है
जटायु जैसा एकाध है भी तो उसका सर्वनाश निश्चित है
राम भी तो नहीं है 
न लक्षमण है
न जाने कितनी सुपर्णखा घूम रही है उनको दंडित करने वाला कोई नहीं 
मारीच मायावी वेष धारण कर लोगों को ठग रहे हैं 
सोने के मृग के वेष में भेड़िए की खाल धारण किए
कुंभकर्ण को कुछ पता ही नहीं वह तो आराम से सो रहा है
आज के विभिषण असहाय है
क्योंकि राम जी नहीं है
तब कौन तारणहार बनेगा ।

कृष्ण 7

आयुधानामहं वज्रं देवानामस्मि कामनुक् ।
प्रजनश्चास्मि कन्दर्प: सर्पाणामस्मि वासुकी: ।।

मैं हथियारों में वज्र हूँ 
गायों में सुरभि 
संतति उत्पत्ति के का कारणों में प्रेम का देवता कामदेव
तथा सर्पों में वासुकि हूँ  ।

Happy Vijayadashmi

अधर्म पर धर्म की
अन्याय पर न्याय की 
असत्य पर सत्य की
बुराई पर अच्छाई की 
जीत ही है विजयादशमी 
मन पर विजय करना है
मन के रावण का दहन करना है
काम,  क्रोध,  मत्सर को त्यागना है
अंहकार व्यक्ति को खत्म कर डालता है
महाज्ञानी  , महापंडित,  चारों वेदों के ज्ञाता  , शिव तांडव स्रोत के रचयिता
महान शिव भक्त रावण भी इससे अछूते नहीं रहें 
जब रावण का यह हाल
तब साधारण मानव की क्या बिसात 
सबसे दूर ईश्वर की भक्ति में रह 
विजयादशमी का पर्व मनाए 
अपने साथ औरों की भी जय
यही है विजयादशमी का संदेश 

Tuesday 4 October 2022

दिल का रिश्ता

दिल के रिश्ते जमीनी नहीं होते
बडे विस्तृत होते हैं 
उसका कोई ओर - छोर नहीं 
उसकी थाह पाना आसान नहीं 
वह न किसी के मिटाने से मिटते हैं 
न किसी के बनाने से बनते हैं 
वह तो दिल से दिल को जोड़ते हैं 
एक बार जो धर कर जाते हैं 
तब इतने मजबूत कि 
अपनी जगह से हिलना मुश्किल 
अंगद के पैर जैसे 
जो जम गए तो जम गए
जो दिल में एक बार बस गया तो बस गया

डर के साये में जी रहा आम इंसान

डर लगता है 
किसी पर विश्वास करने से
 किसी से बात करने में 
किसी से मिलने जुलने से
किसी की सहायता करने से
किसी से दोस्ती का हाथ बढाने से
किसी को पानी पिलाने से
किसी को घर में बैठाने से
किसी के घर जाने से
किसी का फोन उठाने से
किसी को गाडी - टैक्सी में लिफ्ट देने से
बच्चों को किसी के साथ भेजने से
डर का माहौल बन गया है
कब जाने कौन धोखा दे जाएं 
अंदर के शैतान कब बाहर आ जाएं 
साधु वेष में रावण विद्यमान है हर जगह
भलाई का जमाना नहीं  रहा
कदम कदम पर धोखा और फरेब है
नैतिकता खत्म हो गई है
अब तो आस - पडोस पर
कभी-कभी अपने रिश्ते- नातों पर विश्वास नहीं 
तब तो अंजान और अजनबी की बात ही छोड़ दे
डर के माहौल में जी  रहे हैं 
नये नये तरीके से क्राइम 
ये आधुनिक से आधुनिकतम तरीका इजाद कर रहे हैं 
जब तक पता चलता है
तब तक बहुत देर हो चुकी होती है
बहुत कुछ लुट चुका होता है
जान भी चली जाती है
अपराधी,  अपराध छुपाने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है
तभी तो कहते हैं 
लंका में भी सीता सुरक्षित थी
यहाँ तो अपनों के बीच भी नहीं 
डाकू के भी कुछ उसूल होते थे
आज तो सब बेमानी है
अपनी जरूरत पूरी करने के लिए किसी भी हद तक जाना
वह फिर पैसे की हो या किसी और चीज की
हम इसी डरे हुए समाज का हिस्सा है
जहाँ विरोध करने पर आवाज को ही खत्म कर दिया जाता है
देखते - सुनते और समझते हुए अंधे - गूँगे और बहरे बन गए हैं 
हिम्मत नहीं डर समाया है
खौफ है अंजाने दुर्घटना का 
डर के साये में जी रहा आम इंसान। 

नफरत छोड़ो भारत जोड़ो

नफरत छोड़ो भारत जोड़ो 
सब साथ चलो
चलते चलो
अपना हो या बेगाना
न जाति न धर्म 
न ऊंच न नीच
न अमीर न गरीब 
न भाषा न प्रांत 
हर एक का हो साथ
तभी भारत बने महान
पक्ष - विपक्ष की बात नहीं 
दिल जोड़ना है
कुछ खटास है जिसमें मिठास भरनी है
जो टूटा है उसे जोडना है
ईष्या- द्वेष को छोड़ना है
गले से गले मिलना है
हर दुराव को दूर करना है
एक को दूसरे के समीप लाना है
कदम से कदम मिलाना है
चलते चलते सब को साथ ले लेना है
सब साथ होंगे तभी तो देश का विकास 
देश तो हमारा है
हमको सबसे प्यारा है
जब देश से हो प्यार 
तब क्यों हो दिलों में नफरत का साम्राज्य 
नफरत छोड़ो भारत जोड़ो 

यादें

यादों का जुड़ाव दिल से होता है
दिमाग से नहीं 
दिमाग तो जोड़ता घटाता है
नफा नुकसान देखता है
वह कोमल नहीं होता
दिल तो इन सबसे परे
जो इसमें बसा है वह बसा ही है
अच्छा हो बुरा हो
कभी प्यार कभी गुस्सा 
कभी नाराजगी 
लेकिन फिर लौट कर उसी राह पर
वह कैसे भूलाया जा सकता है
जो दिल के करीब हो
जो अपना हो 
लाख कोशिश हो फिर भी वह कायम
यह दिल है जनाब 
उसकी तिजोरी तो भरी पडी है यादों से
रात - दिन वह उसी में सुरक्षित है
उसे न कोई छीन सकता है
न लूट सकता है
हर वक्त साथ रहती यह याद 

कृष्ण 7

उच्चै:श्रवसमश्वानां विद्धि माममृतोद्ववम् 
ऐरावतं गजेन्र्दाणां नराणां च नराधिपम् 

घोड़ों में मुझे उच्चैश्रवा जानो
जो अमृत के लिए समुद्र मंथन के समय उत्पन्न हुआ था ।
गजराजों में मैं ऐरावत हूँ 
तथा मनुष्यों में राजा हूँ। 

Monday 3 October 2022

गांधी की शख्सियत

गांधी किसी के मारे नहीं मरेंगे 
कितने ही गोडसे पैदा हो जाएं 
गांधी वो ही रहेंगे 
गांधी एक व्यक्ति ही नहीं 
एक विचार हैं 
युद्ध में हार - जीत किसी की भी हो
वह विनाशक तो होता ही है
अहिंसा की जगह नहीं ले सकता 
शांति का पर्याय कुछ नहीं है
इसका यह मतलब नहीं कि यह कमजोरी है
उनके जैसा तो दृढ़ व्यक्ति मिलना आसान नहीं 
भारत तो छोड़ना ही पडेगा
सत्याग्रह ही हथियार था
सत्य की जगह हमेशा रही है
सत्य मरता नहीं 
आज जो विदेश पढने जाते हैं 
वहीं के होकर रह जाते हैं 
हमारे जो नेता थे वे पढने तो गए 
वापस अपनी ही भूमि पर आए
अंग्रेजों की अंग्रेजी सीखी और सबक सिखाया 
मोहनदास करमचंद गांधी बैरिस्टर थे
पढे - लिखे व्यक्ति 
जवाब देना उनको आता था
रेल के डिब्बे से नीचे उतारना और अफ्रीका में उनकी भूमिका 
यही से जन्मी थी राष्ट्र भक्ति 
जिसने प्रचंड रूप धारण किया
आज वे ही लोग आते हैं जिसने गुलाम बनाया था
राजघाट पर माथा नवाने 
अपने भाषण में गांधी का जिक्र जरूर होता है
गांधी की शख्सियत ऐसी नहीं कि दो - चार गोडसे पैदा हो जाएं तो वह खत्म हो जाएगी ।

मैं वैदेही

मैं वैदेही 
धरती माता की गोद से जन्मी
धरती में ही समा गई 
बहुत कुछ सहा मैंने 
राजा बनने का अधिकार राम से छीना गया था
पत्नी होने का धर्म निभाना था
उस महल में कैसे रहती जहाँ से उनको वनवास मिला था
जनक की बेटी सुकुमारी
नंगे पैर चली 
कुटिया में रही
दर - दर पति के साथ भटकी
कंद मूल ग्रहण किया
बुहारने ,पानी भरने और रसोई का भी काम किया
यह सब खुशी-खुशी किया
क्योंकि पति के साथ जाने का निर्णय मेरा था
रावण द्वारा अपहरण हुआ 
तब भी मैं टूटी नहीं थी
अग्नि परीक्षा ली गई तब भी नहीं 
हाँ जब चरित्र पर लांछन लगा और गर्भवती अवस्था में वन में छोडी गई 
तब दिल दुखा था
कर्तव्य पालन करना था 
गर्भ में पल रहे बच्चों के प्रति भी कर्तव्य बनता था
पत्नी का तो निभाया अब माँ की बारी थी
लव - कुश को बडा किया और उनको उनके पिता से मिला दिया
फर्ज पूरा हो गया था
लंका से तो अयोध्या आई पर वन से वापस अयोध्या नहीं जाना था
स्वाभिमानी भी तो थी
एक बात अवश्य अखर रही थी
मैंने तो राम के लिए अयोध्या छोड़ दी थी और वन गमन कर लिया
राजा राम क्यों नहीं मेरे साथ वन में हो लिए
एक राजा पति पर भारी पड गया
अब तो माता की गोद ही बची थी
उसी से जन्मी उसी में विलीन 
माँ कभी इनकार नहीं करेगी यह पता था
उसकी गोद ही है जिस पर संतान का पूरा हक है
और तो रिश्ते बने बनाए ।

कृष्ण दीवानी मीरा

राधा रानी तो प्रेम दीवानी
कृष्ण के दिल की रानी
मीरा भी तो कृष्ण दीवानी 
महलों को छोड़ चली 
मंदिर मंदिर घूमी
अपने प्रिय को पाने
राधा ने  तो बृजभूमी में रास रचाया
मीरा ने तो मरुभूमि में फूल खिलाया 
राधा रही गोकुल में कृष्ण की आस लगाए 
मीरा जग - परिवार छोड़ भटकी यहाँ वहाँ 
कब , कहाँ न जाने उनके कृष्ण मिल जाएं 
प्रेम राधा से कृष्ण ने किया था
कृष्ण से प्रेम मीरा ने किया था
वह द्वापर युग था
साक्षात अवतरण था
मीरा तो उस युग की थी
जहाँ कृष्ण शरीर रूप में थे ही नहीं 
बिना देखे अपने प्रिय को अपने आराध्य को
इतना प्रेम 
इतना विश्वास 
इतनी भक्ति 
बडे बडे अवरोध आए
सब अवरोध पार कर गई
हर लांछन सह गई
साधु संतों के साथ घूमती रही
वीणा की धुन छेड़ती रही
कृष्ण भक्ति में रम गई
तभी तो मीरा , संत मीराबाई बन गई
आज भी जब गूंजता है
मैं तो प्रेम दीवानी 
      मेरा दर्द न जाने कोय 
तब मीराबाई समक्ष आ जाती है 
प्रेम करें तो मीरा सा
भक्ति करें सो मीरा सा ।

कृष्ण --6

अश्वत्थ: सर्ववृक्षाणां देवर्षीणां च नारद :।
गन्धर्वाणां चित्ररथ : सिद्धांनां कपिलो मुनि : ।।

मैं समस्त वृक्षों में अश्वत्थ वृक्ष हूँ 
देवर्षियो में नारद हूँ 
मैं गंधर्वो में चित्ररथ हूँ 
और सिद्ध पुरुषो में कपिल मुनि हूँ। 

Sunday 2 October 2022

गांधी बनना आसान नहीं

गांधी बनना आसान नहीं 
उनके दिखाए रास्ते पर चलना
सत्य और अहिंसा का पालन
इन सबके लिए तो फिर एक बार गांधी को जन्म लेना पडेगा 
अपना आदर्श दिखाना पडेगा
विज्ञापन का जमाना है
जो दिखता है वही सीखता है
आज तो गांधी जैसा कोई नहीं 
सब लड रहे हैं एक - दूसरे से
अधिकार छीनने की कोशिश हो रही है
घृणा या मजाक
अहम् और जिद 
कौन पीछे हटे 
बस इसी में उलझ कर रह गया है
बारूद के ढेर पर सब बैठे हुए 
कब जाने विस्फोट हो 
महात्मा जैसी ताकत 
बंदूक नहीं लाठी का सहारा
निहत्थे होकर लडाई लडना
सारे विश्व को अपनी शक्ति दिखाना
आज  राजघाट पर माथा नवाने सब आते हैं 
पता नहीं कुछ सीखते हैं या नहीं 
महात्मा के साथ साथ 
बैरिस्टर और कुशल राजनीतिज्ञ 
सारे भारत को अपने पीछे खडे करने की ताकत
त्याग की अद्भुत मिसाल 
दिखावा नहीं स्वयं पर प्रयोग 
अपने को उसी ढांचे में ढालना 
कथनी और करनी में समानता 
तभी तो कहा जाता है
दे दी हमें आजादी 
       बिना खड्ग बिना ढाल
साबरमती के संत 
          तूने कर दिया कमाल 

पंख मेरे भी थे

पंख मेरे भी थे
उडान भरने की मैंने भी ठानी थी
उडान भरी भी
उस उडान भरने के दरम्यान बहुत कुछ हुआ
असतित्व बनाने के चक्कर में असतित्व ही खत्म होता गया
मैं वह न रही जो वास्तव में थी
बहुत कुछ खोना पडा
ऊपर से यह सुनना पडा
तुमको करने की छूट दी
यानि पिंजरे में बंद तो ठीक
खोला तब भी एक एहसान 
इसका लाभ मुझे क्या हुआ 
भागम-भाग करती रही
जिम्मेदारी निभाती गई
मैं समझी कि
मैं सही जा रही हूँ 
नाम बना रही हूँ 
नाम क्या बना
इस नाम के चक्कर में एक बोझ ओढ लिया 
गलत हुआ या सही हुआ 
सबका कारण मैं 
एहसास होता है
कभी-कभी पिंजरे में बंद होना ही अच्छा है
मनपसंद पेरू - मिर्च मिलेगी 
सबका ध्यान रहेगा
सब प्यार करेंगे
फालतू के झंझट में क्यों पडना 

मेरी दुनिया

किसी के जाने से दुनिया खतम नहीं होती
आपकी जो दुनिया है वह ही चली जाएं तब
जीता तो है हर हाल में 
वह जीना भी कोई जीना है
एक रिक्तता और खालीपन 
उसको भरना असंभव 
वह जगह तो कोई नहीं ले सकता
ऊपर से सब ठीक दिखता है
हंसना - मुस्कराना भी
बतियाना भी
वह सब एक आह के साथ
अफसोस के साथ
दुनिया है तब भी आपकी दुनिया तो नहीं 

अकेले तो कुछ नहीं

सब कुछ मैंने किया है अपने दम पर अपने बल बूते पर
कोई भ्रम में न रहें 
आपके मुकाम हासिल करने के पीछे न जाने कितनों का हाथ है
जाने- अनजाने  , प्रत्यक्ष- अप्रत्यक्ष 
महाभारत का युद्ध समाप्त हो गया था । अर्जुन अपने रथ पर सवार थे कृष्ण के साथ ।
खुशी तो थी ही , गर्वित भी थे 
विजय जो हासिल हुई थी 
पहुँचने पर कृष्ण ने कहा अर्जुन से रथ से उतरने के लिए 
अर्जुन ने कहा माधव पहले आप उतरिए 
युधिष्ठिर ने कहा कृष्ण कह रहे हैं तो उतर जाओ 
जरूर उसमें भी कोई बात होंगी 
न मानने पर अनमने से अर्जुन उतरे 
उसके बाद जैसे ही कृष्ण उतरे 
रथ धू धू कर जल उठा
अर्जुन ने पीछे मुड़कर देखा 
समझ गए माधव क्यों पहले मुझे उतार रहे थे
पूछा उन्होंने 
तब कृष्ण ने उत्तर दिया
इस रथ पर न जाने कितने भीषण तीर लगे हैं 
बडे बडे योद्धाओं के अस्र- शस्त्र का सामना कर रहा था
युद्ध के समय यह भी सब झेल रहा था
वह तो मैं था जो संभाल रहा था
अर्जुन की ऑखें खुल गई 
घमंड छू मंतर हो गया 
सबका साथ , सबका योगदान
न जाने कितनों का त्याग 
न जाने कितनों का आशीर्वाद 
महावीर भी थे
तुम्हारे अकेले के बस की बात नहीं थी
यही बात हम साधारण लोगों पर भी  लागू होती है ।

कृष्ण 6

महर्षीणां भृगुरहं गिरामस्म्येकमक्षरम् ।
यज्ञानां जपयज्ञोस्मि स्थावराणां हिमालयः ।।

मैं महर्षियों में भृगु हूँ  
वाणी में दिव्य ओंकार हूँ 
समस्त यज्ञों में पवित्र नाम का कीर्तन 
तथा समस्त अंचलों में हिमालय हूँ। 

भारत माता के दो लाल

भारत माता के दो लाल
एक मोहनदास तो दूसरा लालबहादुर
नाज हुआ माता को
जब ये सपूत जन्म लिए उसकी कोख में
उस दिन माँ भी इतराई होगी
उसकी मिट्टी धन्य हो गई होगी
एक अहिंसा का पुजारी
दूसरा ईमानदारी की मिसाल
एक राष्ट्रपिता दूसरा प्रधानमंत्री
दोनों ने अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाई
एक की आधी धोती ने बांध लिया जग को
एक के छोटे कद ने सबको बौना कर दिया
अहिंसा ने हिंसा को चित्त किया
अंग्रेजों को भागने पर मजबूर किया
रगो में जोश है 
रंग लाल है लाल बहादुर से
दो अक्टूबर को जन्मे थे ये
यह कभी न भूलें हम 
इनके योगदान को याद करें
आज के दिन को तो यादगार बनाए
मन से श्रंद्धांजलि अर्पित करें माता के इन सपूतो को

Saturday 1 October 2022

पैसा सबके बीच

पैसा के पीछे-पीछे सब
जिंदगी उसके पीछे-पीछे 
उसके पीछे-पीछे मौत
सब एक-दूसरे के पीछे भागते जा रहे हैं 
पैसा कमाने की होड़ लगी है
वह नहीं तो गुजारा मुश्किल 
अच्छी लाइफस्टाइल के लिए जरूरी है
लाइफस्टाइल तो बाद की बात 
रोटी , कपडा और मकान भी चाहिए 
सामान्य जरूरत भी उसी से 
तब क्या किया जाएं 
पैसा कमाना है
बचाना है , जोड़ना है
और उसी जिंदगी को बचाने के लिए 
जिसके पीछे मौत भी धीरे-धीरे आती जाती है
जिंदगी और मौत के बीच एक जो है
वह है पैसा 
तभी तो 
पैसा के पीछे-पीछे सब 
जिंदगी उसके पीछे-पीछे 

कृष्ण 5

पुरोधसां च मुख्यं मां विद्धि पार्थ बृहस्पतिम् ।
सेनानीनामहं स्कन्द: सरसास्मि सागर :

हे अर्जुन! मुझे समस्त पुरोहितों में मुख्य पुरोहित बृहस्पति जानो। मैं ही समस्त सेनानायकों में कार्तिकेय हूँ 
और समस्त जलाशयों में समुद्र हूँ  ।

प्रकृति मेहरबान

आज तो प्रकृति भी झूम रही है
नाच रही है
गा रही है
झूला झूल रही है
मदमस्त हो रही है
इधर-उधर डोल रही है
सूरज की खिली खिली धूप में मुस्करा रही है
प्रकाश के साथ सबको जगा रही है
सबमें चैतन्य और उर्जा भर रही है
फूलों में खुशबू बन महक रही है
रून झून रून झून गा रही है
कोयल की कूक में बोल रही है
मोर के पंख में समा नाच रही है
हवा के साथ झकझोरे ले रही है
ओस की बूंदों को मोती बन पी रही है
पक्षी के घोसलो से ची ची कर रही है
मौसम को सुहावना बना रही है
सबको प्रसन्न कर रही है
दिल खोलकर दे रही है
जिसको लेना हो ले
जिसको खुशी समेटना हो समेटे
जिसको आनंदित होना है वह हो ले
सब उसके लिए समान
कोई भेदभाव नहीं
हर जीव में वह
यह कोई एक दिन का कार्य नहीं
सदियों से कार्यरत है
नियमित रूप से
बिना किसी स्वार्थ के
सबको करती दिल से दान
ऐसी है हमारी प्रकृति जान