Monday 29 February 2016

जेटली जी की पोटली नौकरीपेशा के लिए खाली

वित्त मंत्री जी ने बजट पेश कर दिया है सबकी निगाहे बजट की ओर लगी हुई थी
लग रहा था कि टेक्स में कुछ छुट मिलेगी
मध्यम वर्ग नौकरीपेशा लोगों को राहत मिलेगी
पर ऐसा कुछ नहीं हुआ
ऊपर से सर्विस टेक्स की भी मार पडी
इससे अप्रत्यक्ष रूप से होटल में खाना ,यात्रा करना ,कुरियर सर्विस ,ब्युटिपार्लर जैसी चीजें मंहगी हुई जिसका असर सबसे ज्यादा इसी वर्ग पर पडनेवाला है
यही वर्ग है जो ईमानदारी से टेक्स देता है
उसके लिए कुछ नहीं
यह तबका जो थोडा सा जीवन शैली ऊंचा रखने का प्रयत्न करता है
सबसे ज्यादा मार इस पर पडेगी
मध्यम वर्गीय युवाओ के लिए रोजगार का कोई प्रावधान नहीं दिखता
शहरी मध्यमवर्गीय जिसका कि एक नौकरी के सिवाय और कुछ नहीं
कम से कम जीवन शैली ऊँचा रखना , बच्चों को पढाना सब यही वर्ग के जिम्मे है
समाज को दशा और दिशा देनेवाले वर्ग के लिए जेटली  जी की पोटली से कुछ नहीं निकला

संसद प्रजातंत्र का मंदिर है युद्ध का अखाडा नहीं

प्रधानमंत्री जी संसद में पहली बार प्रवेश करते समय उसकी देहली पर मत्था टेका था
वैसे भी सभी सांसदों के लिए वह प्रजातंत्र का मंदिर ही होना चाहिए
पर पिछले कुछ समय से वह बातों का अखाडा बना हुआ है
इतना उग्र होकर बात का जवाब देना
एक दूसरे की ओर उंगली दिखा -दिखाकर बोलना
संसद जनता की समस्याओ को सामने रखने के लिए है
न कि अच्छा वक्ता और भाषण के लिए
एक -दूसरे पर दोषारोपण करना
मुद्दे को छोडकर व्यक्तिगत आक्षेप करना
मॉ दुर्गा के लिए अपमानित शब्दों और लेख को पढना
सर काट कर दूसरे नेता के चरणों में डालने की बात करनी अगर वह संतुष्ट नहीं हुई तो ?
विपक्ष क्यों नहीं विरोध करेंगा?
वह तो उसका काम ही है
यह संसद है स्टेज नहीं ,जहॉ भाषण पर तालियॉ बजेगी
फिर आप विपक्ष से कैसे सहयोग की अपेक्षा कर सकते हैं
सोशल मीडिया में भले ही वाह वाही हुई हो लेकिन दुसरे दिन से ही किरकिरी होने लगी
रोहित की मॉ का सामने आना और झूठा साबित करना
यह हंगामा खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है
जबकि जरूरत थी कि सब मिल -जुलकर हल निकाले
कब तक अगडो -पिछडो के नाम पर राजनीतिक दल अपनी -अपनी रोटियॉ सेकेंगे ?
जनता को कभी धर्म के नाम पर तो कभी जाति के नाम पर बरगलाते रहेंगे
ये लोग इमानदारी से जनता के बारे में सोचे और कार्य करें न कि एहसान जताए कि हमने आपका यह काम किया है
एडमीशन करवाया है या और कोई काम
आप लोगों तो इन्हीं लोगों ने सत्ता पर बिठाया है
यह हमेशा याद रखना है

Saturday 27 February 2016

अपनी मातृभाषा में बोलना गौरव की बात

मेरी मातृभाषा हिन्दी है  पर मुझे पढने का शौक है
तो मैं मराठी ,गुजराती पढ लेती हूँ
मुंबई में रहने के कारण मराठी आती ही है
घर पर    पेपर  देनेवाले ने बताया कि टाइम्स आँफ इंडिया की स्कीम चल रही है
तो आपको एक पेपर उसके साथ मिलेगा तो मैंने महाराष्ट्र टाइम्स के लिए कहा
पर दो -चार दिन तक मुंबई मिरर आते देख मैंने पूछा तो उसका जवाब था मैंने समझा ,आप मजाक कर रही है आपको मराठी आती है यह मालूम नहीं था
क्योंकि वह जानता था कि मैं उत्तर भारत से हूँ
हिन्दी और मराठी दोनों देवनागरी लिपी में है
और वर्षों से रहते हैं तो भाषा आ ही जाती है.
आज दक्षिण मुंबई के मराठी और दूसरी भाषाओं की पाठशालाएं बंद हो रही है
हर व्यक्ति अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम में पढाना चाहता है
ठीक है पर घर पर भी न बोलना
फिर तो धीरे -धीरे यह खत्म हो जाएगी
भविष्य दिखा रहा है कि आज से पचास साल बाद तो शायद ये सुनने को भी न मिले
अगर अंग्रेजी गलत बोले तो ठीक है तो दूसरी क्यों नहीं
भाषा का इस्तेमाल होगा तभी वह जिंदा बचेगी
नहीं तो इनकी हालत भी संस्कृत जैसी हो जाएगी
उसे लचीला बनाया जाय
रोजी -रोटी का जरिया बनाया जाय
बोलने में सम्मान महसूस हो न कि उसे रोका जाय
प्रोत्साहन दिया जाय
अगर हम अपनी भाषा का सम्मान नहीं कर सकते
तो दूसरों की क्या करेंगे
महाराष्ट्र में रहने वाले हर व्यक्ति को मराठी आनी चाहिए
विदेशी भाषा सीखी जा सकती है तो अपनी क्यों नहीं?
फिर चाहे वह हिन्दी हो ,मराठी हो या अन्य कोई
पारंगत न हो लेकिन बोलचाल का माध्यम तो हो ही

Friday 26 February 2016

You could be shameless , I am not. - Ratan Tata


Few months after 26/11, Taj group of Hotels owned by TATAs launched their biggest tender ever for remodeling all their Hotels in India and abroad. Some of the Pakistani companies also applied for that tender.
To make their bid stronger, two big industrialists from Pakistan visited Bombay House (Head office of Tata) in Mumbai without an appointment to meet up with Ratan Tata since he was not giving them any prior appointment.
They were made to wait at the reception of Bombay house and after a few hours, a message was conveyed to them that Ratan Tata is busy and can not meet anyone without a prior appointment.
Frustrated, these two Pakistani industrialists went to Delhi and through their High Commission met up a Congress Minister. Then this minister, Anand Sharma immediately called up Ratan Tata requesting him to meet up with the two Pakistani Industrialists and consider their tender "ENTHUSIASTICALLY."
Ratan Tata replied..."You could be shameless, I am not" & put the phone down.
Few months later when Pakistani government placed an order of Tata Sumos to be imported into Pakistan, Ratan Tata refused to ship a single vehicle to that country.
This is his respect and love for his motherland. He placed the nation above money & business.

Thursday 25 February 2016

यह मजाक नहीं आज की हकीकत है

यह जो देख रहे हैं उसमें एक पिता की विडंबना और आज के युग की युवा की बेबसी और उसकी योग्यता का मजाक है
शिक्षा के साथ बेकारी की समस्या भी मुँह बाए खडी है
ऐसा लगता है बच्चो की शिक्षा पर मेहनत और खर्च करना बेकार है
पढ - लिखकर भी यह जलालत सहना
इंजीनियर आज मजाक में लिए जा रहे हैं
वे पॉच हजार रूपयों की नौकरी करने पर भी मजबूर है
अपनी फीस का खर्चा भी वे निकाल नहीं पाते
बेबसी में उन्हें लगता है कि कम ही पढे होते तो
निराशा धर कर लेती है और वह कभी-कभी भयंकर रूप धारण कर लेती है
बजट आने वाला है आशा है इस बात पर ध्यान दिया जाएगा
युवाओं की प्रतिभा का सही उपयोग होना चाहिए
पढ -लिखकर जब बाहर आए तो सम्मान के पात्र हो
यह तभी मुमकिन है जब वे आत्मनिर्भर हो
सम्मान से जीवनयापन करें और इसके लिए एक अदद नौकरी की जरूरत है 
उनके लिए रोजगार निर्माण किया जाय
ताकि विदेशों में भी उनके पलायन को रोका जाय

Tribute to Parsis Parsis are just 0.1% of total population, or maybe even less..........YET......... They never asked for minority status... They never asked for reservations... They never f​ight​ with Indian Government...  They never felt threatened by Hindus...  They never throw bombs or stones or damage public property...  They never indulge in crimes or run the underworld...  All they do is to contribute mightily to the progress of India... They gave us the best..... Mr. Dadabhoy Naoroji ​Mr. J R D Tata​ Mr. Firozshah Mehta.. Mr. Bhikaji Cama... Mr. Ratan Tata...  Mr. Adi Godrej... Mr. Cyrus Mistry... Mr. Homi Bhabha... Mr. Zubin Mehta...  Mr. Nari Contractor... Mr. Farokh Engineer... Mr.Soli Sorabjee... Ms. Persis Khambata... Ms. Daizy Irani... Mr. Homi Wadia... Mr. Rustom Karanjia... Mr. Dinshaw Petit... Mr. Shapurji Pallonji... Mr. Rusy Mody... Mr. Boman Irani... Ms.Perizad Zorabian.. Mr. Cyrus Poonawala... Mr. Shyamak Dawar... Mr. Cyrus Bharucha... Ms. Bachi Karkaria... Mr. Busybee...  Mr. Keki Mistry... Mr. Bejan Daruwala... Mr. Mehraboon Irani... the list is endless.... and above all,  the one and only  FIELD MARSHAL SAM MANEKSHAW !! Each one of us Indians love & respect Parsis...They are best gift by Almighty to India... They are a beautiful People...A beautiful and dignified Race.... I wish we had more of the Parsis who could teach our other greedy minorities as to what minority really means......It means NOT to be parasite or a leech on the host country...It means to give, & NOT to take... All those who are asking for minority status, then and today, ought to be ashamed of themselves. You owe a lot to this nation. Pay back, rather than asking from nation. Kindly circulate. Let it reach to all those who are already minority and to all those who are still asking for ​special status.

Sunday 21 February 2016

रेलगाडी में पनपती दोस्ती - जीवन में रंग भरने वाली

आज मैं और बेटी जल्दी सुबह उठे ,छुट्टी का दिन था
पतिदेव ने पूछा ,कहॉ की तैयारी हो रही है
अपनी ट्रेन वाली सहेली के घर जा रहे हैं
उसके नए घर का उद्घघाटन है
पति अकसर बाहर ही रहते हैं ट्रांसफर वाला जॉब है दूसरा फोर्स में रहने के कारण हर किसी को शक की निगाह से देखना उनका स्वभाव है ,बडबडाते हुए कहने लेगे इसी तरह किसी दिन कोई ठग लेगा
ट्रेन में कौन सी दोस्ती होती है?
पर शायद मुंबई की लोकल में सफर हर रोज सालोसाल एक ही समय सफर करने वालों की दोस्ती बेमिसाल होती है
यहॉ अपने सुख-दुख बॉटे जाते हैं
जन्मदिन मनाया जाता है
एक -दूसरे को सहयोग किया जाता है
अगर आपकी तबियत खराब हो तो झट से मदद के लिए आगे आ जाते हैं
बच्चो के एडमिशन से लेकर लोगों की नौकरी की सिफारश उपलब्ध हो जाती है
यहॉ तक कि सामान बेचने वालीयॉ भी बिना किसी झिझक के विश्वास पर सामान दे देती है
पैसे बाद में देते रहो
साडी पहनना सीखना हो या आइब्रो सब सहायता मिल जाती है
एक तरह से परिवार की तरह लोग हो जाते हैं
यहॉ तक कि मोटरमैन भी
मुझे याद है कि लोकल का टाइम हो जाता था और मैं कभी -कभी सीढी से उतर रही होती थी तो मेरी बेटी पहले से ही हैंडल पकड कर खडी हो जाती थी
अंकल ,चलाना मत ,मेरी मम्मी आ रही है
बहुत सारे अनुभव और सुख -दुख बॉटे हैं यहॉ तक कि सब्जी वाली से सब्जी लेकर साफ भी की है
एक तरह से मुबई की लाइफ लाइन कहीं जाने वाली लोकल कहीं न कहीं जीवन के हर रंगों से हमारा परिचय करवाती है

Saturday 20 February 2016

अपनी जडो से जुडे रहने में ही भलाई है

आजकल बाजार में अंगूर काफी मात्रा में आए है
मन हुआ कि आज खरिद कर घर ले चलू
ठेलेवाले से भाव पूछा तो उसने ९० रूपये किलो बताए
वही बगल में ही कुछ छूटे हुए अंगूर रखे थे
पूछने पर पता चला कि ४० रूपये किलो है
कारण था कि वे अपने गुच्छे से टूट चूके थे
तो उनका मूल्य अाधे से भी कम हो गया था
देखा जाय तो इसमें बहुत बडा संदेश था
अपनी जडो से कभी  अलग नहीं होना चाहिए
नहीं तो हमारा भी महत्तव कम हो जाता है
हमारी जडे ही तो हमारी पहचान है
अकेला तो चना भी भाड नहीं फूकता
अपनों से जुडना और अपनों का साथ कभी नहीं छोडना चाहिए
आज लोग अलग -थलग पडते जा रहे हैं
और पैसों से सब कुछ खरिदना चाह रहे हैं
पर पैसा सुकुन और शॉति नहीं दे सकता
वह तो अपनों में ही मिल सकता है

Friday 19 February 2016

मन तो बच्चा है जी ******

यह कलाकर द्वारा बनाया हुआ है जिसमें दो बडे लोग दिखाई दे रहे हैं
इस ढॉचे में दो वयस्क है जो अलग -अलग दिशा मे मुंह घुमाए बैठे हैं
सबके मन में एक बच्चा होता ही है
लोग समय के साथ बडे और समझदार हो जाते हैं
वक्त सब सिखा देता है
अब सारी दुर्भावनाओं को दूर कर वह एक होना चाहते हैं पर मन का अहम उन्हें अलग नहीं होने देता
बच्चे आपस में लडते झगडते है पर उनके मन में कुछ नहीं होता
उनको एक होते देर नहीं लगती
वहीं बडे कभी -कभी एक मामूली सी बात को लेकर पूरी जिंदगी गुजार देते हैं
इसमें हमारे अपने और अजीज लोग भी होते हैं. 
इसलिए सब अहम छोड कर मन के बच्चे की बात मानना चाहिए
जिंदगी आखिर कितने दिन की है
क्यों न समय रहते ही सचेत हो जाय
बाद में पछताने से क्या फायदा
अपनों के आगे झुकना ही पडे तो झुके
टूटे सुजन मनाइए जौ टूटे सौ बार
      रहिमन फिर -फिर पोइए टूटे मुक्ताहार

       मन  तो बच्चा है  जी

क्या हो गया है हमारी इंसानियत को ...

एक व्यक्ति का एक्सीडेंट हो जाता है
एक्सीडेंट करनेवाला तो भाग जाता है
वह व्यक्ति तडपता रहता है सडक पर
मदद की गुहार लगाता है पर कोई आगे नहीं आता
जाते -जाते वह अपने शरीर के अंगो को भी दान करते जाता है
यह घटना है बंगलूर की जहॉ एक युवा इंजीनियर की यह दुखद मौत हुई है
अगर तोड फोड करना हो  ,बस जलाना हो तो हजारों की तादाद में लोग जूट जाते हैं
पर जीवित को बचाने कोई नहीं आता
लोग तमाशबीन बने रहते हैं

निर्भया कॉड पर लाखों लोग जूट आते हैं
आंदोलन पर उतारू हो जाते हैं
पर निर्भया अगर सडक पर मदद के लिए गुहार लगाए तो कोई नहीं आता
क्यों लोग डरते हैं क्या या इंसानियत ही खत्म हो गई है
समय नहीं है या कौन झंझट ले
कानून व्यवस्था को भी लचर बनाया जाय
बचाने वाले को ज्यादा परेशान न होना पडे
बल्कि उसके लिए उनको सम्मानित किया जाय
एक जिंदगी अनमोल होती है
उसको बचाने की कोशिश करना इससे बडा पुण्य क्या होगा
इस नौजवान ने जाते जाते सिखाया कि मुझे कोई मददगार नहीं मिला
फिर भी मैं मदद करना चाहता हूँ
हरीश की आँखे दान कर दी गई है
शर्म आती है कि इतने अमानवीय कि मोबाइल से पिच्चर ले आगे बढ गए
बाद में कुछ लोग आगे आए  ,अगर समय पर सहायता मिलती तो एक युवा की जिंदगी शायद बच जाती

मैं एक शिक्षक हूँ

हमारा स्वास्थ्य कितना भी खराब हो
हमारे घर में कितनी भी समस्या हो
हम अपने बच्चों पर भले न ध्यान दे
हमारे घर में समारोह हो
पर हमारा ध्यान पाठशाला में
हमें घर पर बात करने की फुर्सत न हो  पर अभिभावकों से बात करना है
हम तो भविष्य बनाते हैं
कितने बिगडैलों को ठीक करते हैं
जीवन का पाठ पढाते हैं
उनकी गल्तियों को माफ करते हैं
उनकी शैतानियों को नजरअंदाज करते हैं
कितना भी इलेक्ट्रानिक युगआ जाय
पर वह तो हाड मॉस का इंसान तो नहीं हो सकता
मशीन पाठ पढा सकता है पर उसमें जान तो नहीं डाल सकता
ऑखों पर चश्मा आ जाता है
जवानी बुढापे की ओर खिसकने लगती है
सारा समय पढने पढाने में लगा देते हैं
हर ज्ञान नई पीढी को देना चाहते हैं
विद्यादान से बेहतर तो कोई दान नहीं
छात्र कितना भी बडा हो जाय
पर हमारे सामने सर झुकाता ही है
हॉ मुझे गर्व है कि मैं शिक्षक हूँ
सही सुना आपने मैं शिक्षक ही हूँ

Wednesday 17 February 2016

आखिर लोग इतना क्रोध क्यों दिखाते हैं?

आजकल भीड का उत्तेजित होना आम बात हो गई है
कुछ भी दुर्घटना हुई कि तोड फोड -फुकना जलाना
आम बात हो गई है
आसपास की गाडियों को फूकना ,शीशे तोडना आम बात हो गई है
जबकि उनका कोई दोष भी नहीं था
चक्का जाम करना जिससे कि सब कुछ बिगड जाता यात्री फंस जाते हैं
समय पर अपने गंतव्य पर नहीं पहुँच पाते हैं
जिसने गलती की है सजा का भागी वह है नकि साधारण लोग
भीड का तो कोई धर्म नहीं होता
सब बिना जाने सुने अपना गुस्सा जाहिर करने पर और हाथ सफाई करने लग जाता है
बिना यह सोचे समझे कि इससे क्या हल निकलेगा
अब तो एक और भी बात चल निकली है
जब तक नेता न आ जाए और मुआवजा न घोषित करे
यह काम बिना तोडे फोडे भी हो सकती है
कानून है न , अगर जो भी दोषी हो उसको सजा मिले
पर नुकसान कर के क्या मिलेगा

Tuesday 16 February 2016

यह हिन्दूस्तान थूकता बहुत है?

बहुत सालों बाद मेरी एक सहेली जो विदेश से आई थी
हमने साथ -साथ घूमने की योजना बनाई
एक टेक्सी किराये पर ली
जब कोई सिग्नल आता टेक्सी ड्राइवर मुँह बाहर निकालकर पिच से थूकता
यह भी नहीं कि वह पान या गुटका खा रहा था पर शायद आदत से मजबूर था
और वही नहीं यहॉ तक कि बगल की गाडी वाला भी उतने समय में बोतल के पानी से कुल्ला कर रहा था
सुबह का समय था कमोबेश ऐसा नजारा देखने के लिए मिल जाएगा
जहॉ पर भी जाओ थुका हुआ मिल जाएगा
कुछ लोग तो बस स्टाप पर बस के इंतजार में जब तक बस नहीं आती पिच पिच थूकते रहते हैं
अगर कोई दूसरा उस जगह आए तो उसका बैठना मुश्किल हो जाता है
सडक को लोग अपनी जागीर समझ लेते हैं
पान खाने वाले और गुटखा वालों की तो पूछिए मत
चाहे कितने स्काई वॉक बन जाए या रेल चला दी जाय
दूसरे दिन ही थूक की पीचों से भरे दिखाई देगे
सरकार और बी एम सी ने भी कितने प्रयत्न किए
पर वही ढाक के पात
याद आता है वाकया जब एक समारोह के वक्त हम सब सडक पर चल कर जा रहे थे
मेरी सहेली ने साडी पहना था और वह साडी एक हाथ ऊपर उठा कर चल रही थी
मेरे कहने पर कि आराम से चलो तो उसका जवाब था
साडी के कारण दिक्कत नहीं हो रही है
दिक्कत तो जो यहॉ -वहॉ थूके है उनके कारण है
मैं नहीं चाहती कि मेरी साडी में गंदगी लिपटे
यह हिन्दूस्तान थूकता बहुत है
मैं अवाक रह गई पर जवाब नहीं दे सकी क्योंकि बात भी सही थी
अगर हम विदेश में होते तो बराबर हमारे मुँह पर ताला लगा रहता
इसका कारण कि हम आजाद देश के नागरिक है
ऐसी आजादी कि उसका गलत फायदा उठाए
प्रधानमंत्री जी कबसे अपील कर रहे हैं
कब लोग इस थूकने और गंदगी करने से बाज आएगे

Sunday 14 February 2016

प्यार आखिर है क्या ? हैपी वैलेंटाईन डे

प्यार जीवन का नाम है प्यार बिना जीवन नीरस हो जाएगा
प्यार त्याग और समर्पण का नाम है
प्यार में हिसाब -किताब नहीं होता
प्यार गणित भी नहीं है जहॉ २+२=४ होता है
यहॉ २+२=७या९ भी हो सकता है
जबसे मनुष्य इस संसार में आया है प्यार किसी न किसी रूप में कायम रहा है
लोगों ने प्यार की खातिर तख्तो -ताज छोड दिये
इतिहास इसका गवाह है
प्यार जबरदस्ती या नापतोल कर नहीं किया जाता
प्यार केवल प्रेमी या प्रेमिका में ही नहीं होता
हर रिश्ते में प्रेम की दरकार होती है
मॉ का प्रेम निस्वार्थ होता है और वह हर त्याग के लिए तत्पर रहती है
पिता ,भाई,बहन दोस्त हर प्यार की अपनी अहमियत होती है
पति -पत्नी का प्यार जहॉ कि दो अंजान शख्स पूरी जिंदगी साथ गुजारने का वादा करते है
इन अंजान रिश्तों से ही खून के रिश्तों यानि संतान का जन्म होता है
प्यार की कोई मर्यादा नहीं होती
इनकी सीमा आकाश और सागर से भी विशाल होती है
हॉ प्यार बशर्ते सच्चा हो
उसमें अविश्वास की कोई गुंजाईश न हो
आज प्यार की परिभाषा बदल रही है
इसमें स्वार्थ धर कर रहा है
इसलिए यह प्यार का बंधन टूट रहा है
आपने जिससे प्यार किया है उसकी खुशी ही आपके लिए सब कुछ होना चाहिए
सामंजस्य की भावना होनी चाहिए
वासना से परे होना चाहिए
याद रखिए हर कामवासना में प्रेम नहीं होता लेकिन हर प्रेम की परिणिती उस पर ही खत्म होती है जिसका नाम है विवाह
और इस सामाजिक संस्था को चलाना हर किसी की जिम्मेदारी है
आजकल बहुत से एकतरफा प्यार के मामले देखे जा रहे हैं जो अपने मुकाम पर न पहुँचने के कारण भयानक रूप धारण कर रहे हैं
प्यार कोई भीख या दान नहीं है जो मॉगने से मिल जाएगा
यह तो ईश्वर की दी हुई वह नियामत है  जिसमें व्यक्ति दूसरे की खुशी के लिए जीता है
यह एक पवित्र अहसास  है
यह हाट और बाजार में नहीं बिकता है इसका कोई मोल नहीं
अत: प्रेम को निभाने और हमेशा कायम रखने की कोशिश जरूर करिए
             
               हैपी वैंलेटाईन.   डे 

Friday 12 February 2016

यह कैसी अभिव्सक्ति की स्वतंत्रता-देश के विरोध में नारे

जवाहरलाल यूनवर्सिटी  के छात्रों का देश की बर्बादी का नारा लगाना यह क्या छात्रों को शोभा देता है
अफजल गुरू का समर्थन करना ,पाकिस्तान जिन्दाबाद
यह कौन सी देशभक्ति है
छात्र देश का भविष्य है ,उनका काम राजनीति करना नहीं है
यह भगतसिंह और गॉधी का देश है
वे लोग भी कभी छात्र रहे हैं
यह इस तरह का व्यवहार क्यों हो रहा है
पाकिस्तान के झंडे फहराए जाते है
क्या यही सहिष्णुता है कि कोई कुछ भी कहे
हर बात की मर्यादा होनी चाहिए
यह तो सरासर देशद्रोह है
आंतकवादी के जनाजे में लोग हजारों की संख्या में शामिल होकर क्या जताना चाहते हैं
अफजल गुरू को आदर्श मानना यह आश्चर्य है
अगर यह इंवेट ही था तो क्या यही विषय मिला
देश इनकी पढाई पर इतना खर्च करता है ग्रान्ट इसलिए नहीं मिलता है
देश की बुराई करना ,शर्म आनी चाहिए
एक तरफ सैनिक अपनी जान की बाजी लगा देते हैं
दूसरी तरफ एक तबका देश की शान को चकनाचूर करने में लगे हैं
क्या संदेश जाएगा हमारे पडोसी को
वह तो ऐसे ही परेशान करता रहता है
इससे तो मनोबल ही बढेगा
छात्रों को अपनी मर्यादा में रहना चाहिए
इसे तो देशद्रोह मानना चाहिए
और ऐसे लोगों पर कडी कारवाई करना चाहिए
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की भी एक सीमा होनी चाहिए

वसंत पंचमी मॉ सरस्वती की पूजा करना यानि शिक्षा का सम्मान करना

लक्षमी और सरस्वती दोनों एक जगह नहीं रहती
यह पुरानी मान्यता थी
पर आज ऐसा नहीं है समय बदला है
फिर  भी कुछ नई पीढी जिनको तुरंत पैसा कमाना है
अच्छी जीवन शैली जीना है वे पढाई छोड कमाने की राह पर चल निकलते हैं हॉ यह बात अलग है कि घर की परिस्थिति अच्छी न हो
पर अगर सब ठीक है फिर भी?
मुझे रेल में सफर करते हुए एक लडकी मिलती थी
हर रोज एक ही डब्बे  में सफर करते हुए जान पहचान हो गई
मैं समझ रही थी कि पढाई कर रही होगी
एक दिन ऐसे ही पूछ लिया ,जो उत्तर मिला सुनकर अवाक रह गई
मेरे पूछने पर कौन से कॉलेज में तो उसने उत्तर दिया ऑटी मैं जॉब करती हूँ
मैंने कहा कि तुम्हारी पढने की उम्र है तो उसने कहा
पढकर भी तो नौकरी ही करनी है ज्यादा पढकर क्या करना है आप ने तो इतनी पढाई की है पर मेरी तो तनख्वाह आपके जितनी ही है
बात सही भी थी कॉल सेंटर वगैरह में काम करते उनको अच्छी सैलरी मिल जाती है
पर पढाई का मोल पैसों से?
यह बात अभी समझ नहीं आती है पर बडी पोस्ट तक पहुंचने के लिए योग्य क्वालिफिकेशन की जरूरत होती है तब पछतावा होता है
शिक्षा का उद्देश्य केवल नौकरी तक ही सीमित नहीं है
यह आपके सोचने और समझने की दिशा तय करता है
एक अच्छा नागरिक और व्यक्ति बनाता है
पैसे तो दूसरे गलत मार्गों से भी कमाया जा सकता है
हमारे पूर्वजों ने सरस्वती पूजा का महत्तव और मॉ सरस्वती की पूजा का विधान किया है
कितना भी पैसा हो जाय वह शिक्षा की जगह नहीं ले सकता
एक पढा -लिखा सामान्य आदमी एक पैसों वाले के सामने मजबूती से खडा रह सकता है
पर एक अमीर कितना भी पैसे वाला हो सामना नहीं कर सकता
सरस्वती की ताकत लक्षमी से कम नहीं

Thursday 11 February 2016

मॉ की ममता अनमोल है

बचपन में एक कहानी पढी थी एक जादू का जंगल होता है एक बूढी औरत और उसका बेटा उस जंगल से गुजर रहे थे अचानक एक नागिन उस लडके पर मोहित हो गई और एक सुंदरी बन गई और लडके से शादी कर ली तथा वह दोनों घर बसाकर वही रहने लगे
अब नागिन बनी हुई बहू मॉ को सताने लगी
लडके का व्यवहार भी बदल गया
बुढियॉ सब कुछ सहती रही
लडके को बहू के बारे में बताने की कोशिश की तथा जंगल छोडने को कहा
पर लडके के  ऑखों पर तो परदा पडा हुआ था
एक दिन उस जादू के जंगल के राजा ने मॉ के सामने प्रस्ताव रखा
हम तुमको एक सुंदरी बना देगे और एक नौजवान से शादी भी करा देगे
घर महल जैसा होगा
अपने बेटे को भूल जाओ और तुम भी नई जिंदगी शुरू करो
इस पर मॉ ने जवाब दिया कि मुझे यह सब नहीं चाहिए
मैं भी एक बेटे की मॉ हूं  , मेरा भी एक बेटा है
इससे ज्यादा अनमोल मेरे लिए कुछ भी नहीं
इतना कहते ही जादू के जंगल में भूचाल आ गया
सब खत्म हो गया
नागिन भाग कर अपने बिल में चली गई
बात यह थी कि उस जंगल को वरदान के साथ शाप भी मिला था कि जब कोई निस्वार्थ भाव से इस जंगल में आएगा तो इसका जादू खत्म हो जाएगा
मॉ की ममता का कोई मोल नहीं
उसके सारे सपने और खुशी अपने बच्चों की खुशी में ही है

Wednesday 10 February 2016

जश्न और खुशी कब तक बंदूक की गोली से

एक नेता के जीत का जश्न मनाया जा रहा था जिससे एक आठ वर्ष के मासूम की जान चली गई
वैसे देखा जाय तो यह पहली घटना नहीं है
इससे पहले भी इस तरह की घटनाएं हो चुकी है
कभी शादी समारोह में तो कभी जीत के जश्न में
बंदूक रखना और चलाना वीरता का प्रतीक माना जाता है जैसे हम कोई आदम युग में रह रहे हो
उत्तर भारत में तो बंदूक लेकर बाइक पर पीछे बैठा हुआ दृश्य आम बात है
बाहुबलियों के साथ बंदुकधारी दिखना तो आम बात है
गॉधी के अहिंसा के देश मे कब तक यह चलेगा
आज अखिलेश सरकार कटघरे में है क्योंकि उनकी ही पार्टी के नेता और कार्यकर्ताओं से यह अपराध हुआ है
अखिलेश नौजवान नेता है तो उनकी सोच भी नई होनी चाहिए
यह जश्न के नाम पर जो बंदूक का खेल चलता है उसको खत्म करना चाहिए
बंदूक लेकर आने जाने और समारोह में उपयोग पर पांबदी लगाने की जरूरत है
बंदूक शान का प्रतीक न होकर सुरक्षा के लिए होना चाहिए
जो भी इस घटना के दोषी है उस पर कडी कारवाई हो
एक बच्चे की जान गई है उसके माता पिता पर क्या बीत रही होगी
फिर ऐसा हादसा न हो  इस बात पर ध्यान देने की जरूरत है
कानून का भी एक अपना वजूद है यह इन बाहुबलियों को याद दिलाने की जरूरत है

Tuesday 9 February 2016

समाज की सोच बदल रही है

झाडू ,डस्टबीन ,जूते ,चप्पल  ,सफाई के है ये औजार
पर इनकी जगह कोनों में या घर के बाहर
अगर ये नहीं रहते तो स्वच्छता नहीं होती
बीमारियों की भरमार होती
जूते ,चप्पल बिना पैर भी असुरक्षित
ऐसे ही इन पेशों से जुडे व्यक्ति को भी हेय दृष्टि से देखना  ,फिर वह चाहे सफाई कर्मचारी हो या जूते -चप्पल सीने वाला मोची
देखा जाय तो असली सम्मान के पात्र यही है
धोबी कपडे धोकर गंदगी साफ करता है
और दूसरे भी व्यवसाय से जुडे लोग कहीं न कहीं समाज के लिए उपयोगी
हमारी जातियों की रचना भी कार्य के आधार पर हुई थी
आज फिर समय बदल रहा है
मॉल में साफ -सफाई करने वाला ब्राहण का लडका भी है 
इसका एक उदाहरण कि एक राज्य में भरती के लिए सफाई कर्मचारियों के पद के लिए हर जाति और वर्ग के लोगों ने फॉर्म भरा है
हॉ यह अलग बात है कि योग्यता का मापदंड केवल साक्षर होने के बावजूद स्नातक भी अर्जी दे रहे हैं
जो कि नौकरी की समस्या की ओर इंगित करती है
स्वेच्छा से अपनाया कार्य और मजबूरी में अपनाया
दोनों मे फर्क है
फिर भी यह बात तो है कि समाज में बदलाव हो रहा है
कोई भी काम छोटा या बडा नहीं