Thursday 27 August 2015

जनसंख्या वृद्धि दो दूना चार ,चार दूना आठ के हिसाब से|

                                                           


२०२२तक भारत की जनसंख्या चीन से आगे निकल जाएगी यानि ईतिहास बदल जाएगा
औलाद भगवान की देन है यह मान्यता और सोच लोगो की है चाहे उनका पालन पोषण न बराबर हो
कुछ पढे लिखे तबके को छोडकर
अगर यही सोच रही तो समस्या कितनी भयावह हो सकती है
नसबंदी जब लागू की गई थी तो लोगो ने उसका विरोध किया था पर आज सोचा जाय तो महसूस होगा कि संजय गॉधी कितने दुरदरशी थे हॉ उस समय उसकी ज्यादती हो गई थी
धरती और जमीन तथा संसाधन तो उतने ही है पर आबादी बढ रही है
अगर यही हाल रहा तो विकास क्या होगा पतन होगा
रोटी कपडा और मकान यह हर व्यक्ति की मूलभुत जरूरत है वह कहॉ से पूरा होगा
लोगो को जागरूक होने की जरूरत है
सरकार को भी कोई ठोस कदम उठाना चाहिए
जनसंख्या और धर्म को आपस मे नही जोडना चाहिए
यह किसी एक की समस्या नही पूरे देश की समस्या है
समाज को भी कुछ करना चाहिए नही तो हम आबादी के बोझ तले दब जाएगे

Friday 7 August 2015

आंतकवादी ,आंतकवादी होता है ,उसका कोई धर्म नही होता|

                                                         

आजकल संसद से लेकर सडक तक चर्चा है फॉसी की सजा को लेकर
क्यो लोगो के हत्यारे और दोषी का क्या करना चाहिए
उसे सजा नही तो फिर जो मुक्त भोगी है उनका क्या?
जिन्होने अपनों को खोया है जीवन से हाथ धो बैठे हैं ऐसे तो दोषी और अपराधियो का मनोबल बढ जाएगा
जिसके जनाजे मे इतने हजारो की संख्या मे लोग शामिल हुए मानो कोई महानायक दुनियॉ से बिदा ले रहा हो
कवि ईकबाल की पंक्तियॉ
मजहब नही सिखाता आपस मे बैर करना
हिन्दी है वतन है हिन्दोस्ता हमारा
देश और वतन पर जान देने को तैयार रहना चाहिए
न कि जान लेना और तबाही फैलाना
हॉ यह जरूर है इससे कोई ठोस हल तो नही निकलेगा
लेकिन इतना विवाद क्यों
आंतक का कोई घर्म नही होता
मरने वाला किसी भी धर्म का हो सकता है
बम किसी को देखकर नही फूटता
आज हमारी बारी तो कल तुम्हारी बारी
इसलिए हर व्यक्ति को आंतकवाद का जमकर विरोध करना चाहिए न कि समर्थन देना.
हिंसा किसी भी समस्या का समाधान नही
जीओ और जीने दो

आज भी मुंशी प्रेम चंद जी उतने ही प्रासंगिक हैं| (Munshi Premchand)

                                                               
आदर्शोन्मुख यथार्थवादी कलाकार एंव उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद जी ने अपनी रचनाओं मे दीन दलित ,पतित शेषित लोगो के यथार्थ जीवन का मार्मिक चित्रण किया है
सेवासदन, प्रेमा श्रम ,रंगभुमी,कर्मभूमी ,शतरंज के खिलाडी, निर्मला,कायाकल्प ,गबन का तो कोई सानी नहीं
कफन ,सवासेर गेहूँ और गोदान तो भारतीय किसान और मजदूर का जीवंत चित्रण है
आज भी किसान की हालत किससे छिपी नही है
आए दिन आत्महत्याएँ हो रही हैं
मुंशी जी ने अपने समय के,अपने देश का,अपने समाज की समस्याओ को बडी सशक्त अभिव्यक्ति दी है
साहित्य समाज का दर्पण होता है
भारत का पूरा समाज उनकी रचनाओं मे समाया हुआ है ,उनकी रचनाओं में ऐसी चेतना है जो कभी नष्ट नही होगी
आज १३५ साल बाद भी ऐसे लगता है कि वे अपनी रचनाओं के माध्यम से जीवंत हो उठे हो
भारतीय हिन्दी साहित्य में वे मील का पत्थर हैं भारत में ही नहीं पूरे विश्व में उनकी जयंती मनाई जा रही है
इस पर हमे गर्व होना चाहिए
ऐसे गुदडी के लाल कभी कभी ही जन्म लेते हैं