Thursday 25 April 2024

Moms will be Moms

*Moms will be Moms...  Doesn’t matter who you are. Here is some Mom talk.*

*Issac Newton's mother--*  "But did you wash the apple before eating it?"

*Archimedes's mother--*  "Didn't you have any shame running naked in the street from?  And, WHO is this girl Eureka???”

*Thomas Edison's mother--*  Of course I am proud that you invented the electric bulb. Now turn it off and get to bed !!!"

*Abraham Lincoln's mother--*  "Now that you have become President for heaven's sake get rid of that shabby tailcoat and stovepipe hat, and buy yourself a decent outfit."

*James Watt's mother--*  "If you just keep watching that damn lid lifting and dropping, rice will be burnt. Turn off the stove now."

*Alexander Graham Bell's mother--*  "You have installed this new silly thing in the house alright, but I do not want girls calling you at odd hours."

*Galileo Galilei's mother--*  "What use is seeing that goddamn moon with your telescope if it does not help me to see my mother in Milano."

*Samuel Morse's mother--*  "Make sure your school report card doesn't have only dashes and dots.”

*Mona Lisa's mother--*  "After all that money your father and I spent on your braces, is that the best smile you can give us ?"

*Michelangelo's mother--*  "Can't you paint on walls like other children? Do you have any idea how hard it is to get that stuff off the ceiling ?"

*Albert Einstein's mother--*  "Can't you do something about your hair ? Use styling gel or something?"

*Bill Gates's mother--*  "You keep browsing all day long; watch out if I ever catch you on any improper web-site."

*Danial Fahrenheit's mother--*  "Stop playing with boiling water and let me make tea."

*Georg Ohm's mother--* "I don't like you resisting everything I say."

*Robert Boyle's mother--*  "If your volume is really inversely proportional to pressure, you must be having a constipation. Take a laxative."

*Alessandro Volta's mother--*  "It is *shocking* to see you all the while dipping those copper and zinc rods in that beaker.”

*Christopher Columbus’ mother--*  "I don't care what you were busy discovering and where, you could still have dropped a two line letter!”

*Dedicated to All Mothers, But for Whom The Human Civilisation wouldn’t Have Progressed.*

Cheers MOMs!!!!!

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Wednesday 24 April 2024

आज के हमारे नेता

नेता हो गए भ्रष्ट 
जनता हो गई त्रस्त 
दलबदलू है मस्त 
आज इसमें कल उसमें 
कुछ न कुछ तो मिल ही जाएंगा 
इस रंग बदलती दुनिया में 
हम क्यों न बदले
क्यों नैतिकता का चोला पहने रहें 
दिखावा करने का जमाना नहीं रहा
अब अंदर - बाहर बस एक ही
सफेद कुर्ते- पैजामे छूट रहें 
पोशाक भी बदल रही
सीधा - साधा का ढोंग बहुत हुआ 
अब तो निशाना है सीधे कुर्सी पर 
जहाँ कुर्सी वहाँ हम 
हमारी मर्जी हम जो चाहे करें 
जनता के सेवक है 
दे रहे हैं ना फ्री में खाना 
बस खाएं 
चुपचाप पडी रहें 
हम ऐश करेंगे और हमारी पीढ़िया भी 

वही होगा जो होना होगा

कल कैसे गुजर गया
पता ही नहीं चला
वैसे ही जैसे मौसम बदल गया
ऋतुओं का क्या है 
आती और जाती रहेंगी
कभी कुछ तो कभी कुछ देती रहेंगी 
कहाँ तक हिसाब रखें 
सोच सोच क्यों डरे 
कल क्या होगा
आने वाले कल का तो पता नहीं 
बीता हुआ कल तो देखा है
वह तो गुजर गया
यह भी गुजर ही जाएंगा
चिंता कर होगा क्या
वही होगा जो होना होगा 

जवानी जिंदाबाद

वो मस्ती की बातें 
वो मस्ती की शामें 
सभी कुछ है जवानी के नामें 
वह जवानी भी थी लाजवाब 
जिसका हर पल था खिलखिलाता
हर बात पर नोक झोंक 
बिना कारण चिल्लाना 
वह गपशप का दौर 
ऑखों में लिए बडे बडे सपने 
वह जवानी भी थी मुस्कराती 
न कोई भूत था ना वर्तमान की खबर 
भविष्य की तो बात ही छोड़ दे 
क्या दौर था वह भी
हसीन इतना कि आज भी याद कर होठों पर हंसी आ जाती है
वे फालतू की बातें अब गुदगुदाती है
मन के किसी कोने में बैठ कर मुस्कराती है
वो बडे बडे ख्वाब जो थे दुनिया से अंजान
सोच कर खुद को ही बेवकूफ मानते हैं 
जीया तो सही एक अलग सी जिंदगानी 
वह जवानी, जवानी भी क्या जिसकी कोई कहानी न हो 
जवानी जिंदाबाद 
हमेशा दिल में जवान बनी रहे 

हे पालनहार

मन में उथल-पुथल 
हो गया दिशा भूल 
असमंजस में है मन
नहीं दिखता कुछ 
अंधेरा ही अंधेरा
ऐसे में घबराता इंसान 
भविष्य से अंजान 
छोड़ता तुम पर दारोमदार 
बस कृपादृष्टि बनाए रखना पालनहार 

Tuesday 23 April 2024

मजबूरी ने मुझे मजबूत बनाया

मजबूरी ने मुझे मजबूत बनाया 
मालूम है कमी मेरी मुझे
मैं कभी मजबूत थी ही नहीं 
लोगों की बातों को दिल से लगा लेनी वाली
किसी को जवाब न दे पाने वाली
अल किस्म की आलसी
न कोई इच्छा न महत्वकांक्षा 
जो मिला उसी में  संतुष्ट 
हर कदम पर समझौता 
न कोई अभिमान न स्वाभिमान 
रूदन और क्रोध मेरे शस्त्र 
जिंदगी जीया नहीं घसीटा मैंने 
आरामतलब तो थी ही
आराम मिला नहीं 
जिंदगी ने कभी छोड़ा ही नहीं 
अनिच्छा से ही सही काम तो किया 
विश्वास नही होता अपने आप पर 
ये ही तो सबसे भारी कमी मुझमें 
अपने को कम ऑकना 
आखिर किया तो मैंने ही
बिना किसी शिकवा - शिकायत के 
आज भी मोम ही हूँ 
जो जरा सी ऑच पर पिघल जाता है
साथ में उस पत्थर सी भी मजबूत हूँ 
जो ठोकरों के बाद भी अपनी जगह से हिलता नहीं है
लोग यहाँ वहाँ से निकल जाते है छोड़ कर 
मैं वही स्थिर हूँ 
सब नजारा देख रही हूँ 
उस जिंदगी को भी 
जो धकियाते मुझे यहाँ तक ले आई
यह बात भी सही है
मजबूरी ने मुझे मजबूत बनाया। 

Monday 22 April 2024

अजनबी

एक कहता रहा
दूसरा सहता रहा
तब तक सब ठीक-ठाक रहा 
सहने - कहने की सीमा एक दिन खत्म हुई 
अब न कोई सह रहा न कह रहा 
एक - दूसरे से बोलचाल भी खत्म हुआ 
अब न दोस्ती न दुश्मनी 
रह गए अजनबी 

भाई का हक कभी न छीनना अपने बेटों के लिए

भाई का हक छीन कर कभी बेटे केलिए संपत्ति मत बनाना 
परिणाम सबको पता है
रामायण से अच्छा उदाहरण क्या है
कैकेयी ने अपने बेटे के लिए राज्य लिया 
एक का हक छीन कर 
परिणाम पूरी अयोध्या को भुगतनी पडी
राम वन वन में भटके तो यहाँ जन जन भी विरह में तडपे 
सदबुद्धि मिली भरत को कि राज्य को अस्वीकार कर दिया 
सिंहासन पर खडाऊं रख शासन किया राम का प्रतिनिधि बन
एक की गलती किसी को चैन से न रहने दी 
वहाँ राम संन्यासी यहाँ भरत संन्यासी 
अगर भरत ने राज्य लिया होता तो आज कैकेयी से ज्यादा घृणित पात्र वे होते 
वह तो माँ थी स्नेह वशीभूत हो किया पर भरत??
उनसे बडा स्वार्थी कोई नहीं होता 
कैकयी कहती है
निज स्वर्ग इसी पर वार दिया था मैंने 
हर तुम तक से अधिकार लिया था मैंने 
वही लाल आज यह रोता है 
पुत्र कुपुत्र भले हो माता हुई न कुमाता 
तब राम कहते हैं 
धन्य धन्य वह एक लाल की माई
जिस जननी ने जना भरत सा भाई
भरत जैसे भाई को जन्म देने वाली माता कुमाता तो हो ही नहीं सकती 
आज तो जग ऐसा स्वार्थी बना बैठा है कि बाप तो धृतराष्ट्र बने ही हैं 
उनकी संतानें भी कौरव ही है 
एक भी युयुत्स जैसा नहीं है
जब मनुष्य को अपनी संतान के सामर्थ्य पर भरोसा न हो 
वह उनके लिए भाई से बेईमानी करने पर उतारू हो
कब तक 
भोगना तो पडेगा 
उनको भी और उनकी संतानों को भी
पाप का भागी नहीं केवल व्याध 
जो तटस्थ है समय लिखेगा उनका भी अपराध

कुसूरवार कौन ??

उसने ही टक्कर मारी 
वह ही चिल्ला रहा था
सामने वाला हतप्रभ खडा था 
उसका तो कोई कुसूर भी नहीं 
चिल्लाने वाले को भी पता था
लेकिन साथ में यह भी जानता था
चिल्लाने का बहुत असर होता है
दुनिया को धारणा बनाने में देर नहीं लगती
झूठ को बार बार सही बताया जाएं 
तब झूठ भी सही लगता है
चिल्लाते - चिल्लाते पीछे मुड़ा 
मुस्करा कर गाडी में बैठा 
ऑखों पर चश्मा चढाया 
गाडी लेकर निकल गया आगे 
दूसरा खडा सोचता रहा 
उसे समझ न आया 
कुसूरवार कौन 
यह सोचते सोचते आगे निकल गया 

Sunday 21 April 2024

डंक मारना

बिच्छू ने डंक मारा हर दम
उसकी ही संतानों ने उसे नोचा तब तक
जब तक मांस का एक टुकड़ा भी रहा तन पर 
यह भी तो कर्मों का ही लेखा है
अपनी ही संतान को जन्म देने से नाश
जिंदगी फिर डंक मारने के लिए तो बचती नहीं है
हाॅ अपने जैसे दो - चार पैदा कर जाती है
मरने के बाद भी निशानी छोड जाती है
कुछ भला तो नहीं किया
नया डंक मारने वाले को तैयार कर दिया 
समाज में भी बहुत से बिच्छू घूम रहे हैं 
कुछ हैं नहीं 
लेकिन उनके वारिस हैं तहलका मचाने को
लोगों को डराने को
लूट पाट मचाने को
विरासत में मिलती है यह सत्ता 
अपराध जगत के बादशाह का बेटा भी बादशाह ही रहता है
हुकुमत चलाता है
यह सिलसिला चलता रहा है
समाज देखता रहा है
सदियों से यही होता आया है ।

समंदर की शक्ति

समंदर को बहुत घमंड था अपनी शक्ति का 
सबको डुबा सकता है यह उसको लगा
तभी एक तेल की बूँद कहीं से आई
उस पर उतराने लगी
समंदर जद्दोजहद में लगा रहा
डुबा उसको ना पाया
वह चमकती रही
लहरों की मौज में खेलती रही
एहसास हुआ समंदर को भी
हर कुछ मेरे भी बस में नहीं 

Saturday 20 April 2024

नजर - गुजर

वह बेच रही थी नींबू- मिर्ची 
नजर ना लगे गाडी को 
सिग्नल पर गाडी खडी थी
पीठ पर बांधे बच्चा
कहती ले लो
तपती धूप में बच्चा लिए
उसके स्वास्थ्य का न सोच
नजर की बात कर रही है
पता है ना उसको
नजर के बहाने ही सही 
गुजर तो होगा 
गरीब को नजर नहीं लगती
उसके पेट में भूख लगती है
धूप - बरखा तो अमीरी की बातें है
उसके सामने तो गुजारा करने की बात है

Friday 19 April 2024

सब है राम भरोसे

जब जब अतीत में झाँका 
कुछ लोग बहुत याद आए 
इनमें से कुछ गम देने वाले थे 
तो खुशी देने वाले भी थे
अपने भी थे 
पराए भी थे
कुछ सबक सिखाने वाले थे
कुछ हाथ पकड़कर राह दिखाने वाले थे
कुछ ने तो तंग भी किया
कुछ ने खुले दिल से अपनाया 
कभी अपने काम ना आएं 
कभी अजनबी काम आए 
ऐसे ही जीवन नैया लगी किनारे 
किनारे पहुँच झांकते अतीत में 
सब कुछ समाया इसमें 
बहुमूल्य मोती भी कंकड़ भी
कभी-कभी कंकड़ चुभे भी 
हमने परवाह नहीं की 
मोती चुनने में लगे रहें 
खाली हाथ तो नहीं रहे 
कुछ ना कुछ तो हासिल ही हुआ
कुछ नसीब कुछ कर्म हमारे 
हंसी आती है 
अतीत जैसा भी था
इतना बुरा भी नहीं 
लाजवाब भी था 
अनुभव से भरा था 
अतीत और भूत के बीच
आज वर्तमान में खडे होकर 
अतीत दिख रहा है भूत नहीं 
उसमें झांकना संभव भी नहीं 
सब है राम भरोसे 

Thursday 18 April 2024

राम को प्रणाम


क्रोध को जिसने जीता हैं
जिनकी भार्या सीता हैं
जो भरत शत्रुघ्न लक्ष्मण के हैं भ्राता
जिनके चरणों में हैं हनुमंत लला
वो पुरुषोत्तम राम हैं
भक्तो में जिनके प्राण हैं
ऐसे मर्यादा पुरुषोत्तम राम को
कोटि कोटि प्रणाम हैं..                                                

सावधान

ये दुनिया है जनाब
यहाँ तो रब को नहीं बख्शते 
हाड - मांस के इंसान की क्या औकात है
मत सोचो ऐसा क्यों हुआ
यही होना था 
हाँ तुम अंजान थे
भावना से भरे थे
उनके लिए जो पत्थर से भी कठोर 
पत्थर भी लहरों से टकरा कर टूट जाता है
ये पिघलने वालों में नहीं 
तुमको पिघला डालेगे 
खत्म कर देंगे 
संभल कर रहना होगा
अंजान से भले न हो सावधान
अपनों से रहें हमेशा सावधान 

Wednesday 17 April 2024

किस बात का फिर गुरूर ऐ समुंदर

इतना गुरूर अच्छा नहीं ऐ समुंदर 
माना कि तू विशाल है
तुझमें बहुसंख्य रत्न समाएं हैं 
तेरी थाह लेना कठिन है 
तेरी गहराई कोई माप ही नहीं सकता
प्रकृति का विध्वंश तुझमें समाया है
सारी नदियाँ तुझमें ही समाती है
इसके बाद भी लोग तुझे देखने ही जाते हैं 
तू किसी के काम नहीं आ सकता 
ना किसी प्यासे की प्यास बुझा सकता है
इतना जल है पर तेरी एक बूँद भी कोई काम की नहीं 
किस बात का फिर गुरूर करता है
अपने विध्वंसक होने का 
तू किसी को अपनाता नहीं 
सबको बाहर किनारे पर फेंक देता है
ना अपना सकता ना जीवन दान दे सकता 
तो तेरा होना या ना होना 
कुछ मायने नहीं रखता 
होगा तू विशाल 
उस बात से हमें क्यों मलाल 
तू अपनी रौ में हम अपनी रौ में बहते रहें 
तू अपनी मौज में लहराता रह
हम अपनी मौज में खुशी बांटते रहें 
इसी बात का सुकून 
होना उसका होना जो किसी के काम आए 




इस बार की रामनवमी कुछ खास है

इस बार की रामनवमी कुछ खास है
मेरे राम आए हैं अपनी अयोध्या में 
ये वही राम है जिसने एक क्षण भी बिना सोचे पिता की आज्ञा मान वन गमन कर गए 
ये वही राम हैं जो पत्नी के लिए लंकाधिपति से युद्ध ठान लिया था
ये वही राम हैं जो लखन के लिए जार जार रोए थे
ये वही राम हैं जिसने सिंधु को चुनौती दे डाली थी
ये वही राम है जिसने सुग्रीव और विभिषण जैसे निष्कासितो को राजा बना दिया
ये वही राम है जिसने राजमोह नहीं किया अपनी जन्म भूमि अयोध्या लौट आए थे
ये वही राजा राम है जिसने प्रजा की आज्ञा को शिरोधार्य किया 
भले पत्नी का त्याग करना पडा
ये वही राजा राम हैं जहाँ बहुपत्नी प्रथा के बावजूद एक पत्नी व्रती रहे
मूर्ति के साथ बैठना मंजूर था पर सीता के सिवाय और किसी के साथ नहीं 
राम राम कहने से कुछ नहीं होता
राम जैसा बनना पडेगा 
राम ईश्वर थे या नहीं कुछ लोगों के लिए 
लेकिन मानव तो वे थे ही 
क्या क्या नहीं झेला तब भी सदा मर्यादा में रहे मेरे राम
राम है तो भारत है
राम बिना तो सब सूना 
अब विराजें हैं 
खूब खुशियाँ मनाओ
यह रामनवमी तो कुछ खास है 

Tuesday 16 April 2024

देखा था ख्वाब

कभी हम देखते थे ख्वाब बडे बडे
जिंदगी ने ऐसा धकियाया 
सब रह गए धरे के धरे 
जब रूबरू हुए उससे 
समझ आया 
सब वैसा नहीं होता जैसा हमने चाहा 
ऐसा नहीं कि ख्वाब देखना बंद कर दिया
नहीं जनाब 
इतनी जल्दी कहाँ हार मानेंगे 
कभी अपने  लिए देखा था
आज अपनों के लिए देख रहे हैं 
न रूके हैं न थमे हैं 
अभी भी दो दो हाथ करने में लगे हैं 
चलते रहो चलते रहो
हमारे न सही अपनों के ही सही
उनमें ही हम सुकून पा लेंगे 
एक ही जिंदगी थोड़ी ही है हमारी 
ना जाने कितनी साथ लिए चलते हैं 
ख्वाब तो अभी भी हैं और रहेंगे भी 

नशा तो नशा ही है

नशा , नशा होता है
जब चढता है तब सर चढकर बोलता है
किसी को धन का नशा 
किसी को किताब का नशा 
किसी को गाॅसिप का नशा 
किसी को शराब का नशा
नशे में डुबकी लगाता हुआ शख्स 
बस एक ही दिखता है उसे चारो ओर 
वह नशे में इस तरह डूबता है 
उसको और कुछ नहीं दिखता 
भले घर बर्बाद हो
भले अपराधी बनना हो 
भले ऊंचाई पर पहुंचना  हो 
यह ध्यान रखा जाना चाहिए 
कि नशा कैसा है 
यह हमको गिराता है या ऊंचा उठाता है
नशे में डुबकी लगाओ जी भर कर 
बस थोड़ा संभल कर 

Monday 15 April 2024

बाबासाहब आम्बेडकर

आज टी वी पर न्यूज देख रही थी
बाबासाहब की जयंती पर लोग दर्शन करने आए थे कतार में खड़े थे 
पत्रकार महोदय के पूछने पर एक महिला ने जवाब दिया 
हमको किसी पार्टी से मतलब नहीं है ना मंदिर - मस्जिद से लेना - देना है
न हम व्रत - उपवास करते हैं ना किसी साधु - महात्मा के पास जाते हैं 
हमारे सर्वेसर्वा यही हैं 
एक क्षण को तो लगा कि क्या कह रही है
तभी मन से आवाज आई 
सही तो कह रही है ।उनके लिए तो यह महामानव ही भगवान है
भगवान के रास्ते भी तो उनके लिए बंद थे
मनुष्य समझा ही नहीं जाता था अछूत माना जाता था
आज सर उठाकर बात कर रहे हैं 
सफलता का परचम फहरा रहे हैं 
बराबरी का हक दिया है संविधान निर्माता ने 
तब उनको भगवान मानना लाजमी है
ईश्वर को नहीं देखा पर ईश्वर के रूप में मनुष्य को देखा है 
वह है बाबा साहब आम्बेडकर 🙏🙏🙏🙏

अपनी जमीन

आसमां भी जमी से दिखता है
आसमां की ऊंचाई तक पहुंचना है
पैर अपने जमीन पर रखना होगा
पैर अगर लडखडाए तो जमी संभाल ही लेंगी 
आसमां से गिरे तो वह नहीं आएगा संभालने 
धडाम से बस नीचे 
जमी को कसकर पकड़ रखना है 
वह कभी साथ नहीं छोड़ेगी 
परिस्थिति चाहे जो हो
जमी तो अपनी ही है 

Sunday 14 April 2024

बेरोजगार को रोजगार

कुछ युवकों की बात चीत 

एक - यार बोर हो गए घर में बैठ
दूसरा- हर कोई हिकारत की नजर से देखता है भाई
तीसरा - अपनी तो कोई इज्जत ही नहीं 
चौथा  - खाने के लाले पडे हैं और इसे इज्जत की पडी है
तभी एक आता है उछलते हुए 
क्या हुआ क्या हुआ     सब बोल पडे 
अरे इलेक्शन आ रहा है भाई
सब को कार्य कर्ता चाहिए 
चाय - नाश्ता  , खाना - पीना और पैसा ऊपर से
इसके अलावा मान - सम्मान 
भविष्य में नेता भी बन सकते हैं 
यहाँ बैठे रहते हैं निठल्ले और गप्प- शप ही 
सभा में बैठेंगे और भाषण सुनेंगे 
यहाँ- वहाँ भटकने से अच्छा  रैली  में चलेगे 
रोजगार मिल रहा है ना बस
हर दिन किसी न किसी की रैली 
कुछ दिनों का तो जुगाड़ हो ही जाएंगा 
फिर आगे जीतने पर भी जुलुस 
मजे ही मजे 
तब फिर चलते हैं और सब उठ खडे हुए 
हंसते - खिलखिलाते चल पडे 

किसी ने सही कहा है
हाथों में पत्थर और होठों पर नारा 
यही है भविष्य हमारा  

पछतावा

पत्थर समझा मुझे 
कदर नहीं की 
जब मेरा मूल्यांकन हुआ
तब जाकर समझ आया
क्या खोया 
अब चाहते हो संभालना 
एक बार जो चला गया
वापस नहीं लौटता 
जिसने कदर की 
वह जौहरी बना 
मुझे तराशा - संवारा 
मुझे बहुमूल्य बनाया 
गलती तुम्हारी भी नहीं 
जो जैसा सोच उसकी 
अब सोचते रहो
क्या खो दिया 
हासिल कुछ नहीं 
बस पछतावा के सिवाय 

Saturday 13 April 2024

मेरी पार्टी

कल तक मैं तुम्हारा खास था
तुममें जान बसती थी
तुम्हारे विरूद्ध कुछ सुनने को तैयार नहीं होता
भिड जाता किससे भी 
मारने - मरने पर उतारू हो जाता 
आज मैं बदल गया 
तुमसे मेरा कोई वास्ता नहीं 
तुम्हारे यहाँ कुछ रखा नहीं 
कुछ मलाई मिलने वाली नहीं 
सिद्धांतों का रोना मत रोओ
सिद्धांत गए भाड में 
तुम एक नंबर के कट्टर दुश्मन मेरे 
अब मेरा और तुम्हारे बीच कुछ नहीं 
मैंने अब पार्टी बदल ली है
तुमको छोड़ दूसरे दल में शामिल हो गया है
बुरा मत मानना 
यही तो आज की राजनीति है
इसे मतलब कहो स्वार्थ कहो या खुदगर्जी कहो
जहाँ माल वहीं सबका झुकाव 

हिसाब क्या करना??

सोचो नहीं करो
बैठो नहीं उठो
उठो नहीं चलो
चलो नहीं दौड़ो 
तब तक जब तक शक्ति 
हारना तो कायरता 
गिरे तो क्या 
उठे भी तो
खडे भी हुए 
दौड़े भी 
कुछ ना कुछ तो पाया
यही तो मन में सुकून 
प्रयास तो किया 
क्या खोया क्या पाया 
इसका हिसाब क्या करना 

Friday 12 April 2024

हवा और मैं

हवा बहती रही
कान में कुछ कहती रही
मैं समझ पाती 
इससे पहले ही वह चली गई 
अपने होने का एहसास करा गई
अब समझी 
क्या कह रही थी वह
मत रहो बंद घर में 
मुझ सा गतिमान रहो
एक जगह बैठ जंग लग जाएंगी 
बंद में अजीब सी गंध होगी
आना - जाना होता है
कुछ अपनी कुछ दूसरों की 
आपस में बातें होती है
कुछ हम सीखे कुछ वह सीखे 
तब वह नजारा कुछ और ही होता है 

मैं कर्ण । हर बार छला गया

मैं कर्ण हमेशा ही छला गया
जन्म देते ही माँ ने  छला 
ना कोई दोष मेरा ,  तब भी मुझे नदी में बहाया 
कवच कुंडल के साथ जन्म मेरा 
सूर्य पुत्र होकर भी रहा सदा अंधेरा 
जाति के आधार पर बांटा गया 
गुरू द्वारा ही मेरी विद्या छीनी गयी 
कवच - कुंडल अर्जुन के पिता इन्द्र ने मांग लिया 
मैं दानी बना रहा जीवनपर्यन्त 
हर किसी ने मुझसे कुछ ना कुछ माँगा 
कभी मित्रता के नाम पर कभी पुत्र के नाम पर 
मृत्यु के समय पर भी छला ही गया
रथ का पहिया धंसा था मैं निकालने में प्रयत्नशील 
निशस्त्र मुझ पर वार किया गया 
वह भी सुदर्शन चक्र धारी के कहने पर जो मेरे ही कर्मों की सजा मुझे दिला रहे थे
अर्जुन के साथ तो समाज , माता - पिता और स्वयं कृष्ण थे तो वह कैसे पराजित होता 
क्या गलती केवल मेरी ही थी पूरा समाज सहभागी नहीं था 
सबको जीवन देने वाले त्रिलोकपति सामने खडे थे मैं लाचार उनसे अपना जीवन भी नहीं मांग सका 
आदेश ही उनका था तो याचना किससे करता 
दोष किसका था यह तो पता नहीं 
छला तो मैं ही गया हर बार 

वाह ।क्या कहने

सुबह की कुनकुनी धूप हो
चिडियों की चहचहाहट हो
हाथ में एक चाय की प्याली हो
सामने अखबार की सुर्खिया हो
रेडियो पर रफी के गाने हो
जब सुबह ऐसी हो 
तब अपने आप ही निकले 
वाह । क्या कहने 

सोचो अगर भूख ना होती तो

सोचो अगर भूख ना होती
सब पडे रहते आराम से
ना काम ना जाने कोई फिकर 
घूमते रहते सोते रहते
ना कोई अमीर होता ना कोई गरीब होता
सब मनमौजी होते
आटे - दाल - चावल की फिक्र नहीं 
रोजी के लिए कोई जुगाड़ करना ही नहीं 
एकदम आजाद प्राणी 
ना परिवार संभालने की जिम्मेदारी ना कुछ और 
लेकिन यह पेट जो मिला है आदमी को
जीवन के सारे रास्ते यही से जाते हैं 
यही से हर राह निकलती है 
तन - मन सब इसी से चलता
भूख क्या ना कराये??
इसलिए तो ईश्वर ने पेट बनाया 
उसमें भूख बनायी 
ताउम्र भरते रहो 
यह कभी भरता नहीं 
भूख ना होती तो शायद इंसान, इंसान भी ना होता ।

Thursday 11 April 2024

हाथ जोड़ राम राम

मैं उनसे मिली पहली बार
महसूस किया 
कितने अच्छे लोग हैं 
मुलाकातों का सिलसिला बढता गया
मन खोलकर उनके सामने रखते रहें 
पता नहीं था कि
यह ताक में बैठे हैं 
मन में द्वेष लिए हैं 
ये लोग दोस्त नहीं प्रचारक हैं 
यहाँ- वहाँ की बातें करना
चुगली - चपाटी उनका शगल है
ये मशगूल रहते हैं हमेशा 
दूसरों का मजाक बनाने में 
इस बात से अंजान 
मजाक वे खुद बन रहे हैं 
संज्ञा मिली है पंचायती की 
उन्हें देख लोग मुख मोड लेते हैं 
राह बदल लेते हैं 
इस बात से अंजान या संज्ञान 
वे ही जाने 
हाँ हम जान गए हैं 
ऐसे लोगों से ना नजदीकी ना दूरी 
बस हाथ जोड़कर 
राम - राम 

Wednesday 10 April 2024

धरती का हिस्सा

अवशेष रह ही जाते हैं 
कुछ खत्म नहीं होता 
जिंदा रहते हैं किसी न किसी रूप में 
कोई यादों में कोई किताबों में 
कोई खंडहर में कोई इमारत में 
कोई किसी के चेहरे में कोई किसी के हाव भाव में 
कोई बातों में कोई कहकहों में 
कोई किस्से कहानियों में कोई विरासत में 
खत्म कैसे होगा 
पानी भी अपना निशान छोड़ जाता है
पता नहीं पत्थर को कौन कौन सा रूप दे जाता है
हम ढूंढते रहते निशानियां मंदिरों में 
ईश्वर भी तो रहता गीता - रामायण में 
सब कुछ यही से उपजा यही समाया 
मिट्टी गवाह है 
उसका हर कण-कण गवाह है
मिट्टी को मिट्टी में मिलना है 
यह सर्वविदित है 
कर्म तो करना है
जन्म- मृत्यु का चक्र चलता रहेगा 
ना जाने कितनी योनियों में हम आते रहेंगे 
इतिहास भी रहेगा भूगोल भी रहेगा 
विज्ञान भी रहेगा 
यह जब तक तब तक हम भी जिंदा रहेंगे 
किसी न किसी रूप में धरती का हिस्सा रहेंगे ।

बिस्किट

किसी ने कहा 
बिस्किट का जमाना गया साहब 
मैंने कहा नहीं 
ऐसा नहीं है
बिस्किट तो बिस्किट है 
हर जगह उपलब्ध है
आकार - प्रकार बदले
स्वाद तरह तरह के
कभी मीठा कभी नमकीन कभी चीजों
कुछ मिले ना मिले 
यह मिल जाएगा हर घर 
सफर में भी इसका आधार 
बडे छोटे , अमीर गरीब 
हर किसी को भाता
बिस्किट का जमाना कहीं नही जाता
कल भी आज भी और कल भी
हर मौसम का साथी

अब वह गांव वैसा नहीं रहा

वह नीम पर झूला 
आम की बगिया में बैठे गप्प शप
आंगन के बीचो-बीच खटिया डाल कहानियों का दौर 
बरसात में ओसारे में से बूंदें टपकना
छत पर सो कर तारें गिनना 
झुंड बना दिन ढले लोटा पार्टी 
शादी - ब्याह में गाली - मजाक 
बच्चों के जन्म पर सोहर 
किसी की बरही तो किसी की तेरही
आए दिन न्योता 
कडाह में खौलते रस का गरम गरम गुड 
आग तापते होरहा भूज कर खाना 
ठंड में पुआल पर सोना 
पोखर में डुबकी लगाना 
रहट की घुंघरू बजाते बैल 
घानी पर तेल पेरवाते 
कुएँ में रस्सी और बाल्टी से पानी निकालना 
ऑधी बाद टपके आम और महुआ को बीनने की होड
अमरूद तोडना और जामुन हिलाना 
बरफगोला खाना और माइक्रोस्कोप से चित्र देखना 
मेले में जा गुडही जलेबी और पकौडी का लुत्फ उठाना 
भडभूजन के यहाँ भूजा भुजवाना 
चक्की - जाता चलाते कजरी का दौर 
मूसल और ओखली - सिल - बट्टा की भी पूजा 
बरम बाबा , डीह बाबा , भैरो बाबा 
शीतला माई ना जाने किन किन को पूजा जाना
कढाई चढाना , मन्नतें मांगना 
पात में बैठ कर लपकने को खीर तैयार 
सत्यनारायण की कथा में सबको स्मरण कर गाना 
ऐसे ना जाने कितनी यादें जेहन में समाई
अब वह गांव वैसा नहीं रहा
जैसा हमने छोड़ा था 

Tuesday 9 April 2024

मैं मिट्टी का दीपक

मैं मिट्टी का दीपक 
जलना मेरा काम
लाख आंधियाँ या तूफान हो
कब तक मुझे डराएगी 
मैं बुझ बुझ कर जल उठता हूँ 
जब तक रहें तेल और बाती
लाख अंधेरा गहरा हो
राह दिखाना मेरा काम 
कर्तव्य पथ में पीछे रहना
यह मेरा है स्वभाव नहीं 

आज तो माता का दिन है

आज तो माता का दिन है
घोड़े पर सवार वे आ रही है
अपना आशीर्वाद बरसाने
मांगना हो जो मांग लो 
झोली फैलाकर 
वह खुशी-खुशी डाल देंगी 
धूप - दीप जला आरती कर लो 
फल - फूल , मिष्ठान्न चढाओ 
उनसे विनंती कर
अपनी मनोकामना पूरी कर लो 
माता की कृपा तो सदैव बरसती रहती है
फिर भी यह नवरात्रि के नव दिन विशेष है
नव वर्ष की शुरुआत है
वह भी माता के आशीर्वाद से 
संकोच मत करना
वे माॅ हैं यह ध्यान रखना 

आपस का प्यार

बहुत दुख होता है 
माँ को बुढापे की ओर अग्रसर होते देखना
घर की धुरी जो होती है
उसे एक शिथिल देखना
बच्चों की उम्मीदें तो खत्म नहीं होती
जो उनका जहां है वह ऐसे ??
कभी घुटनों में नी कैप
कभी गले में पट्टा 
कभी आयोडेक्स की खुशबू 
कभी गर्म पानी की थैली 
वह इधर-उधर डोलती माँ 
अब जल्दी से उठने में भी असमर्थ 
माँ भी कहाँ दिखाती है
लेकिन शरीर तो गवाही देता है
चटपटा खाने वाली अब हजम होना मुश्किल 
तब माॅ खिलाती थी 
अब बच्चे जिद करते है खिलाने की
कैसे खाएं 
अब न वह , वह रही
न बच्चे , बच्चे रहें 
अब वह बूढी और बच्चे बडे 
हाॅ दोनों का मन स्वीकार करने को तैयार नहीं 
बच्चों को माॅ भी पहले वाली ही लगती है
माँ को भी बच्चे अभी भी बच्चे लगते हैं 
भले वह सुने नहीं माॅ बताना छोड़ती नहीं 
बच्चों को सुनना गंवारा नहीं 
अब वह सिखाते हैं और वे सही भी होते हैं 
नयी पीढ़ी जो हैं एक कदम आगे ही रहती है
उम्र का फासला भले बढ जाएं 
दिल का फासला कायम रहें 
 एक ही चीज नहीं बदलती 
वह है आपस का प्यार 



चैत्र नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं

प्रथम महीना चैत से गिन
राम जनम का जिसमें दिन।।

द्वितीय माह आया वैशाख।
वैसाखी पंचनद की साख।।

ज्येष्ठ मास को जान तीसरा।
अब तो जाड़ा सबको बिसरा।।

चौथा मास आया आषाढ़।
नदियों में आती है बाढ़।। 

पांचवें सावन घेरे बदरी।
झूला झूलो गाओ कजरी।।

भादौ मास को जानो छठा।
कृष्ण जन्म की सुन्दर छटा।। 

मास सातवां लगा कुंआर(आश्विन)।
दुर्गा पूजा की आई बहार।। 

कार्तिक मास आठवां आए।
दीवाली के दीप जलाए।।

नवां महीना आया अगहन।
सीता बनीं राम की दुल्हन।। 

पूस मास है क्रम में दस।
पीओ सब गन्ने का रस।।

ग्यारहवां मास माघ को गाओ।
समरसता का भाव जगाओ।। 

मास बारहवां फाल्गुन आया।
साथ में होली के रंग लाया।। 

बारह मास हुए अब पूरे।
छोड़ो न कोई काम अधूरे।।

नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें।

Monday 8 April 2024

मेरा मन

मैं करता रहा बुराई उनकी
इस बहाने छुपाता रहा कमजोरी अपनी
मैं जानता हूँ 
मैं क्या हूँ 
अपनी कमियां मुझे पता है
हाॅ स्वीकार नहीं कर पाता 
दूसरों के कंधे पर धर बंदूक बहुत चलाता हूँ 
मन तो धिक्कारता है
सुकून नहीं पाता हूँ 
पर इतनी हिम्मत नहीं जुटा पाता हूँ 
कह सकूँ कि हाँ 
कहना बहुत मुश्किल है
अपने को जानना क्या इतना कठिन है 
दूसरों को कटघरे में खड़ा कर 
क्या मैं चैन से सो पाता हूँ 
लोगों को तो नहीं पता
खुद को मन के कटघरे में खड़ा पाता हूँ 

मेरी कामयाबी

कई बार झुका 
कई बार टूटा
कई बार गिरा
तब इस मुकाम पर पहुंचा
कभी-कभी लगा 
अब सब खत्म 
तभी एक आशा की किरण दिखती 
अभी तो बहुत कुछ करना है
अभी से हार मान ली
तो कैसे चलेगा
हिम्मत बंधाता मन 
पीछे से ढकेलता 
फिर से उठा देता
हम खडे होते लंगडाते लंगडाते 
गिरते पडते , उठते बैठते
इस मुकाम पर पहुंच ही गए 
अब आगे देखना है 
पीछे मुड़कर याद कर मुस्कराना है
अपनी कामयाबी पर इतराना है 

Sunday 7 April 2024

माँ- बेटी

माँ मैं किसे कहूँ 

धीरे- धीरे मेरी बेटी 
मेरी ही माँ बन रही है 

आज तक मैंने उसे संभाला 
अब वह मुझे संभाल रही है 

फर्क है खूब
दोनों एक-दूसरे को संभाल रहे हैं 

मैं कहती हूँ उससे 
ज्यादा मत बोल
वह कहती मुझसे 
फालतू का बडबड मत करो

मैं कहती हूँ 
अब इतना खाना मैं नहीं खा सकती
वह कहती मुझसे 
नाटक मत दिखाओ 
चुपचाप खा लो 

मैं सुबह उठती 
वह कहती 
सोए रहो 
उठ कर क्या करना है

मुझे लगता 
उसकी इच्छा पूरी नहीं की मैंने 
वह कहती 
मेरे बारे में ज्यादा मत सोचो 

मुझे मोबाइल में रमा देख
वह कहती 
कुछ बात करों 
क्या मोबाइल लेकर बैठी हो

मुझे घूमने नहीं जाना
वह जबरदस्ती करती 
चलो जरा बाहर निकलो

मैंने तो उसे कपडे नहीं दिलाए मनपसंद 
वह ब्रांडेड दिलाती है
ऊपर से डाटकर कहती है 
आपकी पसंद तो सडेली है

वह मेरा हाथ पकड़ कर 
मुझे रास्ता क्रास करवाती 
मैं डरकर 
इधर-उधर देखती
मुझ पर विश्वास नहीं क्या 
मरने नहीं दूंगी 

मैंने नुक्कड़ और गली के चाट - पकौडा खाया
वह मुझे बडे बडे होटल में ले जाती है
मैं छुरी - कांटे को देखती हसरत से
वह कहती हाथ से खाओ

मैं अपने को कुछ नहीं समझती 
वह मुझमें जमाने भर की खूबियाँ देखती है
आप यह कर सकती हो वह कर सकती हो

ना जाने वह अपनी माँ को क्या समझती है
लोग बेटी को सिखाते हैं 
वह मुझे सिखा रही है

अब पता नहीं चला
कब वह बेटी से माँ हो गई 
मैं माँ से अंजान - ना समझ बेटी
यह बात सब नहीं समझेंगे 
बस माँ- बेटी ही समझेंगे

हारने से मैं डरता नहीं

हारने से मैं डरता नहीं 
गिरने से मैं डरता नहीं 
यह जानता हूँ 
डर के आगे जीत है
गिर गिर कर ही सही 
मंजिल हासिल कर ही लूँगा 
तूफानों का सामना करना मुझे आता है
उडना है बादलों को चीर कर 
आकाश में  उडान जरूर भर लूंगा 
बिजली का क्या है
वह चमकती - कडकती रहेंगी
मैं उसमें भी रास्ता ढूढ लूंगा 
हारने से मैं डरता नहीं। 

बचपन में पैसा

मैंने बचपन में पैसा मिट्टी में गाडा था 
सोचा इन पैसों से पैसों का बडा पेड बनेगा
उस पर पैसे ही पैसे होंगे 
जब चाहेंगे हिला कर झाड लेंगे 
कुछ समय बाद देखा
पैसा तो वैसे का वैसा ही था
यह बीज थोड़ी था कि उसके अंकुर फूटेंगे 
और बडा से पेड बनेगा 
जब चाहे तोड़ लेंगे 
तब पता नहीं था
पैसे पेड़ पर नहीं उगते हैं 
मेहनत करना पडता है
कर्म करना पडता है
पैसा पेड़ तो नहीं 
आपको बडा बना देता है
बिना लक्ष्मी के कोई इज्जत नहीं करता
यह व्यक्ति के जीवन को आसान बना देता है
अगर पैसा है तो सब कुछ हासिल कर सकते हैं 
पैसे को जमीन में नहीं गाडना है 
उसे कैसे हासिल करना है 
यह बडी बात है 

Saturday 6 April 2024

गए थे हम उनके घर

गए थे हम उनके घर
वह जिसे अपना समझा था
जहाँ अपना वहाँ औपचारिकता का क्या काम 
हमें लगा हमारे जाने पर मुख पर मुस्कान आ जाएंगी
बांछें खिल उठेंगी 
बिना बताएं जाएंगे
एक आनंददायक सरप्राइज देंगे 
पर यह क्या ?
यहाँ तो ऐसा कोई भाव नहीं दिखा
चेहरे पर मुस्कान की तो छोड़ दो चेहरा ही उतर गया 
सब एक-दूसरे को कनखियों से देखने लगे
ऐसा लगा मानों कोई पहाड़ टूट पडा
यह कहाँ से आफत की बला आ गई 
सब प्लान चौपट हो गया
कह तो सके नहीं मन मसोसकर रह गए 
ऐसा लगा कि जैसे हमारे समय की तो वैल्यू ही नहीं है
खैर आवभगत हुई 
चाय - पानी का दौर चला
जब आए दरवाजे तक छोड़ने 
कह ही दिया 
ऐसे कभी किसी के घर नहीं आते हैं 
आना हो तो पहले से इनफार्म करके आना
हमने सर हिलाकर कहा - ठीक है
याद आया कि हमारे दरवाजे हमेशा खुले रहते थे
जिसको आना हो आए
दूध वाली चाय भले ना देते  हो सम्मान भरपूर देते थे
सब सदस्य एकत्रित हो बैठ बतियाते थे
हमको लगा 
अब जमाना बदल गया है 
लोगों की भावना बदल गई है
अब हमको भी बदलना पडेगा
बिना बताएं चाहे कितना भी खास हो
बिना बुलाएं बिना बताएं नहीं जाना है
सबक मिला अच्छा 
गये तो थे सरप्राइज देने
सरप्राइज लेकर आ गए। 

यहाँ क्या मिला

मत पूछो 
यहाँ क्या मिला 
जो भी मिला लाजवाब मिला
किसी का प्रेम मिला तो किसी का अपनापन
किसी की हंसी मिली तो किसी की निश्छल मुस्कान 
किसी की नजरों में सम्मान मिला
किसी के दिल में अपना वास मिला
बुढापे की झुर्रियों में छिपा त्याग मिला
स्वर्ग से आशीर्वाद देता कोई अपना मिला
किसी की तोतली बोली में अपना अख्श मिला
किसी के नन्हीं ठुमकती चालों में अपना बचपन मिला
किसी के गुस्से में अपने लिए चिंता मिली
किसी की झिडकी में भरपूर प्यार मिला
इस संसार में क्या रखा है 
सब बेकार है
अरे अपनों का साथ है
पद और प्रतिष्ठा है
जीवन जीने का साधन है
एक सुंदर सा घर है
ईश्वर की कृपा से इतना कुछ है
ज्यादा नहीं फिर भी है
संघर्षों से सामना पडा अवश्य 
वह जिंदगी भी क्या जो समतल हो
उबड खाबड़, उतार- चढ़ाव 
इससे तो भागा नहीं जा सकता 
सामना कर हासिल करना 
तभी तो जिंदगी मुस्कराएगी 
सांस चलना और गतिशीलता जिन्दा रहने की निशानी
ईश्वर की कृपा से सब सही सलामत है 
और क्या चाहिए 
जो भी मिला लाजवाब मिला 

तन्हाई

तन्हाई में बैठे तो सोचा
कुछ अपने बारे में 
कुछ गुफ्तगु की 
बहुत समय बाद खुद से खुद की मुलाकात हुई 
ये तन्हाइयां इतनी भी बुरी नहीं 
जैसी लगती है
स्वयं से रूबरू कराती है
प्रकृति से साक्षात्कार करवाती है
पहाड़ों और समुंदर से परिचय करवाती है
कंदराओं में बैठे बैठे ही देवों के पास ले जाती है
भक्ति का मर्म समझाती है
कहने को यह बस तन्हाई है
पूरे जग को अपने में समेटे 
बस ढूढना है खोजना है
सब अंतर्मन में ही समाया है
किसी और संग की क्या जरूरत 
तन्हाई ही हमारी सबसे अच्छी संगी है 

Friday 5 April 2024

प्यार के नाम पर

बात कपड़े पहनने की थी 
हमेशा मार्डन रहने वाली से पति ने कहा
मेरे लिए क्या इतना भी नहीं कर सकती हो
उसने मुस्कराकर मान लिया
बात खाना बनाने की थी जो उसकी रूचि में समाविष्ट नहीं 
पति की फर्माइश थी 
तुम्हारे हाथ का अच्छा लगता है
उसने दुनिया भर के व्यंजन सीख लिए
ऐसे ना जाने कितनी अपने को बदल लेती है 
कब पति की पसंद उसकी पसंद हो जाती है 
उसे पता ही नहीं चलता और 
वह असतित्व और व्यक्तित्व दोनों समाप्त कर कठपुतली बन जाती है प्यार के नाम पर 

चुनाव आए हैं

चुनाव का मौसम आ गया है 
गर्म वातावरण और गर्मा गया है
दलबदल शुरू हो गया
एक दूसरे पर दोषारोपण 
पार्टी छोड दूसरे में शामिल 
नैतिकता की दुहाई दे रहे 
छोडने का कारण बता रहे 
एक - दूसरे को दोषी ठहरा रहें 
जबकि बात तो कुछ और है 
समझ सबको आ रही है
सत्ता का लालच और अपना स्वार्थ 
जिस देश में गाँव का प्रधान भी मालामाल हो जाता पांच साल में 
तब नेता की बात तो छोड़ ही दे
भ्रष्टाचार की बात तो बेमानी 
सबकी झोली भरी है 
जनता के पैसों पर ऐश
करोडों का हेरा - फेर
आदत हो गई है 
फुटबाल की तरह ढुलको 
जहाँ मिले मलाईदार कुर्सी 
सब किस्सा कुर्सी का है
बहाना छोडने का तो बस दिखावा है ।

Thursday 4 April 2024

वही होगा जो होना होगा

कल कैसे गुजर गया
पता ही नहीं चला
वैसे ही जैसे मौसम बदल गया
ऋतुओं का क्या है 
आती और जाती रहेंगी
कभी कुछ तो कभी कुछ देती रहेंगी 
कहाँ तक हिसाब रखें 
सोच सोच क्यों डरे 
कल क्या होगा
आने वाले कल का तो पता नहीं 
बीता हुआ कल तो देखा है
वह तो गुजर गया
यह भी गुजर ही जाएंगा
चिंता कर होगा क्या
वही होगा जो होना होगा 

Wednesday 3 April 2024

यादों कीसंदूक

आज यादों की संदूकची खोली
कैमरे की तरह हर रील ऑखों के आगे घूमने लगी
वो लम्हें वो पल 
सब याद आने लगे
ना जाने कितनी प्यारी प्यारी तस्वीर संजो रखी है मन में 
लगा कि देखते ही रह जाऊं 
उन क्षणों में खो जाऊं 
बिना कारण के 
रूठना - मनाना  , रोना - हंसना , चिल्लाना - मुस्कराना 
हर बात में शिकवा - शिकायत 
क्या दौर था वह भी 
चलो कोई बात नहीं 
साथ भले ना हो याद तो है
उसी में झूम लेते हैं 
कहकहे लगा लेते हैं 
मन से तो नजदीक है
वही क्या कम है ।

Monday 1 April 2024

April fool

अप्रैल आया है
पहली अप्रैल को अप्रैल फूल 
यही तो बात छिपी है इसमें 
हिसाब किताब का महीना मार्च 
अप्रैल से नया शुरू 
अब तक जो किया सो किया 
अब हिसाब बराबर रखें 
जिंदगी के हर पहलू का 
परीक्षा का हो
पैसे और लेन देन का हो 
या और कोई और 
अबसे सचेत 
अब तक जिसमें भी fool बनते रहे
अब होशियार बन जाओ
जीवन का गुणा - गणित करों 
फाइनेंशियल ईयर की शुरुआत 
कहाँ क्या मिला कहाँ क्या छूटा 
सब गुणा भाग जोड़ घटाने का हिसाब कर
एक मस्त सी प्लानिंग करों 
सबको April fool बनाओ 

सबको पता है

मुझे पता है
बस एक ही सहारा है 
तब भी क्यों दुविधा में रहता मन
क्यों देखता इधर-उधर 
क्या विश्वास नहीं उस पर
जब वह चाहे तो फिर कोई क्या करें 
सब पता है तब भी
मानव हैं ना हम
सोचना हमारी फितरत है
हाथ - पैर मारना हमारा स्वभाव है
होगा वही जो वह चाहें 
हमारे चाहने और ना चाहने से कोई फर्क नहीं पडता
हम कभी तो द्रोपदी बन जाते कभी अर्जुन 
अर्जुन की तरह समझ नहीं आता 
द्रौपदी की तरह सब पर आस लगाएं 
इसमें दोष है किसका
पत्ता भी नहीं हिलता जिनकी मर्जी से
यह पता है हमको भी सबको भी
ब्रह्माण्ड की शक्ति के आगे सब विवश 
ऐसा नहीं होता तो रावण का राज चलता
दुर्योधन का व्यभिचार चलता
शकुनि की कुटिलता चलती
सब खतम हुए
छीनने चाहे तो एक झटके में छीन ले 
देना चाहे तो सुदामा के जैसे दो लोक दे दे 
अर्जुन का सारथी बन रथ हांक दे 
सब पता है तब भी
कर्म का संदेश भी तो उन्हीं प्रभु का है
गीता का सार ही है कर्म 
तब कर्म करो और सब उस पर छोड़ दें 
फलदाता  - न्यायकर्ता सब वही हैं 
यह भी सबको पता है 

मुझे यह बनना है

हर बच्चे को कुछ न कुछ बनना है
सबको बडा ओहदा 
जैसे डाक्टर इंजीनियर और अफसर 
और सब काम जैसे काम नहीं 
यही सोच रख 
या तो बन पाते हैं या कुछ बनते नहीं 
माता-पिता और रिश्तेदार 
सब की यही कामना 
बजाय इन सबके
पहले तो उसे इंसान बनाएं 
दुनिया से रूबरू करवाए 
शिक्षा और मेहनत का महत्व समझाए 
जीने का ढंग समझाए 
संघर्षों से सामना करना सिखाएं 
हर परिस्थिति में रहना सिखाएं 
इतना आसान नहीं है जीना
पग पग पर कांटे बिछे हैं 
उन पर चलना होगा
आग का दरिया पार करना होगा
तब जाकर जीवन नैया पार लगेंगी 
जो बनना है वह बन जाएंगा 
अगर उसे जीवन का मर्म समझ आ जाएंगा।