Thursday 31 December 2020

अपने बारे में सोचो

आज बस कुछ नहीं सुनना है
कुछ नहीं कहना है
न किसी का संग न किसी का साथ
बस रहना अकेला है
छोड़ो मुझे मेरे हाल पर
तंग आ गई दुनिया के झमेलो से
बहुत कुछ किया
बहुत कुछ सहा
अब सब छोड़ना है
बस रहना अकेला है
बडी बेरहम दुनिया
इसमें इसका भी कोई नहीं कसूर
ऐसी ही वृत्ति होगी
तभी टिक पाना होगा आसान
नहीं तो चकरघिन्नी काटते - काटते सब तमाम
तमाशा बन जाएंगे
तमाशा देखने वाले सिक्का उछालेगे
सिक्के की खनखनाहट में सब दब जाएंगा
मायूस सा देखते रह जाएंगे
सिसकते रह जाएंगे
समय रहते नहीं चेता
तब नहीं बचेगा कुछ भी
छोड़ झमेले को
आगे बढ चलो
अपने बारे में सोचो
बस अपने बारे में

स्वागत है आपका 2021

कुछ नई आशा
कुछ नये सपने
कुछ नई उमंगें
मन में है समाई
बीता सो बीता
उसकी क्या कहें
वह तो नजरबंदी थी
अब तो मुक्त हो

बहुत रुलाया
बहुत सताया
बहुतों के घर - संसार उजाड़े
बहुतों की जिंदगियां छिनी
नौकरी - कारोबार छुड़वाया
घर पर बेकार बिठलाया
तब भी कोई बात नहीं
जो हुआ सो हुआ

आज भी खुदा की नियामत है
सांसें सही - सलामत है
उसी की मेहरबानी है
आज भी जिंदगी हमारी है
है अपनों के बीच
यही क्या है कम

आते रहते हैं झंझावात
वह भी गुजर जाता है
नया दौर शुरू होता है
बीता कल को याद करें या न करें
आने वाले कल का स्वागत करें
ईश्वर का शुक्रिया अदा करें
हमारी सांस हमारे साथ है
जब तक सांस तब तक आस
यही फलसफा समझाना और समझना है
फिर उठ कर चलना है
वक्त के साथ - साथ
सांसों की डोर को कस कर पकड़ रखना है
हर जतन करना है
बाकी सब ऊपरवाले पर छोड़ देना है

Wednesday 30 December 2020

अक्ल ठिकाने आ गई

दो हजार बीस ने बहुत कुछ कराया
घर बिठलाया
खाना बनवाया
बर्तन धुलवाया
झाडू - पोछा लगवाया
कपडे धुलवाया
सामान ढुलवाया
लाईन लगवाया
बोझा उठवाया
इतना सब करने के बाद भी पत्नी के ताने सुनवाया
इससे तो भाई ऑफिस अच्छा था
चाय पर चर्चा होती थी
गप्पा गोष्ठी होती थी
शाम को थक हार घर आते थे
तब खिदमतदारी होती थी
चाय - नाश्ता - पानी सब हाजिर रहता था
ठाठ रहता था
सुबह सुबह टिफिन से लेकर इस्तरी के कपडे तक
आखिर अब अपनी औकात समझ मे आ गई
घर में रहो तो सब करों
कोई किसी का गुलाम नहीं
काम करोंगे तब ही खैर
अन्यथा करना पडेगा यह सब
कुछ काम नहीं दिन भर
अब पता चला
दिन भर काम ही काम
ऊंट पहाड़ के नीचे आ गया
तब उसकी अक्ल ठिकाने आ गई

बीस करोना को भी ले जा

दो हजार बीस
अलविदा ले रहा है
कैसे याद करें तुझे
तू तो सब पर बीस पडा
क्या क्या सपने बुने थे
क्या - क्या सोचा था
सब गडबड हो गया
सारे ताम झाम धरे के धरे रह गए
लोग घरों में कैद होकर रह गए

किसी की रोजी-रोटी छिनी
कोई भूख से बिलबिलाया
कोई मौत के आगोश में सो गया
न जाने कितनों के अपने बिछडे
इस दुनिया से रूखसत हो गए
अपने ही अपने से न मिल सके
न जाने क्या - क्या सहा गया
सारी दुनिया ठप्प पड गई
आवागमन के सारे साधन बंद
सब लाॅक डाउन हो गए

जाते - जाते तुझे बिदा करना है
मन में डर समाया है
अब तो जाते जा कुछ अच्छा कर जा
इस घातक बीमारी से निजात दिला जा
अपने साथ इसे भी ले जा
सुन पड रहा है
एक नया भी आ रहा है
अब बहुत हो गया
बस भी कर
अब सब मुश्किल हो गया है
कब तक ऐसे चलेंगा
बीस अब तू जा
करोना को भी ले जा
गो करोना गो करोना गो करोना

एक फौजी की जिंदगानी

फौजी की माँ
फौजी की पत्नी
फौजी के भाई , पिता , चाचा
फौजी के बेटे - बेटी
फौजी का बाकी परिवार
फौजी के दोस्त - रिश्तेदार
फौजी का गाँव
फौजी का शहर
फौजी का देश
सबको गर्व उस पर
हो भी क्यों न
आखिर वह उनके लिए जीता - मरता
उसका जीवन उसका नहीं
जिस दिन फौज में भरती
फर्ज का कर्ज उतारने की जिम्मेदारी
वह  सारे रिश्तों - नातों से अलग
बस एक ही
जब जाता है वह बार्डर पर
सारी मोह - माया सब यही रह जाना है
उसको एक ही लक्ष्य ध्यान रखना होता है
दुश्मन का जवाब
उस पर वार
गोली का जवाब गोली से
उसका दिल नहीं धडकता
उसकी गोली धडधडाती है
किसी का धड तो किसी का सर चीर जाती है
इस पर वह झूम उठता है
दुश्मन के लिए तो  कहर बन जाता है
फर्ज अदा करते - करते शहीद हो जाता है
अंत तक वह बस फौजी ही रहता है
यही दास्तां है उसकी
देश उसकी शहादत को नमन करता है
सबके ऑखों में ऑसू छोड़
वह हंसते हंसते इस दुनिया से कूच कर जाता है
यही उसकी जिंदगानी
यही उसकी कहानी

मैं बस माँ हूँ

जब तक मैं हूँ
तब तक ऑच न आने दूंगी
मैं आगे-आगे चलूँ
तू पीछे - पीछे चल
तुझ पर आने से पहले हर पीडा हर लूंगी
अपने ऑचल में समा लूंगी
मैं माॅ हूँ न
अपनी संतान का साथ नहीं छोड़ सकती
उसे वीराने में भटकने नहीं दे सकती
हर तूफान का सामना करूँगी
उस पर किसी का बुरे साया न पडने दूंगी
जो करना पडे वह सब करूँगी
खुद कीचड़ में रहूँ
तुझे कमल बना रखूगी
तुझे खिलता देखना
महकता देखना
मुस्कराता देखना
यही मेरी इच्छा और आंकाक्षा
अपनी इच्छा तो पीछे रह गई
जब तुझे जन्म दिया
मैं औरत से माँ बन गई
अपना व्यक्तित्व तुझ में समाहित कर लिया
मैं , मैं न रहकर बस माँ रह गई

Monday 28 December 2020

पसंद - नापसंद

मेरी पसंद
पसंद यह शब्द तो मेरी लाइफ में बचा नहीं
दूसरों की पसंद याद है
अपनी पसंद की छोड़ो
वह हुई गुजरे जमाने की बात

तब भी पसंद को कहाँ थी अहमियत
हाँ लड - झगड़कर कुछ हो जाता पसंदीदा
समोसे और कचौरी चुपके से खा लेती
नखरे उठाने का जमाना नहीं
एक की पसंद वह सबकी पसंद

अब तो वह भी नहीं
पति की पसंद
बेटे - बेटी की पसंद
उनकी ख्वाहिशे को पूरा करना
उनका पसंदीदा भोजन बनाना
उनसे बचे तो खा लो
बेकार होने के डर से खा लो
कभी बासी कभी खुरचन कभी छोड़ा
मोह के मारे कुछ छोडा नहीं जाता
जोड जोड़ कर मिला है
तभी कुछ फेंका नहीं जाता
हंसी आती है स्वयं पर

मालकिन हूँ
न कोई रोकटोक
तब भी
होता है शायद
हमारे ही नहीं
अमूमन हर गृहिणी के साथ
गृहस्थी का भार उठाते उठाते
अपनी पसंद का तो छोड़ दो
वह तो अपने को ही भूल बैठती है

ईश्वर का सहारा

दो पहर बीत गया
तीसरा चल रहा है
दो कैसे बीते
पता नहीं चला
बाधा आई
पार हुई
जोश - खरोश था
उमंग - उत्साह था
सहनशीलता - धीरता थी
अब तीसरे में धीरे-धीरे सब ढल रहा है
पहले जहाँ निडर
अब वही डर रहा है
चिंता है चौथे पहर की
अभी तो ढलान शुरू हुई
आगे का क्या ?
कैसा रहेगा
कैसे बीतेगा
किसके सहारे
सब क्षीण हो रहा है
सारी शक्ति
देह और मन
इसमें उलझा है सब
जिनके लिए किया जतन सारा
वही हो गए बेगाने
अपने मे हुए मशगूल
जिनके लिए थे कभी पल - पल हम मजबूर
पालन - पोषण , शिक्षा - दीक्षा
अपने को भूल इसी में लगे रहे हम
वही छोड़ गए हमें
अब तो है उसका ही भरोसा
अंत समय में वही याद आता है हमेशा
बस ईश्वर का ही है सहारा

माली और उसकी बगिया

मैने बीज बोया
अंकुर निकले
कोंपले उभरी
दिन प्रतिदिन बडा हो रहा था
मैं उसकी देखभाल करती
सबसे बचाती
चिडियाँ , चुरूंग , चूहे से
खाद - पानी देती
थोड़ा बडा हुआ
तब धीरे-धीरे चिंता कम हुई
तब भी राह भटके पशुओं का भक्ष न बन जाए
इसलिए पहरा देती रहती
आज वह बडा हो गया
बौर , फूल , फल भी आ गए
अब वैसी चिंता नहीं रही
अब तो वह स्वयं दूसरों का आधार है
पक्षी उस पर आसरा लेते हैं
पशु और यात्री विश्राम करते हैं
अच्छा लगता है
हरियाली से भरा फलों से लदा
लहलहाते और झूमते
मैंने सोचा मेरी जिम्मेदारी खत्म हो गई
फिर लगा नहीं
अभी तो यह भी डर है
कोई पत्थर न मारे
डाल न तोड़े
काटकर न ले जाएं
उसको नुकसान हो
पीड़ा हो
यह मैं नहीं सह सकती
अब भी उतनी ही शिद्दत से देखभाल
जिसको लगाया है उसे ऐसे ही कैसे छोड़ दूं
वहीं बात तो संतान पर लागू होती है
जन्मदात्री हूँ
भले बडा हो गया हो
अपने पैरों पर खड़ा हो
तब भी चिंता तो रहती है
कुछ अनिष्ट न हो
खडा भले न हुआ जाता हो
उसके लिए कुछ बनाना अच्छा लगता है
माँ रहे और संतान का पेट न भरे
यह कैसे संभव
अपने जीते जी जन्मदाता उस पर ऑच कैसे आने दे सकते हैं
संतान कोई भी हो
कैसी भी हो
बेटा हो या बेटी हो
माली अपनी बगिया को हमेशा लहलहाता ही देखना चाहता है
महकता ही देखना चाहता है

Sunday 27 December 2020

राम की सीता

मुझे राम मिले
तब स्वयं को सीता बनना पडेगा
एक पत्नी व्रत
पत्नी ही प्राण प्रिया
उसके लिए कुछ भी कर गुजरना
यहाँ तक कि रावण जैसे योद्धा से युद्ध ठान लेना
पत्नी के लिए वन वन भटकना
पत्नी पर पूर्ण विश्वास
किसी और के कहने से पत्नी को वन गमन
राज धर्म निभाने के लिए
पर पत्नी मन में बसी रही
वहाँ से न बहिष्कृत हुई
न तिरस्कृत हुई
प्रेम और सम्मान के साथ ह्दय में विराजमान
यह तो हुए राम
सीता बनना भी तो जरूरी
बिना शिकवा शिकायत के
महलों को छोड़ पति संग चल पडी
वन वन भटकी पर चेहरे पर शिकन न आने दी
जनकदुलारी कुटिया में रहीं
रसोई से लेकर जल भरने तक गृहस्थी का हर कार्य किया
जिसकी वह अभ्यस्त नहीं थी
गृहस्थी धर्म निभाने के लिए ही तो वह देवर लक्ष्मण की अग्नि रेखा तोड़ संन्यासी रावण को भिक्षा देने आई थी
रावण के सामने झुकी नहीं
हर प्रलोभन दिया गया
वह टस से मस नहीं हुई
अपने पति पर विश्वास था
एक कोमलांगी राजकुमारी से राम की पत्नी का धर्म
महलों से बहिष्कृत होने पर कोई शिकायत नहीं
अकेले उस राजा के बच्चों का पालन-पोषण
जिन्होंने उन्हें राज धर्म निभाने के लिए वन भेज दिया
धरती पुत्री थी
महल उन्हें शायद रास नहीं आया
पहले भी बाद में भी
आखिर धरती माँ की गोद में ही शरण
पुत्री , पत्नी , माँ और अयोध्या की महारानी
हर कर्तव्य बखूबी निभाया
राम , राम है उसका कारण उनकी जीवनसंगीनी सीता हैं

आपके अपने

अपनों को मत छोड़ो
उनकी गलतियाँ नजरअंदाज करों
अगर नाराज है आप उनसे किसी बात पर
उन नजारों और खुशहाल पलों को याद कर ले
अपनी नजर में भर लें
उनके साथ का समय
वह हंसना - खिलखिलाना
वह मान - मनौवल
वह रूठना - मनाना
वह खाना - खिलाना
वह अपनापन जताना
कमियां उनमें हैं तो आप में भी तो होगी
कमी एक ढूंढोगे तब हजार मिल जाएंगी
आप संपूर्णता को मत ढूंढिए
अपनेपन और प्यार को महसूस कीजिये
अपनों को सब माफ होता है
आप अपने हैं
तब आप दूर कैसे हो सकते हैं
जो अपना है वहाँ पराया कहाँ से
दूर जो हो गए
यानि आपके तो वे थे ही नहीं
न आप उनके
जो अपना है
वह जैसा भी है
अपना ही है

Friday 25 December 2020

अटल बिहारी वाजपेयी

आज एक राजनेता का जन्मदिन है
आज एक कवि का भी जन्मदिन है
दोनों एक ही व्यक्ति है
कौन किस पर भारी
यह बताना जरा मुश्किल
समझ गए होंगे
आज अटल बिहारी वाजपेयी जी का जन्मदिन
राजनीति के शुष्क रेगिस्तान में कविता का सुर
जब ऑख बंद कर हाथ हिला हिलाकर बोलते थे
तब सुनने वाले भी झूम उठते थे
समझने का प्रयास करते थे
आखिर यह कवि कहना क्या चाह रहा है
अंदर गहराई में उतरना पडता था
भाषा पर प्रभुत्व
भाषण देने की कला में माहिर
लेखनी भी लाजवाब
एक राजनीति का छलबल
कभी-कभी इस कवि को रास नहीं आता था
पर प्रेम तो राजनीति से प्रगाढ़ था
कविता उनका शौक थी
राजनीति उनका धर्म और कर्म थी
दीपक से लेकर कमल खिलाने की यात्रा
इतनी आसान नहीं थी
सत्ता पक्ष का मुंह अकेले बंद कर देना
राजनीति का माहिर खिलाडी
जब कविता उछाल मारती थी
तब वह भी बाहर आती थी
एक शासक और एक कवि
बडा विरोधाभास है
फिर भी वाजपेयी जी तो वाजपेयी जी थे
अटल और धुन के पक्के
   क्या हार में क्या जीत में
    किंचित नहीं भयभीत मैं
    कर्तव्य पथ पर जो मिला
        यह भी सही
            वह भी सही

नजर का कमाल

नजरों से नजर मिली
एक - दूसरे में रम गई
तुम मेरे मैं तुम्हारी हो गई
क्या अजीब वाकया हो गया
मैं तुम और तुम मैं हो गए
न हम हम रहे न तुम तुम रहे
दोनों एक-दूसरे के होकर रह गए
नजर का कमाल हो गया

साथ हमारा

देखा था पहली बार
जब तुमने फेरी थी नजर
वह नजर इस तरह बसी
अब तक है जीवित
प्रफुल्लित हो उठा था मन
मन कह उठा था
यही है मेरे सपनों वाला राजकुमार
मिल जाएं किसी तरह
इसकी नजर में भी बस जाऊं
तब जी भर कर लहराऊ
इतराऊ और झूमू
झूम उठी
जब संदेशे में हाॅ आया था
वह नजर जो तब मिली
वह पलकें जो तब झुकी
अब भी है वहीं ठहरी
आज ऑखों में तुम ही बसे
तुम ही से देखना
महसूस करना
इसी तरह रहे जीना
बना रहे साथ हमारा

जो हुआ वही सही

हमारा - तुम्हारा रिश्ता
था जबरदस्ती का
घरवालों की मर्जी थी
नहीं मेरी चलती थी
बांध दिया
ब्याह के बंधन में
पसंद - नापसंद का नहीं कोई सवाल
वह अलग जमाना था
न देखना न सुनना
बस जीवन भर के लिए बंध जाना
तब लगता था विचित्र
आज लगता है उचित
प्रेम का परवान चढता है धीरे-धीरे
हर पल हर क्षण सीखता - सिखाता
संबंधों को मजबूत बनाता
इतना मजबूत कि वह टूटता नहीं
जो कभी मजबूर वह आज मजबूत
अब महसूस होता है कभी-कभी
जो हुआ वही सही

ज्ञान है जरूरी

प्रणाम करती हूँ अपने जन्मदाता को
वह भाग्य-विधाता तो नहीं
जीवनदाता जरूर है
जीना सिखलाया
ऊंगली पकड़ चलना सिखलाया
संघर्षों का सामना करना सिखाया
हार को जीत में बदलना सिखाया
हर वह बात सिखायी
जो तरक्की की राह पर ले जाती
सबसे बडी देन है उनकी पढाई
ज्ञान था किताबी
वह पडा सब पर भारी
रोटी ही क्यों बनाएं बेटी
कपड़ा - बर्तन , साफ - सफाई
यह कोई मुश्किल नहीं भाई
पहले कमाई
उसके दम पर सब हो जाई
सबसे बडा रूपैया
जब वह हो जेब में
तब जम जाय सब
ज्ञान है जरूरी
जो करता जीवन की हर कमी पूरी

हमारा - तुम्हारा

ऐ दोस्त
मेरा तजुर्बा कमाल का है
यह बालों की सफेदी एक दिन में नहीं
बरसों की तपस्या का परिणाम है
जिया है जिंदगी अपने हिसाब से
हर हिस्से का सुख भोग लिया
हर काम का अंजाम देख लिया
कौन अपना कौन पराया
यह भी जान लिया
कुछ समय नहीं
बरसों लग जाते हैं
तब परिचित होते हैं असलियत से
भ्रम दूर हो जाता है
जीवन का अर्थ समझ आ जाता है
क्या लेना क्या देना
क्या पाना क्या खोना
सब यहीं रह जाना है
अंत समय बस अकेले ही रह जाना है
साथी , दोस्त , यार सब छूट जाना है
सांस भी एक दिन छोड़ जाएंगी
हमारा - तुम्हारा सब धरा रह जाएगा

Thursday 24 December 2020

जग ही नाटक है

हंसना नाटक
रोना नाटक
बतियाना नाटक
प्यार  नाटक
जग ही नाटक
हम पात्र हैं
हम सब नाच रहे हैं
कभी अभिनय करते हैं
कभी स्वाभाविक हो जाता है
बिना करें बिना कहें
रंगमंच के हम खिलाडी
क्या सचमुच हैं अनाड़ी
हम नहीं जानते
क्या कर रहे हैं
या जान बूझकर अंजान बन रहे हैं
हर तरह के पात्रो से पटी पडी है दुनिया
जो चाहे ढूंढ लो
असली भी नकली भी
गजब का बनावटी भी
जीवन के रंगमंच पर
हर किरदार निराले हैं
यहाँ तो हर बात लगती नाटक है
जग ही नाटक है
अपने किरदार पर डालकर परदा
           हर शख्स कह रहा है
                   जमाना खराब है

इतिहास में विभिषण

मैंने भाई का साथ छोड़ा
उसे धोखा दिया
उसका राज खोला
उसकी मृत्यु का कारण बना
मुझे घर का भेदी कहा गया

मैं भाई था दशानन का
पुलस्तय त्रृषि का नाती
महर्षि विश्रवा का पुत्र
कुबेर का भाई
महान कुल का वारिस

यह कैसे देख सकता था
भाई को अधर्म करते हुए
महान शिव भक्त और वेदों के ज्ञाता
बडे भाई को तुच्छ और नीच कार्य करते हुए
किसी की पत्नी का हरण
यह मेरे बलशाली भाई को शोभा नहीं देता था
मैंने समझाने की कोशिश की
मुझे लात मारकर दरबार से बाहर कर दिया गया

पाप का घडा तो भर रहा था
मैं पाप का साथ नहीं दे सकता था
अन्याय और अत्याचार के खिलाफ था
मैं प्रभु भक्त था
उन्हीं की शरण में जाना उचित समझा
रावण को भी तो समझाया
वह न माना तब मेरा क्या दोष
खुद डूबे और पूरे कुल को ले डूबे

हाँ मैंने नाभि में अमृत कुंड होने की बात प्रभु को बताई
मैं उनकी परेशानी नहीं देख पा रहा था
वह न्याय के लिए लड रहे थे
और उनका साथ देना मेरा कर्तव्य बन रहा था
मैं दुश्मन खेमे में जो था
शक्ति या युक्ति किसी भी तरह से प्रभु को जीत दिलाना था
दशानन ने तो पहले ही तिरस्कृत कर दिया था

भाई से बहुत प्रेम था
अमरता का वरदान रास नहीं आया
महा ज्ञानी , शिव भक्त
पाप पर पाप किये जा रहा था
मरना तो था तब राम के हाथों क्यों नहीं ??
यह बात तो रावण भी जानते थे
तभी तो मृत्यु के द्वार पर खडे भगवान को देख पूछा था
तुम जीते कि मैं जीता
प्रभु बोले निःसंदेह मैं
तब हंसते हुए दशानन का जवाब था
मैं जीता हूँ
आज भी तुम लंका के प्रवेश द्वार पर खडे हो
मैं तुम्हारे सामने तुम्हारे लोक को जा रहा हूँ पूरे कुल सहित

उन्हें मालूम था
साधारण वनवासी उन्हें मार नहीं सकता
इस भक्त को मारने और तारने के लिए ईश्वर को तो स्वयं आना पडा
मैं तो निमित्त मात्र था
मृत्यु तो निश्चित थी
भाई के शत्रु पक्ष में था
पर भाई की हार
एक एक कर कुल के सदस्यों का जाना
मैं विवश था कुछ नहीं कर पा रहा था
मैंने अपना कर्तव्य किया
लोगों को अत्याचार और अनाचार से मुक्त कराने में प्रभु का सहभागी बना
यह एक दिन तो होना ही था और हुआ

एकला चलो

हम अकेले ही आए थे
अकेले ही जाना है
फिर भी डरता है
जब अकेला होता है
हर समय किसी का साथ चाहता
भीड़ का हिस्सा बना रहना
क्यों नहीं रहता विश्वास है
हम अकेले हैं
तब भी निराले हैं
अलग से रहना
अलग से कुछ करना
यह सबके बस की बात नहीं
अकेला रहना
अकेला चलना
यह भी कोई साधारण बात नहीं

बेटा तो बेटा ही होता है

एक वंश बिनु भईले हानि
के देइ चुरूवा भर पानि
सच है यह
बेटा बेटी एक समान
फिर भी बेटे की है मांग
सदियों चली आ रही परम्परा
कुछ तो होगी बात
ऐसे ही नहीं कुलदीपक कहलाता है
अपने साथ वंश का बोझ लेकर चलता है
सारा दारोमदार उसी के कंधों पर
बेटी विवश हो जाती है
वह किसी के अधीन होती है
बेटा विवश नहीं
वह अपनी इच्छा का स्वामी होता है
स्वतंत्र होता है
बेटा होता है तब गजब का विश्वास होता है
बेटी होती है तब एक डर समाया रहता है
उसके भविष्य के साथ-साथ अपने भविष्य का भी
कल कुछ हो गया
तब कौन देखेंगा
एक अनिश्चितता बनी रहती है
अंतिम समय में बिदा की बेला में
कांधा और दाग देने की जरूरत होती है
बेटा नहीं तब कौन ?,
भले बेटियां आगे आ रही है
योग्यता का परचम फहरा रही है
जो वर्जित था वह भी कर रही है
श्मशान से लेकर दाग तक
आखिरी क्रियाकर्म तक
फिर भी बेटा तो बेटा होता है
उसके रहते एक गजब का विश्वास रहता है
बेटी पर नाज होता है
बेटे पर गुमान होता है
ऐसे ही नहीं बेटा , बेटा होता है
वह दीपक है जो जलता है
पूरे खानदान को प्रकाशित करता है
सारा भार उसके ही कंधों पर
देखभाल से लेकर कांधा देने तक
और वह एहसान नहीं
उसका कर्तव्य निभाता है
बेटा , पोता , मामा , चाचा , ताऊ , फूफा
मौसा , जीजा , देवर , भतीजा न जाने कितने
पति और पिता तो है ही
हर रिश्ता निभाता है
जिम्मेदारियों का बोझ उठाता है
इसीलिए तो कहा जाता है
बेटा तो बेटा ही होता है
यह वह हीरा है जो सदा के लिए हैं

Wednesday 23 December 2020

रावण

रावण हर साल जलाया जाता है
हर साल मारा जाता है
रावण महान था
महा शिव भक्त था
शास्त्रों का ज्ञाता था
ज्योतिषाचार्य था
क्या अपना भविष्य पता नहीं था
सीता हरण करते समय क्या उसका भान नहीं था
किससे बैर मोल ले रहा है
इतना तो नादान नहीं था
लक्ष्मण को राम ने मृतवत पडे रावण के पास शिक्षा लेने के लिए भेजा
दुश्मन के पास
दुश्मन की काबिलियत का अंदाजा था उनको
आज के लोग भी रावण को जाने
सीता रावण के यहाँ रहकर भी सुरक्षित रहीं
अशोक वाटिका में रखा
आज अपने घर में ही नारी सुरक्षित नहीं है
न जाने कब क्या और कौन सी घटना हो जाएं
घर हो या बाहर
डर ही डर
रावण के पुतले को जलाने की अपेक्षा अपने मन के शैतान को जलाएं
दुश्मन भी हो तो रावण जैसा
दुश्मनी भी निभाएँ तो शिष्टाचारी
दुश्मन भी होना चाहिए खानदानी

दोस्त बडा प्यारा था

वह वफादार था
मेरा प्यारा था
अनाथ था
मैंने उसे अपनाया था
पाला पोसा था
वह मेरे हर सुख - दुख का भागीदार था
वह रहता था
तब मैं निश्चिंत रहता था
नहीं किसी का डर
चोर - उच्चको का तो दुश्मन नंबर वन
उठते - बैठते
खाते - पीते
सोते - जागते
हर समय साथ रहता
लाड लडाता
पूंछ हिलाता
दूसरों को देख तो भौ भौ
मुझे देख कूं कूं
लगता था खूंखार
मन का था भोला
पशु था पर मानव से बढकर था
दोस्त बडा प्यारा था
आज वह नहीं रहा
मुझे छोड़ चला गया
याद रह रहकर उसकी आती है
जान गए कि वह कौन था
वह मेरा टाॅमी प्यारा था
कहने को तो कुत्ता था
लेकिन दोस्त बडा प्यारा था

ज्यादा न सही थोड़ी ही

कितने मिले कितने छूटे
कुछ साथ साथ चले
कुछ बीच में छोड़ गए
कुछ शुरुआती दौर में
कुछ मंझधार में
कुछ किनारे तक आते-आते
मैं तो चलता गया
बिना परवाह के
आखिर चलना तो मुझको ही था
अपने बल पर
अपनी मेहनत
अपने परिश्रम
अपनी इच्छा से
तब किसी को क्यों दोष दूं
वे तो राह के साथी
कुछ पल ही सही
साथ चले तो सही
आज जब पडाव पर पहुंचा हूं
तब लगता है
कुछ सहभागिता उनकी भी है
ज्यादा न सही थोड़ी ही

जागो मानव प्यारे

यह सुबह भी अजीब है
समय पर ही होती है
समय पर ही उठाती है
उठने वाले को कभी कभार आलस आ भी जाता
इसे नहीं आता
न यह सब भाता
सूरज की किरण के साथ
मुर्गे की बांग के साथ
चिडियाँ की ची ची
अल सुबह उठाती है
कहती है
अब तो बस करों
कितना सोओगे
कुछ काम पर लगो
मुझे देखों
मैं नियमित रूप से आती हूँ
प्रकृति के और भी जीव
तब तुम क्यों अभी तक अलसाये से हो
उठो और शरीर में स्फूर्ति ले आओ
सोते रहे तब कुछ नहीं हासिल होगा
जागो मानव प्यारे

Tuesday 22 December 2020

वह पेड़ कुछ कहता है

सामने खिडकी के बैठे गुलमोहर निहार रही थी
लाल लालसूर्ख फूल और पत्ती झूम रहे थे
लहलहा रहे थे
मुस्करा रहे थे
कुछ गिर रहे थे
जमीन भी पट रही थी
वह भी ढक रही थी

सोच आया
कैसा है इनका जीवन
जब तक गिरे नहीं
तब तक खुशी से लहलहा रहें
अंतिम बेला तक
नए कोपलों को आने के लिए
नए को स्थान देने के लिए
यही जमे रहें तो नए कैसे उगे

मनुष्य क्यों नहीं स्वीकार करता
वृद्धत्व से डरता है
न छोड़ना चाहता है न हटना चाहता है
सब कुछ पकड़ रखना चाहता है
जबकि मृत्यु भी अटल सत्य है
अमर हो जाए अगर मानव
तब तो धरती ही पट जाएंगी
जगह ही न बचेंगी

प्रकृति का चक्र जारी रहता है
वह समतोल बनाएं रखती है
दुख का कारण स्वयं मानव
अधिकार और अंहकार
मुक्त नहीं होने देता
युवा बना रहना चाहता है ताउम्र
तभी तो संन्यास और वानप्रस्थ आश्रम
स्वेच्छा से स्वीकार कर लें
फूलों की तरह
पत्तों की तरह
तब नहीं होगा जीवन में दुख का आगमन
पेड़ मानो कह रहा हो
मुझे देखो और सीखो