Saturday 24 September 2016

शहीद के परिवार का दर्द

तिरंगे में लिपटा शव पापा का
पापा तो तिरंगा ओढ आए हैं
वे तो गए थे उसको शान से फहराने
यह हमारी आन- बान और शान का प्रतीक है
इसे झुकने नहीं देना है
जब तक यह फहर रहा है ,तब तक हम आजाद है
मेरा कर्तव्य है इसकी शान को कायम रखना
उसी तिरंगे में लिपटकर वे आए हैं
न मेरे सर पर प्यार से हाथ फेर रहे हैं
न अपने गले लगा रहे हैं
मेरे दोस्तों के पापा को देख सोचता
हमारे साथ क्यों नहीं रहते
मॉ का जवाब वह देश के शूरवीर सिपाही है
देश की रक्षा की जिम्मेदारी उनकी है
पर उनके बच्चों और पत्नी की जिम्मेदारी किसकी?? 
उनकी चिता को मुखाग्नि देनी है
शहीद का बेटा और शहीद की पत्नी है इसलिए गर्व होना चाहिए
मॉ रो रही है और कह रही है - तू भी पापा जैसा बनना.
पापा तो तुझे छोड गए
मैं भी तुझे छोड जाऊ
भारतमाता तो है पर तू भी तो है मॉ

शहीद की पत्नी और शहीद की मॉ जरूर कहलाएगी
पर जीवन बेरंग हो जाएगा
यह भीड कल नहीं रहेगी
लोग भूल जाएगे पर हम ,हमेशा गमगीन रहेगे
तिरंगा तो फहर रहा है
पर हमारे घर तो मातम पसरा है
पापा तो शान से बंदूक की सलामी लेकर चले जाएगे
और हम रोते- बिलखते रह जाएगे
पापा तो शहीद हुए पर हमारे अरमान तो उनके साथ ही शहीद हो गए
पर फिर भी हम गर्व से कहेगे
मैं शहीद की पत्नी और शहीद का बेटा हूँ

Friday 23 September 2016

मराठा आंदोलन क्या रूप लेगा

आरक्षण के विरोध में अब वे लोग जो आरक्षण की श्रेणी में नहीं आते हैं वे भी अब मांग कर रहे हैं
पटेल आंदोलन ,जाट आंदोलन और अब मराठा आंदोलन उग्र रूप धारण कर रहा है
जगह- जगह लोग जमा हो रहे हैं
बिना किसी राजनीतिक दल के सहयोग के नेतृत्व के
हर शहर में महाराष्ट्र के जमा हो रहे हैं
यह शॉतिपूर्ण प्रदर्शन है
काा कपडा या पट्टी बांध कर और शिवाजी का झंडा लेकर
क्यों आज जो संपन्न कही जाने वाली जातियॉ भी  आरक्षण की मांग कर रही है
जमींदार अब रहे नहीं
खेती बटते- बटते कगार पर पहुँच चुकी
किसान की हालत अच्छी नहीं
दूसरी जातियों के लोग शहर जा कर जीविका कमा रहे हैं इससे उनका जीवन स्तर भी ऊँचा हुआ है
यह मेहनतकश लोग हैं
दूसरे आरक्षण की कृपा भी इन पर है
एक- एक घर में चार- चार सरकारी नौकरी में हैं
दूसरे उच्च वर्ग के बच्चे निराशा में है
नौकरी नहीं मिल रही
सबको रोजगार देने वाला किसान आत्महत्या कर रहा है
बच्चे पूछ रहे हैं कि हमने क्या कसूर किया
हम क्यों नहीं वह सब हासिल कर रहे जो आरक्षण प्राप्त लोग कर रहे हैं
बाबासाहब के समय परिस्थिती अलग थी.
आज पंडित और क्षत्रिय का बेटा मॉल में शौचालय भी साफ कर रहा है
और ईमारत में मजदूर का काम भी कर रहा है
अब पिछडे कहे जानेवाली जातियॉ उन पर व्यंग्य कर रही है
हँस रही है और मजाक भी उडा रही है
यह सब गॉव में देखने को मिल रहा है जहॉ इसी वजह से आपस में कटुता निर्माण हो रही है
पहले किसी पर अत्याचार हुआ था इसलिए उन लोगों के कर्मों का फल नयी पीढी भुगते
यह समाज में खाई बढ रही है
अब उस वर्ग का भी सोचना है
उनके बच्चे पूछ रहे हैं - हमें क्यों नहीं आरक्षण
हमें क्यों नहीं नौकरी
हमें क्यों नहीं स्कालरशिप
हमें क्यों नहीं फीस की सुविधा
हमें क्यों नहीं एडमिशन
???????????
यह प्रश्न है और इसका हल नेताओं को ढूढना है
राजनीति की बिसात पर दूसरों के साथ अन्याय
क्योंकि उनकी संख्या कम  है
वे वोट बैंक नहीं है
वे यादव या पिछडे या अनुसूचित जाति या जनजाति के नहीं है
या फिर अल्पसंख्यक नहीं है
पर देश के निवासी तो है..

Thursday 22 September 2016

पाकिस्तान पर करो प्रहार - अब तो जागो मोदी सरकार

यह क्या हो रहा है
पाकिस्तान प्रहार पर प्रहार कर रहा
हम शॉति की बात किए जा रहे
मॉ ,साडी ,बेटी की शादी पर बहुत हो चुकी डिप्लोमेसी
अब तो ५६ इंच के सीने को प्रताप दिखाना है
सेना के जवान मारे जा रहे
आंतकवादियों का कहर बढता जा रहा
कब तक सहा जाएगा
पाकिस्तान को शायद पहले वाली लडाईयॉ याद नहीं
उसको फिर याद दिलाना होगा
कारगिल को फिर दोहराना होगा
बांगला देश ही पहले अलग किया
अब तो उसके तुकडे- तुकडे करने होगे
कश्मीर की तो बात करना तो दूर
सॉस लेना भी भूल जाएगा.
हमारे जवान तो है तैयार
बस सरकार को देना होगा आदेश
अब्दुल हमीद जैसी वीरता हर जवान में.
पर उनको आंतकवादियों के हाथ मरने के लिए नहीं
सामने आक्रमण करने के लिए करे तैयार
बुद्ध की अहिंसा और शॉति है
पर कोई कमजोर नहीं
दुर्गा की भूमी है यह
अब तो मॉ का आशिर्वाद ले
पाकिस्तान जैसे महिषासुर का वध करने का समय आ गया
बहुत हो चुकी शॉति की बातें
अब तो बस प्रहार करना है
सैनिकों के बलिदान का बदला लेना है
उनके परिवार के हर व्यक्ति के ऑसुओं का हिसाब देना है
फिर से इंदिरा की तरह मुँह तोड जवाब देना होगा
आंतकवादियों को घुसकर मारना होगा
अगर पाकिस्तान शॉति नहीं चाहता
तो भारत को चाहिए उसको अच्छी तरह शॉत कर दे
फिर से सिर उठाने की हिमाकत न करे
कश्मीर का राग अलापना छोड दे
नवाब शरीफ अगर शराफत छोड रहे हैं
तो उनको आईना दिखाना ही होगा
अब बहुत हो चुका
बस अब तो करो प्रहार

Wednesday 21 September 2016

विश्व शांति दिवस -International peace day

आज विश्व शांति दिवस
और कुछ दिन पहले ही भारतीय सैन्य पर हमला
अभी तो सैनिकों की चिता भी नहीं बुझी है
भारत शांति की बिसात पर क्या कुछ नहीं सह रहा है
नवाज शरीफ को जवाब नहीं देना है
आंतकवाद पाकिस्तान की धरती पर फलफूल रहा है
सब लोग कडे शब्दों में निंदा कर रहे हैं
ओबामा से लेकर जर्मनी तक
पर भारत कब तक यह सहेगा
विश्व को केवल बताने से कि पाकिस्तान आंतकवाद को पालने - पोषने वाला देश है
हमारी समस्या तो कम नहीं होती
बल्कि कसाब जैसों को आंतकवादी का प्रमाण दुनियॉ को देने के लिए करोडो खर्च कर देते हैं
पाकिस्तान तो वैसे ही तन कर खडा है
विश्व समुदाय क्या कर रहा है???
भारत को अपनी लडाई स्वयं लडनी है
हमारे लोगों की जान इतनी सस्ती है क्या??
आज हर धर्म के लोग खुल कर बोले
पाकिस्तान की निंदा करें.
कितना सहेगे और मरेगे
हर व्यक्ति को विरोध करना है
कश्मीर की समस्या तो मुँह बाए खडी है
हम बुद्ध और गॉधी के देशवासी भले हैं
शॉति भी चाहते हैं
पर कायर तो नहीं.
अर्जुन की तरह गांडीव उठाने की जरूरत है
अमेरिका से सीखे
ओसामा बिन लादेन के साथ क्या किया
हम डर रहे हैं
पडोसी वार पर वार किए जा रहा है
परमाणु युद्ध की धमकी भी दे रहा है
युद्ध कभी अच्छा नहीं होता
विनाशक ही होता है
सारा विश्व आंतकवाद की समस्या से ग्रस्त है
तो फिर सब क्यों नहीं आंतकवाद देश का बहिष्कार करते
केवल बोलने से कुछ नहीं
कारवाई भी करें
मानवता की हत्या हो रही है
और विश्व बेबस ,लाचार बना देख रहा है.
धर्म और समुदाय के नाम पर हत्या
निरीह लोगों का रक्त बहाना
अब केवल बोले नहीं बल्कि ठोस कदम उठाया जाय
   मंदिर ,मस्जिद ,गिरजाघर ने बॉट लिया भगवान को
धरती बॉटी ,सागर बॉटा ,मत बॉटों इंसान को
यह कैसी विडंबना है कि शॉति दिवस पर युद्ध की बातें हो ,अशॉति की चर्चा हो.
पाकिस्तान खेलने ,गाने और अभिनय में भाग लेता है
पर यही जब बम फोडता है तो यह लोग चुप रहते हैं
भारत का हर मुसलमान पाकिस्तान का विरोध क्यों नहीं करता??
बाकी दूसरी सब बातो का विरोध होता है
एक सामान्य फिल्म के नाम पर भी विरोध
आंतकवादी को फॉसी पर विरोध
पर देश की सुरक्षा में मारे गए सैनिकों के लिए किसका विरोध. ?????

Sunday 18 September 2016

जीते जी भी तो कर लो मॉ - बाप का सम्मान

पितृ पक्ष शुरू हो गया है
पितरों के लिए खाना निकाल कर रखा जाता है
भोजन साफ - सुथरा और उनकी मनपसन्द का
मांसाहार ,नए कपडे  इत्यादि को छोडा जाता
बहुत सी व्यक्तिगत जैसे ढाढी न बनाना ,केश न कटवाना , शुभ कार्य न करना इत्यादि
कौए को भोजन रखा जाना
तिथी के अनुसार श्राद्ध करना
पंडितों को दान- दक्षिणा देना
गरिबों को खाना खिलाना और कपडे बॉटना
पितरों की याद में यह सब ठीक है
उनके सम्मान में दूसरे लोगों का भी पेट भर जाता है
पर जीवित रहते यह सम्मान दिया क्या??
पितृ दोष न लगे ,उनका आशिर्वाद बना रहे
हमारी संतान फले- फूले
इस कारण यह सब.
मरने के बाद भी उनसे अपेक्षा
हर मॉ- बाप अपनी संतान का भला ही चाहेगे
तो क्यों न जीते- जी भी यह सम्मान दिया जाय
उनसे प्रेम और मीठे बोल बोला जाय
स्वर्ग कोई टिफिन सर्विस नहीं है
जो यहॉ से उनको खाना भेजा जाय
पन्द्रह दिनों के लिए
यही उनको संतुष्ट कर ऊपर भेजा जाय
तो उनकी आशिर्वाद हमेशा रहेगा
यह कैसी विडंबना कि जीते जी पेट न भरे
मरने के बाद पकवान
जीते- जी कपडा न मिले
मरने पर नया कफन.
यही पर सोचे
पृथ्वी पर ही तो और भी अच्छा 

Saturday 17 September 2016

जीओ और जीने दो

जीते तो सब पर जीवन जीने की कला सबको नहीं आती
कोई रोकर ,कोई दूसरों को दुख पहुँचाकर
कोई बोली और ताना देकर
कोई दूसरों को दुखी देखकर
कोई जलन और ईष्या में ,किसी का अपमान कर
कोई स्वयं में कूढते और जिंदगी को कोसते हुए
कोई निरपराध जीवों की हत्या कर
कोई ईश्वर पर या अपनों पर आरोप ,प्रत्या रोप कर
कोई असंतुष्ट रह तो कोई हाय- हाय कर
कोई बेईमान ,झूठा ,भ्रष्टाचारी ,लालची बन
      हॉ  पर यह जीना है क्या?
क्यों नहीं दूसरों के खुश में खुशी होते
जलन ,ईष्या से दूर रहते
क्षमा ,ईमानदारी का पालन करते
संतुष्ट और मितव्यी बनकर
जीवदया और करूणा की मिसाल बन
जो मिला है उसे ईश्वर का वरदान मानकर
दो मीठे बोल ,बोलकर
भी तो जीया जा सकता है
जिसने यह जीवन ,जीने की कला सीख ली
वह अपना जीवन सार्थक बना गया
जीओ और जीने दो

Tuesday 13 September 2016

बेजुबानों को काटना और मुबारकबाद

बकरीद का त्योहार ,खुशियों की बरसात
किसकी जान लेकर
किसी बेजुबान का कत्ल कर
कुरबानी के नाम पर निरीह जानवर की हत्या
उसका खून और तडपता देखकर खुशी
खून बहाना ,मांस बॉटना
क्यों इतना निर्दय दिल को बना देना
तडपन देख शॉति मिलना.
कहीं छत पर खून तो कहीं गली - चौराहों पर
आज जमाना बदल रहा है
शिकार करना यह आदिम युग की बात है
आज वह अपराध है
पहले हिन्दूओं में भी बलि प्रथा थी
पर आज वह खत्म ही हो गई है
अब लोग प्रतीक रूप में सुपारी या कोई फल काटकर बलि की प्रथा पूरी करते हैं
नवरात्र में दुर्गा को बलि देने की प्रथा उत्तर भारत में थी
पहले तलवारबाजी होती थी कबीलों में
आज वह खत्म हो गई है
हॉ उसकी जगह आंतकवाद के नाम पर मानव की हानि हो रही है
चॉद तो शीतल है और उसे देखकर बलि देना
तो दूसरी जगह उसे देख लम्बी उम्र की दुआ मांगना
समय बदल रहा है तो परम्पराए क्यों नहीं
रूढी से हटकर काम करना
उस समय की परिस्थितियॉ और आज की अलग
फिर से सोचे कुर्बानी से पहले.
जान लेने के लिए नहीं
जीने का अधिकार हर जीव का
जीओ और जीने दो
मानव बनो
हर जीव का रक्षण करो

आवाज का जादू

आवाज का जादू वह जादू है जो दिखाई तो नहीं देता पर वह बडे- बडे करतब कर जाता है कि सदियों तक कायम रह जाता है
वह अपने चारों ओर इंसान को लपेटता है
एक कटु बोली की खाई को भरने में उम्र निकल जाती है पर कटुता समाप्त नहीं होती
घाव भरता तो नहीं पर नासूर जरूर बन जाता है
वहीं एक मीठी वाणी सुनने को लोग सदियों से तैयार रहते हैं
कानों को अच्छा लगे ऐसी बोली हर कोई चाहता है
यह मानव को कुदरत का वरदान है
पर इसका इस्तेमाल करने में वह कोताही कर जाता है
जिसको सोच- समझ कर बोलना है वहॉ लापरवाह हो जाता है
और उसका परिणाम भुगतता है
एक बार तरकश से निकला हुआ तीर जैसे वापस नहीं आता वैसे ही वाणी से निकला हुआ वार कभी खाली नहीं जाता
और जब यह मीठा बोलता है तो सर चढ कर बोलता है और किसी अजनबी को भी अपना बना लेता है
इसमें कटुता और मिठास दोनों है
यह व्यक्ति के स्वयं के चुनाव पर है कि वह क्या चुनना चाहता है
लोगों के दिलों में रहना है या बाहर
इसमें कोई खर्च भी नहीं है बस संभाल कर इस्तेमाल करना है
और जिसको यह कला आ गई वह जग जीत सकता है

Monday 12 September 2016

बप्पा की सवारी - सडक की लाचारी

गणपति बप्पा का धूमधाम से आगमन
बप्पा ,अपने भक्तों को देख प्रसन्न
इतनी भक्ति और श्रद्धा
दिन पर दिन इसमें बढोतरी
बप्पा ने मूषक से पूछा
तुम प्रसन्न तो हो ना?
मूषक ने सर हिलाकर चूपचाप हॉ कहा
क्या बात है?
आज कुछ उछलकूद नहीं
आज मैं बहुत थक गया हूँ
सडक पर गढ्डों की भरमार
हम तो साल में एक बार यहॉ आते हैं
पर यहॉ के निवासी बारहों महीने यह पीडा झेलते हैं
कभी- कभी इस कारण जान भी गवाते हैं
दूसरा इतनी आवाज
मेरा सर फटने लगा
अच्छा ,और तो कोई परेशानी नहीं?
मिठाईयों की तो कतार लगी है ,जी भर खाओ
नहीं! बप्पा अब तो खाने से भी डर लगता है
बनावटी मावे से बनी ये मिठाईयॉ हुई तो?
मैं तो छोटा- सा जीव
मर जाऊंगा ,अब तो डर लगता है
बप्पा ने हँसकर कहा
अरे मूषक ,ये तो भोलेभाले है?
इन्हें पता नहीं ये क्या कर रहे हैं
आप इन्हें सद्बुद्धि दे बप्पा
अगली बार आप आए तो गढ्ढे न हो
मिलावट न हो
और आवाज न हो
केवल श्रद्धा मन से हो
दिखावा न हो
आप तो मंगलमूर्ति हो , विघ्नहर्ता हो
       गणपति बप्पा मोरया
      अगले बरस तू जल्दी

Sunday 11 September 2016

यह मेरा घर आज है कितना सूना - सूना

आज मैं बैठी हूँ अपने घर में
बहुत दिनों से याद आ रही थी
क्या कुछ नहीं दिया इस घर ने
हर सुख- दुख में सहभागी रहा
बच्चे बडे हुए ,पढाई - लिखाई सब इसी में
एक समय था जब यह घर गुलजार रहता था
मेहमानों और रिश्तेदारों से भरा रहता था
बच्चों के दोस्तों से घिरा रहता
न जाने कितनों का आश्रय था यह घर
इस दरवाजे से कभी कोई भूखा नहीं गया
कितनी भी संख्या हो मेहमानों की
हर किसी को अपने में समा लेता
पूजा से लेकर शादी- ब्याह
मुंडन से लेकर जन्मदिन
सब धूमधाम से यही संपन्न हुआ
बच्चों के आपस में लडाई - झगडे से
खाना- पीना और सोने तक को लेकर विवाद
पर हर कोई अपनी जगह तलाश ही कर लेता
यहॉ तक कि टेलीविजन देखने के लिए भी
बाहर दो- चार ऑखें झाकती रहती
यही मैं सास बनी
नानी बनी ,दादी बनी
यही आकर भगवान से अटूट नाता जुडा
संतों और महात्माओं से परिचय
भगवान कृष्ण की सेवा करने का अवसर
यहॉ ईश्वर के फोटों पर फूल सजे रहते 
दरवाजे पर आलीशान तोरण लगा रहता
घर प्रसाद से भरा रहता
कोलाहल और शोरगुल तो अभिन्न हिस्सा थे
आज बच्चे अपने - अपने घरों में खुश है
पर उनके नए जीवन की नींव भी यही से पडी
कुछ बडे दुख भी आए पर वह भी बीत गये
बहुत दिनों के बाद पुरानी स्मृतियॉ याद आ रही है
आज इससे बडे घर में रह रही हूँ
पर इसकि जगह कोई नहीं ले सकता
यह प्रतीक है अपनेपन का
परिवार के हर सदस्य की भागीदारी का
घर केवल दीवारों से नहीं बनता
उसमें हमारी आत्मा समाई रहती है
अपनों का प्रतिबिम्ब होता है घर
आज यह सूना पडा है
पर मन इसकी यादों से भरा पडा है
और वह अमूल्य है
इसकी जगह कोई नहीं ले सकता