Sunday 29 July 2018

आँख मारना

नैन का लड़ना
मन मे गजब की हलचल
नैन मे जल
मन मे पीड़ा
नैन का मुस्कराना
नैनो की अपनी भाषा
जहाँ शब्द असमर्थ
वहाँ आँखों की भाषा
आँखों में आँखे डालकर बात करना
साहसिक कृत्य
आँख चुराना
नजर बचाना
कायरता का परिचायक
पर आँख मारना???
शरारत
यह शरारत कभी कभी बहुत मंहगी भी पड़ती है
राहुल को यह शरारत कितनी मंहगी पड़ेगी
यह तो आने वाला चुनाव बताएगा
फिलहाल अभी तो उन्होंने आँख दबाकर अपनी किरकिरी करा ली है
सारे भाषण पर पानी फेर दिया
मोदी जी की बारी है अब
किस तरह आँख तरेरेगे आगामी चुनाव में
आँखों की हरकतों का जवाब तो जरुर देंगे

स्वर्ग का देवता


(((( स्वर्ग का देवता ))))
.
लक्ष्मी नारायण बहुत भोला लड़का था। वह प्रतिदिन रात में सोने से पहले अपनी दादी से कहानी सुनाने को कहता था।
.
दादी उसे नागलोक, पाताल, गन्धर्व लोक, चन्द्रलोक, सूर्यलोक आदि की कहानियाँ सुनाया करती थी।
.
एक दिन दादी ने उसे स्वर्ग का वर्णन सुनाया। स्वर्ग का वर्णन इतना सुन्दर था कि उसे सुनकर लक्ष्मी नारायण स्वर्ग देखने के लिये हठ करने लगा।
.
दादी ने उसे बहुत समझाया कि मनुष्य स्वर्ग नहीं देख सकता, किन्तु लक्ष्मीनारायण रोने लगा। रोते- रोते ही वह सो गया।
.
उसे स्वप्न में दिखायी पड़ा कि एक चम- चम चमकते देवता उसके पास खड़े होकर कह रहे हैं-  बच्चे ! स्वर्ग देखने के लिये मूल्य देना पड़ता है।
.
तुम सरकस देखने जाते हो तो टिकट देते हो न ? स्वर्ग देखने के लिये भी तुम्हें उसी प्रकार रुपये देने पड़ेंगे।
.
स्वप्न में लक्ष्मीनारायण सोचने लगा कि मैं दादी से रुपये माँगूँगा। लेकिन देवता ने कहा- स्वर्ग में तुम्हारे रुपये नहीं चलते। यहाँ तो भलाई और पुण्य कर्मों का रुपया चलता है।
.
अच्छा, काम करोगे तो एक रुपया इसमें आ जायगा और जब कोई बुरा काम करोगे तो एक रुपया इसमें से उड़ जायगा। जब यह डिबिया भर जायगी, तब तुम स्वर्ग देख सकोगे।
.
जब लक्ष्मीनारायण की नींद टूटी तो उसने अपने सिरहाने सचमुच एक डिबिया देखी।
.
डिबिया लेकर वह बड़ा प्रसन्न हुआ। उस दिन उसकी दादी ने उसे एक पैसा दिया। पैसा लेकर वह घर से निकला।
.
एक रोगी भिखारी उससे पैसा माँगने लगा। लक्ष्मीनारायण भिखारी को बिना पैसा दिये भाग जाना चाहता था, इतने में उसने अपने अध्यापक को सामने से आते देखा।
.
उसके अध्यापक उदार लड़कों की बहुत प्रशंसा किया करते थे। उन्हें देखकर लक्ष्मीनारायण ने भिखारी को पैसा दे दिया। अध्यापक ने उसकी पीठ ठोंकी और प्रशंसा की।
.
घर लौटकर लक्ष्मीनारायण ने वह डिबिया खोली, किन्तु वह खाली पड़ी थी। इस बात से लक्ष्मी नारायण को बहुत दुःख हुआ।
.
वह रोते- रोते सो गया। सपने में उसे वही देवता फिर दिखायी पड़े और बोले- तुमने अध्यापक से प्रशंसा पाने के लिये पैसा दिया था, सो प्रशंसा मिल गयी।
.
अब रोते क्यों हो ? किसी लाभ की आशा से जो अच्छा काम किया जाता है, वह तो व्यापार है, वह पुण्य थोड़े ही है।
.
दूसरे दिन लक्ष्मीनारायण को उसकी दादी ने दो आने पैसे दिये। पैसे लेकर उसने बाजार जाकर दो संतरे खरीदे।
.
उसका साथी मोतीलाल बीमार था। बाजार से लौटते समय वह अपने मित्र को देखने उसके घर चला गया।
.
मोतीलाल को देखने उसके घर वैद्य आये थे। वैद्य जी ने दवा देकर मोती लाल की माता से कहा- इसे आज संतरे का रस देना।
.
मोतीलाल की माता बहुत गरीब थी। वह रोने लगी और बोली- ‘मैं मजदूरी करके पेट भरती हूँ। इस समय बेटे की बीमारी में कई दिन से काम करने नहीं जा सकी। मेरे पास संतरे खरीदने के लिये एक भी पैसा नहीं है।’
.
लक्ष्मीनारायण ने अपने दोनों संतरे मोतीलाल की माँ को दिये। वह लक्ष्मीनारायण को आशीर्वाद देने लगी।
.
घर आकर जब लक्ष्मीनारायण ने अपनी डिबिया खोली तो उसमें दो रुपये चमक रहे थे।
.
एक दिन लक्ष्मीनारायण खेल में लगा था। उसकी छोटी बहिन वहाँ आयी और उसके खिलौनों को उठाने लगी। लक्ष्मीनारायण ने उसे रोका। जब वह न मानी तो उसने उसे पीट दिया।
.
बेचारी लड़की रोने लगी। इस बार जब उसने डिबिया खोली तो देखा कि उसके पहले के इकट्ठे कई रुपये उड़ गये हैं। अब उसे बड़ा पश्चाताप हुआ। उसने आगे कोई बुरा काम न करने का पक्का निश्चय कर लिया।
.
मनुष्य जैसे काम करता है, वैसा उसका स्वभाव हो जाता है। जो बुरे काम करता है, उसका स्वभाव बुरा हो जाता है। उसे फिर बुरा काम करने में ही आनन्द आता है।
.
जो अच्छा काम करता है, उसका स्वभाव अच्छा हो जाता है। उसे बुरा काम करने की बात भी बुरी लगती है।
.
लक्ष्मीनारायण पहले रुपये के लोभ से अच्छा काम करता था। धीरे- धीरे उसका स्वभाव ही अच्छा काम करने का हो गया।
.
अच्छा काम करते- करते उसकी डिबिया रुपयों से भर गयी। स्वर्ग देखने की आशा से प्रसन्न होता, उस डिबिया को लेकर वह अपने बगीचे में पहुँचा।
.
लक्ष्मीनारायण ने देखा कि बगीचे में पेड़ के नीचे बैठा हुआ एक बूढ़ा साधु रो रहा है। वह दौड़ता हुआ साधु के पास गया और बोला- बाबा ! आप क्यों रो रहे है ?
.
साधु बोला- बेटा जैसी डिबिया तुम्हारे हाथ में है, वैसी ही एक डिबिया मेरे पास थी। बहुत दिन परिश्रम करके मैंने उसे रुपयों से भरा था।
.
बड़ी आशा थी कि उसके रुपयों से स्वर्ग देखूँगा, किन्तु आज गंगा जी में स्नान करते समय वह डिबिया पानी में गिर गयी।
.
लक्ष्मी नारायण ने कहा- बाबा ! आप रोओ मत। मेरी डिबिया भी भरी हुई है। आप इसे ले लो।
.
साधु बोला- तुमने इसे बड़े परिश्रम से भरा है, इसे देने से तुम्हें दुःख होगा।
.
लक्ष्मी नारायण ने कहा- मुझे दुःख नहीं होगा बाबा ! मैं तो लड़का हूँ। मुझे तो अभी बहुत दिन जीना है। मैं तो ऐसी कई डिबिया रुपये इकट्ठे कर सकता हुँ। आप बूढ़े हो गये हैं। आप मेरी डिबिया ले लीजिये।
.
साधु ने डिबिया लेकर लक्ष्मीनारायण के नेत्रों पर हाथ फेर दिया। लक्ष्मीनारायण के नेत्र बंद हो गये। उसे स्वर्ग दिखायी पड़ने लगा।
.
ऐसा सुन्दर स्वर्ग कि दादी ने जो स्वर्ग का वर्णन किया था, वह वर्णन तो स्वर्ग के एक कोने का भी ठीक वर्णन नहीं था।
.
जब लक्ष्मीनारायण ने नेत्र खोले तो साधु के बदले स्वप्न में दिखायी पड़ने वाला वही देवता उसके सामने प्रत्यक्ष खड़ा था।
.
देवता ने कहा- बेटा ! जो लोग अच्छे काम करते हैं, उनका घर स्वर्ग बन जाता है। तुम इसी प्रकार जीवन में भलाई करते रहोगे तो अन्त में स्वर्ग में पहुँच जाओगे।’ देवता इतना कहकर वहीं अदृश्य हो गये

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  ((((((( जय जय श्री राधे )))))))
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स्वर्ग का देवता


(((( स्वर्ग का देवता ))))
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लक्ष्मी नारायण बहुत भोला लड़का था। वह प्रतिदिन रात में सोने से पहले अपनी दादी से कहानी सुनाने को कहता था।
.
दादी उसे नागलोक, पाताल, गन्धर्व लोक, चन्द्रलोक, सूर्यलोक आदि की कहानियाँ सुनाया करती थी।
.
एक दिन दादी ने उसे स्वर्ग का वर्णन सुनाया। स्वर्ग का वर्णन इतना सुन्दर था कि उसे सुनकर लक्ष्मी नारायण स्वर्ग देखने के लिये हठ करने लगा।
.
दादी ने उसे बहुत समझाया कि मनुष्य स्वर्ग नहीं देख सकता, किन्तु लक्ष्मीनारायण रोने लगा। रोते- रोते ही वह सो गया।
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उसे स्वप्न में दिखायी पड़ा कि एक चम- चम चमकते देवता उसके पास खड़े होकर कह रहे हैं-  बच्चे ! स्वर्ग देखने के लिये मूल्य देना पड़ता है।
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तुम सरकस देखने जाते हो तो टिकट देते हो न ? स्वर्ग देखने के लिये भी तुम्हें उसी प्रकार रुपये देने पड़ेंगे।
.
स्वप्न में लक्ष्मीनारायण सोचने लगा कि मैं दादी से रुपये माँगूँगा। लेकिन देवता ने कहा- स्वर्ग में तुम्हारे रुपये नहीं चलते। यहाँ तो भलाई और पुण्य कर्मों का रुपया चलता है।
.
अच्छा, काम करोगे तो एक रुपया इसमें आ जायगा और जब कोई बुरा काम करोगे तो एक रुपया इसमें से उड़ जायगा। जब यह डिबिया भर जायगी, तब तुम स्वर्ग देख सकोगे।
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जब लक्ष्मीनारायण की नींद टूटी तो उसने अपने सिरहाने सचमुच एक डिबिया देखी।
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डिबिया लेकर वह बड़ा प्रसन्न हुआ। उस दिन उसकी दादी ने उसे एक पैसा दिया। पैसा लेकर वह घर से निकला।
.
एक रोगी भिखारी उससे पैसा माँगने लगा। लक्ष्मीनारायण भिखारी को बिना पैसा दिये भाग जाना चाहता था, इतने में उसने अपने अध्यापक को सामने से आते देखा।
.
उसके अध्यापक उदार लड़कों की बहुत प्रशंसा किया करते थे। उन्हें देखकर लक्ष्मीनारायण ने भिखारी को पैसा दे दिया। अध्यापक ने उसकी पीठ ठोंकी और प्रशंसा की।
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घर लौटकर लक्ष्मीनारायण ने वह डिबिया खोली, किन्तु वह खाली पड़ी थी। इस बात से लक्ष्मी नारायण को बहुत दुःख हुआ।
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वह रोते- रोते सो गया। सपने में उसे वही देवता फिर दिखायी पड़े और बोले- तुमने अध्यापक से प्रशंसा पाने के लिये पैसा दिया था, सो प्रशंसा मिल गयी।
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अब रोते क्यों हो ? किसी लाभ की आशा से जो अच्छा काम किया जाता है, वह तो व्यापार है, वह पुण्य थोड़े ही है।
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दूसरे दिन लक्ष्मीनारायण को उसकी दादी ने दो आने पैसे दिये। पैसे लेकर उसने बाजार जाकर दो संतरे खरीदे।
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उसका साथी मोतीलाल बीमार था। बाजार से लौटते समय वह अपने मित्र को देखने उसके घर चला गया।
.
मोतीलाल को देखने उसके घर वैद्य आये थे। वैद्य जी ने दवा देकर मोती लाल की माता से कहा- इसे आज संतरे का रस देना।
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मोतीलाल की माता बहुत गरीब थी। वह रोने लगी और बोली- ‘मैं मजदूरी करके पेट भरती हूँ। इस समय बेटे की बीमारी में कई दिन से काम करने नहीं जा सकी। मेरे पास संतरे खरीदने के लिये एक भी पैसा नहीं है।’
.
लक्ष्मीनारायण ने अपने दोनों संतरे मोतीलाल की माँ को दिये। वह लक्ष्मीनारायण को आशीर्वाद देने लगी।
.
घर आकर जब लक्ष्मीनारायण ने अपनी डिबिया खोली तो उसमें दो रुपये चमक रहे थे।
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एक दिन लक्ष्मीनारायण खेल में लगा था। उसकी छोटी बहिन वहाँ आयी और उसके खिलौनों को उठाने लगी। लक्ष्मीनारायण ने उसे रोका। जब वह न मानी तो उसने उसे पीट दिया।
.
बेचारी लड़की रोने लगी। इस बार जब उसने डिबिया खोली तो देखा कि उसके पहले के इकट्ठे कई रुपये उड़ गये हैं। अब उसे बड़ा पश्चाताप हुआ। उसने आगे कोई बुरा काम न करने का पक्का निश्चय कर लिया।
.
मनुष्य जैसे काम करता है, वैसा उसका स्वभाव हो जाता है। जो बुरे काम करता है, उसका स्वभाव बुरा हो जाता है। उसे फिर बुरा काम करने में ही आनन्द आता है।
.
जो अच्छा काम करता है, उसका स्वभाव अच्छा हो जाता है। उसे बुरा काम करने की बात भी बुरी लगती है।
.
लक्ष्मीनारायण पहले रुपये के लोभ से अच्छा काम करता था। धीरे- धीरे उसका स्वभाव ही अच्छा काम करने का हो गया।
.
अच्छा काम करते- करते उसकी डिबिया रुपयों से भर गयी। स्वर्ग देखने की आशा से प्रसन्न होता, उस डिबिया को लेकर वह अपने बगीचे में पहुँचा।
.
लक्ष्मीनारायण ने देखा कि बगीचे में पेड़ के नीचे बैठा हुआ एक बूढ़ा साधु रो रहा है। वह दौड़ता हुआ साधु के पास गया और बोला- बाबा ! आप क्यों रो रहे है ?
.
साधु बोला- बेटा जैसी डिबिया तुम्हारे हाथ में है, वैसी ही एक डिबिया मेरे पास थी। बहुत दिन परिश्रम करके मैंने उसे रुपयों से भरा था।
.
बड़ी आशा थी कि उसके रुपयों से स्वर्ग देखूँगा, किन्तु आज गंगा जी में स्नान करते समय वह डिबिया पानी में गिर गयी।
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लक्ष्मी नारायण ने कहा- बाबा ! आप रोओ मत। मेरी डिबिया भी भरी हुई है। आप इसे ले लो।
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साधु बोला- तुमने इसे बड़े परिश्रम से भरा है, इसे देने से तुम्हें दुःख होगा।
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लक्ष्मी नारायण ने कहा- मुझे दुःख नहीं होगा बाबा ! मैं तो लड़का हूँ। मुझे तो अभी बहुत दिन जीना है। मैं तो ऐसी कई डिबिया रुपये इकट्ठे कर सकता हुँ। आप बूढ़े हो गये हैं। आप मेरी डिबिया ले लीजिये।
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साधु ने डिबिया लेकर लक्ष्मीनारायण के नेत्रों पर हाथ फेर दिया। लक्ष्मीनारायण के नेत्र बंद हो गये। उसे स्वर्ग दिखायी पड़ने लगा।
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ऐसा सुन्दर स्वर्ग कि दादी ने जो स्वर्ग का वर्णन किया था, वह वर्णन तो स्वर्ग के एक कोने का भी ठीक वर्णन नहीं था।
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जब लक्ष्मीनारायण ने नेत्र खोले तो साधु के बदले स्वप्न में दिखायी पड़ने वाला वही देवता उसके सामने प्रत्यक्ष खड़ा था।
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देवता ने कहा- बेटा ! जो लोग अच्छे काम करते हैं, उनका घर स्वर्ग बन जाता है। तुम इसी प्रकार जीवन में भलाई करते रहोगे तो अन्त में स्वर्ग में पहुँच जाओगे।’ देवता इतना कहकर वहीं अदृश्य हो गये।

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  ((((((( जय जय श्री राधे )))))))
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Saturday 28 July 2018

बिहारी जी का कंगन

💈💈💙💜💙💈💈🕉 जय श्री राधे कृष्ण 🕉
🌹💍बिहारी जी का कंगन💍🌹
मित्रों, बहुत समय पहले की बात है वृन्दावन में श्रीबांके बिहारी जी के मंदिर में पुजारी जी प्रतिदिन बड़े भाव से सेवा करते थे । वे रोज बिहारी जी की आरती करते, भोग लगाते और उन्हें शयन कराते......तथा प्रतिदिन चार लड्डू भगवान के बिस्तर के पास रख देते थे । उनका यह भाव था कि बिहारी जी को यदि रात में भूख लगेगी तो वे उठ कर भोग लगा लेंगे ।।
💙💜💙
जब वे सुबह मंदिर का पट खोलते थे, तो भगवान के बिस्तर पर प्रसाद बिखरा मिलता था । लेकिन फिर भी भाव से वे रोज ऐसा करते थे । एक दिन बिहारी जी को शयन कराने के बाद वे लड्डूओं को रखना भूल गए । उन्होंने पट बंद किए और चले गए ।
💙💜💙
रात में करीब एक-दो बजे जिस दुकान से वे बूंदी के लड्डू लाते थे, उन बाबा की दुकान खुली थी । वे घर जाने ही वाले थे तभी एक छोटा सा बालक आया और बोला बाबा मुझे बूंदी के लड्डू चाहिए ।।
💙💜💙
बाबा ने कहा - लाला लड्डू तो सारे ख़त्म हो गए । अब तो मैं दुकान बंद करने जा रहा हूँ । वह बोला आप अंदर जाकर देखो आपके पास चार लड्डू रखे हैं ।
💙💜💙
उसके हठ करने पर बाबा ने अंदर जाकर देखा तो उन्हें चार लड्डू मिल गए क्यों कि वे आज मंदिर नहीं गए थे । बाबा ने कहा - पैसे दो । बालक ने कहा - मेरे पास पैसे तो नहीं हैं और तुरंत अपने हाथ से सोने का कंगन उतारा और बाबा को देने लगे ।।
💙💜💙
बाबा ने कहा - लाला पैसे नहीं हैं तो रहने दो, कल अपने बाबा से कह देना, मैं उनसे ले लूँगा । पर वह बालक नहीं माना और कंगन दुकान में फेंक कर भाग गया ।
सुबह जब पुजारी जी ने पट खोला तो उन्होंने देखा कि बिहारी जी के हाथ में कंगन नहीं है । यदि चोर भी चुराता तो केवल कंगन ही क्यों चुराता । थोड़ी देर बाद ये बात सारे मंदिर में फ़ैल गई ।।
💙💜💙
जब उस दुकान वाले को पता चला तो उसे रात की बात याद आई । उसने अपनी दुकान में कंगन ढूंढा और पुजारी जी को दिखाया और सारी बात सुनाई ।
💙💜💙
तब पुजारी जी को याद आया कि रात में मैं लड्डू रखना ही भूल गया था । इसलिए बिहारी जी स्वयं लड्डू लेने गए थे । यदि भक्ति में भक्त कोई सेवा भूल भी जाता है तो भगवान अपनी तरफ से पूरा कर लेते हैं ।।
💙💜💙
🌹।। राधे-राधे ।।🌹
💙💜💙
🌹किसी ने क्या खूब कहा है -🌹
💙मांगी थी इक कली, उतार कर हार दे दिया ।💜
💜चाही थी एक धुन, अपना सितार दे दिया ।।💙
💙झोली ही बहुत छोटी थी मेरी कन्हैया ।💜
💜तुमने तो हंस कर सारा संसार दे दिया ।।💙
🌹जय श्री कृष्णा🌹राधा रानी👸
💈💈💙💜💙💈💈
      COPY PEST

Friday 27 July 2018

The Missing Goat

*The Missing Goat, "Goat no 3"... wonderful story, please read*

It all started one lazy Sunday afternoon
in a small town near Toronto in Canada.

Two school-going friends had a crazy idea.

They rounded up three goats from the neighborhood and painted the numbers
1, 2 and 4 on their sides.

That night they let the goats loose
inside their school building.

The next morning,
when the authorities entered the school,
they could smell something was wrong.

They soon saw goat droppings
on the stairs and near the entrance
and realized that some goats had
entered the building.

A search was immediately launched
and very soon, the three goats were found.

But the authorities were worried,
where was goat No. 3?

They spent the rest of the day
looking for goat No.3.

The school declared classes off for the students for the rest of the day.

The teachers, helpers, guards,
canteen staffs, boys were all busy
looking for the goat No. 3,
which, of course, was never found.

Simply because
it did not exist.

Those among us who inspite of having
a good life are always feeling a
"lack of fulfilment"
are actually looking for the elusive,
missing, non-existent
Goat No.3.

Whatever the area of complaint or dissatisfaction, relationship,
job-satisfaction, finance, achievements, ......
An absence of something
is always larger than  the
presence of many other things.

Let's Stop worrying about goat No.3
n enjoy the life...
Life would be so much happier
without the worries...


And don't let the non existent imaginary goat number 3 waste your time and happiness.
Enjoy life with what you have.

🐐🐐   ?  🐐  COPY PEST

सपना सबसे न्यारा

सपना यह हकीकत है या कल्पना
पर सपने तो हर कोई देखता है
उससे तो कोई वंचित नहीं कर सकता
भूत काल की सैर कराता
वर्तमान को रोचक बनाता
भविष्य का ख्वाब दिखाता
जो नहीं हो सकता
उसका भी अनुभव करवाता
हर इच्छा पूरी करवाता
इसका कोई समय नहीं
सोते-जागते कभी भी देख लो
इस पर कोई बंधन नहीं
हर सीमा से परे
स्वच्छंद हो विचरण करवाता
धरती से आसमान तक पहुंचाता
चांद तारों के देश ले जाता
परि लोक की सैर कराता
अधूरी आशा को पूरी करता
असंभव को संभव करता
बिना सपने के जीवन नीरस बन जाता
सपना तो जरूरी है
जिंदगी को रंगीन बनाने के लिए
विभिन्न भावनाओं से भरने के लिए
इस पर कोई रोकटोक नहीं
सपना देखने की चीज है
और उसे साकार भी करना होगा
जिंदगी को जिंदादिली से जीना सीखिए
सपने देखते रहिए।

गुरु बिन ज्ञान नहीं

गुरु यानि शिक्षक
पर धीरे धीरे समझ
वक्त सबसे बड़ा गुरू
शुरू मे माता ,घर के सदस्य
पाठशाला मे शिक्षक
आगे जब जिंदगी बढती है
तब लगता है हर पल
कोई न कोई हमें सिखाता है
हम सीखते रहते हैं
रास्ते चलते तक
हर अनुभव
कुछ खट्टे ,मीठे ,कड़वे
पर एक एक सबक हम यही से सीखते हैं
जिंदगी बहुत बडी है
इसलिए शिक्षा भी ताउम्र चलती रहती है
किसी पडाव पर लगता है कि
हमसे तो यह छूट गया
कभी धोखा
कभी विश्वासघात
कि हम विस्मित रह जाते हैं
होशियारी धरी की धरी रह जाती है
कोई हमे ठग जाता है
फिर लगता है कि
कुछ छूट गया
आज उन सभी का आभार
जिसने जीवन की पाठशाला मे जीना सिखाया
अच्छा-बुरा ,उचित-अनुचित का भेद समझाया ।

Wednesday 25 July 2018

वृक्ष लगाया ,प्राण गंवाया

वृक्ष लगाओ देश बचाओ
यह बात ठीक है
पर वृक्ष लगाओ जान गवाओ
यह तो ठीक नहीं है
जोश और दिखावे मे आकर वृक्ष लगा तो दिया
पर देखभाल बिना जानलेवा साबित हो रहे
जब लगाया है तो देखभाल भी करनी होगी
उसे उसके ही भरोसे छोड़ दिया जाता है
कमजोर हो जाता है
डालियाँ यहाँ वहाँ बेतरतीब तरिके से फैली हुई
कब किस पर गिर पडे
लोग घायल हो रहे हैं
जान माल का नुकसान हो रहा है
हर वर्ष न जाने कितने लोगों की जान जा रही है
निर्दोष मर रहे हैं
जीवन ,प्राण वायु देने वाला जीवन ले रहा है
अगर लगा है तो प्रंबध की जिम्मेदारी भी है
सड़क किनारे लगा दिया
फिर उससे किनारा कर लिया
उसे कातिल बना दिया
वृक्ष जरूर लगाएं
पर सोच समझ कर
उचित जगह पर

Tuesday 24 July 2018

गौ माता के नाम पर हत्या

गाय शांति की प्रतीक
सीधा सादा व्यक्ति को गौ जैसा बताया जाता रहा है
फिर उन्हीं के नाम पर हत्या ,मारकाट
गाय माता हिंदूओ के लिए पूजनीय
पर सबके लिए हो
यह तो नहीं हो सकता
गाय बूढी हो जाती है तो उसे बेचता कौन??
यहाँ तो बूढे मां -बाप को निकाल दिया जाता है
फिर वह तो पशु है
पर फिर भी सबके लिए उपयोगी है
पर उसके नाम पर पशुता पर उतरना
कहाँ उचित है??
रकबर को गाय ले जाना
इसलिए मार डालना
पशुधन भी सदियों से चला आ रहा है
इंसान की जिंदगी इतनी सस्ती
ऐसा तो पहले कभी नहीं था
फिर अब क्या हुआ
भीड़ उन्मादी हो किसी की जान ले
गाय माता के नाम पर
माता तो यह कभी नहीं चाहेगी
वह तो बच्चों को दूध देती है
पर वही बच्चे क्या कर रहे हैं
उसको क्यों बदनाम कर रहे हैं
भीड़ को बहाना चाहिए
किसी को पीटने और मारने का
सरकार कानून बनाए
न कि कानून हाथ में लेने दें
गौ माता की सुरक्षा का जिम्मा ले
पर उनके नाम पर किसी इंसान की जान न ले
न लेने की इजाजत दे

संत सूरदास


एक  बार  संत  सूरदास  को  किसी  ने  भजन  करने  के लिए  आमंत्रित  किया । भजनोपरांत  उन्हे  अपने  घर  तक  पहुँचाने  का ध्यान  उसे  नहीं  रहा ।सूरदासजी ने भी  उसे  तकलीफ  नहीं  देना  चाहा  और  खुद  हाथ मे लाठी  लेकर  गोविंद –गोविंद  करते  हुये  अंधेरी  रात  मे पैदल  घर  की ओर  निकल  पड़े । रास्ते  मे  एक कुआं  पड़ता  था ।  वे  लाठी  से  टटोलते –टटोलते  भगवान  का  नाम लेते  हुये  बढ़  रहे  थे  और  उनके  पांव और कुएं  के  बीच  मात्र  कुछ  दूरी  रह  गई  थी  कि उन्हे  लगा  कि  किसी  ने  उनकी  लाठी  पकड़  ली  है ,तब  उन्होने  पूछा  -तुम  कौन  हो ?उत्तर मिला – बाबा ,मैं  एक  बालक  हूँ ।मैं  भी आपका   भजन  सुन  कर  लौट  रहा  हूँ । आपका  भजन  सुनना  मुझे  बहुत  प्रिय  लगता  है । देखा  कि आप गलत  रास्ते  जा  रहे  हैं ,इस  लिए  मैं  इधर  आ  गया । चलिये ,आपको घर  तक  छोड़ दूँ ।‘  तुम्हारा  नाम  क्या  है  बेटा ?-सुरदास  ने  पूछा । ‘बाबा ,अभी  तक  मेरी  माँ  ने  मेरा  नाम  नहीं  रखा  है ।‘’तब  मैं  तुम्हें  किस  नाम से  पुकारूँ ?””कोई भी  नाम  चलेगा  बाबा ॥ “सूरदास   ने  रास्ते  मे  और  कई  सवाल  पूछे । उन्हे  ऐसा  लगा  कि हो न हो ,यह  कन्हैया  है ,।वे  समझ  गए  कि  आज  गोपाल  खुद  मेरे  पास  आए  हैं ।  क्यो  नहीं  मैं  इनका  हाथ  पकड़  लूँ । “यह  सोंच   उन्होने  अपना  हाथ  उस  लकड़ी  पर  कृष्ण की ओर  बढ़ाने  लगे । भगवान  कृष्ण  उनकी  यह चाल  समझ  गए ।सूरदास का  हाथ  धीरे –धीरे  आगे  बढ़  रहा  था ।जब  केवल  चार  अंगुल  का  अंतर  रह  गया  तब श्री  कृष्ण  लाठी  को  छोड़  दूर  चले  गए । जैसे  उन्होने  लाठी  छोड़ी, सूरदास  विह्वल  हो  गए ,आंखो  के  अश्रुधारा  बह  निकली ।  बोले -मैं  अंधा  हूँ ,ऐसे  अंधे  की  लाठी  छोड़  कर  चले  जाना  क्या  कन्हैया  तुम्हारी  बहादुरी  है  और  उनके श्रीमुख  से वेदना  के  यह स्वर  निकल  पड़े–
“बांह  छुड़ाके जात  हैं, निर्बल  जानी  मोही ।
हृदय  छोड़के जाय  तो मैं  मर्द  बखानू तोही

मुझे  निर्बल  जानकार  मेरा  हाथ  छुड़ा कर  जाते  हो, पर  मेरे  हृदय  से  जाओ  तो मैं  तुम्हें  मर्द  कहूँ । भगवान  कृष्ण  ने  कहा–बाबा, अगर  मैं  आप  ऐसे  भक्तो  के  हृदय  से  चला  जाऊं तो  फिर मैं  कहाँ  रहूँ ?
        COPY PEST

Monday 23 July 2018

धोखा और फरेब

हमने क्या खता की
किस बात की सजा दी
प्यार करने की
विश्वास करने की
अपना समझने की
मालूम न था
तुम ऐसे निकलोगे
धोखेबाज -दगाबाज
स्वार्थी ,अंधे
संवेदनहीन,फरेबी
पर ठीक हुआ
समय रहते पता चल गया
जिंदगी ने सिखा दिया
चालक और सतर्क रहना
झूठ से भरी दूनिया
पग पग पर छल
आँख खोल कर रखना है
दिल से नहीं दिमाग से सोचना है
जीना है और कुछ कर दिखाना है
अपना अस्तित्व कायम रखना है
अपने को साबित करना है
यह बताना है कि किसी के कारण
अपने जीवन को बर्बाद नहीं करना है
डटकर मुकाबला करना है
ऐसा जवाब देना है
कि फिर किसी को धोखा न दे सको

धोखा और फरेब की उम्र नहीं होती

समुंदर के साथ खिलवाड़

चल दरिया मे डूब जाय
यह गाना था पर आज हम दरिया यानि समुद्र मे क्या डूबो और डाल रहे हैं
महानगरी मुंबई का समुद्र किनारा विश्व के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों मे से एक है
मुंबई को इतना खूबसूरत समुद्री किनारा मिला हुआ है पर उसका कोई कद्रदान नहीं
कभी हम किनारे घूमने जाए तो देख मन खिन्न हो उठता
किनारे पर ढेरों कचरे का भंडार
पर यह आया कहाँ से ???
इसका जिम्मेदार कौन??
गटर का पानी ,ढेरों कचरा सब उसमें
पर उसकी भी यह फितरत है वह कुछ स्वीकारता नहीं
बाहर फेंक देता है
सुंदर रमणीय किनारे पर कचरे का ढेर
सरकार के साथ सभी नागरिकों की जिम्मेदारी है
ऐसा न होने दे
क्योंकि उसकी भी एक सीमा है
कब तक सहेगा
जब हद हो जाएगी तो परिणाम भी भंयकर
सुनामी लाने की ताकत रखता है वह
पर हम सुनामी की नहीं
सुंदरता की ओर कदम बढाए
रमणीय और सुंदर बनाए
प्रकृति के वरदान की कद्र करे
यह दरिया है उसके प्रति दरियादिली दिखाए
उसको निहारे ,सराहे,प्रदूषित न बनाए
किनारे पर बैठकर लहरों का आनंद ले
प्रेरणा ले
किनारे पर चहलकदमी करें
पर उसके साथ खिलवाड़ न करें
कचरा न डालें