Monday 29 April 2019

वोट डाले समझदारी से

वोट मेरा अभिमान है
यह देता है
मुझे मेरा नेता चुनने का अधिकार
अपने कर्तव्यों के प्रति सजग करता
एहसास कराता
देश हमारा
हम यहां के सर्वेसर्वा
सत्ता पर बिठाना यह हमारे हाथ में
कोई सत्ता का दुरुपयोग न करें
यह चुनावी छड़ी हमारे हाथ में
हर पांच साल बाद यह मौका
हम देखते हैं
परखते हैं
काम करवाते हैं
इसके विविध रंग है
जो रोचक बनाते हैं
हर रंग लाजवाब
निहारे
सोचे
समझे
तब अपना वोट डाले
समझदार बन समझदार व्यक्ति का चुनाव करना है
उसके नाम के आगे बटन डबाना है
न किसी के बहकावे में
न बड़बोले और झूठ मे
मन की सुनना है
मन की करना है
परख -जांच कर वोट डालना है

वोट हमारा जन्मसिद्ध अधिकार

https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=2360346447584191&id=100008265752607

Saturday 27 April 2019

सांप से दोस्ती संभलकर

एक हाल ही मे कहानी पढ़ी थी जो मन को छू गई
और सतर्क भी कर गई
एक बच्चे को घायल सांप मिला ,वह उसे अपने साथ ले आया
वह कुछ वक्त मे अच्छा हो गया
बच्चे को उससे दोस्ती हो गई
वह सांप उसके साथ ही रहने लगा
कुछ वक्त बीता ,अचानक उसे सांप निस्तेज दिखाई देने लगा
उसने खाना पीना भी छोड़ दिया था
लड़का उसे लेकर वैद्य जी के पास गया
वैध जी ने उससे पूछा
वह उसके साथ ही सोता है
उसने हाँ कहा
वह रात को शरीर तानता है
उसने हाँ कहा ,बताया बेचैन भी रहता है
वैध जी ने कहा कि खाना -पीना छोड़ दिया है
वह भी सही था
वैध जी ने कहा
यह बीमार नहीं है ,रात को तुम्हारा शरीर नापता है कि निगल पाऊंगा या नहीं
दूसरा भूखा है जानबूझकर कि पचाने मे आसानी हो
यह सांप है यह जहर ही उगलेगा
ऐसे ही हमारे आसपास ऐसे लोग रहते हैं
सहानुभूति के नाम पर सब जान लेते हैं और धोखे देने की फिराक मे रहते हैं
ये सामाजिक सांप है
इनको पहचानकर दूरी बनाए रखें
न जाने कब डस ले

Thursday 25 April 2019

काशी आशिर्वाद देने को तैयार है अपने प्रधानमंत्री को

बनारस स्वागत के लिए तैयार है
जोरदार तैयारियां
अपने प्यारे प्रधानमंत्री जी के लिए
जो कि उनके सांसद भी है
यह बनारस का सौभाग्य है
उनके नेता मोदी जी हैं
फूल - हार
ढोल - तासे
गाजे -बाजे के साथ बनारस सुसज्ज है
बनारस तो बना  रस  है ही
और रसविभोर हो गया है
पांवड़े बिछाए लोग खड़े हैं
मानो नामांकन नहीं कोई उत्सव है
जन जन मे उत्साह है
प्रधानमंत्री का यह 17 -18 वां दौरा शायद
इतना तो साधारण नेता भी नहीं करता
बनारस के साथ उत्तर प्रदेश के मायने भी बदले हैं
पहले भैय्या ,बदमाश ,फूहड़ ,गंवार
यही ज्यादातर पहचान थी
पिछड़ा पन का उदाहरण
आज सम्मान जगा है
मोदी जी ने नयी पहचान दी है
क्वेटो भले न बने
पर बनारस को उसका सम्मान जरूर फिर से दिलाया है
महादेव की नगरी काशी को विश्व पटल पर ला खड़ा कर दिया
हिंदू धर्म को भी एहसास कराया है
स्वयं के धर्म के प्रति आस्था ,सम्मान सबको होना चाहिए
बाबा विश्वनाथ की नगरी उनको आशिर्वाद देने के लिए आतुर है
शिव जी की कृपा उनपर बनी रहे

चुनावी समर

समर है भयंकर
रणभूमि पूर्ण सुसज्जित
रणभेरी बज चुकी
सब हुंकार भर रहे
नारों की गूंज
ढोल -ताशो की आवाज
रणबांकुरे निकल पड़े है अपने काफिले के साथ
तपती धूप मे भी हंसी बिखेरते
हाथ जोड़ते
गले लगाते
गली गली घूमते
कभी गाड़ी तो कभी पैदल
सभी चुनावी रथ पर सवार
अपनी अपनी बात कहते
लुभावने वादे देते
दूसरों की कमियां गिनाते
कमर कस ली है
हार नहीं मानेंगे
जीत हमारी ही है
सभी का दावा
लडाई तो लड़ रहे हैं
परिणाम का पता नहीं
जमे हैं अपने लाम -लश्कर के साथ
कोशिश तो पुरजोर है
किसकी कोशिश रंग लाती है
कौन जीतता है
यह अनिश्चितता
सब मशीन मे बंद
जिस दिन यह पिटारा खुलेगा
कुछ की सिट्टी पिट्टी  गुम
कुछ झूम उठेंगे
यह युद्ध है चुनाव का
अंतिम समय तक हार नहीं मान सकते

मोबाईल बड़े काम की

पहली बार एहसास हुआ
यह मोबाईल कमाल की है
किसी को अनदेखा करना हो
इससे अच्छा जरिया कोई नहीं
आपने सुना ही नहीं
आपने देखा ही नहीं
मोबाईल मे व्यस्त थे
पकाऊ
ऊबाऊ
फालतू
बाते सुनने और करने से तो यह भली
निंदा स्तुति
खोद खोद कर सवाल पूछने वालों से दूर रहना है
तब मोबाईल का सहारा लीजिए
किसी को टालना हो
वाद विवाद और झगड़े टंटे से बचना हो तब भी
संभलकर और सोच समझ कर इस्तेमाल करें
यह बहुत अच्छी साथी सिद्ध होगी
बशर्ते उसका गुलाम न बने
यह हर वक्त आपका साथ निभाएंगी
यह आप पर निर्भर है
कि आप उस पर कितना निर्भर है
यह विज्ञान की अनुपम देन है
जानकारी ,संदेश ,जागरूक ,मनोरंजन
जो चाहिए वह हाजिर
वाह रे मोबाईल
तू है बड़ी काम की चीज

Wednesday 24 April 2019

मछली वाली

देखा है उसको कोयले के साथ
छप छप मछली काटती जाती
जैसे कोई मशीन हो
दिल भी है??
खून देख कर भी जी विचलित नहीं होता
यह तो हर रोज का काम है
वह मछुआरे की पत्नी है जो
मजबूत तो बनना ही पडेगा
समुंदर की लहरों से लडने के लिए भेज देती है पति को
जान हथेलीपर लेकर
कब तूफान आ जाय
नौका उलट पुलट हो जाय
कहा नहीं जा सकता
वह भाग्य भरोसे नहीं है
कर्म कर रही है
कठोर तो होना ही होगा
कर्मपथ आसान नहीं होता
पग पग पर परेशानी
फिर भी मजबूत
मजबूर नहीं कर्मठ
काम तो काम
वही पूजा
शिद्द्त से डटी है
छपाक छपाक
एक कटी दूसरी हाथ में ली
ग्राहक खडे हैं
वह कैसे विचलित हो
मछली ही रोजी-रोटी
उदर भरण का साधन
विचलित नहीं हो सकती
खून देखकर डर जाय
तब उसके इस व्यवसाय का क्या ?

जुआरी

ताश के पत्तों से खेल रहे हैं
पैसे लगा रहे हैं
कभी हार रहे
कभी जीत रहे
गाली गलौज भी कर रहे
यह हर रोज होता है
अड्डा जमाते है
दिन बिताते हैं
काम नहीं बेकार है
जुआ ही साधन है
समय काटने का
काम करने मे मेहनत
मुफ्त मे पैसा नहीं मिलता
यह मजा नहीं मिलता
शायद यह एहसास नहीं
वह अपनी जिंदगी को दांव पर लगा रहेहैं
जिम्मेदारियों से भाग रहे हैं
जिंदगी जुआ का खेल नहीं है
जिंदगी को बनाना पडता है
इसे ताश के पत्तों से नहीं
मेहनत और लगन से खेलना पडता है
जिसको जिंदगी से खेलना आ गया
वही सबसे बडा बाजीगर
यहाँ पैसा नहीं
इच्छा - ऑकाक्षा से खेलना है
दांव तो लंबा होता है
पर जब लग जाता है
तब वह सबको पीछे छोड़ जाता है
जो जीता वही सिकंदर।

वेश्यावृत्ति

वह वेश्या है
शरीर बेचती है
वही उसकी रोजी-रोटी
वह लोगों के तन की भूख मिटाती है
तब उसके पेट की भूख मिटती है
उसे नीची नजर से देखा जाता है
समाज मे सम्मान नहीं
यही समाज उसके तन को गिद्ध दृष्टि से देखता है
उसे ऐय्याशी का साधन बनाता है
रात के अंधेरे में
दिन के प्रकाश में नहीं
शर्म आती है
पर उसे शर्म नहीं आती
वह शाम होते ही बन ठन कर खडी हो जाती है
वह मुफ्त में कुछ नहीं लेती
सौदा करती है
उसे अपनी अहमियत पता है
वह छिपाती नहीं
उसी के कारण तो समाज सुव्यवस्थित चल रहा है
उनकी इज्जत बची हुई है
नहीं तो ये तन के भूखे भेड़िये
न जाने कितनी अबलाओं को अपने हवस का शिकार बनाते
वह  सेक्स वर्कर है
सम्मान की हकदार हैं
उसकी अहमियत दूसरों को भी समझना होगा।

मरना आसान हो गया है

मौत तो सबको आनी है
उसका समय तो नहीं
वह दबे पैर आती है
प्राण लेकर जाती है
चेतावनी भी नहीं देती संभलने का

आज की बात कुछ और है
वह धड़धड़ाती हुई आती है
कुचलती हुई जाती है

धमाका होता है जोरदार
सब परखच्चे उड़ जाते हैं
कब पटाखे की आवाज मे गोली चली
सरसराती हुई छेद गई

कब कौन किसे टकरा जाय
कब टेक्निकल खराबी आ जाय
कब सब धुआं धुआं हो जाय
कभी लालच
कभी लापरवाही
कभी अमानवीयता

कब कौन आंतक फैला दे
सब को निशाने पर रख ले
मौके की तलाश मे रहे

मौतें तो पहले भी होती रही है
वह अंजानी नहीं थी
आज अंजानी है
कब ,कहाँ और कैसे ??
यह प्रकृति और ईश्वर नहीं
मनुष्य तय कर रहा है

पहले मौत से डरता था
आज कुछ को मजा आ रहा है
जान की कीमत कम हो गई है
मौत शायद पहले इतनी सस्ती नहीं थी

Tuesday 23 April 2019

वह है ये नायाब पुस्तकें Happy World Book day

पुस्तक मेरा जीवन
पुस्तक मेरी दोस्त
पुस्तक मेरी हमसफर
पुस्तक मेरी सहयात्री
पुस्तक मेरी भावना
जीवन ही पुस्तक के इर्दगिर्द
जबसे होश संभाला
तभी से पुस्तकों से नाता जोड़ा
पुस्तक बिना तो मेरा जीवन अधूरा
वह मेरे साथ हंसती है
रोती है
बतियाती है
दिल खोलकर रखती है
गुफ्तगू भी करती है
नाराज और उदास भी करती है
सपनों की दुनिया की सैर कराती है
उड़ान भरना सिखाती है
दिन रात मेरे साथ रहती है
मुझसे जी भर कर प्रेम करती है
मैं इस पर विश्वास करती हूं
जी भर कर भरोसा करती हूं
मार्गदर्शक है मेरी
कभी भी मझदार मे मुझे नहीं छोड़ सकती
मुझे जीना सिखाया
लड़ना सिखाया
मुसीबतों से सामना करना सिखाया
हर चीज से रूबरू कराया
मेरी पहचान है पुस्तक
तभी तो गर्व के साथ कह सकती हूं
सबसे नजदीकी मेरे जो है
   वह है ये नायाब पुस्तकें

संवाद का संसार

संवादो की भी अपनी दूनिया
शब्द के साथ खेलते हैं संवाद
उसे रूप देते हैं
रोचक और प्रभावी बनाते हैं
हंसाते औ रूलाते हैं
प्रेरणा देते हैं
व्यक्ति को बदल सकते हैं
व्यक्ति ही नहीं
संपूर्ण समाज को बदलने का सामर्थ्य
यह युगदृष्टा होते हैं
संवाद के माध्यम से नजदीकियां बढ़ती है
प्रेम का आदान प्रदान
एक -दूसरे के दृष्टिकोण को समझने मे मदद
संवाद अधूरा नहीं रहे
यह ध्यान रहे
अपनी बात कहना है
अपने विचार रखना है
बिना संवाद तो वह अधूरे
संवाद मे जादू है
बस जादू की छड़ी चलानी है
इस ताकत का इस्तेमाल करना है
प्रभावशाली संवाद
इतिहास बदलने का माद्दा रखते हैं
यह साधारण नहीं
     संवाद है
संवेदना से जुड़े हैं
आप इनसे जुड़िए
यह आपको सबसे जोड़ देंगे

गाय माता सबकी माता

गाय हमारी माता है
बचपन यही सुनते बीता है
माता के लिए सब संतान बराबर
वह कोई भेदभाव नहीं करती
हाँ ,उसके नाम पर भेदभाव अवश्य
वह किसी एक धर्म की नहीं
उसका दूध तो सबके लिए
उसके गोबर के ऊपले हर रसोई के लिए
उस पर राजनीति
गरीब -अमीर
हिंदू -मुस्लिम
सभी बच्चों को इसी का सहारा
फिर तेरा -मेरा क्यों??
मनुष्य ने अपने लाभ के लिए इसका इस्तेमाल किया
खेत -खलिहान या घर -द्वार
पुरातन काल से यह साथी है मानव की
इसको तो झगड़े -टंटे मे मत घसीटो
राजनीति का हथियार मत बनाओ
यह तो निरीह और भोली है
शांत और शाकाहारी है
दूधारू और उपयोगी है
संतोषी और कर्मठ है
इसको आज ही नहीं
पहले भी विवादों मे घसीटा गया
अपनी लड़ाई स्वयं लड़ो
गाय माता के नाम पर
और कुछ नहीं तो सम्मान दो
जिसका दूध पीकर बड़े हुए
जिसका दही -घी खाकर बलवान बने
उस माता की लाज तो रखना
हम सबका कर्तव्य बनता है।

गाय माता सबकी माता

गाय हमारी माता है
बचपन यही सुनते बीता है
माता के लिए सब संतान बराबर
वह कोई भेदभाव नहीं करती
हाँ ,उसके नाम पर भेदभाव अवश्य
वह किसी एक धर्म की नहीं
उसका दूध तो सबके लिए
उसके गोबर के ऊपले हर रसोई के लिए
उस पर राजनीति
गरीब -अमीर
हिंदू -मुस्लिम
सभी बच्चों को इसी का सहारा
फिर तेरा -मेरा क्यों??
मनुष्य ने अपने लाभ के लिए इसका इस्तेमाल किया
खेत -खलिहान या घर -द्वार
पुरातन काल से यह साथी है मानव की
इसको तो झगड़े -टंटे मे मत घसीटो
राजनीति का हथियार मत बनाओ
यह तो निरीह और भोली है
शांत और शाकाहारी है
दूधारू और उपयोगी है
संतोषी और कर्मठ है
इसको आज ही नहीं
पहले भी विवादों मे घसीटा गया
अपनी लड़ाई स्वयं लड़ो
गाय माता के नाम पर
और कुछ नहीं तो सम्मान दो
जिसका दूध पीकर बड़े हुए
जिसका दही -घी खाकर बलवान बने
उस माता की लाज तो रखना
हम सबका कर्तव्य बनता है

शहर मे भी फूल खिले हैं

ःवसंत तो आया है
क्या शहर क्या गाँव क्या पहाड़
वसंती छटा हर जगह छाई है
जरा आँख उठाकर देखे तो
अपने शहर मे भी रौनक छाई है
प्रकृति रानी ने यहाँ भी दस्तक दी है
कंक्रीट के जंगल भी गुलजार हुये हैं
सहजन के पेड़ सफेद फूलों से भर आए हैं
नाजुक पतली फलियां भी जवान हो रही है
आम के पेड़ पर बौर और कच्ची कैरी
बच्चे पत्थर मारते दिख जाते हैं
पीपल के पेड़ पर ताजा हरे पत्ते नजर आ रहे
गुलमोहर भी अपनी हंसी बिखेरने को तत्पर
बादाम भी अपनी बड़ी बड़ी हरी पत्तियों के साथ सड़क की शोभा बढ़ा रहा
अशोक भी खड़ा है अपने अंदाज मे
नीम मे भी निबौली आ रही है
प्रकृति तो गांव -जंगल से निकलकर
इस कंक्रीट के जंगल मे भी अपनी छटा बिखेर रही है
धूल और धुएँ के गुबार मे भी लालिमा और हरियाली के साथ खड़ी है
हम नहीं देख पा रहे हैं
बस भाग रहे हैं
अंधाधुंध देखने की फुरसत कहाँ??
मोबाईल भी है हाथ मे
जरा बस या गाड़ी की खिड़की से बाहर का नजारा भी देखे
प्रकृति रानी की सराहना करें
वह तो सबकी है
गांव हो या शहर
फूल गांव मे ही नहीं शहर मे भी खिलते हैं
प्रकृति अपनी कृपा सब पर बरसाती है

Monday 22 April 2019

सबसे न्यारी सबसे प्यारी वसुंधरा हमारी

यह नीला आसमान
यह चांद - तारे
लगते हैं बड़े प्यारे
यह उगता और डूबता हुआ सूर्य
उसकी नारंगी आभा
वह सूर्योदय
वह सूर्यास्त
लगते हैं बड़े प्यारे
यह बरखा
झर झर झरती बूंदें
उसमें भीगना
लगता है बड़ा प्यारा
वह ठिठुरती ठंड
बर्फ और पड़ते हुए ओले
लगते हैं बड़े प्यारे
यह लहलहाते पेड़
खुशबू फैलाते फूल
उन पर मंडराती तितलियों -भौंरे
लगते हैं बड़े प्यारे
वह ओस की बूंद
मिट्टी की भीनी भीनी महक
सरसराती हवा
लगते हैं बड़े प्यारे
समुंदर की लहरे
उफनती नदी
निश्चल खड़े पर्वत
लगते हैं बड़े प्यारे
यह मेहरबानी है हमारी वसुंधरा की
धरती रानी की
तभी तो लगती है
सबसे प्यारी
सबसे न्यारी
जीवनदायिनी
धरती माता हमारी

श्रीलंका का हमला

श्रीलंका मे आंतकवादी हमला
वह भी Easter के दिन
चर्च और होटल पर निशाना
निर्दोषों की जान गई
कितनों के परिवार उजड़ गए
कितने अनाथ हो गए
यह वहशियाना घटना घटी
शांति और अहिंसा के मसीहा ईसामसीह और ईसाई धर्म के Easter के दिन
मानवता और इंसानियत को शर्मसार करती यह हरकत
बिना किसी वजह के लोगों की जान ले लेना
आखिर इससे क्या हासिल होगा ??
नफरत और हिंसा
यह तो किसी का धर्म नहीं

लोकतंत्र का महापर्व

ज्वार है चुनाव का
गर्म है माहौल
जबान लड़खड़ा रही
फिसल रही
बड़बोले बोल रहे
हमारे कर्णधार
हमारे नेता
जबान संभल नहीं रही
देश संभालेंगे ??
सत्ता अभी हासिल हुई नहीं
पर मिजाज और तेवर मे कमी नहीं
सबको साथ लेकर चलेंगे
सबका विकास करेंगे
यह उनका परम कर्तव्य
जनता का सेवक बनना है
तब तो स्वयं पर काबू रखना पड़ेगा
वोट देने वाले
न देने वाले
दोनों का ख्याल
लोकतंत्र का महापर्व है
यह शांति से
संयम से
समझदारी से
मनाया जाय
तभी वह सुखद होगा

Happy Earth Day जागतिक वसुंधरा दिवस

हरी -भरी वसुंधरा
कर रही गुहार
रहने दो मुझे हरा -भरा
जंगल ,वृक्ष को लहलहाने दो
यह जीवनदाता है
इनकी वजह से सांस आती जाती है
यह सलामत तो मैं सलामत
मैं सलामत तो तुम सलामत
गुजारिश है सबसे
इन्हें मत काटो
मत नष्ट करो
इन पर रहम करो
जंगल ,पर्वत ,नदी ,झरने
यही तो मेरे हाथ -पैर हैं
यह नहीं रहेंगे
तब तो मैं लाचार हो जाऊँगी
अकेले कंधे पर आपका बोझ नहीं उठा पाउंगी
लड़खड़ाने लगूंगी
जिस दिन मैं लड़खड़ाई
उसका अंजाम कितना भयंकर??
यह सोच कर ही दिल कांप उठता है
मैं मां हूँ ,धरती माता हूँ
अपने बच्चों को तिल -तिल मरते नहीं देख सकती
माता तो सबकी भलाई चाहती है
उसकी बात मानना संतान का कर्तव्य बनता है
अभी भी बहुत देर नहीं हुई है
सचेत हो जाओ
चेतावनी है तुम्हारे लिए
केवल अपनी ही नहीं
मुझसे जुड़ी हर जीव -चीज की रक्षा करनी है
तभी आप खुश रह पाओगे
स्वार्थी मत बनो
सभी की खुशियों मे तुम्हारी खुशियाँ भी निहित है
पेड़ लहलहाएंगे
जंगल झूमेंगे
नदी लहराएगी
झरने झरझराएंगे
पक्षी चहचहाए़गे
पशु गुर्राएगे
तभी तो तुम भी मुस्कराओगे

Sunday 21 April 2019

शहीद का सम्मान

हिंदू धर्म सहिष्णुता का पर्याय
हिंदू आंतकवादी नहीं हो सकता
हिंदू ने कभी किसी की धर्मस्थली नहीं गिरायी
तथाकथित
बाबरी मस्जिद को छोडकर
वह भी राम जन्मभूमि है
उस पर अधिकार हमारा ही बनता है
आज कुछ नेता श्राप की बात कर रहे हैं
कैसा और कौन सा श्राप??
ये लोग हमारे धर्म का अपमान कर रहे हैं
शहीदों का अपमान कर  रहे हैं
हिंदू धर्म सहिष्णु है तभी जिंदा है
हम तमाम प्रहारों के बाद भी असतित्व मे हैं
हमने न किसी का जबरन धर्म परिवर्तन कराया
हमने न किसी को प्रलोभन देकर अपने धर्म मे शामिल किया
फिर भी हम सम्मान के साथ खड़े हैं
हमें डर भी नहीं है
हम कट्टर भी नहीं है
अपने ढंग से पूजा अर्चना की आजादी है
कोई बंधन नहीं
ऐसा महान सनातन धर्म है हमारा
उसे ऐसे कट्टरपंथियो की जरूरत नहीं है
हेमंत करकरे जैसे लोग हिंदू घर्म के कारण ही है
कर्तव्य धर्म नहीं देखता
शहीद किसी के श्राप से नहीं
अपनी ड्यूटी देते हुए मरता है
उनका सम्मान हर भारतवासी को करना है
फिर वह साधु हो नेता हो या और कुछ
किसी को उनका अपमान करने का अधिकार नहीं

रंग का रंग

रंग सौंदर्य का पर्याय
काला या सांवला
यह आज से नहीं
सदियों की मानसिकता
हमारे यहाँ ही नहीं
सभ्य और मार्डन समाज मे भी
देखने का दृष्टिकोण
लोगों का नजरिया
आज भी वैवाहिक विज्ञापन में
गोरे रंग की ही मांग
यह रंगभेद वाली मानसिकता
खत्म नहीं हो रही
हाँ ,आज ब्लेक ब्यूटी को भी स्थान दिया जा रहा
फिल्मों मे भी सांवली नायिकाएं अपना लोहा मनवा रही
पर यह कुछ ही मिसाल
रंगत तो ईश्वर की देन
रंगभेदी तो इंसान है
रंगत के आधार पर योग्यता
यही मापदंड है
आज भी रंग के आधार पर बहू को प्रताडित किया जाता है
उसे ताने दिए जाते हैं
यहाँ तक कि पुरुषों का भी कमोबेश यही हाल है
काला -कलूटा
काली -कलूटी
यह तो हमारे लिए नया नहीं है
गोरा हर किसी को प्रभावित करता है
जबकि मापदंड तो
योग्यता ,इंसानियत ,एज्युकेशन ,स्वभाव होना चाहिए
उसके गुणों को पहचानना है
सच्चा पारखी बनना चाहिए
रंग का रंग अपनी सोच पर हावी नहीं होने देना है

कटिंग चाय

कटिंग चाय और उसकी चुस्की
इससे परिचित है हर मुंबई कर
कटिंग चाय जो पीता है
वही जानता है
एक पूरी चाय को आधा -आधा
वह हो गई कटिंग
जेब भी ज्यादा नहीं कटी
इच्छा भी हो गई पूरी
फुटपाथ पर रहने वाले हो
काँलेज स्टूडेंट्स हो
मजदूर वर्ग हो
आँफिस स्टाफ हो
दो -चार दोस्त हो
यह सब अमूमन दिख जाएंगे
किसी छोटी सी टपरी के आगे
चाय की सिप लेते
बतियाते ,खिलखिलाते
चायवाले का बर्तन कभी खाली नहीं रहता
चाय बनती रहती है
लोग पीते रहते हैं
बिना शक्कर
स्पेशल
सादा
सब तरह की जायकेदार
यह फुटपाथी चाय
पंचसितारा होटल को भी मात दे देती है
सुबह पांच बजे जो खुलती है
आठ -नव बजे तक लगातार चलती है
वाँकिग करके आए लोग
व्यापारी वर्ग
जनसामान्य
सब इसके दीवाने
बड़ा -पाव अगर पेट भरता है
तो कटिंग चाय तरोताजा करती है
स्वस्त और मस्त
भागती -दौड़ती जिंदगी
उसका आधार
कटिंग चाय और बड़ा पाव

Thursday 18 April 2019

झपकी

झपकी लेना
कहीं भी कभी भी
उससे अच्छा तो कुछ भी नहीं
थके हैं
ट्रेन में बस मे बैठे हैं
ऊब रहे हैं
झपक लो
कोई देख रहा है
देखने दो
क्या फर्क पड़ता है
आप तो तरोताजा हो जाएगा
जब दिमाग ही थक गया हो
काम नहीं कर रहा हो
तब आँख खुली रखकर क्या फायदा
उबासियाँ लेते रहे
जागते रहे
उससे तो बेहतर है झपक लो
हाँ स्थान और समय का ध्यान रखा जाय
मीडिया का जमाना है
सार्वजनिक जीवन मे जो है
उसे ख्याल रखना ही होगा
नींद पर तो किसी का वश नहीं
उसकी तो अपनी मनमर्जी
कभी तो गोलियां खाने
तमाम प्रयत्न करने पर भी नहीं आती
झपकी ऐसे नहीं आती
थकान होने पर आती है
फिर वह जवान हो बच्चा हो बूढ़ा हो
अगली बार ऐसे को देख हंसे नहीं
उसके हालात पर गौर करे
अगर नींद पूरी हो तब
झपकने की कोई बात ही नहीं
बहुत बार दुर्घटना ड्राइवर के झपकने पर हुई है
उसकी नींद पूरी नहीं हुई थी
अतः झपकने वाले के प्रति सहानुभूति रखे
और बस /ट्रेन या ऐसे साधन वाले पर ध्यान रखे
पुलिस जैसे लोग
कभी कभी दो दो रात सो नहीं पाते हैं
इंसान है
ड्यूटी करने के साथ आराम का समय भी दिया जाय

वह है न साथ

जिस समय मैं अकेला महसूस करती हूँ
लगता कोई नहीं है मेरा
तब अचानक लगता है
ईश्वर तो है मेरे साथ
सारी दुनिया क्या कर लेंगी
जब दुनिया बनाने वाला ही साथ है

जब महसूस करती हूँ
मेरे पास कुछ नहीं है
तब लगता है ईश्वर ने बहुत कुछ दिया है
इतनी नायाब जिंदगी दी है
सही सलामत हाथ -पैर दिए हैं
तब और किसी चीज की दरकार क्यों ??

जब मैं असहाय और असमर्थ महसूस करती हूँ
तब लगता है संसार का पालनहार मेरे साथ है
फिर क्या जरूरत है
वह तो हमें मजबूती से थामे हुये हैं

जब मैं भविष्य के प्रति चिंतित होती हूँ
तब महसूस होता है
भाग्य तो लिखने वाला वह है
जो करेंगा वह अच्छा ही करेंगा

जब अपनी और अपनों की सुरक्षा के प्रति सोचती हूँ
डरती हूँ
तब महसूस होता है
वह तो हर जगह है
उसकी मर्जी से तो पत्ता भी नहीं हिलता
रक्षक ही रक्षा करेंगा
जब वह है साथ
तब डर ,चिंता ,तनाव से मुक्त हो
सब विधाता पर छोड़ दीजिए

बहू के जन्मदिन पर

आज दिन बहुत खास है
मेरी प्यारी बहू का जन्मदिन आज है
जयपुर भी अपनी गुलाबी रंगत मे निखर रहा
जी भर कर स्वागत कर रहा
फिजा सुहानी
सुबह ताजगी से भरी हुई
धूप निकल रही मुस्कराते हुए
जैसे तुम मुस्कराती हो
हर पत्ता डोल रहा है
झूम -झूम कर मानो कह रहा
हमारे साथ वह भी
Happy birthday to you🎂🎂💐💐

Wednesday 17 April 2019

खुश रहना भी एक कला

खुश रहना भी एक कला है
जिसे यह आ गई
उसे जीना आ गया
ऐसा नहीं कि जीवन मे उसने जो चाहा
मिल गया
जीवन किसी के इच्छानुसार नहीं
अपनी मर्जी से चलता है
हाँ यह हमारी मर्जी है
हम खुश रहे
हम दुखी रहे
हम रोते रहे
दुखों की गठरी को ढोते रहे
इंसान की फितरत है
वह कभी संतुष्ट नहीं हो सकता
एक के बाद एक इच्छा
सिर उठाए खड़ी ही रहती है
समस्या आती ही रहती है
समाधान भी होता रहता है
ऐसा नहीं कि हर दिन एक समान
ऊपर -नीचे तो होता ही रहता है
जीवन है
जीना भी है
तो क्यों न खुश रहा जाय

Tuesday 16 April 2019

कालेज की यादें ,यौवन की बातें

आज बैठे बैठे मन भटक गया
जाकर पीछे अटक गया
लगा कोई बुला रहा
आॅखमिचौली खेल रहा
वह यौवन था
उसका भी एक दौर था
घंटों बतियाने
खिलखिलाते
फिल्म देखने जाते
मित्रों की टोली में घूमते
समुन्दर किनारे बैठे रहते
लहरों से अठखेलियां करते
न जाने कितने समय शीशे के सामने खडे रहते
अपने को निहारा करते
सपने बुनते और देखते
दुनिया कितनी हसीन और रंगीन लगती थी
कविता और शायरी करते
उपन्यासों और कहानियों में खोए रहते
प्रेम और रोमांस की बातें छुटकारे ले लेकर सुनते
कल्पना बुनते रहते
यथार्थ से कही दूर
सब कुछ नजरअंदाज कर
हर बात को टाल कर
किसी की परवाह नहीं
समाज की तो ऐसी कि तैसी
वह सोच थी जवानी की
तब जवानी खिलखिलाती थी
मनमौजी थी
आज भी हम तो वही है
पर यौवन साथ नहीं है
उसके बिना तो वह बात कहाॅ