Saturday 21 June 2014

YEH SANSAAR BHI EK MAHABHARAT HAI !!

कहा जाता है जो बीत गयी वो बात गयी ,जो हुआ उसे भूल जाओ ,पर भूलना इतना आसान है क्या ?
कितनी भी उचाई पर पहुंच जाये ,सबकुछ पा ले पर अतीत तो हमारा पीछा नहीं छोड़ता है ,अगर मधुर स्मृतियों के सहारे जीवन जिया जा सकता है तो कटु स्मृतियाँ भी हमारा पीछा नहीं छोड़ती,
अगर भूलना इतना आसान होता तो हस्तिनापुर की महारानी ,पांच पांडव की पांचाली ,अपना अपमान कबका भूल चुकी होती लेकिन उस अपमान की ज्वाला तो दुशासन के रख्तपन से भी शांत नहीं हुई
महाभारत तो होकर ही रहा और विनाश भी हुआ पर मन की ज्वाला धधकती रही,न धृतरास्ट् भूले अपने अंधे पन के कारन सिहासन छिन जाना ,न गंधारी भूली अंधे के साथ विवाहसम्बन्ध ,न गान्धारनरेश शकुनि सेह पाये बहन के साथ हुआ अन्याय ,न दुर्योधन सेह पाया द्रौपदी का पिता के अंधेपन पर व्यंग बाण
पांच बलशाली पुत्रों की माँ कुंती ने दुःख का वरदान माँगा कृष्ण से ,बड़े बेटे सूर्यपुत्र के अलगाव ने कभी सुखी होने नहीं दिया,और बचे महारथी ,महाबलशाली ,दानवीर कर्ण,सबको दान देकर सुखी करते रहे पर स्वयं हमेशा अपमान की पीड़ा में जलते रहे ।

यह केवल महाभारत की कथा नहीं ,हम साधारण मनुष्यो की भी यही बात है ,हम भूल सकते है शायद नहीं ?
फिर भी दिखावा करते रहते है ,महान बनने की कोशिश करते रहते है ,क्योंकि केवल इसीलिए की ये लोग हमारे  अपने है , कही ना  कही किसी न किसी तरह से हमसे जुड़े हुए है ,इनके दुःख से हम दुखी होते है इनके सुख में खुश  पर मन कहीं न कहीं सालता रहता है ,कब तक ये व्यथा पीड़ा सहते रहेंगे इनसे अलग होना क्या इतना आसान है हम हो हे नहीं सकते ,जी ही नहीं सकते ,रही दुसरो की बात ,वे हमारे अपने नहीं फिर उनका दुःख क्यों?उन्हें तो हम छोड़ सकते है ,पर यह भी मुमकिन नहीं ,आखिर क्यों?

हम समाज में रहते उस समाज में जहा तुम्हारे दुःख से लोग खुश होते है ,तुम्हारे सुख से जलते है केवल इसीलिए की वे हमारे दुःख में सहानभूति दिखाएंगे ,तीज त्यौहार पर मिलने आएंगे या चार कंधो पर अर्थी जा रही हो तो इकठ्ठा होकर याद करेंगे ,हम इनसे जुड़े रहते है वर्ष दर वर्ष प्रतीक्षा करते रहते है ,खुशियां और दुःख बाटने की कोशिश करते रहते है ,परिणाम आखिर क्या ?ये कब और क्यों टूट जाये कहा नहीं जा सकता
रिश्ते,नाते,प्यार,दोस्ती,वफ़ा सब यही के यही रह जाते है कोई किसी का नहीं रहता सम्बन्ध पुराने पढ़ जाते है,
टूट जाते है ,फिर हम अपनी जिंदगी क्यों नहीं जी पाते जैसे को तैसा बनकर क्यों नहीं दिखाते ,क्यों अच्छाई का मुखोटा पहने रहते है ,अपने मन को तकलीफ देते रहते है,क्यों दुसरो की परवाह करते है ।क्या हम इतने निर्बल कमज़ोर है ?पता है की अपना रास्ता ,मंज़िल हमें स्वयं ढूंढ ना है,फिर किसके सहारे क्यों बैठना।

यह संसार भी एक महाभारत है और हम इस युद्ध के भागीदार है। 


Sunday 15 June 2014

MERI PYARI MAA

माँ क्या होती है यह जाना तुमसे,अपने बच्चो को प्यार दुलार देने वाली,
हर वख्त में उनके साथ कड़ी रहने वाली ,हर संकट को स्वयं पर झेलने वाली,
चाहे गरजते बादल हो या कड़कती बिजली ,हर झंझावात को मात देने वाली ,
इतनी शक्ति कहाँ  से आयी कभी हार मानते हुए नहीं देखा
वर्ष पे वर्ष गुजरते गए कभी ध्यान से नहीं देखा तुम्हे,
हमेशा अपने जरुरतो की पूर्ति कराती रही तुमसे ,हमेशा कुछ न कुछ अपेक्षा ही रही तुमसे
मेरे जीवन को आसान बना दिया तुमने,कभी किसी तकलीफ का एहसास नहीं होने दिया तुमने
तुम पर अपना हक़ जताती रही,अपनी हर बात मनवाती रही
लेकिन अचानक तुम्हे  देख मन के किसी कोने में भयंकर पीड़ा हुई
यह वही स्त्री है जो चट्टान क सामने भी तनकर खड़ी होजाती थी
आज शरीर अशक्त होगया है चलना उठना बैठना भरी होगया है ,
श्रवण शक्ति कम होगयी है,मन भी बुझ सा गया है
कैसे खत्म होगयी तुम्हारी यह जिजीविषा,कैसे इतनी कमज़ोर होगयी तुम
तुम्हारे इस रूप को मन स्वीकार नहीं कर पा रहा


                       

वर्षो तक घर बाल-बच्चे संभालती रही ,नाते रिश्तेदारों को प्यार बांटती रही ,
कभी किसी को भार नहीं समझा ,सेवा-दया ,ममता ,स्वाभिमान की मूर्ति
आज भी वह कायम है पर शरीर साथ छोड़ रहा है ,दुखी मत हो स्वीकार करो ,
इस दिन को भी आना था समय तोह किसी का नहीं होता तोह तुम्हारा कैसे होगा ,
यही तो जीवन है ,आज जहा तुम कड़ी हो कल शायद मैं वाहा होउंगी ,
क्या होगा कैसे होगा चिंतित  हू मन दुविधा में पड़ा हुआ है
फिर भी आज भी अपेक्षा है तुमसे क्योंकि तुम तो माँ हो,
माँ हमेशा बच्चो के लिए हे होती है ,बच्चे उनके लिए हो या न हो।
                                         
                                       
                                           

HAPPY FATHERS DAY

तपस्वी की तपस्या, मनस्वी की साधना,गीता का ज्ञान 
सीधा साधा ईमानदार इंसान यही है तुम्हारी पहचान 
पिता क्या होता है यह तुमसे ही जाना,माँ अगर नौ महीने गर्भ में रखती है 
तो पिता उसकी पल पल उसकी सुरक्षा-सुविधा का ख्याल  रखता है 
डगमगाते कदमो से सर पर बोझ रखता हुआ पिता 
मजदूरी करता रिक्शा चलाता पिता ताकि उसके बच्चेअच्छा जीवन  जिये 
बासी रोटी खा कर लेकिन बच्चे को ताजी  रोटी खिलाता  पिता 
दफ्तर भर काम कर ट्रैन और बस के धक्के  खाता पिता 
बेटी के ससुराल के द्वार पर सर झुकाता पिता 
माँ की  महानता को तो सबने जाना पर पिता का त्याग ?
इतिहास गवाह  है अपने बेटे अर्जुन की सुरक्षा के लिये कर्ण से कवच-कुण्डल मांगता हुआ पिता 
राम के वियोग में प्राण त्यागते महाराज दशरथ 
माँ तो रो लेती है पर पिता कठोर दिखने पर मजबूर होजाता है 
घर का मुखिया ही अगर टूट जाये तो क्या होगा 
माँ अगर धरती है तो पिता आसमान पिता की छत्र-छाया न हो तो बच्चा निराधार होजाता है 
एकदम से बड़ा होजाता है अत पिता के योगदान को नाकारा नहीं जा सकता। 


                                     

Sunday 8 June 2014

ABKI BAAR HINDI SARKAAR!!!

१४ सितम्बर
हिंदी दिवस साल में एक दिन आता है ।
बैंक,सरकारी कार्यालय,रेल विभाग जहाँ देखो वहाँ हिंदी ही हिंदी ।
पखवाड़े,सप्ताह  मनाएं जाते है,शायद एक हफ्ते या फिर १५ दिन फिर व्ही ढाक के पात
आखिर क्यों?
हिंदी ही नहीं सभी भारतीय भाषाओँ की यह दुर्गति क्यों
कथनी और करनी में फर्क क्यों?
सत्य को हम स्वीकार क्यों नहीं करते
हाय-हाय अंग्रेजी करते-करते,हम उसमे ही  गोतें खा रहे हैं ।
कारण को ढूंढ ना होगा,भाषा को रोजी-रोटी से जोड़ना होगा
अपमान से नहीं सम्मान से देखना होगा,प्रगति की दौड़ में शामिल करना होगा
उसे इस लायक बना ना होगा कि जबरन नहीं ,स्वयं की इच्छा से लोग अपनाएं

अंग्रेजी का विरोध क्यों ?
अंग्रजी में यह गुण है शायद ,तभी तो है उसकी आवश्यकता
हम अपने को तलाशें ,टटोलें और तराशें
हिंदी को इस कदर बनाएँ कि लोग उससे जुड़ें
वह लोगों क पास नहीं लोग उसके पास आएं
अगर यह मुमकिन हुआ तो हिंदी हे क्यों सभी भारतीय भाषाएँ टिक पायेगी
अन्यथा एक अंग्रेजी को छोड़ ,सभी हमको छोड़ जाएँगी  ।

हिंदी को बढ़ावा देने के लिए प्रधान मंत्रीजी का धन्यवाद।  

                                       

HUMARA BACHPAN HUMEIN JEENE DO !!!

हम सुन्दर खूबसूरत फूल है इस बगियाँ के ,हमें भी खिलने ,हँसने ,मुस्कुराने का हक़ हैं 
हमें अपनी मर्ज़ी से जिस दिशा में चाहें पनपने दो ,अपनी महत्वाकांक्षाएं हम पर मत लादियें 
 
हमारा ये हक़ हमसे मत छिनियें ,अगर हमारा हक़ हमसे छिन लिया तो हम खिलने से पहले ही मुरझा जायेंगे 
हम तो भविष्य है आपके,भविष्य को सवारिये अंकुश मत लगाइए । 

हम छोटे-छोटे पंछी,सामने खुला विस्तृत आकाश हमारे पंख मत काटों 
हमें अपनी उड़ान भरने दो ,हम अपनी मंज़िल स्वयं ढूंढ लेंगे 
हमारी स्वतंत्रता हमसे मत छीनो 
हमारा बचपन हमें जीने दो।  
हमारा बचपन हमें जीने दो  । 

Thursday 5 June 2014

HAR EK SAATH ZARURI HOTA HAI - international family day !

हम एक -दूसरे  के साथ रहते है । जानते ,समझते और विचार करते है ।
दिन ,सप्तह ,मास ,वर्ष  गुजर जाते है ,क्या इसी को मित्रता कहते है ।

पड़ोसी की मित्रता ,ट्रैन के सहयात्रियों की मित्रता,कार्यस्थल की मित्रता ।

यह मित्रता है या ज़रूरत है । सामाजिक प्राणी है मनुष्य
अकेले तो रह नहीं सकता  किसी न किसी का साथ चाहिए ।

माता-पिता का साथ ,भाई-बहनो का साथ ,सखी सहेलियों का साथ
प्रेमी-प्रेमिका,पति -पत्नी का साथ यहाँ तक पड़ोसी और सहयात्रियों का साथ ।

इसी को बनाये रखने क लिए न जाने कितने प्रयत्न किये जाते है ।
त्याग,प्यार,समर्पण ,धैर्य,सदियों से प्रयत्नशील है मनुष्य

क्या खोया,क्या पाया ज़िन्दगी इसमें उलझ जाती है ।
उलझते-उलझते कहीं खत्म भी होजाती है ,अंतिम समय भी चार कंधो का साथ लेकर
प्यार हो या न हो ,दोस्ती हो या न हो पर एहसानमंद तो होना ही चाहिए
उन लोगों का उन साथियों का जो जिंदगी के हर पड़ाव पर साथ देते गये
मिलते और बिछुड़ते गये ।

जिंदगी गणित नहीं है की जोड़ा और घटाया जाये ।
क्या दिया,क्या लिया ,क्या खोया ,क्या पाया । यह तो है प्रेम,स्नेह और मैत्री का बंधन
                               और
उससे भी ऊँचा है मानवता का बंधन । 
हमारे यहॉ वसुधैव कुंटुंब की भावना है
सारा विश्व ही एक परिवार है





Monday 2 June 2014

ANKO MEIN SIMAT GAYI SIKHSHA!!!

Dasvi aur barahvi ke natije aane wale hai uske pehle he gahma gahmi badh gayi hai
kya hoga?abhibhavak chhatra sabhi chintit hai acha college milega ya nahi?kitne pratishat aayenge?
sarkar patshalay aur mahavidyalay toh kholti hai par sabhi ko sarrottam chahiye wah kaha se hoga
90 pratishat laane par bhi duvidha rehti hai istithi yeh hogayi hai ki bachha 70-75 pratishat ank laane par bhi
khush nahi ho pata hai agar apka bachha 55-60 pratishat wala hai toh woh aankhri saal mein 90 pratishat kaha se la sakta hai.Bachhon se apkesha badh gayi hai,shiksha ka uddesh gyanarjan hona chahiye par aaj humari shiksha anko ke pher mein simmat gayi hai,bachhon ke komal mann ko iss samay pyar,vishwas,dheeraj ki zarurat hoti hai.abhibhavak,shikshak,padosi,rishtedaar sabki nazar us par usey kuch samajh mein nahi aata hai aise samay mein ishwar na kare vo koi galat kadam uthale attah mata-pita ko chahiye in saare thappedo se bachhe ko bachakar rakhe pratham apka bachha hai badme kuch aur
usse zyada mulyavan kuch bhi nahi.
JAAN HAI TOH JAHAN HAI!!!

                                     

TWENTY-20 JEET KISKI??

cricket match ipl ka final match jee jaan se horahi taiyariya
ye krida hai ya jung har nigaha hai utsuk,har man hai bechain
bas keval ye he prashn haar ya jeet?
jeetna hai chhakke chhudana hai,khel ki baazi ko palatna hai
aagaya shan khel ka sikka uchhala toss jeeta,
match k saath he sattebazi aur match fixing shuru hogayi

sattoriye-bookies baithkar apna satta lagane ki taiyaari mein hai
police apne jaal bichane ki taiyaari mein hai
lekin nuksaan toh janta ko jisne hazaro ki ticket li hai
aur unhe bevkuf banaya jaata hai
khel ko khel he rehne do,vyavasayein mat banao
khel mein bhi bhrashtachar thik nahi.