Thursday 30 January 2020

मत चूको चौहान

*मत चूको चौहान*

वसन्त पंचमी का शौर्य

*चार बांस, चौबीस गज, अंगुल अष्ठ प्रमाण!*
*ता उपर सुल्तान है, चूको मत चौहान!!*

वसंत पंचमी का दिन हमें "हिन्दशिरोमणि पृथ्वीराज चौहान" की भी याद दिलाता है। उन्होंने विदेशी इस्लामिक आक्रमणकारी मोहम्मद गौरी को 16 बार पराजित किया और उदारता दिखाते हुए हर बार जीवित छोड़ दिया, पर जब सत्रहवीं बार वे पराजित हुए, तो मोहम्मद गौरी ने उन्हें नहीं छोड़ा। वह उन्हें अपने साथ बंदी बनाकर काबुल  अफगानिस्तान ले गया और वहाँ उनकी आंखें फोड़ दीं।

पृथ्वीराज का राजकवि चन्द बरदाई पृथ्वीराज से मिलने के लिए काबुल पहुंचा। वहां पर कैद खाने में पृथ्वीराज की दयनीय हालत देखकर चंद्रवरदाई के हृदय को गहरा आघात लगा और उसने गौरी से बदला लेने की योजना बनाई।

चंद्रवरदाई ने गौरी को बताया कि हमारे राजा एक प्रतापी सम्राट हैं और इन्हें शब्दभेदी बाण (आवाज की दिशा में लक्ष्य को भेदनाद्ध चलाने में पारंगत हैं, यदि आप चाहें तो इनके शब्दभेदी बाण से लोहे के सात तवे बेधने का प्रदर्शन आप स्वयं भी देख सकते हैं।

इस पर गौरी तैयार हो गया और उसके राज्य में सभी प्रमुख ओहदेदारों को इस कार्यक्रम को देखने हेतु आमंत्रित किया।

पृथ्वीराज और चंद्रवरदाई ने पहले ही इस पूरे कार्यक्रम की गुप्त मंत्रणा कर ली थी कि उन्हें क्या करना है। निश्चित तिथि को दरबार लगा और गौरी एक ऊंचे स्थान पर अपने मंत्रियों के साथ बैठ गया।

चंद्रवरदाई के निर्देशानुसार लोहे के सात बड़े-बड़े तवे निश्चित दिशा और दूरी पर लगवाए गए। चूँकि पृथ्वीराज की आँखे निकाल दी गई थी और वे अंधे थे, अतः उनको कैद एवं बेड़ियों से आजाद कर बैठने के निश्चित स्थान पर लाया गया और उनके हाथों में धनुष बाण थमाया गया।

इसके बाद चंद्रवरदाई ने पृथ्वीराज के वीर गाथाओं का गुणगान करते हुए बिरूदावली गाई तथा गौरी के बैठने के स्थान को इस प्रकार चिन्हित कर पृथ्वीराज को अवगत करवाया

‘‘चार बांस, चैबीस गज, अंगुल अष्ठ प्रमाण।
ता ऊपर सुल्तान है, चूको मत चौहान।।’’

अर्थात् चार बांस, चैबीस गज और आठ अंगुल जितनी दूरी के ऊपर सुल्तान बैठा है, इसलिए चौहान चूकना नहीं, अपने लक्ष्य को हासिल करो।

इस संदेश से पृथ्वीराज को गौरी की वास्तविक स्थिति का
आंकलन हो गया। तब चंद्रवरदाई ने गौरी से कहा कि पृथ्वीराज आपके बंदी हैं, इसलिए आप इन्हें आदेश दें, तब ही यह आपकी आज्ञा प्राप्त कर अपने शब्द भेदी बाण का प्रदर्शन करेंगे।

इस पर ज्यों ही गौरी ने पृथ्वीराज को प्रदर्शन की आज्ञा का आदेश दिया, पृथ्वीराज को गौरी की दिशा मालूम हो गई और उन्होंने तुरन्त बिना एक पल की भी देरी किये अपने एक ही बाण से गौरी को मार गिराया।

गौरी उपर्युक्त कथित ऊंचाई से नीचे गिरा और उसके प्राण पंखेरू उड़ गए। चारों और भगदड़ और हा-हाकार मच गया, इस बीच पृथ्वीराज और चंद्रवरदाई ने पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार एक-दूसरे को
कटार मार कर अपने प्राण त्याग दिये।

*"आत्मबलिदान की यह घटना भी 1192 ई. वसंत पंचमी वाले दिन ही हुई थी।"*

*ये गौरवगाथा अपने बच्चों को अवश्य सुनाए*

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Wednesday 29 January 2020

दुश्मनी भी रिश्ता

वह दुश्मन था
पुरानी दुश्मनी थी
पता नहीं कितनी पुश्तैनी
बातचीत क्या
देखने की भी इजाजत नहीं
कारण क्या
वह पता नहीं
बचपन से बस सिखाया गया
पडोसी थे
कभी एक ही घर होगा
एक ही परिवार होगा
एक ही खानदान होगा
अब दीवार है
नया शहर था
कोई परिचित नहीं
परेशानी अलग
बिना किसी जानकारी के
नयी नौकरी
कहाँ वह छोटे शहर वाला माहौल
कहाँ यह महानगर
एक दिन देर हो गई
रात और  सुनसान सडक
अचानक कुछ शोहदे साथ चलने लगे
डर लगा
तभी एक गाडी पास आ रूकी
आ जाओ अंदर
देखा वही पडोसी का बेटा
शायद इसी शहर में रहता था
जान में जान आई
दुश्मनी याद न रही
कोई परिचित तो है अपना
इन अंजान लोगों का क्या ठिकाना
लगा दुश्मनी भी एक रिश्ता है
दुश्मन से भी रिश्ता बन सकता है
जब अंजान शहर हो
बेगाने लोग हो

Sunday 26 January 2020

अपने लिए भी जी लो

कभी-कभी लगता है
मनमानी करो
सब झंझट छोड़ दो
बस स्वयं में रम जाओ
घर गृहस्थी का चक्कर छोड़ो
बहुत उलझ चुके इस मायाजाल में
इसका बंधन तोड़ दो
बहुत वक्त बीत चुका
सब कुछ समेटते
अब बस भी करो
सबको ,सबके हाल पर छोड़ दो
समय कम है
उसका सदुपयोग कर लो
सबके लिए जी लिए
अब तनिक अपने लिए भी जी लो
यह आपाधापी
यह भागम-भाग
छोड़ जरा विश्राम करो
कुछ मन की सुन लो
कुछ उससे भी बतिया लो
सब झंझट छोड़ दो
बस अब मनमानी करो
अब तनिक अपने लिए भी जी लो

Saturday 25 January 2020

हम बस याद नहीं है

हम बस याद नहीं है
तुम्हारा आज और कल है
इतना आसान नहीं है
मुझसे पीछा छुड़ाना
हर वक्त तुम्हारे साथ साथ
तुम्हारे पीछे पीछे
तुम्हारी हर सोच में हम
तुम्हारे मन मस्तिष्क में हम
एक बार जिससे बंध गए
बस बंध गए
कोशिश कर ले कोई
मुक्त तो हमसे हो नहीं सकता
कुछ देर के लिए
हट जाय भले हम
पर फिर लौटकर आ जाते हैं
तुम पर छा जाते हैं
ताउम्र तुम्हारे साथ रहेंगे
तुम्हें कभी अकेला न छोड़ेगे
यह तो वादा है तुमसे
प्रयास भले कर लो
मेरे भंवर जाल से निकलना मुश्किल
यह घूमते रहेंगे
मंडराते रहेंगे
अपने जाल बिछाते रहेंगे
जकड़े रहेंगे
कस कर पकड़े रहेंगे
आजाद नहीं होने देंगे
तुम गोता लगाते रहो
हम डूबने भी नहीं देंगे
उतरने भी नहीं देंगे
अपने में उलझाए रखेंगे
हम बस याद नहीं है
तुम्हारा आज और कल है

Friday 24 January 2020

बस इतना ही

हम तो वह शख्स है
जहाँ बैठ जाय
वहाँ महफिल जम जाय
हंसी के ठहाके लगने लगे
बहस छिड़ जाय
लोग ध्यान से सुनने लगे
समझने लगे
रूचि लेने लगे
विषय कोई भी हो
हर विषय लाजवाब हो जाय
धर्म और जाति का भेद मिट जाए
भाषा कोई भी  हो
सब सामंजस्य हो जाय
बस भावना हो
दोस्तों का संग हो
खुशी का माहौल हो
मिजाज भी साथ हो
बस ज्यादा कुछ नहीं
इतना ही काफी है

ऐ मुसाफिर

कोई साथ न दे
ठीक है
वह भी चल जाएगा
सब छोड़ दे
ठीक है
वह भी चल जाएगा
कोई हमसफर न बने
ठीक है
वह भी चल जाएगा
पर स्वयं का साथ तो
तुझे खुद ही देना है
ऐ मुसाफिर
मंजिल तक पहुंचना भी है
निभाना तो स्वयं से ही है
हमसफ़र की जरूरत नहीं
तू अकेला ही समर्थ बन
किसी का साथ
छोड़ना जुड़ना
यह बहुत मायने नहीं
तू चल जिंदगी चलेगी
ऐसा कर
पीछे पीछे जग चले
लोग तुझसे जुड़ने की चाह रखे
तू पीछे मुड़ कर मत देख
तुझे लोग देखें
स्वयं का स्वयं से साथ निभाता चल
अकेला ही सही
चलता चला चल
मंजिल तेरी है
चलना तुझे ही है
कैसे भी
बस चलते रहना है

ऐ मुसाफिर

कोई साथ न दे
ठीक है
वह भी चल जाएगा
सब छोड़ दे
ठीक है
वह भी चल जाएगा
कोई हमसफर न बने
ठीक है
वह भी चल जाएगा
पर स्वयं का साथ तो
तुझे खुद ही देना है
ऐ मुसाफिर
मंजिल तक पहुंचना भी है
निभाना तो स्वयं से ही है
हमसफ़र की जरूरत नहीं
तू अकेला ही समर्थ बन
किसी का साथ
छोड़ना जुड़ना
यह बहुत मायने नहीं
तू चल जिंदगी चलेगी
ऐसा कर
पीछे पीछे जग चले
लोग तुझसे जुड़ने की चाह रखे
तू पीछे मुड़ कर मत देख
तुझे लोग देखें
स्वयं का स्वयं से साथ निभाता चल
अकेला ही सही
चलता चला चल
मंजिल तेरी है
चलना तुझे ही है
कैसे भी
बस चलते रहना है

Thursday 23 January 2020

True friends

*After checking my heart ♥ pulse,*
*The doctor smiled and said:*

*Go sit and enjoy with your old friends,*
*They are the cure for all your ailments and shock... l*

*Stay in touch and keep relations with your friends,  janab...*
*Bcoz they are such healers*
*Who can cure you with their sweet and abusive talks..।*

*They don't make you feel of your age,*
*These idiot friends...*
*They never let you get old and always by your side to walk...।*

*Children will ask for WILL,*
*Relatives will ask for BILL,*
*Its only your true friends*
*In whatever circumstances,*
*They will ask you to "JUST CHILL"....l*
🙏
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परम मित्र कौन ??

🌹⭐🌹

*परम मित्र कौन है ?*🏹
एक व्यक्ति था उसके तीन मित्र थे।
एक मित्र ऐसा था जो सदैव साथ देता था। एक पल, एक क्षण भी बिछुड़ता नहीं था।

दूसरा मित्र ऐसा था जो सुबह शाम मिलता।

और तीसरा मित्र ऐसा था जो बहुत दिनों में जब तब मिलता।

एक दिन कुछ ऐसा हुआ की उस व्यक्ति को अदालत में जाना था और किसी कार्यवश साथ में किसी को गवाह बनाकर साथ ले जाना था।

अब वह व्यक्ति अपने सब से पहले अपने उस मित्र के पास गया जो सदैव उसका साथ देता था और बोला :- "मित्र क्या तुम मेरे साथ अदालत में गवाह बनकर चल सकते हो ?

वह मित्र बोला :- माफ़ करो दोस्त, मुझे तो आज फुर्सत ही नहीं।

उस व्यक्ति ने सोचा कि यह मित्र मेरा हमेशा साथ देता था। आज मुसीबत के समय पर इसने मुझे इंकार कर दिया।

अब दूसरे मित्र की मुझे क्या आशा है।

फिर भी हिम्मत रखकर दूसरे मित्र के पास गया जो सुबह शाम मिलता था, और अपनी समस्या सुनाई।

दूसरे मित्र ने कहा कि :- मेरी एक शर्त है कि मैं सिर्फ अदालत के दरवाजे तक जाऊँगा, अन्दर तक नहीं।

वह बोला कि :- बाहर के लिये तो मै ही बहुत हूँ मुझे तो अन्दर के लिये गवाह चाहिए।

फिर वह थक हारकर अपने तीसरे मित्र के पास गया जो बहुत दिनों में मिलता था, और अपनी समस्या सुनाई।

तीसरा मित्र उसकी समस्या सुनकर तुरन्त उसके साथ चल दिया।

अब आप सोच रहे होंगे कि...
वो *तीन मित्र कौन है...?*

तो चलिये हम आपको बताते है इस *कथा का सार*।

जैसे हमने तीन मित्रों की बात सुनी वैसे *हर व्यक्ति के तीन मित्र होते हैं।*

सब से *पहला मित्र है हमारा अपना 'शरीर'* हम जहा भी जायेंगे, शरीर रुपी पहला मित्र हमारे साथ चलता है। एक पल, एक क्षण भी हमसे दूर नहीं होता।

*दूसरा मित्र है शरीर के 'सम्बन्धी'* जैसे :- माता - पिता, भाई - बहन, मामा -चाचा इत्यादि जिनके साथ रहते हैं, जो सुबह - दोपहर शाम मिलते है।

और *तीसरा मित्र है :- हमारे 'कर्म'* जो सदा ही साथ जाते है।

अब आप सोचिये कि *आत्मा जब शरीर छोड़कर धर्मराज की अदालत में जाती है, उस समय शरीर रूपी पहला मित्र एक कदम भी आगे चलकर साथ नहीं देता।* जैसे कि उस पहले मित्र ने साथ नहीं दिया।

*दूसरा मित्र - सम्बन्धी श्मशान घाट तक यानी अदालत के दरवाजे तक "राम नाम सत्य है" कहते हुए जाते हैं तथा वहाँ से फिर वापिस लौट जाते है।*

और *तीसरा मित्र आपके कर्म हैं।*
*कर्म जो सदा ही साथ जाते है चाहे अच्छे हो या बुरे।*

*अब अगर हमारे कर्म सदा हमारे साथ चलते है तो हमको अपने कर्म पर ध्यान देना होगा अगर हम अच्छे कर्म करेंगे तो किसी भी अदालत में जाने की जरुरत नहीं होगी।*

और धर्मराज भी हमारे लिए स्वर्ग का दरवाजा खोल देगा।

रामचरित मानस की पंक्तियां हैं कि...
*"काहु नहीं सुख-दुःख कर दाता।*
*निजकृत कर्म भोगि सब भ्राता।।"*

🌹
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*तमसो मा ज्योतिर्गमय*
〰〰〰〰〰〰🙏

जीने की आस

आज शमा खुशगवार है
मौसम सुहाना और शांत है
कोई दिल के करीब है
कानों में बज रही शहनाई है
होठों पर गीत गुनगुना रहे हैं
ऑखे उनींदी है
दिन में ही सपने आ रहे हैं
सब जगह छाई बहार है
कौन सा मौसम यह आया है
मन के कोने-कोने को गुदगुदा रहा है
कुछ हौले से कह रहा है
पंख लगा कर उड रहा है
अजीब अजीब सी हरकत कर रहा है
हलचल मचा रहा है
जरा नजर डाल ली
तब लगा
मौसम तो वही है
बदला तो कुछ भी नहीं है
खुशी हिलोरे ले रही है
कुछ मनचाही मुराद मिली है
जब मन प्रफुल्लित और प्रसन्न
तब सारा जहां ही लगता खुशगवार
हर कण कण लगता गाता है
जीने की आस जगाता है

Monday 20 January 2020

वचनामृत

📖 *श्रीरामकिंकर वचनामृत...*👏
*****************************
📕 मानस में सांकेतिक भाषा आती है कि हनुमानजी सीताजी की खोज में समुद्र के ऊपर से जा रहे हैं, तो मानो देहाभिमान से ऊपर उठकर जा रहे हैं। समुद्र है देहाभिमान। समुद्र ने मैनाक को उत्साहित किया कि हनुमानजी तुम्हारे मित्र के पुत्र हैं, तुम ऊपर उठो और इन्हें निमंत्रण दो। मानो समुद्र की यह चुनौती थी कि आप मुझे बिना छुए ऊपर-ही-ऊुपर चले जा रहे हैं, तो इसमें क्या विशेषता, जरा नीचे उतर कर आइये, तब तो आपकी विशेषता की परीक्षा होगी। मैनाक स्वर्ण का पर्वत 🌋था। उसने कहा - मैं तुम्हारे पिता का मित्र हूँ। उसने हनुमानजी को आमन्त्रित किया। परन्तु हनुमानजी ने उस निमंत्रण को अस्वीकार कर दिया। इसके माध्यम से हनुमानजी जिस सत्य को बताना चाहते थे, वह यह है कि साधक को अनावश्यक चुनौतियों को स्वीकार करने की व्यग्रता नहीं दिखानी चाहिए। साधना का पथ बड़ा जटिल है। यदि कोई साधक पग-पग पर बुराइयों को चुनौती देता चले, तो वह कहीं भी उलझ सकता है। और चुनौती से हमेशा भागने की चेष्टा करे, तो भी वह समस्याओं को पार नहीं कर सकता। अतः हनुमानजी ने विनम्रता पूर्वक क्षमा मांग ली और आगे बढ़ गये।
       समुद्र को हँसी आई -- आखिरकार भाग खड़े हुए, मुझे छुने का साहस नहीं हुआ। रामायण की बड़ी सांकेतिक भाषा है। हनुमानजी ने लंका को जलाने के बाद पहला काम पहला काम क्या किया ? वे सीधे समुद्र में कूद पड़े --
       मित्र, तुमने निमंत्रण दिया था, अब मैं आ गया। इसमें एक संकेत था। समुद्र कह सकता था -- उस दिन निमंत्रण नहीं स्वीकार किया और आज अनिमंत्रित ही आ गये ? हनुमानजी का संकेत था कि जब तक मैं साधना के पथ पर चल रहा था, तब तक ऊपर से चले जाने में ही कल्याण था, पर अब तो माँ की कृपा से कृतकृत्य होकर आ गया हूँ। अतः अब तुम्हारी चुनौती स्वीकार करने में कोई भय नहीं है। हनुमानजी वस्तुतः शंकरावतार हैं, तो भी जब उन्हें माँ ने आशीर्वाद दे दिया और उसके बाद उन्होंने प्रवृति को जलाकर भस्म कर दिया, तभी उन्होंने समुद्र में प्रवेश किया।
👏🏻 #सुविचार ---

      🌊 जय गुरुदेव जय सियाराम 🙏

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ओ स्त्री

सुनो
ओ स्त्री....
अपनी ख़ुशी टांगने को तुम कंधे क्यों तलाशती हो?
कमज़ोर हो, ये वहम क्यों पालती हो?

ख़ुश रहो के ये काजल तुम्हारी आँखों मे आकर संवर जाता है,
ख़ुश रहो के कालिख़ को तुम निखार देती हो।

ख़ुश रहो के तुम्हारा माथा बिंदिया की ख़ुशकिस्मती है,
ख़ुश रहो के तुम्हारा रोम रोम बेशकीमती है।

खुश रहो के तुम न होतीं तो क्या क्या न होता,
न मकानों के घर हुए होते, न आसरा होता।

न रसोइयों से खुशबुएँ ममता की, उड़ रही होतीं,
न  त्योहारों पर महफिलें सज रही होतीं।

ख़ुश रहो के तुम बिन कुछ नहीं है,
तुम्हारे हुस्न से ये आसमां दिलकश और ये ज़मीं हसीं है।

ख़ुश रहो के रब ने तुम्हें पैदा ही ख़ुद मुख़्तार  किया ,
फिर क्यों किसी और को तुमने अपनी मुस्कानों का हक़दार किया ?

ख़ुश रहो, जान लो के तुम क्या हो
चांद सूरज हरियाली हवा हो।

खुशियाँ देती हो, खुशियां पा भी लो
कभी बेबात गुनगुना भी लो।

अपनी मुस्कुराहटों के फूलों को अपने संघर्ष की मिट्टी में खिलने दो,
अपने पंखों की ताकत को नया आसमान मिलने दो।

और हां
मत ढूंढो कंधे...
ये सहारे सरक जाया करते हैं....Copy  Paste

जरा सुस्ता ले

कितनी दौड़ रही है
ऐ जिंदगी
जरा सुस्ता ले
दो घडी बतिया ले
हंस ले दिल खोलकर
मिल जुल ले अपनों से
जरा पास तो बैठ उनके
उनको गौर से देख
उनकी भावनाओं को समझ
उनके होठों पर मुस्कान ला
जरा बेफिक्र हो जा
ऐसे ही चहल कदमी कर
कभी बिना काम के भी बैठ
छुट्टी ले
स्वयं को भी आराम दे
आकाश की ओर निहार
चिडिया की ची ची पर गौर कर
हवा को महसूस कर
कभी बिना कारण भी कुछ कर
जो मन चाहता है
संकोच छोड़ दे
जीना मत छोड़
दौड़ बहुत हो चुकी
आपाधापी मत कर
धीमी ही सही
चलने दे आहिस्ता आहिस्ता
आनंद को महसूस कर
दौड़ते दौड़ते कहीं
खुशी खुद से खुसर पुसर न करें
तुझे छोड़ जाने की बात करने लगे
समय है अब भी
उसे कस कर पकड़
भागने को लगाम दे
बहुत हो चुकी दौड़
ऐ जिंदगी
जरा सुस्ता ले

Sunday 19 January 2020

बस ज्यादा नहीं

अपने पैरेन्टस का
माता पिता को कभी भी नजरअंदाज न करें
उनका सम्मान और दिल से प्यार करें
यह वे शख्स हैं
जिनका कोई मुकाबला नहीं कर सकता
हर समय
हर परिस्थिति में जो खडा रहा है
और रहेगा
वे तो यही हैं
हर रिश्ता नया मोड़ लेता है
पर यह नहीं
यह न पुराना होता है
न नया
बस ममता से भरा होता है
निस्वार्थ
निस्संदेह बहुतेरे रिश्तों में आप है
पर तब भी यह तो अनमोल है
हर वक्त त्याग के लिए तत्पर
पहले भी
अब भी
आगे भी
आपको बनाने में पता नहीं
कितनी बार अपना मन मारा होगा
आपकी जिद के आगे झुक गए होगे
आपके तनाव को झेला होगा
आपका न चाहते हुए भी
समर्थन किया होगा
आपके गुस्से और नाराजगी को सहा होगा
हौले से मुस्करा कर
हर परिस्थिति में आपको धीरज रखने को कहा होगा
मन उनका भी विचलित हुआ होगा
पर जाहिर न किया होगा
हर घड़ी में डट कर खडे रहने वाले
इस संसार में आपको लाने वाले
का इतना हक तो बनता है
शुक्रिया और आभार
सम्मान और स्नेह
बहुत ज्यादा होगा

Saturday 18 January 2020

जीवन नैया

उसने बोला
इसने बोला
इनसे बोला
उनसे बोला
ऐसा बोला
वैसा बोला
ऐसा किया
वैसा किया
यह सब है सामान्य
नहीं उसमें कोई विशेष
जो जैसा है
उसको वैसा रहने दो
छोड़ दो ऐसी बातें
वैसी बातें
बातों का क्या है
नित नई बनती है
खुसर फुसर करती है
एक कान से दस कान
भ्रमण करते करते न जाने क्या बन जाती
इनमें जो भ्रमण किया
वह खुद खो गया
इस भूलभूलैया में नहीं जाना है
अपने में भ्रमण करना है
नए रास्ते तलाशने है
बातों को छोड़कर
कर्म में विश्वास
तभी जीवन की होगी
    नैया पार

Friday 17 January 2020

पर वह हो न पाया

आज वह याद आ गए
बहुत याद आ गए
भूले तो कभी न थे
स्मृतियों में सहेजा था
सुकून था
सही सलामत है
अच्छी तरह रह रहे हैं
पता चला
आज वह इस दुनिया से चले गए
बहुत बार सोचा
चलो मिल आए
पर वह हो न पाया
ज्यादा दूर नहीं
कुछ फासलो पर ही था
उनका आशियाना
पर हमें भी कहाँ फुर्सत थी
जब दुनिया को रूखसत कर गए
तब उनके जनाजे में जाना है
जीवित थे
तभी मिल लेते
कितना अच्छा लगता
स्वयं को भी
उनको भी
पर वह हो न पाया
आज तो निर्जीव पडे हैं
बस जल्दी बिदा करना है
बहुत सारे ताम झाम मरणोपरांत
इससे पहले कुछ थोड़ा सा ही कर देते
अपना कीमती क्षण दे देते
तब वे मायूस न होते
हम मशगूल रहे
वह चल दिए
दुनिया जहान को छोड़
अब बस सोच रहे हैं
सोचा तो था मिलना
पास बैठ बतियाना
पर वह हो न पाया

Thursday 16 January 2020

कर्म का फल

जो बोओगे
वह काटोगे
जैसा कर्म
वैसा फल
परिणाम तुरंत
यह जरूरी नहीं
कभी समय लगा देता है
विलंब से ही सही
मिलता जरूर है
यह कुदरत का नियम है
वह इसमें कोताही नहीं करता
जो विषबेल लगाई है
वह फल फूलकर लहराता अवश्य है
वैसे भी इंसान कभी कुछ भूलता नहीं
समय आने पर सूद सहित वापस करता ही है
स्वरूप अलग-अलग हो
क्षमा ,घृणा ,बदला
समझा अवश्य देता है
सावधानी बरतनी होगी
रिश्तों में
कार्य में
स्वभाव में
व्यवहार में
यहाँ स्थायी कुछ नहीं
यही शरशैया पर सोये भीष्म भी
यही गांडीवधारी के हाथ से धनुष छीनने वाले भील भी
यही एकलव्य भी
यही अंबा भी शिखंडी के रूप में
यही महाभारत के केशव भी गांधारी के श्राप से ग्रसित
यही लंकापति रावण भी
सबको भुगतना पड़ा
एक ही जीवन
यही सबका अनुभव भी
हर कोई को समय ने बताया
वह किसी का सगा नहीं
फिर चाहे
वह सुदर्शन चक्रधारी ही क्यों न हो
ईश्वर ने भी मानव रूप धारण किया
तब तो कर्म ने उन्हें भी नहीं बख्शा
तब सामान्य मानव की क्या बिसात

सनातन धर्म

*🏹🚩सनातन सेवक समिति 🚩🏹*
✊👊⛳

*🚩जिन्हें सनातन धर्म में जाति व्यवस्था की कमियां दिखती है वो सन्देश को ध्यान से पढें ओर समझें🙏*
(वैसे सनातन में जाति नहीं वर्ण व्यवस्था है वो भी कर्म आधारित न कि जन्म आधारित जिसे आज षड्यंत्र के आधार पर चलाया जा रहा है)

*👉पुराने जमाने में जब हॉस्पिटल नहीं होते थे तो . . .*

🤔बच्चे की नाभि कौन काटता था मतलब पिता से भी पहले कौन सी जाति बच्चे को स्पर्श करती थी ?

🤔आपका मुंडन करते वक्त कौन स्पर्श करता था ?

🤔शादी के मंडप में नाईं और धोबन भी होती थी। लड़की का पिता लड़के के पिता से इन दोनों के लिए साड़ी की मांग करता था।

🤔वाल्मीकियनो के बनाये हुए सूप से ही छठ व्रत होता हैं ।

🤔आपके घर में कुँए से पानी कौन लाता था?

🤔भोज के लिए पत्तल कौन सी जाति बनाती थी?

🤔किसने आपके कपडे धोये?

🤔डोली अपने कंधे पर कौन मीलो मीलो दूर से लाता था और उनके जिन्दा रहते किसी की मजाल न थी की आपकी बिटिया को छू भी दे।

🤔किसके हाथो से बनाये मिटटी की सुराही से जेठ में आपकी आत्मा तृप्त हो जाती थी ?

🤔कौन आपकी झोपड़ियां बनाता था?

🤔कौन फसल लाता था?

🤔कौन आपकी चिता जलाने में सहायक सिद्ध होता हैं?

*🚩जीवन से लेकर मरण तक सब सबको कभी न कभी स्पर्श करते थे।*

*🤨. . . और कहते है की छुवाछूत था ??*
*🤷‍♂होगा, पर इसके मध्य एक प्रेम की धारा भी बहती थी, जिसका कभी कोई  उल्लेख नहीं करता।*

*✊जाति में मत टूटीये, धर्म से जुड़िये . . . देश जोड़िये।*

*🚩सभी जातियाँ सम्माननीय हैं...*

*वर्णव्यवस्था के सत्य को समझने के लिए एक बार इसे भी अवश्य देखिये👇👇*
https://youtu.be/qSYgkDRA194
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Tuesday 14 January 2020

बेटी हुई है

जन्म हुआ था
इस संसार में आगमन हुआ था
बेटी थी
जमाना दूसरा था
बेटी का वह स्थान नहीं था
आज भी सब जगह नहीं है
तब तो उस समय की बात और थी
हमारे परिवार तो कुछ विशेष था
नाराजगी नहीं
काली माता का चौरा पक्का करवाया गया
वंश चला था
उस बेटे से जो बचपन में मरणासन्न अवस्था में हो गया था
जिसकी माँ बचपन में सिधार गई थी
वंश के उस बुझते बुझते दीपक से वंश रोशन हुआ था
बेटी ही सही आशा ने जन्म लिया था
नाम रखा उम्दा
बहुत बढिया
वह बडी हो सभी की आशा बनी
पता नहीं कैसे बेटे और बेटी में भेदभाव किया जाता है
यहाँ तो माॅ इस्तरी के अभाव में लोटे में कोयला डाल कपड़ा पहनाती थी
दशक साठ का भले था
पिता कंधों पर बस्ता टांग कर पाठशाला पहुंचाते थे
दादा की लाडली थीं
पढाई भी हुई
लोगों ने भले नाक भौ सिकोड़ी हो
अगर माता पिता संतान के साथ हो
संसार की हर बाधा पार हो सकती है
माता पिता भाग्य तो नहीं लिख सकते हैं
पर कठिन समय में छत्रछाया तो रख ही सकते हैं
आज जीवन के इस पडाव पर भी
उनका प्यार एक सुकून देता है
गर्व होता है
परवरिश पर

Monday 13 January 2020

तब जरा सावधान

कीचड़ में पत्थर मारोंगे
वह आप पर ही आएगा
कीचड़ के पास जाएंगे
वह बदबू करेंगा
इसमें दोष उसका नहीं
बदबू करना उसका धर्म और कर्म
यह उसे मिला हुआ है
कितना भी सुगंधित कर लो
इतर और सेंट मिला दो
वह बसाएगा ही
बिना बदबू के उसका असतित्व ही नहीं
पता चला कि
आपको भी उसने अपने लपेटे में ले लिया
समाज में भी
आस-पड़ोस में भी
ऐसे बदबू फैलाने वाले लोग मिल जाएंगे
आप अगर उनसे उलझना चाहते हैं
तब आपको भी उनकी तरह होना पडेगा
किसी ने आपको कुछ कहा
आपने भी उसी तरह प्रत्युत्तर दिया
तब आपमें और उसमें फर्क क्या
इंसान होने के नाते कभी-कभी करना पडता है
तब तो आप उसकी लपेट में आ गए
संगत का असर तो पडता ही है
तब ऐसे तथाकथित बदबूदार से दूर रहें
उसे अनदेखा कर दे
बदबू के पास कौन जाना चाहेंगा
नाक पर हाथ रखकर दूर हट जाते हैं
ऐसे ही इनके साथ भी रहे
ज्यादा अहमियत मत दे
उनको ताकने झांकने दे
दूसरों के घर में क्या चल रहा है
क्योकि उनकी लायकियत ही वही है
जब तक ऐसा नहीं करेंगे
उनको शांति नहीं मिलती
चलता फिरता अखबार है
पर अखबार तो ज्ञान देता है
ये दुश्चर्क फैलाते हैं
तब जरा सावधान