Saturday 30 March 2024

कृष्ण की जरूरत है

ऐसा नहीं कि आज के युग में अर्जुन नहीं है
नहीं है तो कृष्ण नहीं है
जो मार्ग दर्शन दे सकें 
बहुत जरूरत है एक कृष्ण की
जो अर्जुन को युद्ध के लिए तैयार कर सके
आज का अर्जुन निराशा के गर्त में डुबा है
रास्ता नहीं दिख रहा है
समस्या मुख बाएं खडी है
उनको कृष्ण की जरूरत है


Friday 29 March 2024

खुदा और हम

क्या होता है आस्तिक 
क्या होता है नास्तिक 
जब पडती है मार भाग्य की
तब कुछ नहीं सूझता उसके सिवा
पहले ही समझ जाएं 
पूर्ण समर्पण कर दे 
सौंप दे खुद को
जो कोई ना कर पाएंगा 
वह खुदा कर देगा
उसकी शक्ति अपरम्पार 
दिखाई नहीं देता 
दिखा देता है 
अच्छे - अच्छे को ठिकाने पर ला देता है
जिस पर रहम कर दे तो
पल भर में रंक से राजा बना देता है
वह किसी को नहीं बख्शता 
कर्मो का हिसाब जरूर करता है
जो समझा वह ठीक 
नहीं समझा तो उससे बडा अनाड़ी कोई नहीं  ।

Wednesday 27 March 2024

मृत्यु??

मृत्यु से डरता है इंसान 
ना जाने क्या-क्या जतन करता है
यह पता है
उसको आना है
कब आएंगी दबे पाँव और सब छीन ले जाएंगी 
वह बेबस - लाचार सा कुछ ना कर पाएंगा 
चल देगा साथ उसके 
आना तो उसको एक बार है
जीना तो हर रोज हर बार है
तब क्यों ना उससे दो - दो हाथ कर लिया जाएं 
जिंदगी को पूरा जी लिया जाएं 
ताकि वह भी दूर खडी सोचे 
इसे तो कोई फर्क नहीं पडता 
मरे या जीए 
सच में फर्क ना हो किसी को 
जिस पर हमारा वश नहीं 
उसका तो कुछ नहीं कर सकते 
जिंदगी पर तो हमारा वश है तो उसमें एक मुस्कान भर ले 
जी भर जीए मन से मरे 
साथ हो या ना हो
ना होने के बाद भी याद हो 

Tuesday 26 March 2024

दिल

आओ कुछ क्षण ठहर जाएं 
अपने बारे में भी सोच ले 
अपनों के बारे में तो सोचते रहें 
अपने को ना भूल जाएं 
जब हम ठीक रहेंगे 
तभी तो सोचेगे 
दिल - दिमाग काम करेगा
कुछ नया करने का मन होगा 
अभी से हार मान लेना
संघर्षों से दो - चार हाथ भी तो करना है
अपनों पर आई बाधा को दूर करना है 
अपने बारे में सोचते सोचते
फिर अपनों के बारे में ही सोचने लगे
क्या करें दिल जो है वह मानता ही नहीं। 

Monday 25 March 2024

रंग का संसार

रंगों का भी अपना एक संसार होता है 
हर रंग अपने में परिपूर्ण रहता है
पर साथ मिलकर वह और निखरता है
हर रंग की अपनी महत्ता 
साथ मिलकर कर जब रंग बिखेरते हैं 
तब उनकी छटा निराली हो जाती है
वह इंद्रधनुषी रंग सबको भाता है
सब देखने को लालायित 
यही तो सीखना है रंगों से
साथ रहकर जो आनंद 
वह अकेले में कहाँ 

Sunday 24 March 2024

युग उस समय का और आज का

पांचाली ने कौरवों को कभी माफ नहीं किया
सही किया 
अगर वह माफ करती तो हम उसे माफ नहीं करते
रक्त पान किया दुश्शासन के रक्त से
महाभारत का कारण बनी
विनाश हुआ 
और वह होना ही था
गिरिधर कब तक इनका बोझ उठाते
भरी सभा में एक औरत को निर्वस्र किया जा रहा हो
वह भी सामान्य नारी नहीं 
इन्द्र प्रस्थ की महारानी और दुपद्र राजा की पुत्री 
जब उसका यह हाल तो सामान्य नारियों का क्या होगा
बडे बडे महावीर मुक दर्शक बने थे 
सर झुकाएं बैठे थे 
पांचों महारथी पति भी 
कोई जंघा पर बिठा रहा था तो कोई वेश्या की उपाधि से नवाज रहा था
कैसा वह दृश्य होगा सोचकर भी रोंगटे खडे हो जाते हैं 
फिर वह महाबली और दानी कर्ण हो 
या नीतिज्ञ महात्मा विदुर 
अंधे धृतराष्ट्र नहीं थे सब हुए थे मद में 
कृष्ण नहीं होते तो ??
सबका विनाश होना था और कोई चारा नहीं था
सब खतम हुए 
यहाँ तक कि यादव कुल भी
जब अन्याय की  पराकाष्ठा की सीमा पार होती है तो यही होना था 
अगर रामायण से महाभारत की तुलना करें तो
उस समय मर्यादा थी
रावण भी सीता जी को अशोक वन में रखा
उसके राज्य में रहकर भी वे सुरक्षित थीं 
यहाँ तो कुलवधू ही सुरक्षित नहीं थी
एक युग मर्यादा वाला था दूसरे ने सब मर्यादा तोड़ा
जबकि धर्मराज युधिष्ठिर साथ थे
जो अधर्म का खेल हो रहा था सब खत्म किया 
सुदर्शन चक्र ने 
जहाँ नारी सुरक्षित न महसूस करें 
तब उसका विनाश निश्चित हो
फिर कोई भी युग हो
कोई भी शासक हो 
आज भी निर्भया कांड हो रहा है
खबर तो रहती ही है
कब तक यह होगा 
दृष्टि कोण बदलेगा 
नारी भी दोषी है इसमें 
कम से कम मंदोदरी जैसा विचार तो रखें 
पहले औरत, औरत की इज्जत करें। 

होलिका में दहन

होलिका जली 
रावण जला
हर वर्ष हम इन्हें जलाते हैं 
बहुत धूमधाम से
जश्न मनाते है
एक के मरने पर आतिशबाजी 
एक के जलने पर रंग - गुलाल से होली का खेल 
होलिका भक्त प्रह्लाद की बुआ थी और हिरण्यकषिपु की बहन थी
रावण पुलस्त्य त्रृषि का नाती और कुबेर का भाई था
शिव का सबसे बडा भक्त 
बहुत बडा ज्ञानी 
यह सब होते हुए भी ऐसा अंत 
इनके पीछे अहंकार था
हमारा तो कोई कुछ बिगाड़ ही नहीं सकता
जिस भक्ति से शक्ति मिली थी
उसी शक्ति को चुनौती दे रहे थे
इसलिए उनसे भी भीड़ गए 
अंजाम सबके सामने हैं 
तब सबसे पहले होलिका में अपना अहंकार जलाना है 
बुरी आदतों की आहुति देनी है
ईश्वर से प्रार्थना करनी है 
शक्ति भी दो भक्ति भी दो
अहंकार मत दो 

चलो रंगों में सराबोर हो जाया जाएं

चलो रंगों में सराबोर हो जाया जाएं 
मन में ना जाने कितने रंग समाएं 
जीवन ही रंगबिरंगा 
चलो कुछ उसमें और रंग बिखराए 
रंगों की तो बात निराली 
शुभ्र और स्याह रंग भी चलते साथ साथ
हर रंग अपने में होता है खास
इस जीवन ने तरह तरह के रंग देखें 
रंग बदलते लोग 
रंग बदलती दुनिया 
तब भी जिंदगी लगती है खूबसूरत 
कुछ रंग जो अपने हैं खास
तभी तो जीने की है आस
यादों के भंवर में विचरण किया जाएं 
हर रंग का मजा लिया जाएं 
कुछ मन के पास कुछ मन के खास
मन मयूर नृत्य करता उनके साथ
यादों के रंगों में डुब लिया जाएं 
होलिका में उन्हें भी याद कर लिया जाएं 
कुछ मुख पर मुस्कान 
कुछ ऑख में पानी 
यही तो है हर जीव की कहानी 

Saturday 23 March 2024

नमन शहीदों को

देश बदल रहा है
लोग बदल रहे हैं 
विचार बदल रहे हैं 
नहीं बदला तो 
मातृभूमि का प्यार 
कहीं न कहीं मन के किसी कोने में 
यह प्यार हिलोरे लेता है
उस प्यार के साथ जुड़ा है 
हमारे अपनों का त्याग 
खून से सींचा है इस मिट्टी को
उनका बलिदान 
अपने प्राणों की आहुति दे दी
हंसते हंसते फांसी के फंदे पर झूल गये
स्वतंत्रता की सुबह उन्होंने नहीं देखी
स्वार्थी नहीं थे ना वे
अगर वो केवल अपना सोचते तो ??
क्या आजादी मिलती 
समय बदला है 
समष्टिवाद की जगह व्यक्ति वाद ने लिया है
बस अपना देखना है 
व्यक्ति धर्म, राज धर्म, समाज धर्म सब गया भाड में 
हमें तो अपने से मतलब है
अपना घर - परिवार मालामाल करना है
अगर यही सोच है
तब इन पर एक दृष्टि डालो 
सोचो उनके बारे में 
उनकी जवानी उनकी कुर्बानी 
कहीं उनको न भूल जाना
तरक्की की राह में चलते
इन नींव की ईंट को मत बिसराना 
ये थे तभी हम हैं 
यह बात सब याद रखना
आज तो इनका दिन है
जरा याद इन्हें भी कर लो
हाथ जोड़ नमन कर लो
कह दो
हम न भूले हैं कभी 
न भूलेगे कभी 

Friday 22 March 2024

हर मर्द की लगभग यही दास्ताँ

मत सोच कि तूने क्या किया
तुझे ऐसा लगता है कि यह किया
लोगों को लगता है कुछ नहीं किया 
उन्हीं लोगों को जिनके लिए किया
त्याग और बलिदान किया 
इच्छाओं का दमन किया
दिन रात एक किया 
न चैन से खाया न सोया 
न मौज - मजा किया
बस कर्तव्यों के बोझ तले दबे रहे 
माता-पिता, भाई - बहन , पत्नी - बच्चे 
सबका उलाहना सुनता रहा फिर भी करता रहा 
आज स्वयं पर आ पडी है
मुझमें दस कमियां निकाली जा रही है
आज लग रहा है
मैं क्या हूँ 
मेरा अस्तित्व क्या है
कहने को तो मर्द हूँ 
यह तो मेरा कर्तव्य बनता है सब करते हैं 
मैं अकेला और अनोखा तो नहीं 
मर्द और पुरुष भी इंसान है
भावनाएं हैं 
हर मर्द की लगभग यही दास्ताँ 
जिंदगी भर चलता रहा तब भी यही सुना 
चले ही ना दौडे कहाँ 
कुछ किया ही नहीं। 

World poetry day विश्व कविता दिवस

मैं कविता लिखती हूँ या कविता मुझे लिखती है
यह समझ न आया 
मन जब विचारों से भरा
भावनाओं ने अपना डेरा डाला
कुछ अंदर का बाहर निकलने को आतुर 
वह कैसे निकले 
माध्यम तो एक ही है शब्द 
शब्दों को कागज पर उकेरा तो वह बनी कविता 
कविता ने मुझे अपने आप से परिचित कराया
लोगों से मेरा करवाया 
कविता से लोगों ने मुझे जाना
मेरी रचना को पढा और सराहा 
हर कोई कवि नहीं बन सकता
हाँ कविता तो सब में समाई है 
भावना ही तो कविता है
कविता का यह एहसान है कि वह मुझ पर मेहरबान है
कविता मुझे इंसानियत का जीवन का एहसास कराती है
आभारी मैं इसकी 
बस लिखती रहूँ मैं इसे और यह मेरे साथ-साथ चलती रहे 

Sunday 17 March 2024

डर क्यों जब वह हो

उससे लाख शिकायत हो
उसकी हर बात नापसंद हो
उसकी हर चीज नागवार गुजरती हो
उस पर क्रोध भी जमकर आता हो
उस पर अपना एकाधिकार हो
यह सब होकर भी 
जो दिल के पास रहता हो
उसके जैसा प्यारा और कोई ना हो
ख्यालों में जो रचा बसा हो
उससे इस जन्म में नाता तोड़ना संभव ना हो
वह तो बस एक ही होती है
वह है माता
सारे संसार की सबसे खुबसूरत 
उसकी जगह भगवान से भी ऊपर 
उसकी छत्रछाया हो जिस पर 
उसे किसी से क्यों डर 

आप और वह

कितना करोगे 
मरते दम तक 
जब नहीं रहोगे तब
क्या होगा उनका तब 
सोचा है उनका कल
अमरता का वरदान तो किसी के पास नहीं 
कुछ करना तो उनको भी होगा
संघर्षों से नाता जोड़ना पडेगा 
समय की धारा में बहना पडेगा
डगमगाती नैया को संभालना पडेगा
अपनी नैया का खिवैया बनना पडेगा 
डगमगाती नैया को किनारे लगाएं 
मझधार में डुबो दे
यह तो उसी के हाथ में 
समृद्धि दे या न दें 
बुद्धि अवश्य दें 
समर्थ बनाएं लाचार नहीं 
जीवन इतना आसान नहीं 
जीवन किसी के सहारे भी नहीं कटता
उठना भी है गिरना भी है
चलना भी है दौड़ना भी है
मंजिल तक पहुंचना भी है
आप माध्यम बनें मंजिल नहीं 
मंजिल तो उसकी ही हो
वह भी ऐसी
जो केवल आप तक ना जाती हो

वह भी एक दौर

गुजरे जमाने को याद करें 
क्या इतना बुरा था
जितना हम सोचते हैं 
हर दौर का एक अपना फसाना होता है
एक अपनी कहानी होती है
जीने का एक तरीका होता है
अफसोस की बात ही क्या 
उस दौर को भी देखा है हमने
इस दौर को भी देख रहे हैं 
बहुत कुछ प्यारा था वह भी
तब हम किसी की जान थे
आज हमारी जान किसी में बसती है
यह फर्क तो बस पीढ़ियों का है 


Friday 15 March 2024

क्या शिकवा - शिकायत

शिकायत भी किससे करें जनाब
पहले तो लगता था 
सब मेरे अपने हैं 
मेरे लिए हमेशा तैयार रहेंगे 
हर वक्त और परिस्थिति में साथ रहेंगे 
गलतफहमी में था जनाब
कहने को अपने जरूर
पर हिसाब-किताब में माहिर 
उन्होंने रिश्तों को नफा - नुकसान में तोला 
वो व्यापार कर रहे थे
मैं रिश्ता निभा रहा था
वे चालाकी कर रहे थे
मैं भावना में वशीभूत था 
दिल और दिमाग दोनों चल रहा था
मेरा दिल उनका दिमाग 
कहीं न कहीं दिमाग बाजी मार ले गया
दिल बेचारा मसोसकर रह गया 
अब पछता रहा है 
उसका क्या लाभ 
जब समय ही चला गया तो सब गया
हम हाथ मलते रह गए वे बाजी मार ले गए। 

Thursday 14 March 2024

गुम होता आदमी

क्या हम बंजर नहीं हो रहे हैं 
क्या हम नीरस नहीं हो रहे है
हम दिखावा कितना कर रहे हैं 
जो हैं वह नहीं दिखाते 
जो नहीं हैं उस रूप में अपने को पेश करते
एक मुखौटा ओढ रखा है हमने
बस अभिनय कर रहे हैं 
तोल - मोल कर बोलना 
हंसना - रोना - गुस्सा 
कब - कहाँ क्या करना है सबका हिसाब 
खुल कर मिलना नहीं 
हर वक्त एक अनुशासन में रहना 
दोहरी जिंदगी जीता हुआ आदमी 
भावना मर रही
बंजर हुआ जा रहा
पुतला मात्र दिख रहा
सब कुछ संचालित 
स्वाभाविक वृत्तिया गुम 
उसी में गुम होता आदमी 

Wednesday 13 March 2024

मैं भी सही तुम भी सही ??

मैं भी सही
तुम भी सही 
तब गलत कौन
कहीं न कहीं 
कोई न कोई 
कभी न कभी 
कुछ तो किया होगा
कुछ तोड़ा होगा 
कुछ गलती की होगी 
अंजाने या जानकर 
कुछ बोला होगा
कुछ घाव दिए होंगे 
कुछ प्रहार किए होंगे 
वह दिखता नहीं पर है जरूर 
नहीं तो फिर ऐसी बेरुखी क्यों 
बेतुकी बातों पर नहीं गुस्सा आता
उस पर तो हंसी आती है
जब शब्दों के नश्तर छोड़े हो
तब प्रेम से पगी मीठी चाशनी की अपेक्षा व्यर्थ है
सह लिया जाता है पर भुलाया नहीं जाता 

Tuesday 12 March 2024

राम- कृष्ण

मेरे राम रोए 
मेरे कृष्ण कभी नहीं रोए
मेरे राम हमेशा मर्यादा में रहें 
मेरे राम ने अपना अधिकार छोड़ दिया
मेरे कृष्ण ने अधिकार लेकर दिखाया
मेरे कृष्ण ने साम दाम दंड भेद सब आजमाया 
मेरे राम ने क्षमा किया सबको 
यहाँ तक कि माता कैकयी को भी
मेरे कृष्ण ने सबको दंड दिया
यहाँ तक कि अर्जुन को भी 
यही तो रामायण की सीख है
यही भगवद्गीता का संदेश है
हर युग में अन्याय होगा
वह तय करना है 
राम बनकर या कृष्ण बनकर 
एक का जन्म राजमहल में 
एक का कारागार में 
एक ने राजमहल से वन गमन किया 
एक ने कारागार से सिंहासन तक का अधिकार लिया
एक ने छोड दिया एक ने हासिल कर लिया 
एक पत्नी के वियोग में रोया 
एक प्रेमिका के वियोग में भी हंसता रहा 
उस रूदन के पीछे की पीड़ा 
उस हंसी के पीछे का दर्द 
हर किसी ने महसूस किया 
हाॅ कर्म किसी ने ना छोड़ा
सत्ता में रहकर या त्याग कर 
तभी तो राम, राम हैं 
तभी तो कृष्ण, कृष्ण हैं। 

गृहिणी को सलाम

ऑखों में ऑसू 
हाथ में भोजन
दोनों ही प्रेम से परोसती
ऑसू सच्चे 
भोजन सुस्वादु 
नहीं इनमें कोई मिलावट
यही तो यह नारी की पहचान 
घर को संवारती 
प्रेम से महकाती 
आनंद की अनुभूति कराती
प्रेरणा देती आगे बढने का
हर समस्या सुलझाती 
किसी पर ऑच न आने देती 
सब कुछ झेलती पर उफ न करती
मुस्कान चेहरे पर बिखेरे
सबको संवारे
यही तो घरनी 
बिना इसके तो घर नहीं 
परिवार नहीं 
और तो और संसार भी नहीं 
न जाने कितने रूप हैं इसके
हर रूप स्नेह - प्रेम से पंगा
संसार की धुरी संभाले हुए
हर गृहणी को सलाम 

Monday 11 March 2024

यही है दास्ताँ हमारी

मैं वह कागज की कश्ती नहीं 
जो पहली बारिश में ही घुल जाऊं 
मैं तो वह लकड़ी की कश्ती हूँ 
जो ना जाने कितने बारिशों का सामना करती रही हूँ 
न जाने कितने लहरों के हिचकोलो को सहती रही हूँ 
न जाने कितनी बार मझधार में फस बाहर निकली हूँ 
मैं कागज जैसे नाजुक नहीं लोहे सी मजबूत हूँ 
लोहे में भी जंग लग जाती है पर मुझमें नहीं 
हाँ घिस जरूर गई हूँ 
थोड़ा समय का असर दिखने लगा है
तब भी समुंदर में उतर ही जाती हूँ 
अपने नाविक का साथ निभाती हूँ 
बनी मैं लकडी की जिगरा फौलाद सा
नहीं डर नहीं घबराहट
हर लहर से दोस्ती 
हर मौज में मौज 
बेकार बैठ रहना भाता नहीं 
किनारों पर कुछ क्षण विश्राम कर 
उतर जाती हूँ मांझी संग मझधार में 
जब तक रहना तब तक करना
जीवन की रौ में बहना 
यही है दास्ताँ हमारी 

Sunday 10 March 2024

मैं नारी हूँ

मैं नारी हूँ
मैं वह राधा हूँ जो जिसने कन्हैया को द्वारिकाधीश बनाया
मैं वह सीता हूँ जिसने राम को आदर्श राजा बनाया
मैं वह उर्मिला हूँ जिसने लक्ष्मण को महान व्रती तपस्वी बनाया
मैं वह यशोधरा हूँ जिसने सिद्धार्थ को भगवान बुद्ध बनाया
मैं वह कुंती हूँ जिसने राजा पांडु को पांच पांडवों का पिता बनाया
मैं वह द्रोपदी हूँ  जिसने पांचों पांडवों को एकसूत्र में बांध कर रखा
इनकी महानता के पीछे त्याग मेरा था
मैं टूटी
मैं बंटी
मैं परित्यक्ता बनी
मैं विरहणी बनी
मैं सिसकती रही
मैं ऑसू पीती गई
मैं समझौता करती गई
मैं त्याग की प्रतिमूर्ति बनती रही
मैं स्वयं बिखरती रही
दूसरों को संभालती रही
दर्द सहा मैंने तब ये महान बने
मर्यादा कभी नहीं लांघी तभी तो मर्यादा पुरुषोत्तम बने
प्यार को भी बांटा
पार्थ ने स्वयंवर में वरण किया
पत्नी बनी पांचों भाईयों की
जुआ खेले धर्मराज
दांव पर लगाया मुझे
आदर्श भाई बने लक्ष्मण
विरहणी बनी मैं
शांति का संदेश दिया बुद्ध ने
अशांत रही मैं
मथुरानरेश बने कृष्ण
प्रेम में पागल बन भटकती रही मैं
मेरा अस्तित्व 
मेरी भावना तार तार होती रही
मैं जोड़ती रही
संवारती रही
वह इसलिए कि मैं नारी थी
इनकी शक्ति थी
त्याग करना सबके बस की बात नहीं
वह तो स्त्री ही कर सकती है
धरती है 
धीरज है
सबकी धुरी है
वह डगमगाई तो प्रलय निश्चित
वह नारी है

Friday 8 March 2024

वह नारी है Happy Women's day

नारी से नर
इसी से हैं संसार 
नारी ही सृष्टि की संपादिका
पूरा भार लेकर चलने वाली
वह पृथ्वी है
वह माता है
वह संसार की संचालिका है 
परिवार की धुरी है
वह बेटी है
वह बहन है
वह पत्नी है
वह माँ है
फिर भी वह परदे के पीछे है
उसका असतित्व?
उसका स्वाभिमान ??
उसकी महत्ता ?
शायद समझ नहीं पाया समाज
तभी तो गर्भ में ही हत्या 
इतना बडा पाप
एक जीव को 
एक सृष्टि की संचालिका को
अगर ऐसा व्यवहार होता रहा
तब संसार की
तब समाज की
सारी व्यवस्था ही गडबडा जाएंग
 वह बहुत घातक है
सम्मान कीजिए
हर उस औरत का
जो आपके साथ जुडी है
इसकी वह अधिकारी है

Happy Mahashivratri

आज मेरे भोले बाबा का दिन है ।जो मांगना हो मांग लो इस औघडदानी से । शिव से ही सृष्टि । शिव ही जगत के तारणहार। प्रलय और निर्माण दोनों इनकी ही गोदी में खेलते हैं। तीसरे नेत्र से संसार को भस्म करने की शक्ति रखने वाले , भांग- धतूर से प्रसन्न होनेवाले। सुर - असुर दोनों के देव , देवाधिदेव महादेव की जय 
         हर हर महादेव 🙏🙏🙏🙏