Saturday 30 September 2023

हम संसार के खिलाड़ी

संसार एक मैदान है
हम उसमें खिलाडी है
खेल , खेल रहे हैं 
कभी गिरते - पडते हैं 
चोट लगती है फिर उठ खडे होते हैं 
हारते- जीतते हैं 
कभी-कभी थोड़ी सी गलती से जीत हासिल करने से वंचित रह जाते हैं 
कभी-कभी अच्छा परफार्मेंस न देने पर टीम से निकाल दिए जाते हैं 
कभी-कभी दुर्घटनाग्रस्त होकर हमेशा के लिए छूट जाता है
कभी-कभी मेडल और पुरस्कार भी मिलते हैं 
मान - सम्मान प्राप्त होता है 
आटोग्राफ के लिए लालायित रहते हैं 
कहीं कोई तवज्जों भी नहीं देता 
अच्छा करने पर ताली और न करने पर गाली 
खेल रहे हैं  , दौड़ रहे हैं 
जिंदगी जहाँ चाहे वहाँ 
हार - जीत की अनिश्चितता के साथ
कब पासा पलटें इससे अंजान 
जब तक शरीर में सांस तब तक आस 
समय बीतता चला जाता है
हम भी उठते - बैठते , गिरते - पडते 
हारते - जीतते  बस चलते रहते हैं 
खेलना छूटता नहीं 
जब तक कि सांस टूटती नहीं 
जाने के बाद लोग याद करते हैं 
हम कैसे खिलाडी थे 
सफल या असफल ।

श्राद्ध का पर्व

आज से श्राद्ध शुरू हो रहे हैं 
श्रद्धा और भक्ति से अपने पितरों को याद करने का मास
उनको जिनके कारण तुम इस संसार में आए हो
उनके प्रति कृतज्ञता तो बनती ही है
मृत्यु के बाद भी याद करना 
इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है 

एक और बात याद रहें 
जो पृथ्वी पर हैं हमारे जन्मदाता 
उनके प्रति भी जवाब दे ही बनती है
मृत्यु पर भोज और जीते जी भोजन के लिए तरसे 
मृत्यु पर नया कफन और जीते जी फटेहाल 
प्रेम और अपनेपन के लिए तरसते हमारे बुजुर्ग 
आज वृद्धावस्था में तिरस्कृत हो रहे हैं 
वे कभी घर की शान हुआ करते थे
मुखिया होते थे
निर्णय उनके अनुसार लिया जाता था 
आज उपेक्षित हो रहे हैं 

संयुक्त परिवार खतम हो रहे हैं 
एकल में उनके लिए स्थान नहीं है
पेड़ कितना भी पुराना क्यों न हो
छाया ही देता है
ये हमारे बुजुर्ग जीते जी तो हम पर आशीर्वाद बनाएं रखते हैं 
मृत्यु के बाद भी वे कुछ दिनों के लिए पृथ्वी पर आते हैं 
अपने बच्चों को आशीर्वाद देने के लिए 
उनको देखने और निहारने के लिए 
पितृपक्ष मनाएं पर साथ में बुजुर्गों पर भी ध्यान दे 
आशीर्वाद की बौछार होगी 
बच्चे फले- फूलेगे और आगे बढ़ेंगे। 

Friday 29 September 2023

मैं बाप हूँ

तुम गोद में लेकर बैठी रहो
तुम पुचकारती रहो
लाड लडाती रहो
मैं दूर से ही देख कर खुश हो लूंगा 
मैं बाप हूँ 
मुझे उनके भविष्य का इंतजाम करना है
मनुहार कर खाना खिलाने का समय
हठ करने पर दुलराने का समय 
मेरे पास नहीं है
मैं प्यार नहीं करता ऐसा नहीं है
एक बाप के दिल में झांक कर देखों 
तुम तो नौ महीने गर्भ में रखती हो
मैं तो उसी दिन से ताउम्र मस्तिष्क में रख लेता हूँ 
जब वह तुमसे गले मिलता है तब मैं कनखियों से देखता हूँ 
उसको ध्यान से निहारता हूँ 
कितना बडा हो रहा है
प्यार पर कर्तव्य हावी हो जाता है
मैंने जो गलतियाँ की वह यह कभी न करें 
उसकी हर हरकत पर नजर रहती है
अपने पैदल चलता हूँ तब उसके लिए साईकिल लाता हूँ 
बाॅस की डांट सुनता हूँ तब उसकी हंसी देखता हूँ 
वह फोन तुम्हें करता है इंतजार मैं करता हूँ 
माँ- बेटे की बात बडे ध्यान से सुनता हूँ 
तुम जितनी करीब हो उसके उतना मैं नहीं 
मैं पाइ - पाइ बचाता हूं ताकि उसको जेबखर्च में कम न हो
तुम धरती हो तो मैं आसमान हूँ 
वह विशाल जिसके नीचे उसका जीवन हंसता - खिलखिलाता रहें 
तुम्हारी ऑख में पानी रहता है मेरी ऑख तो उसे देखे बिना सूख जाती है
अपना अंश ढूढता हूँ उसमें 
प्यार बाप भी करता है वह दिखता नहीं 
जो दिखता नहीं वह हैं नहीं ऐसा तो नहीं 
राम के वियोग में प्राण राजा दशरथ के गए थे रानी कौशल्या के नहीं 
बाप तो बाप होता है सब एक तरफ बाप एक तरफ 
उसकी प्यार और ममता को तराजू में न तौला जाएं 
वह सब पर भारी होता है ।

एहसान का एहसास

एहसान का एहसास
बार बार 
भीतर - बाहर
कचोटता
किसी का एहसान जिंदगी आसान बना सकता है
उसका एहसास ताउम्र आपको याद दिलाता है
आपकी कमजोरियों का
आपकी मजबूरियों का
कहीं न कहीं आपकी विवशता का
किसी के सामने हाथ फैलाना
उसकी मेहरबानियो पर जीना
आपकी ऑखे हमेशा नीची कर देता है
उसकी हर बात को सर ऑखों पर लो
तब तो आप अच्छा कहलाओगे
अन्यथा विरोध किया
तब आप एहसान फरामोश हो जाओगे
एहसान एक बार होता है
एहसास हमेशा याद दिलाया जाता है
कुछ लोग कोई मौका नहीं छोड़ते
जताने का दिखाने के
वह रिश्तेदार हो
पडोसी हो
मित्र हो
जिंदगी भर को झुका देता है यह एहसान
आपकी काबिलियत को रोडा बना देता है
भले गाडी आपने चलाई
धक्का लगा दिया किसी ने
तब वह एहसान तो हो ही गया
जिंदगी की गाडी स्वयं चलानी है
धक्का भी स्वयं लगाना है
अपना आत्मसम्मान बरकरार रखना है
सही  ही कहा है किसी ने
सबसे बडा एहसान यह होगा
कोई मुझ पर एहसान न करें
मुश्किलों में भी रास्ता निकल ही जाएंगा
एहसान करने वाला 
एक बार आपको उठाएंगा
जिंदगी भर के लिए झुका देगा
जीना है तो
अपने बाहुबल
अपने आत्मविश्वास
किसी की दया , कृपा और एहसान पर नहीं

एक वंश बिनु भइले हानि

एक वंश बिनु भइले हानि 
के देइ चुरवा भर पानि 
यह बात हम हमारी अम्मा के मुख से सुनते थे तब यह समझ नहीं आता था 
आज समझ आ रहा है
एक संतान के लिए न जाने क्या क्या यत्न किया जाता है
संतान प्राप्ति मानव को ईश्वर का सबसे बडा वरदान
एक हमारा ही अंश पृथ्वी पर
वह अंश केवल दो लोग का नहीं 
न जाने कितने पितरों के जीन्स ने और न जाने कितने हजारों सालों की यात्रा कर एक का जन्म 
तब तो सबका आभार मानना बनता है
आप कितने बहुमूल्य है यह भी पता चलता है 
श्राद्ध शुरू हो रहे हैं कल से 
हमारे पितरों को जल दिया जाता है 
कहा जाता है कि इन पन्द्रह दिनों में पितृ हमारे यहाँ पृथ्वी पर आते हैं 
स्वर्ग में रहते हुए भी उनकी जान यहीं उनकी संतानों में अटकी रहती है
संतान सुखी तो हम भी सुखी
माँ- बाप बनने के बाद अपनी खुशी ज्यादा मायने नहीं रखती 
बच्चों में ही ध्यान लगा रहता है
ऊपर वाले पितरों का भी यही हाल होगा शायद 
तभी महादेवी वर्मा ने कहा है
मुझे स्वर्ग का सुख नहीं चाहिए 
मुझे पृथ्वी पर ही रहने दो 
     रहने दो हे देव मेरा मिटने का अधिकार। 

सबको जाना है

गणपति विसर्जन हो गया
बडी धूमधाम से 
जैसे बप्पा को लाए थे वैसे ही बिदाई भी दी
यह कुछ दिन तो इतने आनंदित थे जिसकी कोई सीमा नहीं 
आखिर भगवान पधारे थे हमारे यहाँ 
भगवान ने प्रस्थान किया 
आशीर्वाद दिया
अगले वर्ष आने के लिए कह कर गए 
वैसे तो ईश्वर हमेशा हमारे साथ ही रहते हैं 
वह कहीं जाते नहीं 
बिदा करते समय मन भारी हो जाता है
बिदाई बहुत दुखदायी होती है
किसी की भी बिदाई हो 
बेटी को बिदा करना अपनी जान को किसी को सौपना 
हर पालक बेटी को बिदा करते समय प्रसन्न होने के साथ उदास होता है
लेकिन प्रकृति का नियम है
यहाँ कोई स्थिर नहीं 
वह चाहे संबंध हो या फिर यह शरीर ही
सब छूट जाता है एक वक्त 
गणपति जाते जाते यही संदेश देते हैं 
जब तक हो तब तक खुश रहो
खुशियाँ फैलाओ 
जाना तो एक दिन है ही ।

असली फूलों की बात

हम सब इसी चमन के फूल 
सबके रंग अलग-अलग 
सबका सौंदर्य अलग-अलग 
सबकी खुशबू अलग-अलग 
हॉ एक बात सबमें हैं 
आनंदित करना
खुशबू फैलाना 
किसी और के काम आना 
वह गजरा हो या गुलदस्ता 
पूजा के फूल हो या वरमाला के
ईश्वर के दरबार में तो हम रहते ही हैं 
किसको अपना बनाना हो
अपना प्यार दर्शाना हो
तब हमसे अच्छा कोई नहीं 
हम बालों से लेकर किताबों के पन्नों में 
हमारी जिंदगी बहुत छोटी है
एक या दो दिन की
हमें कोई मलाल नहीं 
जब तक रहते हैं 
बस देते रहते हैं 
हमें देख बहुत सारे कागज - कपडे इत्यादि के भी बन रहे हैं 
वे खुबसूरती में भी कम नहीं है
टिकाऊ भी है 
लेकिन उनसे खुशबू नहीं आ सकती 
असली तो असली ही रहता है 
यह सबको पता है
तभी तो हम आज भी लोगों की खुशियाँ और खुशबू बाँट रहे हैं 
इस बात का संतोष है
जिंदगी छोटी ही सही सार्थक तो है ।

Thursday 28 September 2023

गणपति बप्पा मोरया

आज गणेश जी की मूर्ति का विसर्जन हो रहा है
आखिरी दिन है
इसके पहले ढेड दिन , पांच दिन , सात दिन की मुर्ति का विसर्जन हो गया है
आज बप्पा की बिदाई का आखिरी दिन है अब अगले साल आएंगे आशीर्वाद देने 
सबसे पहले उस स्थान से हट जाते हैं फिर लोगों के साथ समुंदर के किनारे 
गहने , आभूषण, वस्त्र सब हटा लिया जाता है
हार - फूल निकाल दिए जाते हैं 
इसके बाद जल में विसर्जित कर दिया जाता है मुर्ति 
मिट्टी से बनते हैं फिर उसी जल मिट्टी में मिल जाते हैं 
हम गणपति का विसर्जन नहीं करते उनकी मुर्ति का करते हैं 
सबको इन दिनों खुब स्नेह हो जाता है मोह हो जाता है 
उदास है जाते हैं  ऑखों में अश्रु आ जाते हैं 
लेकिन बिदाई तो होनी है 

ऐसे ही तो मानव शरीर है 
आत्मा तो अजर - अमर है 
वह दूसरा देह धारण करेंगी 
एक समय इस देह का परित्याग करना ही होता है
माया - मोह त्यागना ही पडता है
मिट्टी का शरीर मिट्टी में मिलना है
यही तो प्रकृति का चक्र है
आना और जाना इसे रोका नहीं जा सकता
जन्म उत्सव से शुरू होता है मृत्यु भी आखिरी क्रियाकर्म के साथ खत्म 

बप्पा को प्रेम और उत्साह से लाते हैं और उतने ही उत्साह से बिदा किया जाता है
सब लोग गणेशमय हो जाते हैं 
इंतजार रहता है साल भर
तभी तो सब कहते हैं
गणपति बप्पा मोरया 
       अगले बरस तू जल्दी आ ।

कर्ज

कर्ज पर कर्ज लेते रहें 
जिंदगी पर खर्च करते रहें 
कर्ज बढता गया
जिंदगी को संवारने- सुधारने में 
कर्ज पैसों का नहीं था
वह तो कैसे भी गुजार लिया 
लालच भी नहीं फिजूलखर्ची भी नहीं 
संतोष ही धन माना 
उन्नति भी हुई 
ऐसा नहीं कि जहाँ थे वहीं हैं 
सफर में मंजिल तक पहुंचे भी
न जाने क्यों लगता 
यह सफर मेरा अकेले का नहीं 
यह मेरी उपलब्धि नहीं 
कारण समझ आया 
कर्ज एहसानों का था 
उस एहसान का एहसास 
अब भी जेहन में 
पैसे का कर्ज तो चुक जाता है ब्याज सहित 
एहसानों का कैसे चुकाये 
जिदंगी पर खर्च करते करते जिंदगी ही खर्च हो गयी 
अब जो बाकी बची 
वह यह सोचते 
कैसे और कहाँ कटी 

कल - आज - कल

हम पुराने ख्यालों के लोग है
साथ में नए विचार का समर्थन करने वाले लोग है
हम उस पीढी के लोग है
जिसने दुनिया बदलती देखी है
ब्लेक - व्हाईट से कलर तक का सफर देखा है
वह फिल्म हो या टेलीविजन 
हमने पत्र से लेकर मोबाइल तक का सफर तय किया है
हमने डाक से लेकर कुरियर तक का इस्तेमाल किया है
हमने चंदा मामा की कहानी से लेकर चांद तक पहुंचते हुए देखा है
हमने लडाई भी देखी है ब्लेक आउट भी देखा है
हमने  इमरजेन्सी भी देखी है प्रेस की आजादी भी देखी है 
हमने पैदल - बस - ट्रेन- मोनो - मेट्रो और हवाई जहाज से सफर किया है
हमने रेडियो पर जयमाला और टेलीविजन पर चित्रहार देखा है
हमने अमीन सयानी और तब्बसुम की आवाज को सुना और देखा है
हमने पांच पैसे बस के  टिकट और दस पैसे का बडा - पाव खाया है
हमने बेलबाॅटम से लेकर पलाजों भी धारण किया है
हमने साधना कट से लेकर चोटी को भी देखा है 
हमने सरकारी स्कूल से लेकर मुंबई यूनिवर्सिटी का नजारा देखा है
हमने परंपराएं भी देखी है और आधुनिकता भी
केवल देखा नहीं है जीया है 

हमने ग्लास में दुकान से दूध - दही लाया है और अब पैकेट
हमने सिनेमा घरों के बाहर लंबी लाइन लगाई है 
हमने पत्तल से लेकर बूफे तक का स्वाद चखा है
हमने जमीन पर बैठकर और टेबल पर भी बैठकर खाया है
हमने टपरी की चाय भी पी है और पांच सितारा की भी
सुराही से लेकर बिसलरी का भी उपयोग
नमक लगी रोटी से  लेकर पिज्जा- बर्गर भी 
हमने शिक्षक की छडी भी खूब खाई है और सबकी डांट और मार भी
हमने दो कपड़े में साल भर निकाला है 
किताब- काॅपी पर अखबार और कैलेन्डर का कवर चढाया है
हमने स्याही - कलम के साथ फेलपेन भी उपभोगा है 
हमने अखबार भी पढा है और अब नेट पर भी
हमने संसद में अटल जी का स्पीच और मारा-मारी तथा आज के कटु संवाद का आदान-प्रदान भी 
हमने दुश्मन का भी स्वागत किया है दोस्तों की तो बात ही छोड़ दे 
हमारे घर के दरवाजे तब भी खुले थे आज भी
प्राइवेसी नाम तो अब सुन ही रहे हैं 
टाइपराइटर से लेकर लैपटॉप को देखा है
कबड्डी से लेकर क्रिकेट भी खेला है
गली - गली भटक कर किराये की साइकिल चलाई है
हमने सडक पर त्योहार पर सडक पर बंधे पर्दे पर फिल्म देखी है
एकादशी में भोर में ही सबके साथ पैदल नहान के लिए बाणगंगा पहुँचे हैं 
हमने खेत  से लेकर टायलेट तक का अनुभव किया है
हमने छत पर सोते हुए तारों को गिना है और ए सी की ठंडी हवा भी खाई है
हमने लेक्चर भी बंक किया है झूठ भी बोला है सफाई से
हमने गुलशन नन्दा से लेकर प्रेमचंद को पढा है
हमने नवभारत टाइम्स - ब्लीट्ज से लेकर नेट पर समाचार 
हमने नाट्यगृह और सिनेमा हाॅल दोनों का आनंद लिया है
हमने बडो का सम्मान भी किया है और छोटे को संभाला और प्यार किया है
हमने विकास के परिणाम को भी  भोगा भी है और भुगत भी रहे हैं 
हम बीच की पीढी है 
दो पीढी के बीच की कडी है
हम वह सीढी है जिस पर चढकर उपर जाया जाता है
हम न गया कल है न आने वाला कल है
हम आज है 
जिसने परिवर्तन को देखा भी है जीया भी है और जी भी रहे हैं। 

Wednesday 27 September 2023

बस चुप रहो

आजकल मैं बहुत सुकून महसूस कर रही हूँ 
एक मंत्र मिल गया है 
कुछ भी हो बस चुप रहो
बोलो मत ना विरोध करों 
हंसते - मुस्कराते रहो
अपमान सहते रहो
दबते रहो , डरते रहो
अपनी बात को रखो मत
अगर रखो तो सोच समझ कर 
कब क्या मोड़ ले लेगा 
यह बातचीत 
उसका ठिकाना नहीं 
कब तोहमत लग जाएं 
इससे अच्छा तो चुप रहो
किसी पर कोई अधिकार नहीं 
बस अपनी जबान और मन पर अधिकार 
तो उसको बंद कर दो
गांधी जी के तीन बंदर की तरह 
कान - ऑख - मुख तीनों मूंद लो 
सुकून की जिंदगी जीओ
न कहना न सुनना
अपने में रहों 
मन की बात मन में रखो

भैंस के आगे बीन बजाएं 
        भैंस खडी पगुराए 
जो जान नही सकते , समझ नही सकते
ऐसे हदय हीन पत्थर दिल के सामने दिल खोलना तो दिल का भी अपमान करना है ।

मैं मैं

मैं   मैं  मैं 
यह मैं के चक्कर में चकरघिन्नी बन गया
कभी हम न बन पाया
बस अपने बारे में सोचा
अपना लाभ देखा
अपना स्वार्थ देखा
अपनी बात को सही ठहराया
सबसे ऊपर अपने को रखा 
यह करते-करते मैं  , मैं ही रह गया


रिश्ते की मजबूरी

मैं सब कुछ जानती हूँ 
सत्य क्या असत्य क्या
न्याय क्या अन्याय क्या
मन में विरोध भी 
फिर भी बेबस और लाचार 
कुछ नहीं कर सकती
लडना भी आता है 
फिर भी लड नहीं सकती
कमजोर नहीं मैं बहुत मजबूत 
जीवन के थपेडों को झेला है
असमर्थ नहीं समर्थ भी
इतना सब होते हुए भी चुप 
उस बात पर चुप जो मुझे अनुचित लगता है
इसका कारण 
मैं रिश्तों में बंधी मजबूर 
यहाँ लगता है 
मैं स्वतंत्र नहीं गुलाम हूँ 
यह रिश्तों का कोमल धागा नहीं 
बल्कि लोहे की मजबूत जंजीर है 
इसने मुझे जकड़ रखा है
इस जंजीर को तोड़ पाना बहुत मुश्किल है
जब रिश्ता हावी होने लगे
दवाब डालने लगे 
तब उसका यही हश्र 
मजबूरी में बंधे रहो
तोड़ कर सब खत्म कर दो ।






अपना कान

कौआ कान ले गया 
यह मजाक हुआ करता था 
यह देखने के लिए कि इसके पास कितनी अकल है
कान को तो कोई नहीं ले जा सकता है 
लेकिन कुछ लोग कान के कच्चे होते हैं 
वह दूसरों की सुनी - सुनाई बातों पर विश्वास कर लेते हैं 
ईश्वर ने उन्हें भी कान दिया है वह यह बात भूल जाते हैं 
सब कुछ दूसरों के कहे अनुसार 
अब ऐसे लोग को क्या कहा जाएं 
बिना रीढ़ की हड्डी के जैसे। 

Tuesday 26 September 2023

कौन सही कौन गलत

कौन सही कौन गलत 
इस पर भी प्रश्नचिन्ह 
हर व्यक्ति अपने को सही मानता है
सही साबित करने में लगा रहता है
साम - दाम - दंड - भेद भी आजमाता है
सामनेवाला भी जानता है यह बात
कुछ कह नहीं पाता
इतने विश्वास से वह कहता है कि
अविश्वास उसके सामने टिक ही नहीं पाता
अब करें तो क्या करें 
सब लोग भी मानने लगते हैं 
एक ही झूठ बार - बार बोला जाएं 
तो वह इतना मजबूत हो जाता है
कि सत्य उसके सामने मजबूर हो जाता है
लगता है दुनिया ही झूठों से भरी है
लेकिन नहीं 
कुछ ऐसे अटल सत्यवादी भी होते हैं 
जो हार नहीं मानते
असत्य को हराकर ही मानते हैं 
तभी तो दुनिया चल रही है ।

Monday 25 September 2023

प्रेम का बंधन

प्रेम में समर्पण होता है
दासत्व नहीं 
प्रेम से झुकाया जा सकता है 
जबरन नहीं 
प्रेम किया जाता है 
थोपा नहीं 
मन एक ही होता है हजार नहीं 
प्रेम गर्वित होता है घमंडी नहीं 
प्रेम में स्वतंत्रता होती है
बंधन नहीं 

प्रेम राधा और गोपियों ने किया था
गोकुल से मथुरा तो वह दौड़ती हुई जा सकती थी
मंजूर नहीं था उनको
स्वाभिमानी जो थीं
कृष्ण छोड़ कर गए थे वह नहीं 
विरहणी बनी रहीं पर मथुरा नरेश से मिलने नहीं गई
न कृष्ण आए 
उद्धव को भेजा समझाने के लिए 
उद्धव को तो गोपियों ने ऐसा समझा दिया कि
उद्धव का सारा ज्ञान धरा का धरा रह गया
बृज की रज भी होता तो भाग्यशाली होता 

प्रेम दोनों तरफ से था
ऐसा प्रेम जो ह्रदय से था 
दुरियां भले थी प्रेम ने बांध रखा था 
प्रेम अधिकार मांगता है 
प्रेम  , प्रेम को बांध रखता है
बहुत नाजुक और कोमल बंधन है
निभाने पर आ जाओ तो जन्म - जन्मांतर का बंधन 

बेटियां जो हैं ना

ये बेटियां जो होती है ना 
जन्नत की परियां होती है
खुदा भेजता है उनको इस जहां में 
मन की सुंदर ये अजीज संतान 
कितना कुछ दे जाती है
नहीं उसका कोई हिसाब 
एक नहीं दो घरों की रौनक 
जहाँ रहती वहाँ अपनी रोशनी फैलाती 
गरीब से गरीब बाप को भी धनवान कर जाती 
कन्या दान जैसा महा दान करवाकर बाप को दानी बना जाती 
नया निर्माण करती 
संतान को जन्म दे वृक्ष बेल बढाती
उनको सींचती, पल्लवित करती
सक्षम नागरिक बना समाज को अर्पण करती 
शक्ति स्वरूपा ये बेटियां 
धन्य है वो माई - बाप
जिनके घर जन्मती ये बेटियां। 

Sunday 24 September 2023

Happy Daughter's day

मैंने आपको पढना - लिखना सिखाया 
 दुनिया का सामना करना सिखाया
आपने मुझे समय के साथ कैसे बदलना है यह सिखाया 
नयी  टेक्नोलॉजी सिखायी 
मोबाइल दिलाया 
फेसबुक- वाट्स अप और इंस्टाग्राम सिखाया
यह सीखने - सिखाने का सिलसिला चलता रहें 
मैंने आपको कपड़े पहनना सिखाया
आपने मुझे फैशन सिखाया
मैंने आपको घर के खाने का स्वाद चखाया 
आपने मुझे बडे - बडे होटल्स की डिश खिलाई
मैंने साधारण चप्पल - जूते पहनाए 
आपने मुझे ब्रांडेड दिलाएँ 
मैंने तो काॅपी- कलम पकड़ाई 
आपने तो मुझे डिग्रियों का तोहफा दिया
मैंने तो उंगली पकड़ चलना सिखाया
आपने तो हाथ पकड़ सडक पार करवाया 
मैंने तो छोटे से बगीचे में खिलाया 
आपने तो दर्शनीय स्थलों का सैर करवाया 
कभी मैंने माँ बनकर सिखाया 
आज आप बेटी बनकर सिखा रही है
कभी मैंने तुमको दुनिया दिखलाई 
आज दुनिया को तुम मुझे दिखला रही हो
मुझे दुनिया से क्या लेना-देना 
मेरी दुनिया तो आप ही हो
मेरी जान बसती है
मेरी सांस और धड़कन में एक नाम हमेशा रहता है
मेरा संसार मेरा स्वर्ग 
मेरा पहला अभिमान 
जिस दिन तुम्हें पाया 
वह मेरे जीवन का स्वर्णिम क्षण 
बेटा वंश होता है तो बेटी माँ की अंश होती है 
यही तो फर्क है
अंश तो अपना ही होता है 
कहने को तो जुदा होती है बेटियाँ 
पराया होती है बेटियाँ 
वह परायापन अपनेपन पर भारी होता है
तभी तो बेटी दूर होकर भी मन के पास होती है
जहाँ भी रहें सदा खुश रहें 
एक माँ की एक यही दुआ होती है  

शाब्दिक हिंसा

हिंसा केवल मार - पीट ही नहीं होती है
शारीरिक प्रताड़ना ही हिंसा नहीं होती है
मानसिक हिंसा भी होती है
शाब्दिक हिंसा भी होती है
हिंसा का यह स्वरूप शारीरिक से ज्यादा खतरनाक होता है
शरीर की चोट तो भर जाती है
मन की चोट ताउम्र टीसती रहती है
मन की अग्नि में जलती रहती है
तीर - बाण- भाला - लाठी ये कम कारगर है
किसी को नीचा गिराना हो
किसी को पप्पू साबित करना हो
किसी को चरित्र हीन बताना हो
किसी का पूरा जीवन ध्वस्त करना हो
तब शब्द बहुत उपयोगी है
शब्दों का मायाजाल अनुपम है
यह बडी तेजी से फैलते है 
अपना परिणाम दिखाते हैं 
दोषी न होते हुए भी दोषी बना दिया जाता है
यह एक तरह का कुचक्र है
व्यंग्य में कितनी शक्ति होती है 
इसका परिणाम तो महाभारत में दिख ही गया है
जाति - धर्म को लेकर छींटाकसी 
यहाँ तक कि प्रान्तों के बारे में धारणा
अरे वह फलाना 
वो लोग तो मूर्ख होते हैं 
अरे उस जाति का
वो लोग तो गंदे होते हैं 
कहीं एक घटना होती है तो उस प्रान्त के सारे लोग वैसे ही हो जाते हैं 
अमेरिका हमको क्या समझता था यह तो हमें पता है
हमारे अपने भी न जाने हमको क्या क्या समझते हैं 
अपने देश में अपने मोहल्ले में अपने समाज में 
न जाने कितनी भ्रान्तियाँ फैली हुई है
यह सब अनपढ़ करते हैं ऐसा नहीं 
पढे - लिखे लोग भी इसमें शामिल है
रास्ते का मजदूर हो या संसद का नेता 
संवाद देखिए उनका
शाम को प्रवक्ताओं के डिबेट देखिए टेलीविजन पर
कितना शब्दों की मर्यादा का पालन करते हैं 
देश की समस्याओं से लेना - देना नहीं 
वह पहले क्या थी 
वह पहले क्या था
उसका दामाद कौन तो उसका साला कौन
यह क्या चल रहा है और कब तक
जो भी मुखिया है अपने दल के
वह ऐसे कैसे बढावा दे रहे हैं 
कटुता से मौनता भली है 
बोलो तो अच्छा नहीं तो मत बोलो ।

Thursday 21 September 2023

छोटा सा मन

छोटा सा है मन
कितना बोझ लादोगे 
उसका भी तो कुछ ख्याल करो
सबका ख्याल रखते रखते उसे भूल गए 
उसका तो तुम्हारे सिवा कोई नहीं 
दूसरों के लिए तो क्या क्या करते हो
कहीं फलाने का मन न दुख जाएं 
इस कारण अपने मन को दुखाते हो
दूसरों की मनमर्जी उस पर लादते हो
कभी सोचा है
वह मसोसकर रह जाता है
प्यार से वंचित रह जाता है
उस पर न जाने क्या-क्या अनचाहा थोपते हो
वह सिसकता है लेकिन उसकी सुनते नहीं 
हर बार उसको मारते हो
यह छोटा सा है मन
कितना बोझ लादोगे 

Tuesday 19 September 2023

नारी शक्ति वंदन अधिनियम

अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी 
ऑचल में है दूध ऑखों में पानी

बुदेलों- हरबोलों के मुख से हमने सुनी कहानी थी
खूब लडी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी

नारी को अबला बना कर रखा गया । नारी कभी अबला थी ही नहीं।  
यह देश विदुषियों और वीरागनाओं का रहा है । जौहर कर आग में कूद जाना और सर काटकर पति को भेंट स्वरूप दे देना , ऐसे किस्सों से इतिहास भरा पडा है ।
हमारे यहाँ तो नारी शक्ति स्वरूपा है । 
पुरातन समय तो देखा ही है
नए समय में भी इंदिरा गांधी, सरोजिनी नायडू, कस्तूरबा गांधी, विजया मेहता , भगिनी निवेदिता, मैडम भिखाजी कामा जैसे नाम है जिसने अपना परचम फहराया है ।
सुषमा स्वराज  , सोनिया गाँधी भी इसी कडी में हैं 
राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढनी चाहिए 
इसके लिए बहुत समय से प्रयास चल रहा था आज उस दिशा में एक और कदम बढा है जो निश्चित ही सराहनीय है 
महिला शिक्षित होती है तो परिवार शिक्षित होता है
महिला को देश के विकास में  संसद में भागीदारी बढती है तो  देश का सर्वाधिक विकास होगा ।
जब हर क्षेत्र में तो फिर राजनीति में क्यों नहीं  ।
नारी शक्ति वंदन अधिनियम का स्वागत है । आशा है जल्दी ही क्रियान्वित भी होगा। 
नारी तो शक्ति है ही , बस उसको पहचानना है
उसको अधिकार देना है 
उसको कार्य देना है
हमारी आधी आबादी को उसके सामर्थ्य का एहसास दिलाना है ।

Monday 18 September 2023

खूबसूरत जिंदगी

बहुत ही खूबसूरत है जिंदगी 
जरा देखो तो
कितना कुछ है इसमें 
अपने लिए नहीं दूसरों के लिए जीती है
अपनों की खुशी में स्वयं की खुशी मानती है
अपने जज्बात को तो जप्त कर लेती है
अपनों के लिए परेशान हो जाती है
उनकी खुशी में शामिल 
बच्चों की किलकारियों में 
झूमती हवा में 
झर झर बरसात में 
कडकती बिजलियों में 
सरसराते पेडो में 
नीलाभ आकाश में 
उगते सूरज में 
माता-पिता के आशीर्वाद में 
मित्रता के कहकहों में 
नित नए संघर्षों में 
जीती है जिदंगी 
स्वर्ग नहीं इसी धरती पर रहना है
कुछ तो जीवन में चाहिए करने में 
स्वर्ग जैसे सुख का क्या मतलब 
निठल्ले नहीं बैठना है कर्म करना है
भावनाओं में जीना है 
वह तो इसी  जगह मिलना है 
जिंदगी को जीकर देखें 
बहुत खुबसूरत है यह 

Sunday 17 September 2023

कांटो पर कौन ??

दिल टूटता है
उस समय जब उसमें काटें चुभते हैं 
कांटो पर ही गुलाब खडा है
वह उसकी रक्षा करता है
उसको नहीं चुभोता 
जो उसको तोड़ने आते हैं उन्हें 
यहाँ तो जिस पर उसकी सुरक्षा का भार है
उसके अपने
वह ही कांटे लिए तैयार रहते हैं 
गाहे बगाहे चुभाते ही रहते हैं 
गुलाब तो जी भर कर खिलता है
अपनी खुशबू फैलाता है
यहाँ तो खिलने ही नहीं दिया जाता

Saturday 16 September 2023

नदी कहती है

नदी हमारी माता है
जल दायिनी है
उसका भी कुछ ऋण है हम पर 
वह तो निरंतर अपना कर्तव्य कर रही है
माता का जो होता है
हम कर रहे हैं??
माँ कुछ नहीं कह रही
तब हम कुछ भी करें 
कूडा- कचरा डाले 
गंदगी फैलाए 
मल मूत्र विसर्जित करें 
ईश्वर पर चढाया हुआ पुष्प - हार और दूसरी वस्तुएं
सब उसी में डाल दे 
पाप न लगे इस कारण 
कहीं और डालेगे तो
माँ कितना पाप धोएगी 
और किसका - किसका
उसकी भी कुछ सीमा है
हम त्योहारों का आनंद ले
परेशान उसे करें 
अकल दी है परमात्मा ने
अपनी भी आत्मा की आवाज सुने
सही है जो हम कर रहें 
यदि नहीं 
तब रूक जाओ ।

फिर याद आ गई वह भूली - बिसरी यादें

बिदाई हो रही है हमारी डबल डेकर बस की
बचपन जुड़ा हुआ है उससे
धडाधड चढते थे 
पहली वाले सामने की सीट पकड़ते थे
बडा सा दरवाजा 
ठेलमठेला कर अंदर घुसते थे एक साथ
ऊपर से नजारा लेते थे अपने शहर का 
सत्तर का दशक और बेस्ट की डबल डेकर बस
न जाने कितने यादों को समेटे हुए 
बचपन से जवानी
स्कूल से काॅलेज 
वह धमा-चौकड़ी और मस्ती 
कंडक्टर की डांट फटकार 
सब अंतर्मन में बसे हुए 
वह बस ही थी हमारी सबसे बेस्ट B E S T


कोरी किताब

पुस्तक का पन्ना अगर कोरा ही हो
हम क्या करें 
पन्नों को पलटते रहें 
कुछ ढूंढते रहें 
कुछ नहीं मिलेगा 
वह भरा रहता है तभी मजा पढने का है
मानवीय संवेदनाओं से
भावनाओं- कल्पनाओं से
सुखद- दुखद अनुभूति से
ऐसी पुस्तक जिसका एक पन्ना खत्म न हो
दूसरी पढने की चाह मन में उठे
जब तक खत्म न हो हम सोए नहीं 
रात रात भर जाग पढते रहें 
कुछ ऐसी बात हो
जो हमें अपनी ओर खींचे 
आकर्षित करें 
उत्सुकता लाएं 
जो मन के करीब लगें 
ऐसी किताब पढकर तो देखों 
कोरी किताब तो देखने के लिए हैं 

Friday 15 September 2023

मेरी औकात

मुझे लगता है 
लडना मेरा स्वभाव है
मैंने कभी हार नहीं माना
न हार मान कर बैठ रहा 
हाँ थोड़ा विचलित अवश्य हुआ 
वह ज्यादा देर तक टिका नहीं 
बीमार भी पडा 
बिस्तर पर ज्यादा देर तक रहा नहीं 
कुछ समय बाद सामान्य धारा में बहता रहा
मेहनत बहुत नहीं किया 
काम भी  नहीं छोड़ा 
जिंदगी जैसे भी चल रही थी 
चलाता रहा
चलता रहा 
किसी बात का मलाल नहीं 
क्या खोया क्या पाया 
इसका गुणा- गणित करना तो जरा कठिन है
फिर भी जो मिला 
बहुत मिला
ईश्वर का साथ है
यह सदा विश्वास रहा
उससे कुछ ज्यादा मांगा नहीं 
उसने जो दिया 
मेरी औकात से ज्यादा दिया। 

खुश रहो

जिंदगी है पानी का बुलबुला 
कब फुट जाएं 
नहीं इसका ठिकाना
जो करना है कर लो
प्रेम- भाईचारे से मिलकर रह लो
व्यर्थ न हो यह आपसी द्वन्द में 
कब छोड कर चल दोगे
सब इसी धरा पर छोड़ कर 
आए है तो जिंदादिली से रहो
खुश  रहो स्वयं भी
औरों को भी 

आसान- मुश्किल

रेत पर नक्शा बनाना आसान है
ख्वाहिशों को पूरी करना मुश्किल है
सपने देखना आसान है
सपनों को साकार करना मुश्किल है
आसान तो आसान ही है
उसमें क्या बडी बात
बात तो तब होगी
जब मुश्किल को आसान कर दिखाओ 
दुनिया को अपनी मुट्ठी में भर लो
तुम जो देखो वही दुनिया माने
अभिमान करो स्वयं पर
कुछ ऐसा बनों 
सम्मान तो दुनिया पर छोड़ दो 
झुकती है दुनिया 
           झुकाने वाला चाहिए  ।

Thursday 14 September 2023

हिन्दी- अंग्रेजी

14 सितम्बर हिन्दी-दिवस 
सब मना रहे हैं  हमारी अपनी भाषा है 
हमारी पहचान है 
सत्य यह भी है 
हम बात हिन्दी की करते हैं लेकिन अंग्रेजी हर जगह छायी है
वह अपना विस्तार भी करती जा रही है
ग्रामीण अंचल में भी लोग अंग्रेजी माध्यम में भेजना पसंद कर रहे हैं 
वास्तविकता तो स्वीकार करना पडेगा 
अंग्रेजी रोजी - रोटी की भाषा है
साथ- साथ एक और विवाद छिडा है
भारत और इंडिया नाम को लेकर 
इंडिया नाम हमको नहीं चाहिए क्योंकि वह अंग्रेजी है
नाम नहीं चाहिए अंग्रेजी भाषा चाहिए 
अंग्रेज तो चले गए, अंग्रेजी रच - बस गयी है 
नींव रख कर गए है जो वह बहुत मजबूत है
हिन्दी क्या सारी भारतीय भाषाओं का कमोबेश यही हाल है
तब हिन्दी का क्या ??
उसका महत्व बताना पडेगा 
अंग्रेजी को तो छोड़ नहीं सकते 
लेकिन अपनी भाषा को भी न छोड़े 
जो अपनी माता का आदर न करें और दूसरों की माता का 
उसका क्या फायदा 
हिन्दी हमारी अपनी है
उसे बोलने में शर्म नहीं गर्व महसूस करें 
यह हमारे राष्ट्र की पहचान है
उसको कायम रखना हर नागरिक की जिम्मेदारी है ।

मैं हिन्दी

मैं सीधी - सादी
मैं सहज - सरल
मैं सबके साथ
मेरा मन उदार 
नहीं घमंड मुझे 
किसी से नहीं मुझे दुश्मनी 
सबमें समाहित हो जाती
न जाने कितने रूप मेरे
हूँ तो मैं एक ही
सबसे प्यार से मिलती
मन की भाषा 
भावनाओं की भाषा 
यह तो मैं हूँ ही
अनपढ़ या शिक्षित 
ग्रामीण या शहरी
सब अपने अनुसार मुझे बोलते - समझते
दुख तो तब होता है
जब मेरे ही सगे मुझे हेय दृष्टि से देखते 
मुझे बोलना ठीक नहीं समझते
मैं सहज हूँ सरल हूँ 
पर इतनी भी नहीं हूँ 
कुछ तो मशक्कत करनी पड़ेगी 
मुझे अच्छी तरह से जानने और समझने के लिए 
व्याकरण से समृद्ध हूँ 
दुर्लभ साहित्य की भरमार है
मुझे जानने के लिए पढना पडेगा 
मनन करना पड़ेगा 
हिन्दी का क्या है
वह तो कोई भी बोल सकता है
हाँ यह बात सही है
लेकिन वास्तविक हिन्दी
सही हिन्दी 
सीखना ही पडेगा ।

एहसान का एहसास

कर्ज ले लो किसी से 
उतर जाएंगा
ब्याज सहित 

एहसान मत लो
वह कभी उतरता नहीं है
बल्कि एहसास कराता रहता है

कर्जदार चुकाने के बाद तन कर खडा हो जाता है
एहसान वाला ऑखें भी नहीं मिला पाता ।


घर की तलाश

जगह-जगह घूमा
नित नया बसेरा
कुछ रास न आया
कितना भी खास था
वह अपना न था
घर की तलाश में भटकता रहा
सुकून तलाश  करता रहा 
एक घर तो हो अपना 
जिसमें सब मेरे मन का हो
किराया का उधार का 
उसमें मन नहीं रमता 
अपना कहने को हिचकता 
घोंसला अपना ही भला
वह वीराने में हो या खलिहानों में 
पहाड़ों पर हो या कंदराओं में 
छोटा हो या बडा हो
फर्क पडता है 
कारण कि वह अपना होता है ।

तुम मेरी हिंदी हो

तुम हमारी अपनी हो
हमारे हदय में बसती हो
हमारे साथ साथ चलती हो
बहुत कुछ दिया है तुमने
हमारी अभिव्यक्ति का माध्यम हो
संपर्क का साधन हो
अजनबियों से मेल कराती हो
अपनेपन से लोगों से मिलवाती हो
तुम पर पूर्ण अधिकार हमारा 
हमको , हमसे ही परिचय करवाती हो
हमारी सोच - विचार में तुम ही
तुम न होती तो हम निराधार रह जाते 
तुम पर हमको शान है 
शर्म नहीं गर्व है कि तुम मेरी 
सबको प्रेम से अपनाती हो
अपने में समाहित करती हो 
दूसरों के लिए अपने को भी तोड़ मरोड़ लेती हो
दूसरे के अनुसार अपने को ढाल लेती हो
अमीर - गरीब  , मालिक- मजदूर सबकी तुम हो
बहुत नहीं थोडा ही सही
हर कोई परिचित है तुमसे
हमारी रोजी - रोटी हो 
तुम माँ हो प्यार से दुलराती हो
ज्ञान का भंडार देती हो
तुम हो मेरे साथ तभी हम भी कुछ हैं 
तुम मेरा सम्मान बढाती हो
हमारी आन - बान - शान - भावना - विचार तुम ही हो 
अब तो सब समझ ही गए होंगे 
तुम मेरी कौन हो 
    तुम मेरी प्यारी हिन्दी हो
     हिन्द की हिन्दी 
     भारत की हिन्दी 
     सबकी सखी 
     सबकी प्यारी सबसे न्यारी 
     है हिन्दी हमारी 

औरत -- मर्द

औरत बिकती है
आदमी खरिदता है
औरत को तवायफ और वेश्या की संज्ञा 
उनकी ओर तिरस्कृत दृष्टि 
सबसे अधम 
खरिदने वाले का कुछ नहीं 
उसको तो कोई जानता भी नहीं 
चुपचुपाकर वह अच्छा बने रहना चाहता है
औरत जिस्मफरोशी भी करती है 
तो सरे बाजार में 
वह सच को स्वीकार करती है
अपनी मजबूरी को जानती है
उसका कोई शौक नहीं 
आदमी खुशी से जाता है उस बाजार में 
अगर कोई खरिदे ही न तब
बाजार ही बंद हो जाएंगा 
आदमी यह नहीं चाहता
कभी शोषण के नाम पर 
कभी देवदासी के नाम पर
कभी पूजा - आध्यात्म के नाम पर 
कभी भीड़ के नाम पर 
इससे भी आगे
जबरदस्ती और बलात्कार 
वह औरत को व्यक्ति नहीं समझता
अपने जैसा नहीं समझता
वह स्वंतंत्रता और स्वच्छंदता चाहता है
औरत के लिए सीमा रेखा खींच रखता है
उसको पता है
जिस दिन यह उठ खडी होगी 
प्रतिकार पर उतारू हो जाएंगी 
वह कहीं का नहीं रहेगा 
इतिहास गवाह है
जब जब औरत उठ खडी हुई है 
प्रतिकार किया है 
अपने को साबित किया है
तब तब वह मर्दों से भारी पडी है
वह शक्ति है
धीरज और सहनशीलता के साथ विध्वंसक भी है
सही है भी
 औरत ने जनम दिया मर्दों को
 मर्दों ने उसे बाजार दिया 

हिन्द की हिन्दी

हिन्द की हिन्दी
लगती बहुत प्यारी
जोडती है दिलों को
करती नहीं कोई भेदभाव
जो भी इसको अपनाता
उसकी ही हो जाती
तोड मरोड़ कर किसी भी लहजे में
वह ढल जाती
अंजानो के बीच रिश्ता कायम करती
जनसाधारण की भाषा है यह
हर आम आदमी परिचित इससे
नहीं कोई इससे अंजान
ज्यादा न सही थोडा ही सही
सब तक यह पहुंची जरूर
यह किसकी मजबूरी नहीं
स्वेच्छा से स्वीकृत है
जब कुछ न समझ आता
तब अपना दामन पकडा देती
सबका सहारा बनती
बातचीत का माध्यम बनती
सडक से लेकर महलों तक
सबमें इसका वास
है बहुत सरल
नहीं है इसमें कोई क्लिष्टता
लिपि इसकी देवनागरी
जो है सब पर भारी
यह है हिन्द की पहचान
हिंद की हिन्दी लगती बहुत प्यारी

Wednesday 13 September 2023

हम हारे हुए लोग

हम हारे हुए लोग हैं 
जीतने की कला आती नहीं 
जीतना कभी चाहा नहीं 

अपने ऊपर हुए मजाक पर भी मुस्कराते रहें 
गलत है यह जानते हुए भी सही ठहराते रहें 
जवाब देना चाहते थे पर उससे बचते रहें 
खुशियाँ खुलकर मनाना चाहते थे वह भी नहीं 
दूसरों के लिए अपनी इच्छा को मारते रहें 
दूसरों को पता न चले इस वास्ते अपने ऑसू छिपाते रहें 
दुख - पीडा में भी मुस्कराते रहें 
सम्मान की आशा में अपमान का घूंट पीते रहें 
शांति की कोशिश में अशांति को ओढते रहे 
दूसरे का भी इल्जाम अपने माथे लेते रहे 
एहसानों की दुहाई को सुनते रहें 
अपने व्यक्तित्व को मिटाते रहें 
अपनी भावनाओं को तार तार करते रहें 

यह सब करते करते हम जाने कहाँ से कहाँ पहुँच गए 
अपने आप को भी भूल गए 
अपने आत्मसम्मान को गिरवी रख दिया 
इतना सब होता रहा और हम निर्लज्ज मुस्कराते रहे 
रिश्तों को बचाते रहे 
कहाँ शुरू हुआ कहाँ खतम होगा 
हम क्या थे और क्या हो गए ।

यह समाज

इसने मुझे धोखा दिया
उसने मुझे धोखा दिया
यह समाज ऐसा है
लोग ऐसे हैं 
यह सब बात तो सही है
कहीं न कहीं हमसे भी कुछ चुक हुई होगी
कमी हममें भी रही होगी
हम क्यों नहीं प्रतिकार कर पाते
जवाब नहीं दे पाते
विश्वास कर लेते हैं 
हम डरपोक बन जाते हैं 
समाज सदियों से ऐसा ही है
जीना दूभर कर देता है 
इधर चलो तब भी उधर चलो तब भी
यह किसी को नहीं छोड़ता 
यही समाज है 
जिसने ईसा को सुली पर चढाया और आज उनकी पूजा करता है
यही समाज है जिसने गांधी को गोली मारी 
अहिंसा के पुजारी को हिंसा दिया 
यही समाज है जिसने सुकरात और मीरा को जहर दिया
यही समाज है जिसने ज्योतिबा फुले पर गोबर फेंका 
इसने तो भगवान राम जैसे मर्यादा पुरुषोत्तम तक को नहीं छोड़ा 
यह सब पता है 
रहना भी यही है इनके साथ
मजबूरी है 
अकेले रह नहीं सकते
समाज से निपटने में सक्षम होना चाहिए 
यहाँ सब खराब है ऐसा नहीं है
अच्छे लोग भी हैं 
बस अपने विवेक से काम करना चाहिए 
आज बोलेगा कल सलाम मारेगा 
इसकी बात क्या सुनना और क्या दिल पर लेना 
अपना कर्म करना ।

अकेले चलना

चला तो मैं अकेला ही था
लोग मिलते गये 
जुड़ते गये
कारवां बढता गया 
सफलता की सीढियां चढता रहा 
ऊंचाई पर पहुँच गया 
जब वहां से नीचे झाँका 
तो सब नीचे ही थे
मैं अकेला ही यहाँ पर पहुँचा 
यह केवल मेरी ही उपलब्धि थी
मेरा ही प्रयास था 
उस पर चिंतन- मनन करने लगा
महसूस हुआ 
अकेले कुछ नहीं होता ।

Tuesday 12 September 2023

नाती - पोता

कहते हैं 
मूल से सूद ज्यादा प्यारा होता है 
अपने बच्चे तो हमारी जान है ही
उनमें ही अटकी रहती है हमारी जान
उस जान की जो जान है
वह तो कैसे न प्यारी हो
दिल में बसती है
अपने नाती - पोते की सूरत 
अपना बचपन अपने बच्चों के साथ तो साझा नहीं कर पाते 
उनके साथ करते हैं 
उन्मुक्त हो 
जिम्मेदारी नहीं रहती 
बस खेलना - खिलाना 
बच्चे के साथ बच्चा बन जाना 
इससे ज्यादा खुशी क्या होगी
जीने की इच्छा बढ जाती है
स्वर्ग का सुख धरती पर ही मिल जाता है
और क्या चाहिए जिंदगी में ।

कल्पना- सपने में जीना

आदमी का बस चलता तो चांद धरती पर होता
यह संभव नहीं है
वह चाँद पर जा तो सकता है
उसे धरती पर ला नहीं सकता
चांद- तारों की कल्पना कर सकता है
अपनी प्रेमिका के लिए तारें तोड़ लाने की बात करता है
जबकि वह यह भलीभाँति जानता है 
यह हो नहीं सकता
व्यक्ति कल्पना में जीता तो है
साथ साथ में वह हर असंभव को संभव करने की कोशिश में लगा रहता है
कभी सफल तो कभी असफल 
प्रयास जारी रहता है
इसी फलस्वरूप उसने बहुत कुछ हासिल किया है
कल्पना से शुरू हुआ प्रवास यथार्थ की धरती पर उतरा है
सपने देखना , कल्पना करना , महत्त्वाकांक्षा रहना 
यह बुरी बात तो नहीं है
बडा होने का ख्वाब 
कुछ कर गुजरने की इच्छा 
यही तो उसके जीवन को उद्देश्य पूर्ण बनाते हैं 
सतत क्रियाशील रहना 
उसे सब जीवों से अलग करता है 
  नहीं तो फिर 
अजगर करे न चाकरी , पंछी करे न काम 
दास मलूका कह गए,  सबके दाता राम 
     तब तो राम जी है ही ।

Monday 11 September 2023

ऐसा एक दोस्त तो हो

जब भी पुकारूँ 
तू मिलने चला आए
जब भी बात करना चाहूँ 
सब काम काज छोड़ बात कर ले
जब कुछ न बोलू और चुप रहूं 
कुरेद कुरेद कर पूछे 
क्या बात है 
चुप क्यों है , उदास क्यों है 
जब बिना बात पर गुस्सा हो जाउँ 
चिडचिडा उठूँ 
तब भी बुरा न माने 
गुस्से में उल्टा-सीधा बोल दू 
अब चले जा यहाँ से
तब भी मुस्कराता रहें 
पूछे किस बात की टेंशन 
बता तो सही
कुछ तो सोल्यूशन निकालेगे 
मैं बोलता रहूँ 
तू चुपचाप सुनता रहें 
मेरे ऑखों में ऑसू देख ऑसू आ जाए
मेरे दुख से द्रवित हो जाएं 
सारी दुनिया गलत कहें 
उसकी नजर में मैं सही रहूँ 
हर मुश्किल घडी में साथ खडा रहे 
ऐसा एक दोस्त तो हो
मैं दुर्योधन तू मेरा कर्ण तो हो
यह जानते हुए कि 
परिणाम क्या होगा
साथ देने को तत्पर हो 
    कहीं पढा था 
किसी का घर जल गया था सब लोग बाहर खडे हो सांत्वना दे रहे थे 
दोस्त को देखकर उसने कहा 
        सब खत्म हो गया
दोस्त हंसकर कंधे पर हाथ रख बोलता है 
तू सही सलामत है ना तो कुछ खत्म नहीं हुआ 
    एक दोस्त तो ऐसा हो ।

पेड़ और बेल

एक पेड़ खडा था अकेला 
एक कोने में बगीचे के
उसके दूसरे साथी थोड़ा दूर थे 
एक दिन एक लता न जाने कहाँ से पेड के नीचे आ गई 
पेड़ को अच्छा लगा
चलो कोई साथी तो मिला 
उसने लता को सहारा दिया 
लता उसके पूरे इर्द-गिर्द फैलने लगी 
फिर पेड़ पर चढना शुरू किया
पेड़ स्नेहपूर्वक अपनी बांहे फैलाये रहा 
बेल चढती रही 
पूरे पेड़ को ढकती रही
अब पेड़ पर मुश्किल आन पडी
सूर्य की किरणें जो सीधी उस पर पडती थी
वह बंद हो गई 
उसका दम घुटने लगा
वह खोखला होने लगा
अब वह महसूस  करने लगा
इसे पनाह देने के पहले सोचना था
अब तो लगता है
मेरा अस्तित्व मर रहा है
पहले कैसा स्वतंत्र और स्वच्छंद था
अब तो हिलना - डुलना  भी दूभर 
जिंदगी में भी ऐसा होता है
जिसको हम पनाह देते हैं 
वही हमारी जडो को खोदना शुरू कर देता है
सहायता करना अच्छी बात है
लेकिन अपने को मिटाकर नहीं। 

हर व्यक्ति की अपनी कला

मेरे शब्दों को देखकर
मेरी वाक्यरचना को देखकर 
मेरी कविताओं को पढ़कर 
यह मत समझ लेना 
यह मेरी अपनी है
भावना पर किसी का वश नहीं होता 
दूसरों की पीड़ा पर हम दुखी हो उठते हैं 
दूसरों के ऑसू हमारी भी पलकें गीली कर जाते हैं 
दूसरे की उदासी हमें भी मायूस कर जाती है
भावनाओं के पुतले हैं हम
फिल्म देखते हैं तो जार जार रोने लगते हैं 
अन्याय देखकर क्रोध आ जाता है
खुशी देखकर हम ताली बजाते हैं 
पात्र की भावनाओं के साथ बह जाते हैं 
हमें पता होता है यह 
चित्रपट है यह 
फिर भी 
किसी की लेखनी को देखकर और पढकर अंदाजा लगाना
यह उसकी आपबीती होगी
ऐसा नहीं होता है
उसकी लेखन शैली है वह
कुछ दुख दर्द को उकेरते हैं 
कुछ हल्के - फुल्के मजाकिया क्षणों को 
हर व्यक्ति की अपनी कला ।

स्वाद अपना

पकौड़ी- कचौरी 
टिकिया- समोसा 
गोलगप्पे- बटाटे बडे 
भेल पुरी- दही पुरी
मसाला डोसा - इडली सांभर 
 सब मुझे भाते हैं 
पिज्जा - बर्गर 
नूडल्स- मोमोज
सैंडविच- नाचोज 
यह खा तो लेते हैं 
मन को नहीं भाते 
हाथ से खाना खाते हैं 
चम्मच का इस्तेमाल कभी-कभी करते हैं 
जीभ पर बस गया है देशी स्वाद 
वह खट्टी - मीठी - चटपटी 
भले सी सी करते रहो
ऑखों में पानी आता रहें 
चटखारे लेकर तो खाते ही रहते हैं 
 पेट भले भर जाएं 
जी नहीं भरता 
अपने खाने का स्वाद ही अलग है
तभी वह दिल के करीब है 

ऊपर वाला

ऊपर वाले की लाठी में आवाज नहीं होती 
जब पडती है ना तब बडे जोर की
तब याद आ जाता है सब
वह हिसाब-किताब करता है
कहीं भी कोई गलती नहीं 
गलतियों की तो सजा का भुगतान करना होता है
वह , वह सी सी टी वी कैमरा है
जिसकी निगाह से कुछ नहीं छूटता 
अतीत  से लेकर वर्तमान तक 
यहाँ तक कि वह भविष्य देख  लेता है
तब उससे बच कर रहो 
वह सब जानता है
सब समझता है
न्याय भी करता है
बस विश्वास रखो
अपनी बारी की प्रतीक्षा करो 


चलते चलो

चलते चलो चलते चलो
कब तक
मंजिल ना मिले 
तब तक
रुकना नहीं है
ठहरने नहीं है
रूके - ठहरे
समझ जाओ
जिंदगी ठहर गई
जिंदगी तो गतिशील 
सांसों के साथ ही चलती
उतार- चढाव तो होगा 
उससे क्या घबराना 
वह तो जीने की निशानी है 

Sunday 10 September 2023

सहभागी किसमें??

घमंड नहीं गर्व है
शक नहीं विश्वास है
गलत नहीं सही है
बुरा नहीं अच्छा है
झूठ नहीं सच है
इतना तो पता होना चाहिए 
कौन क्या है
अगर नहीं तो बातें बनाना 
सुनी - सुनाई बातों पर यकीन करना
किसी को कुछ भी ठहरा देना
आपके कारण किसी की जिंदगी प्रभावित हो
जाने - अंजाने आप यह तो नहीं कर रहें 
थोड़ा ठहर जाओ
विचार कर लो
बुद्धि दी है ईश्वर ने
उसका तो उपयोग कर लो
किसी के कहने से चलना
सोचना , करना
आप गुलाम नहीं है
हाँ में हाँ मिलाना 
प्रतिरोध नहीं कर सकते ठीक है
गलत बातों में सहभागी नहीं हो ।

हम पंछी हैं

जमीं हमारी है
आसमां हमारा है
सारा जहां हमारा है
जहाँ चाहे वहाँ जाएं 
उन्मुक्त विचरण करें 
सरहदों  की पाबंदी नहीं 
पहाड़,  नदी , समुंदर , जंगल 
सब हमारे ही घर 
हम कहीं भी डेरा डाले 
कोई रोकटोक नहीं 
एक वृक्ष ही पर ही बनाते 
अपना रैन बसेरा 
एक छोटा सा घोंसला 
पेट भर दाना 
ज्यादा नहीं चाहता 
मन हमारा 
आज यहाँ तो कल वहाँ 
जहाँ बसे वही हमको लगता प्यारा 
पैरों में बेडियाँ नहीं भाती
स्वतंत्रता हमको लगती प्यारी 
निठल्ले बैठ खाना हमारी फितरत नहीं 
सुबह - सबेरे जगते हैं 
मेहनत करते हैं 
सांझ बीते घर लौटते हैं 
लोग हमें चाहते हैं बांध रखना 
वह हम नहीं चाहते 
हम पंछी हैं 
उडान भरना हमारा स्वभाव है ।

Saturday 9 September 2023

स्वागत है त्रृषि सुनक

भारत का दामाद आया है 
नारायण मूर्ति की बेटी अक्षता मूर्ति का पति
ब्रिटेन का प्रधानमंत्री त्रृषि सुनक 
एक विशेष जगह है उनकी 
दामाद का तो हमारी संस्कृति में विशेष स्थान होता है
उसकी पैर पूजा जाता है ब्याह के समय
दामाद का घर में कदम पडना शुभ माना जाता है
हाँ अभी भी हमारे समाज में कुछ लोग है
जो अपने अहंकार और मद में डुबे हुए हैं 
वे यह भूल जाते हैं 
दामाद का सम्मान होगा तो आपकी बेटी को वह सम्मान मिलेगा 
दुनिया चाहे कितनी भी बदले यह लीक के फकीर पिछडी मानसिकता के साथ जीते हैं 
अपने साथ दूसरों की जिंदगी का जीना भी दूभर करते हैं 
अक्षता भारत की बेटी है 
और ब्रिटेन की प्रथम लेडी
स्वागत तो बनता है 
राष्ट्राध्यक्ष होने के साथ-साथ भारत से एक दूसरा भी नाता
अक्षता का सुहाग अक्षुण्ण रहें 
त्रृषि सुनक का बहुत बहुत स्वागत। 

नमस्ते भारत

आज का दिन भारत का दिन
मेहमानों का तहे दिल से स्वागत 
जो आ रहा है 
सभी का स्वागत धूम धाम से
अपनी संस्कृति और कला का दर्शन करवाता भारत 
वसुधैव कुटुंबकम का संदेश देता भारत 
बुद्ध और गांधी का संदेश देता भारत 
अहिंस परमो धरम 
योग करवाता भारत 
महाशक्तियाॅ आई है
भारत को देख कायल है
कुछ लेकर जाएंगे 
कुछ देकर जाएंगे 
अंतराष्ट्रीय जगत पर जी 20 का क्या प्रभाव पडता है
भारत अपने 20 का दम दिखा रहा है
प्रभाव छोड रहा है
और हो चाहे जाएँ 
मेहमान नवाजी में हम कोई कसर नहीं छोड़ते 
इस मामले में तो हम 19 नहीं  20 ही रहेंगे
क्योंकि हमारे यहाँ तो 
अतिथि देवों भव की परम्परा रही है 
दुश्मन भी घर आए तो उसको ऊंचा आसन दिया जाता है 
   मेहमां  जो हमारा होता है , वो भगवान सा प्यारा होता है 
   स्वागत है सभी का ।

ईश्वर का प्लान

कभी-कभी हम समझ नहीं पाते हैं 
जीवन कौन सी दिशा में जा रहा है
हम चाहते कुछ है
होता कुछ है
समझ नहीं आता हो क्या रहा है
हमारा तो कोई वश नहीं 
वह तो ऊपर वाले पर हैं 
वह न जाने क्या चाहता है
छोड दे उस पर 
शायद हमसे अच्छा चाह रहा हो
उसके कुछ प्लान हो हमारे लिए 
तकदीर  का रचयिता 
सारा लेखा - जोखा उसके पास
कर्मों और भाग्य का हिसाब वही करता है
फल भी वह ही देता है
उसके आगे किसी की नहीं चलती
जब भगवान की खुद के जीवन पर नहीं चली 
राज्याभिषेक होने जा रहा था चौदह बरस का वन गमन मिल गया
माता-पिता बंदी और जेल में जन्म 
जन्मते ही दूसरी जगह पहुंचा देना 
जीवन देने वाले को स्वयं की जीवन रक्षा 
हम तो सामान्य मनुष्य है
नियति के हाथों विवश है
नियति क्या खेल करवाएगी 
कैसा नाच नचवाएगी 
यह तो वो ही जाने
बस 
हम अपना कर्म करें और सब उस पर छोड़ दे ।

भारत - इंडिया - हिन्दुस्तान

भारत गाँव में बसता है
इंडिया शहर में बसता है
भारत खेत - खलिहान में बसता है
इंडिया टेक्नोलॉजी में बसता है
भारत मातृभाषा में बसता है
इंडिया विदेशी भाषा में रहता है 
भारत परंपरा और संस्कृति का पूरक है 
इंडिया आधुनिकता और मार्डन जगत का 
भारत में तांगा- बैलगाड़ी 
इंडिया में बस - बुलेट ट्रेन 
भारत में तीर्थ स्थल
इंडिया में माॅल और सिनेमा घर 
भारत में हरियाली 
इंडिया में सीमेंट और कांक्रीट की गगनचुंबी इमारतें 
भारत में जीवनदायिनी नदी 
इंडिया में  विशाल समुंदर 
भारत में साडी और सूट
इंडिया में जीन्स और फ्राॅक 
भारत पुरातन में जीता है 
इंडिया नए-नए खोजों में 
भारत स्थिरता की ओर 
इंडिया विकास की ओर 
भारत धर्म गुरू और धर्म ग्रंथों से भरपूर
इंडिया विज्ञान और वैज्ञानिकों से समर्थ 
रण छिडा है
किसे छोड़ दे
किसे अपना ले
भारत और इंडिया दोनों तो अपने ही हैं 
हमारी पहचान तो दोनों से हैं 
कान्हा और कृष्ण एक ही है
एक गोकुल का छोरा दूसरा मथुरा नरेश 
नाम ही अलग है
क्या फर्क पडता है 
एक और भी तो नाम है अपना 
इंडियन और भारतीय से भी ऊपर 
उसे कैसे भूले 
हम है हिन्दुस्तानी 
यूनान , मिस्र,  रोमा
   सब मिट गए जहाँ से 
          कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी 
                  सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा। 

जीवन की उलझन

कहने को तो सब अपने हैं 
होता नहीं कोई यहाँ अपना
अपना , अपने से दूर 
दूर वाले अपने पास 
किस को माने अपना
जो हमसे खुशी से मिले
जो हमारे सुख - दुख का सहभागी बने
जिसके सामने हम मन खोलकर रख सके
जिसके साथ हम जी भर कर खिलखिलाएं 
मन भर कर रो ले 
सोचना न पडे बोलने से पहले 

अपनों के साथ होता उल्टा है
गैरो के साथ हम खुलकर जी लेते है
मिल जुलकर रह लेते हैं 
अपनों के साथ घुट घुट कर रह जाते हैं 
पराया मन न भाया तो छोड़ देते हैं 
अपनों के साथ तो वह भी नहीं होता
मन बांध देता है हाथ को
वह कभी नहीं छूटता 
अपनों के लिए जो भी करें वह कर्तव्य 
दूसरों के लिए वह एहसान 
कर्तव्य और एहसान के बीच का एहसास 
हमें हमेशा उलझाए रहता है
जो इस उलझन से निकल गया 
उसका जीवन सुलझ गया ।

यह भी सही , वह भी सही

बहुत कुछ होता है यहाँ 
जो हमारे मन का नहीं होता है
इसलिए सब खराब है
दुनिया जीने लायक नहीं है
अब मन उठ गया है
यहाँ से कहीं चला जाएं 
कहाँ जाओगे 
रहना तो यही है
यहाँ या वहाँ 
सब तो वैसे ही होगा
हम किसी को बदल नहीं सकते
अपने अनुसार ढाल नहीं सकते
आप अपने लिए जिम्मेदार है
किसी और के लिए नहीं 
आप प्रेम से हाथ मिलाना चाहते हैं 
सामने वाले का हाथ बढता ही नहीं 
तब क्या जबरदस्ती करोगे 
सोच सोचकर दुखी रहोगे

छोड दो सब
अपने लिए जीओ
कब तक संबंधों को रफू करते रहोगे 
कपडा फट गया है
जीर्ण शीर्ण हो गया है 
सीने और रफू करने पर भी फट जा रहा है
छोड दो , कहीं फेंक दो
यह संसार परिवर्तन शील है
लोग बदल जाते हैं 
यहाँ तक कि सत्य को भी दबा दिया जाता है
छोटी सी जिंदगी है
तकरार छोड़ो 
अपेक्षा छोड़ो 
क्या हार में क्या जीत में 
किंचित नहीं भयभीत मैं 
कर्तव्य पथ पर जो भी मिला 
यह भी सही वह भी सही ।

Friday 8 September 2023

कान्हा का जन्म

कान्हा का जन्म तो सबको याद रहा
याद रहना भी चाहिए 
जगत के पालनहार का जन्मदिन था
उत्सव मनाने का दिन था
उस दिन एक और शिशु का भी जन्म हुआ था
वह थी योगमाया 
कान्हा तो गोकुल पहुँच गए 
मामा कंस के कोप का भाजन बनी थी वह बेटी
जिसने कहा था
तुम्हारा काल तो गोकुल में जन्म ले चुका है
बेटा - बेटी दोनों ही संतान 
तब खुशी के हकदार तो दोनों ही
वह योगमाया ही थी जिनको बदलकर वसुदेव कृष्ण को ले गए थे
कृष्ण की जीवन रक्षा का कारण वह बनी
सबको जीवन देने वाले का जीवन बनी
कन्हैया के साथ उनका भी स्मरण करना जरूरी है 
देवकी की आठवीं संतान तो पुत्र ही था यह तो नियति लिखित था 
कंस वध तो उनके द्वारा ही होना था पर जन्मते तो वध नहीं करते 
मनुष्य लीला करनी थी 
उस दिन भी एक पुत्र को बचाने के लिए पुत्री को सामने किया गया था
दोनों का जीवन बहुमूल्य ही था 

Thursday 7 September 2023

एक सितम्बर । विश्व पत्र लेखक दिवस

वह खत था
कागज का टुकड़ा नहीं था
उस पर कलम और स्याही से शब्द उकेरा जाता था
अपनी भावनाएं उसमें समाहित की जाती थी
प्यार - मनुहार 
कुशल - क्षेम 
कुछ अपनी बीती
सब जाहिर होता था
महीनों और कभी-कभी बरसों से दूर जो थे
उनका पत्र पाकर ही सांत्वना और दिलासा मिलती थी
पत्र के सहारे दिन कट जाते थे
पत्र का इंतजार 
डाकिए का इंतजार 
हमेशा रहता था
ऑख दरवाजे पर लगी रहती थी
हाथ में थामते ही चेहरे पर चमक आ जाती थी
छोटा सा पोस्टकार्ड 
नीली अंतर्देशी 
बंद टिकट लगा लिफाफा 
वे सब कितने अमूल्य थे 
आज सामने बात कर लेते हैं मोबाइल से 
दूरी कम हो गई है 
इंतजार का झंझट नहीं 
फिर भी वह बात तो नहीं 
उसमें दूरी भले थी मन जुड़े थे 
पत्र वाले जमाने के लोग
आज भी अपना पत्र संजोये रहते हैं 
कितने पन्ने भर जाते थे
मन नहीं भरता था
समय ने करवट ली है
नई तकनीक आ गई है
वह बहुत अच्छा है 
फिर भी पत्र में कुछ बात थी 
बरसों संबंध कायम रखने वाला यह माध्यम 
इसकी खुशबू बरकरार है 
पत्र तो पत्र है 
वह प्रेम का ऐसा भंडार है जिसके भंवर में हम जी रहे हैं 
यादों में गोते लगा रहे हैं 
कुछ एहसासों को ताजा कर रहे हैं। 

बचपन का दौर

ख्वाहिश है कि फिर से बच्चा बन जाऊं 
खूब खेलूँ- कुदू और मस्त से सो जाऊं 
माँ डांटती रहें मैं मटरगश्ती रहूँ 
खाने में ना नुकुर करती रहूँ 
नहाने - धोने में भी आलस करती रहूँ 
बस स्टॉप पर मस्ती करती रहूँ 
स्कूल में डांट खाती रहूँ 
पनिशमेंट स्वरूप कक्षा से बाहर या फिर बेंच पर खडे रहूँ 
दोस्तों संग खो खो और लपाछपी खेलती रहूँ 
उडती पतंग को लंगड डाल पकडती रहूँ 
फटाफट सीढियां चढू 
चलते - चलते गिरती पडूँ और फिर उठ खडे हो जाऊं 
जब मन आया तो जोर जोर से हंस लू 
जब मन आया तो बुक्का फाड रो लू 
कौन क्या बोलता है मन पर न ले लूँ 
पागल,  सनकी , शैतान सब उपाधियों से नवाजने पर विचलित न होऊ 
कंधे पर बस्ता और हाथ में बटाटा बडा खाते खाते पानी में छप छपा कर करते जाऊं 
कपडा साफ है या गंदा उसका ख्याल न करते जाएं 
बिना बात पर ही ही हा हू करते जाऊं 
कितनी बातें कितनी यादें 
बचपन की मन में समाई

अब न वह खुलकर हंसना
न जी भर कर  सोना 
न वह बेफिक्री और मस्ती 
सब छूट गए 
हम जो बडे हो गए 
अब बात दिल पर लगती है
अब हर किसी पर शक होता है
अब अपनी तो छोड़ों लोगों की पडी रहती है
लोग क्या कहेंगे 
इन लोगों के चक्कर के चक्रव्यूह में फंस कर रह गए हैं 
झुठी प्रतिष्ठा और रोजी रोटी के चक्कर में चकरघिन्नी की तरह घूम रहे हैं 
याद कर रहे हैं 
यह भी एक दौर है वह भी एक दौर था ।

जय सुदर्शन धारी की

अपनी जान कितनी प्यारी होती है 
मथुरा के युवराज कंस रथ हाक रहे थे 
बहन देवकी की बिदाई थी । प्रिय बहन थी ऑखों में अश्रु थे भाई था 
स्वाभाविक है कितने प्यार और भरे मन से 
जैसे हर भाई रहता है
भविष्य वाणी होती है , देवकी का आठवां पुत्र तुम्हारा काल बनेगा 
सब कुछ उसी क्षण पलट गया
नियति ने क्या खेल खेला
बहन को कारागार में डाल दिया  
अपने मौत के डर से उसके हर बच्चे की हत्या करते रहे
मौत के डर से दूसरों को मौत के घाट उतारते रहें 
मौत तो अटल सत्य है जीवन का 
फिर भी कोई नहीं चाहता कि वह आए 
आई वह उस अमावस्या की रात रोहिणी नक्षत्र में 
काल आ चुका था कृष्ण के रूप में 
भाई- बहन के प्यार के बीच मौत अपना तांडव खेल खेलती रही 
अंत हुआ कंस का 
आततायी से छुटकारा मिला मथुरा वासियों को 
जन्म लेना पडा ब्रह्माण्ड के स्वामी को
मामा को मारना पडा 
जब जब धर्म की हानि होगी तब तब तो वे आएंगे ही 
          जय सुदर्शन धारी की 

हे कृष्ण

हे कृष्ण 
तुम्हारा हर रूप मुझे भाता है
सबसे ज्यादा  सखा रूप
मैं अर्जुन और तुम मेरे सारथी
मैं उद्धव हूँ और तुम मेरे मार्गदर्शक 
मैं सुदामा हूँ और तुम मेरे तारणहार 
अपने मित्र के साथ हर परिस्थिति में खडे रहने वाले 
मेरे साथ हमेशा खडे रहे
कभी-कभी मैं कमजोर पड जाता हूँ 
तब मुझे उत्साहित करें अर्जुन जैसे
कभी-कभी गर्वित हो जाता हूँ 
तब मुझे सही रास्ते पर ले आए 
कभी-कभी मैं संपत्ति चाहता हूँ 
उस समय सुदामा बन कर मुझे धन धान्य से भर दे 
यह सब रूप तो चाहता ही हूँ 
लेकिन वह सखा के रूप में चाहता हूँ 
जो भरी सभा द्रोपदी की लाज बचाने आ गया था
हर परिस्थिति से मुझे बचाइए 
सखा बन कर हमेशा साथ रहें 

Wednesday 6 September 2023

खुबसूरत जिंदगी

जिंदगी बहुत खुबसूरत है
उसका आनंद
उसका एहसास 
हर पल हर क्षण 
ढूंढ लो हर खुशी
चुरा लो वह पल
स्मृति पटल पर अंकित कर लो
जब जिंदगी भाग रही होगी 
तब कुछ क्षण ठहर जाना
झांक लेना पुरानी यादों में 
ठहर कर मुस्करा लेना
वह पल अमूल्य है
बचपन का हो 
जवानी का हो 
बुढापा का हो
सब कहीं न कहीं कुछ न कुछ खास महसूस कराते हैं 
वह रूठना - मनाना 
वह हंसना - खिलखिलाना 
वह झगड़ा- तकरार 
वह खाना - खिलाना 
वह मान - मनौवल 
वह बडों की डांट 
वह बच्चों की किलकारियां 
ऐसे न जाने कितने क्षण
याद कर लो
जी लो उस पल को फिर
जिंदगी भागती तो बहुत है पर कहीं कहीं थोडा तो ठहर जाओ ।

इंडिया ही भारत, भारत ही इंडिया

इंडिया और भारत 
दोनों लगता है अपना
भारत का रहने वाला हूँ भारत के गीत सुनाता हूँ 
ये मेरा इंडिया हाँ मेरा इंडिया 
ये दोनों सुन कर भावविभोर हो जाते हैं 
राजा भरत के नाम पर पडा भारत 
हमको जान से भी प्यारा है
जननी है हमारी
इंडिया नाम भी उतना ही प्यारा
एक हिन्दी और एक अंग्रेजी में 
अपनी भाषा पर सम्मान 
होना भी चाहिए 
अंग्रेजी से हम परहेज नहीं कर सकते
अंग्रेजी तो हर घर में है
जन - जन में है
क्या क्या बदलोगे 
विज्ञान के साथ चलना है 
विश्व पटल पर अपने को स्थापित करना है
तब ऐसी छोटी मानसिकता का कोई मतलब नहीं 
आज हमारे लोग विदेशों में कार्य रत है
हम विदेश और विदेशी भाषा को कैसे छोड़े
भारत हो या इंडिया 
वह जो है वही रहेगा
अमेरिका या चीन नहीं हो जाएंगा
हर भारतीय , इंडियन है
हर इंडियन,  भारतीय है
इंडिया ही भारत 
भारत ही इंडिया 
इस पर तो सब एक मत है
मतभेद कुछ नहीं 

आज ब्रह्मांड के स्वामी का जन्मदिन है

आज मेरे भगवान का जन्मदिन है
आज यशोदा के लाला का जन्मदिन है
आज राधा और गोपियों के कान्हा का जन्मदिन है 
आज सुदामा के मित्र का जन्मदिन है 
आज संदीपन मुनी के शिष्य का जन्मदिन है 
आज गोवर्धन धारी और कालिया मर्दन वाले का जन्मदिन है
आज देवकी  के बेटे का जन्मदिन है
आज कुंती के भतीजे का जन्मदिन है
आज द्रोपदी के सखा का जन्मदिन है 
आज अभिमन्यु के मामा का जन्मदिन है
आज बलराम और सुभद्रा के भाई का जन्मदिन है
आज अर्जुन के सारथी का जन्मदिन है 
आज महाभारत के सुदर्शन चक्र धारी का जन्मदिन है 
आज भगवद्गीता के उपदेशक का जन्मदिन है 
आज संपूर्ण ब्रह्माण्ड के स्वामी का जन्मदिन है 
पृथ्वी का कण-कण उन्हीं से है
सब सहभागी हो
प्रेम और उल्लास से मनाएं 
कहें  
   हाथी , घोड़ा , पालकी 
             जय कन्हैया लाल की 

Tuesday 5 September 2023

Happy Teachers day

धरती पर संवारा है 
गढा है संजोया है
आज उन्हीं लोगों ने विक्रम को चांद पर भेजा है 
धरती से चांद की दूरी तय करने में सहभागी वैज्ञानिक 
गुरू की पाठशाला में तैयार हुए 
नींव ब्लेकबोर्ड से पडी
जा पहुंचे अंधेरे को चीरते हुए गगन पर
योगदान उन गुरूओं का भी है
जिनके कारण धरती से चांद की दूरी मापी 
हर एक गुरू को नमन 

मैं शिक्षक हूँ

मैं भूत , वर्तमान और भविष्य 
तीनों का कारण हूँ 
मैं शिक्षक हूँ 
भूत को सुधारता हूँ 
वर्तमान को गढता हूँ 
भविष्य को निर्माण करता हूँ 

मैं ज्यादा नहीं चाहता
हाँ इतना जरुर चाहता हूँ 
मेरा हर छात्र सफल रहें 
ऊंचाइयों तक पहुँचे
मैं ही वह हूँ 
जो आपकी सफलता देख कर इतराता है
गर्व से कहता है
यह मेरा स्टूडेंट हैं 
हम ही ऐसे हैं जो आपको ऊपर चढते देख जलते नहीं 
न हतोत्साहित करते
बल्कि प्रोत्साहित करते 

हम ही वह हैं 
जहाँ हमें कोई एक नहीं सब प्रिय 
फिर वह चाहे कैसा भी हो
सबको एक ही जैसा ज्ञान 
हमारी नजरों में सब समान
हमारा एक भी छात्र असफल न हो
यही हमारी इच्छा 
क्योंकि तुम्हारी सफलता और असफलता के बीच हम जो हैं 
क्या यही सीखा है  तुमने 
यह ताना सुनने की अपेक्षा 
यह सुनना 
न जाने इनके शिक्षक कैसे होंगे और इनकी पाठशाला 
जिनकी वजह से यह मुकाम हासिल है 
हम ईश्वर नहीं है 
न हम जन्मदाता है
पर उनके भी गुरू तो हम ही हैं 
गुरू बिना ज्ञान कहाँ 
             हमारी संपूर्ण गुरू जाति को नमन

Saturday 2 September 2023

हमारा गाँव

हम गांव को पहचानते हैं 
गांव हमें पहचानता है 
समझ नहीं आता 
जो हम किताबों में पढते हैं 
गाँव वैसा ही है क्या
जो हम सुनते हैं 
गाँव वैसा ही हैं क्या 
भाईचारा और प्रेम की बातें 
संयुक्त परिवार की बातें 
सौंधी रोटी की सुवास
ताजी - ताजी सब्जी 
दूध , दही , घी का भंडार 
द्वार पर आए व्यक्ति का स्वागत- सत्कार 
त्यौहार पर मिलना - जुलना 
यह तो लगता है 
अब किस्से - कहानियों में ही हैं 

हमने जो गाँव देखा है 
आपस में पटीदारो में ईष्या- दुश्मनी 
बात बात में गाली गलौज
लाठी और हथियार निकाल लेना
मांस और मदिरा का जोर
एकल परिवार 
सब्जी उगाने की जहमत नहीं 
पूर्वजों का खेत बेचकर काम करना 
दूध - दही कहाँ से आए 
जब द्वार पर गाय - बैल - भैंस ही नहीं 
सब बंटे हुए हैं 
कोई किसके द्वार नहीं जाता 
घमंड और गर्व में चकनाचूर 
मेहमानों का स्वागत की बात तो दूर कोई खाना बनाने को तैयार नहीं 
खेत परती पडे हैं 
मजदूर मिल नहीं रहे हैं 
खेती करना कोई चाह नहीं रहा है
सरकार से निधि और अनाज मिल रहा है
ब्रांडेड कपडे , मोबाइल और मोटर साईकिल पर सवारी हो रही है
कुछ तो पिता के पेंशन पर जी रहे हैं 
बगीचे खत्म हो रहे हैं 
पेड को काटकर बेचा जा रहा है
जान बूझ कर कर्जा लिया जा रहा है पता है माफ हो जाएंगा कभी न कभी 
शादी - ब्याह भी एक औपचारिकता भर रह गया है
तभी लगता है 
गाँव को हमने जाना ही नहीं 
शायद जिस गाँव को जानते थे सुनते थे
उससे भिन्न यह है  

दिल विशाल रखो

मैं सही दूसरे सब गलत 
यह गलतफहमी है
अपने गिरेबान में झांकना 
मंथन - विचार करना
सही पता चल जाएंगा 
हम ही नहीं दूसरे भी सही हो सकते हैं 
हम भी कभी-कभी गलत हो सकते हैं 
ईश्वर तो है नहीं 
कुछ गलती हो ही नहीं सकती 
हाड - मांस के बने इंसान हैं 
कमजोर मन रहता है 
चंचल वाणी होती है
कहीं न कहीं कुछ गडबड हो ही जाती है
गलतफहमी में नहीं रहना है
सत्य स्वीकार करना है
गलत तुम भी हो सकते हैं 
गलत हम भी हो सकते हैं 
इसमें कोई शर्म और आश्चर्य नहीं 
हो गया सो हो गया 
सब भूल आगे बढो
स्वयं को भी माफ करों 
दूसरों को भी माफ करो
दिल विशाल रखो ।

सोना - जागना

सुबह सुबह चिडियाँ को चहचहाते देखा 
सूरज को निकलते देखा
अंधेरे को प्रस्थान करते देखा
प्रकाश का आगमन देखा
कलियों को खिलते देखा
ओस की बूंदो को झिलमिलाते देखा 
मंदिर की घंटिया बजते देखा 
सबको चलायमान देखा
आलस को छोड़ गतिविधि करते देखा
समझ आ गया
सोते रहना जीवन नहीं है
जागना और भागना 
यही जीवन है 
     जो सोया वह खोया 
     जो जागा वह पाया। 

मेरा डाॅगी

उसकी वजह से मेरा घर गुलजार रहता है
मुझे अकेला पन महसूस नहीं होता
जी भर कर लाड लडाता है
इसकी वजह से मैं सुरक्षित महसूस करता हूँ 
यह अपना तो नहीं पर अपनापन है
यह बोल नहीं सकता
पर जता देता है
इस पर मैं ऑख मूंद कर विश्वास कर सकता हूँ 
यह संकट की घड़ी में डट कर खडा होता है
यह खतरे को दूर से ही सूंघ लेता है
अजनबियों के लिए यह काल होता है
यह मेरे जैसा नहीं है
न हमारे में से कोई है
हमसे अलग है 
तब भी प्यार है 
समझ ही गए होंगे 
यह कौन है 
यह है मेरा डाॅगी 

Friday 1 September 2023

मानव जीव

हर जीव की कुछ न कुछ विशेषता होती है
कुत्ता वफादार 
लोमड़ी चालाक 
शेर खूंखार 
हाथी बलवान 
साॅप जहरीला 
गधा  मेहनती 
गाय सीधी - सादी 
बंदर चंचल 
बिल्ली धूर्त 
घोडा तेज तर्रार 
बाज फुर्तीला 
और भी न जाने कितने 
एक मनुष्य ही ऐसा प्राणी 
जो अपनी सारी विशेषताओं के साथ सुशोभित 
सबसे अलग सबसे बुद्धिमान 
वह चाहे तो क्या नहीं कर सकता 
उपयोग और दुरूपयोग 
सब उसके हाथ में। 

ध्वनी

एकांत प्यारा लगता है 
ध्वनियां सालती है 
अच्छी नहीं लगती
शांत- नीरवता भली है
यही सोचकर बाहर आया 
घर में कोलाहल 
चलो बगिया में 
यहाँ पर भी कहाँ शांति 
चिड़ियों की चहचहाहट 
पेडो की सरसराहट 
लोगों की बकबकाहट 
सब निरंतर जारी है
किसी को कोई फर्क नहीं पडता
सब अपनी धुन में मगन 
कोई बोल रहा है 
कोई चिल्ला रहा है
कोई चल रहा है 
गतिमान है
गतिविधियों में लिप्त है
जीवन है सांस है
तब तक ही ध्वनी का वास है 
सांस भी चलती है
तो वह भी आवाज करती है 
जहाँ ध्वनि नहीं वहाँ कुछ नहीं  ।

खोना - पाना

मैं तो सबका ध्यान रखता गया
किसी को खो न दू , इस बात से डरता रहा 
कोई मेरी बात का बुरा न मान जाएँ 
इस बात का ख्याल रखता रहा
यह करते - करते अपने को भूलता गया
दूसरों की परवाह की , स्वयं को नजरअंदाज करता रहा
सालोसाल बीतता गया
यह सिलसिला चलता रहा
मन को मारता गया
दूसरों की इच्छा के आगे झुकता गया 
वे अपने थे उनको खो न दू 
यही सोचकर सब करता रहा 
इस चक्कर में वे अपने रहे न रहे 
स्वयं को खो दिया मैंने 
यह आना - जाना 
यह खोना - पाना 
क्या इसी के इर्द-गिर्द है जिदंगी 
अपने , अपने न हो सके
हम स्वयं के न हो सके
अब सोचता हूँ 
क्या सही किया
क्या गलत किया
दूसरों की नजरों से खुद को तौला 
अपनी नजर को नजरअंदाज कर दिया 
बहुत कुछ खो दिया ।