Tuesday 31 August 2021

माँ का बेटा

तू मेरा सोना
तू मेरा राजा
तू मेरा हीरा
तू मेरा राजदुलारा
तू मेरे ऑखों का तारा
तू मेरी दुनिया
तेरे  ही इर्द-गिर्द घूमता मेरा जग सारा
मन तो है इतना बेचारा
तुझे देखे बिना यह चैन नहीं  पाता
तुझको देखे बिना तडपे जिया मेरा
तू जान है मेरी
तुझसे ही पहचान मेरी
बस तेरी माँ कहलाऊ
जी भर इतराऊ
गर्व से चलूं
सबसे कहूँ
यह मेरा बेटा है
मैं इसकी माॅ हूँ  ।

कब तक डरते रहेंगे

डरते रहें हम उम्र भर
किसी को नाराज मत करों
किसी को जवाब मत दो
संबंधों को संभाल कर रखो
सहन कर लो कुछ बातें
न जाने कब किसकी जरूरत पड जाएं
हम डरते रहते हैं ताउम्र
किसी अंजानी आपदा के आने के डर से
जबकि सामना हमें ही करना पडता है
कभी-कभी ऐसा महसूस  होता है
क्या फायदा इससे
अगर कोई  हितैषी होगा
तब वह किसी भी वक्त हाजिर होगा
नहीं तो कितना भी यतन करों तब भी
इस डर से हम जीना छोड़ दे
कुढते  रहे लेकिन प्रकट न कर पाएं
यहाँ तो रास्ते चलते हुए भी
व्यंग्य का सामना करना पडता है
फिर डरने से क्या फायदा
कब तक डरते रहें
कब तक लिहाज करते रहें
सामने वाला अगर पत्थर के समान हो
यह व्यक्ति के संदर्भ में
परिवार के संदर्भ में
समाज के संदर्भ में
जाति और धर्म के संबंध में
यहाँ तक कि दो देशों के संबंध में भी
क्यों नहीं आर या पार
ठीक लगें तो ठीक
अन्यथा तुम अपनी राह
हम अपनी राह

Monday 30 August 2021

यह प्यार भरा रिश्ता

क्या विडंबना है
मायके जाओ तब भी
न जाओ तब भी
प्रॉब्लम तो है ही
न जाओ
तो ससुराल के ताने
कोई  इसको पूछता ही नहीं
ऐसे ही मायके में ही रहती होगी
झगड़ा करती होगी
या फिर
एकदम दरिद्र है सब
बेटी की खोज खबर नहीं लेते

जाने पर नया जुमला
जब देखो तब मायके में
डेरा जमाये रहती है
ससुराल में तो पैर ही नहीं टिकता
माँ- बाप चढाते रहते हैं
बेटी का घर बिगाड़ते हैं

मिला तब भी
न मिला तब भी
ताने तो सुनना ही है
गरीबी और अमीरी में तौला जाएंगा
यह प्यार भरा रिश्ता

आंसू क्यों आने देते हो

ऑसू क्यों आने देते हो
सबके सामने क्यों रोते हो
यह दुनिया है
उसे तुम्हारे ऑसू बहुत भाएगे
वह तो चाहेगी
तुम और रोओ
कमजोर पडो
तभी तो वह खुश होगी
उसको सामने सहानुभूति जताने का
पीठ पीछे बुराई का कारण जो मिल जाएंगा
वह खुश हो जाएंगी
अपने ऑसूओ को जाया मत करो
हो सके तो अंदर ही अंदर पी जाओ
नहीं तो अकेले में रो लो
उस ईश्वर के सामने
जिसके पास तुम्हारे ऑसू पोछने की सामर्थ्य है
दुनिया वालों के सामने क्या रोना
उनको बातें बनाने का मौका क्यों देना
ऑसू बहुत कीमती है
इसे किसी भी ऐरे - गैरे के सामने निकालकर जाया मत करों
इसका अपमान मत करों
यह साथी है दुख के पीडा के
इन्हें ऐसे ही मत आने दो
ऑसू क्यों आने देते हो।

Happy Zanmashatmi

आज जन्मदिन है इस विशाल ब्रह्माण्ड के  स्वामी का
यशोदा के लाल का , सुदर्शन चक्रधारी  का
गीता के  ज्ञान दाता का , द्रौपदी के सखा का
वृषभान दुलारी के प्रियतम राधेश्याम का
जम कर और मन से उत्सव मनाइए
आज जन्मोत्सव है कान्हा का ।
                  जय कन्हैया लाल की  ।

ऐसी हो जिदंगी

_*निवांत वाचा. खरोखर छान वाटेल...*_

कुणाच्या सांगण्यावरुन

आपल्या मनात एखाद्या

व्यक्तीबाबत चांगले वा वाईट

मत बनवण्यापेक्षा, आपण

स्वतः चार पावले चालून

समोरासमोर त्या व्यक्तीशी

संवाद साधून मगच खात्री

करा.

नाती जपण्यासाठी
    
संवाद आवश्यक आहे ...

बोलताना शब्दांची उंची

वाढवा आवाजाची उंची

नाही.

कारण..    पडणाऱ्या

पावसामुळे शेती पिकते,

विजांच्या कडकडाटामुळे

नाही..आणि वाहतो तो झरा

असतो आणि थांबतं ते डबकं

असतं..डबक्यावर डास

येतात आणि झऱ्यावर

राजहंस!!  
निवड आपली आहे.."
  
कुणा वाचून कुणाचे काहीच

अडत नाही हे जरी खरे

असले तरी कोण कधी

उपयोगी पडेल हे सांगता येत

नाही.

डोक शांत असेल तर निर्णय

चुकत नाहीत,

अन्...

भाषा गोड असेल तर माणसं

तुटत नाहीत.

अगर ...

एक हारा हुआ इंसान

हारने के बाद भी मुस्करा दे !

तो जितने वाला भी

जीत की खुशी खो देता हैं।

ये है मुस्कान की ताकत ...

जपून टाक पाऊल ...

इथे प्रत्येक वाट आपली नसते

जपून ठेव विश्वास ...

इथे प्रत्येक माणूस आपला

नसतो जपून घे निर्णय .

इथे प्रत्येक पर्याय

आपला नसतो

जे भांडल्यावर आधी क्षमा

मागतात, त्यांची चूक असते

म्हणून नव्हे,तर त्यांना

आपल्या माणसांची पर्वा

असते म्हणून...

जे तुम्हाला मदत करायला

पुढे सरसावतात ते तुमचे

काही देणे लागतात म्हणून

नव्हे, तर ते तुम्हाला आपलं

मानतात म्हणून..!
   
*मोर* नाचताना सुद्धा रडतो...

आणि...

*राजहंस* मरताना सुद्धा

गातो...

दुःखाच्या रात्री झोप

कुणालाच लागत नाही...

आणि

सुखाच्या आनंदात कुणीही

झोपत नाही.

यालाच जीवन म्हणतात.

किती दिवसाचे आयुष्य

असते?

आजचे अस्तित्व उद्या नसते,

मग जगावे ते हसून-खेळून

कारण या जगात उद्या काय

होईल

ते कोणालाच माहित नसते...

म्हणून *आनंदी रहा*...

आयुष्यात कोणत्याही कामाला
                लहान समजू नका...

                           कारण...

          कोणी लोखंडाचं काम करून

                    *' टाटा ' बनला !!*

           कोणी चपलांचं काम करून

                    *' बाटा ' बनला !!*

         कोणी टेलिफोन पुसता पुसता

             *' DSK ' बिल्डर बनला !!*

           कोणी गाड्या पुसता पुसता

                   *'अंबानी ' बनला !!*

         तर कोणी चहा विकता विकता

                 *' PM ' बनला...!!!*

मला ही पोस्ट आवडली म्हणून पाठवली.

Sunday 29 August 2021

अपना घर

घर तो घर होता है
सबसे अजीज होता है
घर में अपने रहते हैं
अपनों के साथ रहते हैं
मन खोल कर रहते हैं
पूरा अधिकार होता है
घर एक मंदिर के समान होता है
मंदिर में भगवान रहते हैं
घर में  वे लोग रहते हैं
जो हमारे लिए कुछ भी कर सकते हैं
वे अपने होते है
बनावट का रिश्ता नहीं होता
वहाँ हम रूठ सकते हैं
नाराज हो सकते हैं
गुस्सा हो सकते हैं
मन की भड़ास निकाल सकते हैं
औपचारिकता से दूर
हमारा असली रूप
फिर भी सबको हमसे प्यार
तभी तो प्यारा और अपना लगता है घर ।

पसंद और नापसंद

पसंद और नापसंद
यह हमें कहाँ याद रहा
बस दूसरों की पसंद का ख्याल रहा
सबको खिलाया तब खाया
सबको नए कपडे लिए पर अपने लिए भूल गए
सबको सुलाकर सबसे बाद में सोया
सबका ख्याल रखा
सबकी जरूरतों  का ध्यान रखा
अपने तन - मन की पीड़ा भूल गए
तब भी बहुत खुश थे
न कोई गिला - शिकवा
बस मेरा परिवार खुशहाल रहें
पीड़ा तो तब होती है
जब अपने कहते हैं
तुमने किया ही क्या है
तुम्हें तो कोई सहूर नहीं है
बात करने का तरीका नहीं है
हमने ही जिसे सिखाया
उसी ने ऑख दिखाया
तब लगता है बुरा
मत करें कोई प्रशंसा
पर मीन मेख तो न निकाले
हमने कोई एहसान नहीं किया
बस अपना कर्म किया
पसंद और नापसंद
यह हमें कहाँ याद रहा।

अब तो रहम कर

अभी तक भटकाव जारी है
तलाश है मंजिल की
वह आती ही नहीं
दूर से दिखती है
पास आते आते गायब हो जाती है
फिर कहीं दूर चली जाती है
हम हसरत से निहारते रहते हैं
वह ठेंगा दिखाती रहती है
मन मसोस कर रह जाते हैं
कब तक पटरी पर आएगी
कब यह भटकाव खत्म होगा
बस बहुत हो चुका जिंदगी
अब तो रहम कर।

Saturday 28 August 2021

न जाने कैसे लोग

कुछ को दर्द देकर भी दर्द नहीं
कुछ बिना दिए भी दर्द में
यह दोनों प्राणी इसी जग के
कोई  दुख देकर सुखी
कोई बिना दुख दिए भी दुखी
यह अपनी अपनी फितरत है
दिल दुखाकर मजा लेना
पता नहीं कैसे
ऐसे लोग खुश रहते हैं
दिल है या पत्थर
पत्थर भी पसीजता है
पर ये तो नहीं

हर किसी का वक्त

सुबह- सुबह कुनकुनी धूप
अच्छा लगता है
उसमें बैठना
धीरे-धीरे वह प्रखर
तब सहना मुश्किल
वह रास नहीं आता
संझा का इंतजार
यह ताप सहन नहीं
संध्या का दिल से स्वागत
यह तपता नहीं है
सुकून देता है
रात्रि का संदेश लेकर आता है

ऐसे ही जीवनयात्रा भी
एक समय हम खिलते हैं
एक समय हम कार्यरत होते हैं
एक समय हम आराम चाहते हैं
अब खिलना भी नहीं है
तपना भी नहीं है
वह सब संह्य नहीं
हर किसी का वक्त
हर किसी की सीमा

शायद पागलपन

वह किशोरावस्था थी
मन करता था
बस देखते रहो
क्यों देखो
यह नहीं समझता था
बस अच्छा लगता था
उसी तरह
जैसे बात बात पर खिलखिलाना
न कोई वजह हो तब भी
प्यार क्या होता है
इसका एहसास तो नहीं
हाँ अच्छा लगना
घंटों देखने के लिए इंतजार करना
छत पर खडी रहना
खिड़की पर खडी रहना
मन ही मन मुस्कराना
पता नहीं क्या था
अक्सर ऐसा होता था
धीरे-धीरे और बडे हुए
किताबों में  रमने लगे
अपना करियर  बनाने की  कोशिश करने लगे
घर से दूर आ गएँ
नये नये लोगों से मिले
पर वह भावना नहीं रही
जैसा तुमसे बिना मिले था
अब वह क्या था
मैं नहीं जानती
लगता है
शायद पागलपन था

कब तक झुके

हर बार झुकी मैं
गलती थी या न थी
फिर भी मान लिया
सब चुपचाप सह लिया
मजाक , तोहमत इत्यादि
मन को कचोटता था
पर चुप रहती थी
अपनों को नाराज करना
जिससे मैं प्यार करती हूँ
उनसे दुराव नहीं चाहती थी
गलती किसी की भी हो
माध्यम हम ही बनें
ऐसा लगा कि
हम ऐसे ही हैं
हमारा वजूद ही ऐसा है
हमें न जाने क्या  क्या  संज्ञा दे दी गई
देखने का दृष्टिकोण बदल गया
अचानक महसूस हुआ
हमेशा हम ही क्यों झुकें
जिनके कारण यह सब कर रहे हैं
वे ही कोई तवज्जों नहीं दे रहें
अपना समझने की बात ही छोड़ दो
बत एहसान का एहसास दिलाया जाता है
अब बस हो चुका
न किसी का एहसान चाहिए
अब अपने अस्तित्व की लाज रखनी है
हम भी बहुत कुछ है
यह बहुतों को समझाना है
नाता तो नहीं तोड़ना है
पर वाजिब का भी ख्याल रखना है
कब तक झुके
रिश्ता संभाले
जिम्मेदारी तो हर किसी की बनती है
हम पास आए
तुम दूर दूर जाओ
यह तो अब नहीं
और कभी नहीं  ।

Friday 27 August 2021

जनगणना जाति के आधार पर

जनगणना जाति के  आधार पर
तब तो जाति-प्रथा कभी खत्म न होगी
कभी अगड़ी जाति के लोग का दबदबा
अब पिछडी कही जाने वाली जातियों का दबदबा
अन्याय तब भी हुआ था
अब भी हो रहा है
एक ही घर में चार- चार सरकारी नौकरी
दूसरे घर में सब बेकार
अच्छा प्रतिशत लाकर
जी तोड़ मेहनत कर
फिर भी एडमीशन नहीं
नैराश्य में  पूरी पीढी
सोच रही है
जो अपराध हमने किया नहीं
उसका दंड हमें क्यों
यह प्रतिशोध है क्या हमारे पूर्वजों के कर्मों का हमसे
हमें इससे कोई मतलब नहीं
हम चपरासी बनने को तैयार
सफाईकर्मी बनने को तैयार
लेकिन वह भी मयस्सर नहीं
हम ओपन कैटिगरी के बच्चे हैं न
गणना क्यों नहीं आर्थिक आधार पर हो
गरीब को पहले रोटी की जरूरत है
जाति की नहीं
प्रतिस्पर्धा हो
योग्यता हो
पक्षपात न हो
हर किसी को मौका मिले
सबका अधिकार समान
तभी तो असली प्रजातंत्र।

Thursday 26 August 2021

करोना रे करोना

करोना रे करोना
अब बस भी करो ना
कब तक जीना मुहाल करेंगा
जीवों पर प्रहार करेंगा
न जाने कितनों की रोजी-रोटी छीनी
न जाने कितनों की जिन्दगी छीनी
न जाने कितनों को अपनों से दूर किया
न जाने कितनी बार इंसानियत की धज्जियां उडाई
लोगों को दूर किया
दोस्ती को तोडा
रिश्तेदारी भी निभाने न दी
अपनों की खोज खबर न लेने दी
पडोसियों से दूर किया
एकदम अकेला कर दिया
सामाजिक प्राणी को स्वार्थी बना दिया
अपने ही लोगों को हाथ लगाने न दिया
अंतिम यात्रा में शामिल न होने दिया
शादी या दूसरे समारोहों में भी
न सुख में न दुख में
व्यक्ति को नितांत अकेला कर दिया
कौन अपना कौन पराया
यह पहचान भले ही करा दिया
पर दूर तो कर ही दिया न
न किसी पर विश्वास
सबको संदेह की दृष्टि से देखने पर मजबूर कर दिया
मुख पर मास्क लगाकर
हाथ में सेनेटाइजर लगाकर
कब तक चलेगा
बस कर
अब जा तू
हाय रे करोना

Wednesday 25 August 2021

दर - दर भटकने वाला भिखारी

तुम छोड़ गए थे
मेरा संसार  उद्धवस्त कर गए थे
तीन बच्चों की माँ  तो बना दिया था
पर न पति बन पाए न पिता
मन तुम्हारा विरक्त हो चुका था
सांसारिक मोह माया से मुक्त  होना चाहते थे
इसलिए योगी बन गए
संन्यासी बन गए
मुझ पर तोहमत लगा
मैं तुम्हें संभाल न पाई
अपने मोहपाश में बांध न पाई
तुम्हारा परिवार हिकारत की नजरों से देखता था
परिवार क्या समाज भी

मैंने भी हार नहीं मानी
कमर कस कर तैयार हो गई
अपने दम पर बच्चों का पालन-पोषण किया
दिन रात मेहनत की
आज अपने पर गर्व होता है
मैं  तुम जैसी भगोडा  नहीं
कर्म छोड़ जोगिया भेष धारण कर लेना
यहाँ वहाँ भीख मांग कर गुजारा करना
इससे ज्यादा कायरपन क्या होगा
नपुंसक थे तुम
अपनी जिम्मेदारी उठाने के काबिल नहीं थे

आज मैं जहाँ खडी हूँ
उस स्थान पर तुम पहुँच ही नहीं सकते
तुम तो भिखारी ही रह गए
कटोरा ले इस घर से उस घर
घर बनाना तुम क्या जानो
बडी तपस्या और त्याग करना पडता है
गृहस्थी की गाड़ी चलाना इतना आसान नहीं

तुम क्या अपने को भगवान बुद्ध समझ बैठे थे
या फिर बाबा तुलसीदास
मैं न यशोधरा थी न रत्नावली
ऑसू बहाना नहीं  था
कर्म से भाग्य बदलना था
मैं तो आज बहुत कुछ हूँ
न तुम भोगी ही बने न योगी ही
दर - दर भटकने वाला भिखारी बन कर रह गए।

कुछ अपने लिए भी

सबकी पसंद का ख्याल रखते रखते
मैं कहीं  खो गई थी
स्वयं को भूल गयी थी
दिल बेचारा मायूस रहता था
क्योंकि मैं  उसकी कभी नहीं सुनती थी
दुखी रहती थी
व्यथित रहती थी
जिसका कि किसी पर असर नहीं
हाँ  सेहत पर जरूर असर
बहुत  तडपाया
बहुत तरसाया
स्वयं को गफलत में  रखा
अपने को महत्वपूर्ण समझ रही थी
आज समझ आया
यह सब कोरी कल्पना थी
तुमको तो कोई दाद भी नहीं देता था
तुम अपने आप मिया मिठ्ठू बनो
तब कोई क्या करें
अब लगता है
कुछ दिन अपने लिए जी लूँ
जो बाकी की जिंदगी है
उसे तनावमुक्त कर दूं
जिंदगी को सुकून दे दूँ
बहुत  शिकायत है उसको मुझसे
कम से कम उसकी शिकायत दूर कर दूं
कुछ उसके लिए
कुछ अपने लिए ही सही जी तो लूं ।

Tuesday 24 August 2021

बस इतना ही

जीवन की संध्या पर
एक साथी का होना जरूरी है
जब तक सांस चलती है
तब तक जरूरत भी चलती है
जब तक आप जवान है
कोई गम नहीं
जब उम्र ढलती है
तब साथ छूटने लगता है
दोस्तों के  , रिश्तेदारों के
यहाँ तक कि अपने बाल - बच्चों के भी
गलती किसी की नहीं
वक्त का तकाजा है
जब हमारा अपना शरीर ही साथ नहीं दे रहा हो
तब दूसरे से अपेक्षा कैसी
बस एक साथी हो
पल - पल का भागीदार हो
सुख दुख साथ काटे
बीमारी  हारी में खडा रहे
बस और कुछ नहीं चाहिए

Monday 23 August 2021

वह बेटी है

भाई की कलाई सूनी न रहें
हर बहन यह चाहती है
बडे मनोयोग से वह भाई को राखी बांधती है
बलैया  लेती है
आरती उतारती है
टीका करती है
तब रक्षा सूत्र बांधती है
न जाने भगवान से कितनी मिन्नते करती है
सलामत रहे उसका भैया
भाई बदले में उपहार देता है
वह उपहार लेने नहीं आती
उसने तो स्वयं ही दिया है
अपना हिस्सा भी कभी नहीं मांगा है
अपना अधिकार भी नहीं जताया है
कोई समझे पैसों के लिए
पैसा से उसको प्रेम को मत तौले कोई
वह द्वार पर आई भिखारन नहीं
उस घर की हिस्सेदार है
न जताया इसका यह मतलब नहीं
समझा न जाए
उसे बोझ माना जाएं
वह इस घर के सुख दुख की भागीदारी है
उसकी माता - पिता के घर में  हिस्सेदारी है
वह समानता और सम्मान दोनों की हकदार है
यह हर भाई को समझना पडेगा
वह बेटी है
पराया धन नहीं
वह भी उतने की हकदार जितना आप
एहसान न जताए
एहसास करें
वह बेटी है
वह बहन है
यह उसका आभार है

अब बुद्ध बन जाना है

आज लगता है
मैं बुद्ध बन जाऊं
सब छोड़कर 
माया मोह से मुक्त होकर
एकांत में रम जाऊँ
भागकर तो जा नहीं सकती
उनकी तरह किसी बोधि वृक्ष के नीचे
आधी रात को
घर में ही रहूँ
पर सबसे निर्लिप्त रहूँ
बहुत हो चुका सब
जिम्मेदारियां निभाते  - निभाते जिंदगी  थक गई
कभी कोई रूठा
कभी कोई क्रोधित हुआ
कभी किसी ने तोहमत लगाई
कभी किसी ने अपमानित किया
सब झेलते रहे
मान मनोवव्वल  करते रहें
तब भी कोई खुश नहीं रहा
कुछ न कुछ कमियां निकालते ही रहें
परिपूर्ण तो कोई  भी नहीं
वे भी नहीं
फिर हममें ही दोष ढूंढने की  आदत पड गई लोगों को
अगर ढूंढने चलोगे खामियां
तो एक क्या हजार नजर आएंगी
हममें भी तुममें भी
अब नहीं करना है यह सब
न कुछ सोचना है
बस बाकी जो जिंदगी बची है
उसमें बुद्ध बन जाना है ।

निकलो इसमें से

रिश्तों  में  प्रेम हो
विश्वास हो
अपनापन हो
तब वह रिश्ता अपना लगता है
अनमनेपन से
जबरदस्ती से
बांधा हुआ मजबूरी में
वह रिश्ता भी कोई रिश्ता होता है
भले उसका कोई भी नाम हो
बस दिखावे के लिए
निभाने के लिए
तब क्या फायदा इनमें बंधे रहने का
मन में  कुछ  हो
अंतर्मन कचोट रहा हो
खुशी महसूस न हो मिलने पर
तब छोड़ दो यार
इसमें से निकल जाओ
तुम्हें  भी सुकून
उन्हें भी सुकून

उठ जाओ

सूर्य किरण छू रही है
तन - मन को ताजगी से भर रही है
पंछी भी चहचहा रहे हैं
कह रहे हैं
सोने वालों अब तो उठ जाओ
यह आलस छोड़ो
कुछ काम करो
कुछ नाम करो
अपनी रोशनी फैलाओ
सोना बहुत हुआ
अब तो जागो प्यारे
जीवन सो कर मत गुजारो

Saturday 21 August 2021

कुछ समय तो जी भर कर जी लो

हम दौड़ते रहे
भागते रहे
बस जिंदगी को पटरी पर लाने के लिए
एक सुख की चाहत के लिए
हमारे पास भी सब कुछ हो
हम साथ-साथ रहें
हंसे खिलखिलाएं
एक अदद घर हो जिसमें सब समाएं
घर तो हो गया
सपने भी पूरे हुए
विडम्बना यह रही
जिसके साथ जिसके लिए सपने देखे थे
वे दूर - दूर हो गए
एक नया आशियाना बसाने के लिए

पीछे मुड़कर देखा
जिंदगी हंस रही है
सवाल कर रही है
व्यंग्य कर रही है
कम से कम मुझे ही जी भर कर जी लिया होता
अपनों को छोड़कर कुछ अपने लिए भी सोच लिया होता
अब तो तुम, तुम न रहे
न वह , वह रहें
न अपनी कदर की
न मेरी कदर की
जब होश आया तब पता चला
मैं भी वैसी नहीं रहीं
न तुम वैसे रहें
अब तो उम्र का तकाजा है
किसी तरह जीना है
हाथ - पैर चलाना है
मैं तो मरते दम तक साथ हूँ
सांस के साथ जुड़ी हूँ
अब भी कुछ सोच लो
बचा हुआ समय तो जी भर जी लो

Friday 20 August 2021

हम किससे कहें

हम नास्तिक नहीं है
आस्तिक है
उस परम पिता पर विश्वास है
श्रद्धा और आस्था है
फिर अगर दुख और पीड़ा हो
तब नाराज किससे हो
यह सही है
कि हम भगवान को कोसते हैं
हमारे साथ ही ऐसा क्यों  ??
हमारा भी तो कर्म है
जिसका फल मिलना है
पर कभी-कभी बिना गलती के भी
तब लगता है
हमारे भाग्य में ही यह सब
भाग्य को दोष
भगवान को दोष
परमपिता हैं  वे
तब किसे कहें
मन की बात

मर्द और औरत

मर्द  और औरत
मर्द सब कुछ सह लेता है
पत्नी की जायज और नाजायज मांग
उसके खर्चे
नाज - नखरे
कटु बातें
पर बेवफाई नहीं सह सकता



औरत सब सह लेती है
बर्दाश्त कर लेती है
पति का गुस्सा
उसका मारना  - पीटना
शराबी तक को भी
उसके घर वालों के तानों को
न जाने उसकी कितनी खामियां नजरअंदाज कर
उसके न बोलने पर
पर सौतन नहीं सह सकती
सौतन की पीड़ा नहीं झेल सकती

मर्द और औरत
दोनों में से कोई भी बेवफाई नहीं बर्दाश्त कर सकता

फूल की मुस्कान

कितना भी कुचला जाएं
कितना भी मसला जाएं
कभी भी तोड़ा जाएं
कली खिलने के पहले ही
तब भी फूल मुस्कराना नहीं छोड़ता
पतझड़ के बाद वसंत आता ही है
यह तो उसकी नियति है
जो हो जैसे भी हो
जब तक जीता
तब तक मुस्कराता
तत्पश्चात कचरे के ढेर में
उसे कोई फर्क नही पड़ता

खाना खाने का मजा

रोटी तो सब खाते हैं
पेट जो भरना है
पेट की भूख सब से बेहाल
अमीर हो या गरीब
जब भूख सताती है न
तब कुछ नहीं  सुझता
पेट में  कुलबुलाहट मचती है
तब स्वाद का भी ध्यान नहीं  रहता
टूट पडते हैं भोजन पर

हाँ  खाना अकेले हो
तब वह मजा नहीं
जहाँ  सबके साथ खाया जाएं
वह दोस्तों के  साथ हो
परिवार के  साथ हो
तब मजा दुगुना
बतियाते और स्वाद लेते

खाना से केवल पेट ही नहीं भरता
मन भी भरता है
जब अपनों का साथ
तब खाना भी लाजवाब

Thursday 19 August 2021

कौन है अपना

दौलत भी मिली
शोहरत भी मिली
फिर भी सुकून न मिला
कोई  अपना न मिला
कहने को तो बहुत है अपने
सबसे घिरे रहते हैं हर वक्त
फिर भी सच्चाई कहीं  नजर नहीं आती
हर चेहरे पर एक मुखौटा
कौन है असली
कौन है नकली
यह पहचानना  बहुत जरूरी

नये सिरे से फिर जी लो

मन की मन में  छुपाया न करो
किसी न किसी से खुल कर बतियाया  करो
मन हल्का हो जाएगा
कुछ  सुकून मिल जाएंगा
कुछ  सलाह मिल जाएंगी
ऑखों के  ऑसू बह जाएंगे
जीने की आस जग जाएंगी
घुट - घुट कर जीना
इससे भली तो पीडा व्यक्त कर देना
कोई तो हमदर्द 
कोई तो साथी
जिसके सामने खोल दो दिल के राज
मरहम लग जाएंगा घावों पर
धीरज के दो बोल
कर जाएंगे दवा का काम
जी भर कर जी लो
अपने से गले मिल लो
हर राज को उजागर कर दो
नये सिरे से फिर जी लो

Friday 13 August 2021

याद करना

याद करना
भूल जाना
दोनों ही अकसर मिल जाते हैं
किसी को याद करते करते भूलना
किसी को भूलते भूलते याद करना
यह गाहे - बगाहे होता रहता है
फिर एक समय ऐसा भी आता है
न याद रहता है कुछ
न भूलने की जरूरत

Wednesday 11 August 2021

शून्य

शून्य का एक अलग ही एहसास
अंकों के साथ जोड़ दो
कीमत बढ जाती है
भावना से जोड दो
तब महत्व कम हो जाता है
वह भावना शून्य है
बिना भावना तो मानव क्या पशु भी नहीं

शून्य  , शून्य  होता है
एक समय पर सब खत्म
बस शून्य ही रह जाता है
अंकों के आगे भी कितना शून्य
सौ , हजार ,लाख ,करोड ,अरब
कभी गिनती खत्म नहीं होती

वह बस अच्छी लगती है

वह चलती है
वह बोलती है
वह मुस्कराती है
मैं  देखता रहता हूँ
स्तब्ध हो जाता हूँ
बोलना चाहता हूँ
कुछ बोल नहीं पाता
मुस्कान भी गायब
शब्द हीन हो जाता हूँ
मन में  भाव भरे
पर भावों का इजहार नहीं कर पाता
बस ऑखों- ऑखों में  बात हो जाती है
वह समझती है या नहीं
यह भी नहीं जानता
वह बस अच्छी लगती है
मन करता है
पास बैठे रहूँ
निहारता रहूँ
जागते - सोते बस उसका ख्याल
सपने में भी वही
मदहोशी छा जाती जब याद उसकी आती है
सामने रहूं तो होश ही खो देता हूँ
दिल के हाथों मजबूर हूँ ।

Sunday 8 August 2021

हाय कैसा मनुष्य

हमने  तो भरोसा किया था तुम पर
तुम तो दगाबाज निकलोगे
यह भी हमने कहाँ जाना था
इतना विश्वास
जितना स्वयं पर भी नहीं किया
उसी से विश्वासघात किया
शर्म नहीं आई
दिल नहीं  कचोटा
तुम तो इंसान थे
पशु भी तुमसे अच्छा होता
कम से कम अपना फर्ज अदा करता
दो रोटी के बदले में  जान दे देता
तुमने तो सब ले लिया
मुझे अकेला छोड़ दिया
मनुष्य कहलाने योग्य नहीं तुम
तुमको देख मनुष्यता भी शरमा जायेंगी