Friday 31 August 2018

दोस्त अब थकने लगे हैं

दोस्त अब थकने लगे हैं
उत्साही चेहरे पर अब थकान झलकने लगी है
अब वह भागमदौड़ नहीं होती
शरीर अब कमजोर हो रहा है
पेट भारी और बढ़ रहा है
पतली कमर जिस पर इतराने थे
वह असीमित मात्रा मे फैल रही है
मेकअप के बाद भी चेहरे पर झुर्रियां दिख रही हैं
बालो में चांदी सी सफेदी झलकती है
पैरों से छलांग लगाने की बात ही छोड दे
घुटने ही जवाब देने लगे हैं
हंसते हुए वह मोती से दांत
अब धीरे धीरे गिरने  लगे हैं
दहाड़ती हुई आवाज़ कमजोरी पडने लगीं है
स्वयं पर निर्भर रहना पसंद था
वहीं आज दूसरों का सहारा लेने की मजबूरी बन गई
नयी तकनीक पल्ले पड़ती नहीं
सब गोल गोल घूमने लगता है
एक  समय हम मे जीते थे
आज किसी का साथ चाहिए
कभी फिल्मों की बातें होती थी
आज जीवन बीमा की बातें होती हैं
कभी हीरो पर ही चर्चा
आज डाँक्टर पर चर्चा
पहले घर भागते थे
आज कदम रूक कर डालते हैं
हर समस्या चुटकी मे हल कर लेते थे
आज चिंता मे घिर जाते हैं
वर्तमान मे जीते थे
अब तो भविष्य ही पता नहीं
खिलखिलाहट समय के साथ धीमी पडी
दोस्ती भी थकने लगी
वक्त भी बदला
दोस्त भी और दोस्ती भी
उम्र ढल रही
आत्मविश्वास कम हो रहा
अब कदम उठाना पड़ा
तो संभालने भी होगे
दोस्त अब थक रहे

Thursday 30 August 2018

क्यों सहे बेटी

ससुराल को मायका समझना
वहाँ के लोगों को प्यार से जीतना
अपनी इच्छानुसार नहीं उनकी इच्छा से काम करना
पति को परमेश्वर मानना
हर बेटी को यही सिखाया जाता
विवाह सात जन्मों का बंधन
उसे निभाना कर्तव्य
चाहे भले ही जिंदगी नर्क बन जाय
बंधन को निभाने जिंदगी बंधक बना ली जाय
उसे मनुष्य न समझा जाय
अधिकारों का हनन हो
पर तब भी पत्नी धर्म निभाया जाय
यह कहाँ का न्याय है
अच्छा है कुछ इस पंरपरा को तोड़ रही है
बाहर निकल रही है
अपने हक की लडाई ,लड रही हैं
स्वतंत्र असतित्व स्थापित कर रही  है
किसी की दासी नहीं
किसी के हाथ का खिलौना नहीं
कठपुतली की तरह इशारों पर नाचती नहीं
अपमान और गुलामी उन्हें गंवारा नहीं
सही कर रही हैं
समाज स्वीकार करें
हमेशा दोषी वह ही नहीं
उसे अपना जीवन जीना है
कोस कर जीवन दूभर न बनाए
सम्मान और प्यार से गले लगाए

कहानी बूढी माई की

ऊं जय श्री राधे कृष्णा ऊं
💝🌹💝🌹💝🌹💝
एक गाँव में एक बूढ़ी माई रहती थी । माई का आगे – पीछे कोई नहीं था इसलिए बूढ़ी माई बिचारी अकेली रहती थी । एक दिन उस गाँव में एक संत आए । बूढ़ी माई ने महात्मा जी का बहुत ही प्रेम पूर्वक आदर सत्कार किया । जब महात्मा जी जाने लगे तो बूढ़ी माई ने कहा – “ महात्मा जी ! आप तो ईश्वर के परम भक्त है । कृपा करके मुझे ऐसा आशीर्वाद दीजिये जिससे मेरा अकेलापन दूर हो जाये । अकेले रह – रह करके उब चुकी हूँ ”

तब उन महात्मा ने मुस्कुराते हुए अपनी झोली में से बाल – गोपाल की एक मूर्ति निकाली और बुढ़िया माई को देते हुए कहा – “ माई ये लो आपका बालक है, इसका अपने बच्चे की तरह प्रेम पूर्वक लालन-पालन करती रहना।

बुढ़िया माई बड़े लाड़-प्यार से ठाकुर जी का लालन-पालन करने लगी।

एक दिन गाँव के कुछ शरारती बच्चों ने देखा कि माई मूर्ती को अपने बच्चे की तरह लाड़ कर रही है । नटखट बच्चो को माई से हंसी – मजाक करने की सूझीl

  उन्होंने माई से कहा - "अरी मैय्या सुन ! आज गाँव में जंगल से एक भेड़िया घुस आया है, जो छोटे बच्चो को उठाकर ले जाता है। और मारकर खा जाता है । तू अपने लाल का ख्याल रखना, कही भेड़िया इसे उठाकर ना ले जाये !

बुढ़िया माई ने अपने बाल-गोपाल को उसी समय कुटिया मे विराजमान किया और स्वयं लाठी (छड़ी) लेकर दरवाजे पर पहरा लगाने के लिए बैठ गयी।

अपने लाल को भेड़िये से बचाने के लिये बुढ़िया माई भूखी -प्यासी दरवाजे पर पहरा देती रही। पहरा देते-देते एक दिन बीता, फिर दुसरा, तीसरा, चौथा और पाँचवा दिन बीत गया।

बुढ़िया माई पाँच दिन और पाँच रात लगातार, बगैर पलके झपकाये -भेड़िये से अपने बाल-गोपाल की रक्षा के लिये पहरा देती रही। उस भोली-भाली मैय्या का यह भाव देखकर, ठाकुर जी का ह्रदय प्रेम से भर गया, अब ठाकुर जी को मैय्या के प्रेम का प्रत्यक्ष रुप से आस्वादन करने की इच्छा हुई ।

भगवान बहुत ही सुंदर रुप धारण कर, वस्त्राभूषणों से सुसज्जित होकर माई के पास आये। ठाकुर जी के पाँव की आहट पाकर माई ड़र गई कि "कही दुष्ट भेड़िया तो नहीं आ गया, मेरे लाल को उठाने !" माई ने लाठी उठाई और भेड़िये को भगाने के लिये उठ खड़ी हूई ।

तब श्यामसुंदर ने कहा – “मैय्या मैं हूँ, मैं तेरा वही बालक हूँ -जिसकी तुम रक्षा करती हो!"

माई ने कहा - "क्या ? चल हट तेरे जैसे बहुत देखे है, तेरे जैसे सैकड़ो अपने लाल पर न्यौछावर कर दूँ, अब ऐसे मत कहियो ! चल भाग जा यहा से ।

ठाकुर जी मैय्या के इस भाव और एकनिष्ठता को देखकर बहुत ज्यादा प्रसन्न हो गये । ठाकुर जी मैय्या से बोले - "अरी मेरी भोली मैय्या, मैं त्रिलोकीनाथ भगवान हूँ, मुझसे जो चाहे वर मांग ले, मैं तेरी भक्ती से प्रसन्न हूँ"

बुढ़िया माई ने कहा - "अच्छा आप भगवान हो, मैं आपको सौ-सौ प्रणाम् करती हूँ ! कृपा कर मुझे यह वरदान दीजिये कि मेरे प्राण-प्यारे लाल को भेड़िया न ले जाय" अब ठाकुर जी और ज्यादा प्रसन्न होते हुए बोले - "तो चल मैय्या मैं तेरे लाल को और तुझे अपने निज धाम लिए चलता हूँ, वहाँ भेड़िये का कोई भय नहीं है।" इस तरह प्रभु बुढ़िया माई को अपने निज धाम ले गये।

भगवान को पाने का सबसे सरल मार्ग है, भगवान को प्रेम करो - निष्काम प्रेम जैसे बुढ़िया माई ने किया....

हमें अपने अन्दर बैठे ईश्वरीय अंश की काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार रूपी भेड़ियों से रक्षा करनी चाहिए ।

*जब हम पूरी तरह से तन्मय होकर अपनी पवित्रता और शांति की रक्षा करते है तो एक न एक दिन ईश्वर हमें दर्शन जरुर देते है
              ।। राधे राधे ।।
🌹जय श्री कृष्ण
         COPY PEST

दर्द का दर्द

दर्द का भी दर्द होता है
किसे बताए किसे न बताए
किससे छुपाए किससे उजागर करे
किस पर विश्वास किस पर अविश्वास
सबके सामने तो दिल खोलकर रो नहीं सकते
हर किसी को अपना दर्द बयां नहीं किया जा सकता
क्या पता दर्द का मजाक बना दिया जाय
दूसरे के दर्द को समझना सबके बस की बात नहीं
हाँ रायता फैलाने वालों की कमी नहीं
बात को बढ़ा चढ़ा कर बताना
यह आदत मे शुमार होता है
चटखारे लेने वालों की भी कमी नहीं
क्या सोचकर बताया
क्या हो गया
पछतावा हो कि मैंने क्यों विश्वास किया
आपकी विवशता और मजबूरी आपकी है
उस दर्द का भागीदार किसी को भी न बनाए
याद रखें
नमक तो हर घर मे होता है
पर मरहम नहीं
दर्द का दर्द यह है कि
मरहम लगाने वाले कम ही है
नमक मिर्च लगाने वाले बहुत
दर्द को भी ऐसे लोगों से संभालना है
दर्द भी हमारा
दवा भी हम ही लगाएंगे
उसे भरे बाजार मे बेचना नहीं
दर्द की कीमत वहीं जाने
जो उससे गुजरा हो
दुखडा सभी से न रोए
दर्द मे भी कुछ बात है
बहुत कुछ सिखा जाता है
अपनों परायों की पहचान करा जाता है
दर्द अपने तक ही सीमित रखें
आज है कल नहीं
जूझते रहे
जिंदगी है तो दर्द भी है

Wednesday 29 August 2018

Beautiful poem by mario de Andrade

Beautiful poem by Mario de Andrade (San Paolo 1893-1945) Poet, novelist, essayist and musicologist.
One of the founders of Brazilian modernism.
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MY SOUL HAS A HAT

I counted my years
& realized that I have
Less time to live by,
Than I have lived so far.

I feel like a child who won a pack of candies: at first he ate them with pleasure
But when he realized that there was little left, he began to taste them intensely.

I have no time for endless meetings
where the statutes, rules, procedures & internal regulations are discussed,
knowing that nothing will be done.

I no longer have the patience
To stand absurd people who,
despite their chronological age,
have not grown up.

My time is too short:
I want the essence,
my spirit is in a hurry.
I do not have much candy
In the package anymore.

I want to live next to humans,
very realistic people who know
How to laugh at their mistakes,
Who are not inflated by their own triumphs
& who take responsibility for their actions.
In this way, human dignity is defended
and we live in truth and honesty.

It is the essentials that make life useful.
I want to surround myself with people
who know how to touch the hearts of those whom hard strokes of life
have learned to grow with sweet touches of the soul.

Yes, I'm in a hurry.
I'm in a hurry to live with the intensity that only maturity can give.
I do not intend to waste any of the remaining desserts.

I am sure they will be exquisite,
much more than those eaten so far.
My goal is to reach the end satisfied
and at peace with my loved ones and my conscience.

We have two lives
& the second begins when you realize you only have one.

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Send it to all your friends aged 40 and over

(It is forbidden to keep it) COPY PEST

केरल की विपदा

केरल मे बाढ़ की विनाश लीला
सब कुछ खत्म
ध्वस्त हो गया सब कुछ
न जाने कितनी जिंदगियां खत्म हो गई
बचे हैं उनकी हालत बदतर
भविष्य अंधकार मय दिखाई दे रहा
सब जोड़ा बाढ़ की भेंट चढ़ गया
घर द्वार सब खत्म
सडक पर आ गए हैं लोग
सहायता की अपील की जा रही
लोग कर भी रहे
विदेश भी आगे आया है मदद के लिए
ऐसे मे नाना पाटेकर का यह कहना सही है
मंदिरों मे जमा धन मददगार हो
बालीवुड कलाकारों ने भी मदद की है
पर इस विपदा की घडी मे उनकी बात सही है
धन विपदा के समय के लिए होता है
वैसे भी ईश्वर को पैसे रूपये ,धन -संपत्ति की क्या जरुरत.

जिंदगी की यात्रा

हम बस मे रेल मे सडक पर
यात्रा करते ही हैं
इस यात्रा मे अनगिनत सहयात्री मिलते ही है
कभी प्रेम तो कभी नोकझोंक
कभी कभार तो भयंकर वादविवाद
यह भी सबको पता होता है
यह कुछ मिनट या कुछ घंटों का.सफर हैं
फिर वह कहाँ और हम कहाँ
फिर मिले भी या.नहीं
यही तो जिंदगी का भी फलसफा है दोस्तों
पता नहीं कितनी जिंदगी मिली है
सब सवार है
पर उतरना कहाँ है
यह पता नहीं
कब तक चलेगी
बरसों या कुछ पल
इसमें वह देर नहीं करती
न बताती है
क्षण का पता नहीं
और हम न जाने क्या क्या कर डालते हैं
जब आए हैं तो
जितनी भी मिली
जो भी मिली
जैसी भी मिली
खुशी खुशी जी लिया जाय
कल हो या न हो

STORY

*SO SHORT FELT WORTH SHARING*

A young lady sat in a bus. At the next stop a loud and grumpy old lady came and sat by her. She squeezed into the seat and bumped her with her numerous bags.

The person sitting on the other side of the young lady got upset, asked her why she did not speak up and say something.

The young lady responded with a smile:

"It is not necessary to be rude or argue over something so insignificant, the journey together is so short. I get off at the next stop."

This response deserves to be written in bold letters:

*"It is not necessary to argue over something so insignificant, our journey together is so short"*

If each one of us realizes that our time here is so short; that to darken it with quarrels, futile arguments, not forgiving others, discontentment and a fault finding attitude would be a waste of time and energy.

Did someone break your heart? *Be calm, the journey is so short.*

Did someone provoke or intimidate you? *Be calm, forgive; the journey is so short.*

Did someone betray, bully, cheat or humiliate you? *Be calm, forgive; the journey is so short.*

Whatever troubles anyone brings us, let us remember that *our journey together is so short.*

No one knows the duration of this journey. No one knows when their stop will come. *Our journey together is so short.*

Let us cherish friends and family. Let us be respectful, kind and forgiving to each other. Let us be filled with gratitude and gladness.

If I have ever hurt you, I ask for your forgiveness. If you have ever hurt me, you already have my forgiveness.

After all, *Our Journey Together is so Short!* God bless you

I pray we all have a safe journey!
Praise the Lord. Have a fantastic week

God bless.   COPY PEST

Friday 24 August 2018

धरती और आसमान

थरती और आसमान का मिलन
आसमान को नीचे आने का अहसास
धरती को कराना. है
झुक आया आसमान
तभी तो यह छटा दिख रही लाजवाब
बादल उमड़ -घूमड़ कर गवाही दे रहे
वृक्ष भी झुक कर प्रणाम कर रहे इस मिलन को
मखमली चादर बिछ रही
हरियाली लहरा रही
फसलों में
अन्न उपजा रही है धरती सीना चीर
शुभ्र मोती लपेट नीला आसमान
निहार रहा
यह अनोखी अदा प्रकृति की
सबकी मनभावन
क्षितिज पर ही सही
मिल तो रहे हैं
साथ रहने का अहसास तो करा रहे
अकेले तो इतनी शोभा नहीं
जो साथ रहने के अहसास का है
माता है धरती
पिता है आसमान
और इनका साथ कौन नहीं चाहेगा
एक छत्रछाया बन खड़ा
दूसरी आधार दे रही
मजबूती से खडा कर रही
यह दोनों आश्वासन दे रहे
हम जब तक साथ है
आप सही सलमान है
निश्चिंत रहे
जीवन जी भर जीए

Wednesday 22 August 2018

ईद मुबारक. Happy Eid

ईद मुबारक सभी देश वासियों को
ईद आया खुशी लेकर
सबके चेहरे पर चांद सा.नूर हो
हंसी में.तारों सी खिलखिलाहट हो
हर दिल.मे प्रेम और भाईचारा हो
सबके लिए दिल.से.दुआ निकले
स्वयं खुश रहे
दूसरे भी खुश रहे
यही अल्ला से प्रार्थना करें
अमन और शांति का संदेश दे
हर भेदभाव को भूलकर
आज के दिन ईद मुबारक करें
    Happy Eid

Tuesday 21 August 2018

भाई बहन संबंध सबसे प्यारा

भाईबहन का प्यार माप ले कोई
यह तो संभव नहीं
एक ही जननी और जनक
यह बहुत सौभाग्य से मिलता
समय बदल जाता है
उम्र बढ़ जाती है
परिवार की जिम्मेदारी आ जाती है
स्वयं की औलाद हो जाती है
बच्चे बडे हो जाते हैं
सब अपनी गृहस्थी मे रम जाते हैं
भाई -बहन फिर भी वही रहते हैं
बस मौका मिले
लडने लगेंगे
बचपन साकार हो उठता है
घनिष्ठ प्यार जिसकी कोई नहीं मिसाल
बिना कहे ही एक दूसरे का दर्द समझ आ जाय
भाभो कैसी भी हो वह अपना खून नहीं है
जीजा कैसा भी हो पर वह अपना नहीं है
इनका प्यार रिस्ते दारी पर टिका होता है
पर भाई बहन का प्यार मन से होता है
यहाँ निभाना नहीं
स्वयं के दर्द को संभालना है
रक्षा बंधन तो एक दिन आता है
पर शायद यह पता है
यह जन्म से आया संबंध है
यह अटूट है
भाई भाई ही है
बहन बहन ही है
ऐसा निस्वार्थ प्यार हमें अपने बच्चों से भी नहीं मिलेगा
माता और पिता के बाद
अगला सबसे प्यारा संबंध
भाई बहन का ही होता है

Sunday 19 August 2018

महाकाल का उज्जैन. मे विराजमान होना

हउज्जयिनी नगरी में महान शिवभक्त तथा जितेन्द्रिय चन्द्रसेन नामक एक राजा थे। उन्होंने शास्त्रों का गम्भीर अध्ययन कर उनके रहस्यों का ज्ञान प्राप्त किया था। उनके सदाचरण से प्रभावित होकर शिवजी के पार्षदों (गणों) में अग्रणी (मुख्य) मणिभद्र जी राजा चन्द्रसेन के मित्र बन गये।

मणिभद्र जी ने एक बार राजा पर अतिशय प्रसन्न होकर राजा चन्द्रसेन को चिन्तामणि नामक एक महामणि प्रदान की। वह महामणि कौस्तुभ मणि और सूर्य के समान देदीप्यमान (चमकदार) थी। वह महा मणि देखने, सुनने तथा ध्यान करने पर भी, वह मनुष्यों को निश्चित ही मंगल प्रदान करती थी।

राजा चनद्रसेन के गले में अमूल्य चिन्तामणि शोभा पा रही है, यह जानकार सभी राजाओं में उस मणि के प्रति लोभ बढ़ गया। चिन्तामणि के लोभ से सभी राजा क्षुभित होने लगे। उन राजाओं ने अपनी चतुरंगिणी सेना तैयार की और उस चिन्तामणि के लोभ में वहाँ आ धमके। चन्द्रसेन के विरुद्ध वे सभी राजा एक साथ मिलकर एकत्रित हुए थे और उनके साथ भारी सैन्यबल भी था। उन सभी राजाओं ने आपस में परामर्श करके रणनीति तैयार की और राजा चन्द्रसेन पर आक्रमण कर दिया। सैनिकों सहित उन राजाओं ने चारों ओर से उज्जयिनी के चारों द्वारों को घेर लिया। अपनी पुरी को चारों ओर से सैनिकों द्वारा घिरी हुई देखकर राजा चन्द्रसेन महाकालेश्वर भगवान शिव की शरण में पहुँच गये। वे निश्छल मन से दृढ़ निश्चय के सथ उपवास-व्रत लेकर भगवान महाकाल की आराधना में जुट गये।

उन दिनों उज्जयिनी में एक विधवा ग्वालिन रहती थी, जिसको इकलौता पुत्र था। वह इस नगरी में बहुत दिनों से रहती थी। वह अपने उस पाँच वर्ष के बालक को लेकर महाकालेश्वर का दर्शन करने हेतु गई। उस बालाक ने देखा कि राजा चन्द्रसेन वहाँ बड़ी श्रद्धाभक्ति से महाकाल की पूजा कर रहे हैं। राजा के शिव पूजन का महोत्सव उसे बहुत ही आश्चर्यमय लगा। उसने पूजन को निहारते हुए भक्ति भावपूर्वक महाकाल को प्रणाम किया और अपने निवास स्थान पर लौट गयी। उस ग्वालिन माता के साथ उसके बालक ने भी महाकाल की पूजा का कौतूहलपूर्वक अवलोकन किया था। इसलिए घर वापस आकर उसने भी शिव जी का पूजन करने का विचार किया। वह एक सुन्दर-सा पत्थर ढूँढ़कर लाया और अपने निवास से कुछ ही दूरी पर किसी अन्य के निवास के पास एकान्त में रख दिया।

उसने अपने मन में निश्चय करके उस पत्थर को ही शिवलिंग मान लिया। वह शुद्ध मन से भक्ति भावपूर्वक मानसिक रूप से गन्ध, धूप, दीप, नैवेद्य और अलंकार आदि जुटाकर, उनसे उस शिवलिंग की पूजा की। वह सुन्दर-सुन्दर पत्तों तथा फूलों को बार-बार पूजन के बाद उस बालक ने बार-बार भगवान के चरणों में मस्तक लगाया। बालक का चित्त भगवान के चरणों में आसक्त था और वह विह्वल होकर उनको दण्डवत कर रहा था। उसी समय ग्वालिन ने भोजन के लिए अपने पुत्र को प्रेम से बुलाया। उधर उस बालक का मन शिव जी की पूजा में रमा हुआ था, जिसके कारण वह बाहर से बेसुध था। माता द्वारा बार-बार बुलाने पर भी बालक को भोजन करने की इच्छा नहीं हुई और वह भोजन करने नहीं गया तब उसकी माँ स्वयं उठकर वहाँ आ गयी।

माँ ने देखा कि उसका बालक एक पत्थर के सामने आँखें बन्द करके बैठा है। वह उसका हाथ पकड़कर बार-बार खींचने लगी पर इस पर भी वह बालक वहाँ से नहीं उठा, जिससे उसकी माँ को क्रोध आया और उसने उसे ख़ूब पीटा। इस प्रकार खींचने और मारने-पीटने पर भी जब वह बालक वहाँ से नहीं हटा, तो माँ ने उस पत्थर को उठाकर दूर फेंक दिया। बालक द्वारा उस शिवलिंग पर चढ़ाई गई सामग्री को भी उसने नष्ट कर दिया। शिव जी का अनादर देखकर बालक ‘हाय-हाय’ करके रो पड़ा। क्रोध में आगबबूला हुई वह ग्वालिन अपने बेटे को डाँट-फटकार कर पुनः अपने घर में चली गई। जब उस बालक ने देखा कि भगवान शिव जी की पूजा को उसकी माता ने नष्ट कर दिया, तब वह बिलख-बिलख कर रोने लगा। देव! देव! महादेव! ऐसा पुकारता हुआ वह सहसा बेहोश होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा। उसकी आँखों से आँसुओं की झड़ी लग गई। कुछ देर बाद जब उसे चेतना आयी, तो उसने अपनी बन्द आँखें खोल दीं।

उस बालक ने आँखें खोलने के बाद जो दृश्य देखा, उससे वह आश्चर्य में पड़ गया। भगवान शिव की कृपा से उस स्थान पर महाकाल का दिव्य मन्दिर खड़ा हो गया था। मणियों के चमकीले खम्बे उस मन्दिर की शोभा बढा रहे थे। वहाँ के भूतल पर स्फटिक मणि जड़ दी गयी थी। तपाये गये दमकते हुए स्वर्ण-शिखर उस शिवालय को सुशोभित कर रहे थे। उस मन्दिर के विशाल द्वार, मुख्य द्वार तथा उनके कपाट सुवर्ण निर्मित थे। उस मन्दिर के सामने नीलमणि तथा हीरे जड़े बहुत से चबूतरे बने थे। उस भव्य शिवालय के भीतर मध्य भाग में (गर्भगृह) करुणावरुणालय, भूतभावन, भोलानाथ भगवान शिव का रत्नमय लिंग प्रतिष्ठित हुआ था।

ग्वालिन के उस बालक ने शिवलिंग को बड़े ध्यानपूर्वक देखा उसके द्वारा चढ़ाई गई सभी पूजन-सामग्री उस शिवलिंग पर सुसज्जित पड़ी हुई थी। उस शिवलिंग को तथा उसपर उसके ही द्वारा चढ़ाई पूजन-सामग्री को देखते-देखते वह बालक उठ खड़ा हुआ। उसे मन ही मन आश्चर्य तो बहुत हुआ, किन्तु वह परमान्द सागर में गोते लगाने लगा। उसके बाद तो उसने शिव जी की ढेर-सारी स्तुतियाँ कीं और बार-बार अपने मस्तक को उनके चरणों में लगाया। उसके बाद जब शाम हो गयी, तो सूर्यास्त होने पर वह बालक शिवालय से निकल कर बाहर आया और अपने निवास स्थल को देखने लगा। उसका निवास देवताओं के राजा इन्द्र के समान शोभा पा रहा था। वहाँ सब कुछ शीघ्र ही सुवर्णमय हो गया था, जिससे वहाँ की विचित्र शोभा हो गई थी। परम उज्ज्वल वैभव से सर्वत्र प्रकाश हो रहा था। वह बालक सब प्रकार की शोभाओं से सम्पन्न उस घर के भीतर प्रविष्ट हुआ। उसने देखा कि उसकी माता एक मनोहर पलंग पर सो रही हैं। उसके अंगों में बहुमूल्य रत्नों के अलंकार शोभा पा रहे हैं। आश्चर्य और प्रेम में विह्वल उस बालक ने अपनी माता को बड़े ज़ोर से उठाया। उसकी माता भी भगवान शिव की कृपा प्राप्त कर चुकी थी। जब उस ग्वालिन ने उठकर देखा, तो उसे सब कुछ अपूर्व 'विलक्षण' सा देखने को मिला। उसके आनन्द का ठिकाना न रहा। उसने भावविभोर होकर अपने पुत्र को छाती से लगा लिया। अपने बेटे से शिव के कृपा प्रसाद का सम्पूर्ण वर्णन सुनकर उस ग्वालिन ने राजा चन्द्रसेन को सूचित किया। निरन्तर भगवान शिव के भजन-पूजन में लगे रहने वाले राजा चन्द्रसेन अपना नित्य-नियम पूरा कर रात्रि के समय पहुँचे। उन्होंने भगवान शंकर को सन्तुष्ट करने वाले ग्वालिन के पुत्र का वह प्रभाव देखा। उज्जयिनि को चारों ओर से घेर कर युद्ध के लिए खड़े उन राजाओं ने भी गुप्तचरों के मुख से प्रात:काल उस अद्भुत वृत्तान्त को सुना। इस विलक्षण घटना को सुनकर सभी नरेश आश्चर्यचकित हो उठे। उन राजाओं ने आपस में मिलकर पुन: विचार-विमर्श किया। परस्पर बातचीत में उन्होंने कहा कि राजा चन्द्रसेन महान शिव भक्त है, इसलिए इन पर विजय प्राप्त करना अत्यन्त कठिन है। ये सभी प्रकार से निर्भय होकर महाकाल की नगरी उज्जयिनी का पालन-पोषण करते हैं। जब इस नगरी का एक छोटा बालक भी ऐसा शिवभक्त है, तो राजा चन्द्रसेन का महान शिवभक्त होना स्वाभाविक ही है। ऐसे राजा के साथ विरोध करने पर निशचय ही भगवान शिव क्रोधित हो जाएँगे। शिव के क्रोध करने पर तो हम सभी नष्ट ही हो जाएँगे। इसलिए हमें इस नरेश से दुश्मनी न करके मेल-मिलाप ही कर लेना चाहिए, जिससे भगवान महेश्वर की कृपा हमें भी प्राप्त होगी।

युद्ध के लिए उज्जयिनी को घेरे उन राजाओं का मन भगवान शिव के प्रभाव से निर्मल हो गया और शुद्ध हृदय से सभी ने हथियार डाल दिये। उनके मन से राजा चन्द्रसेन के प्रति बैर भाव निकल गया और उन्होंने महाकालेश्वर पूजन किया। उसी समय परम तेजस्वी श्री हनुमान वहाँ प्रकट हो गये। उन्होंने गोप-बालक को अपने हृदय से लगाया और राजाओं की ओर देखते हुए कहा- ‘राजाओं! तुम सब लोग तथा अन्य देहधारीगण भी ध्यानपूर्वक हमारी बातें सुनें। मैं जो बात कहूँगा उससे तुम सब लोगों का कल्याण होगा। उन्होंने बताया कि ‘शरीरधारियों के लिए भगवान शिव से बढ़कर अन्य कोई गति नहीं है अर्थात महेश्वर की कृपा-प्राप्ति ही मोक्ष का सबसे उत्तम साधन है। यह परम सौभाग्य का विषय है कि इस गोप कुमार ने शिवलिंग का दर्शन किया और उससे प्रेरणा लेकर स्वयं शिव की पूजा में प्रवृत्त हुआ। यह बालक किसी भी प्रकार का लौकिक अथवा वैदिक मन्त्र नहीं जानता है, किन्तु इसने बिना मन्त्र का प्रयोग किये ही अपनी भक्ति निष्ठा के द्वारा भगवान शिव की आराधना की और उन्हें प्राप्त कर लिया। यह बालक अब गोप वंश की कीर्ति को बढ़ाने वाला तथा उत्तम शिवभक्त हो गया है। भगवान शिव की कृपा से यह इस लोक के सम्पूर्ण भोगों का उपभोग करेगा और अन्त में मोक्ष को प्राप्त कर लेगा। इसी बालक के कुल में इससे आठवीं पीढ़ी में महायशस्वी नन्द उत्पन्न होंगे और उनके यहाँ ही साक्षात नारायण का प्रादुर्भाव होगा। वे भगवान नारायण ही नन्द के पुत्र के रूप में प्रकट होकर श्रीकृष्ण के नाम से जगत में विख्यात होंगे। यह गोप बालक भी, जिस पर कि भगवान शिव की कृपा हुई है, ‘श्रीकर’ गोप के नाम से विशेष प्रसिद्धि प्राप्त करेगा।

शिव के ही प्रतिनिधि वानरराज हनुमान जी ने समस्त राजाओं सहित राजा चन्द्रसेन को अपनी कृपादृष्टि से देखा। उसके बाद अतीव प्रसन्नता के साथ उन्होंने गोप बालक श्रीकर को शिव जी की उपासना के सम्बन्ध में बताया।

पूजा-अर्चना की जो विधि और आचार-व्यवहार भगवान शंकर को विशेष प्रिय है, उसे भी श्री हनुमान जी ने विस्तार से बताया। अपना कार्य पूरा करने के बाद वे समस्त भूपालों तथा राजा चन्द्रसेन से और गोप बालक श्रीकर से विदा लेकर वहीं पर तत्काल अर्न्तधान हो गये। राजा चन्द्रसेन की आज्ञा प्राप्त कर सभी नरेश भी अपनी राजधानियों को वापस हो गये।

कहा जाता है भगवान महाकाल तब ही से उज्जयिनी में स्वयं विराजमान है। हमारे प्राचीन ग्रंथों में महाकाल की असीम महिमा का वर्णन मिलता है। महाकाल साक्षात राजाधिराज देवता माने गए हैं।
COPY PEST

आड़वानी जी की अटल को बिदाई

जाने वाला चला जाता है
बस रह जाती है यादें
जिस शख्स के साथ जिंदगी जी हो
उतार चढ़ाव देखा हो
दोस्ती देखी हो
अपनत्व और प्यार मिला हो
नोक झोक हुआ हो
साथ साथ चले हो
हर पड़ाव पार की हो
जीवन का हर रंग देखा हो
हंसना और खिलखिलाना
खाना और पीना
कर्तव्य पथ पर भी एक साथ
चलते हुए कोई आगे
कोई पीछे रह गया
तब भी साथ नहीं छूटा
वह अब लौट कर न आएगा
दिल मे घबराहट
मन भी भारी
पत्थर दिल बन बिदाई की
अब तो शेष बचे आँखों मे आँसू
यह यू ही नहीं बह रहे
कोई अजीज आज गया है
सारे संबंध तोड कर
सारे बंधन से मुक्त हो
अपनी राह चला
पूछा भी नहीं मुडकर
अब फिर कब और कहाँ मिलेंगे ?
आँसू थमने का नाम नहीं ले रहे
और वह है कि फिर उठ नहीं पा रहे
भारी मन से जा रहा हूँ
अब तो अकेला
तुम भी तो छोड़ चल दिए