Friday 31 July 2020

सफेद लिबास में फरिश्ते

वह सफेद कुछ अजीब सा लिबास
न चेहरा दिख रहा था न और कुछ
बस एक कवच के पीछे दो झांकती ऑखे
ऊपर से नीचे तक
यहाँ तक कि पैरों में भी प्लास्टिक का
ऐसा रूप पहले तो नहीं कभी देखा
फिल्मो में भूतों का अजीब सा लिबास सफेद
उसी से मिलता जुलता
पर ये सब इंसान हैं

सबके सब एक जैसे
कौन डाॅक्टर
कौन नर्स
कौन वार्ड ब्वाय
कौन सफाई कर्मचारी
सब एक ही लिबास में
आते और अपना काम कर जातें

पहचानना मुश्किल
बस आवाज सुनाई देती
चेहरे पर तो प्लास्टिक का आवरण
डाॅक्टर आते राउंड पर
नर्स न जाने कितनी बार आती
कभी सलाइन
कभी इंजेक्शन
कभी बी पी और शुगर नापने
रूम सफाई वाले
खाना देने वाले
सब काम पर लगे हुए

अच्छा हो जाएंगे
घर भी वापस जाएंगे
सुनकर सांत्वना मिलती
सफेद लिबास में जैसे फरिश्ते
ईश्वर तो नीचे नहीं आ सकते
तो मानों जैसे इनको भेज दिया हो
जब पास आने की मनाही हो
तब यह अपनी जान की परवाह किए बिना
तैनात है लोगों की जान बचाने में

जितना इनका आभार माने
वह कम है
आज हम घर पर हैं
अपनों के बीच
इनके प्रयत्नो के कारण
ईश्वर नहीं पर
ईश्वर के दूत अवश्य हैं
तभी दिन रात एक कर
मानवता की सेवा कर रहे हैं
अपना कर्तव्य निभाए जा रहे हैं

प्यार है तो जताना भी है

अपने तो अपने ही होते हैं
लडेंगे - झगड़ेगे
पर मुसीबत में दौड़ कर आएंगे
उनको फिक्र रहती है हमारी
दूसरे तो दूसरे ही होते हैं
वह दिखाते है अपनापन
होते हैं बेगाने
खुशी के भागीदार हैं वे
दिखावे की मुस्कान
मुश्किल घडी में पल्ला झाड़ लेंगे
सहानुभूति जरूर दिखा देंगे
फिर चार लोगों में बैठकर वही चर्चा करेंगे
कुछ दिनों तक वही विषय होगा
हम अपनों की छोटी छोटी बातों का बुरा मान जाते हैं
दूसरों की बनावटी बातें हमें अच्छी लगती है
हमारे दिल को सुकून मिलता है
देखो कितने प्रेम से बात कर रहे हैं
दूसरी तरफ घर वाले
हमेशा मेन मीख निकालते रहते हैं
कोई तो हो मीन मेख निकालने वाला
चापलूसी तो हर कोई कर लेगा
फिक्र तो अपनों को ही होती है
साथ वही खडे रहते हैं
जग साथ न दे
पर अपने साथ रहते हैं
अपनों को संभाल कर रखिये
बहुत भाग्यशाली हैं वे
जिनका कोई अपना है
दुख दर्द बांटने वाला है
मुसीबत में खडा रहने वाला है
आपको देख जिसका चेहरा सुकून से भर जाता है
होठों पर मुस्कान आ जाती है
वह भगवान से अपने लिए नहीं
आपके लिए मांगता है दुआ
उसकी बातों से नाराजगी कैसी
बात तो बात है
वह तो आई गई है
उसको क्या दिल से लगाना
अपनों को दिल से लगाइए
प्यार तो है
उनकी चिंता भी है
फिर दिखाना भी तो जरूरी है
विज्ञापन का जमाना है
प्यार को भी जताइए
महसूस कराइए
हर वह शख्स जो आपका अपना है

Monday 6 July 2020

विभिषण और कर्ण

विभिषण ने सत्य का साथ दिया
भगवान राम के अनन्य भक्त
लंका में वही एक श्री राम भक्त
अपने भाई को छोड़ राम की शरण ली
रावण की मृत्यु का राज भी बताया प्रभु को
उनको फलस्वरूप रावण की मृत्यु के बाद ल॔का का साम्राज्य मिला
मंदोदरी से ब्याह हुआ
सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने वाले
तब भी उनका नाम आदर से नहीं लिया जाता
यह तो विभिषण है इससे बचकर रहना
           या घर का भेदी लंका ढाए
यह रामायण युग था

अब चले महाभारत की तरफ
कर्ण को पता चल चुका था
वे राधेय नहीं कौन्तेय है
माता कुंती के ज्येष्ठ पुत्र
पांडवो के ज्येष्ठ भ्राता
धर्मराज युधिष्ठिर सारा राज-पाट उनके कदमों में डाल देते
वासुदेव के कहने पर भी उन्होंने इस तरफ आना उचित नहीं समझा
यह जानते हुए भी कि
दुर्योधन अधर्मी है तब भी साथ निभाया
अपने मित्र धर्म पर डिगे रहे
आज एक आदर की दृष्टि से कर्ण को देखा जाता है

सत्य और धर्म  की राह पर दोनों चलें
एक दोस्त जैसा भी था उसकी निष्ठा का मान रखा
अगर दुर्योधन को छोड़ देते तब भी कुछ नहीं बिगड़ता

दूसरा भाई था वे उसके राजदार थे फिर भी धोखा दिया
भाई थे शायद इसलिए रावण ने छोड़ दिया था
दूसरा होता तो दशानन सर ही काट डालते

एक रक्त का नाता
दूसरा मित्रता का नाता

निभाने में फर्क तभी तो देखने के नजरिये में भी फर्क

Sunday 5 July 2020

वह तो आपका गुरु ही है

शिष्य और गुरु का नाता
नहीं कुछ इनके जैसा
डांट है फटकार है
फिर भी प्यार है
कडा अनुशासन है
फिर भी सम्मान है
नहीं है खून का रिश्ता
न कोई रिश्तेदारी
फिर भी अभिन्न है
पता है छोड़कर जाना है
फिर भी संबंध अटूट है
सब याद भूल जाते
पर बचपन कभी नहीं
उसमें गुरु जो रहता
वह पास नहीं
पर उसकी शिक्षा
चलती साथ साथ है
उन्नति के पथ पर चलते देख सब ईर्ष्यालु
पर गुरु ही है जिसका सीना गर्व से चौडा
शिष्य की सफलता
उसकी सफलता
वह तो गुरु है
जहाँ है वहीं रहेगा
पर चाहता
उसका शिष्य अपार सफलता हासिल करें
माता-पिता के बाद अगर कोई है
जो आपको ऊपर उठता देख इतराए
गर्व से कहें
यह मेरा स्टूडेंट है
आप कितने भी बडे हो जाओ
पर एक व्यक्ति हैं
जिसके सामने आप हमेशा छोटे हो
आपके सामने सब झुके
पर आप उसके सामने झुके
वह तो आपका गुरु ही है

Happy Guru Purnima

गुरु का स्थान
हमेशा से ऊंचा
गुरु हमेशा सम्मान का पात्र
जीवन में अनगिनत गुरु
एक ही गुरु नहीं
हम सोचे तो
हर पल हम कुछ न कुछ सीखते ही है
उस समय शायद ध्यान न दे
पर उस अंजान की सीख ताउम्र
हर उस शख्स को मन से प्रणाम
वह व्यक्ति हो
पेड पौधे हो
पशु पक्षी हो
नदी तालाब हो
धरती आसमान हो
सजीव निर्जीव हो
सब हमें कहीं न कहीं किसी रूप में सिखाते हैं
माँ के गर्भ से बाहर निकलते ही सीखना शुरू
जो ताउम्र चलता है
सीखना ही जिंदगी है
और गुरु की उसमें अहम् भूमिका
हर उस गुरु को नमन
जिनसे हमने समय समय-समय पर सीखा
Happy  Guru Purnima

सूनी सूनी गलियां

वह जिस्म बेचती थी
तन की भूख नहीं
पेट की भूख मिटाने वास्ते
बच्चों का पालन-पोषण करने वास्ते
उसे अच्छी नजरों से नहीं देखा जाता
ऐसे ही उसके जैसे न जाने कितने
आज सबकी हालत बेहद खराब
करोना है
तब ग्राहक नहीं आ रहे
दूरी बना कर रखनी है
सबको जान की परवाह है
ग्राहकों को भी
उनको भी
पर पेट का क्या करें
वह तो भूखा नहीं रह सकता
काम तो बंद है सभी के
तब ये सेक्स वर्कर
इनकी मजबूरी का है अंदाजा किसी को
किससे मांगे
कहाँ जाएं
किराया भी देना है
भोजन का भी प्रबंध करना है
बच्चों को पालना है
जीविका का कोई साधन नहीं
कितनी मजबूत और बेबस
यह कब तक चलेंगा
कह नहीं सकते
ग्राहकों से जो गलियां गुलजार होती थी
आज सूनी सूनी सी है
न गली में यह खडी
शाम होते जहाँ रौनक
आज सुनसान सी पडी है
अब यह इंतजार तो करती हैं
पर ग्राहक का नहीं
कोई राशन पानी बांट जाएं
खाना दे दे
आखिर पापी पेट का सवाल है

Saturday 4 July 2020

समुंदर की पीडा

आसमान भी नीला
समुंदर भी नीला
दोनों में बहुत फासला
एक नीलाभ जिसे कभी-कभी
काले बादल ढक लेते हैं
फिर गायब हो जाते हैं
समुंदर का नीलापन कभी-कभी
कालापन लिए
उसका कारण
उसका जिम्मेदार
शायद हम
आसमान तक तो हमारी पहुँच नहीं
पर धरती के जीव की तो
समुंदर तक पहुंच है ही
जो हमारे साथ है
उसकी इज्जत नहीं
डालों गंदगी
फेंको कचरा
करो दूषित
वह कचरा बाहर निकालता रहता है
क्योंकि उसे वह गंवारा नहीं
पर हम भी तो कम नहीं
डालते रहते हैं
नीले से काला करते रहते हैं
पास है
इसलिए उसकी कदर नहीं
आसमान तक तो हमारी पहुँच नहीं

सरोज खान नहीं रही

इतनी मोटी वह भी डांस मास्टर
यह भी हो सकता है
यह मास्टर जी ने बता दिया
माधुरी को धक धक गर्ल बनाया
उनके लटके और झटके
सब पर छा गए
संघर्ष करते हुए वह ऊपर आई थी
वह ज्यादा पढी लिखी नहीं थी
इसलिए लच्छेदार भाषा नहीं थी
पर जो बोलती थी
दिल से
उनका नृत्य बोलता था
क्या लचक
क्या कसक
सब कुछ होता था
सामान्य आदमी तक पहुंचता था
आज यह डांस मास्टर हमारे बीच नहीं रही
पर वह नृत्य के माध्यम से जीवित रहेंगी
मास्टर जी आप हमेशा सबके धडकनो में धक धक करती रहेगी
भावपूर्ण श्रंद्धांजलि

Friday 3 July 2020

सांप सीढ़ी के इस खेल से कब मुक्ति

सांप सीढ़ी का खेल चल रहा है
आज जिंदगी कभी
आशा में तो कभी मायूसी में
सब कुछ बदला बदला सा
कभी लगता है
अब सब कुछ ठीक
दूसरे ही पल कोई दस्तक
अब लाकडाऊन हटेगा
सब प्लान ही बना रहे थे
फिर लग गया
सब धरा का धरा रह गया
फिर घोषणा
अबकी बार
फिर वही घोषणा
दिन पर दिन बीत रहे हैं
वह आगे बढता जा रहा है
कभी खुल जा रहा है
फिर पता चला बंद
और रिस्ट्रक्शन
कभी पहला चरण
कभी दूसरा चरण
कभी तीसरा
फिर आया अनलाॅक का दौर
वह तो और भी नए मापदंड के साथ
सब असमंजस में
कब यह खेल खत्म हो
जीवन फिर पटरी पर आए
कब इसको हराए
कब इससे मुक्ति का झंडा फहराए

Thursday 2 July 2020

समष्टिवाद

आज पूरा भारत आत्मनिर्भर
सब काम स्वयं
न कामवाली न कामवाला
घर से बाहर
बनिये की दुकान से लेकर घर में झाडू- पोछा करने तक
सामान ला रहे हैं
साफ सफाई कर रहे हैं
खाना बना रहे हैं
कपडे धो रहे हैं
इस्तरी कर रहे हैं
बर्तन मांज रहे हैं
चाय बना रहे हैं
केक और पेस्ट्री बना रहे हैं
पाव और ब्रेड भी
सब काम कर रहे हैं
यहाँ तक कि बाल भी काट रहे हैं
अगर ऐसे ही रहा तो
इन बेचारों का क्या होगा
इनकी रोजी रोटी कैसे चलेगी
एक आदमी से न जाने कितने लोग जुड़े रहते हैं
जीविका चलती है
ड्राइवर धोबी नाई
महरी बावर्ची  माली
सूतार इलेक्ट्रिशियन
ऐसे न जाने कितने
पंडित और पंडो का भी यही हाल
ऐसी आत्मनिर्भरता नहीं स्वीकार
समग्र  समाज
समस्त कारोबार
सब जुड़े हुए
उनकी अहमियत मुश्किल घडी में ही पता चलती है
समाज किसी एक से नहीं
परिवार किसी एक से नहीं
न जाने कितनों का योगदान
तब जाकर भव्यता खडी होती है
इसलिए समष्टिवादी बने व्यक्तिवादी नहीं

भक्त और भगवान

आपने भगवान को देखा है
नहीं ना
यह प्रश्न अक्सर हमसे पूछा जाता है
अगर हम भी वही प्रश्न करें तो
देखा तो किसी ने नहीं है
यह तो भाव है
भक्त और भगवान के संबंध को देखने के लिए विशाल दृष्टिकोण चाहिए
हाँ हमारे भगवान मूर्ति में हैं
हम उनको देखते हैं
हर पल मन में संजो कर रखते हैं
मत करो सम्मान किसी का
पर अपमान का भी अधिकार नहीं
सबका अपना अपना ढंग
न प्रश्न करों
न सवाल पूछो
सृष्टि के रचयिता को प्रमाण की जरूरत नहीं
उनके भक्त ही काफी है
एक ऊपर जिसके हाथ में सब कुछ
एक नीचे जिसका हाथ खाली
उनको जोड़ रखा है भक्ति
बस भक्ति करो मन से
अपने आराध्य की
उससे डरो और किसी से नहीं

फिर याद आया वह गुजरा जमाना

वह अस्सी का दशक था
क्या जमाना था
जब भगवान टेलीविजन पर आते थे
बढे बूढे हाथ जोड़ प्रणाम करते थे
अरूण और दीपिका
सचमुच के राम और सीता होते थे
रामायण आते ही घर में सन्नाटा
बाकायदा आरती होती थी
फूल चढाये जाते थे
मजाल कि कोई बीच में चू चा करें
सब टेलीविजन को घेर कर बैठ जाते
जैसे सत्यनारायण की कथा हो
लगता था उनके घर में साक्षात ही
नारायण पधारे हो
कैकयी को कोसना
राम वन गमन के समय
ऑसू की अविरल धारा का बहना
भरत प्रेम को देख मंत्रमुग्ध हो जाना
रावण को जम कर गालियां देना
ऐसा लगता था
राम फिर अवतरित हो आए हैं
इस धरती पर
मानना पडेगा रामानंद सागर को
जिन्होंने रामायण के सागर में सबको नहला दिया
प्राचीन काल में बाबा तुलसीदास ने मानस को घर घर पहुँचाया
मर्यादा पुरुषोत्तम राम को बनाया
आधुनिक काल में रामानंद सागर ने रामायण को घर घर पहुँचाया
नई पीढ़ी को अवगत करवाया
रामायण के पात्रो से परिचित करवाया
जो भूल रहे थे
उसे फिर याद दिलाया
आज फिर वहीं दिन आए हैं
बीस का दशक
घर में सब बंद
तब रामायण सबको भा रहा है
सच ही तो है
राम बिना भारत नहीं

बोझिल मत बनाओ

मन है तब सोच है
याद है
याद कभी दुख देती है
कभी सुख भी देती है
यादों का कारवां साथ साथ चलता है
हर याद को दिल पर रखना
तब तो खुश हो ही नहीं पाओगे
यादों के डायरी के दो पन्ने बनाओ
एक बालू यानि रेत के
दूसरा मजबूत चट्टान का
दुख को रेत के पन्नों पर लिखो
ताकि वह समय के बहाव में बह जाए
सब भूल जाए
सुख के पलों को चट्टान के पन्नों पर लिखो
ताकि वह हमेशा कायम रहे
सुखद एहसास कराता रहें
कोई भी बहाव उसका कुछ न बिगाड सके
न मिटा सके
उन बोझो को ढोने से क्या फायदा
जो चुभती हो
सालती हो
उस बोझ के साथ चलो
जो बोझ लगे ही नहीं
दिल को हल्का महसूस कराए
प्रसन्नचित्त करें
जिंदगी को अनचाहे बोझ से बोझिल मत बनाओ

Wednesday 1 July 2020

संगी मेरी वह है चाय

उसके बिना मेरी सुबह नहीं
उसके बिना मुझे सुकून नहीं
उठते ही सबसे पहले उसके दर्शन
फिर दिन भर रहती साथ
पेपर पढते-पढते
कुछ लिखते
उसकी तलब महसूस होती है
जब मिल जाती है
तब ताजगी महसूस कराती है
सारे आलस को ठेंगा दिखा देती है
बोरियत भगा देती है
कोई न हो तब भी साथ का एहसास कराती है
अगर साथ देने वाला और कोई
तब तो और भी रंगत
कटती है
सूखती है
उबलती है
तब स्वाद देती है
पहचाना कौन
यह है मेरी प्यारी चाय
काली हो या गोरी
फीकी हो या मीठी
हर रूप में मुझे है भाती
यह न मिले तो लगता है अधूरा
दिन बना देती है
लिखने को प्रोत्साहित करती है
मानों कहती है
अब तो अंदर घूंट गई
बाहर भी पेपर पर कुछ निकालो
कुछ विचार
कुछ भावना
चाय का कप रखो
पकडो कलम
तब उठना ही पडता है
कलम चलानी पडती है
ऐसी संगी मेरी
वह है चाय

हर डाँक्टर यह पढें

अपनी ही किसी किताब में यह कहानी पढी थी
कहानी तो बडी है उसको मैं संक्षेप में ही बता रही हूँ

एक साधारण ग्रामीण खेत खलिहानों में मजदूरी कर गुजारा करने वाला
एक बार बेटे को बुखार आया । तप रहा था ।तबीयत बिगड़ती जा रही थी ।किसी ने सलाह दी
शहर के बडे डाँक्टर है उनके पास ले जाओ
वही ठीक कर सकते हैं
रात का समय था वह बेटे को कंधे पर लादकर पहुंचा
डाँक्टर साहब ने मिलने से मना कर दिया
रात हो गई है हमारा सोने का समय है
द्वारपाल को गेट बंद करने का आदेश दे अंदर चले गए
बेचारे गरीब के बेटे ने दम तोड़ दिया

समय बीता
कुछ बरसों बाद डाँक्टर साहब के बेटे को जहरीला सांप ने काट लिया
कोई औषधि काम नहीं कर रही थीं
किसी ने कहा कि फलां गांव में एक व्यक्ति है जो जहरीले से जहरीले सांप का जहर मंत्र द्वारा निकाल सकता है
डाँक्टर साहब को इन सब बातों पर विश्वास नहीं था
पर एकलौता जवान बेटे का प्रश्न था
उन्होंने आदमी भेजे पर आने को मना कर दिया
रात गहरा रही थी पर इस गरीब का मन नहीं माना
लाठी ठेगते पहुंच गए
आवाज दी
डाँक्टर साहब पैरों पर गिर पड़े
बचा लो मेरे बेटे को
जो मांगोगे वह दूंगा
अब इन्होंने अपने मंत्र विद्या के बल पर विष निकाल दिया
लडका ऑखे मलता हुआ उठ बैठा
डाँक्टर साहब ने खुश होकर कहा
क्या चाहिए
कुछ नहीं
याद कीजिए मैं वही हूँ जो अपने बेटे के इलाज के लिए आपके पास आया था
आपने वापस लौटा दिया
मेरा बेटा मर गया

पर मैं आप जैसा नहीं बन सका
मन तो हुआ
मर जाने दो
पर ईश्वर ने मुझे यह हुनर दिया है जहर उतारने का
जान बचाने का
मैंने अपना कर्तव्य किया
आप भूल गये थे
आइंदा किसी मरीज को बिना देखे मत लौटाना ।
कहते हुए लाठी टेक गेट से बाहर निकल गए ।

Happy Doctor's Day

तुम इंसान हो भगवान नहीं
यह तो हम सब जानते हैं
ईश्वर की याद तो हमें हर मुश्किल घडी में आती है
पर जब बीमारी आती है
तब सबसे पहले तुम्हारी याद आती है
आशा रहती है
तुम ठीक कर दोगे
जीवन का प्रश्न जहाँ तुम वहाँ
मंदिर में नहीं जाते
तुम्हारे यहाँ आते हैं
ईश्वर तो दिख जाते हैं
पर तुम्हारा तो इंतजार करते हैं
हमको तो तुममें ही खुदा दिखता है
यह तो हुई  हमारी बात

अब आप अपनी बताओं
क्या तुमको भी मरीज में भगवान दिखता है
कहते हैं कि ईश्वर तो हर रूप में है
हर जगह है
इंसानियत और मानवता ही धर्म है
मानव सेवा ही ईश्वर भक्ति है
जीवन दाता हो आप
तब तो आपका भी कर्तव्य है
निस्वार्थ सेवा
हर भेदभाव से परे

ईश्वर के दरबार में
अमीर गरीब सब बराबर
उनकी दृष्टि तो समदर्शी होती है
संसार सागर में आकर उन्होंने भी अपना कर्म किया
आपको भी तो वह करना है
आप डाँक्टर ही इसलिए बने हो
कि हर समय मरीजों के लिए हाजिर हो
आपके लिए आपकी मर्जी से ज्यादा तवज्जों मरीज की

आप ईमानदारी से अपना कर्तव्य निभाए
सबकी दुआ ले
दिन दूनी रात तरक्की करें
बीमारी के तारणहार बने
दूसरों को जीवन देनेवाले
आपका जीवन खूब लम्बा हो
यही है सबकी शुभकामना
    Happy  Doctors  Day

अम्मा तुम जीओ सौ साल

जीवन जीने की आशा
अपार जीजिविषा
गजब का उत्साह
असीमित इच्छा
जब देखने को मिले
वह भी साक्षात
तब क्यों न हो मन बाग बाग

कहीं दूर की बात नहीं
है अपने घर की ही
नाईटी फट गयी
फेंकने को जा ही रही थी
अचानक किसी की आवाज सुन रूक गई
मत फेंकना
काम आएगा
बहू को बच्चा होगा तो गोदडी बनाने के
काटन का कपड़ा कहाँ मिलता है

सोचने लगी तो चेहरे पर मुस्कान आ गई
बहू मेरी और चिंता इनको
अपने बच्चों को तो पाला
अब बच्चों के बच्चों के लिए भी करना
इस बुढ़िया का उठना बैठना मुश्किल
पर जज्बा तो देखो
तभी तो इस उम्र में भी चल फिर रही है
हम तो थक गये
अभी से बुढापे ने दस्तक दे दी है
इनको देखों
एक पैर कब्र में लटकी है
फिर भी इच्छा बलवती है

इसलिए तो जीवन इनको नीरस नहीं लगता
मन तो कहता है
अम्मा तुम जीओ सौ साल
क्योंकि तुम हो तो
मुझे कोई चिंता नहीं

करोना काल में सावधानी ही एकमात्र उपाय

यह है काल
करोना का प्रकोप
सबने थाली बजाई
सबने ताली बजाई
जुलूस भी निकाला
दीया जलाया
मोमबत्ती जलाई
रोशनाई की
फिर भी यह ढीठ बन कर बैठा है
कुंडली मार फन फैला
हर किसी को डसने को आतुर
गो करोना
गो करोना
कहने से यह नहीं जाने वाला
इसका तो उपाय ढूंढना पडेगा
औषधि की इजाद करनी पडेंगी
उसके लिए सब प्रयत्नशील
तब तक औरों को भी सावधान रहना है
गर्म पानी पीना है
बार बार साबुन से हाथ धोना है
मास्क लगाना है
अपने हो या पराए
सबसे दो गज की दूरी बना कर रखनी है
घर से अति आवश्यक होने पर ही बाहर निकलना है
परहेज करना है
सेनेटाइजर को साथी बनाना है
बचाव करना है
अनमोल जीवन के लिए
सावधान रहना है
स्वयं को बचाना है और दूसरों को भी
जान है तो जहान है

मानव जाति का कल्याण हो

नया मास नयी आशा
यह वक्त भी गुजर जाएंगा
क्योंकि वक्त तो बहता पानी है
वह कभी ठहरता नहीं
कहीं भी किसी के लिए भी
हाॅ स्मृतियाँ शेष रह जाएंगी

याद आएगा करोना काल
जब पूरा विश्व महामारी से परेशान
कब मृत्यु दस्तक दे यह भी कोई नहीं जानता
दो मीटर की दूरी
चेहरे पर मास्क
ईश्वर के कपाट बन्द
बच गए वह भाग्यशाली
आज का दिन देखने को रह गए

सोचेंगे क्या क्या बदल गया
संबंधों में दरार
अपने ही अपने से दूर
न कहीं रौनक
न कहीं शोरगुल
सब हो गए थे घर में कैद

क्या शादी ब्याह
क्या पार्टी
क्या घूमना फिरना
सब गए थे छूट
पता चली पैसे की अहमियत
अस्पताल और डॉक्टर की कीमत
सफाई कर्मचारी के प्रति भाव
पुलिस के प्रति आदर
बहुत कुछ सिखा दिया था

स्वच्छता का महत्व समझा दिया था
भोजन की गुणवत्ता समझा दी थी
घर तो आखिर घर ही होता है
यह भी अच्छी तरह समझा दिया था
जिंदगी का कोई भरोसा नहीं
यह एहसास दिला दिया था

ऐसा वक्त तो हमेशा नहीं आता
आने की जरूरत नहीं है
यही भगवान से प्रार्थना
इंसान को इतना बेबस और लाचार कर दे
विज्ञान को भी परेशान कर दे
ऐसा वक्त थम ही जाय
तब ही हो सब मंगल काम

आषाढ़ी एकादशी आई है
नई आशा लाई है
बस जल्दी से सब ठीक हो
सावन का भी आगमन
भोलेनाथ बाबा की कृपा हो
इस जहरीले करोना का नाश हो

फिर सब वही पहले जैसी बात हो
ऐसे वक्त की नहीं आवश्यकता
बस जल्दी से चलता हो
पिंड छूटे
मानव जाति का कल्याण हो