Thursday 18 April 2024

राम को प्रणाम


क्रोध को जिसने जीता हैं
जिनकी भार्या सीता हैं
जो भरत शत्रुघ्न लक्ष्मण के हैं भ्राता
जिनके चरणों में हैं हनुमंत लला
वो पुरुषोत्तम राम हैं
भक्तो में जिनके प्राण हैं
ऐसे मर्यादा पुरुषोत्तम राम को
कोटि कोटि प्रणाम हैं..                                                

सावधान

ये दुनिया है जनाब
यहाँ तो रब को नहीं बख्शते 
हाड - मांस के इंसान की क्या औकात है
मत सोचो ऐसा क्यों हुआ
यही होना था 
हाँ तुम अंजान थे
भावना से भरे थे
उनके लिए जो पत्थर से भी कठोर 
पत्थर भी लहरों से टकरा कर टूट जाता है
ये पिघलने वालों में नहीं 
तुमको पिघला डालेगे 
खत्म कर देंगे 
संभल कर रहना होगा
अंजान से भले न हो सावधान
अपनों से रहें हमेशा सावधान 

Wednesday 17 April 2024

किस बात का फिर गुरूर ऐ समुंदर

इतना गुरूर अच्छा नहीं ऐ समुंदर 
माना कि तू विशाल है
तुझमें बहुसंख्य रत्न समाएं हैं 
तेरी थाह लेना कठिन है 
तेरी गहराई कोई माप ही नहीं सकता
प्रकृति का विध्वंश तुझमें समाया है
सारी नदियाँ तुझमें ही समाती है
इसके बाद भी लोग तुझे देखने ही जाते हैं 
तू किसी के काम नहीं आ सकता 
ना किसी प्यासे की प्यास बुझा सकता है
इतना जल है पर तेरी एक बूँद भी कोई काम की नहीं 
किस बात का फिर गुरूर करता है
अपने विध्वंसक होने का 
तू किसी को अपनाता नहीं 
सबको बाहर किनारे पर फेंक देता है
ना अपना सकता ना जीवन दान दे सकता 
तो तेरा होना या ना होना 
कुछ मायने नहीं रखता 
होगा तू विशाल 
उस बात से हमें क्यों मलाल 
तू अपनी रौ में हम अपनी रौ में बहते रहें 
तू अपनी मौज में लहराता रह
हम अपनी मौज में खुशी बांटते रहें 
इसी बात का सुकून 
होना उसका होना जो किसी के काम आए 




इस बार की रामनवमी कुछ खास है

इस बार की रामनवमी कुछ खास है
मेरे राम आए हैं अपनी अयोध्या में 
ये वही राम है जिसने एक क्षण भी बिना सोचे पिता की आज्ञा मान वन गमन कर गए 
ये वही राम हैं जो पत्नी के लिए लंकाधिपति से युद्ध ठान लिया था
ये वही राम हैं जो लखन के लिए जार जार रोए थे
ये वही राम हैं जिसने सिंधु को चुनौती दे डाली थी
ये वही राम है जिसने सुग्रीव और विभिषण जैसे निष्कासितो को राजा बना दिया
ये वही राम है जिसने राजमोह नहीं किया अपनी जन्म भूमि अयोध्या लौट आए थे
ये वही राजा राम है जिसने प्रजा की आज्ञा को शिरोधार्य किया 
भले पत्नी का त्याग करना पडा
ये वही राजा राम हैं जहाँ बहुपत्नी प्रथा के बावजूद एक पत्नी व्रती रहे
मूर्ति के साथ बैठना मंजूर था पर सीता के सिवाय और किसी के साथ नहीं 
राम राम कहने से कुछ नहीं होता
राम जैसा बनना पडेगा 
राम ईश्वर थे या नहीं कुछ लोगों के लिए 
लेकिन मानव तो वे थे ही 
क्या क्या नहीं झेला तब भी सदा मर्यादा में रहे मेरे राम
राम है तो भारत है
राम बिना तो सब सूना 
अब विराजें हैं 
खूब खुशियाँ मनाओ
यह रामनवमी तो कुछ खास है