Monday 31 January 2022

मेरी मुठ्ठी में जो समाएं

आसमान तो बहुत बडा है
इतना बडा लेकर क्या करूगा 
मेरी मुठ्ठी में समाएं 
उतना ही आसमान चाहिए 
वह आसमान जो खुले में दिखता है
वह तो मेरे बस का नहीं 
मेरी खिड़की से जो दिखता है
वही काफी है
खिडकी से दिखता रहें 
यह झरोखा कभी बंद न हो
ज्यादा मिल जाएंगा 
तब मैं न उसमें समा पाएगा
न वह मुझमें 
बस मुझे अपने हिस्से का चाहिए 
जिसके छत्रछाया में मैं मजबूती से खडा रहता सकूं  ।

महात्मा गांधी

30 जनवरी 1948, शुक्रवार की शाम 5:17 का समय ,तीन गोलियों की आवाज और उसके बाद पसरे सन्नाटे को देश को संबोधित करती पंडित नेहरू की आकाशवाणी से शोक से सनी आवाज साथियों, "हमारे जिंदगी से रोशनी चली गयी,हर जगह अंधेरा  है और मैं इस समय बिल्कुल नहीं जानता कि क्या कहना है और कैसे कहना है ,हमारे प्यारे बापू राष्टपिता अब हमारे बीच नहीं रहे।हमारे ही एक भाई ने बापू की हत्या कर दी है ।..."
 इस सूचना के बाद पूरा देश या यूं कहें कि पूरा विश्व थम सा गया।जवाहर लाल नेहरू ने अपने संदेश में यह कहना कि "हमारे ही एक भाई" बहुत ही सोच समझ के बोला गया शब्द था ।आज चौहत्तर वर्ष बाद हम उस विभीषिका की कल्पना नहीं कर सकते हैं जो उस समय उत्पन्न हुईं थीं।अगर नेहरू उस शब्द का प्रयोग नहीं करते तो पूरा राष्ट्र हिन्दू मुस्लिम दंगों के ज्वार में डूब जाता।
गांधी उस समय के विश्व के सबसे लोकप्रिय नाम थे और भारत की आम जनता तो उनको भगवान का दर्जा दे चुकी थी । गांधी आम लोगोंके बीच कितने मक़बूल और मशहूर थे इसका प्रमाण मणि भवन, मुम्बई में रखा वो पोस्ट कार्ड है जो दुनिया के किसी कोने से आता है उस पर पता लिखा है,GANDHI,INDIA और यह पोस्टकार्ड गांधी जी को मिलता भी है।ऐसी मक़बूलियत से किसको रश्क नहीं होगा।30 जनवरी के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपना झंड़ा झुका दिया था।पूरे विश्व से 3441 शोक संदेश आये थे जिसमें से कुछ हैं-(1)Gandhi ji was saint-George Orwell.(2)The people will not believe that a man built from blood & toil were roaming on this earth.-Elbert Einstein (3)It shows you how dangerous it is to be too good.-George Bernard Shaw (4) The death of my old rival was a loss of not only to Hindu community but a loss of humanity-MAJinnah(5) It is not the time to speak as it is occasion of mourning.Let us weep.let the nation weep and wipe off from its soul the stain of the innocent blood of the greatest man the world has ever produced.-Jai Prakash Narayan.
महात्मा की हत्या से पूरा विश्व स्तब्ध था।गांधी बाबा उस समय शांति के देवदूत,अहिंसा के पुजारी और त्याग की मूर्ति बन चुके थे।लार्ड माउन्टबेटन ने उन्हें प्यार,सत्य व सहिष्णुता की वो मशाल बताया जिससे पूरा विश्व रोशनी पा रहा था। चर्चिल का वह अधनंगा फकीर 78 वर्ष की आयु में एक 
किबदंती बन चुका था।हिन्दू और मुसलमान कौम उनकी दो आंखे थी,दोनों उनको बहुत शिद्दत से चाहते थे।हिदुओं के लिए वो परिवार के बाबा सदृश थे तो मुसलमान के घर के बुजुर्ग,ये गाँधी जी का ही करिश्मा था कि नोआखली के दंगे में अकेले जाकर दंगाइयों
 को शांत कराया।गाँधी जी के अंत समय मे उनके होंठ पर" हे राम" था जो कि हर हिन्दू की दिली इच्छा होती है और विडम्बना तो ये थी कि उनके हत्यारे का तर्क था कि वो हिन्दू हितों की उपेक्षा कर रहे थे।ये ठीक ऐसे ही था जैसे एक बाप की दो  संतानों में से एक पागल लड़का अपने पिता की हत्या कर देवें और ये कहे कि पिता उसके भाई को ज्यादा प्यार करता है। इसमें रंचमात्र भी संदेह नहीं है कि 
 गांधी जी की शहादत ने उन्हें सुकरात और ईशा मसीह की सफ़ में खड़ा कर दिया था।
गांधी की हत्या के बाद गांधी का भौतिक स्वरूप समाप्त हुआ पर उनके विचार व सिद्धान्त और ज्यादा मजबूत व सर्वग्राह बने ।
गांधी जी अपने जीवन काल मे ही हिंदुस्तान का पर्याय बन चुके थे।स्वाधीनताआंदोलन काल में अपने अफ्रीका से वापसी के पश्चात  गांधी जी ने जनता को कॉंग्रेस पार्टी से जोड़ा इसके पूर्व कॉंग्रेस अभिजात्य वर्ग व वकीलों की पार्टी थी।गांधी जी ने इसकी शुरुआत चंपारण आन्दोलन से की,चंपारण के किसान राज कुमार शुक्ल के आमंत्रण पर गांधी जी चंपारण गए और नील की खेती करने वाले किसानों को निलहे साहबों शोषण से मुक्ति दिलाई।उसके बाद बारदोली आंदोलन,सूरत मिल सत्याग्रह,असहयोगआंदोलन,दांडी मार्च आदि आंदोलनों में गांधी जी के नेतृत्व को और तराशा।गांधीजी 1924 में कॉंग्रेस पार्टीके सभापति बने।1930 में टाइम्स पत्रिका ने उन्हें पर्सनऑफ द ईयर के खिताब से नवाजा।1934 में महात्मा ने कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिया पर वह कॉंग्रेस के अविभाज्यअंग बने रहे।महात्मा का सम्बोधन गांधी जी को गुरुदेव रविन्द्र नाथ टैगोर ने दिया था।उसके बाद 1942 में गांधी जी के नेतृत्व क्षमता का चर्मोत्कर्ष देश ने देखा 8 अगस्त की सुबह गाँधीजी के भारत छोड़ो के आह्वान के साथ पूरा देश रुक सा गया।भारत के कोने कोने में लोगों ने अपने गान्ही महातमा की इस अपील पर तार काट डाले,रेलसेवा भंग कर दी ।पहली बार अंग्रेजों को यह ।महसूस हुआ कि अब भारत को गुलाम रखना नामुमकीन है।द्वितीय विश्वयुद्ध और नौसैनिक विद्रोह ने इसमें उत्प्रेरक का कार्य किया। उसके बाद ब्रिटिश शासन ने कैबीनेट मिशन भेजा जिसने सत्ता हस्तांतरण की कार्यप्रणाली की रूपरेखा बनायी। इस स्वाधीनताआंदोलन के साथ साथ भारत विभाजन के लिए एक वर्ग  प्रयास कर रहा था और उनका नेतृत्व कर रहे थे मुस्लिमलीग  के नायक मोहम्मद अली जिन्नाह।अंततोगत्वा भारत के विभाजन के बाद ही हम आजाद हुए।पाकिस्तान के रूप में एक नया राष्ट्र वजूद में आ चुका था और इस प्रसव पीड़ा को सबसे अधिक जिसने सहन किया वो था साबरमती  का सन्त जिसके हिस्से में अब कोई  कमाल न था वो 15 अगस्त 1947को नोआखली की गलियों में बिना अपने जान की परवाह किये दंगों को शांत कर रहा था।विभाजन का दंश सबसे अधिक उस 78 वर्ष के बूढ़े नायक ने महसूस किया था जिसके एक पग चलने पर कोटि पग उसी ओर चल पड़तेथे।जिसके एक बार देखने पर करोड़ों आँखे उसी ओर देखने लगती थी। जिसने ये दावा किया था कि देश का विभाजन उसके शव पर होगा। वो गांधी तो उसी दिन मर गया था जब उनकी आँखों ने अपने लाखों बच्चों को बेहाल,घायल ,मजबूर,
पस्त हिम्मत, विक्षिप्त  अवस्था मे इधर से उधर पलायन करते देखा था।
वास्तव में गाँधी जी स्वाधीनता के बाद एकदम एकाकी जीवन जीने लगे थे।उनका जीवन बस विभाजन जन्य विकृतियों को ठीक ठाक करने में ही बीत रहा था।भारत पाकिस्तान की आपसी झड़प,शरणार्थियों की समस्याओं ,नेहरू गांधी का आपसी द्वंद आदि ने गांधीजी को बुरी तरह तोड़ दिया था।20 जनवरी 1948 को गांधीजी पर बम फेंका गया,इस घटना के बाद भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री और गृहमंत्री नेहरू और पटेल उनको देखने गए और बापू की सुरक्षा के लिए गार्ड नियुक्त करने के लिए कहा तो बापू ने कहा कि यदि मैं अपने भाइयों से असुरक्षित हूँ तो मैं जीकर क्या करूँगा।अगर तुम लोग ज्यादा जिद करोगे तो मैं दिल्ली छोड़ के चला जाऊँगा।28 जनवरी को मेहरौली में बख्तियार काकी की दरगाह पर  पाकिस्तान से आने वाले शरणार्थियों के कैम्प के कुछ लोगों ने तोड़ फोड़ करके दरगाह को नुकसान पहुंचाया।गांधीजी उसी दिन दरगाह पर गए और उन्होंने नेहरू जी को  दरगाह की मरम्मत के लिए सरकारी कोष से 50000 देने को कहा। नेहरू और सरदार पटेल में मतभेद बहुत बढ चुका था,दोनों इसके हल के लिए गांधी जी के पास गए, गांधीजी का उत्तर था मि भारत की  बेहतरी के लिये नेहरू और पटेल को साथ साथ काम करना चाहिए।30 जनवरी को  सरदार पटेल पुनः गांधी जी से मिलने 4बजे शाम को बिड़लाभवन गए थे ,गांधीजी से उनकी मुलाकात 5 बजे तक चली । रोज 5बजे सायंकाल गांधी जी प्रार्थना सभा को संबोधित करते थे,उसदिन उन्हे विलंब हो रहा था,गांधीजी मनु और आभा का सहारा लिए सभा स्थल की ओर चले,उसी समय नाथूराम गोडसे जो पूना का  चितपावन ब्राह्मण और हिन्दूमहासभा का सदस्य भी था ,गांधीजी को गोली मार दिया दिया। उसी सभा मे एक अमेरिकन डिप्लोमेट वीमर भी था जिसने गोडसे को पकड़ लिया।गांधी जी की हत्या के बाद सरदार पटेल को यह अपराधबोध हो गया कि वह गांधीजी को नहीं बचा सके और सरदार इसके लिए अपने आपको दोषी मानने लगे थे।गांधी जी की मृत्यु के बाद लालकिले में ट्रायल शुरू हुआ व अंततोगत्वा गोडसे और विनायक आप्टे को अम्बाला जेल में 15 नवम्बर1950 को फांसी दी गई एवम बाकी 5 अभियुक्तों को आजीवन कारावास का दंड दिया गया। गांधी अब एक विचारधारा बन चुके हैं।आज के दौर में गांधीजी  की नीतियों पर खूब बहस और विमर्श हो रहें हैं। कुछ राजनीतिक दल  गांधी  का ककहरा पढ़ के जिंदा हैं तो कुछ नेताओं को प्रसिद्धि ही गांधी के आलोचना से मिली है। यहाँ पर शेक्सपियर की वह उक्ति याद आती है जिसमे ये कहा गया है कि तुम मुझे प्यार कर सकते हो या घृणा कर सकते हो पर मेरी उपेक्षा नहीं कर सकते हो। आज भी गांधी वादी समाजवाद,गांधीवादी आर्थिक नीति, कतार के आखिरीआदमी के रूप में गांधी राजनीतिक माला के सुमेरु बने हुए हैं।क्या विश्व के किसी राष्ट्राध्यक्ष में इतना साहस है कि वह भारत आये और राजघाट न जाये।हमारे 15 अगस्त की शुरूआत ही राजघाट से होती है ,यही है बापू की सार्थकता।नमन महात्मा!💐
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पैसा ओ पैसा

पैसा तू क्या - क्या करता है
मान- सम्मान बढाता है
मान - सम्मान घटाता  है
लोगों को नजदीक लाता है
लोगों को दूर भी करता है
अपने और पराये की पहचान कराता है
तू है पास में तो सब तेरे साथ में 
नहीं तो फिर तू दुनिया में अकेला
तू है तो मूर्ख भी बुद्धि मान
तू नहीं तो बुद्धि मान भी जानता सडकों की खाक
तेरे बिना दर - दर भटकता यह इंसान 
तू न जाने क्या क्या करवाता
चोरी डाका भी करवाता
दान धर्म भी करवाता
तू जिस पर मेहरबान हो
वह फर्श से सीधा अर्श पर
नाराज हो तो एक ही झटके में धडाम से जमीन पर
तुझे जब किसी को दिया जाएं 
तब तो मिठास का जवाब नहीं 
मांगने जाएं तो फिर देखो 
वैसी कडवाहट कि एक दूसरे का शक्ल न देखें 
दोस्ती भी तू ही करवाता
दुश्मनी भी तू करवाता 
जान देता भी है
लेने का कारण भी तू
अपरम्पार है तेरी महिमा 
तभी तो तू है
सबसे बडा 
तेरे बिना कुछ नहीं 

बापू को बख्श दो

तीन गोलियां लगीं 
मुख से निकला 
हे राम 
मारने वाले ने भी मारने से पहले नमस्कार किया
गांधी के हिन्दू और मुस्लिम में पक्षपात का आरोप है
इसलिए मारना पडा
यह एक कोरा बकवास है
वे हिन्दू ही थे
राम राज्य की कल्पना उन्होंने ही की
वैष्णव जन तो तेने कहिए 
     पीर पराई जाने रे
यह उनका पसंदीदा भजन
हिन्दू और वह भी वैष्णव 
हरिजन शब्द भी उनका ही दिया हुआ 
हरि यानि राम को मानने वाले 
यह महात्मा राम के आदर्शों को भी तो मानता  होगा
सर्वजन सुखाय
सर्वजन हिताय
यह तो करना ही था
हाँ विभाजन की विभिषका देखनी पडी बापू को
सब रोयें थे उस दिन
लोगों के घरों में चूल्हा नहीं जला था
हर गाँव हर व्यक्ति उनको अपना मानता था
संतान अलग हो
इससे ज्यादा पीडादयक क्या हो सकता था
आखिर मिल कर ही तो लडी थी 
सबने आजादी की लडाई 
उनमें कोई देशद्रोही तो नहीं था
हिंदुत्व से बापू को आंकना 
बापू तो शत प्रतिशत हिन्दू ही थे 
मंदिर जाते समय ही ईश्वर के प्रांगण में ही अपनी आखिरी सांसे ली
बापू को राजनीति के दलदल में न घसीटा जाएं 
बापू ने सब त्याग किया 
आज कौन है ऐसा
जो अपना घर नहीं भर रहा है
अपना घर ,अपना खानदान ,अपने रिश्ते दार
भरो तिजोरी और भाषण दो 
बडी बडी बातें करो 
पर बापू को बख्श दो

Sunday 30 January 2022

महात्मा गाँधी

गांधी मर गए
नहीं  
गांधी आज भी जिंदा है
अपने सिद्धांतों में 
आज भी बापू 
उतने ही प्रासंगिक है 
जब सत्य और अहिंसा की बात चलेगी 
जब गुलामी की बात होगी 
जब अन्याय  की बात होगी
तब उनके शब्द याद रहेंगे 
मानव थे वे
देवता नहीं 
तब मनुष्य के रूप में 
हर व्यक्ति उनकी बातों का अनुकरण करना चाहेगा
असम्भव कुछ भी नहीं 
दृढ़ इच्छाशक्ति हो
तब किसी से भी टकराया जा सकता है
साबरमती के इस फकीर ने यह सिद्ध कर दिखाया
अंग्रेजों भारत छोड़ो 
छोड़ना ही पडा
नमन इस महात्मा को 

अपना

वह अपना क्या
जो हर बात पर रूठ जाएं 
संबंध तोड़ डालने की धमकी देने लगे
छोड़ जाने की बात कहने लगे
हर समय संभल कर रहना पडे
संभल कर बोलना पडे
कौन जाने कौन सी बात नागवार गुजरे
चुप रहना पडे
दिखावा करना पडे
औपचारिकता निभाना पडे
इससे तो दूसरे भले
कम से कम दिल की बात तो समझेगा 
न पसंद तो न सही
यह तो जता देगा
यहाँ तो अपना भी बने रहना
न आगे चलने देना 
न पीछे चलने देना
हर बात में तानाशाही चलाना
मजबूरी का फायदा  उठाना
प्यार और स्नेह का भेजा  इस्तेमाल 
तब इसे क्या कहना

भूलना

आजकल लगता है
बहुत भुलक्कड हो गई हूँ 
सोचती कुछ हूँ 
होता कुछ है
करने जातो हूँ   कुछ 
हो जाता है कुछ 
कभी नमक डालना भूल गई दाल में 
कभी मिर्च डालना भूल गई सब्जी में 
काम याद रहता है
नाम याद नहीं  रहता
बाजार लेने जाती हूँ 
एक न एक जरूरत की चीज भूल ही जाती हूँ 
कभी चश्मा भूल जाती हूँ 
कभी पर्स 
फिर पूरे घर में ढूढती रहती हूँ 
पता चलता है
वह कहीं पास ही पडा होता है
दिखाई नहीं देता 
व्यक्ति को सामने देख मास्क में पहचान नहीं पाती 
ऐसा  लगता है
कहीं देखा है
जब आवाज  सुनती हूँ तब भान होता है
हाँ एक बात है
कडवी यादें नहीं भूल पाती 
वह मन में और मजबूती से जम कर बैठी है
गाहे बगाहे  परेशान करती रहती है
याददाश्त  जाने का डर समा गया है
किसी के घर जाती हूँ 
असली वजह भूल जाती हूँ 
कुछ भूलना अच्छा है
वह है कडवाहट 
और तो सब यादें चुस्त दुरुस्त रहनी चाहिए 
तभी तो जीने का मकसद होगा 
जब मन करेंगा
यादों के चक्कर लगा आएंगे 

Saturday 29 January 2022

स्वभाव का रंग

स्वभाव यानि रंगों का बाक्स
अलग-अलग तरह के रंग 
कौन सा रंग किसके साथ मिलेगा
कौन सा नया रंग बनेगा
कौन सा साथ रहने पर निखरेगा
हर रंग की अपनी अपनी खासियत 
सब सबके साथ मिले 
ऐसा भी नहीं 
एक रंग एक को सूट करता है तो दूसरे को नहीं 
सामने वाले के स्वभाव का रंग 
दोनों किस तरह मिलते हैं 
क्या गुल खिलाते हैं 
क्या नयापन लाते हैं 
यह स्वभाव है
इसमें रंग-बरंगे रंग है
हर रंग का अपना अलग ही अंदाज है 

पानी पेट का सवाल है भाई

सारा काम समाप्त कर बिस्तर पर लेटी ही थी
ख्याल आया सुबह का
क्या नाश्ता बनेगा
क्या खाना बनेगा
पानी समय से आएगा या नहीं 
कौन सी सब्जी है
क्या सामान मंगवाना है
यह सोचते सोचते ऑख लग गई
सुबह अलार्म बजा
हड़बड़ाकर  उठी
पानी आ गया था
दूध गरम करने को रख दिया
चाय चढा दी
उसी में अपना कुछ वैयक्तिक कार्य भी करती रही
सब निपटाते दोपहर होने को आई
खाना खाकर लेटी ही थी
शाम के चाय - नाश्ते और रात के खाने का विचार
फिर वही सब्जी और सामान घुमाने लगे
सोचने लगी
भोजन के सिवा और कुछ ख्याल नहीं 
हम खाने के लिए जीते हैं 
जीने के लिए खाते हैं 
सोच सोच कर असमंजस में पड गई
पेट ही सब कुछ है
पेट की स्वच्छता से शुरूआत 
पेट भरने तक
इसी में सब लगे हुए हैं 
अगर पेट न हो तो कोई काम ही न करें 
वह चाहे कोई भी जीव हो
पेट ने बांध रखा है अपने से
उसी के लिए सुबह से ही जद्दोजहद शुरू 
न जाने कितने पाप बेलने  पडते हैं 
तब जाकर यह पेट भरता है
यह कहावत ऐसे ही नहीं बनी
पापी पेट का सवाल है भाई

मेहमान ही समझो

आजकल टेलीविजन पर एक विज्ञापन आता है
हमें घर के मत समझो 
मेहमान ही समझो
मेहमानों को अच्छे बर्तन में स्वागत
हमें तो पुरानी स्टील की प्लेट 
वह भी दादाजी के नाम की खुदी हुई

कहीं ऐसा तो नहीं 
हम घर के व्यक्तिओ को टेक फाॅर ग्रान्टेड ले लेते हैं 
अच्छा खाना
अच्छा बिस्तर
अच्छे सामान
यह सब मेहमानों के  खाते में 
उनके लिए बचाकर रखना
यह सही है
भारतीय परंपरा में मेहमान भगवान होता है
दिखावा भी करना पडता है 
अपनी हैसियत दिखाने के लिए 
भले ही वह पडोसी से मांगा हुआ हो
और यह सब कौन करता है
मध्यम वर्ग 

गरीब के घर जो है
वह खुद भी खाएगा 
मेहमान को भी देगा
अमीर को किसी बात की कमी नहीं 
तब दिखावा करने का सवाल ही नहीं 
रहा बेचारा 
मिडिल क्लास 
अपने सूखी रोटी खाएगा
मेहमान के लिए 
पुरी - परांठा , मटर पनीर , गाजर का हलवा
यह सब देगा 
जिससे उसका एक हफ्ते का बजट गडबडा जाएंगा
पर असलियत नहीं आने देगा

क्या फायदा इससे
अच्छा जीने और रहने का हक सबका
तब अतिथि के नाम पर
जो हैं जैसे हैं 
वैसे रहिए
परिवार के सदस्य को भी सबका आनंद लेने दे

रिश्तों की अहमियत

जवाब देना हमें भी आता है
नहीं देना चाहते
यही तो मजबूरी है
हम रिश्तों की अहमियत समझते हैं 
यह जरूरी भी है
शब्दों से जो टूट जाएं 
तब वह रिश्ता किस बात का
जहाँ वाक्य भी सोच समझकर बोलना पडे
औपचारिकता बरती जाए 
तब वह बेमजा 
तुम कुछ अपनी कहो
कुछ दूसरों की सुनो
अपनेपन के भाव से
न उसमें व्यंग्य हो न नीचा दिखाने की भावना हो
सरलता और सुलभता हो
तभी तो यह नाजुक सी डोर मजबूत रहेंगी
रिश्तों में तानाशाही का पुट
वह तो सब खेल ही बिगाड देगा

Friday 28 January 2022

ऐ सडक

ऐ सडक 
जब से तुम मेरे गाँव में आई हो
मेरे गाँव का हुलिया ही बदल गया
अब वह टेढी मेढी पगडंडी
मिट्टी भरी राहें 
नजर नहीं आती
अब तो गाडी और बस की आवाज सुनाई देती है
मोटरसाइकिल का फर्राटा फडफडफडाता है
अब बैलगाड़ी की रून झून 
इक्केवाला की टपटप नहीं 
चार पहिया का बोलबाला है
नजर उठी कि गाडी सर्र से गुजर गई
धूल और धुआं उडाते हुए
अब पेडों की हवा कम
घुआ  का गोला ज्यादा दिखता है
अब मिट्टी की सौंधी महक नहीं 
पेट्रोल और डीजल की गमक 
घंटों का काम मिनटों में 
दूरी कम हो गई है
पहले रिश्तेदारी में जाते थे
तब एक - दो दिन तो रह ही जाता थे 
आज तो एक - दो घंटे में लौट आते हैं 
जैसे रास्ते की दूरी कम हो गई है 
दिलों की दूरियां  बढ गई है
अब झटपट फटाफट का जमाना है
एक सडक क्या आई
न जाने क्या क्या बदल गए
विकास की सीढी चढ हमने
सुकून- शांति का मतलब बदल दिया
जीवन जीने का नजरिया बदल दिया


ये मेरी प्यारी ऑखें

यह ऑखें भी अब साथ छोड़ रही है
जन्म से लेकर अब तक साथ निभाया इसने
न जाने कितने वसंत देखें 
कितने पतझड़ देखें 
जीवन के अलग-अलग रंग देखें 
नया नया रास्ता दिखाया 
नयी दुनिया से परिचय करवाया
ममता और प्यार दिखाया
प्रकाश दिखाया
ज्ञान का माध्यम बनी
रात रात भर इसी के सहारे
बडी बडी किताबें पढी
डिग्री ली
फिल्म और समाचार देखी
हर क्षण साथ रही
दुख में रोई 
सुख में हंसी
जाने अंजाने इसने जीवन के हर पहलू से रूबरू करवाया
अब तो यह भी थक रही है
धुंधली हो रही है
साथ छोड़ रही हैं 
डर लग रहा है
इसके बिना जीवन जीना 
नहीं  नहीं 
जीवन को तो दिखाया
अब मृत्यु को आते दिखाना
तब तक तो साथ निभाएगी न
ऐ मेरी प्यारी ऑखें 
बहुत कर्ज है
तेरा मुझ पर
एहसान मंद हूँ 

Thursday 27 January 2022

सलाह

सलाह देने वाले बहुतेरे 
साथ देने वाला कोई नहीं 
यह हकीकत है
तब अपनी सुने
अपने मन की
अपनी आत्मा की
जल्दबाजी में  कदम न उठाएं 
एक कदम पूरी जिंदगी बदल देगा
कारवां गुजर जाएगा 
गुहार देखते रह जाएंगे 

Wednesday 26 January 2022

constitution of india

How many Indians know that the Constitution of India was written by hand. No instrument was used to write the whole constitution. Prem Bihari Narayan Rayzada, a resident of Delhi, wrote this huge book, the entire constitution, in italic style with his own hands.

Prem Bihari was a famous calligraphy writer of that time. He was born on 16 December 1901 in the family of a renowned handwriting researcher in Delhi. He lost his parents at a young age. He became a man to his grandfather Ram Prasad Saxena and uncle Chatur Bihari Narayan Saxena. His grandfather Ram Prasad was a calligrapher. He was a scholar of Persian and English. He taught Persian to high-ranking officials of the English government.

Dadu used to teach calligraphy art to Prem Bihari from an early age for beautiful handwriting. After graduating from St. Stephen's College, Delhi, Prem Bihari started practicing calligraphy art learned from his grandfather. Gradually his name began to spread side by side for the beautiful handwriting. When the constitution was ready for printing, the then Prime Minister of India Jawaharlal Nehru summoned Prem Bihari. Nehru wanted to write the constitution in handwritten calligraphy in italic letters instead of in print. 

That is why he called Prem Bihari. After Prem Bihari approached him, Nehruji asked him to handwrite the constitution in italic style and asked him what fee he would take.

Prem Bihari told Nehruji “Not a single penny. By the grace of God I have all the things and I am quite happy with my life. ” After saying this, he made a request to Nehruji "I have one reservation - that on every page of constitution I will write my name and on the last page I will write my name along with my grandfather's name." Nehruji accepted his request. He was given a house to write this constitution. Sitting there, Premji wrote the manuscript of the entire constitution.

Before starting writing, Prem Bihari Narayan came to Santiniketan on 29 November 1949 with the then President of India, Shri Rajendra Prasad, at the behest of Nehruji. They discussed with the famous painter Nandalal Basu and decided how and with what part of the leaf Prem Bihari would write, Nandalal Basu would decorate the rest of the blank part of the leaf.

Nandalal Bose and some of his students from Santiniketan filled these gaps with impeccable imagery. Mohenjo-daro seals, Ramayana, Mahabharata, Life of Gautam Buddha, Promotion of Buddhism by Emperor Ashoka, Meeting of Vikramaditya, Emperor Akbar and Mughal Empire.. 

Prem Bihari needed 432 pen holders to write the Indian constitution and he used nib number 303. The nibs were brought from England and Czechoslovakia. He wrote the manuscript of the entire constitution for six long months in a room in the Constitution Hall of India. 251 pages of parchment paper had to be used to write the constitution. The weight of the constitution is 3 kg 650 grams. The constitution is 22 inches long and 16 inches wide.

Prem Bihari died on February 17, 1986.

One of the Unsung Heroes of India  
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हमारा तिरंगा

यह तीन रंग नहीं है
हमारा स्वाभिमान है
हमारा गौरव है
हमारी आन - बान और शान है
यह फहरा रहा है
तब तक हम स्वतंत्र हैं 
अमन - चैन से हैं 
इसका सम्मान करना 
हर भारतीय का कर्तव्य है
जान जाएं पर झंडे पर आंच नहीं आए 

परमानंद का आनंद

नहीं भूली हूँ अपनी जिंदगी का वह पहला मकान
पिताजी का खरीदा हुआ घर 
वह छोटा था पर अपना था
वन रूम किचन ही था
वह ह्दय में आज भी धर है
हंसते थे चहचहाते थे
झगड़ा- लडाई करते थे
मान - मनौवल करते थे
त्यौहार मनाते थे
घर छोटा सा था
पर उसका दिल बडा था
सब उसमें समा जाते थे
घर के सदस्य तो थे ही
दोस्तों- रिश्तेदारों का भी ठौर - ठिकाना 
वह भी गाहे - बगाहे आते थे
कुछ तो सुबह- शाम जमे रहते थे
कभी कोफ्त भी होती थी
पर न वो मानता था न हम मना करते थे
गद्दे डाल दिए जाते थे सोने के लिए 
सुबह उठकर उठते ही उठा उसको गैलरी में करीने से एक के ऊपर एक लगाओ
कोई प्राइवेसी नहीं 
टेलीविजन चालू रहा तो कुछ दरवाजे पर खडे
दरवाजा बंद तो खिड़की से झांक ती ऑखें 
हर कोई घर में घुसा जा रहा है
दरवाजा एक बार सुबह खुला तो रात को ही बंद
पडोसी तो घरवालों से बढ़कर 
हर बात में टोकमटाकी 
बच्चों को पालना नहीं पडा
बच्चे अपने आप ही पल बढ गए
एक नहीं कई गार्जियन थे
सब की निगाह रहती थी
सगा कौन और पराया कौन
यह तो बच्चा जब तक बडा नहीं हो जाता था
जानता ही नहीं था
साथ में जमीन पर बैठकर खाना
साथ में खेलना
किसी के घर झगड़ा तो गाली खाने  पर भी छुड़ाने जाना 
किसके बच्चे कैसे 
पढाई में  या और चीजें में 
हर बात की खबर 
दीवारों के कान होते हैं यह मुहावरा नहीं 
सच में होता था
शादी - ब्याह  , हारी - बीमारी में सबका सहयोग 
कब मन मुटाव हुआ कब खत्म हुआ 
पता ही नहीं चलता था
यहाँ तक कि गली भी अपनी
सडक भी अपने बाप की लगती थी
निसंकोच  चलते थे बिना भय के
हर दुकानदार पहचानता था
फलां का फलां 
आज तो बडा घर 
घर में ही सब अजनबी 
आने और जाने की सूचना दो
बडा औपचारिक लगता है
पर पहले वाली बात तो रही नहीं 
परमानंद का आनंद हर जगह नहीं 

Happy Republic day

मातृभूमि को नमन
मातृभूमि पर मर मिटने वालों को नमन
आप नहीं हैं इसलिए हम हैं 
आपका बलिदान देश के लिए 
इसका कोई मूल्य नहीं 
अपने बहुमूल्य प्राणों की आहुति देकर
माँ भारती को आजादी दिलाई
माता का कर्ज कोई नहीं चुका सकता
लेकिन भारत माता तुम्हारी कर्जदार है
ऐसे ही सपूतों के कारण वह सुरक्षित है
ऐसे पुत्रों पर नाज है उसे
उसे ही क्यों 
हर देशवासी को
चाहे वह किसी भी भाषा , जाति ,धर्म  , प्रान्त और पार्टी का हो 
गणतंत्र दिवस पर हर भारतवासी आप लोगों को याद करता है 
हमारा गणतंत्र  हमारा संविधान , हमारा कानून 
आजाद देश के हम वासी 
हर भारतवासी के दिल और दिमाग में लहराता तिरंगा 
उसकी आन , बान ,शान के लिए प्रतिबद्ध 
सलाम है झंडे को
सलाम है वीरों को
सलाम है मातृभूमि को
     जय हिंद  जय हिंद की सेना 
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा 
              झंडा ऊंचा रहे हमारा  

मगरमच्छ के ऑसू

ऑसू की एक अपनी अहमियत होती है
बहुत संवेदनशील होता है यह ऑसू
जहाँ शब्द असमर्थ हो जाता है
वहाँ यह काम कर जाता है
भावनाओं की अभिव्यक्ति का सबसे अच्छा उदाहरण
खुशी हो या गम
यह हमेशा साथ निभाते हैं
सब कोई साथ छोड़ दे
पर यह नहीं छोड़ता
आजीवन साथ निभाता है
मन हल्का कर जाता है
सच्चाई छिपी होती है इसमें

हाँ यह दिगर बात है
लोगों ने इसको भी नहीं छोड़ा
इसका भी अवमूल्यन किया
इसका सहारा लेकर लोगों की भावनाओं से खेला
उनको धोखा देकर अपना उल्लू सीधा किया
स्वार्थ के लिए
झूठमूठ का अपनापन जताने के लिए इसका सहारा
लोग इनके झांसे में  आ जाते हैं
तब ऐसे मगरमच्छों के ऑसू को देख मत भावनाओं में  बह जाएं

पहचाने
कौन असली और कौन नकली
बडा पवित्र है ऑसू
यही तो हमारा अपना है
हर किसी के सामने इसे न बहाए
बहुत अनमोल है संभाल कर रखें

इंसान के रूप में जो मगरमच्छों का बोलबाला है
उनसे दूर रहिए
सच्चाई को पहचानिए
बहुत जरूरी है
ऑसू की परख करना
जो लोग मगरमच्छ के  ऑसू बहाते हैं
उनसे सतर्कता बरते
दूरी बना कर रखें।

Tuesday 25 January 2022

बेटी तुम जहाँ रहो खुश रहो

बेटी तुम जहाँ रहो
खुश रहो
तुम्हारी कमी अक्सर खलती है
तुम्हारे बिना घर भी सूना सूना सा लगता है
तुम्हारी आवाज सुनने को हम तरसते हैं 
तुम्हें देखने को बेताब रहते हैं 
तुम्हारे आने से घर में खुशियाँ  छा जाती है
तब भी यह देखकर 
मन निश्चिंत रहता है
तुम अपने घर में  खुश हो
वह घर ही अब असली घर
ऐसा नहीं 
इस घर से नाता खत्म 
अधिकार है 
अपनापन है
फिर भी 
बेटियां  ससुराल में ही अच्छी लगती है
पति के साथ ही शोभित होती है
उसका घर बस जाएं 
अच्छा घर - वर मिल जाएं 
बाल - बच्चों में व्यस्त रहें 
रानी बनकर राज करें 
हर माँ बाप की यही इच्छा 
बेटी तुम जहाँ रहो 
खुश रहो

मेरी आवाज ही मेरी पहचान है

मेरी आवाज ही मेरी पहचान है
कभी-कभी यह तेज हो जाती है
बोलते बोलते भान ही नहीं रहता
रौ में बह जाती हूँ 
कुछ लोगों के कानों को यह चुभती है
नुक्स निकालने का एक बहाना मिल जाता है
धीरे और मीठा बोल कर किसी को अपशब्द तो नहीं कहती
झगड़ा तो नही करती
ताना तो नहीं मारती
तब क्यों प्रॉब्लम 
यह बात दिगर है कि आप हमें पसंद नहीं करते
तब तो आपको हमारी हर आदत खराब लगेंगी
क्या करें 
मजबूर हैं 
दृष्टि दोष का ऑपरेशन हो सकता है 
दृष्टिकोण का नहीं 
यह बात दूसरों को नहीं 
जो अपने हैं 
अजीज हैं 
उनको खनकती है
अब सावधान होकर बोलना 
वह भी अपनों के सामने 
वह तो सम्भव नहीं है
आपको ठीक लगें  न लगें 
मुझे मेरी आवाज से बहुत प्यार है
इसी के कारण 
मेरी रोजी - रोटी चली है
समाज में मान - सम्मान है
अब उम्र हो गई है
बदल नहीं सकती
फिर यह कितने दिन साथ निभाएगी 
एक दिन यह भी लडखडाएगी 
अस्पष्ट हो जाएंगी
तब तो जब तक यह साथ निभा रही है 
इसकी मेहरबानी 
मैंने अपनी आवाज के बल पर
अपना असतित्व कायम रखा है
इसी के बल बूते पर घर चलाया है
बहुत मेहरबानी है इसकी 
कोई साथ दे या न दे
यह हमेशा साथ निभाएगी 
इतना विश्वास है 
तभी  तो यह मुझे बडी प्यारी है
इस पर रोक - टोक 
वह मुझे पसंद नहीं 

जिंदगी की अनिश्चितता

मौसम का मिजाज बदल रहा है
हर पल , पल - पल
कभी धूप कभी छांव 
ऐसा ही अक्सर होता है
सुबह अच्छी गई
शाम होते होते तनाव आ गया
कभी रात कभी दिन 
कभी सुबह कभी शाम
कभी इस पल कभी उस पल
सब कुछ बदलता रहता है
हमें अंदाजा भी नहीं होता है
घटना घट जाती है
एक तरफ खुशखबरी 
दूसरी तरफ दुखद समाचार 
एक पल हंसी
दूसरे पल ऑखों में ऑसू
बडी अनिश्चित है 
यह जिंदगी 

Monday 24 January 2022

सतीश तुझमें कुछ अजीब बात थी

गिरगाॅव की आर्यन पाठशाला से देनावाडी की चाल में  कुछ खास बात थी ।
तू वहाँ से जहाँ तक पहुंचा यह कोई साधारण नहीं शानदार बात थी ।
माटुंगा का कट्टा , पोद्दार काॅलेज का अड्डा , ए बी वी  पी का
एंजेडा
स्टूडेंट पॉलिटिक्स मे तेरी ठाठ थी
सतीश तुझमें कुछ अजीब बात थी ।

जीवन बीमा को ज्वाइन करना
916 में तेरा आना
सब सीनियर के बीच अपनी एक अलग राह बनाना
ए बी एम बनने की ख्वाहिश जताना , एक अलग बात थी
सतीश तुझमें कुछ अजीब बात थी ।

जवानी में ही सफेदी सर पर लहराना
उम्र तीस की और पैंतालीस की परिपक्वता दिखाना
सबके दिल में धीरे-धीरे उतर जाना
हर एक को अपना बनाना
हर काम को प्यार से करवाना
हर क्लोंजिग में अल्पोहार खिलवाने की सौगात थी
सतीश तुझमें कुछ अजीब बात थी ।

एक हाथ में सिगरेट
एक हाथ में कलम
कोरे कागज पर श्री लिखकर
प्यार से अपने मुद्दों को समझाने की स्टाइल कमाल थी
सतीश तुझमें कुछ अजीब बात थी ।

अपनी बात बहुत समझाने पर एजेन्ट न समझे
तो हरिवंशराय बच्चन जी का तरीका अपनाना
मधुशाला को कार्यशाला बनाकर हर एक से अपने मन की बात उगलवाना
धीरे-धीरे हर घूंट के साथ उसे उसका मकसद समझाना
जीवन और जीवन बीमा के व्यापार की बारीकियों को समझा कर सही राह दिखाना
तेरा ये मोटीवेशन का तरीका लाजवाब था
एक बनिये गिरी की जगह बिजनेस में पढाई का महत्व बतलाना
उस पर अमल कर एसोसिएट बन जाना
हर ज्ञान का उपयोग कर सफलता के राह पर पहुंचने की नई रीति की शुरुआत थी
सतीश तुझमें कुछ अजीब बात थी ।

चुन - चुनकर एंजेट बनाना
हर एक के साथ अलग से समय बिताना
उसे जिंदगी का फलसफा समझाना
एक बेहतर भविष्य की कल्पना करवाना
क्वांटिटी ऑफ एजेन्ट से क्वालिटी ऑफ एजेन्ट बनाने की शुरुआत थी
भोर में पक्षियों की चहचाहट के साथ दिन का एंजेडा बनाना
जब तक लोग जागे तब तक आगे का कार्य कर जाना
ब्रांच में समय पर आकर लोकसत्ता पढते हुए आराम से बिजनेस करता हुआ दिखना
यह भी था लोगों के लिए अचंभे की बात
सतीश तुझमें कुछ अजीब बात थी ।

ट्रेनर से ट्रेनिग लेने की
एजेन्ट को प्रोफेसनल बनाने की नई शुरुआत
एक ट्रेनर का गलियों के बीच उद्देश्य समझाना
म ब ल च की गलियों के साथ कडाई से अपनी बात मनवाना
दूसरी तरफ मुरली की धुन पर सरस्वती आराधना के साथ प्यार से रिश्तों की अहमियत बताना
अपनों के लिए काम करने की प्रेरणा जगाना
दो विरोधाभास में समन्वय बनाकर अपने उद्देश्य की सफलता पा लेना
यह बहुत बडी बात थी
सतीश तुझमें कुछ अजीब बात थी ।

कम बोलना , विवादों से बचना
शांति और गंभीरता से सोचना
हर समस्या का समाधान ढूंढना
हर कार्य में तल्लीनता से जुड़ना
हर काम को चुपचाप करवा लेने की प्रथा में महारथ हासिल था
पेपरों की ट्रैफिक में एक अपनी स्पेशल लेन
बिना स्पीच देकर कम्पलीशन की गाडी समूल चलाने की नई रीति कमाल की थी
सतीश तुझमें कुछ अजीब बात थी ।

तेरे चरित्र में समय की पाबंदी
आयोजन - प्रयोजन की जिम्मेदारी (916की पूजा)
न किसी की परनिन्दा न बुराई न तकरार न बेसिर-पैर की बातें
हर किसी का आदर- सत्कार
सभी की बातों को ध्यान से सुनना
सही समय पर हास्य भरा जोक सुनाना
दोस्तों के बीच बिना अहम दोस्त बन जाना
बडे - बडे सूरमाओं में अपनी अलग पहचान बनाना
इज्जत और शोहरत की बुलंदियों पर पहुंच जाना
तेरे चरित्र की खास बात थी
सतीश तुझमें कुछ अजीब बात थी ।

सतीश तू लगता बडा सिंपल था
तेरा कार्य बडा आसान दिखता था
हर कोई तेरी नकल करना चाहता था
तेरी तरह टाॅप हीरों बनना चाहता था
तेरी सिम्पलीसिटी के पीछे की
मेहनत - लगन , गहराई - निष्ठा न जान पाए
तेरे रूप पर सब हैरान थे
सतीश तुझमें कुछ अजीब बात थी ।

तुझे समझने की थोड़ी कला मैंने भी पाई थी
तेरे नजदीक होते हुए भी अपनी एक अलग पहचान बनाई
तू नार्थ पोल तो मैं साउथ पोल
पर तेरी परछाई में ही मैंने मैग्नेटिक शक्ति पाई थी
अब मैं तुझ जैसा बन जाऊं
मन में यही चाहत बनाई है
तेरा इस तरह से जाना भी इत्तिफाक था
जाते - जाते ऐसा आलम बना गया
सबके दिलों पर छा गया
तुझमें महान होने वाली हर बात थी
सतीश तुझमें कुछ अजीब बात थी ।

ऐ दोस्त अब क्या लिखूं तेरी तारीफ में
       बडा खास है तू मेरी जिंदगी में
जिंदगी के साथ भी
            जिंदगी के बाद भी ।

मार्मिक कहानी

💡 *फ्यूज बल्ब* 🪝

हाउसिंग सोसायटी में एक बड़े अफसर रहने के लिए आए, जो हाल ही में सेवानिवृत्त (retired) हुए थे।‌ ये बड़े वाले रिटायर्ड अफसर, हैरान परेशान से, रोज शाम को सोसायटी के पार्क में टहलते हुए, अन्य लोगों को तिरस्कार भरी नज़रों से देखते और किसी से भी बात नहीं करते थे।

एक दिन एक बुज़ुर्ग के पास शाम को गुफ़्तगू के लिये बैठे और फिर लगातार बैठने लगे। उनकी वार्ता का विषय एक ही होता था - मैं इतना बड़ा अफ़सर था कि पूछो मत, यहाँ तो मैं मजबूरी में आ गया हूँ, इत्यादि इत्यादि।

और वह बुजुर्ग शांतिपूर्वक उनकी बातें सुना करते थे।

‌एक दिन जब सेवानिवृत्त अफसर की आँखों में कुछ प्रश्न , कुछ जिज्ञासा दिखी, तो बुजुर्ग ने ज्ञान दे ही डाला।

उन्होंने समझाया - आपने कभी फूज बल्ब देखे हैं ? बल्ब के फ्यूज हो जाने के बाद क्या कोई देखता है‌ कि‌ कौन बल्ब‌ किस कम्पनी का बना‌ हुआ था, कितने वाट का था, उससे कितनी रोशनी या जगमगाहट होती थी ? बल्ब के‌ फ्यूज़ होने के बाद इनमें‌‌ से कोई भी‌ बात बिलकुल ही मायने नहीं रखती। लोग ऐसे‌ बल्ब को‌ कबाड़‌ में डाल देते‌ हैं । है‌ कि नहीं ?

जब उस‌ रिटायर्ड‌ अधिकारी महोदय ने सहमति‌ में सिर‌ हिलाया‌ तो‌ बुजुर्ग बोले‌ - रिटायरमेन्ट के बाद हम सब की स्थिति भी फ्यूज बल्ब जैसी हो‌ जाती है‌। हम‌ कहां‌ काम करते थे‌, कितने‌ बड़े‌/छोटे पद पर थे‌, हमारा क्या रूतबा‌ था‌ यह‌ सब‌ कुछ भी कोई मायने‌ नहीं‌ रखता‌ ।

कुछ देर की शांति के बाद अपनी बात जारी रखते‌ हुए फिर वो बुजुर्ग‌ बोले कि मै सोसाइटी में पिछले 5 वर्ष से रहता हूं और आज तक किसी को यह नहीं बताया कि मै दो बार संसद सदस्य रह चुका हूं। वे जो वर्मा जी हैं, रेलवे के महाप्रबंधक थे। वे सिंह साहब सेना में ब्रिगेडियर थे। वो मेहरा जी इसरो में चीफ थे। ये बात भी उन्होंने किसी को नहीं बतायी है, मुझे भी नहीं, पर मैं जानता हूँ ।

सारे फ्यूज़ बल्ब करीब - करीब एक जैसे ही हो जाते हैं, चाहे जीरो वाट का हो 40, 60, 100 वाट, हेलोजन या फ्लड-लाइट का हो‌, कोई रोशनी नहीं‌, कोई उपयोगिता नहीं; यह बात आप जिस दिन समझ लेंगे, आप शांतिपूर्ण तरीके से समाज में रह सकेंगे।

उगते सूर्य को जल चढा कर सभी पूजा करते हैं पर डूबते सूरज की कोई पूजा नहीं‌ करता‌। यह बात जितनी जल्दी समझ में आ जाएगी, उतनी जल्दी जिन्दगी आसान हो जाएगी।

कुछ लोग अपने पद को लेकर इतने वहम में होते‌ हैं‌ कि‌ रिटायरमेन्ट के बाद भी‌ उनसे‌ अपने अच्छे‌ दिन भुलाये नहीं भूलते। वे अपने घर के आगे‌ नेम प्लेट लगाते‌ हैं - .......

सक्सेना/गुर्जर/मीणा/गुप्ता/मेघवाल/चौधरी, रिटायर्ड आइ.ए.एस‌....... सिंह ...... रिटायर्ड जज‌ आदि - आदि।

ये‌ रिटायर्ड IAS‌/RAS/sdm/तहसीलदार/पटवारी/बाबू/प्रोफेसर/प्रिंसिपल/अध्यापक अब कौन सा‌ पद है भाई ? माना‌ कि‌ आप बहुत बड़े‌ आफिसर थे‌, बहुत काबिल भी थे‌, पूरे महकमे में आपकी तूती बोलती‌ थी‌ पर अब क्या?

अब तो‌ आप फ्यूज बल्ब ही तो‌ हैं‌।
यह बात कोई मायने‌ नहीं रखती‌ कि‌ आप किस विभाग में थे‌, कितने‌ बड़े‌ पद पर थे‌, कितने‌ मेडल‌ आपने‌ जीते‌ हैं‌

अगर‌ कोई बात मायने‌ रखती है‌ तो वह‌ यह है कि

आप इंसान कैसे‌ है‌?
आपने‌ कितनी जिन्दगी‌ को छुआ है‌ ?
आपने आम लोगों को कितनी तवज्जो दी
पद पर रहते हुए कितनी मदद की
समाज को क्या दिया?
ज़रूरतमंद व अपने समाज के गरीब लोगों से कैसे रिश्ता/व्यवहार रखा?

लोग आपसे‌ डरते‌ थे‌ कि‌ आपका सम्मान करते‌ थे ?

अगर‌ लोग आपसे डरते थे‌ तो‌ आपके‌ पद से हटते ही उनका वह‌ डर हमेशा के‌ लिए खत्म हो जाएगा।

पर अगर लोग आप का सम्मान करते हैं तो‌

यह‌ सम्मान‌ आपके पद विहीन‌ होने‌ पर भी कायम रहेगा‌। आप मरने के बाद भी उनकी यादों में, उनके दिलों में जिन्दा रह सकते हैं।

हमेशा याद रखिए

बड़ा अधिकारी‌/कर्मचारी बनना बड़ी बात नहीं‌, बड़ा‌ इंसान‌ बनना‌ बड़ी‌ बात जरूर है।
      बड़ा दिल रखिए। सदा उदार बनिए । किसी की मदद का कोई मौका मत चूकिए। कोई भेदभाव नहीं ।सब अपने ही है। इंसान बड़ा बनता है अपने कर्मो से न कि पैसे रुतबे से। यह विचारणीय है। .
COPY PASTE
🌷🌷🌹🌹🙏🙏✍️✍️

हरियाली अम्मा











हरियाली अम्मा -- मेरी लिखी कहानी संग्रह की पहली कहानी

कृष्णा बाई उनका नाम है पर लोग उन्हें जानते हैं हरियाली अम्मा के नाम से  । सांवली सलोनी कृष्णा का हरियाली  से ऐसा नाता जुड़ा कि वह उनकी पहचान बन  गया  
बहुत लंबी कहानी है  इस नाम  के पीछे। चलिए अतीत की सैर करते हैं और वास्तविकता जानने की कोशिश करते हैं छोटी उम्र में ही कृष्णा का ब्याह हो गया था यौवन की दहलीज पर  अभी कदम रखा ही था कि घर वालों ने ब्याह की रट लगा दी तब बाल विवाह होते थे भले ही बाल मन को समझ में न आता हो  कि विवाह का मतलब क्या होता है एक अच्छे मध्यम वर्ग में खानदान और खेती बाड़ी तथा  लड़के के पिता का रसूख देख उनकी शादी कर दी गई ।शादी के 5 साल बाद उन्हें गवना करा कर ससुराल वाले ले गए ।बड़ा परिवार और खाता पीता मध्यमवर्गीय ।
कृष्णा बड़ी बहू थी उस पर दुलारी।घर की दुल्हन बन डोलती रहती सब प्यार लुटाते थे उसका पति कैलाश तो उसका मुख देखे ही बैठा रहता कोठरी से बाहर ही नहीं निकलता
जब बाहर से दादी आवाज देती
राधा जी के महलियाॅ का किवार कब खुली अव श्याम जी कब दर्शन दिहै ।
तब चुपके से  सर पर गमछा लपेटे कोठी से बाहर निकल खेतों की ओर निकल जाता दरवाजे पर गाय बैल बांधे  रहते थे चारा भूसी करना , अनाज पीसना - कूटना यह सब काम रहता और सब मिलकर करते। सुबह होते ही वह बुहारना - लीपना और रसोई की तैयारी ।मर्द खेत का  और बाहर का काम औरतें घर के भीतर का काम करती संयुक्त परिवार होते थे सबका गुजारा हो जाता था आलसी और निकम्मो का भी । विधवा - बूढो का भी । सबका  बराबर का हक रहता था मालिक की तो हालत सबसे बेचारे की होती थी वह अपनापा  नहीं कर सकता था पहले सब परिवार को देखना फिर अपना परिवार। शादी ब्याह जन्म मरण सब ऐसे ही निपटते थे ।
       शिक्षा प्रवेश  कर रही थी उसके साथ व्यक्तिवाद भी पनपने लगा था चचिया ससुर का बेटा फौज में भर्ती हो गया था कमाई आ रही थी उसके साथ अलगाव की भावना भी आ रही थी आखिर  झगड़े टंटे के कारण परिवार अलग हो गया दोनों ससुर अलग अलग हो गए। खेती-बाड़ी बंट गई ।कृष्णा का पति कैलाश तो मनमौजी ही था पिता और छोटा भाई मेहनत करते थे फसल होती थी पर कितनी ??
और तो और खाने भर का साल भर का अनाज इकट्ठा करना होता है घर चलाने के लिए दूसरी तो कोई आमदनी नहीं उपर से प्रकृति का प्रकोप हुआ तब तो और भी मुसीबत ।बीड़ी तंबाकू कपड़े का प्रबंध उसी में से करना पड़ता है फिर भी बीमारी हारी भी तो देखा जाए तो कहने को खेती और अन्नदाता पर सारी जिंदगी परेशानी रहता है जुगाड़ करता रहता है।
कृष्णा की शादी को 5 साल बीत गए थे विवाह का नशा अब गायब हो चुका था बच्चा नहीं हुआ था अब तो लोग ताना देने लगे थे कैलाश पर तो दूसरी शादी के लिए जोर डालने लगे थे आखिरकार बाद में चचेरी बहन से शादी के लिए हां करवाई गई ।छोटी बहन है आदर सम्मान भी देगी उसके जो बच्चे होंगे उनकी तो मौसी भी रहेगी और बड़ी माॅ भी । औरत सब सह सकती है पर  सौतन को स्वीकार करना इतना आसान नहीं होता ।कृष्णा ने छाती पर पत्थर रख और विधि का विधान मानकर सब स्वीकार कर लिया रिश्ते की छोटी बहन शादी कराई थी अब उससे भी क्या गिला शिकवा ।कुछ दिन तो ठीक चला फिर उसके भी तेवर बदलने लगे कैलाश ने तो मुंह फेर लिया था छोटी मां बनने वाली थी उसका बहुत ख्याल रखती थी जैसे वही बच्चा जानने वाली हो इतना खुश रहती जैसे वहीं माँ हो।पहलौठा बेटा  हुआ ।साल भर भी नहीं बीता था जच्चा बच्चा का जतन करना है उसके तेल मालिश खाना पीना सब का ख्याल रखती ।अब छोटी झगड़ा भी करने लगी थी कभी कैलाश  से कहने की कोशिश करती 
तो कहता दुधारू गाय की चार लात  भली। और चला जाता 
बच्चा चलने लगा था उसको हाथ भी नहीं लगाने देती थी एक बार बच्चा खेलते खेलते गिर गया उठा रही थी कि ऑगन में आकर छोटी चिल्लाने लगी अब तो बच्चे पर निकालती है गुस्सा। ढकेल दिया होगा ।
कृष्णा के उठाते हाथ वहीं रूक गए ।आंखों में आंसू आ गए। ऐसा हर दिन हो रहा था उसकी हैसियत नौकरानी से भी बदतर हो गई थी समझ नहीं आता कि क्या करें एक शाम को ही दूर के रिश्ते के देवर आए ।मजाक तो चलता ही रहता है इस रिश्ते में । भौजाई को देख कर बोले 'भौजी  तो क्या गजब की लग रही है तू ऐसे क्यों उखड़ा रहता है उनसे। तब कैलाश ने उत्तर दिया था वह सुन उनका कलेजा चीर गया था ।
कौन फायदा ऐसे हुस्न का पेड़ हरा भरा रहे और फल न दे तो उसका क्या करेंगे ।वह तो ठूंठ ही  है ना ।
यह कटाक्ष कृष्णा पर था ।रात भर सोई नहीं भोर होते ही निकल गई ।बगीचे की से तरफ घास फूस और बांस लेकर आई ।कोठी के बाहर ही मडैया डाल दी और रहने लगी। प्रण ले लिया था अब घर में कदम नहीं रखेगी भाई पटीदार आए मनाने परवाह नहीं मानी । एक चूल्हा और दो चार बर्तन यही उनकी जमा पूंजी ।खाने का इंतजाम तो हो ही जाता किसी का कुछ कर देती है काम या फिर फसल काटी। या फिर ज्यादा सब्जी हो गई वह तो कोई समस्या नहीं ।एक जीव कितना खाएं । फिर गांव में एक के घर लौकी नेनुआ  हुआ तो तो आस-पड़ोस के  सब खाते हैं। भैस बिआई तो दूध माठा भी मिल ही जाता है।
गांव के पास तालाब था निर्जन वहां कोई नहाने वगैरा नहीं जाता था हां सुबह शाम नित्यक्रम से निर्मित होने के लिए किनारे पर जाते थे या गाय भैंस को नहलाने  के लिए। आसपास काफी जमीन थी उसका कोई उपयोग नहीं करता था मौसम में आम जामुन कटहल बेल महुआ आदि के फल होते थे लोग फल खाकर बीज यहाँ - वहाँ या घूरे पर फेंक देते। कृष्णा उन बीजों को इकट्ठा करती और तालाब के पास वाली जमीन पर जाकर लगाती ।उनमें तालाब से घड़ा भर कर पानी से सींचती ।
बरगद पीपल  पाकड जो अपने आप ही कहीं भी उग आते हैं उनको भी ले जाती पशुओं से बचाती । पहले तो सब हंसते थे पर अब  उनको बीज वगैरह भी किसी को मिलते तो देख कर आते। तालाब के किनारे और आसपास पेड ही पेड़ ।हरे भरे पेड़ झूमते रहते थे समय के साथ वह बड़े हुए ।
फलने फूलने पर लगे निर्जन जगह अब गुंजायमान हो रही थी बच्चे खेलने और फल खाने के लिए जाने लगे बड़े-बड़े विश्राम करने के लिए।
बात चलती है तो हंस कर कहते हैं अरे हमारे गांव की हरियाली अम्मा है ना सब उनकी बदौलत है कृष्णा बाई से  इस तरह की अम्मा बन गई पता ही नहीं चला ।सरकार मुहिम छेड़ रही  थी ।बहुगुणा जी का चिपको आंदोलन अखबारों की सुर्खियां बन रहा था। लोग जागरूक हो रहे थे जंगल नहीं रहा तो हम कैसे  ??
यह बात  सब अभी समझ रहे थे हरियाली मां को सभा पंचायतों में बुलाया जाने लगा उनके कार्य की प्रशंसा गांव से निकलकर आस-पास के गांव तक पहुंची थी उनके गांव का दौरा पर्यावरण मंत्री करने वाले थे स्वागत की तैयारी चल रही थी ।उन्हें सम्मानित करने वाले थे।
वह अपनी झोपड़ी में बैठी हुई थी सोच रही थी जिस पेड  के माध्यम से उन्हें ताना मारा गया था आज वही पेड़ ने उन्हें इस मुकाम पर लाकर  खड़ा कर दिया है संतान न सही  ।पेड़ो को ही अपनी संतान समझकर  उन्हे रोपने वाली सींचने वाली कृष्णा की वे पहचान बन गए ।बच्चे के नाम से उसकी अम्मा भले ना कहलवाई पर पेड़ जैसी संतान ने उन्हें हरियाली अम्मा बना दिया वह किसी एक या दो कि नहीं सैकड़ों की अम्मा बन गई ।उनके संतान धोखा भी नहीं देने वाली बल्कि सबको निस्वार्थ कुछ ना कुछ देगी ही वह भले ही संसार में ना रहे उनके बेटे बाद भी रहेंगे ।
अचानक बाहर शोर-गुल सुनाई पड़ा ।
हरियाली अम्मा हरियाली अम्मा की गुहार लोक लगा रहे थे
         झोपड़ी से बाहर आई तो गांव के लोगों का हुजूम खड़ा था मंत्री हाथ में माला लेकर खड़े थे प्रधान जी उनका परिचय करा रहे थेमंत्रीजी ने फूलों की माला उनके गले में डाली और चरण स्पर्श को झुक गए।
कह रहे थे कि जनता और समाज की सेवा करना हमारा कर्तव्य है पर आपने जो निस्वार्थ सेवा की है और पेड़ों के साथ-साथ एक गांव के लोगों को जो नया जीवन दिया है उसे तो यह लोग कभी नहीं भूलेंगे कभी नहीं भूलेंगे। हरियाली अम्मा जिंदाबाद जिंदाबाद के नारे लग रहे थे।
     उनकी दृष्टि भीड़ में सबसे आगे खडे कैलाश और छोटी पर गई ।
हाथ जोड़कर खड़े थे मानो कह रहे थे 
कि संतान न हो इसका मतलब औरत का जीवन बेकार है उसमें मानवता नहीं है ममता नहीं है।
यह सोचना संपूर्ण नारी जाति का अपमान है हमें माफ कर दो।उन्होंने देखा मुस्कुरा दिया 
मानो कह रही थी आभारी हूं जो मुझे इस मुकाम पर पहुंचाया है 
त्री जी शाल  ओढा रहे थे  और वह अपने कांपते हाथों से संभाल रही थी । तालियां बज रही थी  रुकने का नाम ही नहीं ले रही  थी 
हरियाली अम्मा 
हरियाली अम्मा की गूंज
जिंदाबाद जिंदाबाद 

             लेखिका  -- आशा सिंह 





खुशबू

खुशबू की खुशबू
सुष्मिता का स्मित हास्य
यह सदा कायम रहें
अपार खुशियाँ मिलें
हंसती - खिलखिलाती यह जोड़ी संतोष से रहें
सुख - शांति  और समृद्धि का वास रहें
सालोसाल यह साथ रहें
हंसते - मुस्कराने
लडते- झगड़ने
रूठते - मनाने का यह सिलसिला  चलता रहें
हर मौसम सदाबहार  हो
बरखा , ठंडी  , गर्मी सब लाजवाब  हो
हर साल कुछ  नया हो
हर दिन कुछ खास हो
शादी की हर सालगिरह शानदार  हो
    बहुत- बहुत  शुभकामना
              तहे दिल से

बच्चे

बच्चे तो बच्चे ही होते हैं
वे क्या जाने अपना अच्छा - बुरा
उनको क्यों हो भविष्य की चिंता
पढने से क्या मिलने वाला

यह बात आज समाज न आने वाली

जब उनके भी बच्चे हो जाएंगे 

वे पापा बन जाएंगे

तब ही पता चलेगा

तब समय पर छोड़ दो

अपना काम करों 

शीतल

एक दुबली पतली लडकी
चश्मा लगाए हुए
साधारण सी
ऐसी कुछ खास बात तो नहीं
पर जाने क्यों अपनापन लगता है
सालों से परिचय 
पर देखा जाए तो यह साधारण नहीं
आज चश्मा हट गया है
और निखार आ गया है
जिम्मेदारियो का भार खत्म हो गया है
उम्र से पहले बडी हो गई
माँ जो चली गई असमय
भाई बहनों की जिम्मेदारी
ननद देवर की जिम्मेदारी
सास श्वसुर की जिम्मेदारी
अकेलेपन को झेल रहे  पिता की जिम्मेदारी
बखूबी निभाया
कभी शिकन न आने दी
न शिकन न शिकायत
उस शख्स का नाम है शीतल
आज स्वयं को देख कर लगता है
हमें तो इससे सीखना चाहिए
हम तो घबरा जाते हैं
उम्र में भले बडे हो गए हो
पर कभी-कभी छोटे बाजी मार ले जाते हैं
धीरता और समझदारी
अंजाने को भी अपना बनाना
इसमें शायद योगदान संजय जैसे जीवनसाथी का भी हो
मजबूत बनता है इंसान तब
जब उसके साथ सुरक्षा कवच हो
तब शीतलता भी कायम रहती है
और आत्मविश्वास भी
तभी तो सभी के लिए शीतल है अनमोल

ह्रदय स्पर्शी शब्द

●|| ह्रदयस्पर्शी शब्द  ||●
~~~~~~~~~

जब  तक  चलेगी जिंदगी की सांसे,
कहीं  प्यार  कहीं टकराव मिलेगा ।
कहीं  बनेंगे  संबंध  अंतर्मन  से  तो,
कहीं आत्मीयता का अभाव मिलेगा

कहीं  मिलेगी  जिंदगी में प्रशंसा तो,
कहीं नाराजगियों का बहाव मिलेगा
कहीं  मिलेगी सच्चे मन से दुआ तो,
कहीं  भावनाओं में दुर्भाव मिलेगा ।

कहीं बनेंगे पराए रिश्तें भी अपने तो
कहीं अपनों से ही खिंचाव मिलेगा ।
कहीं  होगी  खुशामदें  चेहरे  पर तो,
कहीं पीठ पे बुराई का घाव मिलेगा।

तू  चलाचल  राही अपने कर्मपथ पे,
जैसा तेरा भाव वैसा प्रभाव मिलेगा।
रख स्वभाव में शुद्धता का 'स्पर्श' तू,
अवश्य  जिंदगी का पड़ाव मिलेगा । 🌹🌹🌹

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स्कूल की यादे

आज बैठे हुए सोच रही थी
पच्चीस वर्ष बीत गए
कैसे और किस तरह
मन हल्का हो रहा है
जिम्मेदारी से मुक्त
पर कहीं कसक भी
यह लोग फिर नहीं मिलेंगे
यह अपनापन ,आदर कौन देगा?
विद्यालय मे कदम रखते ही
गुड मार्निंग शुरू
राजकुमार का सलाम ठोकना
श्याम का प्यारी मुस्कान के साथ नमस्ते
कुछ काम है क्या ,मैं कर दूंगा
लीना का चिल्ला कर बुलाना
क्या है सिंग देखती नहीं
नीलिमा का प्यार से पूछना
कैसे है आप ,आओ बैठो
विजया का हंस कर सुप्रभात बोलना
जुमाना का आकर बैग ले लेना
मुग्धा का बोलना
हाथी चला गया ,पूंछ बाकी है
प्रियम का स्कूटर पर बिठाना
कुरेशी का अरे मिस कहना
वासुदेव का टेक्सी से छोड़ना
प्राजक्ता का हर रोज गुड मार्निग
रीना का आ पास खड़े हो पूछना
सुप्रिया का आप
आराम से बैठो कहना
राँबिन का हँसकर बोलना
सेलीना का दिया आदर
मेरे पानी की बोतल भर कर रखना
टेरेसा तो मेरी आवाज बनी
नीलिमा का पास आकर गुड मॉर्निंग
क्रांति को बेझिझक काम बताना
श्वेता की सांत्वना
सब पोग्राम ठीक होगा
मदुरा को कहना-ठीक से पेपर देखना
सीमा से सलाह लेना
संगीता से हर चीज बेझिझक मांगना
आरवा का मुस्कराना
अनघा का मुझे छोड़ दो कहना
रेणुका से अपनत्व
कलिका का मन की बात बताना
शुंभागी का अल्हड़पन
काय ह्यांना समझव
सोनिया से अपनी समस्या शेयर करना
प्रतीक्षा का मेरा सब्जी का थैला लेना
शीतल तो मेरी सांस की साथी
अंजू मेरी दोस्त ,नोकझोंक उससे
हेमांगी की सलाह ध्यान रखिए
और सबसे बड़ी बात
मिसेज़ केदारी का सर्पोट
प्रेम से डाटना
क्यों चिंता करते हैं आप
अकेले नहीं जाना है
गाडी से नहीं तो किसी को भेजती हूँ ,सब अच्छा चल रहा है
यह तो अभी के साथी
पर कुछ साथ नहीं है
चारू ,जठार ,मिसेज़ जोग ,मिस वैगणकर ,जाधव बाई ,मिसेज़ शिराली ,मिसेज तांबावाला
मैडम त्रिभुवन ,एंड्र्यूज,मसीह ,परेरा
इन सबकी आभारी
पमीता ,डेंगरा ,नम्रता का भी
जिन्होंने काम को आसान किया
इन सबकी कहीं न कहीं कर्जदार हूँ
प्रेम की अपने पन की ,सम्मान की
मुश्किल घडी मे साथ की
तभी तो यह पच्चीस वर्ष हल्का लग रहा है जाते समय
पर भारी प्रेम मैं
यह फिर कभी और कहीं नहीं मिलेगा
शुक्रिया सभी दोस्तों का
    तुम कहीं भी रहो
    हम कहीं भी रहे
    हम न भूलेंगे तुमको
    यादोँ में रहोगे
    जब जब मुश्किल आएगी
    सोचूंगी
काश   !  मेरे साथी मेरे साथ होते
यह तो थोड़े मे लिखा इशारा है
बाकी सब आपको समझना है
ज्यादा नहीं थोड़ा ही सही
आप मुझ पर भारी है

लोगों का ईशारा है इन चुनावों मे

सत्ता का रणसंग्राम है         
                                 लोगों का ईशारा है
चुनाव तो एक बहाना है
हार - जीत तो इसका खेल हैं
यह राजनीति का अभिन्न अंग है
जनता चेता रही
बस विकास चाहिए
और कुछ नहीं
जाति -धर्म के बंधनों से मुक्त हो आगे बढ़ना है
बेरोजगारी को दूर कर
रोजगार लाना है
रोजी रोटी की जरूरत
सुरक्षा की दरकार
भाषण और जुमला नहीं
यह जनतंत्र है
किसी की बपौती नहीं
अन्नदाता का सम्मान हो
जमीन से जुड़े रहना है
विदेश में भटकने से पहले
देश को मजबूत बनाना है
किसी को खत्म नहीं करना है
सबके साथ चलना है
किसी पार्टी से मुक्त नहीं
बल्कि सब पार्टियों को साथ लेकर चलना है
बोल अच्छे बोलना है
कडवा बोल और किसी को कोसना
यह जनता को पसंद नहीं
जनता काम चाहती है
बड़बोलापन नहीं
वह किसी एक की नहीं
आज इसकी तो कल उसकी
उस पर आँख मूंद कर भरोसा नहीं
वह कब किसको रवाना कर दे
सत्ता से बेदखल कर दे
इसकी घोषणा तो कोई नहीं कर सकता

रंग बिना जीवन नहीं

रंग जीवन मे न हो तो
जिंदगी बदरंग
रंग ही जिंदगी को रंगीन बनाता
रंग तो भिन्न भिन्न
अलग अलग प्रकार के
लाल ,पीला ,नीला ,गुलाबी
सब मिल जाय तो
फिर क्या कहना
हर रंग का अपना महत्व
उसकी अपनी अहमियत
उस पर प्यार का रंग हो तो
जीवन आराम से गुजर जाता है
रंगों से घर सजता है
प्यार से व्यक्ति की दूनिया ही
सज संवर जाती है
वह सबसे सौभाग्यशाली बन जाता है
प्यार के भिन्न भिन्न रूप
हर रूप लाजवाब
तभी तो जीने का असली आंनद पता चलता है
त्याग करने मे भी सुख है
अपनो के लिए जीना
अपनों के साथ जीना
रंग भरा संसार
वह तो अमूल्य निधि
जीवन मे रंग भरने के लिए न जाने क्या क्या उपाय
फिर वह त्योहार हो या और कुछ
आंनद के रंग मे सराबोर होने के लिए
बहाना ढूंढा जाता है
बहार भरना है जिंदगी मे
तब रंगों से लबरेज़ रहे
लबालब प्यार के रंग मे डूबे रहे
संग है तो रंग है
रंग है तो जीवन है
रंगों से जीवन मे खुशी बिखेरते रहे
सबको खुशियों के रंग रंगतें रहे
जीवन खुशहाल बनाते रहे
तब जिंदगी भी मुस्कराएगी
प्यार के रंग बिखेरेंगी

ईश्वर की कृपा

ईश्वर की कृपा जीवन में कब कब बरसी

इसका हिसाब  किताब  लगाया

तब कृपा भारी पडी

बहुत कुछ दिया है

जिस लायक हम नहीं थे वह भी

शुक्रिया  तो कर नहीं सकते

बस नमन है

ऐसी ही कृपा बरसती रहे ।

लगता है अजनबीपन

सब कुछ था वहाँ
मन का सुकून नहीं था
एक घुटन सी होती थी
अंदर ही अंदर मन मसोसकर रह जाती
क्यों खुशी नहीं मिलती
हर वक्त उदासी का छाना
तब ऐसा लगा
अब यहाँ से हट जाना
क्यों होता है ऐसा
जब कुछ लगता है पराया
नहीं लगता है अपना
जबकि सब अपने ही
सब अजीज हैं
मुझे जान से प्यारे हैं
उनकी हर चोट लगती मेरी चोट
उनका दुख - दर्द
लगता मेरा अपना
हर वक्त उनकी सलामती की दुआ
यही मांगती हूँ मैं हमेशा
तब इस मन का क्या करें
क्यों विचलित होता है
कहीं न कहीं कोई तो कमी है
संबंधों में कुछ तो दुरावट है
ऊपर से कुछ
अंदर से कुछ
जो है वह दिखता नहीं
जो नहीं है वह दिखता है
क्यों नजदीकीयां बस रही है दिखावे की
जबकि मन से पास - पास
एक का कांटा लगा
दूसरे को चुभता है
फिर भी वह गर्माहट नहीं
तभी होता है
लगता है अजनबीपन

हरि बोल ,मन के ताले खोल

आज जन्मदिन है कन्हैया का
माता यशोदा के लल्ला का
सुदर्शन चक्र धारी का
मुरलीधर और कालिया नाग नथैया का
गोपियों के कान्हा और राधा के मोहन का
महाभारत मे अर्जुन को गीता का उपदेश देने वाले  योगेश्वर कृष्ण का
विराटरूप धारी भगवान वासुदेव का
द्रौपदी की लाज बचाने वाले सखा का
भीषण की प्रतिज्ञा का मान रखने वाले भगवान का
विदुर घर साग खाने वाले कृष्ण का
ग्वाल बालों संग गैया चराने वाले गोपाल का
बहन सुभद्रा और बलराम के भाई का
देवकी और वासुदेव के पुत्र
मथुरा के राजा का कृष्ण का
पांडवों के सखा और कुंती के भतीजे का
गिरिराज पर्वत को धारण करनेवाले गिरिधर का
और हर हिन्दू के मन मे बसने वाले श्याम सुंदर का
राधा के संग विराजते श्याम की
श्यामा संग रास रचाते
मनमोहिनी छवि के स्वामी हमारे पालनहार का
खुशियों की बरसात है
जन्माष्टमी का त्योहार है
झूम रहा है जग
राधा मोहन संग
हो जाये सब कृष्ण भक्त मे सराबोर
गाए नाचे आंनद मनाए
बोलते रहे
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
  ...हरि बोल  हरि हरि बोल

जख्म

जख्म बहुत गहरा था
उपचार करते कितना समय बीत गया
अच्छा भी हो चला था
पर फिर उसको कुरेद देती
सूखता हुआ घाव फिर हरा हो जाता
पर क्या करती
आदत से मजबूर
थोड़ी भी कुलबुलाहट सहन नहीं
यह भी डर कि कही गेंग्रीन न हो जाय
यह तो छोटा सा शारीरक घाव है
पता नहीं मन कितना घायल है
हम उस घाव को लेकर बरसों ढोते रहते हैं
समय समय पर याद करते रहते हैं
जीवन की मुस्कान गायब कर डालते हैं
यही सोचकर
हमारे साथ ऐसा हुआ
फलाने ने ऐसा किया या कहा
फलाना ढिमाके को तो कुछ याद नहीं
वह तो बोलकर भूल गया
पर हम नहीं भूले
अपनी जिंदगी झंड बना रखी
ऐसे जीवन मे हर वक्त होता है
कभी कभी जखमों को ढोते
मानसिक रोगी बन जाते हैं
जबकि जख्म देने वाले को भूल जाना चाहिए
चाहे वह अपने हो या बेगाने
हमारी जिंदगी हमारी है
सोच भी हमारी है
उस पर किसी को हावी नहीं होने देना है

Saturday 22 January 2022

परिणाम की मत सोचे

जिंदगी जंग है
जंग होगी तब हार - जीत भी होनी है
सब नहीं जीत सकते
प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं 
जीतने वाला तो एक ही होगा
तो क्या कम्पीटिशन करना छोड़ दे
यह सोच कर कि
इसका क्या फायदा
हार के डर से  हार जाएं 
हर दिन हर पल
जिंदगी का जंग लडना पडता है
बडी लंबी लडाई है
जो ताउम्र चलती है
कभी हार कभी जीत 
हासिल होती रहती है
किसी एक या दो हार से
यह बदल नहीं जाती
हौसला रखना पडता है
डर जाएं 
मर जाएं 
यह तो बहुत आसान रास्ता है
पर इसका मतलब 
आप योद्धा नहीं हैं 
कायर है
परिस्थितियों का सामना करने की क्षमता नहीं है
पशु भी संघर्ष करता है
जीने के लिए 
आप तो मानव है
हार मानना 
मैदान छोड़ देना
यह जायज नहीं 
जंग लडे पूरी शिद्दत से
परिणाम की मत सोचे

Friday 21 January 2022

जाति और चुनाव

सर नेम बदल ली
हरिजन और दलित हो गए
निर्मल , परदेशी  , पासवान , वर्मा  ,भारती 
और न जाने क्या- क्या
अब धोबी , चमार,  कुम्हार  , लोहार नहीं रहे
सबने अपने सर नेम बदल लिए
अच्छा  - अच्छा रख लिया
लेकिन उससे क्या फर्क पडा
जब तक कि मानसिकता न बदले
हिंदू की तो छोड़ दे
जहाँ जाति नहीं हैं 
वहाँ भी यही मानसिकता 
कन्वर्ट  हुए हैं 
तब उसकी जडे खत्म कैसे होगी
तब तक 
जब तक कि रोटी - बेटी का नाता न बने
एक दिन किसी दलित के यहाँ भोजन करने से
सब बदल नहीं जाएगा 
यह दिखाने से कि हम तो उच्च जाति के होकर भी दलित के यहाँ भोजन कर रहे हैं 
उच्च जाति भी कम परेशान नहीं हैं 
आज ब्राह्मण और ठाकुर का हाल जग-जाहिर है
जाति आधारित ऊपर से चुनाव की गर्म हवा
हमारे जाति प्रधान देश को और गरम कर देता है
सब अपने-अपने खोल से बाहर आ जातियों का हवाला देने लगते हैं 
वोट मांगने लगते हैं 
विकास मुंह देखता रह जाता है 
जाति बाजी मार ले जाती है
यह खत्म होने की तो छोड़ दो
बढता ही जा रहा है
नए-नए कलेवर में आ झलक दिखला रहा है
लोगों को लुभा रहा है
जब तक नेता तब तक चुनाव 
इन सबके बीच जाति का वर्चस्व 
यही सच भारत का ।

अनमोल

किसी के कारण किसी का काम नहीं रूकता
जो होना है वह होगा ही
माता-पिता न हो 
तब भी बच्चे पल ही जाते हैं 
घर न हो तब भी फुटपाथ पर बडे हो जाते हैं 
पर उस तरह पलना और बडा होना
यह तो दुर्भाग्य है
माॅ - बाप का साया आसमान की तरह होता है
वह अमीर हो या गरीब 
इससे फर्क नहीं पडता
हर बच्चा उसका राजकुमार और राजकुमारी होता है
घर उसका महल होता है चाहे कैसा भी हो
एक बादशाहत में जीना
कितना अच्छा लगता है 
माता - पिता की गोद 
सिंहासन से कम नहीं 
सब उसके सामने फीके
तब माँ- बाप को दोष मत दो
कोसों मत
जैसे भी तुम्हारा पालन - पोषण किया हो
अपनी तरफ से कोई कसर नहीं रखी होगी
हर व्यक्ति की हैसियत और औकात अलग-अलग 
पर अपने घर का वह बहुत अनमोल 

मैं बुद्ध नहीं होना चाहता

मैं बुद्ध नहीं होना चाहता
भगवान नहीं बनना चाहता
मुझे बोधि ज्ञान की प्राप्ति न हो 
कोई बात नहीं 
मैं साधारण मानव ही रहना चाहता हूँ 
मैं अपनी पत्नी और बच्चे को नहीं छोड़ना चाहता
न मैं घर - परिवार को
न इस संसार को
मृत्यु अटल सत्य है
यह पता है मुझे 
लेकिन जब तक जीवन है
अपनों के लिए कुछ करना है
वे मेरी जिम्मेदारी है
मेरा कर्तव्य है
उनके लिए जो त्याग करना होगा 
वह करूंगा
पर उनका त्याग कदापि नहीं 
स्वर्ग को किसने देखा है
अपेक्षा भी नहीं है
मेरा स्वर्ग यही मेरा घर है
उसका सुख मुझे परिवार के साथ में हैं 
मानव हूँ मानव ही बना रहूँ 
ईश्वर बनना नहीं है
महान बनने की चाह भी नहीं है
बस घर - परिवार के साथ रहना
इससे ज्यादा नहीं कुछ कहना

Thursday 20 January 2022

पौ पौ पौ

पौ पौ पौ 
जारी है अनवरत
हार्न बज रहा है
यहाँ कोई अपनी मर्जी से नहीं  खडा है
लाल सिग्नल है जब हरा होगा
तभी गाडी आगे जाएंगी 
कोई कितना भी शोर मचा ले
जब उसका समय होगा तभी 

जिंदगी में भी जो काम जिस समय होना है
तभी होगा
किस्मत में जो लिखा होगा
कोई कितना भी चिल्ला ले
प्रयास कर ले 
बिना समय के नहीं 
वह फिर शादी - ब्याह हो
या और कुछ 
समय से पहले कुछ नहीं 
जल्दबाजी नहीं करनी है
नहीं तो दुर्घटना हो सकती है
लाल और हरा सिग्नल 
वही ऊपर वाला देगा
समय आएगा 
बस यह विश्वास और भरोसा हो 

समस्या क्या ???

कोई समस्या नहीं 
कितना अच्छा लगता है
यह कहना भी
यह सुनना भी
हाँ लेकिन यह संभव है क्या ??
समस्या तो हर किसी के पास
उसके रूप अलग-अलग हो सकते हैं 
यह बात भी दिगर है
एक की जो समस्या है
दूसरे के लिए नहीं हो
वह तो अपना स्वभाव 
अपनी जिंदगी 
अपना देखने का नजरिया 
समस्या न हो तो समाधान भी नहीं 
समाधान नहीं तो विकास भी नहीं 
समस्या है तभी तो हल करने का प्रयास 
पैसा नहीं है तभी कमाने का ध्येय
जो कुछ नहीं है पास
वह सब पाने की चाहत
शिक्षा,  संपत्ति,  मान - सम्मान 
कभी-कभी प्राकृतिक विपदा भी 
कभी-कभी भाग्य का लिखा भी
वह तो होना ही है
उसका हल ढूढता व्यक्ति 
ताउम्र क्रियारत 
तब तो कह सकते हैं 
जिसको कोई समस्या नहीं 
वह स्वयं एक समस्या है 

Wednesday 19 January 2022

जिंदगी चाय सी होनी चाहिए

जिंदगी चाय सी होनी चाहिए 
हर रूप में पसंद आनी चाहिए 
कभी काली कलूटी
कभी नींबू के साथ लाल - लाल
कभी चीनी के साथ 
कुछ फीकी कुछ ज्यादा ही मीठी
कभी दूध के साथ कडाकेदर 
कभी मलाई मार कर
कभी अदरक और इलायची की खुशबू के साथ
कभी तुलसी और दालचीनी - काली मिर्च के स्वाद के साथ
एक ही रूप नहीं 
हर रूप में रहती लाजवाब 
रात हो या दिन
हर दम निभाती साथ 
हर हाल में ढल जाती
हर रूप में निखर आती
उबाल आ जाता तो बुझ जाती
बासी होता तो फेंक दी जाती
नए बरतन में फिर बन जाती
कभी ठंड कभी गर्म 
कभी दोस्तों की शान
कभी अकेलेपन की आन
कभी प्याले में कम कभी ज्यादा 
कभी लेती प्लेट का सहारा
चुस्कियां लेते ही मन हो जाता तरंगित
सर दर्द  , गला दर्द  चुटकियों में छूमंतर
हर मर्ज की दवा 
आलस दूर भागती
काम मे लगाती 
सबसे जोड़ती
न कोई भेदभाव 
हर दिल की अजीज
तब क्यों न हो जिंदगी चाय सी 

संतान

संतान तो संतान है
वो बेटा हो बेटी हो
क्या फर्क पडता है
माता पिता के लिए तो वह अमूल्य है
स्वर्ग के सारे सुख भी उसके आगे गौण हैं 
यह बात सबको समझनी है
वह संपत्ति नहीं  आपकी
सौभाग्य है
माॅ - बाप बनाया  है
तुम्हारा अंश को फिर नया जन्म दिया  है
अपनी ही छवि देखो उसमें 
अपना बचपन और जवानी जीओ उसमें 
जो कुछ तुम नहीं कर पाएं 
उसके माध्यम से पूर्ण करों 
उसे सोचो 
पल्लवित करो
पुष्पित होने दो
लहलहाने दो
तुम खुश रहो देख कर

वैधव्य

शरीर नारी का 
हल्दी लगी पुरूष की
हाथ नारी का
मेहंदी लगी पुरूष के नाम की
मांग नारी की
सिंदूर भरा पुरूष के नाम का
माथा उसका
बिंदी सुशोभित पुरूष से
गला उसका 
मंगल सूत्र पति चा
ऐसे ही चूडियां 
बिछिया
पायलिया 
सजती है
खनखनाती है
बजती हैं 
उसी के नाम से
अगर वह न हो तब
इनको सूना रहना है
सजना - संवरना नहीं 
समाज क्या कहेगा 
विधवा है फिर भी
नखरे तो देखो
जरा भी दुख नहीं 
समय बदला है
पर इतना भी नहीं 
मानसिकता तो वैसी ही है
पुरूष के बिना नारी का असतित्व 
यह कुछ की समझ से परे हैं 

Tuesday 18 January 2022

दिखावा

अग्नि परीक्षा दी थी जिस दिन
वह दिन कभी भूल न पाई
तुमको जो शक था
उसे झूठा  साबित  कर दिया
इम्तहान में खरा उतर गई
साथ ही तुम भी दिल से उतर गए
विश्वास पर तो टिका है नाता
जब उस पर भी भरोसा नहीं 
तब क्या उस वचन पर भरोसा हो
जो सात फेरों के वक्त तुमने दिया था 
सब उस अग्नि में जल कर स्वाहा 
अब नाता रह गया दिखावा 

Monday 17 January 2022

सोच रही सुभद्रा

सोच रही सुभद्रा 
अपने दिवंगत पुत्र अभिमन्यु के बारे में 
कहीं न कहीं दोषी स्वयं को मान रही
गर्भ में आया बेटा 
प्रसन्नता हुई 
माता बनने का सौभाग्य 
भ्राता कृष्ण का भांजा 
सुदर्शन चक्रधारी का शिष्य
गांडीव धारी अर्जुन का बेटा
आज काल ने ग्रस लिया
कोस रही उस दिन को
जब सुन रही थी चक्रव्यूह भेदन
अचानक निद्रा ने घेर लिया 
अंदर जाना तो सुन लिया 
बाहर आना वह सुन न सकी
न सोई होती उस दिन
आज काल का ग्रास न बना होता पुत्र 
वीर पुत्र की माता
सदियों याद रखेंगा जग
अभिमन्यु की वीरता  को
किस तरह महारथियों  से वह अकेला लडा
एक ही भारी सब पर पडा
साथ ही जन्म कथा भी आएंगी 
चक्रव्यूह भेदन  तो जानता था
निकलना सुन नहीं पाया
वही आज मृत्यु का कारण 
कहीं मैं ही तो नहीं 
उस दिन अगर न सोई होती
तब तो पूरा सुनती 
और लाल मेरा 
चक्रव्यूह भेदन कर बाहर आता 
विधि का विधान न जान  पाई
नहीं तो निद्रा को न आने देती
अपने ही पुत्र के मौत का दोषी स्वयं को न मानती 


महाभारत का एक कारण तुम भी थी गांधारी

तुम नारी थी
दो कुल की मर्यादा थी
मेरे पिता और भाई को भीष्म हानि न पहुंचाएं 
अगर मन से हामी नहीं भरी
तब बलात् अपहरण कर ले जाएंगे 
काशी नरेश की कन्याओं की तरह
अपने पोते अंधे धृतराष्ट्र के लिए विवाह का प्रस्ताव लाएं थे
गांधार कन्या शिव भक्त गांधारी के लिए 
पिता तो कुछ नहीं कह सकें 
भ्राता शकुनि को यह रास नहीं आया 
धृतराष्ट्र के साथ क्यों,  पांडु के साथ क्यों नहीं 
घटना क्रम कुछ और रूप लेती
तुम ने ऑखों पर पट्टी बांध ली
तुम पतिव्रता थी
सती थी
तब तो यह उचित नहीं था
अंधे धृतराष्ट्र को सहारा देती
अपने पुत्रों को सही मार्ग दिखाती
तब शायद इतना भयावह परिणाम नहीं होता
सौ पुत्रों की माँ संतान विहीन नहीं होती
तुमने जो क्रोध में अपने गर्भ पर मारा था
जलन वश
क्योंकि कुंती तुमसे पहले गर्भवती हो गयी थी
इसी ईष्या  की उपज कौरव थे
फिर तुम्हारे भ्राता शकुनि 
उनको विष भरे विचारों के खाद पानी देते रहें 
पांडवो के प्रति जहर भरते रहें 
वह शायद अपनी जगह सही थे
बहन के साथ हुए अन्याय को गांधार राजकुमार  शकुनि सहन न कर पाएं 
भीष्म से प्रतिशोध लेना था
पर वह यह शायद भूल गए थे 
अप्रत्यक्ष रूप से अपनी ही बहन के कुल के नाश का कारण बन रहा हूँ 
तुम तो समझदार थी
अगर वरण किया तब अपना फर्ज निभाती 
अंधे की लाठी बनती
उसको रास्ता दिखाती
तुम पत्नी और माँ दोनों थी
पर एक भी फर्ज नहीं निभाया 
तुम तो स्वयं अंधी बन  ऑखों पर पट्टी बांध ली 
महाभारत का एक कारण तो तुम भी थी गांधारी 

अपनी कश्ती के खेवैया तुम ही हो

नदी में  उतरे हो
कश्ती में बैठे हो
पतवार तुम्हारे हाथ में है 
लहरे उफान मार रही है
बादल उमड घुमड रहे हैं 
कडाकेदार बिजली चमक रही है
तुम्हारा मन भी विचलित हो रहा है
मन घबरा  रहा है
भय लग रहा है
किनारे पर पहुंचना है कैसे पहुँचुगा 
पहुँच पाएगा या बीच में  डूब जाऊंगा
घनघोर अंधेरा 
दूर कहीं नजर आ रहा उजाला
कश्ती के खेवैया तो तुम्हीं हो
मझधार और तूफान से निकालना तुम्हें ही है
धीरज और हिम्मत से
या फिर डर कर छोड दो
डूब जाने दो
क्या पता किनारा लग जाएं 
शायद न भी लगे
निर्णय तुम्हारा है
अपनी कश्ती के खेवैया तुम ही हो ।

Sunday 16 January 2022

मत लो जीवन

मत लो अपनी जान 
मत लो अपने दिल के टुकड़े की जान
बडा बहुमूल्य है
किसी ने तुमको जन्म दिया
किसी को तुमने जन्म दिया
यह सब करते हुए दोबारा जीवन मिला
उसी को ले लिया
हो सकता है
जीवन बहुत कठिन  हो गया हो
जीवन जीने की इच्छा न रही हो
धोखा मिला हो
असफलता मिली हो
ताडना मिली हो 
तब भी
जरा समय दो
सोच लो
सिंधु ताई सपकाल को याद कर लो
किसी और को याद कर लो
कुछ और के जीवन से तुलना कर लो
दूसरों के दुख और पीड़ा देख लो
जीकर कुछ तो हो सकता है
जान है तो जहान है
मरने के बाद तो कुछ नहीं ना

मुंबई में  एक युवती और उसके बच्चे की मृत्यु से उपजे विचार। 


मेरा धर्म

मेरा धर्म गीला है
पानी ही पानी
जहाँ इसके मंदिर 
वहाँ तो नदी जरूर
जल जीवन है
यह हमें पता है
तभी नदियों को सम्मान 
माता की उपाधि 
स्वच्छता का महत्व 
बिना स्नान किए मंदिर में प्रवेश नहीं 
ईश्वर के दरबार में स्वच्छता का पालन जरूरी
पानी बिना जीवन नहीं 
पानी है तब तक हमारा धर्म भी है
आज नहीं सदियों पहले हमने यह समझ लिया है

Saturday 15 January 2022

कमाल खान

पत्रकार तो बहुत हैं 
सब मन पर छा जाए ऐसा भी नहीं हैं 
कुछ का बोलने का लहजा
समाचार संपादन और स्वभाव 
दर्शकों के दिलों में घर कर जाता है
आज के टेलीविजन चैनलों में चीखते- चिल्लाते पत्रकार 
उसमें एक अलग सा शख्स जेहन में उभर कर आता है
वे हैं कमाल खान
गजब की नशीली आवाज
उर्दू मिश्रित शब्द 
नम्रता और मिठास
शेरों- शायरी से खत्म 
जो दर्शक को कुछ  क्षण सोचने को मजबूर कर देता
फिर वह चाहे राम मंदिर जैसा ज्वलंत मामला हो
लखनऊ की नफासत उनमें दिखाई देती थी
उत्तर प्रदेश और लखनऊ ही ज्यादा तर उनका क्षेत्र था
कभी ऐसा नहीं लगा कि 
यह एक मुस्लिम शख्स राम मंदिर,  बनारस या और सांप्रदायिक मसलों को इतनी आसानी से  विनम्रता से बता रहा है
न किसी नेता पर आक्षेप न दोषारोपण 
अपनी बात भी कह जाना
कमाल की रिपोर्टिंग थी कमाल की
ऐसे पत्रकार शायद अब सुनने को मुश्किल से मिले
एन टी वी की क्षति तो हैं ही
पत्रकारिता जगत की भी क्षति है
भावभीनी श्रद्धांजलि  सर ।

Friday 14 January 2022

मकरसंक्रांति की हार्दिक शुभेच्छा

*....भास्करस्य यथा तेजो मकरस्थस्य वर्धते।....*
*....तथैव भवतां तेजो वर्धतामिति कामये।।...*
*....मकरसङ्क्रान्तिपर्वणः सर्वेभ्यः...शुभाशयाः।*

*....जसं सूर्याचं तेज मकर संक्रमणानंतर वाढत जाते,...*
*...तद्वतच तुमचं तेज, यश, कीर्ती वर्धिष्णू होवो ही मनोकामना....* 

*....मकर संक्रांतीच्या हार्दिक शुभेच्छा !...*

मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामना

नई फसल का आगाज 
लेकर आ गया मकर संक्रांति का त्यौहार
ठंडी का आहिस्ता - आहिस्ता गमन
फसलों और सब्जियों की भरमार
जी भर खाएं
जी भर आनंद मनाएं
तील - गुड खाएं
मीठा - मीठा बोले
जीवन में भी मिठास घोले
Happy  maker  Sankranti

Wednesday 12 January 2022

काॅपी करना

किसी की काॅपी करें
नकल करें
उसके पेपर की
उसकी रचनाओं की
हो सकता है
आपका नाम हो
आपकी प्रशंसा हो
वाह-वाही मिले तालियाँ बजे
लोग तो सत्य नहीं जानते
हाॅ आपकी आत्मा अवश्य जानती है
क्या सच में खुशी मिली
मन कहीं न कहीं कचोटता होगा
तालियाँ बजती होगी
तब लगेगा
दिमाग पर हथोड़े पड रहे हैं
पढते समय या बोलते समय
वह भावना आ पाएँगी क्या
नहीं ना
फिर क्यों यह काम
नकल तो नकल ही होती है
वह रचना की हो
व्यक्तित्व की हो
या कोई और
बचपन में जिस प्रश्न का उत्तर काॅपी किया था
उसमें अंक भले आते
मन यह कहता
यह तो काॅपी करने के कारण
अपनी मेहनत का आनंद तो कुछ और ही

कमल

फूल कोमल है
पानी कोमल है
पानी में ही फूल का जन्म
जब तक पानी में है
खिला है
जब तक जडो से जुड़ा है
मजबूत है
जिस दिन पानी से अलग
वह मुरझा जाएगा
जिंदा भी रहा
ज्यादा दिन नहीं
पानी भले कीचड़ भरा हो
वह पोषण तो करता है
तब जन्मदाता है
वह कैसा भी हो
आपके लिए तो वरदान है
उसकी वजह से आप खडे हैं
भले ही लहलहाए
पर उसे मत भूलिए
कीचड़ में भी इतना सुन्दर रूप
इतना मौल्यवान
इतना आकर्षक
उस दाता की वजह से
कीचड़ का दाग लगने नहीं देता
अपने में डुबोता नहीं
मारता नहीं जिलाता है
ऊपर उठा कर रखता है
खिलने का मौका देता है
स्वयं बदबू करता है
आपको सुगंधित करता है
तब उस कीच भरे पानी की महत्ता है
तभी तो आपकी है
इतनी सुन्दर उपमा है

Tuesday 11 January 2022

शादी क्यों है जरूरी

शादी है जरूरी
शादी है तो सम्मान है
ऐसा सोचना
भारत की बात है
यही है मानसिकता
एक शादी का ठप्पा लग गया
मानो सब कुछ सही हो गया
जिंदगी भर रोते रहे
लडते - झगड़ते रहें
सामंजस्य बनाते रहें
त्याग करते रहें
अपनी जिंदगी छोड सबकी जिंदगी जीते रहें
तब जाकर वह सफल कहलाता है
एक बार शादी का लाइसेंस मिल गया
फिर जो चाहे मन मर्जी करो
कैसे भी कपडे पहनो
कहीं भी घूमने जाओ
किसी से भी बात करो
कितनी भी रात को आओ
कोई शक नहीं करेंगा
अविवाहित को
वह औरत हो या मर्द
अजीब दृष्टि से देखा जाता है
कहीं न कहीं कुछ गडबड है
वह सबसे बेचारा प्राणी
न शांति से जी सकता है
न रह सकता है
न  अकेलेपन को इंजाय कर सकता है

सृष्टि का सत्य

आज सुबह का नजारा
सूर्य देव का धीरे-धीरे आगमन
साथ ही सभी का रोजी - रोटी की तलाश में निकल पडना
रोड पर भरी हुई बस
ऐसा लगता है कि
अभी तो सात ही बजे हैं फिर भी
ठंड की सुबह है
पक्षी  दाना चुगने के लिए उडान भर रहे
कौआ पास ही गैलरी में बैठ कांव कांव की ध्वनि
वह भी भोजन की तलाश में
इतने में एक चील आकर बैठती है
उसके पंजों में चूहा है
वह खाने की शुरुआत करने जा रही है
देख मन विचलित हो गया
तत्क्षण ध्यान आ गया
यह अपना काम कर रही है
भोजन मिला है उसे
ऐसे न जाने कितने जीव - जंतुओं को जाने - अंजाने में हम मारते हैं
खटमल,  काक्रोच,  चूहा यह भी तो जीव ही हैं
यहाँ तक कि जब जान पर बन आए तब पूजें जाने वाले सर्प को भी नहीं छोड़ते
अपनी रक्षा का अधिकार सबको
फिर अहिंसा क्या हुई
मन दार्शनिक बन गया
चौरासी लाख योनि में जन्म लेना ही पडेगा
हम तो हर दिन कोई न कोई जीव हत्या करते ही हैं
तब उसका परिणाम
पर कर्म किए बिना भी तो नहीं रह सकते
यही सत्य है सृष्टि का ।

Monday 10 January 2022

विश्व हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

वह दिन अब लद गए
जब हिंदी को चिंदी समझा जाता था
अब यह चिंदी अपना परचम फहरा रही है
हिंदी बोलना अब शर्म नहीं गर्व बन गया है
सर उठाकर चल रही है
विदेशों में भी अपनी पैठ बना रही है
सोशल मीडिया पर छा रही हैं
अब गूगल और फेसबुक भी इसके कायल
सबको अपना महत्व समझा रही है
इतना बडा जनाधार इसका
एक सौ तीस करोड़ की लोगों की जनभाषा
इसके बिना किसी का काम नहीं चलता
दिल में घर करना है तब यह है सबसे बडी जरूरत
नेता तो इसके कायल
अपनी बात सब तक पहुँचाना
आखिरी व्यक्ति तक
तब बिना हिंदी के कैसे संभव
बिजनेस का जमाना है
कारपोरेट जगत में भी इसका बोलबाला है
बैंक से लेकर माॅल  तक
ग्राहकों तक पहुँचना है
तब तो इसे अपनाना है
सबको लेकर चलती
सबके साथ घुल-मिल जाती
हर भाषा है प्यारी
पर हिंदी हमारी सबसे न्यारी
अब हाय नहीं नमस्ते कहना
हिंदी को टा टा बाय बाय नहीं
अब गले लगाना है
विश्व पटल पर छा रही है
अपनी पहचान बना रही है
हिन्दुस्तान से परिचित करवा रही है
अब सब जगह झंडा गाड रही है
अब वह बेचारी नहीं
शक्तिशाली बन रही है
वह दिन लद गए
जब हिंदी को चिंदी समझा जाता था
सभी हिंदी बोलने और जानने वालों को शुभकामना

बाप हैं तो जहान है

ऑखों में ऑसू भर आए
उनकी याद में जो चले गए
कभी ऊंगली पकड़ चलना सिखाया था
कभी झूले पर बैठा झूला झुलाया था
कभी बस्ता टांग पाठशाला पहुंचाया था
कभी होटल में बडा पाव और मिसल पाव खिलाया था
कभी थियेटर में सिनेमा दिखाया था
कभी नाराज और गुस्सा भी हुए थे
कभी हंसकर बातों को टाल दिया
कभी दिल पर लेकर बैठ गए
रूठने- मनाने का सिलसिला तब तक चला
तब तक तुम थे

आकाश से मुझे मतलब नहीं था
एक बडे से आकाश की छत्रछाया थी
जो बादल घिरने ही नहीं देता था
बिजली कडक कर ढाए
उससे पहले ही संभाल लेता था
बहुतों को खोया
कुछ अपने कहे जाने वाले कुछ पराए
कुछ बेहद अजीज

यह ऑख जल्दी भरती नहीं
बहुत कठोर है दिल
लेकिन जहाँ आपकी बात आती है
पानी ही पानी भर आता है
जैसे समुंदर समाया है
रोकने की कोशिश करों
तब भी बह ही जाते हैं
समझ गए न
मैं किसकी बात कर रही हूँ
आपकी बाबूजी
जिनको संक्षेप में बावजी- बाजी कहती थी
अब छुपके से ऑखों के ऑसू पहचानने वाले
तुम तो रहे नहीं
ऑसूओं के पीछे की व्यथा बाप ही जान सकता है
बाप हैं तो जहान है ।