Wednesday 28 November 2018

आज अछूत कौन??

हर पार्टी की एक जाति
हर पार्टी का एक धर्म
हर नेता किसी न किसी जाति का
या किसी धर्म का प्रतिनिधि
तब कौन सी जाति के साथ कोई नहीं
जो राजनीति मे अछूत है
चुनाव का समय
जाति की भरमार
जाति ही पहचान
धर्म ही जीत का आधार
न जाने कितने हथकंडे
न जाने कितना प्रलोभन
जनतंत्र के मंदिर मे किसका प्रवेश
किसका पलड़ा भारी
यह धर्म और जाति तय करेगी
तब विकास कहाँ गायब हो रहा
किसके साथ अछूतों जैसा व्यवहार
किसको सर माथे पर बिठाया जाय
यह सियासत है भाई
यहाँ सब कुछ चलता है
भले वह सिक्का खोटा क्यों न हो
पर जाति धर्म की मोहर उस पर हो

भक्त और भगवान

डरता है भगवान से
यह बात है इंसान की
नहीं छूपता उससें कुछ
नहीं चलता उस पर बस
वह मेहरबान तो जिंदगी खुशहाल
वह नाराज तो जिंदगी बेहाल
न उसका रुप रंग
सब है उसके रहमोकरम
कौन है
कैसा है
न दिखता है
वह अदृश्य है
पर फिर भी सब जगह विद्यमान
उसकी शक्ति सब पर भारी
फिर वह विज्ञान हो या अनुसंधान
सारी सृष्टि का सृजनहार भी वही
विनाशक भी वही
दंड विधाता भी वही
उसकी लाठी सब पर भारी
दिग्गज आए और गए
पर विधाता के विधान को चुनौती न दे पाए
उसका विधान अटल रहा
हर किसी को नतमस्तक होना ही पडता है
कोई उसे नहीं जीत सकता
हाँ वह वश मे हो सकता है
अटूट प्रेम और निष्काम भक्ति से
उसके आगे स्वयं अर्पण हो जाओ
वह हर दुख ,पीड़ा हर लेगा
भक्त बनो
दास बनो अपने स्वामी के
मन मंदिर में बिठाओ
शरीर और आत्मा सब उसके अधीन
वह तो सुनेगा
तुम बुलाओगे जब भक्ति से
यह भक्त और भगवान के बीच का नाता है
उसमे किसी का प्रवेश नहीं

बच्चे की जान लोगे क्या??

मैं छोटा बच्चा
उससे बडा मेरा बस्ता
पीठ भले मजबूत न हो
भारी भरकम बस्ता पीठ पर लदा
दबा जा रहा हूँ इससे
यह बोझ ही थका डालता
तब मैं क्या करता
कैसे पढाई मे मन लगाता
पढाई भी बोझिल लगती
स्कूल आने का मन न करता
बस सोते रहू और खेलते रहूं
क्योंकि यह बस्ता मुझे न भाता
इसके अंदर की किताबें काँपी
वह तो देखते ही रूह कांप जाती
एक विषय की चार चार
फिर उस पर से होमवर्क
क्या करू क्या न करु
टीचर से डर लगता
इसलिए कुछ कर लेता
गुस्सा आता है
सब मेरे पीछे पडे हुये
किसी को दया नहीं
कोई मेरे बारे में सोचता नहीं
मन मे आता है
चीख चीख कर बोलू
  अरे  , बच्चे की जान लोगे क्या

मैं ब्राह्मण हूँ उपेक्षित हूँ

मैं निराश हूँ हताश हूँ
मैं उपेक्षित भी हूँ
मैं ब्राह्मण हूँ
मै आदरणीय था कभी
आज उपेक्षित हूँ
मेरी कोई कद्र नहीं
मुझे कोई आरक्षण नहीं
मेरे पूर्वज भिक्षा मांगते थे
मैं शिक्षा देता था
पूजा पाठ करता था
फिर भी मुझे दरिद्रनारायण ही संबोधा जाता था
मैं ही सुदामा था
जिनका परिवार भूखा रहता था
मैं ही द्रोणाचार्य था
जो कि अपने बेटे अस्वस्थामा को दूध की जगह आटे का घोल पकाकर पिलाता था
मजबूरी ने कौरव पांडव का गुरू बना दिया
मुझे कैद और बांध कर रख दिया गया
किसी और को मैं शिक्षा दे ही नहीं सकता था
एकलव्य का अंगूठा मांगना पड़ा
मैं ही चाणक्य हूँ
जिन्हें भरे दरबार में अपमानित किया गया था
जिसका परिणाम मौर्य साम्राज्य हुआ
एक चरवाहे के बेटे को
भारतवर्ष का शक्तिशाली राजा चंद्रगुप्त मौर्य बना दिया
मैं वह भिक्षुक हूँ जो सम्राट अशोक को शांति का दूत बना दिया
बौद्ध धर्म की स्थापना हुई
राजा तो कोई और होता था
पर राजनीति का माहिर खिलाड़ी तो मै ही था
पर मुझे कभी सत्ता हासिल नहीं हुई
मेरा कार्य तो विद्या दान करना था
सर्वश्रेष्ठ दान जो समाज को बदलने का माद्दा रखता है
पर मुझे क्या मिला
    आरक्षण
इस आरक्षण की भेंट मे सबसे पहले मैं चढा
मैं तो जमींदार भी नहीं था
मैं संपत्ति शाली भी नहीं था
मैं तो शक्तिशाली भी नहीं था
फिर भी मुझे क्यों मोहरा बनाया गया
आज मुझे ज्यादा अंक मिलकर भी एडमिशन नहीं
आज मुझे नौकरी नहीं योग्यता के बावजूद
मेरा पूजा पाठ भी अब व्यावसायिक बन रहा
योग्यता की जहाँ कद्र नहीं
वह राष्ट्र की उन्नति किस तरह.होगी
जहाँ एक तबके का नौजवान निराशा के गर्त मे जा रहा
नशे और लूटपाट अपना रहा
हर कोई द्रोणाचार्य नहीं हो सकता
उनका भी अपमान हुआ था
राजा दुपद्र उनके परम मित्र द्वारा
उनकी योग्यता को बांधा गया था
महाप्रतापी भीष्म द्वारा
वे परशुराम नहीं थे
पर कौरव पांडव के गुरू तो थे
शिष्य तो उनके ही थे
महाभारत का एक कारण वे स्वयं थे
वह समाज वह राष्ट्र
कभी आगे नहीं जा सकता
जहाँ समान अधिकार न मिले
आक्रोश जन्म ले
अतीत मे जो भी हुआ
उसका परिणाम वर्तमान पीढी को क्यों??
हर उच्च वर्ग कहे जाने वाला युवा
पूछ रहा है
हमारा अपराध क्या ??
हमारी संख्या कम है इसलिए
हम वोटबैंक नहीं है इसलिए
सब नेता अपनी अपनी जाति का हवाला देते हैं
यह तो जातिवाद को खत्म करना नहीं
बढ़ावा देना है
कब तक यह चलेगा
आजादी के इतने सालों बाद भी
यह हालात
तब तो वह गुलामी ही ठीक थी
उन्होने तो बुराइयों को खत्म किया
सती प्रथा ,बली प्रथा ,विधवा विवाह
बालिकाओं को तथा हर वर्ग को शिक्षा का अधिकार
हमारा संविधान
हम स्वतंत्र
फिर भी वंचित
यह तो राष्ट्र को शोभा नहीं देता
हमारी सुध कौन लेगा
हमारा नेता कौन
यह हर ब्राह्मण ,क्षत्रिय और वैश्य पूछ रहा है
अपनी सरकार से
यह दरकार है उसकी
उन्हें दरकिनार न करें
मैं न जवाहर लाल नेहरू हूँ
न राहुल गांधी हूँ
मैं सामान्य जनमानस हूँ
जिसको भी जीना है
और जीने के लिए रोजी रोटी की जरुरत है

Monday 26 November 2018

शाकाहार को अपनाएं

बकरी शाकाहारी प्राणी
निरीह और शांत
जो चाहे उसे परेशान कर सकता
गरिबों का सहारा
ज्यादा खर्च नहीं
पालने मे
घास ,चना मिल जाय बस
जिसके पास रहती है
वह बस इसे बेचने की फिराक में
क्योंकि हर वक्त उसकी मांग
छोटी हो या बडी
है तो शाकाहारी
पर मांसाहारी की पसंद
इतनी निरीह की यह हालत
कबीर दास का कहना
बकरी पाती खात है ताको ये हवाल
जे जन बकरी खात है ताको कौन हवाल
मांसाहार को दूर करें
शाकाहार को अपनाएं
किसी निरीह जीव की हत्या का भागीदार बनने से अच्छा है
उसको भी जीने दो

याद

यादें कभी पीछा नहीं छोडती
साथ छूट जाते हैं
यादें पुरानी नहीं पड़ती
वर्ष दर वर्ष बीत जाते हैं
यादें साथ चलती रहती है
उनकी भी जो फिर कभी नहीं मिलेंगे
उनकी भी जो इस दूनिया मे नहीं है
यादें अच्छी हो सकती है
यादे बुरी हो सकती है
यादें परेशान कर सकती है
यादे दुखी कर सकती है
यादें हंसा सकती है
यादे बेचैन कर सकती है
पर याद सहारा भी बनती है
जब साथ कोई नहीं होता
तब यही जिंदगी का सहारा  बन जाती है
याद भूलती भी नहीं
ताउम्र साथ रहती है

Sunday 25 November 2018

सांप और डर

पूरी सोसायटी डरी हुई है
सांप घूम रहा है
बच्चे भी उसके पीछे पीछे
बच्चों को तो डर नहीं
सांप कभी दिख जाता है
कभी गायब हो जाता है
समझ नहीं आ रहा
सांप डर रहा है
वह भाग रहा है
हमसे डर कर
या हम उससे डर कर
पर कहीं ऐसा तो नहीं
वह सोचता है कि
कोई मुझे मारेगा
हम सोचते  है कि
वह हमको काट लेगा
कब कौन सी घटना घट जाय
पर जिम्मेदार कौन??
हम भी भागीदार है
उनके घरों पर कब्जा जो जमा लिया है
वह भी कहाँ जाएगा
वह तो जहरीला जीव
जहर ही उगलेगा
पर हम तो समझदार हैं
स्वार्थी बन गए हैं
जीने का अधिकार तो सबका है
अगर हम उनका घर ध्वस्त करें
तब वह क्या करें
इधरउधर भटकेगा
जो रास्तें मे आएगा
उसे भी हानि ही पहुंचाएगा

बंधन या स्वतंत्रता

दो कुत्ते ,दोनों भूखे
गली गली घूम रहे
दूत्कारे जा रहे
सोचते हैं हमारा भाग्य ऐसा क्यों
हमारे कुछ भाई बंद तो कार मे घूमते हैं
शैम्पू से नहाते है
घूमाने के लिए नौकर
अचानक भेंट हो गई कार वाले कुत्ते से
मालिक कार मे ही छोड़ कहीं काम से गए थे
देर हो गई थी
भूख भी लग रही थी
तभी यह दोनों पास आए
बोले क्या मजे है तुम्हारे
पर इस तरह बैचेन क्यों हो
अरे भाई भूख लगी है
मालिक ने न खुद खाया न मुझे दिया
बहुत बिजी है आज
तो आ जाओ हमारे साथ
कुछ न कुछ मिल ही जाएगा
पर मैं तो जंजीर से बंधा हूं ,तुम्हारी तरह स्वतंत्र नहीं हूं
सबका वक्त है
खाने से लेकर सोने तक
घर मे आए मेहमानों के स्वागत से लेकर घर के हर सदस्य की खुशी का
खाना भी परहेज भरा
डाक्टर की सलाह से
कभी कभी अकेले भी पड़ जाता हूँ
जब ये लोग घूमने चले जाते हैं
तुम लोगों की जिंदगी अच्छी है
मनमर्जी घूम रहे हो
अब तो दोनों एक -दूसरे को देखने लगे
सोचने लगे
हर किसी की अपनी परेशानी
कोई किस कारण दुखी तो कोई किस कारण
तब तक टोकरी उठाकर जाते हुये मछली वाले ने बची मछलियां उनके सामने उड़ेल दी
दोनों मजे से खाने लगे
कार वाला ललचाई नजरों से देख रहा था
सोच रहा था
यह बंधन अच्छा है या ऐसी स्वतंत्रता

जय श्री राम

चलो अयोध्या
यह नारा है इस वक्त
पर क्या करें
राम मंदिर का निर्माण हो तब ठीक है
पर ऐसे ही
अयोध्या जाना
अपनी राजनीति को चमकाना
वहाँ भीड़ इकठ्ठा करना
हल्ला गुल्ला मचाना
वातावरण तंग करना
भय का माहौल
सेना -पुलिस का जमावड़ा
छावनी में तबदील
आम जनता को परेशानी
साम्प्रदायिक दंगे का डर
आपसी सौहार्द खत्म करना
इससे हासिल तो कुछ नहीं
जब तक ठोस कदम न उठाया जाय
पहली प्रायरिटी राम मंदिर को दे
वार्तालाप किया जाय
यह कोर्ट मे नहीं
आपस मे सुलझाया जाय
मंदिर तो बनना तय
पर कब ??
बरसों बीत गए
कब बनेंगा
किसने पहल की
कम से कम सच्चे दिल से
सब मिलकर प्रयत्न करें
मुस्लिम  समुदाय आगे आए
राम का जन्म अयोध्या में ही हुआ है
तब उनके अधिकार से वंचित रखा जाए
यह तो सही नहीं
हिन्दुस्तान ने सबको आश्रय दिया है
तब उन्हीं के भगवान की जन्मभूमि के लिए संघर्ष
ऐसा न हो कि जबरदस्ती का परिणाम भंयकर हो
खुले मन से आगे आए
जिद छोडे
मंदिर बनने दे
रामजी सबका कल्याण करेंगे
        जय श्रीराम

हर पत्ता कुछ कहता है

पत्ता था मै पेड़ का
लोग फूल की कद्र करते
उन पर आनेवाले फल की कद्र करते
पर पत्ते की कौन करता है
फूल गिराया मार कर
चोट तो मुझे लगी
फल पर पत्थर मारे
तब भी चोट मुझे ही लगी
पर मेरी परवाह कहाँ
फूल और फल ले गए
मुझे पैरों तले रौंद गए
यह नहीं सोचा कि
मुझसे ही इस पेड़ की शोभा है
मैं न रहू
तो यह ठूठ बन जाएगा
तब न फल आएंगे
न फूल आएंगे
न इसकी शोभा होगी
केवल लकड़ी का ढांचा रह जाएगा
मैं हर वक्त साथ हूँ
इसलिए मेरी कदर नहीं
मैं मौसम आने पर नहीं आता
हर पल आता रहता हूँ
यह हरियाली
यह सौंदर्य
यह पक्षियों का बसेरा
सब मेरे कारण
फिर मेरी उपेक्षा
यह तो सह्य नहीं

लड़की हूँ मैं

एक लड़की हूँ मै
तब परेशान भी हूँ
अपनों से नहीं दूसरों से
शिक्षित हूँ
अपने पैरों पर खड़ी हूँ
आत्मनिर्भर हूँ
घर से दूर दूसरे शहर में
पैरेंट्स ने तो भेज दिया
यहां आ काम भी मिल गया
सब व्यवस्थित चल रहा
रहने का भी इंतजाम
करियर उड़ान भर रहा है
पर लोगों की सोच
उसका क्या करू
देर रात को घर लौटती
वाचमैन की भेदती निगाहें
द्वार पर पहुंचते ही पड़ोसी का झांकना
घर मे कोई पुरूष मित्र आ जाए
तो संशय भरी निगाह
उन लोगों का आपस मे देखते ही कानाफूसी
मिलते ही तमाम प्रश्न
यह है हमारा समाज
यह है उनकी सोच
यह बदलाव लाना होगा
किसी के बारे मे कुछ भी धारणा बनाना
यह कब सुधरेगा
इनकी सोच कब बदलेगी
बेटी शिक्षित हो
आगे बढ़े
अपने पंख पसारे
उड़ान भरे
पर यह जो रोड़े है
वे तो हटे
बेटी ही नहीं
हर जनमानस शिक्षित हो
लोग बदलेंगे
तब समाज बदलेगा
नजरिया बदलेगा
तब जाकर विकास का मार्ग प्रशस्त होगा

Friday 23 November 2018

टेलीफोन की घंटी

वह टेलीफोन था
जब उसकी घंटी घनघनाती
सब इर्द गिर्द इकठ्ठे हो जाते
सबको बात करने की
सुनने की उत्सुकता
हर हाथ मे जाता
हर सदस्य बात करता
जल्दी जल्दी
क्योंकि चार्ज बढता जाता
अब तो मोबाइल
कान मे ही लगा रहता
रास्ते चलते भी
यहाँ तक भी दुर्घटना भी
पर तन मन व्यस्त
गुलाम बन गए हैं लोग
बात करने का जरिया
जानलेवा साबित हो रहा
फोन की मधुर घंटी
कहीं खोते जा रही
फोन इकट्ठा करती थी
मोबाइल अकेला कर रहा है
अनलिमिटेड बात कर सकते हैं
पर अपने दूर हो रहे हैं
सामने रहते हुए भी
निगाह उन पर नहीं
उनसे बात करने की फुरसत नहीं
तब तो वह फोन ही बढिय़ा था

Thursday 22 November 2018

सच जमाना बदल गया

वह पन्द्रह पैसे
आज पन्द्रह हजार को मात करता
उसमें समोसा ,जलेबी और आइसक्रीम
छक कर खाते
कुछ कपडों पर गिराते
जो निशानी छोड़ जाते
मां को.चटखारे लेकर बताते
कहाँ से लिया
किसके साथ खाए
कितनी मजा की
मां का जीभर आभार मानते
आज बच्चों को कितना भी दो
उनका मुंह बिगड़ा हुआ ही रहता है
मंहगाई बढ़ गई
या समय बदल गया
वह संतोष नहीं
जो हमारे समय मे था
पैसा कितना भी मिल जाय
सुख सुविधा कितनी भी मिल जाए
पर मन को खुश रहना नहीं आता
वो टाँफी ही काफी थी
केडबरी उसके सामने फीकी है
क्योंकि अब इच्छाए
बढ जो गई
तब कम मे जीते थे
जी खोलकर हंसते थे
मनसोक्त हंगामा करते
रात को बिना बिस्तर के ही सो जाते
नींद के धनी थे
चिंता से दूर
बस जीवन को जीभर जीते थे

Wednesday 21 November 2018

जागतिक टेलीविजन दिन International TV Day

टेलीविजन है यह
घर भर का प्यारा
बूढ़े ,बच्चे और जवान
सब इस पर है फिदा
हाथ मे जिसके रिमोट रहता
घर पर उसका राज रहता
चौबीस घंटे चलता
कभी न विश्राम करता
हर एक की पसंद का ख्याल रखता
फिर दादी का हो प्रवचन
बबलू का हो कार्टून
पापा का समाचार
मम्मी का धारावाहिक
हंसाता है
रुलाता है
ज्ञान की बात बताता
मनोरंजन का भार संभालता
उदासी को दूर करता
थकान मिटाता
अकेले पन का भी यह साथी
सबको पास भी लाता
इसे देखने बहाने ही सही
सब एक साथ तो बैठक जमाते
शहर हो या देहात

धर्म हो या प्रांत

जात पात ,ऊंच नीच
नहीं करता कोई भेदभाव
दूनिया की खबरें हम तक पहुंचाता
वर्ल्ड टूर करवाता
ब्लेक एंड व्हाइट से
बदला रूप अपना
अब तो दीवार पर भी टंग जाता
कहते है इसको इडियट बाँक्स
पर हम तब भी है इसके दीवाने
टी वी हर जीव का प्यारा
परिवार का दुलारा
रहे सलामत हमेशा
मनोरंजन करें जी भर
टी वी है जहाँ
  ... खुशी है वहाँ

दीवारें

हर दीवार कुछ बोलती है
अपना इतिहास सुनाती है
दीवार बनी घर की
स्वयं को सुरक्षित करने की भावना
फिर द्वार की ,पड़ोसी की
जमीन की ,गाँव की ,समाज की
शहर की ,देश की
जात-पात की
धर्म -संम्प्रदाय की
रक्त की गोत्र की
सब इसके इर्द गिर्द घूमने लगे
इसने लोगों को बांट डाला
भावना संकुचित हो गई
वृत्ति स्वार्थी बन गई
हम से मैं की भावना
श्रेष्ठता की भावना धर कर गई
पक्षी आकाश की उडा़न भर सकता है
कही भी निसंकोच आ जा सकता है
पर इंसान इन दीवारों में कैद हो गया है
मंदिर ,मस्जिद ,गिरजाघर ने बांट लिया भगवान को
धरती बांटी
सागर बांटा
मत बांटो इंसान को
मानवता और इंसानियत के बीच आने वाली
हर दीवार को धराशायी कर देना है
क्योंकि हर धर्म से ऊपर इंसानियत है
भेदभाव कर कुछ हासिल नहीं हो सकता
जीना है शांति से
ऊपरवाले खुदा को भी जवाब देना है
उसने तो भेदभाव नहीं किया
यह तो हमारा ही बनाया हुआ चक्रव्यूह है
जिसमें हम चले तो गए हैं
पर बाहर का रास्ता पता नहीं ।

बगिया का फूल

डाली से टूटा फूल
फिर कभी नहीं खिलता
डाली मे लगा था
तब अभिमान था
मुझसे ही इसकी शोभा बरकरार
घमंड था अपने सौंदर्य पर
इतराता था
हवा मे झिलकोरे लेता था
सबकी आँखों को भाता
भूल गया था कि
मेरा असतित्व डाली से ही है
जो उससे एक बार जुदा हुआ
फिर तो किस्मत ही पलट गई
ईश्वर के चरणों मे
फिर वहाँ से किसी के घर मे
अब कचरे के ढेर में
पटका गया
सूई से बिंधा गया
धागे की जंजीर मे बांधा गया
डाल पर था तो हौले हौले सहलाता था
कोई तोडने आता तो का़ंटा चुभाता
यहाँ तो किसी को फिक्र नहीं
अपनी जड़ों को कभी छोड़कर जाना नहीं
यही सिखाया है वक्त ने
डाली पर दूसरे फूल आ जाएंगे
पर हमारा तो असतित्व ही खत्म
यहाँ तो कोई माली भी नहीं
बगिया के फूलों की देखभाल करे
बस लावारिस से हैं
और जैसे तैसे सांस ले रहे

Tuesday 20 November 2018

घरौंदा

बचपन मे समुद्र किनारे घूमने जाते थे
उस समय चौपाटी की रेत पर हम घर बनाते थे
सबका अपना अपना
होड़ लगती थी कि किसका सबसे अच्छा
उसको सजाते थे
गुब्बारे लगाते थे
डिजाइन अलग अलग
जाते समय लात मार जाते थे
दूसरा कोई अपना बना न ले
पर यह तो रेत का घरौंदा था
असली घर बनाने में जिंदगी बीत जाएगी
न जाने कितनी मशक्कत करनी होगी
इच्छाओं का त्याग करना होगा
तब जाकर एक घर तैयार होता
घर घर नहीं सपना होता है
उस सपने को सार्थक करना पड़ता है
उसमे रहकर अपने जिंदगी का ताना बाना बुनना
अपने बच्चों के सपनों को भी साकार करना
उनके भविष्य की नींव डालना
इसको तिनका तिनका कर सहेजना
तब जाकर यह घरौंदा तैयार होता
और हम इसे ताउम्र सहेजते हैं

तुम जीवन नहीं मृत्यु हो

जरा ठहर जा
तू आएगी दबे पैर
कोई रोक नहीं सकेगा
यहाँ सब कुछ अनिश्चित
बस तुम्हारा आगमन निश्चित
कोई स्वागत नहीं करता
फिर भी तुम्हें आना है
सारे सपनों और ईच्छाओं को रौंद डालना है
सबको रूलाना है
बिलखते अपने से दूर ले जाना है
उस जगह का कोई अता पता नहीं
तुम किसी के वश मे नहीं
बड़े बड़े बलवान -बलशाली भी बेबस
सबको नाता तुड़वाकर
अपने साथ ले जाती
तुम्हें किसी की मोह माया नहीं
बहुत क्रूर है तुम्हारा ह्रदय
एक बार जब छिन लेती हो तो फिर वापस नहीं करती
आत्मा तक निकाल लेती हो
सब तुमसे डरते हैं
कोई तुम्हें पाना नहीं चाहता
पर तुम तो आओगी ही
आओ पर जरा रूक कर
उचित समय पर
दूनिया को देखने समझने तो दो
अपनों के साथ जीने तो दो
अपना कर्तव्य पूरा करने तो दो
असमय नहीं समय से आओ
तब तुम्हारा भी इंतजार
खुशी खुशी साथ चल देगा
तुम ही सत्य हो
यह तो सब जानते हैं
फिर भी कतराते हैं
कब तुम किसका भक्षण कर डालो
तुम्हें तो बहाना चाहिए
सारा ज्ञान विज्ञान तुम्हारे सामने बेबस
पैसा संपत्ति सब लाचार
तुम ही सर्व शक्तिमान
क्योंकि तुम जीवन नहीं मृत्यु हो

Monday 19 November 2018

जीवन कैसा ??

जीवन बहुत सीधा है
आना और जाना है
इसको जीना बस टेढा है
इस आने जाने की प्रक्रिया मे उलझ कर रह जाना है
आज कल और आज का चक्कर चलता रहता है
यह चक्र घूमता रहता है
सबको घूमाता गोल गोल
सब कुछ जानता समझता
फिर भी बनता अंजान है
इसका स्वयं ठिकाना नहीं
बस सपनों के जाल बुनता है
सपने पूरे हुए तो वाह वाह
नहीं तो फिर आह आह
चाहता तो बहुत कुछ
आसमान की उड़ान भरना
पर पंख भी तो हो मजबूत
आए और गए
कोशिश करते रहे
पर सब कुछ यही छोड़ गए
बस छह गज जमीन
यही हवाले रह गया
पैसा रुपया संपत्ति
कुछ काम न आया
जीवन भर जूझते रहे
मृत्यु से न जूझ पाए
ऐसी पटखनी दी
सब धरा का धरा पर रहा
जहाँ से आना हुआ
वही जाना भी
खाली हाथ आए
खाली हाथ जाएंगे

Sunday 18 November 2018

नेशनल प्रेस डे

ये कलम के सिपाही है
बंदूक तोप नहीं
कलम और जुबान चलाते हैं
दूनियां को बदलने का माद्दा रखते हैं
घबराते हैं बड़े बड़े
सरकार भी गिरा डालते हैं
इनसे नहीं कोई टकराता
भले ही वह कितना बड़ा क्यों न हो
ये पत्रकार है
लोकतंत्र का चौथा स्तंभ हैं
माइक जब रहता इनके हाथ
तब मंत्री भी हो जाते संभल
दहाड़ कही गुम हो जाती
क्योंकि वह भोलीभाली जनता के सामने नहीं
एक पत्रकार से सामने होते हैं
जरा जबान फिसली कि
बस हो गया बंटाधार
पत्रकार है ये
कर्णधार है
जागरूक करना इनका कर्म
इनका फर्ज
युग बदला ,नये आयाम खुले
अखबार की शक्ल भी बदली
नयी तकनीक आई
टेलीविजन आया
समाचार अब पढ़े ही नहीं
देखे जाने लगे
पत्रकार भी मोर्चे पर डटे रहे
पत्रकारिता केवल एक पेशा नहीं
वह हर पत्रकार का इमान है
पत्रकार हमारी शान है
देश की आवाज है
बुलंद उनकी आवाज रहे
कलम का तेज रहे
इस कलम के सिपाही को सलाम

चमचे

चमचे है बदनाम
सबको इसकी जरूरत
सबको यह लगता प्यारा
फिर भी सबको खटकता भी यही
हमारे पास है तो ठीक
दूसरों के पास है तो खराब
इसके बिना किसी का काम नहीं होता
हर जगह यह विद्यमान
युद्ध का मैदान
या फिर राजनीति का खेल
बड़ा हो या छोटा
सबके नजदीक
सबका राजदार
यह ताकतवर भी
दगा दे दे
तो आसमान से ला जमीन पर पटक दे
खबरी है यह
सब इससे घबराते हैं
बाँस का प्यारा है
मालिक की दूम है
खतरनाक भी है
सब इससे बचना चाहते
किसी के करीब जाना हो
उसके चमचो से दोस्ती करें
दिल मे जगह बनाना हो
उसके चमचे को पटाइए
चमचा वह जीव है
जो बहुमूल्य है
अंजान बनता है
अंजाम देता है
चमचे ही चमत्कार करते हैं
कान भरता हैं
और अपना उल्लू सीधा करते हैं
आगे.पीछे घूमते हैं
लोगों को गोल गोल घूमाते हैं
बदनाम है तब भी इसका नाम है
इसकी साख है
यह बडे काम का है

हमारा हिंदुस्तान

गुलदस्ता यानि विभिन्न प्रकार के फूलों से बना
हर रंग और हर तरह के फूल
लाल ,सफेद ,बैगनी ,पीले और न जाने कौन
कोई छोटा कोई बड़ा
कोई खिला तो कोई कली
पत्ते और कांटे भी साथ मे शोभायमान
रंगबिरंगे कागज  ,लड़ियों से सजा
खूबसूरत है
मन को भा रहा है
एक और भी है वहाँ
केवल गुलाब के फूलों का
एक और अनेक
दोनों की अपनी अपनी जगह
पर जो सबको साथ लेकर बना है
वह ज्यादा मनभावन
अकेले और सबके साथ
ऐसे ही हमारा देश
सबकी खूबसूरती को समेटे हुए
तभी तो हम कहते हैं
सबसे अच्छा सबसे प्यारा
     हिंदुस्तान हमारा

नाम नहीं काम बोलेगा

नाम मे क्या रखा है
नाम मे बहुत कुछ रखा है साहब
आजकल नाम बदलाव का चलन
अपने जिले का नाम बदल जाय
कैसा लगेगा
वह हमारी पहचान है
हम उससे जुड़े हुए हैं
हमारी भावना भी
अचानक पता चले
नाम बदल गया
वह जल्दी हमारी जबान पर चढता नहीं है
वी टी से सी एस टी
बंबई से मुंबई
जबान पर आने के लिए बरसों लग गए
यह बदलाव तो ठीक था
अस्मिता का प्रश्न था
विक्टोरिया से शिवाजी
मराठी भाषा का
पर बहुत से लोगों को तो कौन से मार्ग पर रहते हैं
यह भी पता नहीं
लोकल और लोकप्रिय है वही उपयोग होता है
पर इसके पीछे राजनीतिक फायदा उठाया जाय
यह तो उचित नहीं है
बिना उचित कारण
आगरा मे ताजमहल या लखनऊ
इनका नाम बदलने की क्या जरुरत
यह तो कोई नुकसान नहीं पहुंचा रहे
इनकी पहचान  तो इससे ही है
भाषा या धर्म के नाम पर
तब तो उर्दू का क्या??
विदेशियों के नाम पर भी बहुत नाम है
क्योंकि उन्होंने कार्य किया है
पूरा इतिहास बदलना
बिना किसी वजह के
इसका तो कोई औचित्य नहीं
और सरकारी खर्च
सब कहाँ से आएगा
जनता के पैसों से??
जो कागजात लेकर परेशान रहेगी
नाम नहीं काम बोलेगा