Friday 30 December 2016

भीख मांगना भी बिजनेस

डॉक्टर का बेटा डॉक्टर
नेता का बेटा नेता
तो फिर भिखारी का बेटा भिखारी क्यों नहीं???
नोटबंदी में भिखारियों का भी लाभ
उनसे ज्यादा छुट्टे पैसे किसके पास मिलेगे??
जम कर कमीशन लिया
पैसे कमाए
जन- धन में जमा किया
किसी - किसी भिखारी की कमाई तो हजार रूपए हर दिन की है
अभी हाल में एक भिखारी ने शिरडी में ढेड लाख रूपये का मुकुट बाबा को अर्पण किया
आज का भिखारी खाना नहीं लेता है
उसे पैसे चाहिए
कम दिया तो व्यंग भी करता है
वह अपनी जगह दूसरे को बिठाता है तो उससे किराया लेता है उस जगह का
ऐसे वह दो- चार जगह पर कब्जा कर रखता है
झोपडी में रहता है और उसके बदले घर मिलता है तो उसे बेचकर या किराये पर देकर
दूसरी जगह फिर झोपडी बना लेता है
अब इतनी आसानी से किसकी कमाई???
जीवनयापन को भी स्टेडंर्ड रखने की कोई जरूरत नहीं
फिर वह अपनी नई पीढी को क्यों कुछ दूसरा काम करने की सलाह देगा
या वह क्यों वह मेहनत करेगा
जब आसानी से पैसे उपलब्ध हो
इसलिए इनकी संख्या बढ रही है
फिर वह चाहे किसी भी रूप में हो
इनकी दादागिरी सरेआम चलती है
रास्ते पर भी गोद में बच्चा लिए या किन्नर के रूप में
लोगों को परेशान करते मिल जाएगे
ट्रेन में तो यह आम बात है
नहीं देने पर गाली- गलौज भी
लोगों का चलना भी मुश्किल कर देते हैं
और अपराध भी करते हैं.
असामाजिक कार्यों में लिप्त रहते हैं
ड्रग एडिक्ट होते हैं
बहुत नराधम कार्य भी ये करते हैं
इन भिखारियों के लिए भी कुछ किया जाय
नहीं तो यही उनके लिए अच्छा है
और ये अपनी संख्या बढाते रहेगे

छोटा पैक बडे काम का

आजकल विज्ञापन का जमाना है
हर चीज उपलब्ध है
सुंदर और व्यवस्थित
चाहे वह पॉच रूपये का हो या दो रूपये का
नेसकॉफी पीनी हो तो वह दो रूपये में उपलब्ध
शेम्पू ,टमाटो केचअप से लेकर वेफर और चिवडा तक
पहले जो सामान्य जनमानस उपयोग नहीं कर पाता था
आज बेहिचक कर रहा है
केवल स्वाद लेना है पूरा पेट नहीं भरना है
तो आप कोई भी चीज का बेहिचक उपयोग कर सकते हैं
चने वाला और बनिया जो पहले कागज के पूडे में देता था और मुँह भी बनाता था
वही आज आर्कषक रूप में रंगबिरंगे पैकेट में मिल रहा है
कम पैसे में भी सम्मान के साथ
अच्छा लगता है यह बदलाव
बरबादी भी नहीं
रखने की झंझट नहीं
ज्यादा पैसे की जरूरत भी नहीं
और बिजनेस वालों का भी लाभ
उनका माल हर व्यक्ति तक पहुँच रहा है
बिक्री भी हो रही है
बच्चों की तो वाह- वाह ही हो गई है
बडा न सही छोटा तो जेबखर्च से ले ही सकते हैं
तरक्की का यह काम तो काबिलेतारीफ है
हर चीज हर व्यक्ति तक पहुँचनी ही चाहिए
तभी तो उत्पादन का महत्तव है
ग्राहक भगवान होता है
और वह प्रसन्न होगा तो ही व्यापार होगा
और यह बात आज दिखाई दे रही है

Thursday 29 December 2016

कैसे बनेगा इंडिया डिजिटल

मैं एक पढी- लिखी महिला
थोडा बहुत अंग्रेजी भी जानती हूँ
फिर भी डर लगता है ए टी एम का प्रयोग से
मोबाइल भी अभी बराबर ऑपरेट नहीं कर सकती
कहीं कोई गलत बटन न दब जाय
कारण कि इसकी आदत नहीं है
आधी उम्र पार करने के बाद हाथ में मोबाईल
पैसे का लेन- देन चेक से
बच्चों को सिखा दिया पर स्वयं??
आज तीन साल का बच्चा भी यह सब आसानी से कर सकता है
वह इस युग में जी जो रहा है
पर हमारा समय अलग था
डर से जीते थे
नोटबंदी होने से खर्च कम कर दिया
पर पे टी एम का उपयोग नहीं
आज भी काली- पीली टेक्सी का इस्तेमाल
ओला - उबर की हिम्मत नहीं होती
एप को डाउनलोड भी नहीं करना है
कौन झंझट मोल ले
यह मानसिकता है हमारी
हर मौके पर हम रूपयों का उपयोग करते हैं
बडो का आशिर्वाद हो या बच्चों को उपहार
सब्जी ,अनाज ,दूध हर जरूरतमंद की चीज
कामवाली हो या पेपरवाला
हम कैसे कैशलेश हो जाएगे???
रातोरात यह संभव नहीं है
राजीव गॉधी ने आई टी के युग की शुरूवात की
आज युवा अपना परचम फहरा रहे हैं
पर यह स्वाभाविक ढंग से हुआ
किसी पर लादा नहीं गया था
आज तो जीवन मुश्किल बन गया है.
डिजिटल होना चाहिए
पर जबरदस्ती लादकर नहीं.
जीवन दूभर कर नहीं
आज जैसे हर हाथ में मोबाईल है
डिजिटल का भी समय आएगा
व्यक्ति की फितरत है जीवन आसान बनाना
पर कुछ इसमें सहज नहीं है
अगर यह क्रांति है तो भी उसके लिए भी समय लगता है
साधारण जनता की परेशानियों को समझा जाय
पहले सब साक्षर हो बाद में डिजिटल हो

मैं बेटे की मॉ हूँ

बेटी की मॉ की व्यथा तो जगजाहिर है
पर बेटे  की मॉ की व्यथा???
पाल- पोसकर बडा किया
उसकी हर जरूरत पूरी की
पानी का ग्लास भी हाथ में दिया
बाहर रहने पर जब तक घर नहीं आया
सोई नहीं!!
पर घर में नहीं रख सकी
बेटा जो है ,घर में थोडी बैठेगा
देर रात आने पर पिता से छुपाना
खाना गर्म कर देना
अगर बाहर खा आया तो उठाकर फ्रीज में रखना
दूसरे दिन वही खुद खाना
बेटे को ताजा देना
एक बनियान भी नहीं धोना
कपडा धोना ,इस्री करना आदि काम.
शादी हुई तब भी वही हाल
पहले त्योहार दोस्तों के साथ मनाता था
अब अपनी पत्नी के साथ
घर से अब भी गायब
अब तो उसे अपने और भी फर्ज निभाना था
मन की ईच्छा मन में ही धरी रह गई
पूरा परिवार इकठ्ठा हो जश्न मनाएगा
यह तो हुआ नहीं
अब तो डर लगता है कि
कहीं घर छोडकर न चला जाय
और उम्र के इस पडाव पर कोई रिस्क नहीं ले सकती

Wednesday 21 December 2016

इंसान की फितरत

जिंदा रहते जिसकी आलोचना
मृत्यु पर उसी की प्रंशसा???
जीते- जी तो जीवन दूभर
लडाई- झगडा ,कोर्ट- कचहरी
शॉति से सॉस लेना मुश्किल
यह है समाज का रवैया
जीवन को नर्क बनाने में कोई कसर नहीं
बाहर निकलना मुश्किल .
तानों और व्यंग की बौछार
इतना परेशान कि व्यक्ति टूट जाय
कभी  - कभी तो उसकी भी सजा
जो उसने किया ही नहीं!!
हर किसी के पास झेलने का शक्ति नहीं
कुछ टूट जाते हैं
कुछ बिखर जाते हैं
कुछ जीते- जी मर जाते हैं
कुछ सच में मर जाते हैं
मरने पर मातम मनाना
घडियाली ऑसू बहाना
दिखावा करना
यही इंसान की फितरत बन गई है

देश कहॉ जा रहा है?????

देश कहॉ जा रहा है???
राजनेता एक- दूसरे पर आरोप- प्रत्यारोप कर रहे है
हर कोई कह रहा है
उनको बोलने नहीं दिया जाता
फिर वह मोदी जी हो राहुल हो या विपक्ष
तो बोल कौन रहा है!!?
हल्ला कौन मचा रहा है??
प्रश्नों के जवाब कौन नहीं दे रहा है
क्या जनता!????
जनता तो बेचारी बनी हुई है
लाईन में खडे अपने पैसे के लिए तरस रही है
सूझ नहीं रहा है कि क्या करे??
सारा कामकाज ठप्प पडा है
आपातकालीन स्थिती हो गई है
अब हमारे राजनेताओं को और क्या बोलना है!?
अब बोलना नहीं सुलझाना है
जनता को कठपुतली समझ लिया गया है
हर आए दिन नियम बदले जा रहे है??
जनता सब देख रही है ,समझ भी रही है
नोटों का जखीरा बरामद हो रहा है
जनता पैसों के लिए मोहताज
तुम्हारे समय में इतना घोटाला??
अतीत का ठीकरा फोडने से बेहतर वर्तमान को देखे

जीवन के रंग

जीवन के रंग निराले
हर दिन नया हर पल नया
क्षण- क्षण बदलता मौसम यहॉ
एक पल खुशी तो दूसरे पल गम
ऑखमिचौली चलती रहती है
कभी उजाला तो कभी अंधेरा
कभी उत्साह तो कभी निराशा
कभी शांति तो कभी कोलाहल
कौन- सा रंग कब बदल जाय
किस क्षण बदल जाय ???? .
अपनी- अपनी तूलियों से रंग देने की कोशिश
अनवरत प्रयास सदियों से
चटक रंग देने की कोशिश
पर पता नहीं वह भी धूमिल हो जाता
रंग भी है तूलिका भी
न जाने चित्रकार ने न जाने कौन- सा रंग भरा है
रंग तो अनेक है
हमारे हिस्से में कब और कौन- सा रंग आएगा ???

Monday 19 December 2016

सबका मालिक एक

येशु या ईश
दोनों ही पूजनीय
दोनों के जन्म पर जश्न
खुश होना ,गाना- झूमना
दोनों ही रक्षक
किसी के नाम पर मोमबत्ती तो किसी के नाम पर दिपक
उजाला और प्रसन्नता हर ओर
भजन हो या सांग
पर पुकारना तो उसे ही है
लोगों का मिलना- जुलना
केक हो या मिठाई
मुँह तो मीठा ही होता है
एक का जन्म अस्तबल
दुसरे का तो गाय के बिना कल्पना ही नहीं
क्रिसमस हो या जन्माष्टमी
रात को बारह बजे चर्च की घंटी भी बजती है
और जन्माष्टमी को बारह बजे मंदिर में भी जश्न
सब अपने - अपने ईश्वर को याद करते हैं
फिर आपस में दुराव क्यो???
एक - दूयरे को नीचा दिखाने की कोशिश क्यों!?
प्रसाद लेने में भी परहेज
मिठाई समझ कर ही खा लिया जाय.
खुदा तो खुदा ही है
वह किसी का भी हो
सर्वशक्तिमान के चरणों में तो झुकना ही है

आशियाना - जीवन का अभिन्न भाग

दिवार पर टंगा बया का घोसला
शो - पीस के रूप में ,देख कर दंग
इतनी बारीक और करीने से बुना
कितना प्रयास और मेहनत पडा होगा
अपने परिवार को संरक्षण देने में ,सजाने में
एक ऑधी ने सब ध्वस्त कर दिया
हम भी तो कितनी मेहनत से तिनका जोड- जोड
आशियाने का निर्माण करते हैं
सजाते हैं ,संवारते हैं
हर व्यक्ति की ईच्छा उसके सपनों के घर की होती है
इस स्वप्न को पूरा करने के लिए वह जी- जान से प्रयत्न
करता है
पर प्रकृति की विभिषिका सब ध्वस्त कर जाती है
महाप्रलय का तांडव कुछ भी नहीं छोडता
लाचार व्यक्ति देखता रह जाता है
कभी तूफान ,कभी बाढ ,कभी भूकंप
आज आगजनी और बमबारी के कारण
जीवन बच जाता है पर घर नहीं
वह बेघर हो जाता है
फिर वही जद्दोजहद शुरू
पर अबकी बार इतना आसान नहीं
पीढी गुजर जाती है
आशियाना बनाने में
अब फिर कब वह सुंदर आशियाना बनेगा?????

चल पडी जिंदगी

चल पडे सफर की ओर
पहाडों- नदियों पर्वतों की सैर
घर से दूर प्रकृति की ओर
नीला आकाश ,तारों की ओर
सूर्योदय और सूर्यास्त से सानिध्धय की ओर
भीड- भाड ,शोरगुल से दूर
शॉति और आंनद की ओर
मोटरगाडी की पों पों व कर्कश ध्वनियों से दूर
चिडियों की चहचहाअट ,कोयल की कू- कू की ओर
शुभ्र - स्वच्छ वादियों की ओर
रेलगाडी और बस से दूर ,नौकायन की ओर
झर- झर झरते ,झरने की ओर
प्रकृति के हर रूप का आंनद लेने की ओर
सफर हो सुहाना ,हर क्षण - पल नया
चल पडी जिंदगी खुशियों की ओर

Sunday 18 December 2016

मैं शिक्षक हूँ - किसी के पूछने पर आप क्या करते हो???

मैं पत्थर को तराशकर हीरा बनाता हूँ

गुमनामी से बाहर निकालकर पहचान बनाता हूँ

अंधेरों से दूर प्रकाश की ओर ले जाता हूँ

मैं तो वह कुम्हार हूँ जो कच्ची मिट्टी से घडा बनाता हूँ

मैं तो वह मूर्तिकार हूँ 

जो बेजान में भी जान भर देता हैंतो वह कलापारखी हूँ
देखते ही पहचान जाता हूँ
अंदर की कला को निखारता हूँ
इंसानियत का पाठ पढाता हूँ
भविष्य निर्माण करता हूँ
देश और समाज की आधारशिला बनाता हूँ
मुझे कम मत ऑको
मैं शिक्षक हूँ
अगर मैं न रहूँ , सब चरमरा जाएगा
मैं तो वही रहता हूँ
पर अपने नौनिहालों को उन्नति के शिखर पर पहुँचाता हूँ

मॉ और बच्चे

मॉ आएगी ,खाना लाएगी
प्रतीक्षा में बैठे हैं बच्चे
भूख लगी है पर कुछ खाने को नहीं
मॉ जो दूसरों के घर खाना बनाने गई है
बर्तन यहॉ- वहॉ बिखरे पडे
रसोईघर भी है उदास
अन्न आएगा तभी तो चूल्हा जलेगा
मॉ आएगी थकी- हारी
दूसरो का झाडू- बर्तन और खाना बनाकर
कुछ बचा- खुचा ले आएगी
बच्चे देखते ही लपक लेगे
यह जाने बगैर कि उसने भी कुछ खाया है या नहीं
बच्चों को खाते देख प्रसन्न हो उठेगी
जुट जाएगी फिर खाना बनाने में
अपने घर और बर्तन साफ करने में
यही उसकी दिनचर्या
बुखार हो या सरदर्द
कभी न थकती न आराम करती
सुबह से शाम तक भागती
ताकि बच्चों का पेट भरे
वे आराम की नींद सोए
दूबली - पतली काया ,हर दम व्यस्त रहती
बच्चों का पेट भरते खुश रहती

एड्स - जीओ और जीने दो

एड्स का मरीज
उससे दूर रहना या पास जाना
तिरस्कार करना या अपनाना
इस सोच से निजात पाइए
इस किन्तु - परन्तु को छोड उसे प्रेम से गले लगाइए
एड्स मर्ज है मौत नहीं
अपने मन का विस्तार करो
उसे समझो ,अपनाओं और प्यार दो
मौत से पहले जिंदगी मत छीनो
जिंदगी को जीने का शानदार मौका दो
मरीज को इंसान समझो ,लाश नहीं
जिंदगी को खुल कर जीने दो
उससे बचो नहीं उसे बचाओ
भागो नहीं अपनाओ
इंसान बनना है हैवान नहीं
मौत के मुहाने पर खडी जिंदगी
हँसने और खिलखिलाने दो
जब तक जीवन है उसे जी लेने दो
बस अपने मानसिक क्षितिज का विस्तार करो
स्वयं भी जीओ और दूसरों को भी जीने दो .

Friday 9 December 2016

शिक्षक का सम्मान तभी भविष्य का निर्माण

आए दिन शिक्षकों को कटघरे में खडा करना फैशन बन गया है
मॉ - बाप का पहला सवाल कि
टिचर ने डाटा क्या ??
एक हमारा जमाना था जब मार खाकर आने पर भी हिम्मत नहीं थी कि
अपने टिचर की बुराई कर दे
आज अभिभावक सुनते है और बच्चों को शह देते हैं
स्कूल के गेट पर खडे होकर टिचर की आलोचना शुरू हो जाती है
यह नहीं सोचा जाता कि इसका बच्चे पर क्या असर होगा
पढाते हैं तो कोई उपकार नहीं करते
सैलरी मिलती है
अगर कुछ बोले तो बताना
डिपार्टमेंट में शिकायत कर देगे
तब पता चलेगा
यह सोचा है कभी कि अभिभावक इस तरह की भाषा बोलेगे तो नादान बच्चे पर क्या प्रभाव होगा
वह सम्मान कर पाएगा ,अपने गुरू का
उसके लिए तो उसका टिचर आदर्श होना चाहिए

Thursday 8 December 2016

किन्नर और मॉ

  मैं मॉ हूँ बस मॉ
फिर चाहे वह बेटा हो बेटी हो या किन्नर
मेरी कोख से जन्म लिया
मुझे मॉ शब्द से नवाजा
मॉ तो बच्चे को नौ महीने कोख में रखती है
अपने खून- पसीने से सींचती है
उसके साथ कैसे अन्याय करे???
विधाता ने उसकी झोली में जो डाला ,वह स्वीकार्य
बेटी हुई तो ,किन्नर हुई तो वह क्या करे??
उसे फेक दे या उसके समाज को दे दे
समय बदल रहा है ,सोच भी बदल रही है
क्यों छुपाया जाय.         या
उसे ताली बजा- बजाकर मांगने के लिए छोड दे
वह भी इंसान है
उसमें भी हाड- मांस का जीव है
उसकी भी भावनाएं है
वह भी पढना - लिखना और ऊँचाई पर पहुंचना चाहती काम करना चाहती होगी ,भीख मांगना नहीं
हिचक छोड अपनी कोखजायी संतान को प्यार से अपनाना है
अपने पैरों पर खडे होने को प्रेरित करना है
यह काम मॉ ही कर सकती है
शुरूवात उसी से करनी होगी
मुर्गी  जैसी जीव अपनी संतान के लिए बिल्ली और चील से भिड जाती है
तो फिर आप क्यों नहीं???
समाज और परिवार से लोहा ले सकते हैं
संतान तो संतान ही होती है
हर रूप में बहुमूल्य
मॉ भी मॉ ही होती है ,सारी पीडा को हरनेवाली

मेरी आंकाक्षा

मैं नहीं चाहती कि सारा आकाश मेरी मुठ्ठी में हो
मैं यह भी नहीं चाहती कि क्षितिज मेरे सामने बॉहे फैलाए खडा हो
हॉ यह जरूर चाहती हूँ
कि मेरे बच्चों को उडने की शक्ति दे
व्यवस्थित घर - संसार ,जीवन का निर्माण हो
जब भी मेरे कदम डगमगाए
उन्हें इतनी शक्ति देना कि वह अपनी जडो को पकडे रहे
जब भी कमजोर पडू ,मन को आश्वस्त करना
जब भी डर लगे ,निर्भयता का वरदान देना
दुख के क्षणों में भी मैं घबराऊ नहीं
बल्कि डटकर उनका सामना करू
दुख और संघर्ष से मुझे मुक्ति मिले
यह मेरी कामना नहीं
दुखों और संघर्षों का हँसकर मुकाबला करू
इसी आशिर्वाद की अपेक्षा है ईश्वर से

बटाटा - मत कहिए टा टा

मैं आलू  कहीं- कहीं बटाटा
पर सब करते हैं मुझे टा टा
मैं हर घर- रसोई की जरूरत
शाकाहारी या मांसाहारी
हॉटेल ,रेस्तरा ,गली ,चौराहा ,हर जगह
सस्ता और अच्छा ,स्वादिष्ट भी
गरिबों का तो पेट भरने का जरिया
बडा- पाव तो हर किसी की पसन्द
समोसा ,वेफर ,पेटिस हर समारोह में
हर सब्जी के साथ घूल- मिल कर रहना
सब्जी की मात्रा बढानी हो या कम हो
मैं सस्ता जो हूँ और मिलनसार भी
फिर भी लोग नाक- भौं सिकोडते हैं
हर चीज में बटाटा !!???
डाइटिंग करने वाले मुझसे परहेज करते हैं
मुझे खाकर मोटापा जो बढ जाएगा
कार्बोहाइड्रेट और स्टार्च से भरपूर हूँ
पर वे यह भूल जाते हैं कि मुझमें बहुत से गुणधर्म है
पर तलकर मेरा गुण खत्म कर दिया जाता है
और दोष मुझ पर ?!?
मैं बच्चों ,बूढो और जवान सभी का प्यारा हूँ
सब चाव से खाते है मुझसे बना स्वादिष्ट पदार्थ
फिर भी मुझे दोष दिया जाता है
क्या फिर वही बटाटा ???
मुझे दुख होता है
मैं तो सबके काम आता हूँ
मेरे ऊपर गाना और शायरी भी की गई है
" जब तक समोसे में रहेगा आलू...........
मैं भी सम्मान चाहता हूँ ,निरादर नहीं
जब सब सबजियॉ मंहगी हो जाती है तब भी मैं ही साथ निभाता हूँ
मैं तो हर मौसम में चलता हूँ
रसोईघर की रौनक हूँ
मुझे टा टा मत करिए .
सब्जियों का राजा कहिए

Wednesday 7 December 2016

हँसना और मजाक संभल कर करें

हँसना और मजाक करना
यह मामूली बात नहीं है
जिस पर आप हँस रहे हैं
जिसका मजाक उडा रहे हैं
वही शायद लौटकर आपके पास न आए
आप ने तो ऐसे ही मजाक में यह बात कह दी होगी
पर वक्त ऐसा तमाचा मारेगा
कि सिट्टी ,पिट्टी गुम हो जाएगी
वक्त किसी का सगा नहीं है
वह तो अनवरत चलता रहता है
आज उसकी बारी तो कल आपकी बारी हो सकती है
हॉ समय जरूर लग सकता है
पर समय किसी को छोडता नहीं है
बुरे वक्त को कोई जान- बूझकर आमंत्रित नहीं करता
क्या पता कौन- से जन्मों का फल
या फिर इस जन्म का फल
मनुष्य तो असहाय है
सब कुछ तो ऊपर वाले सर्वशक्तिमान के हाथ है
जब आप किसी के दुख या पीडा का मजाक उडाते है
तब अप्रत्यक्ष रूप से विधाता पर हँसते हैं
उनका मजाक उडाते हैं
ईश्वर के तराजू में तो सबका पलडा बराबर ही होता है
तो हँसिए मत ,प्रेम बाटिए.
आपको भी सुकुन मिलेगा और दूसरे को भी

मेला है मनभावन मेला

मेला लगा है मनभावन
बच्चे - बूढे ,जवान- महिला सबका स्वागत
मौज- मस्ती करो ,नाचो- गाओ
खाओ- पीओ ,धूम मचाओ
झूले झूलो ,गेम खेलो
पाव- भाजी ,बिरयानी खाओ
देशी- विदेशी सब व्यंजन
नाचो से लेकर फ्रेंकी तक
नींबू पानी ,गोला ,थम्सअप
गर्म और ठंडा जो चाहो
कडक गर्म चाय- कॉफी और ठंडी- ठंडी आईसक्रीम
रंगबिरंगी लाइट और गुब्बारों से सजा
बिजली और आतिशबाजी के खेल भी
गूंजती संगीत की लहरियॉ और डी जे भी
अपनों के साथ आओ ,पुराने दोस्तों को बुलाओ
मस्त महफिल जमाओ ,मेले की रौनक बढाओ
खाओ - खिलाओ ,हुडदंग मचाओ
श्यामा भी आओ ,अफसाना भी आओ
रॉबर्ट भी आओ ,रूस्तम भी आओ
चिंकी - मिंकी ,भोलू- गोलू
सब मिलकर आओ
मेले की शोभा बढाओ
मौज- मजा करो
खुशी - खुशी घर जाओ

अम्मा (जयललिता जी ) नहीं रही

गरिबों की अम्मा नहीं रही ,किसी दूसरी दुनियॉ में चली गई
तामिलनाडु रो रहा है ,बेहाल है ,हाहाकार मचा है
अम्मा से इतना प्रेम क्यों??
अम्मा भी सबसे इतना ही प्रेम करती थी
उनकी अपनी संतान नहीं ,परिवार नहीं
पर वह सबकी मॉ बन गई
अपने बच्चों को भरपेट भोजन उपलब्ध कराना
शिक्षा ,शादी से लेकर घरेलू जरूरते
सब अम्मा ने दिया
वे बेसहारों का सहारा बनी
लाचार की हिम्मत बनी
महिलाओं की रक्षक बनी
जनता की हिम्मत बनी
उन्होंने जनता का विश्वास कायम रखा
उनका भाग्य बदल कर रख दिया
तमिलनाडु की राजनीति में ही नहीं ,भारत की राजनीति में भी वर्चस्व कायम रखा
स्त्री शक्ति की प्रतीक बनी
सौभ्य चेहरा पर कठोर निर्णय
विरोधियों को मात देना
अभिनेत्री का रोल तो बखूबी निभाया
राजनीति में उतर कर उसकी चतुर खिलाडी भी बनी
उनके जाने से भारतीय राजनीति का एक सितारा टूट गया      पर
उसकी चमक बरसों कायम रहेगी

Tuesday 6 December 2016

शांति और अशांति के बीच झूलता मनुष्य

शांति भी बोलती है बस उसका अहसास हो
रात्रि की नीरव शांति हो या प्रभात की बेला
चिडियॉ की चहचहाहट हो या रात्रि कीटक की ध्वनि
समुद्र की लहरों की आवाज या पत्तों की सरसराहट
मंदिर की घंटियॉ और शंखनाद
क्या वास्तव में शांति चाहता है मानव !?
ये जयघोष ,उल्लास ,भजन                                बम- फटाका .बैंड- बाजा,कानफोडू संगीत
हर उत्सव में घूम- घडाका
यही तो उसकी ख्वाहिश रही
यहॉ तक कि रात में भी उमडते- घूमडते विचार उसे शांत नहीं कर पाते
वह सबका आनन्द लेना चाहता है
शांति- शांति करता जरूर है पर शांति उसे भाती नहीं
मस्तिष्क चलबचल है ,हलचल होना स्वाभाविक है
हलचल के साथ जीना चाहता है
निर्माण स्वयं उसका है तो परिणाम भी उसे ही भुगतना है
चुप रहकर भी बोलता है
जब वाकई बोलता है तो सबको डवाडोल कर जाता है
शांति की खोज में पर्वतीय स्थल की सैर पर जाता है
पर वहॉ भी आवाज के बिना नहीं रह सकता
शांति और अशांति के बीच झूलता मानव
स्वयं समझ नहीं पाता कि
वह शांति चाहता है या नहीं

मिठास बिना जीवन बदरंग

जीवन में मिठास भरिए
मीठा बोलना सीखिए
कडवी नीम ही हमेशा मत बनिए
कडवाहट जीना दूभर कर देगी
मिठास ,जीवन में रस घोलती है
जीवन को खूबसूरत बनाती है
प्राणवायु का काम करती है
जीवन में स्वाद भरती है
कभी- कभी कडवाहट ठीक है पर हमेशा??
फिर तो आप अलग- थलग पड जाएगे
बात करने से भी लोग कतराएगे
मन से नहीं बस औपचारिकता निभाएगे
दोस्त कम दुश्मन ज्यादा बन जाएगे
बीमारी में ही कडवी गोली का प्रयोग
मधुमेह में ही नीम और करेला
पर जीवन में हर पल कडवाहट
अपना जीवन तो मुश्किल करेंगे ही
साथ में दूसरों का भी
मिठास बिना तो जीवन नीरस और बदरंग पड जाएगा
मिठास की तो आवश्यकता है

कहॉ है शांति!!!

शांति की खोज में भटकता फिरा मैं
पर कहीं शांति के दर्शन नहीं
घर हो या बाहर
बगीचा हो या मंदिर
पर्वतीय स्थल हो या नदी किनारा
प्रकृति तो शांत है
उसकी गूंजती स्वर लहरियॉ,शांति का आभास देती है
पर वह शांति कानफोडू नहीं मनभावन होती है
कानफोडू का निर्माण मनुष्य ने किया है प्रकृति ने नहीं
निर्झर ,सागर ,वर्षा की बूंदे
मन को आहादित कर जाती है
पशु- पक्षियों ,कीट- पंतगों की आवाज
पेड का सरसराना , हवा का डोलना
सृष्टि के दूसरे जीवों की उपस्थिती का अहसास दिलाती मनुष्य और प्रकृति में यही विरोधाभास है

मेरी काठी ,मेरी लाठी

मेरी काठी ,मेरी लाठी ,है सबसे प्यारी
हरदम साथ निभाती मेरा
सहारा देने को रहती तत्पर
गिरने- पडने से मुझे बचाती
मेरे साथ- साथ यह भी आराम फरमाती
मेरे उठते ही यह भी तैयार
सुबह से लेकर रात तक
अंधेरा हो या उजाला
गर्मी हो या ठंडी या फिर मुसलाधार बारीश
घर हो या बाहर
संग हमेशा रहती
लडखडाते कदमों का सहारा
उबडखाबड रास्ते या जीने की चढाई
इसके बिना तो सब मुश्किल
यह न रहती तो जीवन हो जाता दुश्वार
कौन सहारा देता ,किसका सहारा लेता
ऐसा संगी कहॉ से मिलता
है तो यह निर्जीव
पर चलती है मेरी साथी बन
स्वावलंबन का एहसास दिलाती
अपनेपन से मुझे संभालती
मेरी काठी ,मेरी लाठी ,सबसे न्यारी सबसे प्यारी