Sunday 30 June 2019

उनका प्रेम तुम नहीं समझोगे उद्धव

यह तो प्रेम की बात है उधो
वह तुम नहीं समझोगे
वह नहीं आएंगी यहाँ
न गोपियां न राधा
वे सब मुझसे बहुत प्रेम करती हैं
मैं उनको छोड़ आया हूँ
उन्होंने मुझे नहीं छोडा है
मैं तो उनके दिल में हूँ
यह बात तुम नहीं समझोगे
यहाँ तुम्हारे ज्ञान के लिए कोई जगह नहीं
उनकी भक्ति मे प्रेम रस  समाया है
वह विरह में प्राण दे देंगी
पर आएगी नहीं
स्वाभिमानी जो है
यह स्वाभाविक भी है
जिससे प्रेम करते हो
उस पर अधिकार होता है
उनके लिए मैं ईश्वर नहीं
कन्हैया हूँ
निर्गुण निराकार नहीं
सगुण साकार हो
उद्धव समझने की कोशिश कर रहे थे
यह जग का पालनहार है
ऐसे प्रेम में उलझे हैं
धन्य है
जिन्हें इतना प्रेम प्राप्त हुआ
ईश्वर को भी जकड रखा है
सारा ज्ञान
सारी साधना एक तरफ
गोपियों और राधा का प्रेम
सबसे ऊपर
धन्य हैं ब्रजवासी
धन्य है वह भूमि

पीपल को लोग भूल जाएँगे

सडक पर पीपल खडा रहता था
अपनी डालियों और पत्तियों के साथ लहलहाता
आज धडाम से गिरा पडा है
रास्ता अवरुद्ध है
उसके टुकड़े टुकड़े कर हटाना है
नगरनिगम वाले आएगे
काटकर हटाएगे
यह तो बहुत मजबूत था
बरसों पुराना था
न जाने कितनी पीढियों का इससे रिश्ता था
जुडाव और लगाव था
पूजा होती थी
औरते अपने सुहाग सलामती की दुआ मांगती थी
पूरी ,कढाई ,चुनरी चढाई जाती थी

अरे ! यह क्या
सडक को चौडा करना है
गड्ढे खोद दिए गए हैं
उसमें नीचे उसकी जडे भी आ गई
उखाड़ दी गई
आखिरकार तेज हवा के थपेडों को सह न पाया
धडाम से गिर पडा

कोई कहता
इस पर भूत  रहते
कोई कहता
भगवान वासुदेव का निवास
विज्ञान कहता
सबसे ज्यादा ऑक्सीजन देता

जो दूसरों को प्राणवायु दे रहा था
अपने प्राण न बचा सका
उसका पत्ता ह्रदय के आकार का
पर किसी ने उसके ह्रदय की परवाह न की
आज सडक पर पडा है
जार जार रो रहा है
लावारिश है
कुछ समय बाद गाडी आएगी
उसे लादकर ले जाएगी
सब कुछ वैसा ही रहेगा
सडक और चौडी हो जाएगी
उस जगह कुछ गाडियाँ पार्क हो जाएगी
पीपल को लोग भूल जाएँगे

न लेना न देना मगन रहना

पुरानी कहावत है
जहाँ ज्यादा मिठास हो
वही कीडे लगते हैं
चींटिया वही मंडराती है
चट कर डालती है
इतना भी संबंध नहीं
कि आप पर भारी हो
आपका व्यक्तित्व खत्म होने लगे

बिस्कुट को ही देखिए
जब चाय में ज्यादा डूबता है
तब स्वयं ही खत्म हो जाता है
संबंध रखिये
पर उतना ही
जितना जरूरी हो
कबीर का दोहा कितना खरा है
   न लेना न देना
मगन रहना
अपने आप पर किसी को हावी न होने दें
चाहे वह कोई भी हो
ऐसे भी यह अस्थायी है
बदलता रहता है
आज आप
    तो
कल कोई और
अतः अपने आज को कायम रखिये

शब्द जरा संभाल कर

शब्दों से तीर मत चलाओ
शब्दों से फूल चलाओ
जो मरहम का काम करे
किसी के तप्त ह्रदय को शांत करे
किसी का दुख दूर करें
न कि किसी की दुखती रग को छेड़े
धीरज और सांत्वना दे

शब्दों के मायाजाल से बचे
इसे निकलने में तो क्षण भर नहीं लगता
पर भुलाने में बरसों लग जाते हैं
इसका घाव कभी नहीं भरता
इसकी अग्नि ठंडी नहीं होती
धधकती रहती है
कभी-कभी विनाशकारी भी

बहुत सोच समझ कर बोलना है
जिह्वा पर नियंत्रण
यही इसका मूलमंत्र
यही सम्मान का हकदार
यही अपमान का कारण
अंशाति का कारण
पास आना है तो फिर मिठास
दूर होना है तब कडवाहट
स्वयं के जीवन में भी मिठास
औरों के जीवन में भी
आवाज का जादू चल गया
तब आपके समक्ष कोई नहीं टिक सकता
सबके दिल पर राज होगा

मुंबई की नियति में क्या है ??

मुंबई पर कृपा हुई
बारिश भी झमझम हुई
समुंदर भी उफान पर
सब किनारे मौज मजा कर रहे
गर्मी से राहत

इसका दूसरा पहलू
गटर भी भरे लबालब
सडके डूबी पानी में
ट्रेफिक हुआ जाम
पेड गिर रहे
जर्जर मकानों की हालत बेकार
जाने जा रही
उसके लिए कौन जिम्मेदार

सरकार
प्रशासन
महानगर पालिका
मुंबईकर

इसका तो उत्तर अनुत्तरित
शंघाई तो दूर
संघर्षों का शहर
कब तक यही चलता रहेगा
हर वर्ष ऐसे ही
इंतज़ार है
समुंदर में समाने का
आज पानी पानी
आने वाले कल में पानी में
माया नगरी
आर्थिक राजधानी
लघु भारत
इसकी नियति में
    अच्छे दिन कब आएगे

वाह रे जिंदगी के पैंतरे

चलना ही जिंदगी है
चलते रहो चलते रहो
चलते ही रहे आज तक
बिना थके बिना रुके
पर कब तक चले
अब तो कदमों की चाल भी धीमी
उस पर आलम यह है कि
जिंदगी वही अटकी है
अब तो कदम भी लडखडाने लगे हैं
सोच आती है
चले ही क्यों ??
क्या मिला
जिंदगी तो पैंतरे बदलती रही है
वही ठीक था
पर विड॔बना देखे
पीछे भी कदम नहीं ले सकते
समय ने कुछ छोड़ा ही नहीं है
न सोचने के लिए
न आगे बढने के लिए
न नया कदम उठाने के लिए
डर लगने लगा है
कब और किस रूप में धोखा दे देंगी
कब साथ छोड़ देगी
कब अधर में लटका देंगी
उलझा देगी
अपने तो दूर खडी तमाशबीन की तरह
और हम उसके ही भ॔वर में गोते लगाते

Saturday 29 June 2019

स्वाद का राज

स्वाद की बात निराली
जो स्वाद पांच सितारा होटल में नहीं
वह नुक्कड़ के ठेले पर
सवाल पसंद नापसंद की है
जीभ के स्वाद की है
वही बात माँ के हाथ के बने खाने की भी
उसमें प्रेम परोसा रहता है
हाथ की खुशबू समाई रहती है
वही स्वाद ठेलेवाले के पास
उसकी चटनी भी चटखारे लेकर खाना
वह अपने ग्राहक से जुड़ा रहता है
तीखा या मीठा की मात्रा का भी अंदाजा उसे
पैसे न हो
दूसरे दिन पर छोड़ देना
एकाध पूरी ऐसे ही पकडा देना
यही अपनापन उसकी भेलपुरी को स्वादिष्ट बना जाते हैं
दिखावट नहीं
दोस्तों का जूठा भी प्रिय
स्वाद दिल से जुड़ा होता है
वह जीभ के रास्ते पहुंचता है
पर राज दिल पर करता है

समाज को नजरअंदाज करो


तुमको जो अच्छा लगे
वह करो
जो पहनना हो पहनो
जहाँ घूमना हो घूमो
जिससे दोस्ती करना हो करो
जब उठना हो उठो
लोग क्या कहेंगे
इसकी परवाह नही
लोग तो कहते ही रहते हैं
न करो तब भी
करो तब भी
दूसरों के मामले में टांग अड़ाना
अपना जन्मसिद्ध अधिकार
कितना भी अच्छा हो
दुनिया की पुरानी आदत है
नजर गडाकर रखना
दूसरों के जीवन में दखलंदाजी
अपने गिरेबान में झांकने को फुर्सत नहीं
हाँ दूसरों पर यह कृपा अवश्य
इस समाज में रहना है
तब इन सबसे कोई फर्क नहीं पड़ता
मेरी जिंदगी
मेरे मुताबिक
समाज के मुताबिक नहीं
अपने को इतना ऊपर उठाना है
ताकि यह सब फिजूल लगे
समाज को नजरअंदाज कर
अपना नजरिया बदलना है

Friday 28 June 2019

ऐसी होती है माँ

ईश्वर ने एक माँ से कहा
तुम्हारे सब सुख ले लिया जाय
उसके बदले में तुम्हें मनचाहा वरदान मांगने को कहा जाय
तब तुम अपने लिए
क्या मांगोगी
माँ ने ऐसा उत्तर दिया
ईश्वर भी हतप्रभ हो गए
मुझे अपनी संतान का भाग्य
अपने हाथों से लिखने का अधिकार मिले
दुख को तो उसके पास न फटकने दू
सारी खुशियाँ उसके कदमों में रख दू
उसे देखकर ही
मुझे सब कुछ हासिल हो जाएगा
ऐसी होती है माँ
अपने लिए नहीं
अपने जिगर के टुकड़े के लिए जीती है
निस्वार्थ प्रेम
जिसका कोई मुकाबला नहीं
किसी से भी नहीं

तुम तो मेघराजा हो

बरसो रे मेघा बरसो
जम कर बरसो
एक तुम्ही तो हो
अपनी कृपा सब पर बरसाते हो
तुम्हारे लिए
कोई भेदभाव नहीं
कोई जात पात नहीं
कोई अमीर गरीब नहीं
कोई सुंदर - बदसूरत नहीं

यहाँ तो यह सब नहीं
यह पृथ्वी लोक है
तुम तो आसमान से आते हो
यहाँ की व्यथा
तुम क्या जानो ??

अच्छा ही है
तुम इन सबसे परे हो
यह लोक तो भेदभाव से भरा है
हर कमजोर को दबाना
नीचा दिखाना
तंज कसना
ईर्ष्या द्वेष से भरी पडी

कुछ का बस चलता
तो तुम्हें भी बांध कर रखते
अपनी मर्जी चलाते
छोटेपन का एहसास कराते

तुम बरसो
जी भर बरसो
बंदिशो से परे हो
तुम तो मेघराजा हो

गाय पर गदर

गाय हमारी माता है
भोली भाली है
हिंसक नहीं अहिंसक है
चारा खाती है
दूध देती है
नौनिहालो का पोषण होता है
गोबर से लेकर मूत्र
सब औषधिय गुणों से भरपूर
इस अहिंसक गऊ माता के नाम पर हिंसा
जान ले लेना
यह तो इतनी शांत
उनके नाम पर अशांति
गऊ माता भी
दुखी हो रही होगी
वह तो सबकी है
फिर उनको
क्यों बांटा जा रहा

बोल जय श्री राम

जय श्री राम
जय श्री राम
बोल बोल
नहीं बोला
पिटाई होगी
जान ले ली जाएगी
यह कहाँ का कानून है

तब तो कोई कल
उठकर कहेगा
अल्लाह का नाम ले
नहीं लिया तो
पिटाई होगी

राम मर्यादा पुरुषोत्तम है
उनके नाम पर मर्यादा तोड़ना
किसी की जान ले लेना
राम ने तो विवाद से दूर रहने के लिए
अयोध्या का सिंहासन छोड़ दिया

राम को सडक पर लाकर खडा कर दिया
गली कूचे में
श्रीराम तो हर हिंदू के दिल में है
उनके नाम पर
हिंदू को ही बांटा जा रहा
देवी और राम
ऐसा तो कभी नहीं हुआ

राम जी को राजनीति का
मोहरा बना दिया गया है
राम राज की कल्पना की
जम कर धज्जियां उड़ाई जा रही
यह तो अच्छा संकेत नहीं
राम जी विवाद के नहीं
आदर के हकदार हैं
उतना कि
हर व्यक्ति मन से बोले
      जय श्री राम
    जय श्री राम

मोहब्बत कैसी हो

मोहब्बत मन से हो
मजबूरी में नहीं
उसमे शर्त नहीं
समर्पण हो
स्वार्थ नहीं
निस्वार्थ हो
संकुचित नहीं
विशाल हो
अविश्वास नहीं
विश्वास हो
मजबूत हो
कमजोर नहीं
दिल से हो
दिमाग से नहीं
पवित्र हो
कामना रहित हो
त्याग हो
जिससे मोहब्बत
वही दुनिया - जहान हो
यह इकतरफा नहीं
दोनों का मन मिलाव हो
बिना मिलावट हो
ताजा-तरीन हो
क्षण भर का न
जन्मों का हो
मोहब्बत से ही तो दुनिया है
इसलिए मोहब्बत
किसी की मोहताज न हो
सारे ब॔धन से परे
अपने आप में बेमिसाल हो

Thursday 27 June 2019

अलविदा

आज याद आ रहा है वह शादी समारोह
मुझे बिटिया की शादी में दिया गया था
मैं किसी के मायके के साथ ससुराल आया था
बडा घर था
मुझे भी आलीशान कमरा मिला था
सब फर्नीचर थे
पर मेरी अहमियत खास थी
मैं उनके जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बन गया था
उसके बाद दो नन्हे मुन्ने भी मुझे भाने लगे
पूरा दिन धमा चौकडी
कूदना ,उछलना
मेरी बिटिया रानी अब माँ बन गई थी
समय गुजर रहा था
बच्चों की किलकारियां अब कम हो गई थी
उनके अपने कमरे थे
धीरे-धीरे वे भी बडे हो गए
उनकी भी शादी ब्याह हो गए
वक्त भाग रहा था
बिटिया रानी के साथ मेरी भी उम्र बढ रही थी
अब मै नागवार गुजर रहा था
बहुत जगह घेर रहा था
इतनी बडे बेड की क्या जरूरत
इसे बेच दो
अब पुराना हो गया है
छोटे कमरे में माँ को शिफ्ट करना है
उसमे यह नहीं आएगा
आखिरकार वह भी दिन आ गया
मुझे बाहर कर दिया
टेम्पो  पर लाद कर जा रहा था
जाते समय बिटिया रानी ने बडे प्यार से हाथ फेरा
धुंधली और पनियाली नजरों से मुझे देख रही थी
बिदा कर रही थी
मानो कह रही थी
अलविदा

Wednesday 26 June 2019

जुडाव का आनंद

रास्ते से गुजर रही थी
गुलमोहर के फूल और पत्तियां
सब जगह बिखरी पडी थी
लोग कुचल कर जा रहे थे
आज गुलमोहर कराह रहा था
यह वही फूल हैं
जो तप्त गर्मी
और धूप में भी मुस्करा रहे थे
आकाश में लालिमा भर रहे थे
कोमल पंखुड़ियां
सब खिलती और लहलहाती थी
इतराती थी
अंगारे जैसी दहकती थी
आभामंडल में अपना आभास कराती थी
आज जमीन पर पडी सिसक रही है
तितर बितर हो गई है
जडो से टूट गई है
अपनी डाली से अलग हो गई है
अलग होने का दर्द झेल रही है
आज महसूस कर रही है
पेड और डाली के मायने क्या हैं
जुडाव का आनंद ही अलग है

कोई कम या ज्यादा नहीं

माँ की कोख
कुम्हार का आवा
दोनों एक समान

कुम्हार कच्ची मिट्टी से गढ
बर्तन आवा में पकने के लिए डालता
कुछ पके सुंदर लाल सूर्ख
कुछ अधपके
कुछ टेढे मेढे
कुछ टूटे
डाला तो था सभी को
पर सब एक जैसे नहीं

माँ भी बच्चों को जन्म देती है
नव महीने पेट में रखती है
पर सब एक समान नहीं
कोई गोरा कोई सांवला
कोई बुद्धिमान कोई साधारण

इसके लिए माँ जिम्मेदार नहीं
यह उसके हाथ में नहीं
कुदरत का खेल है
ऊपरवाले की रचना है

हर रचना अपनी विशिष्टता के साथ है
हर का अपना स्थान
अपना सम्मान
अपना अंदाज
कोई कम या ज्यादा नहीं

मानसून ऐसे आए

मानसून आया
झलक दिखाकर गया
धूप छाँव का खेल खेल रहा है
लग रहा था
अब राहत मिल गई
पर यह क्या
गर्मी और बढ गई
बूंदाबांदी जब तब हो जा रही
जरूरत है
झमझम बरसने की
धरती को ठंडी करने की
जल बरसे
जी भर कर
थिम थिम नहीं
झर झर
हर हर
फहर फहर
लहर लहर
लगे मानसून आ गया
जल से सराबोर कर गया
रूक रूक
ठहर ठहर नहीं
गरज गरज
चमक चमक
भडम भडम
ऐसे आए
तब मजा आ जाए

अपने हिस्से की लडाई

आज बेटी को स्कूल छोड़ने गई
पहला दिन था
वह तो खुश थी
पर मैं नर्वस थी
कैसे पूरा दिन रहेगी
क्या करेंगी
डिब्बा खाएगी या नहीं
मन अविचलित हो रहा था
अचानक ख्याल आया
इतनी उलझन में मैं क्यों

कभी मुझे भी तो किसी ने इस तरह पहुंचाना होगा
मैं भी उनकी लाडली रही होऊगी
पर उन्होंने मुझे कभी घर रहने नहीं दिया
छोटी मोटी बीमारी में भी

आज लगता है
सही थे
परेशानी तो लगी रहती है
पर काम तो रूकता नहीं

आज पाठशाला की दहलीज पर कदम रख रही है
कल न जाने क्या घटित होगा
मैं कहाँ तक साथ रहूंगी
अपने हिस्से की लडाई तो अकेले ही लडनी पड़ेगी

मन शांत हो गया
माँ हूँ न
सोचना स्वाभाविक था
पर साथ में यह भी याद रखना चाहिए
हम माँ है
जीवन नहीं

संसद में तंज पर तंज

कल संसद का शमा ही कुछ और था
एक तरफ बहुमत में जीती पार्टी
मेज पर थाप देते उसके सदस्य
दूसरी तरफ अल्पमत में आई पार्टी
उसके सदस्य चुपचाप बैठे
अपमानित महसूस करते
तंज पर तंज कसा जा रहा था
पुरातन काल की जम कर बखिया उधेड़ी जा रही थी
दिन भी इमरजेन्सी वाला चुना गया था
इंदिरा और राजीव गांधी भी अप्रत्यक्ष रूप से निशाने पर थे
विपक्ष सर झुकाए बैठा था
वर्तमान से ज्यादा भूतकाल छाया हुआ था
लगा शब्दों के बाण चलाए जा रहे थे
उन पर सब हस रहे थे
अच्छा ही है
जब कांग्रेस के नेताओं ने कुछ किया ही नहीं
तब कांग्रेस मुक्त भारत कर देना चाहिए
उनके नेताओं के नाम इतिहास के पन्नों से हटा देना चाहिए
सरकार है
अधिकार है
कुछ भी कर सकती है
बस संसद में एक ही पार्टी बैठे
निर्णय ले
ऐसा दृश्य देखने से अच्छा है
सकारात्मक कार्य हो
तंज पर तंज
यह तो संसद में भी जंग
राहुल को पप्पू बनाने में किसी ने कोई कसर नहीं छोड़ी है
सोनिया विदेशी ही है
उनके परिवार ने जबरन देश पर राज किया
देश को गर्त में ले गए
भ्रष्टाचार के पैसे से खा रहे हैं
ऐसे लोगों को देश में रहने नहीं देना चाहिए
अमीर के बच्चों को भगा देना चाहिए
उनके सारे अधिकार खत्म कर देना चाहिए
किसी नेता का कोई भी रिश्तेदार किसी पद पर न आए
ऐसा सख्त कानून बनाए
एक खानदान में केवल एक ही व्यक्ति
तभी विकास होगा
सबका विश्वास प्राप्त होगा

Monday 24 June 2019

बगिया का माली

मैं बगिया का माली हूँ
मुझे अपने बगीचे के कण कण से प्यार
उसकी मिट्टी से पेड तक
हर फूल से
हर कली से
हर पौधे से
हर लता से
जी भर कर प्यार
उनको सवारता हूँ
सहेजता हूँ
जतन करता हूँ
खाद पानी देता हूँ
जब यह बडे हो जाते हैं
लहलहाने है
फल फूल देने लगते हैं
खुशबू से महकने लगते हैं
तब मैं भी खुश
मैं माली जो ठहरा
अपने हाथों लगाई हुई बगिया
उसे हमेशा हरा भरा देखना चाहता हूँ
इनको मुस्कराते देख
मेरी मेहनत सफल
इसके लिए क्या किया
यह कोई मायने नहीं
बस माली तो अपनी बगिया को लहलहाते देखना चाहता है
उसकी जिंदगी उन तक है
उनका मुरझाना
नष्ट होना
टूटना
उसे गंवारा नहीं
वह तो हर पल प्रतिबद्ध है
उसका जीवन ही वही है

Sunday 23 June 2019

समय और परिस्थितियां

कोयल की कू कू
कर्कश लग रही है
लगातार चिल्ला रही है
कान फटे जा रहे हैं
यह है कि रूकने का नाम नहीं लेती

अचानक ऐसा क्यों लगा
ज्यादती किसी भी चीज की अच्छी नहीं होती
मिठास भी कभी-कभी जहर बन जाता है
हर का अपना अपना महत्व
तीखापन भी स्वादिष्ट लगता है
सही मात्रा में हो तब

कौए की कर्कशता
कोयल की मधुरता
हमेशा एक सी लगे
यह जरूरी तो नहीं
समय और परिस्थितियों तय करती हैं

हमें छोड़ गई

याद आ गई उस शख्स की
वह मेरे जीवन का अहम हिस्सा
पर उसके रहते उसकी अहमियत समझ ही नहीं पाई
वह छोटी बहन थी
लडाई झगड़ा
डाटना फटकारना
रौब जमाना
यही करती रही
बडी बहन के नाते
जब चली गई तब पता चला
अकेली हो गई
हर मौके पर उसकी याद
सब अपने में व्यस्त
वह होती तो साथ होती
हमें इसका एहसास नहीं होता है
यह शख्स हमें छोड़ जाएगा
महसूस होता है
जाने के बाद
हम उलझनों में व्यस्त रहते हैं
प्रेम के दो मीठे बोल भी नहीं बोल पाते
जबकि वे हमारे अजीज होते हैं
आज एक कसक उठती है
काश फिर हम मिल पाते
तब सारे गिले शिकवे दूर कर लेते
पर वह तो उस लोक में है
जहाँ से वापस लौटना मुश्किल
अब तो ऊपर ही मुलाकात होगी
उस अंजाने लोक में
तब पुछूगी
हमारी याद नहीं आई
इतना बड़ा कदम उठा लिया
किसी और के कारण
एक बार अपनों पर एतबार किया होता
हम हर हाल में साथ खडे रहते
जिंदगी से ऐसे कैसे हार मान ली
हमें अकेला कर गई

दिल्ली की दिल दहलाने वाली घटना

इतना तनाव ,डिप्रेशन
अपने पूरे परिवार को खत्म कर दिया
चाकू गोद गोद कर
उसमें आठ , तीन और एक ढेड महीने की मासूम बच्ची
क्या परेशानी थी इस व्यक्ति को
इतना हिंसक हो गया
पत्नी और बच्चों की जान ले ली
पढा लिखा शिक्षक
आज देखा जाये तो
सब डिप्रेश हैं
छोटी सी बात पर जान ले लेना
आत्महत्या कर लेना
धीरज का अभाव
आक्रोश से भरपूर
आक्रमणकारी हो गया है समाज
सहनशीलता खत्म होती जा रही है
सोचने की शक्ति बची नहीं
आधुनिकता हावी हो गई है
इच्छा पूरी नहीं हो रही
इसके लिए कोई भी कदम उठा लो
मार काट को तत्पर
इंसानियत का अभाव
स्वार्थी प्रवृत्ति
इसी का परिणाम यह सब
यह अकेले दिल्ली की घटना नहीं
हर कोने से ऐसी खबरें
इससे तो वनमानुष भला था

वहीं दिन अच्छे थे

घर में सोफे पर पूरा दिन लेटने से अच्छा
स्टाफ रूम की कुर्सी पर बैठना
शांति से पांच मिनट भी न बैठ पाना
घंटी का टनाटन बजना
भागते दौडते क्लासरूम में जाना
वह कहीं बेहतर था

पूरा दिन नीरव शांति से अच्छा
वह छात्रों की बडबड
उनकी बातचीत
उनको डाटना
लेक्चर देना
गुस्सा उतारना
पढाते पढाते मुंह दर्द होना
वह इस चुप्पी से कहीं बेहतर था

सहकर्मियों से बातचीत
नोकझोंक ,वाद-विवाद
हर बात में भागीदारी
काम का बोझ
करेक्शन की चिंता
पोर्शन कम्पलीट करने की मारामारी
वह इस अकेलेपन से बेहतर था

तब वक्त नहीं था
न अपने लिए
न परिवार के लिए
आज वक्त ही वक्त
पर वह बिजीपन कहीं इस खालीपन से बेहतर था

सब कुछ भूल जाना
पाठशाला की दहलीज पर पैर रखते ही
दुख दर्द ,चिंता तनाव
बच्चों के साथ समय बिता
आज समय ही समय
भूतकाल को याद करने का
इससे बेहतर समय का अभाव था

जीवन सार्थक तो था
आज रिटायरमेंट हो गया है
पर जीवन थम सा गया है
लगता है कि
वही है
जहाँ हम उसे छोड़ आए थे
वह पाठशाला का गेट
वह सहकर्मी
वह छात्र
वह किताबें

Saturday 22 June 2019

तलाक बिल पास हो

तलाक बिल प्रस्तावित हुआ
विरोध हो रहा है
इसे धर्म से भी जोड कर देखा जा रहा है
इन सबसे पहले मुस्लिम महिलाओं के बारे में विचार करना चाहिए
कितना डर और खौफ होगा मन में
कब किस बात पर शौहर तलाक दे दे
बच्चों की हालत और खराब
जमाना बदल चुका है
विचार करना होगा
सती प्रथा खत्म हुई
बालविवाह पर पाबंदी लगी
धर्म तो इंसान की भलाई के लिए है
कुछ का मानना है
पुरूषों को तीन साल की सजा ज्यादा है
औरत और बच्चों का भरण पोषण किसके जिम्मे
कोई तो रास्ता निकाला जाए
जिंदगी को खेल न समझे कोई
एक तलाक जिंदगी बर्बाद कर डालता है
हर महिला आत्मनिर्भर नहीं होती
जिंदगी को नारकीय बनाने की सजा तो होनी ही चाहिए
तलाक बिल पास किया जाय
हाँ संशोधन हो सकता है तो ठीक है
सरकार प्रतिबद्ध है
तब सब साथ दे

Friday 21 June 2019

दूसरो की बात भी सुनिए

हवा आती है जाती है
तभी अच्छी लगती है
एक कमरे में बंद घुटती हुई किसी को नहीं भांती
कुछ अजीब सी गंध आती है

वैसे ही विचार है
उनका आदान-प्रदान जरूरी है
नहीं तो वे सिकुड़ जाएँगे
एक ,दूसरे की भावना समझना है
तब बात भी सुनना होगा

हर किसी को अपनी बात कहने का मौका दीजिए
धीरज से सुनिए
सुनना और समझना बहुत जरूरी है
तभी साथ चलने का मजा है

राहुल का मोबाइल

राहुल गांधी की हर हरकत पर नजर
अगर वे मोबाईल में देख रहे हैं
कुछ पढ रहे हैं
तब इतना बवाल क्यों
अब तो चुनाव जीता जा चुका है
बहुमत में सरकार है
राहुल या किसी की क्या चलेगी
अगर कोई पढ रहा है
देख रहा है
भाषा समझने की कोशिश कर रहा है
हर कोई तो पारंगत नहीं हो सकता
भाषण देना भी एक कला है
सब उसमें पारंगत नहीं हो सकते
वही हाल भाषा का है
नेता की नियत साफ होनी चाहिए
जो प्रवक्ता आते हैं
राहुल गांधी के बारे में अनाप शनाप बोलते हैं
उनको कमतर दिखाने की कोशिश करते हैं
ध्यान रहे वे एक प्रतिष्ठित पार्टी के अध्यक्ष हैं
चुनाव में मोदीजी जैसे नेता को जमकर टक्कर दी
प्रजातंत्र के लिए यह अच्छा संकेत है
यह बात दिगर है कि परिणाम नहीं आए
यह सभी दलों के दिग्गजों के साथ हुआ
वे मंदिर गए
छुट्टी मनाने गए
मोबाइल देख कर लिखा
ऑखे  मारी अपने दोस्त को देखकर
यह तो कोई चर्चा का विषय नहीं
तभी शायद कांग्रेस अध्यक्ष ने मीडिया से कुछ समय के लिए दूरी बनाए रखने को अपने प्रवक्ताओं को कहा है
सार्थक चर्चा छोड़
गांधी परिवार की चर्चा

Thursday 20 June 2019

जब कौए ने चोंच मारा

जब कौए ने चोंच मारा
आ गई वह पुरानी बात याद
कौए ने अगर चोंच मारी
तब अपने किसी परिजन को झूठ बुलवा दे
फलां व्यक्ति मर गया है
ताकि उसके नाम पर कोई रो ले
बाद में उसे बता दे
तो दोष खत्म हो जाएगा

आज मारा
तब पुरानी बात पर हंसी आ गई
कैसे कैसे लोगो ने प्रथा बना रखी थी
पर उसमें गूढ रहस्य छिपा था
पक्षी है
वह भी ऐसा कर सकते हैं
उसको हानि नहीं पहुंचाना

पता चला इस कौए का बच्चा मर गया था
इसलिए वह आने जाने वालों को मार रहा था
दुखी था
पक्षी है
कह नहीं सकता
पर अपना गुस्सा उतार रहा था
उनमें भी संवेदना होती है

यह सुन क्रोध नहीं आया
बल्कि सर  सहलाते
उसके प्रति करूणा उमड रही थी

हमारे हाथ में कुछ नहीं है

हम आए इस संसार में
वह हमारी मर्जी से नहीं
हमें मातापिता मिले
भाई बहन मिले
रिश्तेदार मिले
दोस्त मिले
पडोसी मिले
सहकर्मी मिले
यह सब भी हमारी मर्जी से नहीं
लेकिन जीवन तो जीना ही है
सब हमारे मनमुताबिक हो
यह भी जरूरी तो नहीं
जिस पर हमारा वश नहीं
उसकी चिंता क्यों ??
जन्म पर हमारा वश नहीं
मृत्यु पर हमारा वश नहीं
बीमारी पर हमारा वश नहीं
आपदा पर हमारा वश नहीं
भूतकाल पर भी हमारा वश नहीं
भविष्य पर तो बिलकुल नहीं
हम तो रेलगाड़ी के वह मुसाफिर है
जिसे कोई और चला रहा है
गाडी आई
हम चढ गए
उसमें सब अंजान है
कोई हमें पसंद नहीं करता
पर हम अपनी जगह बनाते हैं
कभी प्रेम से
कभी लडझगडकर
और जब उतरते हैं
तब कोई याद नहीं रहता
हम भूल जाते हैं
पर अतीत को नहीं भूला पाते
भविष्य की कल्पना में खोए रहते हैं
जबकि वह जो वर्तमान है
उसे भूल जाते हैं
जब हमारे हाथ में कुछ नहीं है
बस क्षण है
उसे नहीं जी पाते
ताउम्र समझ नहीं पाते कि
हमारे हाथ में कुछ नहीं है