Tuesday 31 May 2022

आई ऑधी आई शुभ संदेश लाई

धूल उडाती आई आंधी
सब लगे भागने इधर - उधर
कोई घर की ओर तो कोई और ठिकान
पंछी लगे छुपने अपने घोसलो में 
पेड़ लगे हिलने जोर - जोर से 
पत्तियां झरने लगी
डालिया टूटने लगी 
सब लोग डरे - घबराएं 
कहीं न कहीं दुबके हुए 
हर जीव है परेशान

कुछ देर में ही होने लगी 
झम झमा झम  बरसात 
यह तो बारिश आने की सूचना 
धरती भी हो गई ठंडी 
सब जीव भी होने लगे प्रसन्न 
लगा मयूर नृत्य करने
किसान की फसलों ने भी ली अंगडाई 
सब जगह हुआ पानी - पानी
सबके मुख पर आई आंनदी हंसी
सब भूल गए ऑधी को
उसके घरघराते थपेडों को

यह तो होता है हर साल
हर बार , बार - बार
ऑधी भी आती है 
अपने लाम लश्कर के साथ
फिर बारिश होती है
यह तो चक्र है
प्रकृति का
जीवन का
पृथ्वी के हर जीव का
हर निवासी का
हर कण-कण का 
मौसम ने ली अंगडाई 
आई ऑधी आई
शुभ संदेश लाई



कभी कुछ कहीं कुछ

मैंने स्वयं को अब तक नहीं जाना
क्या हूँ कौन हूँ  कैसी हूँ 
दशकों गुजर गए
अभी भी मैं उलझन में ही हूँ 
अपने को पहचान नहीं पाई
कोई कुछ कहता है कोई कुछ 
असल में मेरा स्वभाव कैसा है
मेरी फितरत कैसी है
कहीं मैं डरपोक तो कहीं निडर
कहीं दयालु तो कहीं कठोर
कहीं दब्बू तो कहीं दबंग
कहीं मैं खुशमिजाज तो कहीं दुखी
कभी ऑखों में पानी कभी होठों पर खुशी
किस बात पर प्रसन्न किस बात पर रुष्ट 
कभी मीठी आवाज तो कभी कर्कश
कहीं कुछ तो कहीं कुछ 
कभी कुछ तो कभी कुछ 
यह क्या दोहरा चरित्र है
दोहरा व्यक्तित्व है
शायद समझने का फेर है
हर जगह भूमिका अलग
हर जगह परिस्थिति अलग 
उनके बीच में यह मन
कभी कौन सी करवट लेता है
यह समझ नहीं आया
कहती कुछ करती कुछ 
करने जाती कुछ होता कुछ 
इसी दो राहें पर चलती जिंदगी 
कब एक निश्चित ठिकाना पर होगी
शायद यह कहना मुश्किल होगा ।


घर और मन

घर और मन
दोनों अपने
किसको बिठाना है
किसको अलविदा कहना है
यह भी हम पर
हाँ कभी - कभार अनचाहे मेहमान आ जाते हैं 
कुछ वक्त के लिए हम परेशान तो हो जाते हैं 
उनके जाने के बाद हम सुकून की सांस लेते हैं 

यह हमारा
पूर्ण अधिकार हमारा
हमारी इच्छा 
हमारे सपने
हमारी आशा - आंकाक्षा
सुख - दुख हमारा
खुशी हमारी
रूदन हमारा
पल - पल के साक्षी 

इस पर और किसी को शासन न करने दे 
किसी को भी जबरदस्ती घुसने न दे
किसी को भी अपना निर्णय स्वयं पर थोपने न दे
भावनाओं के साथ न खेलने दे
स्वतंत्र विचरण करें 
घर में और मन में 
अगर यहाँ आपने अपना अधिकार छोड़ दिया
तब तो आप गुलाम से कम नहीं 

Monday 30 May 2022

तू मेरा सर्वस्व

तू मेरी जान
मुझसे क्यों इतना नाराज
तुझ पर तो मुझे है नाज 
तू मेरा अभिमान 
तुझ बिन मेरा जीवन सूना
तेरी आहट सुन मेरा  मन हो जाता प्रसन्न
तू तो है मेरा शान 
तेरे बिन सब सूना
तेरे बिना मेरा जीवन भी अधूरा
मेरी हर सांस में तू ही तू
हर आस है तू
तुझसे ही जीवन है गुलजार
तू नहीं तो कुछ नहीं 
कुछ भी नहीं 
न जाने यह क्या हुआ
दोष किसका ??
परिस्थिति का या किसी और का
ना पवन की ना सुमन की 
किसकी है यह भूल
यह समझ पाना भी है मुश्किल 
तेरी मुस्कान में तो बसे मेरे प्राण 
अब तो मान जा मेरी जान

Sunday 29 May 2022

इतवार से प्यार

आज इतवार है
तभी घर गुंजार है
पूरे घर में हलचल 
नहीं तो दस के बाद पूरी शांतता फैल जाती है
बस फैला हुआ काम समेटते समेटते दोपहर हो जाती है
आज तो काम ही काम 
सबका देर से उठना
सबकी अलग-अलग फरमइशे 
सबके मनपसंद नाश्ता और खाना
इसमें गृहिणी की कब सांझ हो जाती है
कुछ पता ही नहीं चलता
सबकी तो छुट्टी 
उसका काम तो बढ ही जाता है
सांस लेने की भी फुरसत नहीं 
लेकिन परिवार के सदस्यों के चेहरे पर संतुष्टि 
खुशी देखते ही सब काफूर हो जाता है
उसे इतना काम करने के बाद भी इतवार अच्छा लगता है
कम से कम अपनों का साथ
कुछ पल बातचीत 
साथ हंसना - खिलखिलाना 
नहीं तो हर रोज भागम-भाग 
बात करने और सुनने तक की फुर्सत नहीं 
सुबह के गए गए देर रात तक घर आना
आते ही खाना खाकर बिस्तर पर निढाल हो जाना
इतवार तो इसका अपवाद है
तभी तो इसका इंतजार रहता है
तभी तो इससे मुझे प्यार है 

वह पहले जैसी बात

बार - बार विष पिया है
गरल  को गले से नीचे उतारा है
तब जाकर अमृत प्राप्त हुआ है
अब तो यह रास नहीं आ रहा
समय पर नहीं मिला
अब उसका क्या लाभ
समय पर ही सब शोभा देता है
समय गुजर जाने पर नहीं 
जब बचपन जीना था तब वह नहीं मिला
जवानी जीना था वह भी दब कर रह गया
अब तो जीवन की साँझ है
वैसे ही लाचार और मजबूर है
उसमें इतना जोश कहाँ 
वह तो पहले से ही दबा और झुका हुआ 
कभी-कभी ऐसा भी होता है
ऊपरवाले की कृपा से प्राप्त तो सब होता है
कर्म और भाग्य का मिश्रण 
पर तब तक समय जा चुका होता है
गुजरा हुआ तो दोबारा लौटेगा नहीं 
न पीछे मुड़कर देखेगा 
तब वह पहले जैसी वाली बात भी नहीं रहती 

Saturday 28 May 2022

यही है दुनिया का खेला

जीवन इतना आसान तो नहीं 
पग पग पर कांटे हैं 
तुमने सोचा होगा
अब तो सारी मुश्किल खत्म 
अच्छे दिन शुरू
ऐसा वास्तव में होता नहीं 

पडोसी से लेकर सोसायटी
सडक से लेकर यातायात 
बस ,गाडी ,ट्रेन से लेकर पैदल 
कुछ न कुछ तो रोज ही घटित 

और कुछ नहीं तो
किसी ने कुछ बोल दिया
व्यंग्य कर दिया
ताना मार दिया
कुछ ईष्या वश कुछ जलन वश 
कुछ नही तो कोई अपनी आदत से मजबूर 
हर जगह आपको चाहे - अनचाहे 
इन सबसे सामना करना पडता है

आप आराम से रहें 
खुश रहें 
यह कोई नहीं चाहता
कभी किसी चीज को लेकर तो कभी किसी चीज को लेकर
घर से बाहर तक
हर जगह 
संघर्ष तो करना ही पडता है
एक पल में माशा एक पल मे तोला
यही है दुनिया का खेला 

बचपन है यह साहब

कर लेने दो शैतानिया 
कर लेने दो नादानिया 
कर लेने दो तोड़ फोड़ 
कर लेने दो उठा पटक
कर लेने दो जिद
कर लेने दो मन माफिक
खेलने दो भरी दोपहरिया में 
कर लेने दो मटरगश्ती 
घूमने दो दोस्तों के साथ
धमाल - मस्ती करने दो
यह बचपन है
अब नहीं तो कब ?
जब बडे हो जाएंगे तब 
जिम्मेदारियों के बोझ तले दब जाएंगे तब
सर्टीफिकेट हाथ में लेकर नौकरी के लिए भटकेगे तब
परिवार की जिम्मेदारी उठाएंगे तब
तब यह सुनहरा वक्त नहीं आएगा 
यह बचपन वापस नहीं आएगा 
एक बार बडे हो गए तो हो गए
फिर तो वह समझदार नागरिक बन जाएंगा
जब तक छोटा है तब तक माँ- बाप का दुलारा है
जब स्वयं बाप बन जाएंगा
तब रोटी - दाल का भाव समझ आ जाएंगा
पैसे की कीमत पता चल जाएंगी
समय से पहले इसका बचपन बोझिल न होने दें 
बिना कारण हंसने - खिलखलाने दें 
बचपन है यह साहब
इसे मुरझाने न दे। 

मेरी जिंदगी

मैंने जिंदगी को जीया है
गरल - विष जिंदगी का पिया है
कदम - कदम पर दिल आहत हुआ है
आलोचना मिली है
उपहास उडाया गया है
जिसने मुझे मजबूत बनाया है
मैं नीलकंठ नहीं जो विष गले तक ही सीमित रहें 
उसको मैंने पूरे शरीर में उतारा है
तन - मन दोनों पर असर हुआ 
जो आज हूँ मैं 
वैसे तो पहले नहीं थी 
वह भोली भाली पगली सी सीधी सी लडकी
जिंदगी की आपाधापी में न जाने कहाँ खो गयी
समय से पहले ही बडी हो गई 
जिम्मेदारियों के बोझ तले दब गई 
न कोई जिद न रूठना - मनाना 
छुटपन में ही समझदार हो गई
दुनिया को समझ गई
फिर भी दुनिया को समझा न पाई
दुनिया तो बदली नहीं 
मैं अवश्य बदल गई
बस अपने में सिमट गई। 

Friday 27 May 2022

रफ बुक

रफ बुक 
परिवार  में  रहना और निभाना
त्याग  और बलिदान 
सबको समेट  कर  चलना
इतना  आसान  नहीं  होता 

हम पढते समय रफ  बुक का उपयोग  करते  हैं 
शुरुआत  में  ही  स्कूल- काॅलेज  में  पहले दिन ही
हाथ में  जो होती  है  वह एक बुक
और सब बाद में  बनती है
हर विषय  की अलग-अलग 
कवर के साथ साफ - सुथरा 
कभी भूल गए  ले जाना
रफ नोट बुक में  लिख लिया 
उसके बिना काम  नहीं  चलने वाला 

परिवार  में  भी कोई  न कोई  ऐसा होता है
जो सबको अपने  में समाहित  करता  है 
उसकी मदद  से सब काम  हो जाते हैं 
जिसको भी जरूरत  पडती है
वह उसके  पास आता है

ऐसे व्यक्ति  की वैल्यू  नहीं  होती 
न समझ में  आती  है 
जैसे रफ बुक 
वह न हो तो सारा गणित  गडबडा जाएंगा
मुखिया  का महत्व  तो जग-जाहिर है 
पर उस व्यक्ति  का ??

विधाता बनने की कोशिश न करें

बच्चों को अपनी जागीर मत समझना 
अपनी जिंदगी मत समझना 
उनकी भी अपनी जिंदगी है
कुछ सपने हैं कुछ आंकाक्षाए हैं 
अपनी आंकाक्षा उन पर लादने की कोशिश मत करना
जन्म अवश्य दिया है आपने
पालन पोषण भी किया है
इसे एहसान या उपकार करने की भूल न करना
यह तो प्रकृति का नियम है
जन्म देने के कारण आप कोई महान हो गए
आप जो बोलेगे 
जैसा कहेंगे 
आपकी संतान वह सब करें 
आपकी इच्छाओं पर खरी उतरने का प्रयास करें 
आपके सपनों को साकार करें 
तब उसकी स्वयं की जिंदगी का क्या 
उसका व्यक्तित्व तो आपकी परछाई बन रह जाएंगा
परछाई ज्यादा देर साथ नहीं  रहती है
उसको अपना व्यक्तित्व निर्माण करने दीजिए 
आप उसके मार्ग दर्शक हो सकते हैं 
निर्णायक नहीं 
यह तो उस पर छोड़ दीजिए 
उसके भाग्य और कर्म पर छोड़ दें 
आप पालक है विधाता नहीं 
यह मत भूलिए। 

जीवन बहती जलधारा

जीवन बहती जलधारा 
पर्वत राज से निकलती है
टेढे मेढे रास्ते 
गुफा - कंदराओं से होकर गुजरती है
छोटे-छोटे कंकर - पत्थर से लेकर चट्टानों तक
सब उसकी राह का रोड़ा बनने की कोशिश करते हैं 
बाधा डालने की कोशिश करते हैं 
वह हार नहीं मानती
डगर भी बदल लेती है
टेढे मेढे रास्ते को भी अपना लेती है
न थकती न रूकती 
बस चलती ही जाती है
रास्ते में जो मिला उसको भी जल देती जाती है
अंत में अपने गंतव्य पर जाकर रूकती है
विशाल नदी का रूप धारण करती है
पहाड़ से निकल कर 
नदी बनने तक की यात्रा आसान नहीं होती
जीवन और जल दोनों की कहानी एक ही जैसी
दिया तभी परमार्थ 
अन्यथा बेकार
अंत में सब खतम ही होना है
गर्मी के ताप से धीरे-धीरे सूख जाना है
जब तक है तब तक ही महत्व
अन्यथा कुछ नहीं। 

Tuesday 24 May 2022

कामवाली बाई

आपको तो कामवाली बाई हमसे ज्यादा प्यारी है
हमेशा बच्चे यह उलाहना देते रहते हैं 
उससे कितनी मिठास से बात करती हो
हमको तो हमेशा कडकडाती आवाज में ही

कैसे बताऊँ 
बाई प्रिय नहीं 
उसका काम प्रिय है
मैं बीमार पड जाऊं 
एक दिन उठूँ न तो सब बैचैन हो उठते हैं 
पूरा घर अव्यवस्थित हो जाता है
आज जिसके बल पर यह घर आराम से चलता है
उसमें उसका बहुत बडा योगदान है
अकेले तो यह सब संभालना मुश्किल हो जाता
घर और बाहर में जो सामंजस्य स्थापित कर पाती हूँ 
वह इसी कामवाली की बदौलत

तुम लोगों के लिए कितना भी करूँ 
हमेशा शिकायत रहती है
इसे तो अपने पुराने कपडे और बचा हुआ खाना दे देती हूँ 
उसी में प्रसन्न हो उठती है
सबसे तारीफ करते नहीं थकती
मेरी हारी - बीमारी,  हर मुसीबत में जी जान से लगी रहती है
कहने को तो वह एक नौकर
लेकिन घर के सदस्य से बढ़कर 
अपना घर उसके भरोसे छोड़ निश्चिंत हो जाती हूँ 
जो स्वादिष्ट भोजन मिलता है
साफ - सुथरा घर रहता है
इस्तरी और धुले  कपडे
सब में इसकी भागीदारी होती है
है तो है यह नौकरानी 
मुझे बहुत है प्यारी 

कण कण में भगवान

कण-कण में भगवान 
काशी में भगवान 
मथुरा में भगवान 
कहीं शिव तो कहीं कृष्ण 
इनके बिना तो हमारा अस्तित्व ही नहीं 
हिन्दू सहिष्णु हो सकता है कमजोर नहीं 
अगर हम कमजोर होते तब आज हमारा असतित्व ही नहीं होता
हमने किसी को कन्वर्ट नहीं किया
धर्म परिवर्तन नहीं कराया
हम तो सदियों से हैं और रहेंगे
क्योंकि  मानवता हमारे अंदर है
हमने किसी का धार्मिक स्थल नहीं तोड़ा 
हाॅ हमारा अवश्य तोड़ा गया
अगर आज हम उसको वापस मांग रहे हैं तो गलत क्या है
हमने सहा है पर टूटे नहीं 
यानि हम कितने कट्टर है अपने ईश्वर के प्रति
कमजोर थे उन्होंने धर्म परिवर्तन किया
हमें तो कोई डिगा ही नहीं पाया
आने वाले समय में जो धर्म प्रेम और मानवता पर टिका है
उसी का बोलबाला होगा
अपने आप लोग अपनाएंगे 
न लालच से न बलजबरी से
स्वेच्छा से
इसमें इस्कान का योगदान रहेगा 
बस देखते रहिए 
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। 

सिद्धार्थ की बोधि प्राप्ति

सिद्धार्थ गए बोधि प्राप्ति के लिए 
यशोधरा को खबर नहीं 
आधी रात को चोरी छिपे
अगर बताते तो क्या यशोधरा जाने देती
अपने प्राण प्रिय पति को रोक न लेती
वे तो जा रहे थे मोह से छुटकारा पाने
पत्नी और बेटे के प्रेम में फिर मोहग्रस्त हो जाते
तब संसार को बुद्ध नहीं मिलते
शांति और अहिंसा को सर्वोपरि मानने वाला नहीं मिलता
संसार को भी बुद्ध की जरूरत थी
यशोधरा और राहुल को भी
समष्टि के आगे व्यक्ति हार गया
बुद्ध को समाज की भलाई दिखी
किसी न किसी को त्याग तो करना ही था
तब तो यशोधरा ने भी किया
सिद्धार्थ ने भी किया
भगवान बनने के लिए यह तो करना ही था
भगवान बनना इतना आसान नही
सिद्धार्थ की तरह सब छोड़ना पडेगा
तभी बोधि की प्राप्ति होंगी 

Monday 23 May 2022

कैसे समझेंगे

हम तो सीखते ही रहें 
जिंदगी में जो मिला वह सिखाता ही रहा
सीख देते ही रहें 
यह करों वह करों 
भले अपने कुछ न करें 
अपने गिरेबान में नहीं झांक रहें 
हाँ दूसरों के जीवन की हर गतिविधि पर उनकी नजर
यह ह्युमन नेचर है
इंसान की फितरत है
लेकिन जो दूसरों पर लागू होता हो
वह आप पर भी लागू होगी
यह जरूरी नहीं 
वह इनको कैसे समझेंगे 

समाज की विडंबना

ऑखों से ऑसू बह रहे थे
अचानक बेल बजी
तुरंत ऑखों से ऑसू पोछने लिया
दरवाजा खोला 
सामने एक दोस्त खडी थी
उसका मुस्कराकर स्वागत किया
सोफे पर बिठाकर अंदर चली गई 
गैस पर चाय का पानी चढा दिया
दूध - चीनी - चाय पत्ती डाल कर धीमी कर दी
जब तक चाय तैयार हो
तब तक मुंह धोकर थोडा पावडर लगा लिया
बाल पर कंघी फेर ली
तब तक चाय तैयार 
ट्रे में चाय और बिस्किट रख ले गयी
हंस हंस कर खूब बातें की
कुछ पुरानी कुछ नयी यादें 
पर अपने दिल का जख्म नहीं दिखाया
न उसे जाहिर होने दिया
उसके जाने के बाद फिर वही हालात
ऑखे भर भर आ रही थी
हम कैसे दोहरी जिंदगी जीते हैं 
मुखौटा  ओढ कर
अंदर कुछ बाहर कुछ 
हम कितना डरते है 
समाज से लोगों से
कहने को तो हमारे
वास्तव में हैं क्या यह
नहीं शायद नहीं 
अभी कल - परसों का वाकया
माँ और दो बेटियों ने घर में भुखमरी से आत्म-हत्या कर ली
वह भी पाॅश इलाके में 
अच्छे - खासे लोग जिनका एक दूसरा फ्लैट भी था
जो करोना के बाद खाली था बिना किरायेदार के
केवल सडक और फूटपाथ और झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले ही गरीब नहीं होते
मध्यम वर्गीय भी हो सकता है
फर्क इतना है कि वह दिखाता नहीं है
कैसी विडंबना है यह समाज की
जीने भी नहीं देता मरने भी नहीं देता चैन से 

Sunday 22 May 2022

न्याय तो सबके साथ हो

ये मेरा देश कहाँ जा रहा है
कहीं धर्म के बंधन हैं 
कहीं जाति के बंधन
कल तक पिछड़ी कही जाने वाली जातियां 
आज सर उठाकर विद्रोह दर्शा रही है
तो अगडी कही जाने वाली मजाक का पात्र बन रही है
किसके साथ न्याय और किसके साथ अन्याय?? 
तब तुम्हारा वक्त था तो आज हमारा है
यहीं तो  सबसे बडी विसंगति है
बदला की भावना 
ईष्या की भावना 
नीचा दिखाने की भावना
सब लोग एक - दूसरे से होड में लगे हैं 
यह तो प्रजातंत्र की प्रकृति के लिए अच्छा नहीं है
न्याय तो सबके साथ हो

Saturday 21 May 2022

कब तक हिन्दू सहिष्णु रहें

हम तो सहिष्णु हैं 
हमेशा सहिष्णुता दिखाई है
बहुसंख्यक होने का फर्ज निभाया है
बडे भाई की भूमिका में रहे हैं 
तभी आप सीना तान घूम रहे हैं 
अपने अधिकारों के साथ जी रहे हैं 

हमेशा बडा भाई ही फर्ज निभाएँ 
उसकी गलतियों को माफ करें 
तब छोटा क्या करेंगा
कब तक छोटा बना रहेगा 
अब तो वह भी बडा हो गया है
तब बडा दिल दिखाएं 
जो अन्याय बडे भाई के साथ हुआ है
वह भी उनके पूर्वजों  ने  किया है
उसमें सुधार करें 
अपना कर्तव्य निभाएँ 
बडे भाई को उसका अधिकार दिलाएँ 
प्रायश्चित करें 
अपनी जिद छोड़ दे

ताली तो दोनों हाथ से बजती है
वह भी प्रेम का हाथ बढाए 
वह भी सहिष्णु बनें 
तभी तो सद्भाव रहेंगा
भाई चारा बढेंगे
किसी का हक छीनने पर सिर्फ महाभारत ही हो सकता है
दुर्योधन की तरह जिद न करें 
पांच गाँव तो क्या सुई की नोक की बराबर भी जमीन न देंगे 
तब तो धर्म युद्ध निश्चित है
ज्यादा कुछ  नहीं  चाहिए 
हमें माॅ   श्रृंगार गौरी की पूजा - अर्चना का हक  मिले
नंदी महाराज को उनके भोले शिव मिलें 
हमारा मंदिर हमें वापस मिले 
अतीत में की गई आततायियों की गलतियों को सुधारा जाएं 
यही तो हम अपने छोटे भाई से मांग रहे हैं 
वे भी दरियादिल बनें। 

गुडिया की शादी और बराती

चुन्नी - मुन्नी बैठी है
गुडिया गुडिया खेल रही है
गुडिया की शादी होने जा रही है
मेहमान भी आए हैं 
पप्पू  - गुड्ड बैठे हैं 
उपहार लाएं हैं 
गुडिया के लिए कपडे
जलपान भी करना है
माँ ने डब्बे में कुछ मिठाई - नमकीन दी है
साथ में पानी की बोतल भी
कुछ प्लेटे भी
अब प्लेट लग गई है
परोसा जा रहा है
है चार लोग
प्लेट लगी छह
दो ज्यादा क्यों 
बोली चुन्नी - मुन्नी 
वह देखों बिल्ली मौसी भी तो है
चिडियाँ रानी भी तो है
वे भी तो मेहमान हमारे 
कबसे संगीत बजा रहें और गाना गा रहे
चिडियाँ करती  ची ची ची
बिल्ली करती म्याऊं म्याऊं 
गुडिया की शादी इनके बिना अधूरी
ये भी तो है हमारे जैसे ही
तब तो आवभगत हो इनकी भी
खुशियाँ बरसे चहुँ ओर 


घाव

घाव तो घाव है
वह दिल पर हो या शरीर पर
छोटा हो या बड़ा 
भरने में समय तो लगता है
मरहम की जरूरत होती है
औषधि हो या प्यार 
कभी-कभी तो उसको बार बार उकेरा जाता है
तब तो उसे ठीक होने में और समय लगता है
ऐसा भी होता है
वह भरता ही नहीं 
तब तो नासूर बन जाता है
हो सकता है
कोई अंग काटना पडे
जानलेवा भी हो सकता है
तब समय रहते ही इलाज हो 
तब शायद बात बन जाएं 
पहले तो घाव से बचे
खुदा ना खास्ता लग भी जाएं 
तब देरी न करें 
बिना समय गंवाये 
उचित इलाज करें 

Friday 20 May 2022

महत्वपूर्ण रिश्ता

हर रिश्ते में कुछ न कुछ खास है
हर रिश्ता मौल्यवान  है
यही से प्यार,  आधार  , ज्ञान मिलता है
अपनत्व और अधिकार मिलता है
फिर भी हर रिश्ते की एक सीमा होती है
एक हद तक ही
सबके सामने खुल कर , स्वतंत्र होकर नहीं रह सकते
एक रिश्ता के सिवाय
वह है दोस्ती का रिश्ता 
उसके समक्ष अपने मन की सारी भावनाएं उडेल  सकते है
सब कुछ साक्षा कर सकते हैं 
इस रिश्ते में चुनाव की स्वतंत्रता होती है
जबरदस्ती का नहीं होता
यहाँ हमारी पसंद और नापसंद मायने रखती है
इसलिए दोस्त तो जरूरी है यार
वह भी सच्चा
भले एक ही क्यों न हो 

Thursday 19 May 2022

शरद पवार के लिए अपशब्द

एक नादान सी 
नकचढी सी
है अभिनेत्री 
कहने को तो कवयित्री भी
पर भाषा तो देखो
यही संस्कार है क्या 
यही भारतीयता है क्या
हमारे यहाँ तो दुश्मन को भी ऊंचा आसन दिया जाता है
शरद पवार साहब के बारे में बोलने से पहले कुछ सोच तो लेती
चिंतन मनन कर लेती
अपनी उम्र और उनकी उम्र को देखती 
कुछ तो लिहाज करती
हम लोग तो दुश्मन से भी इतना तो बना कर रखते हैं कि कभी मिल जाएं तो शर्म न महसूस हो
राजनीति के माहिर खिलाड़ी 
पूरा जीवन राजनीति को समर्पित 
आज भी दिग्गज नेताओं में उनकी गिनती
सभी उनको आदर देते हैं चाहे वह किसी भी पार्टी के हो
उनको लेकर मजाक उडाना
उनकी देहयष्टि को उनके स्वास्थ्य को लेकर कुछ कहना
यह तो एक कवि को शोभा नहीं देती 
कवि का तो ह्रदय कोमल होता है
वह संवेदनशील होता है
जो आया है उसे तो जाना ही है
स्वर्ग और नरक में कौन जाएंगा
यह तो ईश्वर  ही जाने 
पर भूमि को नर्क बनाने की क्या जरूरत 
कल को किसने देखा है
आज जो अच्छा भला है
कल कौन सी दशा होगी नहीं जानता
इतना घमंड 
जरा अपना पैर जमीन पर रखें 
कल्पनाओं के आकाश में न उडे
नाम तो है केतकी
इस फूल के नाम की तो इज्जत रखी होती
सुगन्ध न फैला सको तो दुर्गन्ध तो मत फैलाओ
वह शब्दों का हो या और कुछ का
दुश्मनी भी हो तो खानदानी हो
गटारी नहीं  ।

Wednesday 18 May 2022

जय जय शिव शंभु

वे तो शिव शंभु हैं 
सर्व व्यापी है
तब अपनी ही नगरी काशी में 
ज्ञानवापी में क्यों न विद्यमान रहते
बाबा तो मिल ही गए
नंदी महाराज की प्रतीक्षा पूर्ण हुई 
कब से बाबा को पुकार रहे थे
अब जाकर सुन ली
कोई क्या कहता है
उससे हमें कोई मतलब नहीं 
बस हमको तो अपने बाबा के दर्शन चाहिए 
वह तो हमारा अधिकार बनता है
शिव ही सत्य 
शिव ही सुंदर 
शिव ही संसार के कर्ता 
वे तो विश्वनाथ है
फिर भी भोले हैं
अब तो बाबा ही हमें राह दिखाएंगे
अपने दर्शन का आशीर्वाद देंगे 
जय जय भोले
बम बम भोले
जय जय शिवशंभु 

Tuesday 17 May 2022

हमारा बाबू

आज बाबू हमारा चार महीने का हो गया
हैपी हैपी बर्थडे हमारी नन्हीं जान
दादा जी की ऑखों का तारा
दादी का प्यारा - दुलारा
तुझ पर सब न्योछावर 
तेरी एक मुस्कराहट पर हम वारे जाएं 
दिन - दूनी , रात - चौगुनी बढते रहो
जल्दी-हो जल्दी बडा
पया पया  चले ठुमक ठुमक
हम भी पीछे- पीछे चले रूक - रूक कर 
हमारा बाबू प्यारा मनु 
हमारे मन में रहता है
चेहरे पर मुस्कान लाता रहता है
कब देखूं इसी की प्रतीक्षा 
हम दादा - दादी करते हैं ।
फिर एक बार बहुत- बहुत प्यार अपने मनु को ।


Monday 16 May 2022

Happy Family day

परिवार  तो परिवार  होता है
अपने  तो अपने  होते हैं 
नोक - झोंक  , लडाई  - झगड़ा 
यह तो होता  ही रहता है
इनके  बिना तो जीने का मजा भी जाता रहता है 
प्रेम  और अपनापन  भी होता है
संपूर्ण  अधिकार  होता है
जताना और बताना नहीं  पडता 
मन की डोर एक - दूसरे से बंधी रहती  है 
हर रिश्ते का एक नाम होता है
ननिहाल  ,ददिहाल, मायका ,ससुराल 
एक माता का और एक पिता का
दोनों  के रिश्तों  से बंधे सारे रिश्ते 
चचेरा ,ममेरा  ,फुफेरा 
सब रक्त  संबंधों  में  लिपटे
इनको अपने आप से लिपटाना 
संबंधों  की  अहमियत  समझना 
इनको जीवित रखना
अगर वेंटिलेटर  पर है
सांस है तब मरने नहीं  देना है
अभी भी बचाया जा सकता है
कुछ  भूले कुछ  याद करें 
खट्टी  मीठी यादों  में  विचरण  करें 
कडवाहट  को  दूर करें 
चार दिन की जिंदगी 
इसके दायरे को असीमित  करें 
अपने ही परिवार  नहीं  औरों  को भी  साथ जोड़े 
जोड़ने  में  जो मजा वह तोड़ने  में  कहाँ 
मिलने में  जो आनंद  हैं  वह बिछुड़ने  में  कहाँ
अपनाने में  जो मजा है वह छोड़ने  में  कहाँ 
सबको साथ लेकर चलने में  जो मजा वह अकेले में कहाँ

Sunday 15 May 2022

हाउस वाइफ

क्या तुम वर्किंग वुमेन हो
नहीं   , घर पर ही रहती हूँ 
हाउस वाइफ हूँ 
तब तो अच्छा है
कोई भागम-भाग नहीं 
ऑफिस की झंझट नहीं 
जिम्मेदारी नहीं 
आराम से घर रहो 
घर का कितना काम 
वह तो फट से हो जाता होगा
दोपहर को आराम 
हम तो रात - दिन खटते हैं 

हाँ मैडम,  सही कह रही है 
आपका तो अपना नाम 
अपना असतित्व  , अपनी कमाई 
मैं तो बस घरेलू 
लेकिन मुझे इससे कोई गिला - शिकवा नहीं 
बहुत खुश हूँ 

मेरा काम तो बोलने पर नहीं 
महसूस करने पर नजर आता है
घर की सुघडता में 
पति के टिफिन में 
बच्चों की शिक्षा में 
आस - पडोस में 
रिश्तेदारों में 
समाज के हर भागीदारी में 

मैं ही तो प्रधानमंत्री हूँ घर की
मैं ही मुख्यमंत्री हूँ 
मैं ही तो कैशियर और एकाउंटेंट हूँ 
घर आने पर सबकी नजरें मुझ पर 
मैं न हूँ तो पूरा घर अव्यवस्थित 
तब मैं अपनी उपलब्धि क्या गिनाऊ 
मैं तो वह हूँ 
जो घर के हर सदस्य के लिए हमेशा उपलब्ध 
मैं तो घर के हर कोने में 
घर के हर सदस्य की उपलब्धि में 
उनके प्रशस्ति पत्र और मेडल में 
उनके सर्टीफिकेट में 
उनके मुख की मुस्कान में 

यह सब देख मैं भी खुश
संतुष्ट और समाधान 
मैं केवल व्यक्ति नहीं समष्टि हूँ 
प्रकृति हूँ 
हर रूप में देना 
यह उपलब्धि अगर एक हाउस वाइफ की है
तब वह किससे कम है 

Thursday 12 May 2022

भाग्य और जीवन

जीवन बहुत बडा है
जीवन बहुत छोटा है
आज तक यह समझ नहीं आया
कि असलियत क्या है

जब जीवन भार लगता है
जब कोई उद्देश्य न हो
जब पीडा युक्त हो
जब असह्य हो
जब अभाव हो
तब लगता है
यह कब खत्म हो
कब तक जीवन नैया को इस तरह खेते रहेंगे
कब तक यह मझधार में फंसी रहेंगी

जब जीवन में हो सुख ही सुख
न कोई अभाव न दुख
तब जीवन छोटा लगता है
मन करता है
यह खूब लंबा हो
अभी तो कुछ देखा ही नहीं
जीवन जिया ही नहीं

यह भाग्य निर्धारित करता है
हम कौन सा जीवन चाहते हैं
कैसा चाहते हैं
वैसे भी जीवन हमारे हाथ में नहीं
जब जीना चाहते हैं
तब मुठ्ठी से फिसला जाता है
जो नहीं जीना चाहता है
उस पर सालों साल थोपा हुआ रहता है

कालचक्र

आज जब समय कुछ नासाज है
तब लगता है
हमारी आवश्यकताए क्या है
सबसे बडी प्राथमिकता पेट भर भोजन
रहने को छत
पहनने के लिए कुछ कपड़े
घर में है
इसलिए ताम झाम नहीं
जीवन सरल और सादा भी हो सकता है
सब कुछ बटोरता है 
साथ कुछ नहीं ले जाता
सब यही रह जाता है
यादें भी धीरे-धीरे धूमिल पड जाती है
दिन  , महीने और ज्यादा हुआ तो कुछ वर्षों तक
अपनों को छोड़कर
पर वहाँ भी जब नई पीढ़ी का प्रवेश होता है
तब उनको उससे कोई सरोकार ही नहीं
क्योंकि वे उस इंसान से अनभिज्ञ होते हैं
उन्हें क्या मतलब किसने क्या त्याग किया
समय के साथ तो सत्य की परिभाषा भी बदल जाती है
आज गाँधी और नेहरू पर भी ऊंगली उठाई जा रही है
वे कितने साल जेल में रहे
क्या क्या किया
वह कोई मायने नहीं
और यह केवल एक की बात नहीं
पूरे विश्व में ही है यह नजरिया
दीवार टूटी
मूर्ति ढहा दी गई
वर्तमान ही सत्य है
जो हो रहा है
कल कोई आपको याद नहीं रखेंगा
वह परिवार हो 
वह समाज हो
वह व्यक्ति हो
देश हो
सब भूला दिया जाता है
योगदान भूला दिया जाता है
सही है न
    सिकंदर ने पौरंष से की थी लडाई
तो हम क्या करें

अपना घर

अपना घर तो घर होता है
वह सबको प्यारा होता है
उसे छोड़ना कोई नहीं चाहता
किसी मजबूरी में ही घर छोड़ता है इंसान
फिर वह रोजी रोटी की हो
करियर की हो
शिक्षा की हो
या और कुछ
घर से निकलना है
मतलब कुछ करना है
कुछ सार्थक 
पर जब आपदा आती है
तब घर ही याद आता है
आज हर कोई अपने घर जाना चाह रहे हैं
वह छात्र हो
मजदूर हो
या और किसी विपदा से ग्रस्त
किसी की नौकरी छूट गई
कोई बीमारी से डरा
कोई भुखमरी का मारा
सबके डगर अपने 
घर की तरफ
गाँव की तरफ
शहर और कस्बों की तरफ
हर जगह यही हाल
न जाने कितने अटके पडे हैं
कोई कार में
कोई मंदिर में
कोई बीच सडक पर 
कोई हास्टल में
कोई विदेश में
सबकी अपनी-अपनी मजबूरी
सबके अपने अपने किस्से
घर तो हर किसी को जाना है
अपना घर तो घर होता है
वह सबको प्यारा होता है

Wednesday 11 May 2022

मैं लाउडस्पीकर

लाउडस्पीकर बोल रहा है
मेरा क्या दोष भाई 
मुझे क्यों पटक फोड रहे हो
मेरा काम तो आवाज सुनाना
क्यों अपने झगड़े में मुझे घसीट रहे हो
मैं ही अंजान देता हूँ 
मैं ही भजन सुनाता हूँ 
मैं ही पन्द्रह अगस्त और छब्बीस जनवरी को स्वातंत्र्य गीत सुनाता हूँ 
लोगों में क्रांति का संचार करता हूँ 
सेनानियों की याद दिलाता हूँ 
जन्म- मरण  , शादी , - उत्सवों में साथ निभाता हूँ 
मुझसे किसी को क्या दुश्मनी 
आप तो मुझे जिस तरह चाहे इस्तेमाल करते है
कभी कानफोड़ू आवाज 
कभी ढम ढमा ढम
दिन भर रात भर
हर जगह जरूरत है मेरी 
स्कूल से लेकर नेताओं के भाषण तक
 वहाँ तो भेदभाव नहीं 
तेरा मेरा नहीं 
तब संयम और सब्र से काम ले
किसी को तकलीफ न हो
मैं भी यही चाहता हूँ। 

डर तो लगता है

डर लगता है
आने वाले कल का 
भविष्य का भविष्य के गर्भ में पता नहीं क्या छिपा है
सोचा हुआ होता नहीं
मनुष्य सोचता क्या है
होता क्या है
आशा और निराशा 
इसी के भंवर में चक्कर लगाते रहते हैं 
जब होना वही है जो भाग्य में है
तब हम क्यों सोचते हैं 
कुछ भी अपने आप तो नहीं होता न
हम ऊपरवाले के हाथ की कठपुतली है जरूर
लेकिन हाथ - पैर तो हमें ही मारना है
बैठ रहने से हम तो पूरी तरह बैठ ही जाएंगे 

तब तो तुम भी न रहोगे

कब तक सताएगा
कब तक काटेगा
कब तक तोड़ेगा
कब तक पायेगा
कब तक खोदेगा
कब तक अपने स्वार्थ के लिए हमें उजाड़ेगा
हम तो तेरी ही संपदा है
उसी को तू नष्ट कर रहा है
लूट रहा है , लूटा रहा है
हम प्रकृति है
देना हमारा स्वभाव है
आखिर कब तक ??
हमारी भी एक सीमा है
केवल हमार शोषण ही करोगे 
तब तो विनाश अवश्यभांवी है
तुम अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हो
जो तुम्हारा पालन - पोषण करती है
उसे ही खत्म कर रहे हो
जल ,वायु ,भोजन तो हम ही से
हम न रहेंगे 
तो तुम्हारा क्या होगा
यह विचार किया है कभी
क्या सीमेंट  , रेत ,कांक्रीट,  खाओगे
धरती की भी सहनशीलता है
कितना लोगे 
देना कुछ नहीं 
बस लेना ही लेना
ऐसी स्वार्थ वृत्ति 
हर संतान में तुम सबसे बुद्धिमान 
तुम तो  सबको अपना भक्ष्य बना रहे हो
पेड़- पौधे  ,पशु-पक्षी , नदी - पहाड़ 
वन - जंगल , समुंदर- आकाश 
केवल अकेले रहना है 
तब तो तुम भी न रहोगे 

घर तभी तक है जब तक वह

मैं पैसा कमाने शहर आया
अब तो यही का हो रहा गया
अपने गांव की 
अपनी माटी की
अपने दोस्तों की
याद तो आती है
पर मजबूरी है
अपना गाँव- घर तो छोड़ना ही पडता है
तरक्की का रास्ता शहर से होकर ही गुजरता है

साल - दो साल में पंद्रह दिन के लिए जाता हूँ 
माँ आकर पास बैठ जाती है
झुर्रियों भरे चेहरे के साथ
ऑसू पोंछती जाती है
हाल चाल पूछती है
कभी कुछ मांगती नहीं 
जो पैसे देता हूँ 
सर माथे से लगाकर ले लेती है
ढेरों आशीष देती है

जब तक रहता हूँ 
उसके लिए उत्सव समान रहता है
मन पसंद खाना बनवाती है
ठोकवा - पुरी बनाती है
खीर - बखीर बनाती है
वह सब व्यंजन 
जो बचपन में मैं बडे प्रेम से खाया करता था
प्रस्थान करते समय
अचार - भरवा मिर्चा 
चना - लाई , चूरा 
सब बांध कर देती है

सोचता हूँ यह है
तब तक ही यह सब
उसके बाद कौन खोज - खबर लेगा 
सही है माँ है
तभी तक घर , घर है

Tuesday 10 May 2022

एक पत्नी का संबोधन

सूरज हो तुम मेरे
सूर्य सा तेज है तुममें 
घर में तुमसे ही प्रकाश है
तुम्हारी उपस्थिति से घर में एक नई रोशनी छा जाती है
तुम्हारी खुशी से पूरा घर प्रकाशित हो उठता है
तुमसे से ही तो यह घर 
तुमसे ही तो मेरा सुहाग
तुमसे ही तो मेरे चेहरे पर मुस्कान 
तुमसे ही तो मेरा गुरूर 
तुमसे ही तो घर की रौनक
तुमसे ही तो मेरे चेहरे पर नूर
तुम ही मेरा जग 
तुम ही मेरा संसार 
तुमसे ही तो मेरा असतित्व 
तुम बिन मैं शून्य 
तुम्हारे बिना जी तो लूंगी मैं 
पर वह मात्र शरीर होगा
आत्मा नहीं 
तुम मेरी शान
तुम मेरा अभिमान 
यह सूर्य सदा चमकता रहें 
इसकी रोशनी में, मैं खिलखिलाती रहूँ 
यहाँ वहाँ डोलती फिरूं 
चहकती फिरूं 
ईश्वर से दुआ
तुम सलामत रहो
तुमसे ही मेरा जीवन आबाद

माता का हाथ

बेलन चलाने वाली माँ 
थप्पड़  मारने  वाली माँ 
हाथ - पैर बांधने वाली  माँ 
पीठ पर धप धपाधप  लगाने वाली माँ 
सडसी - चाकू फेंक कर मारने वाली माँ 
छडी से सटासट  लगाने वाली माँ 
जब आया गुस्सा  तब पीटा

अब इसे क्या कहें 
यह ममता  है ?
मारना - पीटना
पर इसका मर्म  बस दो ही जानते हैं 
माँ  और बच्चा 
इतना सब होने के बाद जब गोदी में  दुबका लेती है 
ऑखों  से  ऑसू  पोंछती  है
गाल पर प्यार  से  हाथ सहलाती  है
और अपने रोने लगती है 
तब मन मसोस  जाता है 
माँ  के  ऑख में ऑसू  दर्द  भूला देता है

खाने के लिए  पीटना
पढने के लिए  पीटना
खेलने के कारण  पीटना
दवाई खाने के लिए पीटना 
बाहर  जाने  पर पीटना
सुलाने के लिए  पीटना 
जल्दी  जल्दी  न चलने के  लिए  पीटना 
माँ  के  पास पीटने के तमाम  कारण 
पीट पीट कर सिखाती है
खूब मजबूत  बनाती है
तभी तो कहते हैं 
माँ  के  हाथ की छडी 
           फूलों  से भी लगती कोमल

शब्दों के घाव

कल यानि  बीती रात खूब  जोरो का तूफान  उठा
अंधड  चला बिजली कडकी
जोरो  की  बरसात  भी हुई 
सब कुछ  भीग गया 
बाहर रखी लकडी  की चौकी 
अरगनी  पर टंगे हुए  कपड़े 
गेहूं  पसारा हुआ था 
और न जाने क्या क्या 

सुबह  फिर धूप खिली
सब फिर सूख गया 
लेकिन  एक अजीब  सी गंध छोड़  गया 
वह ताजगी नहीं  दिखी
जो सूखे हुए  कपडों  में  होती है
सूखी लकड़ी में  होती है
सीलन वाली गंध बरकरार  थी

यही बात तो संबंधों  में  भी लागू होती है
जख्म  लगा  हो
वाणी  के तीर चले हो
तानों  के खंजर खोपे  हो
भरी जमात में  जम कर मजाक  उड़ाया  गया हो
बात बात में  नीचा दिखाया  गया  हो
तब वैसे संबंध  में  ताजगी की अपेक्षा  करना

घाव भर तो जाता है
निशान नहीं  मिटता 
वह तो छोड़  ही जाता  है 
फिर पहले वाली बात तो नहीं  रहती
कितना भी मरहम  लगाने की  कोशिश  हो
वह तो नहीं  मिटने वाला
सीलन , संडाध  और निशान तो  रह ही जाएंगे

सोशल मीडिया और माँ

कल से आज तक माँ  छायी हुई  है 
फेसबुक  और सोशल मीडिया  पर 
यह तो आज की हकीकत  है
दिखाना पडता है
दर्शाना पडता  है 
विज्ञापन का जमाना है 
सबको पता कैसे  चलेगा 
अच्छा  है 
इसी बहाने एक दिन ही सही
जो भूले होंगे  
वह भी याद कर लेंगे 

माॅ  तो आज की है नहीं 
शाश्वत  है 
मीडिया  में  हो न हो
दिलों  में  हमेशा विद्यमान  रहती है 
यशोदा  का प्रेम  अमर है
बिना जन्म  दिए भी माता  का प्यार  
वह तो एक मिसाल  है 
माॅ  किसी परिचय  की मोहताज  नहीं 

जब जब चोट लगती है
तब तब माँ  ही याद  आती है
भूख लगती है तब भी
पीड़ा होती है तब भी
अपने बच्चों  के लिए  
भीगी बिल्ली  भी बन जाती है
शेरनी  भी बन जाती है
किसी  के  आगे झुक जाती है
किसी  से भी पंगा ले सकती है

अपनी सामर्थ्य  से ज्यादा 
बच्चों  के  दिल में  माॅ बसे या न बसे
माँ  के  दिल में  बच्चे  अवश्य  निवास करते हैं 
उसके बच्चे  में  सारी खुबियां
वह भी केवल उसी को  दिखाई देती है
तभी तो कहते हैं 
पुत्र  कुपुत  भले हो 
          माता हुई न कुमाता

माता बिन आदर कौन करें

बिन बोले सब कुछ  जान जाती है माँ 
चेहरे के हर भाव को पढ लेती है माँ 
ध्यान  से देखती है निहारती है
पता नहीं  क्या  ढूढती  है मुझमें 

मन के भावों  को  छुपाना चाहती हूँ 
तुमसे दूर जाना चाहती  हूँ 
तुम्हारा मन न दुखे यह भरसक कोशिश  करती हूँ 
पता नहीं  कौन सी ज्योतिष  विद्या  सीखी है तुमने
सब कुछ  अपने आप जान जाती हो

नहीं  चाहती  तुम्हें  दुखी  करना
पता है न 
तुम माँ  हो भाग्य-विधाता  नहीं 
वह होती तब तो कुछ  और बात होती
सारे संसार  की खुशियाँ  तुम मेरी झोली में  डाल देती

खैर कोई  बात नहीं 
ईश्वर  न हो तब भी माँ  तो हो ही
तुम  ईश्वर  से कम थोड़े  ही हो
भगवान  से तो प्रार्थना  करनी पडती है कुछ पाने के लिए 
तुम  पर तो अधिकार  है तभी तो छीन कर ले लेते हैं 
ऊपर से चार बात भी सुनाते हैं 
इतना नखरे  कौन सहेगा
बिन स्वार्थ  के कौन पूछेगा 

वह तो बस तुम  ही हो सकती हो
मेरी सारी बुराइयों  को  नजरअंदाज कर 
मुझे  पलकों  पर  बिठाने वाली
मेरे  लिए  किसी से भी लड जाने वाली
अपनी  परवाह  न कर
हर पल मेरी खिदमत में  तत्पर 
जैसे  मैं  कोई  महारानी हूँ 
आर्डर  दू और वह तुरंत  हाजिर

नहीं  चाहती  राज पाट
नहीं  चाहती सुख - सुविधा 
बस तुम्हारा हाथ सर पर रहें 
तुम  शतायु  हो
जीती रहो और  मेरे आसपास  डोलती रहो
ईश्वर  की शुक्रगुजार  हूँ 
वह तो साक्षात  नहीं  अवतरित  हो  सकता
तुमको भेज दिया  बस काफी  है

बरखा बिन सागर  कौन भरे 
माता बिन आदर कौन करें 

Happy Mother's day

माता का कोई मोल नहीं

आज मातृ दिवस है
जन्म देनेवाली माँ का तो आभार
उसको हम कहाँ भूलेंगे
साथ में और भी जितनी भी माँ
सभी को आभार और धन्यवाद

एक हमारी धरती माता
जिसकी मिट्टी में हम खेल कूद कर बडे हुए
हमारा सारा भार सह रही
न जाने अंजाने क्या क्या किया

एक हमारी भारत माता
जिसकी गोद में हम स्वतंत्र हैं
हमारा अधिकार है
रहने का खाने का 
संविधान का

एक हमारी नदी माता
नाम भले अलग हो
गंगा , यमुना , गोदावरी या और कुछ
जिन्होंने अपना शीतल जल दिया
हम पर अपनी जलधारा बहा रही हैं

एक हमारी गऊ माता
यह तो हम बचपन से पढते आए हैं
निबंध लिखते आए हैं
गाय हमारी माता है
माँ के दूध के बाद इसका दूध

एक हमारी गुरु माता
माँ के बाद अगर और कोई जगह सुरक्षित है
तब वह है पाठशाला में
जहाँ बचपन बीतता है
हम सीखते हैं

ऐसी न जाने कितनी माताएं
वह मौसी हो चाची हो मामी हो
जिसने माँ का फर्ज निभाया
हर उस माँ को सलाम

जगतजननी माँ जगदम्बा
उनका हर रूप
जिससे हमें शक्ति , संपत्ति , विद्या
सभी की प्राप्ति
जिनकी कृपा अपरम्पार

माॅ का तो मोल नहीं
वह अनमोल है
उसका हम पर वह अहसान है
जिसकी कीमत नहीं लगाई जा सकती
बस आभार और धन्यवाद कर सकते हैं
हर उस माँ को सलाम
जिसने जीवन में अमूल्य योगदान दिया

माँ से ही घर

कितनी भी बोली किसी की मीठी हो
चीनी की चाशनी में डुबोई हुई हो
पर माँ की आवाज के आगे  वह फीकी
कितना भी स्वागत सत्कार हो
कितना भी सुस्वादु भोजन हो
पर माँ की रोटी के आगे वह फीके
कितना भी अपनापन हो
गले मिलना हो
हाथ मिलाना हो
पर माँ के सर पर हाथ फिराने के कारण सब फीके
कितना भी मुलायम गद्देदार बिस्तर हो
आरामदायक हो
पर माँ की गोद के आगे सब फीके
कितना भी बडा घर हो
ऐशोआराम हो
जरूरत की हर चीज मुहैया हो
पर माँ के छोटे से घर के आगे वह फीके
कारण वहाँ ममता बसती है
प्यार दिल में होता है
दिखावा नहीं
कोई ताम झाम नहीं
तभी तो माँ से ही मायका है
माॅ न हो तो 
वह अपना नहीं लगता
माॅ के साथ ही हक होता है
अन्यथा वह होटल लगता है
घर तो माँ से ही घर लगता है

क्यों लिखे ???

कभी सोचती हूँ
मैं लिखती क्यों हूँ
हर सुबह लगता है
कुछ लिखूं
बिना लिखे दिन अधूरा
बहुत कुछ कहना चाहती हूँ
पर वह शब्दों में समेट नहीं पाती
मन विचलित होता है
बहुत कुछ ख्याल आते हैं
पर वह नहीं लिखा जाता
मन सोचता कुछ है
लिखता कुछ है
विचार उमड़ते घुमडते रहते हैं
शब्दों में वह नहीं समा पाते
पीडा जब बहुत गहरी होती है
तब तो शब्द भी मूक हो जाते हैं
शब्दों का एक अपना संसार
एक हमारा भी संसार
हमारी एक रची रचाई दुनिया
कुछ भी कहो
कुछ तो सुकून मिलता है
अपनी नहीं दूसरों की ही सही
भावनाओं को समझने का
कागज पर उकेरने का
शब्दों में ढालने का
यही बहुत है
कुछ कह न सके 
कुछ कर न सके
पर अपनी बात किसी एक के दिल तक भी पहुंचा सके
इतनी तो ताकत है 
वह शब्दों के माध्यम से ही व्यक्त होगा
इसलिए कुछ लिखना है
दुष्यंत कुमार की पंक्तियाँ
आग मेरे सीने में नहीं  
     तेरे सीने में जलनी चाहिए

समझौता

क्या से क्या हो गया
यह हम कहाँ आ गए
कितने बदल गए
कितना समझौता कर लिया
कितने लाचार हो गए
कितना चले
कितना रूके
कितना हंसे
कितना रोए
कितना खुश हुए
कितना गमगीन हुए
बस अब और नहीं
अब तो गुस्सा आ रहा है
अब सहना असह्य हो गया है
अब चुपचाप देखा नहीं जाता
अब मन विरोध कर रहा है
विचलित हो रहा है
मोहभंग हो रहा है
विद्रोही हो रहा है
सहनशक्ति जवाब दे रही है
लगता है
कुछ तो करें
पर क्या करें
यही समझ नहीं आ रहा
हालात बद से बदतर
हम मुकदर्शक
क्या से क्या हो गया
यह हम कहाँ आ गए

माँ तो माँ है

माँ तो माँ है
जिसकी कोई थाह नहीं
जिसकी कोई राह नहीं
जिसे किसी की परवाह नहीं
बस संतान को छोड़
सारी राह उसी तक
सारे सपने उसी तक
सारा प्यार उसी तक
कितना गहरा
वह तो सागर से भी परे
किसी की औकात नहीं
माँ के प्यार का मूल्य लगा सके
माॅ तो माँ है

कौन समझेगा उसके मन को
जिसका मन उसका ही नहीं
वह तो संतान में ही रमा
कौन समझेगा उसकी भूख को
जिसका भोजन ही संतान के लिए
उसे अपना स्वाद कहाँ याद
वह तो बच्चों में ही घुल मिल गया
उसकी ऑखे तो हमेशा देखती बच्चों को
वह तो अपने को भूल चुकी
बच्चों के साथ ही सोना जागना
बच्चों में ही उसका सुख समाया
जिसका कुछ अपना नहीं
वह तो बस है माँ

Sunday 8 May 2022

हे कालरात्रि हे कल्याणी, मेरी माँ के बराबर कोई नहीं

तू सबसे सुन्दर 
तू सबसे अच्छी 
तू सबसे सहनशील
तू सबसे प्यारी
तू सबसे न्यारी 
तू सबसे पवित्र 
तू सबसे समझदार
तू सबसे धैर्य वान 
तू ईश्वर के समकक्ष 
तू ईश्वर का अनुपम वरदान 
तेरे बिना सारा जहां ही सूना
तू है जहाँ वहाँ ही स्वर्ग 
तू ही सबसे पहली गुरू
यह सब तू है माता
तेरा मुझसे जन्म जन्म का नाता
तेरे ही गर्भ से उत्पन्न 
तुझसे ही मेरा असतित्व 
संसार में मेरी अहमियत 
तू नहीं तो कुछ भी नहीं 
सारे संसार का सुख एक तरफ
माता की गोद एक तरफ 
ईश्वर को तो देखा नहीं 
हाँ तुझे जरूर देखा है
तू देवकी भी है तू यशोदा भी है
जब तक तू तब तक हमारा गुरूर
क्या मजाल कि 
कोई ऑख उठाकर देख भी ले
तब तो तेरा चंडी रूप भी सामने आ जाएंगा
सारे जग से जो हमारे लिए लड लेंगी 
हमारी ढाल बन कर खडी हो जाएंगी
हमारी सारी चिंता अपने ऊपर ले लेंगी 
वह होती है माँ 
राजा चार जगाचा 
आई विना भिकारी 

Saturday 7 May 2022

प्रियतम का आगमन

कुछ बात तो है इन हवाओं में 
कुछ बात तो है इन फिज़ाओं में 
कुछ बात तो है इन बहारों में 
कुछ बात तो है मौसम की खुशगंवारी  में 
कुछ बात तो है इन पेड़ों की सरसराहटो में 
कुछ बात तो है इन तारों की चाल में 
कुछ बात तो है चंदा की चाँदनी में 

हाँ बात तो है मेरे मन में भी
कुछ कहना चाहता है
खिलखिलाना चाहता है
गुनगुनाना चाहता है
थिरकना चाहता है

धडक धडक कर कहता है
जल्दी आओ अब तो
कब तक इंतजार करू
अब मिलन की घडियां करीब है
तभी तो मन भी उडना चाहता है
मन प्रसन्न तो पूरी कायनात ही प्रसन्नता से सराबोर 
चहुँ ओर खुशी  ही खुशी दृष्टि गोचर
यह सब तुम्हारे आगमन का कमाल

एक फौजी की पत्नी का दर्द

तुम चुपचाप चले गए
हम अवाक हो देखते ही रह गए
न कोई ईशारा
न कोई संकेत
न कोई संदेश
न कुछ कहा 
न कुछ सुना
तुम आओगे 
कुछ दिन की तो बात है
वह कुछ दिन अब कुछ दिन नहीं रहा
वह तो बहुत बडा हो गया है
एक गहरा सन्नाटा लिए हुए
कहीं से कोई आवाज नहीं
कहीं से कोई आहट नहीं
सब चुपचाप हो गया 
हम सोचते ही रह गए
तुम धता दे गए
पता होता 
तब ऐसा न होता
तुमको तो रोक लेती
जिद कर बैठती
पर अलग न होने देती
मैं सावित्री भी तो नहीं बन सकती
जो यमराज से पति को मांग लाई
मैं तो फौजी की पत्नी जो ठहरी
जीने से पहले ही मौत से दोस्ती जो कर ली
जाना ही था 
मुझसे पहले भारत माँ का कर्ज चुकाना था
सात फेरो का वचन तो मेरे साथ था
जीने मरने की कसमे भी मेरे साथ खाई थी
तब मैं क्यों नहीं याद आई थी
मुझसे मेरी जान ले गए
मुझे रिक्त कर गए
तुम अमर हो गए
मैं विवश 
तुम चुपचाप चले गए
हम अवाक हो देखते ही रह गए

Friday 6 May 2022

लगता है ??

जाने क्यों सुबह उठने की इच्छा नहीं होती
लगता है सोए रहो
न जाने काम करने की इच्छा क्यों नहीं  होती
लगता है आराम करो
न जाने व्यायाम करने की इच्छा क्यों नहीं होती 
लगता है इसका क्या फायदा
न जाने पढने की इच्छा क्यों नहीं होती
लगता है इससे क्या होगा
न जाने कठिन भक्ति व्रत-उपवास करने का मन नहीं करता 
लगता है भगवान का स्मरण ही काफी है
न जाने किसी के लिए कुछ करने का मन नहीं करता
लगता है हमको इससे क्या
हम क्यों सुघड भलाई करे
न जाने किसी गलत को रोकने का मन नहीं करता
लगता है हम क्यों इस पचडे में पडे
सिकंदर ने पौरूष से की थी लडाई तो हम क्या करें 

सही भी है
ऐसा अमूमन शायद हर शख्स को लगता होगा
पर वही पाने की बात आए 
तब हम सब पाना चाहते हैं 
उसको हासिल है मुझे क्यों नहीं 
कर्तव्य की कठोर भट्टी में तपना पडता है
तब जाकर निखार आता है
नहीं तो गुजारा तो सबका हो जाता है
अजगर करे न चाकरी
पंछी करे न काम 
      दास मलूका कह गए 
सबके दाता राम 

करोना काल में मधुप्रेमी

सुबह से कतार में लगे
एक दिन नहीं तो दूसरे दिन फिर
एक दुकान में नही मिली
तो आठ आठ दुकानों के चक्कर
गजब का धैर्य
इस बीच न किसी की तबियत खराब
न कोई बेहोश हुआ
न अमीर न गरीब
न जात पात न धर्म
सब खडे हैं
अपनी बारी की प्रतीक्षा में
कमाल हो गया
सोशल डीशस्टिंग गायब
सरकार ने जैसे पीने का लाइसेंस दे दिया है
पहले छुप कर लेते थे
आज खुलेआम
सब शर्म गायब
और अब लगता है
देश का कर्णधार भी यही हो गया है
आमदनी का जरिया
गरीबी गायब हो गई
पैसा है तभी तो नशा है
कौन कहता है
लोग खाने बिना मुहाल है
खाने बिना नहीं पीने बिना
हरिवंश राय बच्चन ने लिखा है
भेद कराती मंदिर मस्जिद
      मेल कराती मधुशाला
आज एक और भी तथ्य सामने है
राजस्व बढाती मधुशाला
    सरकार को उबारती मधुशाला
करोना भी पानी पानी है
     शराब के सामने
शराब पीने वाला किसी से नहीं डरता
तब करोना की क्या औकात

पहले कौन ??

मत जोहो 
मत इंतजार करो
मत ज्यादा सोचो
कौन पहले पहल करेगा
कौन पहले बात करेंगा
पहले तुम पहले तुम
कहते-कहते कहीं समय न निकल जाय
खता किसी की भी हुई हो
यह मत सोचो
कभी-कभी मन तो करता है
दोनों तरफ से चाहा भी जाता है
पर इसी सोच के कारण रह जाता है
एक ही बार तो यह अनमोल जिंदगी मिली है
न जाने कब फिसल जाय
और हम पछताते ही रह जाय
नाते रिश्तेदार
यार दोस्त
सबसे निभा कर रहे
कभी-कभी छोटी सी बात की कसक
हम पनपने देते हैं
उसका कुछ फायदा तो है नहीं
बस हमारी अहं की संतुष्टि के लिए
अगर मन करता है
तब मन की मानिए
जिद छोड़ 
आप ही पहल कर ले

Thursday 5 May 2022

प्रेम विवाह या अरेन्ज मैरिज

अगर प्रेम  विवाह  किया
अपनी मर्जी  से निर्णय  लिया 
मेरा मरा हुआ मुख देखना ।
अक्सर  ऐसी बातें भारतीय  अभिभावकों  की  तरफ से होती हैं 
यह उनकी इज्जत  और प्रतिष्ठा  का सवाल होता है 
जमाना  बदला है अब कुछ  लोग स्वीकार  कर रहे हैं  पर उनकी संख्या  कुछ प्रतिशत  ही है 
अच्छे  - अच्छे  परिवारों  में भी इज्जत  की दुहाई  देकर या तो उनकी जान ली जाती है या
अपनी जान दी जाती है
इसका परिणाम  न जाने  कितनी  जिंदगियां  बरबाद हो जाती है 
हमारे  एक परिचित की बेटी जो ब्राह्मण थे उनकी बेटी ने बंगाली से ब्याह  किया वह भी ब्राह्मण  ही था फिर भी वह उसको स्वीकार  न कर पाएं 
बेटी सुखी है फिर भी मलाल है कि भले दरिद्र  और गरीब  होता तो समाज  के  सामने  गर्व से खडा कर देते पर इसको तो नहीं 
यह भी धारणा कि हम  ही हिन्दू हम  ही श्रेष्ठ 
यहाँ  तक जातिवाद कि एक जाति का धोबी वह चमार के यहाँ  रोटी - बेटी वाला रिश्ता  नहीं  करेंगा
योग्यता - संपत्ति  सब ताक पर
बस जाति वाला हो तो वह सर - माथे  पर 
फिर वह कैसा भी  हो ।
जाति  का तो यह हाल है
धर्म  का तो और भयावह 
लव जिहाद  के  नाम से  सब लोग परिचित  ही हैं 
धर्म  में  तो भगवान  भी आ जाते हैं 
तब तो और भी बुरा हाल ।
प्रान्त  और भाषा  भी हैं  ही ।
जाति , जाति से टकराती है
धर्म  , धर्म  से टकराता है
भाषा और प्रान्त  भी एक - दूसरे से टकराते हैं 
इस टकराव में  न जाने  कितनी  जिंदगियां  बिखर जाती  हैं 
बरबाद हो जाती हैं 
समय से पहले दुनिया  छोड  जाती  हैं 
जिंदगी  पर ये हावी  हो जाती हैं

हम मानव हैं

माना कि शहर बहुत  उदास  है
हवा भी कुछ  धीमी सी
फिर भी मन में  विश्वास  है 
प्रकाश  ने डेरा तो  डाला है
अंधकार को दूर भगाता है
संसार है
जीवन है
तब उसके साथ सुख  - दुख भी है
गम  और मुस्कान  भी है
यह मानव  है
रो कर बैठ रहना 
यह न उसका धर्म  है न कर्म  हैं 
सदियों  से उसने न जाने कितने  आपदाओं  का सामना  किया  है
गिरा है
संभला है
उठ भी खडा  हुआ है
जीवन जीया है जीता भी है
मृत्यु  और बीमारी 
आपदा  और विपदा
भूकंप  और बाढ
विनाश और निर्माण  के मुहाने  पर खडा 
आशा और निराशा  के  भंवर में  डूबता - उतराता 
अपना कर्तव्य  करता जाता
आज और पल का ठिकाना  नहीं 
भविष्य  का निर्माण  करता जाता
अदम्य जीजिविषा  के साथ 
तभी तो यह सब जीवों  में  ताकतवर 
ग्रहों  और नक्षत्रों  की गणना  करता 
उन पर पहुंचने की कोशिश  करता
यह मानव  है  जिसने हार नहीं  मानी 
जीवन को मुठ्ठी  में  लेकर चलता है
विस्तार  आसमान  तक करता  है 
अभिमान  है  कि 
हम  मानव है
हारना हमारी फितरत  नहीं  ।

हम मिडिल क्लास

क्या मिडिल क्लास  मेंटालिटी है
बहुत  बार सुना 
हंसते  - हंसते  टाल दिया 
मिडिल  क्लास  को समझना  सबके बस की बात नहीं 
यह वे लोग हैं  जो राष्ट्र निर्माता  है
समाज  निर्माता  है 
टेक्स पेयर है
सारा दारोमदार  इन्हीं  के  कंधों  पर
सारी अपेक्षाएं इन्हीं  से
परम्परा  का पालन करना 
वर्तमान  में  रहते हुए  उज्जवल भविष्य  का ख्वाब  बुनना
शिक्षा  को पुरजोर बढावा 
विरासत को कायम  रखना
आधुनिकता  को स्वीकार  करना

रहते है दो कमरों  के  घर में 
स्वप्न देखते हैं  अट्टालिकाओं के 
पैसा होते हुए  भी सोच समझ  कर खर्च करते  हैं 
फिजुलखर्ची  इन्हें  बर्दाश्त  नहीं 
चीजों  का इस्तेमाल  करना इन्हें  बखुबी  आता है
टूथपेस्ट  खत्म  होने पर भी काट - पीट कर जब तक खत्म  न हो जाएं  दम  नहीं 
जूस की बोतल में  पानी डालकर खंगार  लेंगे 
रसगुल्ले  की  बची  चाशनी से मीठी  पुरी बना लेंगे
सर दर्द  में क्रोशीन  से काम  चला लेंगे
साबुन जब घिस जाय तब उसके टुकडे  टुकड़े  कर डिटर्जेंट  बना लेंगे
हाथ से बुना स्वेटर 
हाथ से कूटे मसाले बहुत  भाते हैं 
कपडा फट जाएं  तो उसका पोछा बना लेते  हैं 
मगर कामवाली  बाई  को नई साडी भी दीवाली  पर देते हैं 
वाॅचमैन  , पोस्ट मैन को बख्शीश भी देते हैं 
सब्जी वाले से सब्जी  पर धनिया - मिर्ची  मुफ्त  में  मांगते हैं 
पर मेहमानों  की खूब  आवभगत करते हैं 

टैक्सी  नहीं  बस और ट्रेन  से सफर करते हैं 
पर बच्चों  की  शिक्षा  में  कोताही  नहीं  करते हैं 
किश्त पर सामान  लेकर  घर को सजाते हैं 
किसी को अपनी कमजोरी  का एहसास  नही होने देते
कभी-कभी  महंगे होटलों  में  भी खाना खा आते हैं 
मेनू  पर कीमत   देखकर डिश आर्डर  करते हैं 
कभी  कभी  पिकनिक  पर भी जाते हैं 
नाश्ता  घर से बनाकर ले जाते हैं 

रात - दिन मेहनत  करते है
कभी चुपचाप  नहीं  बैठते हैं 
डाॅक्टर  , इंजीनियर  , टीचर यही तैयार  करते हैं 
नेतागिरी इनके बस की बात नहीं 
ये वोट भी मुश्किल  से देने जाते हैं 
हाॅ चर्चा  में  ये किससे पीछे नहीं 
तभी तो बुद्धिजीवी कहलाते हैं 

अमीर  तो अमीर  है उसे पैसे  की  परवाह  कहाँ  
गरीब  तो गरीब  है उसे दो जून को रोटी ही बहुत  है
समाज  की  परवाह  भी इन दोनों  तबको  को नहीं 
यह  मिडिल  क्लास  ही है जो सबको साथ लेकर चलता है
फिर भी सबसे ज्यादा  वहीं  पीसता है
उसे किसी  चीज में  छूट नहीं 
नहीं  कोई  सरकारी बैनिफिट्स 
क्योंकि वह वेतन भोगी है
उसकी कमाई  जग-जाहिर  है
भले यह सब करते-करते  महीने के आखिर  तक कंगाल  हो जाएं 
फिर भी फर्ज  निभाना है
देश और समाज  का भार तो उसे  ही निभाना है ।

महाभारत होने का कारण कौन ???

महाभारत दुर्योधन के हठ के कारण हुआ
धृतराष्ट्र के पुत्र मोह के कारण हुआ
द्रोपदी के अपमान के कारण हुआ
शायद नहीं
इन सबकी जड गंगपुत्र देवव्रत थे
अन्याय तो यही से शुरू हुआ
राजा शांतुन का सत्यवती से विवाह
देवव्रत की भीष्म प्रतिज्ञा
एक युवराज से सारे अधिकार छीन गए
यहाँ तक कि विवाह और गृहस्थ जीवन का
पिता की इच्छा की बलि चढ गए देवव्रत
सत्यवती को लाए पिता के लिए
अंबा अंबिका और अंबालिका को लाए भाई के लिए
गांधारी को लाए धृतराष्ट्र के लिए
साथ में गांधार युवराज शकुनि को भी लाए
बहन का ब्याह अंधे से
यह भी तो अन्याय था
इससे तो अच्छा था पिता की इच्छा पूर्ण न करते
दासराज के प्रस्ताव को ठुकरा देते
अन्याय सहना भी तो अन्याय करने के बराबर
एक अपने समय का बलशाली शक्तिशाली युवा पिता के प्रेम की बलि चढ गया
अपना जीवन ही हस्तिनापुर के नाम कर दिया
और जो न करना था सब किया
द्रोपदी का चीरहरण चुपचाप देखते रहे
अन्याय हो रहा था पांडवों के साथ
पर दुर्योधन को नहीं छोड़ सके
क्योंकि वे हस्तिनापुर से बंधे थे
अपनी प्रतिज्ञा में बंधे थे
उनके लिए उनकी प्रतिज्ञा बडी थी
वे व्यक्तिवादी बन गए थे
समष्टिवादी नहीं
वे भीष्म बने रहे
बीज तो पहले ही सत्यवती के पिता ने बो दिया था
पहले देवव्रत का अधिकार
फिर नेत्रहीन होने के कारण धृतराष्ट्र का अधिकार
दुर्योधन ने उसे स्वीकार नहीं किया
सत्ता को काबिज किए रहा
पांडवो को वन में भटकने के लिए मजबूर किया
यहाँ भी अन्याय हो रहा था
अगर केशव न होते तब पांडव तो नहीं जीतते
कौरवों के पास एक से बढकर एक महारथी
विशाल सेना थी
प्रतिरोध किसी ने नहीं किया
विदुर को छोड़
क्योंकि वे दासीपुत्र थे
राज सिंहासन की लालसा नहीं थी
युद्ध तो होना ही था
क्योंकि दुर्योधन तो देवव्रत भीष्म नहीं था
पर सारा दोष उस पर
यह भी तो सही नहीं

Wednesday 4 May 2022

सेल्फी का चलन ???

आजकल सेल्फी का जमाना है
हर हाथ में मोबाईल 
छोटा हो या बडा 
बूढा हो या बच्चा 
अमीर हो या गरीब 
शादी - ब्याह हो
पर्यटन हो
जन्मदिन हो
चमचमाती कार हो
होटल में खाना हो
यहाँ तक कि बच्चे का जन्मते ही
दोस्तों के साथ मौजमस्ती हो
रोमांस हो
और न जाने क्या क्या 
यह सब जग जाहिर करना है

ठीक है अपनी खुशियों के पल को देखना
पर उसका विज्ञापन करना 
यह तो उचित नहीं 
हो सकता है
आपका रिश्तेदार या दोस्त की ज्यादा हैसियत न हो
उसमें कमी की भावना आ सकती है
ईर्ष्या हो सकती है
यह कोई नयी बात नहीं 
मनुष्य का स्वभाव है
वह हर उस चीज को पाना चाहता है
जो उसके पास न हो

दिखावा करने के लिए सोशल मीडिया नहीं है
कुछ ऐसी याद जरूर रखिए
लेकिन उसे उजागर करते समय
जरा उनके बारे में भी  सोच ले
जो इन सबसे वंचित है 

हमारा प्यारा नीम

नीम तो वही है बस लोग बदल गए हैं। बरसों  से यह खडा है। न जाने  कितनी पीढियाँ देखी है । 
तब सुबह  नीम की दातून से दिन शुरू  होता था ।रात में  उसी के  पेड़  के  नीचे बडे - बूढे सोते थे । दोपहर में  बच्चे  खेलते थे ।छाया के  नीचे खटिया डाल चर्चा। 
अब तो टूथपेस्ट  और पंखा का जमाना है । जमाना  तो बदला है पर नीम  नहीं  बदला है , वह वैसे  ही खडा है मजबूती से जो उसके  पास है वह देने के लिए। 
यह हम पर है हम  क्या लेते हैं  ??

मुंबई मेरी जान

मेरा शहर मुझे प्यारा है
यह सबसे न्यारा है
यहाँ हर कोई निराला है
सबके सपने सबकी बातें
सबका भोजन
सबके बोल
सबका अंदाज
नहीं किसी से किसी की तुलना
यहाँ सब अपने आप में दीवाने
नहीं किसी को किसी की खबर
मनती है यहाँ हर रोज दीवाली
लगते हैं यहाँ हमेशा मेले
भीड़ में भी यहां हर कोई अकेला
सडकों पर मोटर कारों का रेला
सब अपनी धुन में दौड़ रहे
नहीं फुरसत किसी को
आगे पीछे ' दाएं बाएं देखने की
बस यह हरदम भागता - दौड़ता
कोई दौड़ में आगे निकल जाता
कोई पीछे रह जाता
पर कोशिश कोई नहीं छोड़ता
चलता ही रहता
चलते चलते मंजिल तक पहुंच ही जाता
यह सबको अपनाता
नहीं किसी को दुत्कारता
मजहब - धर्म से परे
यहाँ इंसानियत का तकाजा
भाषा - प्रांत से नहीं कोई सरोकार
सबसे निभाता प्रेम का रिश्ता
जो इससे प्रेम करता
उसे दिल खोलकर देता
यहाँ नहीं कोई उपेक्षित
हर आगंतुक को गले लगाता
जो एक बार यहाँ आता
यही का होकर रह जाता
भारत क्या 
विश्व के किसी भी देश में मन नहीं रमता
तभी तो यह जान कहा जाता 
मेरा शहर मुझे प्यारा है
यह सबसे न्यारा है

सब कुछ ठीक है

सब कुछ ठीक है
यह छोटे छोटे से शब्द कितना सुकून देते हैं
आई लव यू    से भी ज्यादा
बहुत ताकत है इनमें
अपनों की खैरियत पता चलती है
माँ दूर रहने वाले बेटे से जब पूछती है
बेटा तू ठीक है न
तब माँ के चेहरे पर तसल्ली के भाव आ जाते हैं
ससुराल में नई-नई बेटी से जब माता पिता पूछते हैं
बेटा तू ठीक है न
उसकी हाॅ सुनकर ही अंदाजा लगा लेते हैं
बेटी किस हाल में है
काम पर गए पति को देर होने पर जब पत्नी पूछती है
सब ठीक है न
आज कोई परेशानी तो नहीं
उनकी हाॅ सुनकर वह मुस्कान से भर जाती है
बच्चों को देर हो जाती है कई
स्कूल - कालेज या ऑफिस
बस यही वाक्य सुनने को बेताब रहते हैं
कोई कुछ कर तो नहीं सकता
खुदा नहीं है
पर अपनो की खैरियत की हमेशा दुआ करता है
जब तक घर का हर सदस्य घर नहीं आ जाता
तब तक चैन की नींद नहीं आती
हमारे अपने कहीं भी रहे
सुरक्षित रहे
सब यही चाहते हैं
सब ठीक है
सुनना चाहते हैं हमारे कान
सब कुछ ठीक है
चिंता मत करो
और क्या चाहिए
सब ठीक रहेगा
तभी तो प्यार 'ममता 'और उन्नति होगी
आई लव यू 
कभी-कभी बोला जाता और सुना जाता है
सब ठीक है
यह सुनने और कहने को हम हमेशा तत्पर

करोना काल का समय

सब घर पर रहें 
सुरक्षित रहें 
हम सब एक - दूसरे से बंधे  हुए 
कोई  किसी को खोना नहीं  चाहता
सांसों के डोर से  बंधे हैं 
कठिन समय है
विचलित मन है
चिंतित  सब है
अपने लिए  अपनों  के  लिए 
कब क्या हो यह तो निश्चित  नहीं  है 
फिर भी आशा तो है
विश्वास  तो है
यह भी समय चला जाएगा 
कुछ  भी  स्थायी नहीं  यहाँ 
तब यह भी कैसे रहेगा 
धीरज रखना है
हिम्मत  रखना है
सब्र से काम  रखना है
सेवा और दया की भावना रखना है
इंसानियत  को हार नहीं  माननी चाहिए 
मन  से मन को दूर न करें 
सहानुभूति  की भावना रखें 
संकट  आया है मानव जाति  पर
वह भी जाएंगा
इसकी भी सुबह  तो होगी ही
अंधकार  हमेशा नहीं  रहता

छोड़ो कल की बातें

कुछ गुस्ताखियाँ तुमसे हुई
कुछ गुस्ताखियाँ हमसे हुई 
कुछ गलत हम कुछ सही तुम
यह तो सिलसिला है
चलता ही रहेगा 
अब सब गिरे- शिकवे छोड़ो
जिंदगी कुछ समय की तो बची है
उसे तो प्रेम से जी लो
सारी कटुता भूला दो
इस सिलसिले में हमने 
बहुत कुछ खोया
बहुत कुछ पाया
अब न कुछ खोने को है
न कुछ पाने को है
बस जिंदगी का गुजारा करने को है
तब तो
छोड़ो कल की बातें 
कल की बात पुरानी 
नई डगर पर चलकर 
    हम लिखेंगे एक नई कहानी 

Tuesday 3 May 2022

रोटी से जिंदगी का फलसफा

रोटी बेल रही थी
तवे पर रखती जा रही थी
उलट - पुलट सेकते जा रही थी
अचानक मन में एक विचार कौंधा 
रोटी जब बेल रही थी तब तो सफेद सफेद
उलटने पलटने से चित्ती पड रही थी
जब दोनों तरफ उलट पलट लिया 
तब उसको फुलाया 
फुल कर कुप्पा 
ऐसे ही तो हमारे साथ होता है
रोटी आग के चटके खाने के बाद फूलती है
जिंदगी भी झटके देती रहती है
समय-समय पर तपाती है
तभी हम कुछ लायक बन पाते हैं 
जो प्रोसीजर रोटी का वहीं तो जीवन का
अनाज से लेकर रोटी तक की यात्रा 
सब कुछ सहना पडता है
यही जीवन-चक्र है

समय

समय तो बहता पानी है
एक बार हमें छूकर आगे बढ गया 
तब वापस नहीं आता है
आगे बढ जाता है
उसे पकड़ नहीं सकते
जब पानी गुजर रहा है
तब उसमें उतर जाएं 
जितना उलीचना हो उलेच ले
अपन अंजुरी में भर ले
समय मिला है 
तब ऐसे मत जाने दे
उसका सदुपयोग कर ले
नहीं तो बाद में सोच कर कुछ फायदा नहीं 
हर किसी को समय मिलता जरूर है
मौका मिलता है 
अब मौके को गंवा दे
या फिर उसे कस कर पकड़ ले 

पति परमेश्वर

पति परमेश्वर है
उसकी सेवा करो
आप उसकी धर्म पत्नी है
यह आपका कर्तव्य है
जमाना बदला है
अब कोई परमेश्वर नहीं 
एक दूसरे के साथी है
गाडी के दो पहिये के समान है
कोई कम - ज्यादा नहीं 
परिस्थितियों में अंतर आ गया है
कोई किसी पर निर्भर नहीं 

यह बात भी सही है
घर तो दोनों के सहयोग से चलता है
फिर भी हम नारियों को एक बात तो माननी पड़ेगी
संसार का सर्वोच्च पद 
माता होने का दर्जा 
वही पुरूष देता है
अपने घर और हदय की रानी बनाकर रखता है
वैसे ब्याह तो जुआ का खेल
जो इसमें जीता वही सिकंदर 
फिर तो उसे राज करने से
इशारों पर नचाने से कोई रोक नहीं सकता
तभी तो सुहाग की अमरता की कामना की जाती है
व्रत- उपवास रखे जाते हैं 
क्योंकि वह है तभी तक आप बहुमूल्य है
तब उसे परमेश्वर मानने में हर्ज ही क्या है 

Monday 2 May 2022

आज की मजबूरी

पेट - पीठ दोनों है एक
चल रहा लकुटिया टेक
निराला जी के यह भिक्षुक 
हर गली - चौराहे पर मिल जाएंगे
गली - चौराहे पर क्या 
हर घर में यह मिल जाएंगे
वृद्धों की यह दयनीय अवस्था है
वह फिर अमीर हो या गरीब या मध्यमवर्गीय 
गाँव हो या शहर
एक समय का वह नौजवान जो हर काम के लिए तत्पर
अपने बच्चों को अपनी हैसियत से ज्यादा देने की कोशिश 
परिवार टूट रहे हैं 
कोई इनको मन से अपने साथ रखने को तैयार नहीं 
शायद नई पीढ़ी की अपनी मजबूरी हो
कहाँ से समय निकालें 
जीवन की आवश्यकताओ की पूर्ति करते करते थक जाते हैं 
उनकी महत्तवकांक्षाए  उनकी उडान 
उनके बच्चों का भविष्य 
यह सब सुरक्षित करने के चक्कर में 
वह अपने बुजुर्गों की अनदेखी कर देते हैं 
हो सकता है यह मजबूरी में हो
पर वास्तविकता तो यही है
जब नारी - पुरुष समान हो
तब तो यह होना ही है

जो भी मिला बहुत मिला

हमने भी देखा है वह जमाना
जो आज याद आती तो है
आने के साथ चेहरे पर मुस्कान ले आती है
कहीं कोई गिला - शिकवा नहीं 
जो जीया मजे से जीया
जिंदगी के हर रूप को जीया

वह जमाना था
जब सरकारी स्कूल में पढने पर कोई शर्म  नहीं 
अपनी किताबें बेचते थे
और सेकंड हैंड किताबें लेते थे
नोटबुक पर अखबार या कैलेंडर का कवर चढाते थे
कपडा इस्तरी हुआ है या नहीं 
इसकी कोई फिक्र नहीं थी
जूते पर चाॅक  घिस लेते थे
पीठ पर खाकी कपडे का बस्ता या हाथ में स्टील की पेटी होती थी
बस के पैसे ही मिलते थे
कभी-कभी पांच- दस पैसे ज्यादा मिल गए 
तब सेव - मुरमुरा या छोटा समोसा खा लेते थे
रावलगाव की टाॅफी और आंरेज कलर की गोली
स्कूल के बाहर कच्ची कैरी की फेंके,  बेर , अमरूद खूब चटखारे लेकर खाते थे
गोला वाले से गोला कुछ खाते कुछ कमीज पर गिरते 
फिर बांहों में ही मुंह पोंछ लेते थे
नाश्ते के नाम पर अचार और रोटी ले जाते थे
नहीं कलरफुल डिब्बा न पानी की डिजाईन दार बोतल
नल में से अंजुली से पानी पी लेते थे
न पैरेन्टस छोड़ने आते थे न कोई मोटरसाइकिल से
बेस्ट की बस और नहीं तो आस पडोस के बच्चों के साथ
धमा-चौकड़ी करते हुए 
पनिशमेंट अक्सर होते थे
अध्यापक की मार खाते थे पर घर आकर नहीं बताते थे
नहीं तो घर पर दो थप्पड़ और
रिजल्ट पोस्टमैन लाता था और आस पडोस के सब जमा रहते थे उत्सुकता वश
फेल हुए तो मार पास हुए तो भी पीठ पर थपका शाबासी का
परसेन्ट का चक्कर तो था ही नहीं 
किसी के घर जाएं कोई डर नहीं 
अपने से ज्यादा दूसरों के घर डेरा
कभी मन में कमी की भावना नहीं आई
माता-पिता की परिस्थिति को समझते थे
जबरदस्ती कोई जिद नहीं 
तेरी साडी मेरी साडी से सफेद क्यों  
यह भावना तो थी ही नहीं 
किसी एक के घर टेलीविजन 
किसी एक के घर फोन
वह भी लोग सार्वजनिक समझते थे
डांट सुनने पर और द्वार बंद करने पर भी खिड़की से झांकते 
हम तो चिमटा में ही खुश है तुम्हारे जैसे मंहगा खिलौने की जरूरत नहीं 
प्रेमचंद के हमीद जैसे
भाडे की साईकिल लाते थे बाँट बाँट कर चलाते थे
गोटी , कबड्डी,  छुपाछुपी  , खो - खो और घर - घर , टीचर - टीचर , पुलिस  - चोर यह हमारे खेल होते थे
सुबह उठते ही मार पडती
खेल कर आते फिर मार पडती
न पढने पर मार पडती
लगता मार नहीं दुलार था
हम भी बेशर्म थे बस दो मिनट बाद सब भूल जाते थे
घर से भागना या आत्महत्या करना यह तो विचार ही नहीं कभी आए 
क्योंकि  हम जीवन जी रहे थे
अनुभव की भट्टी में तप रहे थे
पग - पग पर अपमान  , ताने सुनने की आदत डाल रहे थे
इसलिए हम सबको झेल सके
कार्यस्थल  , समाज , पडोसी क्या और भी जगह
जिंदगी आसान नहीं होती
अगर मजबूत नहीं तो टिकोगे नहीं 
दुनिया- समाज जीने नहीं देंगे 
इसलिए वह बचपन की नींव ऐसी मजबूत 
हम सबको झेल सके
झेल भी रहे हैं 
कोई गिला - शिकवा नहीं 
हमें यह नहीं मिला
वह नहीं मिला
पैरेन्टस के लिए मन में सम्मान 
जो भी मिला बहुत मिला


हनुमान चालीसा की रचना

🌹हनुमान चालीसा कब लिखा गया क्या आप जानते हैं। नहीं तो जानिये, शायद कुछ ही लोगों को यह पता होगा🌹
 
पवनपुत्र हनुमान जी की आराधना तो सभी लोग करते हैं और हनुमान चालीसा का पाठ भी करते हैं, पर यह कब लिखा गया, इसकी उत्पत्ति कहाँ और कैसे हुई यह जानकारी बहुत ही कम लोगों को होगी।
बात 1600 ईस्वी  की है यह काल अकबर और तुलसीदास जी के समय का काल था।

एक बार तुलसीदास जी मथुरा जा रहे थे, रात होने से पहले उन्होंने अपना पड़ाव आगरा में डाला, लोगों को पता लगा कि तुलसीदास जी आगरा में पधारे हैं। यह सुन कर उनके दर्शनों के लिए लोगों का ताँता लग गया। जब यह बात बादशाह अकबर को पता लगी तो उन्होंने बीरबल से पूछा कि यह तुलसीदास कौन हैं।

तब बीरबल ने बताया, इन्होंने ही रामचरित मानस का अनुवाद किया है, यह रामभक्त तुलसीदास जी है, मैं भी इनके दर्शन करके आया हूँ। अकबर ने भी उनके दर्शन की इच्छा व्यक्त की और कहा मैं भी उनके दर्शन करना चाहता हूँ।

बादशाह अकबर ने अपने सिपाहियों की एक टुकड़ी को तुलसीदास जी के पास भेजा और  तुलसीदास जी को बादशाह का पैगाम सुनाया कि आप लालकिले में हाजिर हों।

 यह पैगाम सुन कर तुलसीदास जी ने कहा कि मैं भगवान श्रीराम का भक्त हूँ, मुझे बादशाह और लालकिले से मुझे क्या लेना-देना और लालकिले जाने के लिए  साफ मना कर दिया।

 जब यह बात बादशाह अकबर तक पहुँची तो बहुत बुरी लगी और बादशाह अकबर गुस्से में लालताल हो गया, और उन्होंने तुलसीदास जी को जंज़ीरों से जकड़बा कर लाल किला लाने का आदेश दिया। जब तुलसीदास जी जंजीरों से जकड़े लाल किला पहुंचे तो अकबर ने कहा की आप कोई करिश्माई व्यक्ति लगते हो, कोई करिश्मा करके दिखाओ। तुलसी दास ने कहा मैं तो सिर्फ भगवान श्रीराम जी का भक्त हूँ कोई जादूगर नही हूँ जो आपको कोई करिश्मा दिखा सकूँ। अकबर यह सुन कर आगबबूला हो गया और आदेश दिया की इनको जंजीरों से जकड़ कर काल कोठरी में डाल दिया जाये।

दूसरे दिन इसी आगरा के लालकिले पर लाखों बंदरों ने एक साथ हमला बोल दिया, पूरा किला तहस नहस कर डाला। लालकिले में त्राहि-त्राहि मच गई, तब अकबर ने बीरबल को बुला कर पूछा कि बीरबल यह क्या हो रहा है, तब बीरबल ने कहा हुज़ूर आप करिश्मा देखना चाहते थे तो देखिये। अकबर ने तुरंत तुलसीदास जी को कल कोठरी से निकलवाया। और जंजीरे खोल दी गई। तुलसीदास जी ने बीरबल से कहा मुझे बिना अपराध के सजा मिली है।

मैंने काल कोठरी में भगवान श्रीराम और हनुमान जी का स्मरण किया, मैं रोता जा रहा था। और रोते-रोते मेरे हाथ अपने आप कुछ लिख रहे थे। यह 40 चौपाई, हनुमान जी की प्रेरणा से लिखी गई हैं। कारागार से छूटने के बाद तुलसीदास जी ने कहा जैसे हनुमान जी ने मुझे कारागार के कष्टों से छुड़वाकर मेरी सहायता की है उसी तरह जो भी व्यक्ति कष्ट में या संकट में  होगा और इसका पाठ करेगा, उसके कष्ट और सारे संकट दूर होंगे। इसको हनुमान चालीसा के नाम से जाना जायेगा।

अकबर बहुत लज्जित हुए और तुलसीदास जी से माफ़ी मांगी और पूरी इज़्ज़त और पूरी हिफाजत, लाव-लश्कर से मथुरा भिजवाया।
आज हनुमान चालीसा का पाठ सभी लोग कर रहे हैं। और हनुमान जी की कृपा उन सभी पर हो रही है। और सभी के संकट दूर हो रहे हैं। हनुमान जी को इसीलिए "संकट मोचन" भी कहा जाता है
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Sunday 1 May 2022

शादी की सालगिरह हमें मुबारक हो

2022 का वर्ष
42 वर्ष पूरे 
एक- दूसरे का साथ निभाते
कभी मानना कभी मनवाना
कभी इशारों पर चलना कभी चलवाना
कभी साथ - साथ और पास - पास
कभी दूर - दूर
कभी सुख कभी दुख 
कभी गम कभी खुशी 
कभी नाराजगी और गुस्सा 

कभी  हंसी और मुस्कान 
कभी झगड़ा कभी मनौवल
कभी हमने माफ किया कभी उन्होंने 
एक दूसरे की गलती को नजरअंदाज करते हुए 
एक दूसरे को माफ करते हुए 
इतने साल कैसे बीत गए
पता ही नहीं चला
युवावस्था से सीनियर सीटिजन की कैटिगरी 
कभी कुछ सोचकर मुस्कान 
कभी कुछ सोचकर गुस्सा 
तब भी यह साथ निभ गया
लोगों के सहयोग से
अपनों के साथ
सभी को तहे दिल से धन्यवाद 
आगे भी सबका आशीर्वाद और स्नेह बना रहे
शुक्रिया  सभी को 
हमसफर को तो शुक्रिया  है ही
जो भी इस सफर के साथी बने
उन्हें भी
हमारा परिवार  , हमारे रिश्तेदार ,हमारे पडोसी ,हमारे दोस्त 
हर उस शख्स को
जिसने कुछ भी सहयोग दिया हो
इस जीवन यात्रा में 
सबसे पहले और सबसे बाद 
उस ईश्वर को 
जिसकी कृपा हमेशा रही 
मैं जिंदगी का साथ निभाता गया
           हर फिक्र को धुएं में उड़ाता  गया ।


Happy Majdur divas

मजदूर यानि कामगार
इसके बिना किसी का काम नहीं चलता
देश के निर्माण में मजदूरों का अहम् योगदान
देखा जाए तो फैक्ट्री या  खेती या और कुछ
यह मालिक नहीं मजदूर चलाते हैं
देश के निर्माण में साझा योगदान
अगर मजदूर नहीं
तो सारे काम ठप्प
ये लोग देश की
समाज की शक्ति है
इनका श्रम और पसीना बहा है
तब जाकर अट्टालिकाए खडी हुई है
जिसमें हम और आप रहते हैं
इन्होंने दिन रात एक कर दिया है
तब जाकर सडकों का निर्माण
जिसमें हम और आप फर्राटेदार गाडी चलाते हैं
मार भी सबसे ज्यादा इन पर ही पडती है
आज लाकडाऊन में इनकी दयनीय अवस्था से सब अवगत है
वह जो छत निर्माण करता है
उसके सर पर छत नहीं
आज महाकवि निराला जी की प॔क्तियां याद आ रही है
       वह तोड़ती पत्थर 
देखा मैंने इलाहाबाद के पथ पर
मजदूर राष्ट्र की रीढ़ है
उनका सम्मान सभी से अपेक्षित है
Happy  Labour  day