Tuesday 9 September 2014

खेलो के माद्यम से भी प्रगति संभव है।

वर्तमान युग में खेल - कूद गति, रुतबे, संपत्ति, शक्ति और दम-ख़म का प्रतिक है। 

एक समय था जब कहा जाता था - 
खेलोगे - कूदोगे. . बनोगे ख़राब 
पढोगे - लिखोगे . . बनोगे नवाब 

आज परिस्तिथि बदल गयी है। 
अब तो देशी खेलो कबड्डी , कुश्ती इत्यादि को भी महत्व मिल राहा है। 
लेकिन अभी भी जैसा चाहिए वैसा रुझान नहीं है। 

खिलाड़ियों के विकास के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए। 


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