Sunday 27 September 2015

हम इतने संवेदन हीन क्यों हो गये हैं?

एक लडके को दूसरे लडकों ने पीट पीट कर मार डाला और वह भी किसी सुनसान जगह पर नहीं व्यस्त स्टेशन पर
लोग आते जाते रहे तमाशा देखते रहे लेकिन किसी ने रोकने की कोशिश नही की
यह केवल एक घटना नही आए दिन ऐसी घटनाएँ हो रही है
मरते हुए का वीडियो बनाया जा सकता है कुछ महीने पहले की घटना कि सहेली मर रही थी पर उसका वीडियो बनाया जा रहा था अपने को पुलिस से बचाने के लिए
इलेकट्रानिक उपकरणो के लोग गुलाम हो गये हैं
कोई अपनी आत्महत्या का वीडियों बना रहा है
तो कोई दुसरे की
रास्ते पर कोई तडपता रहे या कोई किसी बुजुर्ग का अपमान करता रहे या कोई किसी को मारता रहे
हमें क्या?
सही भी तो है इस आपाधापी के युग में कौन मुसीबत ले   ,हर व्यक्ति डरा हुआ है
लेकिन इसका एक दूसरा पहलु भी है कुछ दिन पहले दिल्ली में एक विदेशी महिला की रक्षा करने को पास के बगीचे में खेल रहे बच्चे आए और उस शख्स को पुलिस के हवाले किया
अकेला नही कर सकता पर मिलकर तो बीचबचाव कर सकते है ताकि किसी की जान न जाए
निर्भया के नाम पर जुलूस ,रैलियॉ और प्रर्दशन तो हुए लेकिन अगर निर्भया मरती रहेगी तो बचाने कोई नही आएगा  हॉ उसका वीडियो बना सकते है
ऐसा होने के पीछे कारण क्या है?
पुलिस, प्रशासन ,समाज सभी को सोचने की जरूरत है

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