Wednesday 10 February 2016

जश्न और खुशी कब तक बंदूक की गोली से

एक नेता के जीत का जश्न मनाया जा रहा था जिससे एक आठ वर्ष के मासूम की जान चली गई
वैसे देखा जाय तो यह पहली घटना नहीं है
इससे पहले भी इस तरह की घटनाएं हो चुकी है
कभी शादी समारोह में तो कभी जीत के जश्न में
बंदूक रखना और चलाना वीरता का प्रतीक माना जाता है जैसे हम कोई आदम युग में रह रहे हो
उत्तर भारत में तो बंदूक लेकर बाइक पर पीछे बैठा हुआ दृश्य आम बात है
बाहुबलियों के साथ बंदुकधारी दिखना तो आम बात है
गॉधी के अहिंसा के देश मे कब तक यह चलेगा
आज अखिलेश सरकार कटघरे में है क्योंकि उनकी ही पार्टी के नेता और कार्यकर्ताओं से यह अपराध हुआ है
अखिलेश नौजवान नेता है तो उनकी सोच भी नई होनी चाहिए
यह जश्न के नाम पर जो बंदूक का खेल चलता है उसको खत्म करना चाहिए
बंदूक लेकर आने जाने और समारोह में उपयोग पर पांबदी लगाने की जरूरत है
बंदूक शान का प्रतीक न होकर सुरक्षा के लिए होना चाहिए
जो भी इस घटना के दोषी है उस पर कडी कारवाई हो
एक बच्चे की जान गई है उसके माता पिता पर क्या बीत रही होगी
फिर ऐसा हादसा न हो  इस बात पर ध्यान देने की जरूरत है
कानून का भी एक अपना वजूद है यह इन बाहुबलियों को याद दिलाने की जरूरत है

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