Tuesday 16 February 2016

यह हिन्दूस्तान थूकता बहुत है?

बहुत सालों बाद मेरी एक सहेली जो विदेश से आई थी
हमने साथ -साथ घूमने की योजना बनाई
एक टेक्सी किराये पर ली
जब कोई सिग्नल आता टेक्सी ड्राइवर मुँह बाहर निकालकर पिच से थूकता
यह भी नहीं कि वह पान या गुटका खा रहा था पर शायद आदत से मजबूर था
और वही नहीं यहॉ तक कि बगल की गाडी वाला भी उतने समय में बोतल के पानी से कुल्ला कर रहा था
सुबह का समय था कमोबेश ऐसा नजारा देखने के लिए मिल जाएगा
जहॉ पर भी जाओ थुका हुआ मिल जाएगा
कुछ लोग तो बस स्टाप पर बस के इंतजार में जब तक बस नहीं आती पिच पिच थूकते रहते हैं
अगर कोई दूसरा उस जगह आए तो उसका बैठना मुश्किल हो जाता है
सडक को लोग अपनी जागीर समझ लेते हैं
पान खाने वाले और गुटखा वालों की तो पूछिए मत
चाहे कितने स्काई वॉक बन जाए या रेल चला दी जाय
दूसरे दिन ही थूक की पीचों से भरे दिखाई देगे
सरकार और बी एम सी ने भी कितने प्रयत्न किए
पर वही ढाक के पात
याद आता है वाकया जब एक समारोह के वक्त हम सब सडक पर चल कर जा रहे थे
मेरी सहेली ने साडी पहना था और वह साडी एक हाथ ऊपर उठा कर चल रही थी
मेरे कहने पर कि आराम से चलो तो उसका जवाब था
साडी के कारण दिक्कत नहीं हो रही है
दिक्कत तो जो यहॉ -वहॉ थूके है उनके कारण है
मैं नहीं चाहती कि मेरी साडी में गंदगी लिपटे
यह हिन्दूस्तान थूकता बहुत है
मैं अवाक रह गई पर जवाब नहीं दे सकी क्योंकि बात भी सही थी
अगर हम विदेश में होते तो बराबर हमारे मुँह पर ताला लगा रहता
इसका कारण कि हम आजाद देश के नागरिक है
ऐसी आजादी कि उसका गलत फायदा उठाए
प्रधानमंत्री जी कबसे अपील कर रहे हैं
कब लोग इस थूकने और गंदगी करने से बाज आएगे

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