Saturday 18 June 2016

जीवन भी सागर जैसे ही है

जीवन वह सागर है जिसका कोई ओर छोर नहीं
कहॉ से शुरू हुआ कहॉ खत्म
कुछ नहीं पता.
असीमित है ,विशाल है
जीवन रूपी लहरे बहते - बहते हिचकोले खाते
किनारे पर पहुँचने की कोशिश
इस सफर में न जाने कितने मिलते हैं
बिछुडते हैं , कभी न मिलने के लिए
पर कुछ हमेशा याद रहते हैं
वे जिन्होंने हमारे दिलों को छुआ है
जीवनरूपी सागर में निरीह मछलियॉ भी है
और खूंखार मगरमच्छ भी ,जो निगलने को आतुर
बहुमूल्य मोती भी मिले और कंकर - पत्थर भी
अब क्या लेना और क्या छोडना
मंथन में अमृत और विष भी मिले
अब उसको शिव की तरह गटक कर नीलकंठ हो या
राहु की तरह सर कटाया जाय
सीमा में रहना और मर्यादा का पालन करना
कूडे- कचरे को बाहर फेक देना
अनावश्यक कुछ भी न ग्रहण करना
हॉ कभी- कभी सूनामी दिखा देना
ताकि कोई नाजायज फायदा न उठा सके
वाष्प के रूप में जल कर जीवन देना
भले स्वयं खारा हो पर दूसरों को मिटकर मिठास देना
जलना पर बरसकर प्यास बुझाना
सागर जैसा विशाल हदय रखना और कुछ कर जाना
लोग और मानव जाति हमेशा याद रखे
नाम रह जाएगा और सब छूट जाएगा

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