Thursday 27 October 2016

काश! मेरे भी खाते में पन्द्रह लाख रूपये आ जाते

मैं एक गरीब व्यक्ति
मजदूरी करना मेरा काम
रोज कमाना ,रोज खाना
एक दिन बीमार पड जाउ तो परिवार भूखा रह जाता
कभी - कभी तो पन्द्रह रूपये के लिए भी मोहताज
बैंक में खाता खुलाना तो एक सपना
पहले तो बैंक की दहलीज पर भी पैर न रखा
पर अब तो खाता खुलवाने के लिए कहा जा रहा
मैंने भी जाकर खाता खुलवाया
जो पहले हिकारत भरी निगाह से देखते थे
आज उन्होंने प्यार से बात की
समझाया और फारम पर अंगूठा भी लगवाया
चमचमाता बैंक ,कुर्सी ,टेबल सब देखकर
मन में अच्छा लगा
अब मेरे भी अच्छे दिन आ जाएगे
मन में इच्छाएं उडान भरने लगी
घर आया ,बीवी और बच्चों को बताया
अब हमारा भी खाता खुल गया है
हमारे खाते में लाखों रूपये आने वाले है
अब हम झोपडी में नहीं रहेंगे
पक्का घर बनआउगा
बच्चे स्कूल में पढने जाएगे
और यही सोचते- सोचते नींद ने अपने आगोश में ले लिया
न जाने मन कहॉ- कहॉ भटकने लगा
सपनों में सब अच्छा - अच्छा दिखाई देने लगा
सुबह होते ही नहा- धो ,तैयार होकर बैंक गया
आज पास बुक लेने के लिए बुलाया था
पासबुक बिना पैसे के था
खाता खोलने के लिए पैसे नहीं लगे थे
सोचा ठीक है
आज नहीं तो कल पैसे आएगे
तब से हर हप्ते एक बार बैंक का चक्कर लगाता हूँ
१५ लाख रूपये तो क्या १५ पैसे भी नहीं जमा हुए
तो फिर क्या यह केवल स्वप्न दिखाया गया था
गरीब की झोली तो खाली ही है
फिर चुनाव आ रहा है
फिर कोई वादा होगा
बाद में भूल जाएगे
सत्ता पर लोग विराजमान होगे
हमें तो मजदूरी ही करनी है
बाबा तुलसीदास ने सही कहा है
"कोउ होउ नृप हमें का हानि
        चेरी छाडि न होउओ रानी"
यानि कोई भी रानी हो मुझे क्या फर्क पडता है
मैं तो दासी की दासी ही रहूगी
   कहने का मतलब किसी की भी सत्ता आए
गरीबों का कोई नहीं

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