Wednesday 16 November 2016

कल उनकी बारी ,आज हमारी बारी

मन हुआ यादों के झरोखों में झॉक आऊ
चलू अतीत की सैर कर आऊ
वह बचपन की मस्ती
हल्ला- गुल्ला से सराबोर हो जाऊ
वह युवावस्था की दहलीज पर कदम रखना
वह सहेलियों संग घंटों बतियाना
बिना कारण के हँसना- खिलखिलाना
न कोई जिम्मेदारी न परेशानी
पर आज तो भार तले दब गई है जिंदगी
निकलना चाहूँ तो भी निकला नहीं जा सकता
मन तो भटकता है पर कर्तव्य बॉधता है
सही है आज हमारा समय नहीं
युवा पीढी का है
उनको भी तो वह हक है जो कभी हमको मिलाथा
माता- पिता की छत्रछाया में ही तो सुकुन का आभास होता है
अन्यथा जिम्मेदारी तो सभी के कंधों पर एक दिन आनी ही है
कभी हमारे मॉ- बाप पर थी
     आज हम पर
            आनेवाले समय में नई पीढी पर

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