Sunday 18 December 2016

मॉ और बच्चे

मॉ आएगी ,खाना लाएगी
प्रतीक्षा में बैठे हैं बच्चे
भूख लगी है पर कुछ खाने को नहीं
मॉ जो दूसरों के घर खाना बनाने गई है
बर्तन यहॉ- वहॉ बिखरे पडे
रसोईघर भी है उदास
अन्न आएगा तभी तो चूल्हा जलेगा
मॉ आएगी थकी- हारी
दूसरो का झाडू- बर्तन और खाना बनाकर
कुछ बचा- खुचा ले आएगी
बच्चे देखते ही लपक लेगे
यह जाने बगैर कि उसने भी कुछ खाया है या नहीं
बच्चों को खाते देख प्रसन्न हो उठेगी
जुट जाएगी फिर खाना बनाने में
अपने घर और बर्तन साफ करने में
यही उसकी दिनचर्या
बुखार हो या सरदर्द
कभी न थकती न आराम करती
सुबह से शाम तक भागती
ताकि बच्चों का पेट भरे
वे आराम की नींद सोए
दूबली - पतली काया ,हर दम व्यस्त रहती
बच्चों का पेट भरते खुश रहती

No comments:

Post a Comment