Tuesday 6 December 2016

मेरी काठी ,मेरी लाठी

मेरी काठी ,मेरी लाठी ,है सबसे प्यारी
हरदम साथ निभाती मेरा
सहारा देने को रहती तत्पर
गिरने- पडने से मुझे बचाती
मेरे साथ- साथ यह भी आराम फरमाती
मेरे उठते ही यह भी तैयार
सुबह से लेकर रात तक
अंधेरा हो या उजाला
गर्मी हो या ठंडी या फिर मुसलाधार बारीश
घर हो या बाहर
संग हमेशा रहती
लडखडाते कदमों का सहारा
उबडखाबड रास्ते या जीने की चढाई
इसके बिना तो सब मुश्किल
यह न रहती तो जीवन हो जाता दुश्वार
कौन सहारा देता ,किसका सहारा लेता
ऐसा संगी कहॉ से मिलता
है तो यह निर्जीव
पर चलती है मेरी साथी बन
स्वावलंबन का एहसास दिलाती
अपनेपन से मुझे संभालती
मेरी काठी ,मेरी लाठी ,सबसे न्यारी सबसे प्यारी

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