Thursday 25 May 2017

वाणी की स्वतंत्रता ???पप्पू संबोधन पर चुनाव आयोग

हम स्वतंत्र है
बोलना हमारा मौलिक अधिकार है
पर हम क्या कुछ भी बोल सकते है?
किसी पर भी टिप्पणी कर सकते है?
किसी भी हद तक
क्या इसे स्वीकार करना चाहिए?
प्रजातंत्र है
अपनी बात को रख सकते है?
क्या हम दूसरे की आवाज को दबाकर उसके अधिकार का हनन नहीं कर रहे हैं
शब्दों और वाक्यों को तोड- मरोड कर पेश करना यह भी एक पेशा बन गया है
पक्षपात सरेआम दिखाई दे रहा है
दूरदर्शन  पर पार्टी के प्रवक्ता आते है वहॉ पर भी यह दिखाई देता है
हम राष्ट्र भक्त है और दूसरे सब देशद्रोही है यह मानसिकता चल रही है
क्या राष्ट्र भक्ति का प्रमाणपत्र देना होगा और वह भी हर बार
हर कोई अपने नजरिये से देखता है और अपनी बात रखता है पर इसका मतलब यह नहीं कि वह देशद्रोही है
ऐसा भी नहीं है कि देश का विकास नहीं हुआ
केवल तीन साल में तो यह सब नहीं हो गया
विपक्ष को दबा देना ,उसे खत्म करना
यह तो देश के स्वास्थ्य के लिए अच्छा नही होगा
व्यक्ति और उसके काम को शब्दों और वाक्यों से मत आका जाय
बडबोलापन का मतलब काम नहीं होता
हम ही श्रेष्ठ है बाकी सब बेकार

किसी पार्टी के नेता को पप्पू कहकर बुलाना

हॉ मतभेद है वह सभा वगैरह में जिकर कर दे पर एक को बुद्धू बनाने में कोई कसर न छोडे

मजाक उडाना यह तो स्वस्थ राजनीति का लक्षण तो नहीं
बात की जगह काम करे.
काम की ही कद्र होती है
बोलना चाहिए पर वह भी हद में रहकर
श्रोता इतना मूर्ख नहीं है.
और फिर वक्त तो किसी को नहीं बख्शता
अर्श से फर्श पर और फर्श से अर्श पर लाना तो इसकी फितरत है
ज्यादा गुमान करना भी अच्छा नहीं
कम से कम व्यक्ति की उम्र - तजुर्बे और काबीलियत का तो सम्मान करना चाहिए
चाहे वह कोई भी क्यों न हो
पहले अपने गिरेबान में झॉककर देखे कि हम क्या है
और यह बात हमारे राजनेताओं को भलिभॉति समझ लेना चाहिए.

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