Wednesday 28 June 2017

जिंदगी का फलसफा

वर्षा हो रही है
घनघोर घटाएं भी छा रही है
दिन में ही अंधेरा गहरा रहा है
सूर्यदेव तो दिखाई ही नहीं दे रहे
वह तो समय पर ही निकले पर अंधेरा उनके प्रकाश पर भारी पड गया
पर यह कितने समय तक
आखिर यह बादल भी छटेगे
उजाला भी फैलेगा चहुओर
मन की भी तो वही अवस्था
कभी- कभी गहरे अवसाद में डूब जाता है
बोझिलपन और बैचेनी महसूस होने लगती है
अतीत का कडवापन वर्तमान पर हावी होने लगता है
पर यह भी कब तक???
आखिर इसे भी जाना है
और खुशी का आना है
अंधेरे पर उजाला भारी पड जाता है
उदासी के मुकाबले खुशी बाजी मार ले जाती है
यह सब कुछ लम्हों या समय के लिए ओझल भले हो जाय
पर आखिर में उनको आना  ही है
अंधेरे को चीर प्रकाश को बाहर आना है
उदासी को दूर कर मुस्कराना और खिलखिलाना भी है
यह अपने आगे किसी को नहीं टिकने देती
तो फिर अंधेरे और अवसाद की क्या औकात
समझ सको तो समझ लो भाई
यही तो है इस जिंदगी का फलसफा

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